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क्या ‘अब्बा जान’ बयान के जरिए राशन कार्ड पर झूठ बोल गए सीएम योगी?
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कुछ महीनों बाद ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इसके लिए सभी राजनीतिक दल एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. नेताओं का चुनावी कैंपेन जारी है. इस बीच पिछले साढ़े चार साल से यूपी की सत्ता पर काबिज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विकास और अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाने के लिए कुशीनगर में एक जनसभा आयोजित की. मंच से शुरूआत तो सरकार के कामों को लेकर हुई लेकिन तभी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुछ ऐसा बोल दिया जिस पर अभी तक बवाल जारी है.
योगी आदित्यनाथ ने 12 सिंतबर को जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, “पीएम मोदी के नेतृत्व में तुष्टिकरण की राजनीति का कोई स्थान नहीं है. 2017 से पहले, क्या सभी को राशन मिलता था? केवल ‘अब्बा जान’ कहने वालों ने ही राशन पचा लिया.”
इस बयान के बाद उनके विरोधियों से लेकर सोशल मीडिया तक पर उनकी आलोचना हुई.
अब सवाल उठता है कि क्या सच में पहले की सरकारें किसी एक खास समुदाय या जाति को ही राशन दिया करती थीं?, क्या योगी आदित्यनाथ सरकार ने राशन कार्ड वितरण के मामलों में रिकार्ड तोड़ काम किया है?
इस बयान के बाद न्यूजलॉन्ड्री ने जमीनी हकीकत जानने की कोशिश की. क्या वाकई ऐसा है जैसा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं.
नहीं मिल रहा राशन
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के बाबूसराय गांव के रहने वाले जुबेर अहमद अहमदाबाद में सिलाई का काम करते हैं. लॉकडाउन की पहली लहर समाप्त होने के बाद वह फिर से काम के लिए अहमदाबाद लौटे. लेकिन तकरीबन चार महीने बाद जब वह वापस घर आए तो उन्हें पता चला कि उनका नाम राशन की सूची से काट दिया गया है. राशन सूची से नाम क्यों काटा गया इसके बारे में किसी के पास कोई जानकारी नहीं है.
वह न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहते हैं, “दोबारा राशन सूची में नाम डलवाने के लिए जगह-जगह रिश्वत देनी पड़ती है. तमाम तरह की कागजी कार्रवाई करनी पड़ती है, जिसके बाद भी यह पक्का नहीं है कि आपका नाम सूची में जोड़ दिया जाएगा.”
बड़ी मशक्कत का सामना करने के बाद भी उनका नाम अभी तक राशन कार्ड में नहीं जुड़ पाया है. वह कहते हैं, “अभी नए राशन कार्ड नहीं बन रहे हैं इसलिए एक बार जो नाम कट जाता है, वह बड़ी मुश्किल से वापस जुड़ता है.”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी कई लोगों के नाम राशन कार्ड से काट दिए गए हैं. राजा तालाब तहसील के गौरमधुरकर शाह गांव के 38 वर्षीय सुमारू पटेल का नाम भी राशन कार्ड सूची से काट दिया गया है. सुमारू मिस्त्री का काम करते हैं. उनके परिवार में कुल छह लोग हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए वह कहते हैं, “चार महीने पहले ही मेरे बेटे अभिमन्यु का नाम राशन कार्ड से कट गया. कारण पता करने की कोशिश की लेकिन किसी को कुछ पता नहीं है. कई बार प्रधान और कोटेदार से मिल चुके हैं लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ.”
वह आगे कहते हैं, “हम लोग अधिया पर खेती कर गुजारा करते हैं. जब लॉकडाउन था तब हमारा नाम राशन कार्ड की सूची से काट दिया गया. प्रधान को आधार कार्ड समेत जो जरूरी कागज थे वह दे दिए हैं. लेकिन अभी तक नाम नहीं जुड़ा है. गांव में और भी बहुत से लोगों का नाम काट दिया गया है, किसी को नहीं पता कि ऐसा क्यों हुआ.”
इसी गांव की रहने वालीं 60 वर्षीय दुलारी कहती हैं, “राशन कार्ड में नाम है लेकिन हमें राशन नहीं मिलता.” कारण पूछने पर वह कहती हैं, “मेरी बहू राशन लेने जाती है लेकिन करीब 4-5 महीने पहले से ही वह राशन नहीं दे रहे हैं. कोरोना के कारण सब बंद था इसलिए इस बारे में अभी किसी से शिकायत नहीं की है.”
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में राइट टू फूड कैंपेन से जुड़े सुरेश राठौर कहते है, “हमें कई ऐसे मजदूर लोग मिलते हैं, जिनका नाम राशन कार्ड से काट दिया गया है. वह बेचारे दिनभर मजदूरी कर अपनी गुजर-बसर करते हैं. राशन कार्ड में नाम जुड़वाने के लिए वह कई किलोमीटर जाकर आवदेन करते हैं. कोई भरोसा नहीं है कि एक बार आवेदन करने पर उनका नाम जुड़ जाएगा, मजदूर अपना काम छोड़कर कई दिनों तक चक्कर लगाते हैं ताकि उनका नाम राशन कार्ड में जुड़ जाए.”
वह आगे कहते हैं, “जिन लोगों को पहले राशन मिल रहा था, उनका भी नाम काट दिया गया है. यहां कोई बताने वाला नहीं है कि क्यों यह नाम काटा गया. कोई जवाब देने वाला नहीं है. एक दो लोगों के साथ जब हम एसडीएम अधिकारी के पास जाते हैं तो वह हमारी नहीं सुनते हैं, लेकिन जब 10-15 लोगों के साथ जाते हैं तो कोविड नियमों का उल्लंघन बताकर हम पर ही कार्रवाई की जाती है. इस समय जो लूट सकता है वह बस लूट रहा है.”
क्या धर्म और जाति के आधार पर राशन कार्ड दिया जा रहा हैं? इस पर सुरेश कहते हैं, हम लोग इतने सालों से इस कैंपेन पर काम रहे हैं, लेकिन हमें यह कभी नहीं दिखा कि किसी को धर्म या जाति के नाम पर राशन ना दिया जा रहा हो. ऐसा किसी भी सरकार के कार्यकाल में नहीं हुआ. अभी भी ऐसा नहीं है.”
क्या योगी सरकार के आने के बाद राशन वितरण या राशन कार्ड को लेकर कोई सुधार हुआ है? इस पर वह कहते हैं, “कोई सुधार नहीं हुआ है. सबकुछ पहले जैसा ही है. बस फर्क इतना है कि कोविड होने के कारण लोग घर के अंदर हैं, सड़क पर नहीं हैं. एससी, एसटी लोगों को इस राशन कार्ड से सबसे ज्यादा फायदा मिलना चाहिए था लेकिन उनके लिए कोई काम नहीं हो रहा है.”
राइट टू फूड कैंपेन से जुड़े सिराज दत्ता न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहते हैं, “राशन वितरण में एक महत्वपूर्ण बात है कि यह योजना भारत सरकार की है, इसमें राज्यों का काम सिर्फ वितरण का होता है. साल 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत देश की 70 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी आबादी को सब्सिडी वाला राशन देने की बात कही गई है. जो राशन राज्य को अलॉट होता है वह केंद्र सरकार देती है. हालांकि कुछ जगहों पर राज्य सरकारें अपने पास से गरीब लोगों को राशन वितरण करती हैं.”
राशन कार्ड में नाम नहीं होने की वजह से इन लोगों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेएवाई) का लाभ नहीं मिल पा रहा है. इस योजना की घोषणा केंद्र सरकार ने कोरोना काल के दौरान की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना के तहत देश की 80 करोड़ जरूरतमंद जनता को मुफ्त राशन देने का ऐलान किया था. यह योजना उन गरीबों के लिए शुरू हुई थी जो रोजगार या दूसरी आवश्यकताओं के लिए अपना गांव छोड़कर कहीं और जाते हैं. बता दें कि मार्च 2020 में शुरू हुई यह योजना नंबवर 2021 तक चलती रहेगी.
योगी सरकार का कार्यकाल और पूर्ववर्ती सरकार
मार्च 2017 में योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. भारत सरकार के खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा हर महीने जारी फूड ग्रेन बुलेटिन के मुताबिक, मार्च 2017 में 15.20 करोड़ लोगों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत राशन मिल रहा था. लेकिन साढ़े चार साल बाद यानी की 2021 के सितंबर में एनएफएस के तहत 14.86 करोड़ लोगों को राशन मिल रहा है. यानी की 2017 के मुकाबले करीब 33.6 लाख लोग राशन से वंचित हो गए.
मुख्यमंत्री ने कुशीनगर में इस महीने बयान दिया था कि उनकी सरकार गरीबों के लिए काम कर रही है. वहीं बीजेपी इस महीने जनसंघ के जनक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्मदिन पर प्रदेश में गरीब कल्याण सम्मेलन का आयोजन कर रही है. गरीबी का ख्याल किस तरह से रखा जा रहा है, वह यह आंकड़े बताने के लिए काफी है.
कोविड काल के समय जब लोगों को सबसे ज्यादा सरकारी मदद की जरूरत थी, उस वक्त सरकार राशन कार्ड के आवेदन को निरस्त कर रही थी. स्वतंत्र पत्रकार सुमित चतुर्वेदी के आरटीआई द्वारा जानकारी हासिल करने पर पता चला था कि प्रदेश में 18 लाख से ज्यादा आवेदन पेंडिग थे. वहीं 56.8 प्रतिशत आवेदन को निरस्त कर दिया गया.
वहीं साल 2021 में जनगणना होनी थी लेकिन कोरोना के कारण अभी तक इस पर कोई काम नहीं हुआ है. लेकिन इस दौरान जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई है. एक अनुमान के मुताबिक यूपी की अभी जनसंख्या 24 करोड़ है. ऐसे में कितने लोग इस योजना से वंचित रह रहे हैं इसका अंदाजा इन आंकड़ों से लगाया जा सकता है.
जब जनसंख्या बढ़ी तो राशन कार्ड की संख्या क्यों नहीं बढ़ी? इस सवाल पर स्वतंत्र शोधकर्ता अनमोल सोमांची कहते हैं, “यह योजना केंद्र सरकार के अंतर्गत आती है. खाद्य और सार्वजनिक वितरण मामलों का मंत्रालय, कोटा प्रणाली में कोई संशोधन अगली जनगणना के प्रकाशन के बाद ही करेगा, इसलिए अभी यह नहीं हो पाया.”
अनमोल कहते हैं, “जनसंख्या की गिनती अभी तक नहीं हो पाई यह सच है लेकिन भारत सरकार के पास कई रिपोर्ट्स हैं जिसमें उन्हें पता है कि मौजूदा जनसंख्या कितनी बढ़ चुकी है. सरकार चाहें तो राशन कार्ड की लिमिट को बढ़ा सकती है.”
बता दें कि मौजूदा राशन कार्ड और कितने प्रतिशत जनसंख्या को सब्सिडी वाले राशन वितरण का फायदा मिलना चाहिए यह नीति आयोग (साल 2013 में योजना आयोग) तय करता है. साल 2013 में लागू हुए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम में उत्तर प्रदेश की ग्रामीण आबादी का 79.56 फीसदी यानी 12,35,70,426.3768 और शहरी आबादी का 64.43 फीसदी यानी 2,86,68,169.0909 आबादी रियायती दर खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार रखती है. यह आंकड़े साल 2011 के जनगणना के आधार पर लिए गए थे.
मई 2020 में, प्रवासी मजदूरों के पलायन की तस्वीरें मीडिया में प्रकाशित हुईं तब सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए सरकार से मदद देने के लिए कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया कि भूख और अत्यधिक गरीबी से पीड़ित अधिकांश प्रवासी श्रमिकों को राशन सार्वजनिक वितरण प्रणाली से बाहर रखा गया था क्योंकि उनके पास राशन कार्ड नहीं थे. साल 2021 जून में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा कि प्रवासी कामकारों के लिए केंद्र और राज्य सरकार प्रवासी श्रमिकों के लिए सूखा राशन प्रदान करे और महामारी जारी रहने तक सामुदायिक रसोई जारी रखें.
क्या राशन कार्ड नहीं तो नहीं मिलेगा राशन?
राशन कार्ड ना होने पर भी कई राज्य सरकारें लोगों को राशन मुहैया करा रही हैं. रिसर्चर और स्वतंत्र पत्रकार सुमित कहते हैं, “कई राज्य सरकारों ने कोरोना काल के दौरान प्रवासी मजदूरों को राशन मुहैया कराने के लिए अपने खर्च पर राशन वितरण शुरू किया है. हालांकि यह साफ नहीं है कि लोगों को कैसे बिना राशन कार्ड के राशन मिलेगा.”
उत्तर प्रदेश सरकार ने अप्रैल 2020 में तीन महीने के लिए फ्री राशन वितरण की घोषणा की थी. तब योगी आदित्यनाथ ने कहा था, प्रदेश में मौजूद किसी भी शख्स के पास राशन कार्ड या आधार कार्ड नहीं भी है तब भी उसे जरूरत के अनुसार राशन उपलब्ध कराया जाए.
कई प्रदेशों में राशन कार्ड में नए नाम जोड़े जाने को लेकर समस्या है. उत्तर प्रदेश में राइट टू फूड कैंपेन से जुड़े सुरेश राठौर कहते हैं, “नए नाम राशन कार्ड में नहीं जोड़े जा रहे हैं. सब अधिकारी यही बोलते हैं कि अभी नाम नहीं जुड़ रहे हैं. राशन कार्ड से नाम तो कट जाता है लेकिन जुड़वाने के लिए आप भटकते रहो.”
राशन कार्ड में नाम नहीं जोड़ने पर सिराज दत्ता कहते हैं, “राज्य सरकारों का राशन कार्ड का कोटा पूरा हो चुका है, जो उन्हें साल 2013 में जारी किया गया था. इसलिए बहुत से राज्य या तो किसी राशन लाभार्थी की मौत के बाद नए नाम जोड़ते हैं या फिर टालते रहते हैं.”
इसी मुद्दे पर एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज अल जज़ीरा से बात करते हुए कहती हैं, "24 अगस्त 2021 को केंद्रीय उपभोक्ता और खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मामलों के मंत्रालय ने कहा कि कोटा प्रणाली में कोई संशोधन अगली जनगणना के बाद ही संभव होगा. संभावना है कि महामारी समाप्त होने के बाद अगली जनगणना की जाएगी.”
प्रतापगढ़ जिले के एक गांव के कोटेदार (दुकानदार/वितरक) नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं, “जब से महामारी ने दस्तक दी है तब से नए राशन कार्ड नहीं बन रहे हैं. अगर आधार लिंक नहीं है तो राशन नहीं दिया जाता है. क्योंकि अब राशन फिंगर इंप्रेशन (बायोमेट्रिक स्कैन) से ही मिल रहा है.”
कोटेदार बताते हैं कि उनकी जानकारी के अनुसार प्रतापगढ़ जिले से ही लगभग 1 से 1.5 लाख लोगों को राशन सूची से लोगों को बाहर किया गया है. हालांकि वो तर्क देते हैं कि जो पात्र नहीं हैं उनके ही नाम कटे हैं. लेकिन इसका आधार क्या ये उनको पता नहीं है.
नाम कटने को लेकर एक जनसेवा केंद्र चलाने वाले मोहम्मद फैसल कहते हैं, “अगर आपकी वार्षिक आय 40 हजार रुपये से अधिक हो जाती है तो आपका नाम राशन सूची से बाहर कर दिया जाता है. आप इसके पात्र नहीं रह जाते हैं. यह भी एक कारण है नाम कटने का.”
गरीब कल्याण कार्ड का वादा
भारतीय जनता पार्टी ने 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में अपने ‘लोक कल्याण संकल्प पत्र’ में गरीबी उन्मूलन को प्राथमिकता देते हुए ‘गरीब कल्याण कार्ड’ की बात कही थी. लेकिन सरकार ने साढ़े चार साल पूरे होने के बावजूद भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया. वहीं इस बीच पार्टी राज्य में 26 सिंतबर से 2 अक्टूबर के बीच गरीब कल्याण सम्मेलन का आयोजन करने जा रही है. इस सम्मेलन के जरिए सरकार अपना रिपोर्ट कार्ड भी पेश करेगी.
बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कहा था कि, प्रदेश के सभी गरीबों तक बिना जाति-धर्म और भेद-भाव के सरकारी कल्याण योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए ‘गरीब कल्याण कार्ड’ का वितरण किया जाएगा.
पार्टी ने कहा था कि गरीब कल्याण कार्ड के जरिए बीपीएल और राशन कार्ड धारकों को सरकारी सुविधाओं का पारदर्शी तरीके से हस्तांतरण किया जाएगा. साथ ही जनधन एवं आधाऱ योजना की नींव पर बना यह गरीब कल्याण कार्ड प्रदेश के आर्थिक समावेश एवं सामाजिक उत्थान के लिए एक क्रांतिकारी पहल होगी.
इसके साथ ही पार्टी ने कई अन्य दावे भी किए थे. लेकिन उनमें से किसी को भी अमल में नहीं लाया गया है.
गरीब कल्याण कार्ड पर न्यूज़लॉन्ड्री ने वाराणसी, प्रतापगढ़, बाराबंकी, आजमगढ़ समेत कई जिलों में लोगों के बात की लेकिन किसी ने भी इस कार्ड से संबंधित कोई भी जानकारी होने से इंकार कर दिया.
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(तहजीब रहमान और तहसीम फातिमा के सहयोग से)
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