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मुजफ्फरनगर महापंचायत: आखिर मीडिया के बड़े हिस्से से क्यों नाराज हैं किसान?

रविवार को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में तीन कृषि बिलों के खिलाफ ऐतिहासिक महापंचायत हुई. बताया जा रहा है कि यह अब तक की सबसे बड़ी महापंचायत थी, जिसमें लाखों लोगों ने हिस्सा लिया. वहीं ज्यादातर सभी मीडिया संस्थानों ने इस महापंचायत को कवर किया. हालांकि यहां पर कई पत्रकारों के खिलाफ हूटिंग की गई. उन्हें घेर कर गोदी मीडिया वापस जाओ और गोदी मीडिया हाय हाय के नारे भी लगे.

ऐसा ही वाकया आजतक की एंकर चित्रा त्रिपाठी के साथ भी हुआ. जब वह कवरेज के लिए मुजफ्फरनगर पहुंचीं तो उन्हें लोगों ने घेर लिया और गोदी मीडिया हाय-हाय के नारे लगाने लगे. वहीं आज तक का लोगो लगी एक गाड़ी पर भी अपशब्द लिखे गए. इस तरह की वीडियो और तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हैं.

इसके अलावा टीवी-9 के लिए पत्रकार अभिषेक उपाध्याय मुजफ्फरनगर से लाइव कर रहे थे. इस दौरान स्टूडियो में बैठे एंकर के एक सवाल पर जब वह कहते हैं, "यहां पर अभी तक कृषि कानूनों को लेकर कोई विशेष चर्चा नहीं हो रही है." इस लाइव के दौरान ही किसान उन्हें घेर लेते हैं और कहते हैं कि आप झूठ बोल रहे हैं. यहां कृषि कानूनों पर ही चर्चा हो रही है. यह बात किसान कई बार अभिषेक से कहते हैं कि आप झूठ बोल रहे हैं. किसानों का गुस्सा देख अभिषेक थोड़े नरम पड़ जाते हैं और किसानों की हां में हां मिलाते हुए जल्दी ही अपनी बात खत्म कर देते हैं.

अब सोशल मीडिया पर इसे लेकर बहस छिड़ी है. कुछ लोग इनके विरोध में लिख रहे हैं तो वहीं कुछ लोग समर्थन में खड़ें हैं.

इसे लेकर पत्रकार विकास त्रिवेदी ने भी ट्वीट किया-

चित्रा त्रिपाठी का वाला वीडियो शेयर करते हुए पत्रकार शुसांत सिन्हा लिखते हैं, "एक महिला पत्रकार को घेरकर अपने 'किसान' होने का परिचय देते गुंडे"

किसान मीडिया से क्यों नाराज हैं इसे लेकर न्यूजलॉन्ड्री ने कई किसानों से बात की. महापंचायत में शामिल हुए किसान सतेंद्र कुमार कहते हैं, "कुछ चैनल ऐसे हैं जो सरकार के दवाब में आकर सही खबर नहीं दिखाते हैं. अगर मीडिया सरकार और किसानों को सही मार्गदर्शन कराएं तो यह समझौता जल्दी हो जाता. कुछ चैनल जैसे रिपब्लिक भारत है. अब यहां पर लाखों की संख्या है सब जानते हैं लेकिन वह इसे हजारों की संख्या में दिखाएगा. ऐसा करके लोगों को गुमराह करेगा, कि किसान कम हैं और कुछ को कहेगा कि खालिस्तानी कुछ को कहेगा कि पाकिस्तानी हैं. देखिए जब हमारे देश में इस तरह की बात होती है तो बहुत दुख होता है. हम मुजफ्फरनगर में रहते हैं और जब यहां शहर में कुछ बात हो जाती है तो तुरंत मीडिया के कैमरे प्रशासन के दवाब में आकर बंद हो जाते हैं. वह मुंह देखकर कि सरकार किसकी है तब बात करते हैं."

मीडिया आपकी कौनसी परेशानी नहीं दिखा रहा है? इस सवाल पर वह कहते हैं, "यहां लाखों में लोग आए हैं लेकिन इन्हें हजारों में बताएंगे और खाद्ध का कट्टा देख लो आप कितनी महंगाई है. खाद्ध का क्ट्टा आधार कार्ड से मिलेगा, किसान को पैसा पेन कार्ड से मिलेगा. अब बताइए कितने किसान पढ़े लिखे हैं जिन्हें यह सब पता है."

वहीं किसान सचिन मलिक कहते हैं, "देखिए हमें सोशल मीडिया चलाने की जरूरत क्यों पड़ी क्योंकि हमें मीडिया नहीं दिखा रहा है. लेकिन अगर किसी का कुत्ता मर जाए तो वह पूरा दिन उसे दिखा देगा. किसान नौ महीनों से संघर्ष कर रहे हैं. वह बारिश, आंधी, तूफान और गर्मी झेल रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई नहीं दिखा रहा है. आज भी यहां इतनी भीड़ है लेकिन कुछ पत्रकार यहां से खाली ग्राउंड की तस्वीर लेकर जाएंगे. यह बात मैं आपको लिखकर दे सकता हूं."

"टिकैत साहब ने साफ बोल रखा है कि पेन और कैमरे पर बंदूक का पहरा है. तमाम जितने बड़े चैनल हैं सभी बिक चुके हैं. गोदी मीडिया देश को गुमरह कर रही है. देश में महापंचायतें चल रही हैं इनमें लाखों में किसान आते हैं लेकिन मीडिया उन्हें सैंकड़ों में बदल देता है. मीडिया अगर अपना काम इमानदारी से करने लगेगा तो सरकार पर दवाब बन जाएगा." उन्होंने कहा.

कौनसे ऐसे मुद्दे हैं जो मीडिया नहीं दिखाता है? इस सवाल पर सचिन कहते हैं, "यहां रोजाना किसान आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन कोई मीडिया नहीं आता कि आखिर किसान क्यों मरा और कैसे मरा. कोई एक मीडिया वाला बता दीजिए जो यहां आता हो. अभी कोई कुत्ता मर जाए तो सभी आ जाएंगे. जब हम मीडिया डिबेट में जाकर अपनी बात रखते हैं तो वहां पक्ष वालों की आवाज दबा देते हैं और विपक्ष वालों की आवाज बढ़ा देते हैं."

वहीं किसान याकूब प्रधान कहते हैं, "जो छोटे चैनल मोबाइल वाले हैं वह तो कुछ दिखाते हैं लेकिन बड़े वाले चैनल किसानों के विरोध में दिखाते हैं. बड़े चैनल वाले हिंदू मुस्लिम ज्यादा करते हैं. एंकर रुबिका लियाकत टिकैत जी से पूछ रही थीं कि इन कानूनों में काला क्या है? अब बताओ इन्हें क्या बताएं कि इन कानूनों में क्या काला है और क्या सफेद है. अब हम सरकार को बताएं या इन्हें बताएं. मीडिया बिका हुआ है. सबको सरकार ने खरीद रखा है. यह बीजेपी के दबाव में काम कर रहे हैं."

"पहले अखबार सब ठीक दिखाते थे. अमर उजाला अखबार सही खबरें छापता था. जो भी पहले आंदोलन होते थे उनको ठीक तरीके से कवर करते थे, किसनों की बात होती थी लेकिन अब ज्यादातर बीजेपी के माफिक लिख रहे हैं. उन्होंने आगे कहा.

इससे पहले जब न्यूजलॉन्ड्री की टीम सुबह-सुबह मुजफ्फरनगर महापंचायत को कवर करने पहुंची तो वहां फ्री में कुछ राष्ट्रीय अखबार बांटे गए. अखबार पढ़ने वाले लोगों से जब हमने बात की कि मीडिया आपकी बातों को किस तरह से रख रहा है. इस पर किसान राजकुमार सिंह कहते हैं, "भैया किसान की बातों को मीडिया नहीं दिखाता है. और सरकार की एक-एक बात को खुलकर दिखाता है. जहां भी हम कोई पंचायत या रैली करते हैं तो मीडया उन्हें नहीं दिखाता है. एक आद चैनल है जैसे संदीप चौधरी, वह हमारी बात दिखाते हैं. वो बढ़ाचढ़ाकर नहीं दिखाते हैं लेकिन बाकी मीडिया सिर्फ सरकार की ही बात करते हैं."

वह आगे कहते हैं, "अगर मीडिया किसानों की बात को सरकार तक पहुंचाता दे तो अब तक कुछ न कुछ फैसला आ जाता. लेकिन ये मीडिया वाले किसानों की बातों को छिपा रहे हैं. यह सरकार के सामने किसानों की बातों को उठाते ही नहीं हैं. वरना मीडिया मध्यस्तता करता तो ठीक रहता."

मुजफ्फरनगर महापंचायत में आई भीड़

आप महापंचायत में क्या सोचकर आए हैं? इस सवाल पर वह कहते हैं, "जब यह सरकार आई थी तो खाद्ध का कट्टा 600 रुपए का था लेकिन अब हमने 1200 का लिया है, दोगुना हो गया है. फसल का रेट आधा हो गया है. पहले धान 4200- 4500 तक बिक जाता था लेकिन अब 1500-1700 तक बिकता है. अब ऐसे हम तो आधे में पहुंच गए हैं. और मीडिया यह सब नहीं दिखाता है."

एक अन्य किसान कहते हैं, "मीडिया सरकार के अंडर में है इसलिए यह हमारे बारे में नहीं दिखाते हैं. यह सिर्फ सरकार की बात को ही बढ़चढ़कर बताते हैं. किसानों के हित की बात मीडिया नहीं करती है. मीडिया सिर्फ यही दिखाती है कि आज प्रधानमंत्री यहां गए या ये हुआ लेकिन अगर किसान मर जाए, उसका मर्डर हो जाए तो उसका कोई कुछ नहीं दिखाता है. पीएम की विदेश आने-जाने की मुख्य खबरे दिखाते हैं, कि उन्होंने कहां किसका उद्घाटन किया."

हाथ में हिंदुस्तान अखबार लिए एक अन्य किसान कहते हैं, "मीडया मोदी से डरा हुआ है इसलिए तुम लोग आगे नहीं आते हो. एक साल हो गए देखते- देखते ना अखबार में कुछ है ना टीवी में. सब जगह बस हर हर मोदी और घर घर मोदी कर रखा है."

किसान मेघराज सिंह कहते हैं, "भारत में मीडिया स्वतंत्र नहीं है और सरकार से डरा हुआ है. इसलिए वह सरकार के दबाव में आकर ही काम करता है. हमारी खबरों को मीडिया कट करके दिखाता है."

(बसंत कुमार के सहयोग से)

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