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टीवी 9 की नई सोशल मीडिया पॉलिसी से क्यों नाराज हैं वहां के कर्मचारी

“एक पत्रकार अपने मन की बात या विचार साझा नहीं कर सकता. यह तो आवाज़ को कंट्रोल करने का इरादा है.”

ये शब्द न्यूज़ चैनल टीवी 9 भारतवर्ष के एक कर्मचारी के हैं. जो संस्थान द्वारा लाए गए नए सोशल मीडिया पॉलिसी से बेहद खफा है.

कर्मचारी कहते हैं, ‘‘टीवी पर सरकार के खिलाफ कुछ दिखाने नहीं देते हैं. हम कम से कम अपने सोशल मीडिया पर कुछ लिख देते हैं तो उससे भी इन्हें परेशानी हो रही है. अब उसे भी सेंसर करने को तैयार हैं.’’

25 अगस्त की शाम चार बजे के करीब मुख्य एचआर अधिकारी (सीएचआरओ) आशीष पिंटो ने कर्मचारियों को नई सोशल मीडिया पॉलिसी मेल की. मेल के शुरुआत में पिंटो ने लिखा है, ‘‘6 मई 2020 से चल रहे कंपनी के सोशल मीडिया दिशानिर्देशों में महत्वपूर्ण बदलाव किए जा रहे हैं. जो तत्काल प्रभाव से लागू होंगे. तमाम कर्मचारी, सलाहकार और ट्रेनी नए नियमों को सख्ती से पालन करें. अगर कोई उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी.’’

पिंटो ने दो कैटेगरी में नई पॉलिसी को लिखा है. पहले कैटेगरी में निर्देश है कि रिपोर्टर, एंकर और सभी सलाहकार/प्रशिक्षु जो कंपनी के साथ जुड़ाव की जानकारी अपने सोशल मीडिया पर देते हैं, चाहे अपना पद लिखकर या कंपनी के लोगो का इस्तेमाल कर. वे कंपनी के आधिकारिक हैंडल से पोस्ट किए गए कंपनी के स्टेटमेंट को अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर आगे बढ़ाएंगे. कर्मचारी चैनल के शो/ वीडियो/ लेखों या अपने सहयोगियों द्वारा उनके संबंधित चैनलों के आधिकारिक हैंडल द्वारा पोस्ट किए गए लिंक को रीट्वीट करें. वहीं ब्रेकिंग न्यूज़ की स्थिति में वे चैनल के ट्वीट या पोस्ट को ही साझा करें.

जो अब तक लिखा गया उससे तो कर्मचारियों को कुछ ज़्यादा परेशानी नहीं है, बल्कि उनकी परेशानी की मुख्य वजह इसके आगे लिखा गया निर्देश है. पॉलिसी में आगे लिखा गया है कि किसी भी अन्य पोस्ट/ट्वीट को ‘कम्पीटेंट अथॉरिटी’ द्वारा ‘प्री-अप्रूव्ड’ कराना होगा. यानी की अपने सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्ट करने से पहले अपने सीनियर अधिकारियों से इजाजत लेनी होगी.

अब ये सीनियर अधिकारी कौन होंगे यह भी बताया गया है. न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद डाक्यूमेंट के मुताबिक सभी एडिटोरियल कर्मचारियों को चैनल के प्रबंध संपादक यानी मैनेजिंग एडिटर से, वहीं मैनेजिंग एडिटर और दूसरे नॉन एडिटोरियल कर्मचारी ग्रुप एडिटर या न्यूज़ डॉयरेक्टर से पोस्ट करने से पहले इजाजत लेंगे.

केटेगरी दो में लिखा गया है कि जो कर्मचारी अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर कंपनी के साथ किसी भी तरह के जुड़ाव की जानकारी नहीं देना चाहते उनपर पूर्व में जारी सोशल मीडिया पॉलिसी लागू होगी.

सबसे आखिरी में इस पॉलिसी को सख्ती से पालन नहीं करने पर कार्रवाई की बात लिखी गई है, जो नौकरी से निकाले जाने तक हो सकती है.

कुछ भी लिखने से पहले इजाजत लेना क्यों ज़रूरी?

जैसा की हमने ऊपर बताया है कि ज़्यादातर कर्मचारियों को परेशानी सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्ट करने से पहले मैनेजिंग एडिटर से इजाजत लेने को लेकर है.

यहां काम करने वाले एक कर्मचारी कहते हैं, ‘‘ऑफिस का वीडियो या कंटेंट तो हम शेयर करते ही हैं. अगर वो शेयर करने के लिए कह रहे हैं तो कोई परेशानी नहीं है, लेकिन हम कुछ भी लिखने से पहले मैनेजिंग एडिटर को भेंजेंगे. वो हमें कहेंगे तो ट्वीट करेंगे और अगर मना कर दिए तो नहीं करेंगे. यह तानाशाही नहीं है तो क्या है.’’

वहीं नाम नहीं लिखने की शर्त पर डिजिटल टीम में काम करने वाले एक कर्मचारी कहते हैं, ‘‘यह बेहद घटिया है. पत्रकार बंधुआ मज़दूर नहीं हैं. आप यहां काम कर रहे हैं तो कंपनी का प्रोमोशन करने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन कुछ भी लिखने से पहले इजाजत लेनी होगी? एक पत्रकार अपने मन की बात या विचार साझा नहीं कर सकता. यह तो आवाज को कंट्रोल करने का इरादा है. आप किसी पत्रकार के ऊपर थोप नहीं सकते हैं. अगर व्यक्तिगत प्लेटफॉर्म पर नहीं लिखने दे रहे तो यह बंधुआ बनाने जैसा है.’’

वह आगे कहते हैं, ‘‘टीवी 9 में तो वैसे भी कोई लिखता नहीं है. यहां के जितने भी एंकर या सीनियर कर्मचारी हैं, वे कंपनी का प्रचार-प्रसार या सरकारी खबरों को आगे बढ़ाते हैं. जब यहां पहले लोग नहीं लिख रहे तो इसे लाने से शायद किसी को फर्क पड़े.’’

जब कोई लिखता नहीं था तो नई पॉलिसी लाने की क्या ज़रूरत पड़ी. इसको लेकर जब हमने वहां काम करने वाले दूसरे कई कर्मचारियों से बात की तो उनका कहना था, ‘‘कुछ रिपोर्टर और एकाध डेस्क पर काम करने वाले कर्मचारी हैं जो अक्सर ही केंद्र की मोदी सरकार हो या दूसरी अन्य सरकारें से सवाल पूछते हैं. कई के ट्वीट काफी शेयर भी होते हैं. संस्थान खुद तो सरकार से सवाल पूछता नहीं और जब कर्मचारी पूछते हैं तो बीजेपी के लोग चैनल को टैग कर ट्रोल करते हैं. शायद इसी से बचने के लिए कंपनी ने यह फैसला लिया है. हालांकि यह बेहद गलत पॉलिसी है. हम पत्रकार फ्रीडम ऑफ़ स्पीच के ब्रांड एम्बेसडर जैसे हैं और हम ही इसपर रोक लगा रहे हैं.’’

एक अन्य कर्मचारी जिन्होंने इस पॉलिसी को पढ़ने के बाद अपने तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से चैनल से जुड़े होने की जानकारी को हटा लिया है. न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘‘मैंने पॉलिसी में दी गई कैटेगरी दो नियम के तहत अपने हैंडल से कंपनी का जुड़ाव हटा दिया है. वैसे यह पॉलिसी एकदम बकवास है, लेकिन क्या कर सकते हैं. चुपचाप नौकरी कर रहे हैं. सोशल मीडिया को लेकर नियम तो लगभग हर चैनल में मौजूद हैं. लेकिन इस तरह में किसी से इजाजत लेकर पोस्ट करना होगा यह मेरी जानकारी में तो किसी भी जगह नहीं है. कंपनी वेतन देकर हमें अपना गुलाम समझ रही है. जबकि ऐसा नहीं है. ’’

टीवी 9 मैनेजमेंट का इसपर क्या कहना है

इस मामले में न्यूज़लॉन्ड्री ने टीवी 9 भारतवर्ष के ग्रुप एडिटर बीवी राव से उनकी प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने इस शर्त पर अपनी प्रतिक्रिया दी कि उनका पूरा बयान जस का तस छपेगा. उनका बयान आप नीचे यहां पढ़ सकते हैं.

Your question:

Can you please comment on the need to introduce a new social media policy at TV9?

Our response:

Firstly, it is not a new social media policy. We just modified an existing one as we modify all policies from time to time. Of late, and quite frequently, controversial opinions – even though they are expressed in the personal capacity on social media -- are being ascribed to the organisation just because the persons expressing that opinion are introducing themselves as employees of the group.

Your question:

The new policy states that "any other post/tweets will need to be pre-approved by a competent authority: namely managing editors of respective channels for all editorial staff, group editor or news director for non-editorial staff and managing editors". Can you please comment on the importance of adding this clause in your policy? Do you believe – as TV9 staffers allege – that it goes against the staffers' right to free speech?

Our response:

Only if you take one sentence out of context to mount your query.

All employees are free to express their opinions anywhere in their personal capacity. This policy applies only to those employees who wish to use their TV9 Network identity to air opinions on public platforms. As news organisations we have the responsibility to stand by any message we put out in the public domain. Isn’t that why we have hierarchies in news organisations? Will a reporter’s raw copy go through without moderation? Will Newslaundry publish your report without assessing it for standards? Then why should social media posts of journalists/employees -- whose identity is conjoined with that of the organization, not be put through the same filters? Especially when their controversial opinions get misconstrued as that of the organisation’s?

Let us put this differently. If a Newslaundry employee were to put out a tweet proclaiming that “it is time for India to declare itself a Hindu rashtra” and another were to say on the day of Raakhi festival that “people who swear in the name of sisters are celebrating a festival today”, would your editors commend them for the freedom of their (loose) speech? Or would they take steps to ensure that such wantonness is avoided? Those tweets – as many other inappropriate ones -- actually went out recently leading to this necessary correction in the guidelines.

So, no, this is not about restricting free speech of our staffers, it is about saving them and the organization from embarrassment and worse. In the broader context, just like every piece of raw information collected by any journalist goes through content filters in every news organization, we believe anything that goes out into the public domain under the umbrella of the organization must meet the standards of public discourse.

Your question:

Newslaundry spoke to several TV9 employees. They allege that the new policy is an attempt to turn them into "bonded labourers", and that it is not fair, even ironic, to put journalists through such curbs.

Our response:

We are a transparent organization and encourage open dialogue. But as a policy, we do not take cognizance of anonymous mails or faceless opinions. More important, we are confident that our journalists/employees see the wisdom behind this exercise of restraint enjoined by the constitution of the country on every media outlet.

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