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क्या लोकसभा में सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना के संबंध में गलत जानकारी साझा की?
10 अगस्त को ग्रामीण विकास राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने लोकसभा में प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) यानी पीएमएमवाई-जी के तहत बने आवासों की जानकारी दी है. जिसमें उन्होंने बताया है कि राजस्थान में साल 2016 से अब तक सिर्फ एक मुस्लिम परिवार का घर इस योजना के तहत बना है. हालांकि न्यूज़लॉन्ड्री ने इस जानकारी को गलत पाया है.
दरअसल मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति, हैदराबाद के सांसद और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के सवाल का जवाब दे रही थीं. ओवैसी ने पीएमएमवाई-जी की घोषणा से अब तक बने आवासों की जानकारी के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय के लिए स्वीकृत और बने आवासों की जानकारी मांगी थीं.
इसके बाद साध्वी निरंजन ज्योति ने पीएमएमवाई-जी के शुरुआत यानी 1 अप्रैल 2016 से लेकर चार अगस्त 2021 तक बने और स्वीकृत आवासों की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अब तक कुल दो करोड़ 17 हज़ार 113 आवास स्वीकृत हुए जिसमें से 1 करोड़ 51 लाख 92 हज़ार 652 बन चुके हैं. यह जानकारी आवाससॉफ्ट रिपोर्ट के हवाले से दी गई है.
लोकसभा में दी गई जानाकारी के मुताबिक सबसे ज़्यादा आवास क्रमशः पश्चिम बंगाल (26 लाख 57 हज़ार 633) बिहार (20 लाख 74 हज़ार 773 घर बने.), मध्य प्रदेश (19 लाख 37 हज़ार 972), उत्तर प्रदेश (18 लाख 71 हज़ार 512)और ओडिशा (11 लाख 80 हज़ार 584) में बने हैं.
मुस्लिमों के लिए स्वीकृत और बने आवास
ग्रामीण विकास राज्यमंत्री ने बताया, ‘‘पीएमएमवाई-जी लाभार्थियों के समूह में शामिल लोगों की प्राथमिकता के निर्धारण की बहु-स्तरीय व्यवस्था है. सबसे पहले प्राथमिकता अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यकों और प्रत्येक श्रेणी में आवास वंचन दर्शाने वाले पैरामीटर के आधार पर दी जाती है.’’
इसके बाद कुल और साथ ही मुस्लिम समुदाय के लिए स्वीकृत और बने आवासों की जानकारी साझा की गई है. सरकार द्वारा जारी आंकड़ों की साल दर साल बात करें तो-
वित्तीय वर्ष 2016-17
2016-17 में कुल 20 लाख 37 हज़ार 551 आवास स्वीकृत हुए जिसमें से 4 लाख, 93 हज़ार 409 आवास मुस्लिम समुदाय के लिए थे. यानी कुल स्वीकृत आवासों में 24.22 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए थे.
वहीं इस वित्तीय वर्ष में कुल 2115 आवास बने जिसमें से 117 आवास मुल्सिम समुदाय के लिए थे.
वित्तीय वर्ष 2017-18
2017-18 वित्तीय वर्ष की बात करें तो कुल स्वीकृत मकानों में महज छह प्रतिशत ही मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए थे. इस दौरान 51 लाख 70 हज़ार 182 घर स्वीकृत हुए, जिसमें से तीन लाख, 49 हज़ार 34 आवास मुस्लिमों के लिए थे.
बने घरों की बात करें तो कुल 38 लाख 16 हज़ार 13 आवास बने जिसमें से चार लाख 19 हज़ार 768 घर मुस्लिम समुदाय के लिए बने. यानी इनमें से 11 प्रतिशत घर मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए बने.
वित्तीय वर्ष 2018-19
2018-19 में बीते सालों के मुकाबले थोड़ी वृद्धि दर्ज हुई. कुल स्वीकृत आवासों में नौ प्रतिशत मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए स्वीकृत हुए. इस साल कुल 23 लाख, 63 हज़ार 209 घर स्वीकृत हुए इनमें से दो लाख 15 हज़ार 320 मुस्लिमों के लिए थे.
अगर बात इस वित्तीय वर्ष में बने आवासों की करें तो 44 लाख 72 हज़ार 414 आवास बनाए गए जिसमें से दो लाख 41 हज़ार 259 मुस्लिम समुदाय के लोगों के थे. इस साल कुल बने आवासों में पांच प्रतिशत मुस्लिम समुदाय के लिए थे.
बता दें कि प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है. जिसका उद्देश्य 2022 तक “सभी के लिए आवास” प्रदान करना है. इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश के आगरा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2016 में की थी.
इन आवासों के निर्माण में केंद्र और राज्य सरकार दोनों फंड जारी करती हैं. मैदानी इलाकों में जहां केंद्र सरकार और राज्य सरकार के 60:40 के आधार पर फंड जारी किया जाता है तो वहीं पूर्वात्तर के राज्यों के साथ-साथ कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में यह अनुपात 90:10 का है.
वित्तीय वर्ष 2019-20
2019-20 में कुल 46 लाख 63 हज़ार 818 आवास स्वीकृत हुए जिसमें से छह लाख 62 हज़ार 576 आवास मुसलमानों के लिए थे. यानी कुल का 14 प्रतिशत.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल कुल बने घरों में 22.40 प्रतिशत आवास मुसलमानों के लिए बने. 2019-20 में कुल 21 लाख 28 हज़ार 860 आवास बने जिसमें से चार लाख 76 हज़ार 818 आवास मुस्लिमों के लिए थे.
वित्तीय वर्ष 2020-21
2020-21 में मुसलमानों के लिए स्वीकृत आवासों में थोड़ी और वृद्धि हुई. इस दौरान कुल का 16 प्रतिशत आवास मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए स्वीकृत हुए. 49 लाख 42 हज़ार 95 आवास स्वीकृत हुए जिसमें से 8 लाख 22 हज़ार 911 आवास मुस्लिम समुदाय के लिए थे.
इस वित्तीय वर्ष कुल 33 लाख 99 हज़ार 531 आवास बने जिसमें से 4 लाख 76 हज़ार 818 मुस्लिम समुदाय के थे. यानी कुल बने आवासों का 14 प्रतिशत मुसलमानों के लिए था.
वित्तीय वर्ष 2021-22
2021-22 में सरकार ने आठ अगस्त 2021 तक स्वीकृत आवासों की जानकारी साझा की है. लोकसभा में दिए गए जवाब के मुताबिक अब तक आठ लाख 52 हज़ार 384 आवास स्वीकृत हुए हैं, जिसमें से 58 हज़ार 962 आवास यानी कुल स्वीकृत आवासों का लगभग सात प्रतिशत घर मुस्लिम समुदाय के लिए रहा.
राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक इस साल चार अगस्त तक कुल 14 लाख तीन हज़ार 791 आवास बने हैं, जिसमें से दो लाख 55 हज़ार 97 मुस्लिम समुदाय के हैं.
क्या सरकार ने गलत आंकड़े दिए?
साध्वी निरंजन ज्योति ने मुस्लिमों के लिए बने आवास की जो जानकारी दी वो हैरान करती है. कई राज्यों में आंकड़े बेहद खराब हैं. जबकि इस योजना के तहत एससी/एसटी के साथ अल्पसंख्यकों को प्राथमिकता देने की बात की गई है. मसलन राजस्थान में कार्यक्रम शुरू होने के बाद बीते छह वर्षों में मुस्लिम समुदाय के लिए केवल एक आवास बना है.
ऐसे ही उत्तर प्रदेश में 2019-20 के बाद एक भी आवास मुस्लिम समुदाय के किसी भी शख्स का नहीं बना. जबकि यहां मुस्लिम आबादी 20 प्रतिशत से ज़्यादा है. पश्चिम बंगाल, जहां सबसे ज़्यादा आवास बने हैं. यहां मुस्लिम आबादी भी 30 प्रतिशत के करीब है जबकि यहां इनके लिए बने आवासों की संख्या महज 21 बताई गई है.
गोवा में तो एक भी मुस्लिम परिवार का अब तक घर नहीं बना है.
भारत सरकार द्वारा दी गई जानकारी में सबसे बुरी स्थिति राजस्थान की दिखती है. इसीलिए हमने राजस्थान में मुस्लिम समुदाय के लिए बने आवासों को लेकर पड़ताल. सामने आया कि जो जानकारी दी गई वह भी गलत है.
राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के गंगापुर में उदेई कलां गांव है. यह गांव मुस्लिम बाहुल्य है. गांव के सरपंच मुकदीर अहमद ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि 2016 के बाद गांव में तकरीबन 170 आवास प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत बने हैं जिसमें से 40 के करीब मुस्लिम समुदाय के लोगों के हैं बाकी हिन्दुओं के हैं.
यहां के रहने वाले खैरन को साल 2018-19 में आवास मिला. उनके घर की दीवार के एक हिस्से पर पीला रंग पोतकर उनके घर मिलने की जानकारी लिखी हुई है. बताया गया है कि किस योजना से उन्हें कितने पैसे मिले हैं.
गांव के रहने वाले मसरूफ अहमद को 2019-20 में घर मिला. उनका घर लगभग बनकर तैयार तो हो गया, लेकिन रंग-रोगन नहीं हुआ है. इनके घर के बाहर भी योजना की तमाम जानकारी लिखी गई है. आसिफ को भी 2019-20 में ही आवास मिला है.
गंगापुर ब्लॉक में मुस्लिम समुदाय के लिए 269 आवास पीएमएमवाई-जी के तहत स्वीकृत हुए जिसमें 231 बनकर तैयार हो चुके हैं. सवाई माधोपुर जिले की बात करें तो यहां बीते छह सालों में 1328 घर मुस्लिम समुदाय के लिए स्वीकृत हुए जिसमें से 1178 अबतक बनकर तैयार हैं.
यही नहीं अजमेर जिले के पलखड़ी गांव में पीएमएमवाई-जी के तहत सिर्फ दो मकान बने हैं. यहां के सरपंच रुजदार खान बताते हैं कि दोनों ही घर मुस्लिम (फकीर) लोगों के हैं.
राजस्थान ग्रामीण विकास विभाग के एक सीनियर अधिकारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘योजना के शुरू होने के बाद से अब तक प्रदेश में अल्पसंख्यकों के लिए 72 हज़ार 937 आवास स्वीकृत हुए जिसमें 64 हज़ार266 बन चुके हैं.’’
इनमें से मुसलमानों के लिए कितने आवास मिले? इस सवाल पर वह कहते हैं, ‘‘देखिए राजस्थान में अल्पसंख्यक मुख्यत: मुस्लिम हैं. थोड़ी बहुत आबादी सिख समुदाय की है. यहां ज़्यादातर आवास मुस्लिम समुदाय के लोगों को ही मिले हैं. केंद्र सरकार ने न जाने कहां से आंकड़े उठाए हैं. जबकि जो आंकड़े मैंने आपको बताए हैं वो केंद्र सरकार की ही वेबसाइट से देखकर बताए हैं.’’
पीएमएमवाई-जी 2011 की जनगणना के आधार पर दी जाती है. 2011 की जनगणना के मुताबिक राजस्थान में अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी 11.41 प्रतिशत है. यहां अल्पसंख्यक समुदाय में मुस्लिम, सिख, जैन, क्रिश्चियन, बौद्ध और पारसी को रखा गया है. अगर आबादी की बात करें तो 9.07 मुस्लिम, क्रिश्चियन 0.14, सिख, 1. 27, बौद्ध 0.02, जैन 0.91 हैं.
ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर राजस्थान में प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) में खर्च हुए फंड की जानकारी दी गई है. जिसमें समुदाय-वार जानकारी है. अगर बात 2020-21 में खर्च हुए फंड की करें तो इस वित्तीय वर्ष में कुल 364951.8 लाख रुपए खर्च हुए जिसमें से 55150.71 अनुसूचित जाति, 131422.38 लाख अनुसूचित जनजाति, 22496.49 लाख अल्पसंख्यक वर्ग और दूसरे अन्य समुदाय के लिए 155882.22 लाख रुपए खर्च हुए हैं.
जारी वित्तीय वर्ष 2021-22 की बात करें तो अब तक कुल 60965.16 लाख रुपए खर्च हुए जिसमें से 7661.13 लाख अनुसूचित जाति, 20697 लाख अनुसूचित जनजाति, 3987.54 लाख अल्पसंख्यक वर्ग और दूसरे अन्य समुदाय के लिए 128619.49 लाख रुपए खर्च हुए हैं.
इसी तरह लगभग हर वित्तीय वर्ष में अल्पसंख्यक समुदाय के लिए आवासों पर फंड खर्च हुए हैं. और दूसरी तरफ अल्पसंख्यक में सबसे ज़्यादा आबादी मुस्लिम समुदाय की है. ऐसे में आवास मिलने की संभावना उनकी ही ज़्यादा है. ऐसे में केंद्रीय मंत्री द्वारा लोकसभा में दिए जवाब पर सवाल खड़े होते हैं कि आखिर वो जानकारी कहां से आई?
इसके लिए हमने भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के उप सचिव एमवीएन बारा प्रसाद से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन हमारी उनसे बात नहीं हो पाई. हमने उन्हें इससे संबंधित कुछ सवाल मेल किए हैं. जिसका अबतक जवाब नहीं आया है. अगर जवाब आता है तो खबर में जोड़ दिया जाएगा.
(राजस्थान से कासिम का इनपुट)
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