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आउटलुक मैगज़ीन: एक महीने की छुट्टी पर गये प्रधान संपादक

आउटलुक मैगज़ीन के प्रधान संपादक रुबेन बनर्जी 11 अगस्त, 2021 को एक महीने की छुट्टी पर चले गये. उनके इस कदम को ग्रुप से बाहर हो जाने के तौर पर देखा जा रहा है. कर्मचारियों को भेजे गए एक ईमेल में बनर्जी ने लिखा है, "मैं कल से एक महीने की छुट्टी पर जा रहा हूं. मैं दिल्ली में रहूंगा, लेकिन किसी भी तरह के कॉल्स लेना पसंद नहीं करूंगा. कम से कम शुरू के कुछ दिनों के लिए.

मैगज़ीन के एक कर्मचारी जो अपना नाम उजागर नहीं होने देना चाहते, ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "उनको छुट्टी पर जाने के लिए नहीं कहा गया लेकिन पिछले कुछ वक्त से संपादक महोदय की मैनेजमेंट द्वारा अवमानना की जा रही थी."

उन्होंने आगे जोड़ा, "अनौपचारिक तौर पर हम जानते हैं कि दफ़्तर में यह उनका आखिरी दिन था. हाल के दिनों में रुबेन को मैनेजमेंट की ओर से काफी दबाव झेलना पड़ रहा था."

बनर्जी 2018 में इस ग्रुप से जुड़े थे. इससे पहले के कार्यकाल में वो हिंदुस्तान टाइम्स में बतौर राष्ट्रीय मामलों के संपादक कार्यरत थे. उन्होंने आउटलुक ग्रुप में हिंदी और अंग्रेज़ी में आउटलुक पत्रिका और आउटलुक मनी के प्रधान संपादक के तौर पर कार्यभार संभाला था.

जून में उन्हें आउटलुक समूह के सभी प्रकाशनों और डिजिटल इकाइयों का प्रधान संपादक बना दिया गया. समूह के ही एक कर्मचारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “यह एक ऐसी प्रक्रिया के अंतर्गत था जिसमें आर्थिक तौर पर तो कोई इज़ाफ़ा नहीं हुआ लेकिन कुछ लोगों पर ज़िम्मेदारी और बढ़ गयी थी.”

तो फिर ऐसा क्यों सोचा जा रहा है कि बनर्जी जा रहे हैं? समूह में हमारे सूत्र ने इसके लिए आउटलुक के 13 मई के अंक के कवर की तरफ इशारा किया.

यह अंक कोविड-19 की दूसरी लेहर के चरम पर आया था जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया था कि सरकार “लापता” हो गयी है. एक रोचक बात यह है कि मैगज़ीन का यह कवर उसके ऑनलाइन अंक से गायब था.

कोविड की दूसरी लहर के दौरान 13 मई को आउटलुक ने "मिसिंग" नाम से एक कवर स्टोरी की. मैगज़ीन के कवर इमेज द्वारा सरकार के कोरोना कुप्रबंधन पर तंज के माध्यम से करारा प्रहार किया गया था. गुमशुदगी के पोस्टर के लेआउट वाली कवर इमेज पर आगे लिखा था- नाम: भारत सरकार; उम्र: 7 साल; सूचित करें: भारत के नागरिकों को. जल्द ही इस कवर इमेज को लेकर विवाद तब शुरू हो गया जब इस संस्करण के लिए योगदान करने वालों में से एक महुआ मोइत्रा ने इस कवर इमेज और मैगज़ीन के ऑनलाइन संस्करण में अंतर दिखाया. इस ऑनलाइन संस्करण में एक नयी तस्वीर छपी थी जिस पर अन्य योगदानकर्ताओं के साथ प्रताप भानु मेहता और महुआ मोइत्रा का नाम दर्शाया गया था. बाद में मैगज़ीन के मैनेजिंग एडिटर सुनील मेनन ने स्पष्ट किया कि "चारो ओर दिखाई दे रही ये तस्वीर एक ऑनलाइन प्रोमो की है."

लेकिन आउटलुक के कर्मचारी के अनुसार, "गुमशुदगी वाले कवर इमेज के बाद इसे वापस लेने का बहुत दबाव था. आउटलुक कभी भी सरकार की पसंददीदा मैगज़ीन्स की फेहरिस्त में नहीं रहीं है".

न्यूज़लॉन्ड्री को यह भी पता चला कि 'गुमशुदगी' वाली कवर इमेज और इसको मिलने वाली तवज्जो के कारण विवाद इतना बढ़ा कि संपादकीय टीम को यह तक कह दिया गया कि, “उन्हें यह स्टोरी नहीं करनी चाहिए थी." इसके अलावा इस प्रकरण के ठीक बाद से ही मैनेजमेंट द्वारा रोजाना कुछ फरमान भी जारी किये जा रहे थे. "हाल ही में एडिटोरियल स्टाफ के सदस्यों से कहा गया कि पेगासस पर कवर स्टोरी नहीं कि जा सकती. यह निर्देश तब आया जब इस आगामी मुद्दे पर विचार प्रारंभिक स्तर पर ही थे", आउटलुक के इस कर्मचारी ने आगे जोड़ा.

इसके साथ ही मैगज़ीन के सहायक प्रकाशनों आउटलुक बिज़नेस और आउटलुक मनी में होने वाली छटनियां भी बनर्जी और मैनेजमेंट के बीच टकराव का कारण बनीं, वह कर्मचारी कहते हैं, "अब आउटलुक की मुख्य मैगज़ीन में लोगों से छुटकारा पाने का दबाव था". 'डिजिटल फर्स्ट' फॉर्मेट की ओर झुकाव के कारण भी कुछ ऐसे निर्णय लिए गए जिनका अंजाम अच्छा नहीं हुआ.

वेतन में कटौती और देरी

उदाहरण के लिए वेतन में 30-50 प्रतिशत की कटौती के साथ ही एडिटोरियल टीम के सदस्यों से रोजाना दो स्टोरीज जमा करने की मांग की गयी थी. हर महीने 55 स्टोरीज जमा करने वालों को 25,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की गयी थी.

कई और मीडिया संस्थानों की तरह ही आउटलुक समूह ने भी कोविड-19 महामारी के दौरान वेतन में कटौती शुरू की थी. पिछले साल 30 मई को समूह के सीईओ इंद्रनील रॉय ने कर्मचारियों को एक ईमेल भेजिए जिसका शीर्षक था "चुनौतीपूर्ण समय में कठिन निर्णय."

रॉय लिखते हैं, "कोविड-19 महामारी से पैदा हुए संकट ने दुनिया में एक आर्थिक उथल-पुथल मचा दी है, जिसने कंपनियों को ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण और विवश कर देने वाले समय में भी कई अप्रिय निर्णय लेने को विवश कर दिया है." परिणामस्वरूप वे कर्मचारी जिनकी तनख्वाह 3 से 5 लाख प्रति वर्ष थी उसमें 25 प्रतिशत की कटौती की गई. जिनकी वार्षिक आय 5 से 10 लाख थी, उनके वेतन में 40 प्रतिशत की कटौती हुई और जिनकी 10 लाख या उससे ज्यादा थी, उन्हें अपनी 50 प्रतिशत तनख्वाह गंवानी पड़ी.

एक पूर्व कर्मचारी, जिन्होंने इस घोषणा के कुछ समय बाद ही नौकरी छोड़ दी थी, कहते हैं, "वेतन में कुछ हफ्ते की देरी तो 2014-15 के बाद हमेशा से ही रही है. लेकिन इस ईमेल ने घोषणा की कि वेतन में कटौती बीते अप्रैल से चालू होकर पिछले महीनों में मिल चुके वेतन पर भी लागू होगी. मुझे इस बात पर बहुत क्रोध आया क्योंकि यह अनैतिक था, यह तो ऐसा था जैसे कि कोई मेरी जेब से पैसा निकाल रहा हो."

रॉय की इमेज में उल्लेखित था कि वेतन में कटौती अप्रैल मई और जून के महीने पर लागू होगी. लेकिन 26 जुलाई 2020 को समूह के मानव संसाधन विभाग ने कर्मचारियों को एक और ईमेल इस बात की पुष्टि करते हुए भेजी की कंपनी "वित्तीय वर्ष 2021 की दूसरी तिमाही (जुलाई से सितंबर) में भी वेतन में कटौती निम्नलिखित तालिका के अनुसार जारी रखेगी."

इस ईमेल के अनुसार वेतन में कटौती के मानदंड यह थे, 3 से 5 लाख रुपए सालाना वेतन वालों के लिए 10 प्रतिशत, 5 से 10 लाख रुपए सालाना वेतन पाने वालों के लिए 22.5 प्रतिशत, 15 से 20 लाख सालाना वेतन पाने वालों के लिए 25 प्रतिशत, 20 से 25 लाख सालाना वेतन पाने वालों के लिए 30 प्रतिशत, 25 से 30 लाख रुपए सालाना वेतन वालों के लिए 35 प्रतिशत और 30 लाख रुपए या उससे अधिक वेतन पाने वालों के लिए यह कटौती 40 प्रतिशत थी.

समूह के एक कर्मचारी ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, “इस सब के दौरान तनख्वाह देरी से ही आ रही थी बकाया वेतन देने में 4 महीने की देरी चल रही है. मुझे आखिरी बार वेतन दो महीने पहले मिला था." यह रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद आउटलुक समूह के इंद्रनील रॉय ने न्यूजलॉन्ड्री से संपर्क किया और दोहराया कि, "सभी कर्मचारियों की तनख्वाह 30 दिन के चक्र के अंदर ही दी जा रही है."

वेतन में कटौती संस्थान के अंदर कई लोगों को निकाल देने के साथ ही आई. आउटलुक के पूर्व कर्मचारी जिन्होंने समूह में वर्षों तक काम किया था, न्यूजलॉन्ड्री से कहते हैं, "महामारी की पहली लहर के दौरान, हम घर से काम कर रहे थे और अचानक ही हमें अपना हिसाब करने के लिए कह दिया गया. जिन लोगों को हटाया गया उन्हें तीन महीने की तनख्वाह कटौती के बाद मिली."

कम से कम दो पूर्व कर्मचारियों ने इस बात की पुष्टि की कि पिछले साल करीब 30 से 40 लोगों को नौकरी छोड़ने के लिए कहा गया था. इन लोगों में से कुछ उल्लेखनीय लोग खेल पत्रकार कैसर मोहम्मद अली, विदेशी मामलों के संपादक प्रणय शर्मा, फोटो डिवीजन के प्रमुख जितेंद्र गुप्ता और प्रधान फोटो कोऑर्डिनेटर रक्षित थे. कुछ परिस्थितियों की वजह से आउटलुक मनी के संपादक अरिंदम मुखर्जी ने भी पिछले वर्ष जून में इस्तीफा दे दिया था.

न्यूजलॉन्ड्री ने रूबेन बनर्जी से प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया. उन्होंने वेतन में कटौती, वेतन मिलने में देरी, निकाले जाने और मैगजीन के "मिसिंग" कवर पर टिप्पणी करने से मना कर दिया.

उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "हां मैं छुट्टी पर गया हूं क्योंकि मुझे थोड़ा अपना सर हल्का करने और चिंतन की जरूरत थी. मुझे अपनी आउटलुक की टीम पर अत्यधिक गर्व है जो बहुत मुश्किल परिस्थितियों में निष्पक्ष, वस्तुनिष्ठ और संतुलित पत्रकारिता करती रही है."

आउटलुक समूह के सीईओ इंद्रनील रॉय ने इस बात से इनकार किया कि बनर्जी कंपनी को छोड़ रहे हैं. उन्होंने कहा, "बिल्कुल नहीं. मैंने ही उनकी छुट्टी को स्वीकृति दी. हमारी डिजिटल पॉलिसी के अनुसार, संस्थान के अंदर पुनर्गठन हो रहा है. बहुत काम चल रहा है और रूबेन ने कहा, मुझे एक ब्रेक लेने दो'."

रॉय ने इस बात से भी इनकार किया है कि प्रबंधन पर "मिसिंग" वाले कवर के बाद से कोई दबाव है.

पेगासस इस मामले के कवर स्टोरी न बनने पर वे कहते हैं, "इस पर चर्चा की थी और पाया कि रिपोर्ट में कुछ नया नहीं था." इस बात को स्वीकार किया कि जारी पुनर्गठन के चलते हमें उन लोगों को जाने देना पड़ा जो डिजिटल तौर पर इतने समर्थ नहीं थे/ जिनका डिजिटल की ओर झुकाव कम था.

अपडेट - यह रिपोर्ट आउटलुक की वेबसाइट पर "मिसिंग" कवर को लेकर विस्तृत जानकारी इंद्रनील रॉय की टिप्पणी के साथ अपडेट की गई है. समूह से अरिंदम मुखर्जी का जाना भी स्पष्ट कर दिया गया है.

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