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वंदना कटारिया विवाद: पिछड़ जाने की जलन, पारिवारिक रंजिश और जातिवाद

सोमवार को भारतीय महिला हॉकी टीम ओलिंपिक में पदक से चूकने के बाद वापस लौटने वाली थी. हालांकि टीम ने पूरे टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया था. खिलाड़ियों के स्वागत के लिए सैकड़ों लोग एयरपोर्ट पर जमा हुए थे. इंदिरा गांधी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सैंकड़ों लोगों ने खिलाड़ियों का स्वागत किया. जब यह सब हो रहा था तब टीम की एक अहम सदस्य वंदना कटारिया के गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था. उनके घर के बाहर उत्तराखंड पुलिस के दो सिपाही खड़े थे. वजह पूछने पर कहते हैं, ‘‘यहां जब से लफड़ा हुआ है तब से हमारी ड्यूटी लगी है. दो सिपाही दिन में और दो रात में यहां मौजूद रहते हैं.’’

उत्तराखडं के हरिद्वार जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर रोशनाबाद में वंदना कटारिया का दो मंजिला मकान है. यहां पहुंचने वाली सड़क झमाझम बारिश के बाद बदहाल थी, लेकिन रोशनाबाद गांव की सड़कें काफी साफ थीं. रोशनाबाद दूसरे गांवों की तुलना में समृद्ध है. इसकी वजह है पास में ही बना इंडस्ट्रियल एरिया. वहां महिंद्रा समेत कई दूसरी बड़ी कंपनियां हैं.

रोशनाबाद में स्थित वंदना कटारिया के घर की गली

कटारिया के घर के बाहर नया नेमप्लेट लगा हुआ है. उस पर वंदना और उनके पिता नाहर सिंह का नाम दर्ज है. घर पर हमारी मुलाकात वंदना के बड़े भाई लाखन कटरिया से हुई. लाखन के साथ गांव के दो लोग और थे. लाखन ने बैठे-बैठे ही किसी पोस्टर बनाने वाले को वंदना के स्वागत के लिए पांच पोस्टर बनाने का ऑर्डर फोन पर ही दिया. इसी बीच वहां बैठे ग्रामीणों में से एक कहते हैं, ‘‘पहले तो पोस्टर नहीं भी लगाते तो चलता, लेकिन अब तो लगाएंगे. उन्होंने पटाखे फोड़े अब हम गलियां पोस्टर से भर देंगे.’’

वंदना कटारिया के घर के बाहर चस्पा नेम प्लेट

जिस लफड़े की बात पुलिस कर्मचारी कर रहे थे, वह घटना पूरे देश में चर्चा का विषय बन चुकी है. चार अगस्त को टोक्यो में भारतीय महिला हॉकी टीम अर्जेंटीना के खिलाफ अपना महत्वपूर्ण मैच हार गई और कांस्य पदक से चूक गई. महिला हॉकी टीम की हार से पूरे देश में लोग दुखी थे, लेकिन टीम की सदस्य वंदना कटारिया के घर के बाहर कुछ लोगों ने पटाखे फोड़ कर जश्न मनाया और कथित तौर पर वंदना को जातिवादी गालियां दी. वंदना का परिवार दलित बिरादरी से ताल्लुक रखता है.

चार अगस्त की शाम वंदना के बड़े भाई चंद्रशेखर कटारिया ने सिडकुल थाने में इस घटना से जुड़ी एक एफआईआर दर्ज कराई. उन्होंने पटाखे फोड़ने के साथ-साथ जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया. भारतीय दंड संहिता की धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना) के साथ-साथ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की धारा 3 (1) (द) के तहत दर्ज इस मामले में पुलिस ने तीनों आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया.

घटना की बाबत लाखन कटारिया हमें बताते हैं, ‘‘हम लोग घर में बैठकर मैच देख रहे थे. जिले के कई पत्रकार भी थे. भारत के खिलाफ जब भी गोल हो रहा था यहां कई लोग रोने लगते थे. 9 सेकेंड का खेल बचा हुआ था. भारत हार गया था. तभी पटाखे की आवाज़ आने लगी. हम हैरान थे कि भारत हार रहा है और हमारी ही कॉलोनी में पटाखे कौन फोड़ रहा है. दरवाजा खोलकर देखा तो सामने वाले घर पर पटाखे फोड़े जा रहे थे.’’

लाखन हमें वह घर भी दिखाते हैं. वह घर टीटू पाल का है. 47 वर्षीय पाल जूस की दुकान चलाते हैं. मूलतः उत्तर प्रदेश के मुज्जफरनगर के रहने वाले पाल के दो बेटे और एक बेटी है. पटाखे फोड़ने का आरोप पाल के ही दोनों बेटों विजयपाल, अंकुर पाल और इनके दोस्त सुमित चौहान पर लगा.

टीटू पाल का घर

शिकायत मिलने के बाद पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए विजयपाल को हिरासत में ले लिया और अगले दिन जेल भेज दिया. 24 घंटे जेल में रहने के बाद विजयपाल को जमानत मिल गई. विजय के भाई अंकुर पाल और सुमित चौहान को पुलिस ने एक दिन बाद पांच अगस्त को गिरफ्तार किया और छह को जेल भेज दिया. इन दोनों को भी 24 घंटे बाद जमानत मिल गई.

विजयपाल और अंकुर पाल

न्यूज़लॉन्ड्री की टीम टीटू पाल से उनके घर पर मिली. वे बेहद परेशान नजर आए. पाल कहते हैं, ‘‘मैं बेहद गरीब हूं. जूस की दुकान चलाकर बच्चों को पढ़ाता हूं ताकि मेरी तरह वे बदहाल जिंदगी न जिएं. देखिए हम इस छोटे से घर में रहते हैं. मेरा बेटा (विजयपाल) खुद नेशनल हॉकी प्लेयर है. वो भारत के हारने पर पटाखे क्यों फोड़ेगा? वंदना हमारी भी बेटी है. वो आज भारत की तरफ से खेल रही है. ये हमारे लिए भी ख़ुशी की बात है. लेकिन हमें देशद्रोही बताया जा रहा है. वे हमें फंसा रहे हैं. वंदना के भाई उसके नाम का गलत इस्तेमाल कर लोगों को परेशान करते रहते हैं. उन्होंने पहले भी कई बार मेरे परिवार से मारपीट की है. जिसकी पुलिस में शिकायत भी दर्ज हुई है.’’

जमानत पर लौटे विजय और अंकुर हमें घर पर नहीं मिले. टिटू ने हमें बताया कि उनके बेटों की जान को खतरा है इसलिए उन्हें कहीं सुरक्षित जगह पर रखा गया है. हमारे कहने पर टिटू दोनों को घर बुलाते हैं. उनके घर में आने के बाद वे गेट पर ताला लगा देते हैं. इस दौरान दोनों बेहद डरे हुए थे.

रोशनाबाद में मुस्लिम, दलित और पाल समुदाय के लोगों की आबादी है. इसमें पाल समुदाय की बहुलता है जो ओबीसी कैटेगरी में आते हैं. यह गांव सलेमपुर पंचायत में आता है जहां की आबादी करीब 19,000 है. जिसमें 6 हज़ार मुस्लिम और 13 हज़ार हिन्दू हैं. हिन्दुओं में पाल समुदाय की संख्या ज़्यादा है. यह जानकारी हमें यहां के पूर्व प्रधान मुकेश पाल ने दी.

मुकेश पाल न्यूज़लॉन्ड्री को रोशनाबाद की आबादी के बारे में बताते हैं, ‘‘गांव में पाल समुदाय की 1500 आबादी है जिसमें करीब 500 वोटर हैं. वहीं दलित समुदाय की आबादी 500 है इसमें करीब 250 वोटर हैं. वहीं मुसलमानों की आबादी भी लगभग 1500 है और उसमें से 500 के आसपास वोटर हैं.’’ जातीय जनसंख्या के लिहाज से विजयपाल और अंकुर पाल को गांव में बढ़त है.

पूर्व प्रधान मुकेश पाल

इस विवाद के बाद वंदना के घर नेताओं का जमावड़ा लगा हुआ है. मुकेश पाल कहते हैं, ‘‘मैं किसी के यहां नहीं गया. जिन लड़कों पर आरोप लगा है वे मेरी जाति से हैं, अगर उनके यहां जाता तो लोग कहते कि अपनी जाति का पक्ष ले रहा हूं. अगर वंदना के यहां जाता तो मेरी जाति के लोग खफा होते. ऐसे में मैं चुप रहा. अगर इन्होंने गलती की है तो सजा मिलनी चाहिए. जहां तक रही वंदना के घर जाने की बात तो ये तस्वीर देखिए. मैंने झगड़े से एक दिन पहले उनके यहां जाकर गुलदस्ता भेंट किया था. वंदना हमारे लिए गर्व है.’’

गांव में पाल समुदाय की आबादी सबसे ज़्यादा है लेकिन एकाध परिवार को छोड़कर कोई भी खुलकर टीटू का समर्थन नहीं करता. जो उनके पक्ष में बोल रहे हैं वो भी दबी जुबान में. वहीं वंदना के परिवार के पक्ष में भीम आर्मी खुलकर सामने आई है. यहां चर्चा है कि जिस रोज वंदना वापस आएंगी उस रोज भीम आर्मी के प्रमुख चंदशेखर आज़ाद भी आएंगे. टीटू और उनका परिवार भीम आर्मी की सक्रियता से डरा दिखा.

पटाखा फोड़ना एक अबूझ पहेली

भारत की हार के बाद पटाखा फोड़ने और जातिवादी शब्दों का इस्तेमाल करने के आरोपी विजयपाल राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी के साथ-साथ रोशनाबाद में बने हॉकी स्टेडियम में कोच भी रहे हैं.

आखिर भारत की हार पर वो पटाखा क्यों फोड़ रहे थे. विजय कहते हैं, ‘‘चार अगस्त को मुझे बुखार हुआ था. मेरा दोस्त सुमित चौहान मुझे देखने आया था. बुखार काफी ज़्यादा था तो मैं अपने घर में लेटा हुआ था. उसी दौरान मेरे छत पर से पटाखों की आवाज़ आई. मैं और मेरी बहन ऊपर देखने गए. थोड़ी देर बात नीचे हंगामा होने लगा. वे मेरे पिता के खिलाफ नारे लगा रहे थे. थोड़ी देर में वहां पुलिस के दो कॉस्टेबल आ गए. उन्होंने पूछा कि आपने पटाखे जलाए हैं. हमने इसका जवाब नहीं दिया. हमें खुद नहीं पता कि पटाखे कहां से और कैसे आए.लेकिन मेरी एक भी बात किसी ने नहीं सुनी और थाने लेकर चले गए.’’

विजयपाल अपने को पूरी तरह निर्दोष बताते हैं. वो कहते हैं, ‘‘दरअसल चंद्रशेखर कटारिया के साथ हमारी पुरानी रंजिश है. जब मैं यहां हॉकी का कोच था तब उनके बेटे अंशु ने मुझ पर बीच सड़क पर हमला कर दिया था. उससे पहले सड़क पर ड्रम रखने को लेकर उन्होंने हमारे परिवार से मारपीट की थी. गलत आरोप लगाकर हमें फंसाया जा रहा है. मैं खुद इंडिया से खेलना चाहता हूं, लेकिन गलत आरोप लगाते हुए उन्होंने नहीं सोचा कि मेरा करियर तबाह हो जाएगा. मैंने ना जातिवादी शब्द का प्रयोग किया और ना ही पटाखे जलाए.’’

गांववालों से बातचीत में हमने पाया कि वंदना और विजयपाल के परिजनों के बीच पहले से विवाद रहा है. 14 अगस्त, 2018 को दोनों परिवारों के बीच एक दूसरे के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हो चुकी है. टीटू पाल ने एफआईआर में वंदना के भाई चंदशेखर, पंकज और सौरभ कटारिया के साथ-साथ उनके भतीजे आशू कटारिया पर भी मारपीट का आरोप लगाया था. ये दोनों एफआईआर हमारे पास हैं.

14 अगस्त को ही वंदना के पिता नाहर सिंह ने टीटू पाल सहित चार लोगों पर मारपीट करने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करायी थी. नाहर सिंह ने टीटू पर अपने दोनों लड़के और साले के साथ मिलकर बेटे, बहु और परिवार के दूसरे लोगों से मारपीट करने का आरोप लगया था.

टीटू पाल

इसी पुरानी रंजिश को आधार बनाकर विजयपाल के वकील कुलदीप सिंह ने उन्हें जमानत दिलवाई है. कुलदीप सिंह न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ''दोनों परिवारों के बीच पुरानी रंजिश है. विवाद को सुलझाने की भी कोशिश हुई लेकिन किसी कारण से ऐसा नहीं हुआ. यह आरोप उसी से प्रेरित है. हमने इसे आधार बनाया और जज साहब ने जमानत दे दी.’’

विजयपाल के वकील कुलदीप सिंह

हमने इस घटना के चश्मददीद 27 वर्षीय मनोज कटारिया से भी बात की. मनोज का दावा है कि उन्होंने पूरी घटना अपनी आंखों से देखी थी. मनोज की मनी ट्रांसफर की दुकान विजयपाल के घर के बिलकुल सामने है. मनोज कहते हैं, ‘‘उस दिन मैं अपनी दुकान पर हॉकी का मैच देख रहा था. मैच खत्म होने वाला था तभी पहला पटाखा फूटा. हमें लगा की किसी ने फोड़ा होगा. लेकिन जब दूसरी बार बम फूटा तो हम बाहर निकलकर देखने लगे. हमने देखा कि विक्की (विजयपाल) और उसका भाई अंकुर पटाखे फोड़ रहे थे. इस दौरान उस बम की सुतली नीचे गिरी जिसका हमने वीडियो भी बनाया.’’

मनोज आगे कहते हैं, ‘‘कुछ ही मिनट बाद वंदना कटारिया के भाई वहां आए और पूछने लगे कि पटाखे क्यों फोड़ रहे हो. उन्होंने पुलिस को भी बुला लिया. पुलिस विक्की को लेकर चली गई. तभी वंदना के भाई ‘टीटू पाल मुर्दाबाद’ के नारे लगाने लगे. जिसके बाद विक्की की मां ने ‘वंदना का भाई मुर्दाबाद’, ‘नाहर सिंह का परिवार मुर्दाबाद’ का नारा लगाने लगी. उसने जातिवादी शब्दों का प्रयोग करते हुए कहा, तुम... (जातिवादी गाली) हो हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते. यह सब पुलिस वालों के सामने हुआ.’’

पाल परिवार का कहना है कि पटाखे किसी और ने जलाकर उनके घर की छत पर फेंका. हालांकि हमने पाया कि उनके घर के दाएं और पीछे वाले हिस्से में कोई घर नहीं है. वहीं बाईं तरफ वंदना के खानदान से ही जुड़े सपना का घर है. आशा वर्कर सपना ने हमें बताया, ‘‘मैं उस वक़्त कमरे में थी. तभी पटाखे की आवाज़ आई. अब पटाखे किसने फोड़े ये हमने नहीं देखा.’’

जिस वक़्त यह घटना हुई उस वक़्त वंदना के घर पर कई पत्रकार मौजूद थे. हमने उस वक़्त वहां मौजूद रहे एक राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल के स्थानीय रिपोर्टर से हरिद्वार प्रेस क्लब में मुलाकात की. नाम नहीं छापने की शर्त पर वे न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘हम कवर करने के लिए वहां मौजूद थे. मैच खत्म हुआ तभी पटाखे फूटने लगे. जहां मैच चल रहा था उस कमरे में काफी भीड़ थी तो मैं बाहर आ गया. मैंने देखा कि पास के ही छत पर पटाखे फोड़े जा रहे थे. उस वक़्त भारत की हार के बाद हम परिवार का बाइट करने लगे और थोड़ी देर बाद नीचे गए तो वहां काफी भीड़ थी और हंगामा हो रहा था.’’

घटना के वक्त वहां मौजूद रहे तमाम लोगों से बातचीत के बाद हमने पाया कि पटाखे तो विजय और अंकुर पाल ने ही फोड़े लेकिन जातिवादी शब्दों का इस्तेमाल उनकी मां ने किया था.

सवाल यह उठता है कि आखिर पाल भाइयों ने पटाखे क्यों जलाए. इसका सवाल का जवाब वंदना के परिवार के पास भी नहीं है. लाखन कटारिया कहते हैं कि पुरानी रंजिश का इस मामले से कोई लेना देना ही नहीं है. वहां भारत की टीम खेल रही थी न कि सिर्फ वंदना. जब टीम हार गई तो पूरा देश दुखी था और ये जश्न मना रहे थे. यह तो देशद्रोह है.

घटना के वक्त वंदना के घर मौजूद रहे पत्रकार कहते हैं, ‘‘मुझे इसके दो कारण लगते हैं. पहला तो वो लड़का भी राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी है. उसके साथ की, पड़ोस की लड़की ओलंपिक में खेल ही नहीं रही थी बल्कि बेहतरीन प्रदर्शन कर रही थी. दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ जब वंदना ने तीन गोल दागे तो उसके यहां अधिकारियों और नेताओं का आना-जाना शुरू हो गया. ऐसे में उसे जलन हुई होगी. दूसरा कारण जातीय अहंकार हो सकता है. वो ये बात पचा ही नहीं पाया कि एक दलित लड़की इतना आगे कैसे बढ़ गई.’’

पुलिस ने जांच में क्या पाया

एसी/एसटी एक्ट के कारण यह मामला राजपात्रित अधिकारी के पास गया. मामले की जांच हरिद्वार एएसपी विशाखा भड़ाने कर रही हैं. हालांकि जब हम वहां पहुंचे तब वो ट्रेनिंग के लिए बाहर गई हुई थीं.

हरिद्वारा स्थित एसएसपी ऑफिस

एएसपी के साथ इस मामले से जुड़े एक पुलिस अधिकारी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘अभी इस मामले की जांच में कोई प्रोग्रेस नहीं है. मैडम के आने के बाद ही जांच बढ़ेगी या हो सकता है कि कप्तान साहब किसी और को केस दे दें. वैसे ऐसे मामलों में गिरफ्तारी जल्दी नहीं होती लेकिन कानून व्यवस्था न बिगड़े इसलिए हमने उन्हें गिरफ्तार किया था. जिला जज विवेक भारती शर्मा ने उन्हें जमानत दे दी है. सरकारी वकील ने उनकी जमानत का विरोध किया था. अब तक पटाखे जलाने, जातिवादी शब्दों का इस्तेमाल करने या ख़ुशी में डांस करने का कोई भी इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस हमें नहीं मिला है. जांच शुरू होगी तो देखा जाएगा कि क्या होता है.’’

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