Report

इंसानियत के लिए डरावनी है यूएन की ताजा जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट

धरती की सम्‍पूर्ण जलवायु प्रणाली के हर क्षेत्र में पर्यावरण में हो रहे बदलावों को दुनिया भर के वैज्ञानिक देख रहे हैं. जलवायु में हो रहे अनेक परिवर्तन तो अप्रत्‍याशित हैं जो सैकड़ों-हजारों वर्षों में भी नहीं देखे गये. कुछ बदलाव तो पहले ही अपना असर दिखाना शुरू कर चुके हैं, जैसे कि समुद्र के जलस्‍तर में लगातार हो रही बढ़ोतरी. इन बदलावों का असर हजारों साल तक खत्‍म नहीं किया जा सकता. इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्‍लाइमेट चेंज (आइपीसीसी) की जारी हुई रिपोर्ट में इन बातों से आगाह किया गया है.

आइपीसीसी वर्किंग ग्रुप वन की रिपोर्ट क्लाइमेट चेंज 2021: द फिजिकल साइंस बेसिस के मुताबिक हालांकि कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में मजबूत और सतत कटौती किये जाने से जलवायु परिवर्तन सीमित हो जाएगा. जहां हवा की गुणवत्ता के फायदे तेजी से सामने आएंगे, वहीं वैश्विक तापमान को स्थिर होने में 20 से 30 साल लग सकते हैं. इस रिपोर्ट को आइपीसीसी में शामिल 195 सदस्य देशों की सरकारों ने पिछली 26 जुलाई को शुरू हुए दो हफ्तों के वर्चुअल अप्रूवल सेशन के दौरान शुक्रवार को मंजूरी दी है. वर्किंग ग्रुप 1 की रिपोर्ट आइपीसीसी की छठी असेसमेंट रिपोर्ट (एआर6) की पहली किस्त है.

यूरोपियन क्लाइमेट फाउंडेशन के सीईओ लारेंस टुबियाना कहते हैं, "विश्व के नेताओं को जलवायु परिवर्तन के बारे में गंभीर होने की जरूरत है. पेरिस समझौते ने सरकारों द्वारा कार्रवाई में तेज़ी लाने के लिए एक स्पष्ट रूपरेखा तैयार की लेकिन अफसोस की बात है कि कई बड़े प्रदूषक उस समझौते की अनदेखी कर रहे हैं जिसे उन्होंने प्रदान करने में मदद की, और 2015 में किए गए अपने वादों को तोड़ रहे हैं. ”हम अभी भी 1.5 डिग्री से नीचे रह सकते हैं, लेकिन इसे विलंबित और छिटपुट उपायों से हासिल नहीं किया जा सकता. सरकारों को संयुक्त राष्ट्र महासभा में कड़ी कार्रवाई करने, गरीब देशों के लिए समर्थन की पेशकश करने और उनकी जलवायु योजनाओं को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए.”

रिपोर्ट में भारत से संबंधित कुछ प्रमुख निष्कर्ष

1. आइपीसीसी की इस हालिया रिपोर्ट से साफ़ ज़ाहिर होता है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्शियस तक रखने का वक़्त हाथ से फिसल चुका है और ऐसे में भारत चाहे वह चमोली में आयी आपदा हो, सुपर साइक्लोन ताउते और यास हों और देश के कुछ हिस्सों में हो रही जबरदस्त बारिश हो, भारत जलवायु से संबंधित जोखिमों का सामना कर रहा है. आलोक शर्मा, COP-26 अध्यक्ष कहते हैं, “विज्ञान स्पष्ट है, जलवायु संकट के प्रभावों को दुनिया भर में देखा जा सकता है और अगर हम अभी कार्रवाई नहीं करते हैं तो हम जीवन, आजीविका और प्राकृतिक आवासों पर सबसे ख़राब प्रभाव देखना जारी रखेंगे.”

उन्‍होंने कहा, "हर देश, सरकार, व्यवसाय और समाज के हिस्से के लिए हमारा संदेश सरल है. अगला दशक निर्णायक है, विज्ञान का अनुसरण करें और डेढ़ डिग्री सेल्शिस के लक्ष्य को जीवित रखने के लिए अपनी जिम्मेदारी को स्वीकार करें. महत्वाकांक्षी 2030 एमिशन रिडक्शन टार्गेट्स और सदी के मध्य तक नेट ज़ीरो के मार्ग के साथ दीर्घकालिक रणनीतियों के साथ आगे बढ़कर, और कोयला बिजली को समाप्त करने के लिए अभी कार्रवाई कर के, इलेक्ट्रिक वाहनों के रोलआउट में तेज़ी ला कर, वनों की कटाई से निपटने और मीथेन उत्सर्जन को कम करते हुए, हम यह एक साथ कर सकते हैं."

विशेषज्ञों के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्शियस तक जाने पर भारत के मैदानी इलाकों में तपिश, अत्यधिक गर्मी और जानलेवा आसमान से बरसती आग जैसी मौसम की मार वाली घटनाओं में इज़ाफा होना तय है. अगले 10 साल में जानलेवा गर्मी की घटनाओं में बढ़ोतरी से निपटने के लिए भारतवासियों को कमर कस लेनी चाहिए. इनमें 10 वर्ष में 5 गुना तक इजाफा मुमकिन है. अगर ग्लोबल वार्मिंग 2 डिग्री सेल्शियस तक होती है तो अपने अधिकांश मैदानी हिस्सों में तपती गर्मी के चलते जीना दूभर हो जाएगा.

2. वार्षिक औसत वर्षा में वृद्धि का अनुमान है. वर्षा में वृद्धि भारत के दक्षिणी भागों में अधिक गंभीर होगी. दक्षिण-पश्चिमी तट पर 1850-1900 के सापेक्ष वर्षा में लगभग 20% की वृद्धि हो सकती है. यदि हम अपने ग्रह को 4 डिग्री सेल्शियस तक गर्म करते हैं, तो भारत में सालाना वर्षा में लगभग 40% की वृद्धि देखी जा सकती है. ऐसे में अत्यधिक वर्षा जल और बाढ़ से बचने का बंदोबस्त हमारे सामने एक बड़ी चुनौती होगी.

3. 7,517 किलोमीटर लंबे समुद्र तट के साथ भारत को बढ़ते समुद्री जलस्तर का सामना करना पड़ेगा. एक अध्ययन के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के चलते अगर समुद्र का स्तर 50 सेंटीमीटर बढ़ जाता है तो छह भारतीय बंदरगाह शहरों- चेन्नई, कोच्चि, कोलकाता, मुंबई, सूरत और विशाखापट्टनम में 28.6 मिलियन लोग तटीय बाढ़ की चपेट में आ जाएंगे. बाढ़ के संपर्क में आने वाली संपत्ति लगभग 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की होगी.

4. भारत दुनिया के 10 में से छह सबसे प्रदूषित शहरों का घर है और लगातार वायु प्रदूषण से जूझ रहा है- 2019 में वायु प्रदूषण के चलते देश में 1.67 मिलियन लोगों का जीवन दांव पर लगा. सबसे ज्यादा इसकी चपेट में गरीब और मेहनतकश शहरों में कम करके रोटी रोजी कमाने वाले लोग हैं. वहीं दूसरी तरफ यह ग्लोबल स्तर पर दुनिया का तीसरा सबसे अधिक मीथेन उत्सर्जित करने वाला देश है. इन दोनों प्रदूषकों पर लगाम कसने की चुनौती हमारे सामने खड़ी है.

5. भारत में हिंदुकुश और हिमालय ग्लेशियर क्षेत्र में रहने वाले 240 मिलियन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण जल आपूर्ति है, जिसमें 86 मिलियन भारतीय शामिल हैं- जो संयुक्त रूप से देश के पांच सबसे बड़े शहरों के बराबर है. पश्चिमी हिमालय के लाहौल-स्पीति क्षेत्र में ग्लेशियर 21वीं सदी की शुरुआत से बड़े पैमाने पर खो रहे हैं और अगर उत्सर्जन में गिरावट नहीं होती है, तो हिंदुकुश हिमालय में ग्लेशियरों में दो-तिहाई की गिरावट आएगी.

इस रिपोर्ट के निष्कर्षों का महत्त्व समझते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और COP26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने वैश्विक उत्सर्जन में कटौती के लिए तत्काल कार्रवाई का आह्वान किया है. ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का इस रिपोर्ट पर कहना है, “मुझे उम्मीद है कि महत्वपूर्ण COP26 शिखर सम्मेलन के लिए नवंबर में ग्लासगो में मिलने से पहले IPCC रिपोर्ट दुनिया के लिए अभी कार्रवाई करने के लिए एक वेक-अप कॉल होगी.”

डॉ रॉक्सी मैथ्यू कोल, वरिष्ठ वैज्ञानिक, भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान और प्रमुख लेखक, IPCC SROCC, बताते हैं, "पिछली IPCC रिपोर्टों ने पहले ही प्रदर्शित कर दिया है कि मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण जलवायु बदल रही है. IPCC AR6 रिपोर्ट का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि पेरिस समझौते के माध्यम से राष्ट्रों द्वारा प्रस्तुत मिटिगेशन और एडाप्टेशन रणनीतियां (जो राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान या NDCs के रूप में जानी जाती हैं) वैश्विक सतह के तापमान में वृद्धि को 1.5°C या 2°C की भी सीमा के भीतर रखने के लिए अपर्याप्त हैं. वैश्विक औसत तापमान वृद्धि के अब 1 डिग्री सेल्शियस से ऊपर जाते हुए, भारत एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है जहां हम पहले से ही चक्रवात, बाढ़, सूखा और गर्मी की लहर जैसी चरम मौसम की घटनाओं का सामना कर रहे हैं. जलवायु अनुमान सर्वसम्मति से दिखाते हैं कि तापमान बढ़ने के साथ ये सभी गंभीर मौसम की स्थितियां अधिक लगातार और तीव्र हो जाएगी क्योंकि हम उत्सर्जन पर पर्याप्त रूप से अंकुश नहीं लगा रहे हैं. हमें इन अनुमानित परिवर्तनों के आधार पर जोखिमों का तत्काल मानचित्रण करने की आवश्यकता है, लेकिन भारत में हमारे पास देखे गए परिवर्तनों के आधार पर देशव्यापी जोखिम आकलन भी नहीं है. हमें अपने शहरों को रीडिज़ाइन करना पड़ सकता है. किसी भी तरह के विकास की योजना इन जोखिमों के आकलन के आधार पर बनाई जानी चाहिए— चाहे वह एक्सप्रेसवे हो, सार्वजनिक बुनियादी ढांचा या यहां तक कि खेत या घर."

उल्का केलकर, निदेशक, जलवायु कार्यक्रम, विश्व संसाधन संस्थान भारत (WRI) का कहना है, ”हमें ऐसी टेक्नोलॉजी की ज़रूरत है जो हरित हाइड्रोजन और पुनर्चक्रण के साथ हमारे उत्पादन के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव लाये और हमें आजीविका का समर्थन करने के लिए अपनी भूमि और प्राकृतिक संसाधनों का जिम्मेदारी से उपयोग करने की आवश्यकता है.”

यह सिर्फ तापमान से जुड़ा मामला नहीं है

वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्शियस की बढ़ोतरी होने पर तपिश बढ़ेगी और गर्मी के मौसम लंबे होंगे तथा सर्दियों की अवधि घट जाएगी. ग्लोबल वार्मिंग में 2 डिग्री सेल्शियस की बढ़ोतरी होने पर गर्मी कृषि और सेहत के लिहाज से असहनीय स्तर तक बढ़ जाएगी. उदाहरण के तौर पर निम्‍न बदलाव देखे जा सकते हैं-

•जलवायु परिवर्तन की वजह से जल चक्र का सघनीकरण हो रहा है. इसकी वजह से बेतहाशा बारिश बाढ़ के साथ-साथ अनेक क्षेत्रों में भीषण सूखा भी पड़ रहा है.

•जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश की तर्ज पर भी असर पड़ रहा है. ऊंचाई वाले इलाकों में वर्षा में वृद्धि होने की संभावना है.

•21वीं सदी की संपूर्ण अवधि के दौरान तटीय क्षेत्रों में समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ेगा, जिसकी वजह से निचले इलाकों में भीषण तटीय बाढ़ आएगी. समुद्र के जलस्तर से जुड़ी चरम घटनाएं जो पहले 100 साल में कहीं एक बार हुआ करती थीं वह इस सदी के अंत तक हर साल हो सकती हैं.

•भविष्य में तापमान और बढ़ने से परमाफ्रास्ट के पिघलने, ग्लेशियरों और आर्कटिक समुद्री बर्फ कम हो रही है.

• समुद्री हीटवेव, महासागरों के अम्लीकरण और ऑक्सीजन के स्तरों में कमी के रूप में महासागर में होने वाले बदलाव का सीधा संबंध मानवीय प्रभाव से जुड़ा है.

जारी हुई पूरी रिपोर्ट नीचे पढ़ी जा सकती है:

Climate Change 2021: The Physical Science Basis

(साभार- जनपथ)

Also Read: क्या जून के शुरुआत में अत्यधिक मानसूनी बारिश देश में लंबी अवधि वाली बाढ़ का संकेत है?

Also Read: उत्तराखंड में बाघों के संरक्षण के लिए क्या हैं चुनौतियां?