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रिपब्लिक टीवी में नए कॉन्ट्रैक्ट का टंटा- 'एजेंडा आप सेट करें और एफआईआर हम झेलें'

अंग्रेज़ी की एक कहावत है लाइफ कम्स फुल सर्किल यानि एक पूरा चक्कर लगाकर वहीं पहुंचना जहां से शुरुआत हुई थी. अर्णब गोस्वामी और उनका मीडिया समूह रिपब्लिक टीवी जीवन का एक चक्कर पूरा करके वहां पहुंच गया है जहां से शुरुआत हुई थी. बस भूमिकाएं बदल गई हैं. 2019 में रिपब्लिक भारत की लॉन्चिंग के मौके पर अर्णब गोस्वामी सुचरिता कुकरेती नामक एंकर को अपने यहां लाना चाहते थे. लेकिन सुचरिता के तत्कालीन नियोक्ता इंडिया टीवी ने उन्हें रिपब्लिक नेटवर्क ज्वाइन करने से रोक दिया. उन्होंने अपने कॉन्ट्रैक्ट का हवाला दिया जिसके मुताबिक सुचरिता कोई दूसरा संस्थान ज्वाइन नहीं कर सकती थी. इंडिया टीवी इसको लेकर कोर्ट पहुंच गया. तब सुचरिता के पक्ष में रिपब्लिक नेटवर्क खड़ा हुआ. कोर्ट ने सुचरिता के पक्ष में फैसला दिया और इंडिया टीवी को मुंह की खानी पड़ी थी.

2019 में जो काम इंडिया टीवी कर रहा था, अब लगभग वही काम रिपब्लिक नेटवर्क कर रहा है. मई महीने के आखिरी सप्ताह में रिपब्लिक ग्रुप ने अपने सभी कर्मचारियों को एक नए कॉन्ट्रैक्ट (अनुबंध) पर हस्ताक्षर करने को कहा है. नया अनुबंध पाकर कर्मचारी हैरान हैं, क्योंकि नौकरी ज्वाइन करते समय भी उन्होंने एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किया था. फिर अचानक से नया अनुबंध क्यों? न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद अनुबंध के मुताबिक कर्मचारियों की स्थिति लगभग बंधुआ मजदूरों जैसी हो जाएगी. कर्मचारियों पर हस्ताक्षर करने का दबाव बनाया जा रहा है.

नए अनुबंध पर हस्ताक्षर नहीं करने और रिपब्लिक की नौकरी छोड़ने वाले एक कर्मचारी गोपनीयता की शर्त पर हमें बताते हैं, ‘‘मैनेजमेंट को नए अनुबंध पर हस्ताक्षर कराने की इतनी बेचैनी थी कि कोरोना के कारण घर से काम कर रहे कर्मचारियों के यहां कुरियर से नए अनुबंध की कॉपी भेजी गई, और हाथ के हाथ हस्ताक्षर कर उसे वापस करने को कहा गया. अनुबंध में अजीब-अजीब शर्ते हैं. इस कारण कई लोग हस्ताक्षर करने से हिचक रहे थे. जो लोग दस्तखत नहीं किए उनकी मई महीने की सैलरी रोक दी गई. मैंने नए अनुबंध पर साइन करने के बजाय इस्तीफा देना वाजिब समझा.’’

अब तक करीब दस से ज़्यादा कर्मचारी नए अनुबंध को गलत मानकर नौकरी छोड़ चुके हैं. इसमें चार एंकर, कुछ रिपोर्टर और कुछ पीसीआर के तकनीशियन हैं. रिपब्लिक के नए अनुबंध के कारण प्राइम टाइम (शाम छह बजे से रात 11 बजे तक) के कार्यक्रम बनाने वाले चार लोगों ने नौकरी छोड़ दी. छोड़ने वाले ज़्यादातर लोग चैनल की लॉन्चिंग टीम के सदस्य हैं. इनमें ऐसे भी लोग हैं जिन्हें अर्णब गोस्वामी का नजदीकी माना जाता था.

रिपब्लिक भारत से पहले दिन से जुड़े एक सीनियर कर्मचारी ने नए अनुबंध के कारण नौकरी छोड़ने का फैसला किया. वो हमें बताते हैं, ‘‘हमारे पास दो ऑप्शन थे या तो अनुबंध पर हस्ताक्षर कर बंधुआ मज़दूर बन जाएं या नौकरी छोड़ दें. मैंने नौकरी छोड़ने का फैसला किया. नौकरी छोड़ते वक़्त मेरे पास कोई काम नहीं था, लेकिन नए अनुबंध में जो शर्तें लिखी गई हैं उस पर हस्ताक्षर करना मुश्किल था.’’

‘नया अनुबंध यानी बंधुआ मज़दूर’

रिपब्लिक भारत के एक वरिष्ठ कर्मचारी बताते हैं, ‘‘नया अनुबंध मुंबई में तैयार हो रहा है. इसकी जानकारी मुझे इंटर्नल सोर्स से पहले ही मिल चुकी थी और मैंने फैसला किया था कि नौकरी छूट जाए लेकिन हस्ताक्षर नहीं करूंगा.’’

ऐसा क्या था अनुबंध में जिसे लेकर कर्मचारी नौकरी छोड़ने तक का विकल्प अपनाने लगे? वो कर्मचारी हमें बताते हैं, ‘‘उसमें कई हैरान करने वाली शर्तें हैं. नौकरी ज्वाइन करते हुए जो अनुबंध हुआ था वो करीब आठ पेज का था, लेकिन नया अनुबंध 30 पेज का है. मुझे तीन शर्तों पर ऐतराज था. पहला, नए अनुबंध के मुताबिक मेरा छह महीने का नोटिस पीरियड होगा. जबकि पहले 45 दिनों का हुआ करता था. आउटपुट हेड और चैनल हेड के लिए दो महीने का था. दूसरी शर्त यह थी कि मैं जब रिपब्लिक छोड़ दूंगा, तो जिस दिन मेरा नोटिस पीरियड खत्म होगा उसके अगले दिन से एक साल तक किसी भी ऐसे चैनल, डिजिटल या ऐसे संस्थान में काम नहीं करूंगा जिसकी रिपब्लिक से सीधी स्पर्धा हो. तीसरी शर्त सबसे हैरान करने वाली थी. अगर किसी खबर के कारण आप पर एफआईआर दर्ज होती है तो क़ानूनी खर्च आपको खुद उठाना होगा. यानी एजेंडा आप सेट करें और मामला दर्ज हो तो खर्च हम उठाएं. यह तो जायज नहीं है.’’

न्यूज़लॉन्ड्री के पास नए और पुराने अनुबंध के कुछ पन्ने मौजूद हैं. नए अनुबंध में साफ लिखा है- ‘‘कर्मचारी रिपब्लिक छोड़ने के अगले 12 महीने तक किसी भी ऐसे संस्थान से नहीं जुड़ सकते जो रिपब्लिक का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिद्वंदी हो.’’

इस शर्त को और स्पष्ट करते हुए रिपब्लिक मैनेजमेंट ने अनुबंध में आगे लिखा है, ‘‘कंपनी छोड़ने के 12 महीने बाद तक भारत या भारत के बाहर रिपब्लिक के प्रतिद्वंदी, चाहें वो डिजिटल में हों या ब्रॉडकास्ट, आप उसमें सलाहकार, फुल टाइम या पार्ट टाइम, निदेशक, ट्रस्टी, प्रबंधक या अन्य किसी तरह से नहीं जुड़ सकते हैं.’’

वरिष्ठ कर्मचारी आगे कहते हैं, ‘‘अगर हम इस अनुबंध पर हस्ताक्षर कर देते तो आगे कहीं काम करने लायक नहीं बचते. छह महीने का नोटिस पीरियड के लिए कौन सी कंपनी इंतजार करेगी? अगर मान लें कि आप बेहद टैलेंटेड हैं तब भी यह शर्त कोई कैसे पूरा करेगा कि 12 महीने तक आप कहीं और काम नहीं कर सकते. हम पत्रकार हैं. किसी टीवी, डिजिटल या अख़बार में ही काम करेंगे. नई शर्त के मुताबिक कर्मचारी तो छोड़िए आप सलाहकार भी नहीं बन सकते. इसलिए उन्होंने मेरी मई महीने की सैलरी दी, तो मैंने बिना नोटिस पूरा किए ही नौकरी छोड़ दिया.’’

न्यूज़लॉन्ड्री ने रिपब्लिक के कई वर्तमान कर्मचारियों से बात की. इनमें से कई नए अनुबंध पर हस्ताक्षर कर चुके हैं. नौकरी छोड़ने वाले एक और कर्मचारी ने हमें बताया, ‘‘नए अनुबंध में हमारी आवाज़ ही छीनने की कोशिश हुई है. ऐसी-ऐसी शर्त रखी गई है कि हम एक तरह से उनके गुलाम बन जाते.’’

वह बताते हैं, ‘‘सबसे पहली बात किसी खबर को लेकर कोई भी केस दर्ज होगा तो खर्च हमें देना पड़ेगा. पहले ऐसा नहीं था. कोई रिपोर्टर अपने मन से कितनी खबरें करता है? खासकर टेलीविजन में. जो आउटपुट से कहा जाता है वहीं उन्हें करना होता है. कई बार तो रिपोर्टर्स को सवाल भी बताये जाते हैं. एंगल भी बताया जाता है. किस पक्ष में खबर चलानी है ये मैनेजमेंट तय करता है. यानी किसी खबर को चलाने में हम कर्मचारियों की रोबोट जैसी भूमिका है तो शिकायत आने पर हम क्यों पैसे खर्च करेंगे?’’

वह आगे कहते हैं, ‘‘अनुबंध में एक और बात हैरान करने वाली है. काम का समय. काम के घंटे को लेकर अनुबंध में लिखा गया है कि कंपनी द्वारा कर्मचारी को सौंपे गए कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के लिए पर्याप्त समय, ध्यान और ऊर्जा देना होगा. साथ ही कर्मचारी इस बात पर सहमत हैं और स्वीकार करते हैं कि जरुरत पड़ने पर तय समय और दिन के बाद भी वे काम करने के लिए उपलब्ध रहेंगे. ऐसे में उन्हें किसी भी तरह का अतिरिक्त पारिश्रमिक नहीं दिया जाएगा. सबसे आखिरी में लिखा हैं कि काम के घंटे मैनेजर द्वारा तय किए जाएंगे यानी कि शोषण की खुली इजाजत दी जा रही है.’’

‘‘रिपब्लिक में वैसे तो कभी भी काम के घंटे तय नहीं रहे. जब भी ज़रूरत पड़ी हमने समय से ज्यादा काम किया, लेकिन तब हम ऐसा करने को मजबूर नहीं थे. जब चैनल शुरू हो रहा था तो हम रात के दो बजे घर जाते थे और सुबह आठ बजे आ जाते थे. कई बार तो 24 घंटे बाद घर गए हैं. लेकिन तब ज़रूरत थी. इसे लिखित में देने का मतलब यह है कि हम ऐसा करने के लिए मजबूर हैं.’’ रिपब्लिक से शुरुआती समय से जुड़े एक कर्मचारी बताते हैं.

वे आगे कहते हैं, ‘‘मैं घर पर रहकर काम कर रहा था. ऐसे में उन्होंने मुझे डॉक्यूमेंट मेल किए कि आप हस्ताक्षर करके भेज दें. मैंने पढ़ने के बाद इस्तीफा दे दिया. मेरा नोटिस पीरियड 45 दिन है तो इस दौरान मैं कहीं ज्वाइन नहीं कर रहा. खत्म होने के बाद नई जगह ज्वाइन करूंगा.’’

‘‘सोशल मीडिया पर कुछ भी नहीं लिख सकते हैं’’

नए अनुबंध में सोशल मीडिया पॉलिसी को लेकर भी बेहद सख्त रवैया दिखा है. पुराने अनुबंध में लिखा है- ‘‘आप सोशल मीडिया पर कुछ भी लिखते हुए यह साफ कर दें कि यह आपका मत है इसका कंपनी से कोई लेना देना नहीं है. अगर आप सोशल मीडिया पर खुद को कंपनी के कर्मचारी के तौर पर दिखाते हैं तो आपका पोस्ट आपके पद और जिम्मेदारी को दर्शाना चाहिए. किसी भी स्थिति में आप कंपनी से जुड़ी जानकारी साझा नहीं कर सकते हैं. किसी भी तरह की अफवाह, झूठ या गोपनीय सूचना कंपनी की छवि खराब कर सकती है. ऐसा करने वालों पर क़ानूनी कार्रवाई होगी.’’

नए अनुबंध के मुताबिक कर्मचारी अपने सोशल मीडिया पर कुछ भी नहीं लिख सकते हैं. एक कर्मचारी सोशल मीडिया पॉलिसी को लेकर हमें बताते हैं, ‘‘मुझे 27 मई को अनुबंध की कॉपी दी गई और एक दिन बाद हस्ताक्षर करके देने के लिए कहा गया. इतना मोटा अनुबंध था, जिसे पढ़ने में ही हमें दो-तीन घंटा लगता. इसमें जो शर्तें थी उसके मुताबिक काम करना मुमकिन नहीं था. मेरा नोटिस पीरियड दो महीने का था, जिसे बढ़ाकर छह महीने करने का प्रावधान था. सोशल मीडिया पर थोड़ा बहुत खुल कर लिखते थे, उसे भी कंट्रोल करने की कोशिश की गई. इसलिए मैंने पुराने अनुबंध की शर्त पर ही नौकरी छोड़ना सही समझा.’’

वह आगे कहते हैं, ‘‘इस्तीफे के बाद भी उन्होंने काफी परेशान किया. स्थिति यहां तक पहुंच गई कि मुझे कहना पड़ा कि क़ानूनी रास्ता अपनाने के लिए मजबूर मत कीजिए. काफी जद्दोजहद के बाद उन्होंने मेरा हिसाब किया. दरअसल पुराने अनुबंध में नियम संख्या 6 (ए) में लिखा है कि कर्मचारी खुद नौकरी छोड़ते हैं या कंपनी हटाती है तो दोनों ही स्थिति में 60 दिन का नोटिस पीरियड सर्व करना होगा. अगर कंपनी तत्काल हटाती है तो उसे दो महीने की बेसिक सैलरी देनी होगी और अगर हम नोटिस सर्व नहीं करते तो हमें देना होगा. इसी आधार पर मैंने अपना इस्तीफा दे दिया. अभी तक मेरा रिलीविंग लेटर नहीं दिया गया. लेकिन मैं किसी और जगह ज्वाइन कर चुका हूं.’’

क्यों आया नया अनुबंध?

रिपब्लिक मैनेजमेंट को अचानक से अनुबंध में बदलाव की क्या ज़रूरत पड़ी? ये सवाल कई कर्मचारियों ने भी मैनेजमेंट से पूछा लेकिन उन्हें कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला. हालांकि कई कर्मचारी एक ख़ास वजह की तरफ ध्यान दिलाते हैं. उनका मानना है कि अचानक से लाए गए इस अनुबंध की वजह टाइम्स नाउ का हिंदी चैनल है.

अर्णब के करीबी रहे एक सीनियर कर्मचारी जो अब नौकरी छोड़ चुके हैं, न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘इस अनुबंध को लाने की सबसे बड़ी वजह थी कि टाइम्स नाउ अपना नया चैनल ‘नवभारत’ ला रहा था. रिपब्लिक भी टाइम्स नाउ को तोड़कर ही खड़ा हुआ है. ऐसे में इन्हें डर था कि टाइम्स समूह इनके कर्मचारियों को तोड़ेगा और टाइम्स ऐसा कर भी रहा है. वो पांच-छह लोगों को अप्रोच कर चुके थे. हालांकि इस अनुबंध को लाने का बहुत फायदा नहीं हुआ क्योंकि मेरी जानकारी में रिपब्लिक के पीसीआर का एक लड़का टाइम्स नाउ गया इसके अलावा कोई नहीं गया है. कोई ज़ी न्यूज़, टीवी 9 और कोई इंडिया टुडे ग्रुप चला गया. हालांकि इससे यह हुआ कि इनके प्राइम टाइम की टीम खत्म हो गई जो टीआरपी के लिए जानी जाती थी.’’

हमने उनसे पूछा कि नया अनुबंध क़ानूनन कितना वैध था, तो वे कहते हैं, ‘‘यह बहुत गलत था. यह अनुबंध बिलकुल वैसे ही था कि जैसे आप नाव में बैठा लिए और बीच नदी में जाकर कह रहे हैं कि किराया अपडेट करेंगे. मैं तो नाव में अपने जेब में पैसे देख कर चढ़ा था. आप किराया बढ़ाएंगे तो क्या पता मेरे पास उतने पैसे ही ना हो. इससे उस ब्रांड की बदनामी हुई है.’’

इतने अनैतिक प्रावधानों के बावजूद तमाम ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने नए अनुबंध पर दस्तख़त कर दिए. इसकी अहम वजह यह रही कि न चाहते हुए भी उन्हें ऐसा करना पड़ा क्योंकि उनके पास तत्काल कोई विकल्प मौजूद नहीं था.

बहुत से ऐसे कर्मचारी जो अभी रिपब्लिक में काम कर रहे हैं, उन्होंने इस विषय पर बोलने से इनकार कर दिया.

रिपब्लिक का क्या कहना है?

इस पूरे मामले पर हमने रिपब्लिक टीवी के प्रमुख अर्णब गोस्वामी और दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों को कुछ सवालों की फेहरिस्त भेजी है, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है.

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