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आपके मीडिया का मालिक कौन? कैसे सुभाष चंद्रा के जुनून ने उनके ज़ी साम्राज्य को बर्बाद कर दिया!

जुलाई 2019 में गुजरात समाचार के मालिक शाह परिवार ने महाराष्ट्र के औद्योगिक शहर महापे में डीएनए के पुराने प्रिंटिंग प्रेस के सौदे के प्राथमिक दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए. इसके बाद उन्हें उम्मीद थी कि यह 16.5 करोड़ रुपये की डील जल्द ही पूरा हो जाएगी. हालांकि इस दौलतमंद और रसूख़दार गुजराती परिवार को अभी थोड़ा और इंतजार करना था.

डीएनए अक्टूबर, 2019 में ही बंद हो गया और इसके ठीक बाद डीएनए के प्रबंधन ने 220 से ज्यादा पत्रकारों और कर्मचारियों की छुट्टी कर दी. बेहद लोकप्रिय लेकिन हर रोज दिवालियेपन की ओर बढ़ते इस अख़बार पर मालिकाना हक रखने वाले सुभाष चंद्रा एस्सेल ग्रुप डॉटेड लाइन्स पर हस्ताक्षर नहीं कर पाए. वहीं दूसरी तरफ नौकरी से निकाले गये कर्मियों ने छंटनी के प्रस्तावित पैकेज की शर्तों को मानने से इंकार कर दिया और मामले को लेबर कोर्ट में ले गए. अपनी किस्मत से अनजान धूल में लिपटे इस प्रेस को दोबारा काम शुरू करने के लिए दो साल तक इंतजार करना पड़ा.

वहीं खरीदारों ने इस देरी का लाभ मोल-भाव करने में उठाया और प्रेस के दाम को गिराकर 12 करोड़ रुपए तक लाने में सफल रहें.

चूंकि 2018 के मध्य में चंद्रा पहले से ही एक वित्तीय उथल-पुथल से जूझ रहे थे इसलिए उनके लिए ये डील एक कड़वा घूंट बन गई.

14 साल पुराने इस अख़बार के हमेशा के लिए बंद होने से कुछ महीनों पहले ही चंद्रा ने वोर्ली के कॉन्टिनेंटल बिल्डिंग की टाउन हॉल की बैठक में पत्रकारों को बताया, "हमने डीएनए को एक और मौका देने का फैसला किया है. अब मैं इस अख़बार की फंडिंग नहीं कर पाऊंगा. इसे खुद अपने पैरों पर खड़ा होना होगा. डीएनए के लिए ये सब प्रभु श्रीराम के 14 साल के वनवास के समान रहा है."

लेकिन वनवास के बाद बहुत जल्द ही 9 अक्टूबर, 2019 को डीएनए के जीवन का अंत हो गया.

2016 में चंद्रा के प्रिंट मीडिया बिज़नेस, ज़ी मीडिया कॉर्पोरेशन लिमिटेड या ज़ेडएमसीएल की डिमर्जिंग से अस्तित्व में आयी डिलिजेंट मीडिया कॉर्पोरेशन लिमिटेड या डीएमसीएल ने कुछ पत्रकारों को dnaindia.com को जीवित रखने के लिए अपने यहां पेरोल पर रख लिया. डीएमसीएल स्टॉक एक्सचेंज की सूची में बना रहा और इसके शेयरों का दाम 2.50 रुपये के आस-पास बना रहा (25 जुलाई, 2021 के मुताबिक) जो कि इसके 52 वीक लो से भी करीब आठ गुना ज्यादा था. ये पैनी स्टॉक बेईमान निवेशकों के एक गिरोह के लिए पूरी तरह से लाभ कमाने की एक मशीन बन गया था.

ज़ेडएमसीएल के कार्यकारी निदेशक, वित्त एवं सीएफओ ने एक रेगुलेटरी फाइल की और उसमें कहा कि उनकी कंपनी और डीएमसीएल के बीच 309.69 करोड़ रुपये (जिसमें 290 करोड़ रुपये की समझौता राशि और 19.69 करोड़ रुपये की अन्य प्राप्तियां शामिल हैं) की वसूली को लेकर बातचीत चल रही थी. नियमित तौर पर अख़बार की फंडिंग करने वाले ज़ेडएमसीएल ने प्राई-मीडिया सर्विसेस के जरिये नॉन कनवर्टिबल डिबेंचर्स या एनडीसीज़ के लिए कॉरपोरेट गारंटी जारी की थी. प्राई मीडिया सर्विसेस पर उस वक़्त पूरी तरह से ज़ेएडएमसीएल का स्वामित्व था लेकिन बाद में इस सहायक कंपनी का विलय डीएमसीएल में हो गया.

30 जून, 2020 को डीएमसीएल से प्रीमियम समेत 438.90 करोड़ रुपये की छूट पाने के इंतजार में एनसीडीज़ की देनदारियां बची हुई थीं.

ज़ील (ZEEL) की बिक्री

21 जून, 2021 को ज़ी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड या ज़ील ने मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के स्वामित्व वाली वायकॉम18 के साथ अपने संभावित विलय की अफवाहों की खबरों पर लगाम लगाने की कोशिश की.

एक रेगुलेटरी फाइलिंग में ज़ी ने इस तरह के कदम से इनकार कर दिया और इस न्यूज़ रिपोर्ट को "काल्पनिक" करार दे दिया.

वायाकॉम18, टीवी18 लिमिटेड और यूएस-आधारित वायाकॉमसीबीएस इंक का एक जॉइंट वेंचर है जिसमें टीवी18 की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी है और वायाकॉमसीबीएस इंक की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी है. टीवी18 नेटवर्क18 मीडिया एंड इंवेस्टमेंट्स लिमिटेड का ही एक हिस्सा है जो मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज़ की पूर्ण स्वामित्व वाली एक सहायक कंपनी की मिल्कियत है.

ठीक एक सप्ताह पहले 14 जून को स्टॉक एक्सचेंज ने नेटवर्क 18 से स्पष्टीकरण मांगा था क्योंकि उसके शेयरों में 30 प्रतिशत से अधिक की तेजी आ गयी थी. कंपनी ने एक्सचेंज के ऑनलाइन निगरानी विभाग को जवाब दिया कि उसका कोई भी डिस्क्लोज़र लंबित नहीं है.

शेयर बाजार इस इंकार को पचा नहीं पाया.

कभी परिवार के ताज में जवाहरात की तरह काबिज़ चंद्रा की हिस्सेदारी पूर्व में 41.62 प्रतिशत थी, जो बीते तीन सालों के दौरान गिरकर चार प्रतिशत के नीचे चली गई है. इन्वेस्को ओपनहाइमर डेवलपिंग मार्केट्स फंड और वैंगयार्ड जैसे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के समूह की ज़ील में 57.46 प्रतिशत हिस्सेदारी है. भारतीय जीवन बीमा निगम और म्यूचुअल फंड्स सहित बीमा कंपनियों ने 18 प्रतिशत की निर्णायक हिस्सेदारी हासिल कर ली है. हाल-फिलहाल में ही आई एक कंपनी ओएफआई ग्लोबल चाइना फंड के पास भी 10.14 प्रतिशत की हिस्सेदारी है.

ज़ील पर करीब से नज़र डालने से पता चलता है कि कैसे लोन की देनदारियों से छुटकारा पाने के लिए चंद्रा ने पिछले दो वर्षों में अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए कड़ी मेहनत की. 25 नवंबर, 2019 को चंद्रा ने अध्यक्ष का पद छोड़ दिया. अगस्त, 2020 में उन्हें चेयरमैन-एमेरिटस बनाया गया. उनके बेटे पुनीत गोयनका फिलहाल बतौर प्रबंध निदेशक और सीईओ काम कर रहे हैं.

अंतिम किला

चंद्रा के लिए ज़ेडएमसीएल एक पराजित राजा के अंतिम बचे किले की तरह है.

लेकिन ज़ेडएमसीएल में भी उनकी हिस्सेदारी लगातार घट रही है. 2 जुलाई, 2021 को ग्रुप की दो कंपनियों - 25एफपीएस मीडिया और आर्म इंफ्रा - ने स्टॉक एक्सचेंज को सूचित किया कि उनकी होल्डिंग्स के एक हिस्से 3.4 प्रतिशत या 1.6 करोड़ शेयर्स को आईडीबीआई ट्रस्टीशिप सर्विसेज द्वारा अपने डिबेंचर धारकों की ओर से जारी किया गया था. प्रोमोटर्स की हिस्सेदारी अब 11.32 फीसदी तक लुढ़क चुकी थी.

जब कर्जदाताओं ने पहली तिमाही में कुल 3.4 प्रतिशत गिरवी रखे शेयर्स जारी किए थे तो उस समय जून तिमाही के अंत में ज़ेडएमसीएल में प्रोमोटर्स की हिस्सेदारी 14.72 प्रतिशत थी.

कई लोगों को ताज्जुब होता है कि किसी जमाने में इस कदर फलते-फूलते एस्सेल ग्रुप के साथ ऐसा क्या गलत हो गया जो आज की तारीख़ में उसकी ये दशा हो गयी. 2019 की शुरुआत से ही चंद्रा अपने संकटग्रस्त ग्रुप के लिए एक सुरक्षित जमीन तलाश रहे हैं. मीडिया और घरेलू मनोरंजन की दुनिया में अपने विशिष्ट कौशल के साथ ही चंद्रा ने कई दूसरे कारोबारों जैसे आधारिक संरचना, वित्त, शिक्षा और क्रूज लाइन्स शिपिंग आदि में भी अपना हाथ आजमा चुके हैं. कारोबार के क्षेत्र में यह एक साहसिक विस्तार था. लेकिन ज्यादातर कंपनियां कर्ज की बाढ़ में डूब गईं.

हालांकि चंद्रा ने अपना बीमार क्रूज़ शिपिंग कारोबार अमेरिका स्थित अरबपति होटल कारोबारी संत सिंह चटवाल ​​को बेच दिया. लेकिन जहाज की मालिक नयी कंपनी अभी भी चंद्रा के मुख्यालय कॉन्टिनेंटल बिल्डिंग से ही चल रही है.

कई भारतीय कारोबारियों की तरह चंद्रा भी कुछ साल पहले तक 500 से अधिक सहायक कंपनियों और शेल कंपनियों के मकड़जाल के साथ काम करते थें. ग्रुप पर दबाव बढ़ने के कारण उन्होंने इनमें से कई कंपनियों को बंद कर दिया. 2018 के अंत तक कर्ज के ऊंचे स्तर और डिफॉल्ट्स ने समूह को सुर्खियों में ला दिया था.

एक बड़ी गड़बड़ी यह थी कि उनके अधिकांश शेयरों को ग्रुप की कंपनियों द्वारा लिए गए कर्ज के बदले जमानत के तौर पर गिरवी रख दिया गया था. चूंकि ज़ील के शेयर की कीमत नीचे गिर रही थीं इसलिए चंद्रा को मार्जिन-कॉल के भारी दबाव का सामना करना पड़ रहा था. जब कर्ज के कारण शेयर की कीमत जरूरी स्तर से भी नीचे गिर जाती है तो प्रोमोटर्स को मार्जिन-कॉल के खतरे का सामना करना पड़ता है. यह शेयर बाजार द्वारा शिकार के लिए बिछाये गए एक जाल की तरह था. यस बैंक और कर्जदाता आईएल एंड एफएस के पतन और वित्तीय बाजार पर उनके प्रभाव ने चंद्रा के अतिरिक्त कर्ज जुटाने और गड़बड़ियों में सुधार करने की उनकी क्षमता को सीमित कर दिया. अब उनके पास अपने शेयरों को कम कीमतों पर बेचने का एकमात्र विकल्प ही रह गया था.

कुबूलनामा

25 जनवरी, 2019 की शाम को चंद्रा ने एक भारतीय प्रोमोटर के लिए एक अजीबोगरीब काम को अंजाम दिया.

वो शुक्रवार का दिन था जब द वायर की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि नवंबर 2016 में नोटबंदी के बाद एस्सेल समूह के एक बड़े डिपॉज़िट की जांच की जा रही है. गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय की रिपोर्ट में कहा गया था कि नोटबंदी के ठीक बाद 3,000 करोड़ रुपये जमा करने के मामले में नित्यंक इंफ्रापॉवर नामक कंपनी की जांच चल रही है जो पहले ड्रीमलाइन मैनपॉवर के नाम से जानी जाती थी.

अगले दिन सुबह जैसे ही शेयर बाजार खुला ज़ील के शेयर औंधे मुंह आ गिरे. स्टॉक 33 प्रतिशत गिरकर 288.95 रुपये प्रति शेयर के 44 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गए और इससे एक ही दिन में इसका बाजार मूल्य गिरकर 14,000 करोड़ रुपये कम हो गया. साथ ही अब और भी ज्यादा मार्जिन कॉल थे.

चंद्रा को पता था कि उनके पैरों तले की जमीन खिसक रही है. 26 साल पहले अपने हाथों से गढ़े इस पारिवारिक गहने को बेचने और देनदारियों के भुगतान की उनकी इस योजना को एक बड़ा झटका लगा. उन्होंने एक खुला पत्र लिखा और उसमें अपने सभी लेनदारों से शांत रहने की अपील करते हुए वादा किया कि वह सारा कर्ज चुका देंगे लेकिन इस संबंध में उन्होंने किसी समय सीमा का ज़िक्र नहीं किया.

इन सारी परेशानियों के लिए उन्होंने कुछ "नकारात्मक ताकतों" को दोषी ठहराया और उनके अनुसार इन्हीं नकारात्मक ताकतों ने बिक्री की प्रक्रिया को खराब करने के उद्देश्य से ज़ील के स्टॉक्स पर हमला किया था.

आखिर कौन थीं ये "नकारात्मक ताकतें"? मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र एक बड़ा मुक़ाम तय करने के सपने संजोने वाले एस्सेल ग्रुप के कुछ लोगों ने भारतीय कॉरपोरेट जगत के एक दिग्गज की ओर उंगली उठाई. लेकिन इस संबंध में किसी तरह के पुष्ट प्रमाण नहीं मिले. चंद्रा के पास केवल यही सुराग था कि ये नकारात्मक ताकतें मई-जून 2018 से काम कर रही थीं और बैंकर्स, एनबीएफसी, म्यूचुअल फंड्स के साथ ही शेयरधारकों को गुमनाम पत्र भेज रही थीं. ग्रुप के कुछ लोगों का कहना था कि इन "नकारात्मक ताकतों" ने ज़ील पर कब्जा करने के लिए पहले चंद्रा से संपर्क किया था लेकिन उन्होंने सख़्ती से इनकार कर दिया.

चंद्रा का वो पत्र जिसे कई लोगों ने "कॉर्पोरेट बॉम्बशैल" बताया उसमें चंद्रा ने कर्जदाताओं से "ईमानदारी से माफी" मांगी थी.

चंद्रा के अनुसार उनके द्वारा एस्सेल इंफ्रा में कुछ "गलत बोलियां" लगाई गयी थीं. प्रॉजेक्ट्स के घाटे में चलने के बावजूद उन्होंने सूचीबद्ध कंपनियों में प्रोमोटर्स की हिस्सेदारी के बदले उधार लेते हुए कर्ज चुकाना जारी रखा. उन्होंने अपने पत्र में कबूल किया, "परिस्थितियों से न भागने के मेरे जुनून ने मुझे 5,000 करोड़ रुपए तक का जख़्म दे दिया है."

एक और गलती थी वीडियोकॉन डी2एच का अधिग्रहण. उन्होंने कहा, "वीडियोकॉन से डी2एच खरीदने के लिए मेरे भाई जवाहर गोयल से की गयी मेरी सिफारिश एक और बहुत बड़ी गलती थी जिससे मुझे और जवाहर को बहुत नुकसान हुआ," उन्होंने कहा.

उन्होंने पत्र में कहा कि कुछ साल पहले जब इस पारिवारिक करोबार का बंटवारा हुआ था तो बड़े भाई होने के नाते एस्सेल ग्रुप्स के पूरे कर्ज के बोझ की जिम्मेदारी उन्होंने खुद अपने सर पर ले ली थी.

चंद्रा के कुबूलनामे से अगर कुछ हासिल हुआ तो वो था केवल और केवल उनकी मुसीबतों में इजाफा. उनके समूह की कंपनियों को शेयर बाजार में और अधिक डूबते चले जाने से कोई नहीं रोक पाया. हालांकि कुछ नाकाम कोशिशों के बाद लेनदारों को भुगतान करने और संभावित आपराधिक मामलों से बचने के लिए वादे के मुताबिक चंद्रा ने समूह की प्रमुख कंपनी ज़ील की अपनी अधिकांश हिस्सेदारी बेच दी.

आंखों के आगे घटित हुई घपलेबाजी का यह एक नायाब मामला था. ग्रुप की तीन विस्तृत कंपनियां- जेडएमसीएल, ज़ी लर्न और डिश टीवी - 25 जुलाई को क्रमशः 13.40 रुपए, 15 रुपए और 13.80 रुपए के शेयर की कीमतों के साथ पैनी स्टॉक बन गई. कोई विकल्प न बचने पर चंद्रा ने अधिकांश कंपनियों को बंद कर दिया या एस्सेल इंफ्रा और एस्सेल फाइनेंस के बैनर तले बेच दिया. ग्रुप की एक अन्य बड़ी कंपनी एस्सेल प्रोपैक को निजी इक्विटी कंपनी ब्लैकस्टोन को बेच दिया गया.

कुछेक हजार लोगों को बेरोजगार कर दिया गया.

एमटी एडुकेयर जिसे चंद्रा द्वारा फरवरी 2018 में 200 करोड़ रुपये में लिया गया था (और इसके बाद 72.76 रुपये प्रति शेयर पर एक ओपन ऑफर के तहत इसके शेयर बेचने की कोशिशें की जा रही थी) वर्तमान में शेयर बाजार में इसका दाम लगभग 8.60 रुपये प्रति शेयर के आसपास है. इसमें चंद्रा की 59 फीसदी हिस्सेदारी की कीमत महज 37 करोड़ रुपये है.

यस बैंक की बर्बादी के लिए भी एस्सेल ग्रुप आंशिक रूप से जिम्मेदार था. चंद्रा को प्रवर्तन निदेशालय की जांच का सामना करना पड़ा. 20 मार्च, 2020 को चंद्रा ने ट्वीट किया, "ईडी द्वारा मुझसे अनुरोध किया गया है कि मैं उस जानकारी से संबंधित एक बयान दूं जो उनके पास पहले से ही मौजूद है. मुझे उनके कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर उनके अनुरोध का सम्मान करते हुए, हर तरह से आवश्यक सहयोग करके खुशी होगी.” वर्तमान में किसी को भी जांच की स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

एस्सेल ग्रुप की कंपनियों द्वारा किये गये डिफ़ॉल्ट्स ने कुछ प्रमुख म्यूचुअल फंड्स के लिए भी जमीन हिलाकर रख दी. मई 2020 में, फ्रैंकलिन टेम्पलटन म्यूचुअल फंड ने एस्सेल इंफ्रा द्वारा जारी किए गए लोन पर एक डिफ़ॉल्ट की घोषणा की. नॉन कनवर्टिबल डिबेंचर भी चंद्रा की व्यक्तिगत गारंटी द्वारा समर्थित थे.

जहां एक ओर कुछ फंड हाउस जैसे आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल, कोटक और आदित्य बिड़ला सन लाइफ ने ग्रुप द्वारा हिस्सेदारियों की बिक्री के जरिये जुटाए गयी पूंजी से अपने पैसे वसूल कर लिये वहीं दूसरों को उनके हिस्से के पैसों का केवल एक भाग ही मिल पाया.

ज़ील में कई लोग याद करते हैं कि लगभग पांच साल पहले जब इस कंपनी का एम-कैप 35,000 करोड़ रुपये के दायरे में था तब सीईओ के रूप में शामिल हुए पुनीत मिश्रा ने कैसे इस घरेलू प्रसारण कंपनी के मार्केट कैपिटलाइजेशन को दोगुना करने की बात कही थी. हालांकि ग्रुप की विविधता और कर्ज की अधिकता ने ज़ील को भी प्रभावित किया और जल्द ही शुरुआती उत्साह भी खत्म हो गया. आज कंपनी का मार्केट कैप लगभग 19,800 करोड़ रुपये है और चंद्रा की शेष चार प्रतिशत हिस्सेदारी का मूल्य वर्तमान में लगभग 790 करोड़ रुपये है. इसका अधिकांश हिस्सा समूह की विदेशों में पंजीकृत तीन संस्थाओं के पास है- एस्सेल मीडिया वेंचर्स, एस्सेल होल्डिंग्स और एस्सेल इंटरनेशनल होल्डिंग्स.

एक स्त्रोत ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "पिछले कुछ सालों में ज़ील का ध्यान पूरी तरह कर्ज को कम करने, कॉरपोरेट गवर्नेंस और पारदर्शिता पर केंद्रित है. बोर्ड काफी ताकतवर है और इसका चेयरमैन आगे बढ़कर नेतृत्व करता है. पुनीत गोयनका, कार्यकारी निदेशक और सीईओ बोर्ड को रिपोर्ट करते हैं."

एक कट्टर राष्ट्रवादी

चंद्रा को नरेंद्र मोदी सरकार के प्रबल समर्थक के रूप में जाना जाता है. कोई आश्चर्य नहीं कि अक्सर विवादों को जन्म देने वाले ज़ी न्यूज़ और उनके ग्रुप द्वारा चलाए जा रहे अन्य टीवी न्यूज़ चैनलों का झुकाव निश्चित तौर पर पूरी तरह हिंदू राष्ट्रवादी पक्ष की ओर ही है.

मई, 2015 में चंद्रा, सुधीर चौधरी जैसे कुछ शीर्ष संपादकों को दूर-दराज के गांवों में ले गए. इसके कदम के पीछे की सोच यह थी कि इससे यह जानने की कोशिश की जायेगी कि न्यूज़ टेलीविजन पर ग्रामीण लोगों को क्या पसंद है और क्या नापसंद है. एक शोध एजेंसी को नियुक्त करने के बजाय संपादकों को सीधे टारगेट ऑडियंस के पास ले जाया गया. चंद्रा ने अपने एक अंग्रेजी समाचार चैनल जिसे बाद में वियोन नाम दिया गया, के लॉन्च से पहले पत्रकारों की एक चुनिंदा बैठक को बताया, "मेरठ के एक ग्रामीण ने हमें बताया कि 'सब बिका हुआ है', हर समाचार चैनल बिक चुका है." "लेकिन एक संक्षिप्त चर्चा के बाद उसी व्यक्ति ने हमें यह भी बताया कि आप हमारी आखिरी उम्मीद हैं."

वियोन के द्वारा वह अंतरराष्ट्रीय समाचारों के लिए एक भारतीय नजरिये का निर्माण करना चाहते थे, जैसे कि अल जज़ीरा ने दुनिया को मध्य पूर्व के नजरिये से और बीबीसी ने यूके के नजरिये से देखा. वह हमेशा से मीडिया की "सॉफ्ट पावर" में विश्वास करते रहे हैं जो नई पीढ़ी की राजनीतिक सोच को प्रभावित कर सकती है.

7 अगस्त, 2015 को चिंतित चंद्रा ने मुंबई के एक होटल में पत्रकारों से मुलाकात की. वह टीवी न्यूज़ चैनलों की बढ़ती संख्या पर लगाम लगाने के लिए एक "नियामक ढांचे" की गैर हाजिरी को लेकर आंदोलित थे. उन्होंने शिकायत की कि न्यूज़ चैनलों के कॉरपोरेट मुखौटे से पर्दा हटाने और उनकी फंडिंग की तह तक जाने के लिए "भारतीय रिजर्व बैंक के सटीक और उचित मानदंडों" की तरह कोई कड़े नियम नहीं हैं.

"दुर्भाग्य से हमारा तंत्र चैनल के मालिक द्वारा अपने आवेदन के हिस्से के रूप में प्रस्तुत किये गए दस्तावेजों आदि से एक कदम भी आगे बढ़कर नहीं देखता. अगर यह मनी ट्रेल दाऊद इब्राहिम पर जाकर खत्म होता है तो मुझे इस पर कोई आश्चर्य नहीं होगा," चंद्रा ने कहा. उनके अनुसार इस कारण राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता हुआ है.

ज़ी न्यूज़ के एंकर जिस राजनीतिक बयानबाजी और आक्रोश के साथ अपने डेली शोज़ प्रस्तुत करते हैं वो चंद्रा के विचारों और समझ को ही दर्शाते हैं. चेयरमैन की टीम कार्यकारी अधिकारियों का आपस में बहुत मजबूती से बंधा हुआ समूह होता है जिसमें दूसरे लोग किसी भी तरह दखल नहीं दे सकते. यह टीम लगातार ऐसे मुद्दे उछालती रहती है जो नियमित रूप से ज़ी न्यूज़ पर चर्चा का विषय बन जाते हैं.

"भारतीय टेलीविजन के पिता" और एक दूरदर्शी के रूप में जाने जाने वाले चंद्रा शायद इस बात से अनजान थे कि उनके प्रतिनिधि, संपादकों और सीईओ पर नजर रखते हैं और इन प्रतिनिधियों द्वारा गलत निर्णय भी लिए गए हैं. उदाहरण के लिए डीएनए ने 14 वर्षों में एक दर्जन से अधिक संपादकों और कई सीईओ को बाहर का रास्ता लेते देखा है. इन संपादकों और सीइओ आदि पदाधिकारियों का औसत कार्यकाल एक वर्ष का था. यहां तक ​​​​कि चंद्रा ने दावा किया है कि उनका विशाल मीडिया साम्राज्य बगैर किसी हस्तक्षेप के "पेशेवर रूप से चलाया गया".

उनके तेजतर्रार और तर्कहीनता की हद तक चले जाने वाले आक्रामक तौर-तरीकों में से ज्यादातर एक परिवार विशेष के स्वामित्व वाले और बेशर्मी से केंद्रीकृत व्यवसाय की कार्य संस्कृति के ही पूरक थे. यहां हर कोई हर किसी के पहले नाम के बाद "जी" लगाकर संबोधित करता. आलोचकों ने इसे "जी संस्कृति" कहकर खुले तौर इसका मज़ाक उड़ाया.

जून 2016 में, चंद्रा के राज्यसभा में निर्वाचन की कहानी हरियाणवी लोककथाओं से भी ज्यादा रोमांचक है. भाजपा द्वारा समर्थन प्राप्त चंद्रा का निर्वाचन कांग्रेस के 12 नेताओं के वोट खारिज होने के बाद हुआ था. और इन 12 कांग्रेसी नेताओं का वोट इसलिए खारिज हुआ था क्योंकि उन्होंने "गलत कलम" का इस्तेमाल किया था. हालांकि किस बात ने विधायकों को गलत कलम का इस्तेमाल करने और अपने वोटों को अमान्य करने के लिए प्रेरित किया यह अब तक अपने आप में एक रहस्य बना हुआ है. और इस तरह भारतीय राजनीति में विवादों और उपद्रव का एक और नया रिकॉर्ड बन गया.

सूत्रों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया है कि चंद्रा को दोबारा संसद में जाने का मौका मिलने की संभावना न के बराबर है.

एक लंबी लड़ाई के बाद डीएनए प्रेस के सैकड़ों बर्खास्त कर्मचारियों ने दो महीने पहले एक छंटनी पैकेज हासिल किया है. डीएमसीएल ने प्रेस और जमीन के संभावित खरीदारों के साथ सेल एग्रीमेंट करने के बाद ही यह सौदा किया था. डीएनए प्रेस महापे में स्थित है जहां पर डीएमसीएल ने जमीन बेचने के लिए डेटा सेंटर कंपनी CtrlS के साथ तीन अलग-अलग सेल डील्स पर हस्ताक्षर किए थे. डीएमसीएल ने आपस में जुड़े हुए दो प्लॉट्स को 70 करोड़ रुपये में बेचा जबकि तीसरे प्लॉट के लिए 70 करोड़ रुपये के एक अन्य इनिशियल एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हो चुके हैं. जिस पर प्रेस को कई हिस्सों में कर लेने के बाद ही कब्जा दिया जाएगा. फिलहाल यह प्रक्रिया जारी है.

गुजरात समाचार के प्रोमोटर्स के करीबी सूत्रों ने कहा है कि वो प्रिंटिंग प्रेस के लिए चार करोड़ रुपए की एडवांस मनी का भुगतान कर चुके हैं और एस्सेल ग्रुप्स के "गैर जिम्मेदाराना व्यवहार" से ऊब गए हैं.

प्रोमोटर्स में से एक ने कहा, "करीब दो साल बीत चुके हैं. हमें उम्मीद है कि अगले कुछ हफ्तों में हम इस मामले का निपटारा कर देंगे."

संपादकीय नोट: एंटो टी जोसेफ ने मुंबई की लेबर कोर्ट में डीएनए के खिलाफ एक मामला दायर किया है.

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यह स्टोरी एनएल सेना सीरीज का हिस्सा है, जिसमें हमारे 75 से अधिक पाठकों ने योगदान दिया है. यह गौरव केतकर, प्रदीप दंतुलुरी, शिप्रा मेहंदरू, यश सिन्हा, सोनाली सिंह, प्रयाश महापात्र, नवीन कुमार प्रभाकर, अभिषेक सिंह, संदीप केलवाड़ी, ऐश्वर्या महेश, तुषार मैथ्यू, सतीश पगारे और एनएल सेना के अन्य सदस्यों की बदौलत संभव हो पाया है.

हमारी अगली एनएल सेना सीरीज़, अरावली की लूट में योगदान दें, औरखबरों को आज़ाद रखने में मदद करें.

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