Who Owns Your Media
आपके मीडिया का मालिक कौन? द हिंदू का 'बंटा' परिवार आय और पाठक खो रहा है
"स्टालिनिस्ट मुझे ताक़त से दबाने की कोशिश कर रहे हैं. इस बार वह कामयाब नहीं होंगे." -ट्विटर पर मालिनी पार्थसारथी, 27 मार्च 2020
लगभग दो दशकों के उतार चढ़ाव के बाद, मालिनी पार्थसारथी को आखिरकार शांति मिल गई है. या कम से कम वह ऐसा विश्वास करना चाहेंगी.
ठीक एक साल पहले, 15 जुलाई 2020 को, पार्थसारथी को निर्विवाद रूप से हिंदू ग्रुप पब्लिशिंग प्राइवेट लिमिटेड या टीएचजी पब्लिशिंग का अध्यक्ष बनाया गया था, जिसने उन्हें कंपनी को उसकी मौजूदा खस्ता हालत से बाहर ले जाने का इकबाल दिया. उनके उस समय के कट्टर प्रतिद्वंदी - अध्यक्ष और पूर्व संपादक एन राम ने 4 मई 2020 को 75 वर्ष का होने के बाद, अपना पद त्याग दिया और चेन्नई के 143 साल पुराने अखबार की लगाम आधिकारिक रूप से छोड़ दी.
मालिनी को जो विरासत में मिला वह घाटे में चल रहा एक प्रकाशन है. एक साल में, महामारी ने प्रिंट मीडिया उद्योग के लिए और बड़ी परेशानियां खड़ी कर दी हैं और उद्योग संघर्ष कर रहा है. 2011 में व्यंग के तौर पर उन्होंने जिस बाढ़ का उल्लेख किया था, वह आज दूसरी लहर के बाद और संभावित तीसरी लहर के मुहाने पर पूरे उद्योग को ही डुबा देने का खतरा पैदा कर रही है.
नवंबर 2015 में, जब द हिंदू अपने इलाके से बाहर आकर अपने एक्सक्लूसिव शहरी एडिशन के जरिए "वणक्कम मुंबई" बोला, तो उसने अप्रैल 2008 में टाइम्स ऑफ इंडिया के चेन्नई अंक के बाद से सालों से चल रहे कयासों को चुप करा दिया. यह एक जैसे-को-तैसा सरीखा जवाब था.
लेकिन भारत की आर्थिक राजधानी में अखबारों के लांच पर जो शोर और चकाचौंध आमतौर पर देखी जाती है, वह गायब थी. पिछले कुछ सालों में जैसा डीएनए और हिंदुस्तान टाइम्स के लांच के समय हुआ था, यहां पर पूरे शहर को उनके रंग में नहीं रंगा गया. एक पूर्व कर्मचारी के अनुसार, "यह एक सॉफ्ट लॉन्च जैसा था."
समूह ने प्रतिभाओं को इकट्ठा करने में काफी खर्चा किया. यह एक ऐसे अखबार के लिए ठीक भी था जिसको अपनी किसी भी कीमत पर अच्छी सामग्री, अनुदारवाद को बनाए रखने और भाषा को उच्च स्तर पर रखने की छवि पर गर्व है.
मुंबई के चर्चगेट इलाके में, कस्तूरी बिल्डिंग में एक शाम रखी गई लॉन्च पार्टी में, उस समय के अध्यक्ष एन राम काफी प्रसन्न लग रहे थे. उन्होंने इस अंक को खर्चा बराबर करने के लिए 5 साल दिये. उस समय के प्रबंध निदेशक और सीईओ राजीव लोचन कहीं ज्यादा आशावाद थे, उन्होंने इसे 3 से 4 साल का समय दिया.
द हिंदू के साथ काम करने वाले एक पूर्व वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, "मुंबई अंक पार्थसारथी के बच्चे जैसा था. संपादक होने के नाते वह लॉन्च के दौरान शहर में ही यह सुनिश्चित करने के लिए रुकीं कि हम एक प्रीमियम उत्पाद लेकर आएं." यह अंक 8 रुपए की कीमत पर लांच हुआ था जो इसे मुंबई में अपने समय के सबसे महंगे अखबारों में से एक बनाता था.
एक हस्ताक्षरित संपादक के नोट में, पार्थसारथी ने मुंबई अंक को भारत के राष्ट्रीय अखबार के रूप में द हिंदू के "ऐतिहासिक प्रारब्ध" का साकार होना बताया. सभी को लगा कि लगाम मजबूती से उनके हाथों में थी.
लेकिन एक महीने बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. द हिंदू की पहली महिला संपादक मुश्किल से 11 महीने नेतृत्व में रह पाईं. उनके जाने के कोई आधिकारिक कारण नहीं बताए गए थे लेकिन फुसफुसाहटें ज़ोरों पर थीं. द हिंदू की मालिक कंपनी कस्तूरी एंड संस के बोर्ड के कुछ निदेशक, उनके द्वारा खासतौर पर मुंबई अंक पर किए जाने वाले अत्यधिक खर्चे और उनके प्रदर्शन पर नाराज़ थे.
कर्मचारियों को लिखे गए अपने ईमेल में पार्थसारथी ने कहा कि संपादक के तौर पर उनके प्रदर्शन पर मिले फीडबैक को देखते हुए वह इस्तीफा देने को मजबूर थीं.
एक अंदर के सूत्र ने कहा कि बोर्ड उनके रवैये को लेकर चिंतित था, जिसकी वजह से कई संपादक अखबार छोड़ कर चले गए थे. इनमें विचार और खास कहानियों के संपादक राहुल पंडिता, वरिष्ठ संपादक पी साईनाथ और राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ प्रवीण स्वामी थे. अपने त्यागपत्र में राहुल पंडिता ने पार्थसारथी पर मनमाने निर्णय लेने का आरोप लगाया और यह भी कहा कि वे बदलते हुए लक्ष्यों से थक चुके थे.
उन्होंने लिखा, "मैं हर घंटे आपसे परामर्श लेने और लेख इस आधार पर चुनने की प्रक्रिया, कि आपको कवरिंग लेटर में "मालिनी" कहकर संबोधित किया गया है या "मैम", में ही फंसा रहता हूं. … रविवार के अंक की धुरी पत्रकारिता आधारित होगी, और फिर वह अचानक इस आधार पर कि आपने क्या सुना या जिस से प्रभावित हुईं, उसे फिर से पत्रकारिता आधारित बनाना होगा."
अपने इस्तीफे के समय पार्थसारथी बोर्ड में एक पूर्णकालिक निदेशक भी थीं और एक सह अध्यक्ष की भूमिका भी अदा करती थीं. 4 साल बाद जुलाई 2020 में अध्यक्ष के रूप में उनकी उन्नति, उत्तराधिकार की योजना की एक साधारण प्रक्रिया का हिस्सा थी.
बोर्ड के द्वारा यह कदम एक सफाई अभियान के बाद उठाया गया था. 25 अप्रैल 2020 को सीईओ एलवी नवनीथ के एक हस्तलिखित पर्चे में बताया गया कि हर कर्मचारी अपनी तनख्वाह में 8 से 25 प्रतिशत की कटौती देखेगा, जिनमें 35 लाख रुपए प्रतिवर्ष से अधिक कमाने वाले वरिष्ठ लोग सबसे बड़ी कटौती देखेंगे. भारत में यही नई सामान्य स्थिति थी जब महामारी से बचने के लिए देश में पूर्ण लॉकडाउन लगा दिया गया था. इसने बिहार के तौर पर व्यापारियों की कमर तोड़ दी थी. नवनीत ने कहा कि इस परिस्थिति ने हिंदू के ऊपर एक बड़ा आर्थिक बोझ डाल दिया.
इसके तुरंत बाद बड़ी संख्या में लोगों को निकाला गया. सभी ब्यूरों में लोगों को निकाला गया जिनमें करीब 79 महत्वपूर्ण नौकरियां भी गईं.
लेकिन सबसे बड़ा धक्का मुंबई में लगा. भारत की आर्थिक राजधानी का साढ़े 4 साल पुराना अंक बिना किसी नोटिस के बंद कर दिया गया, जिसमें 2 दर्जन से अधिक पत्रकार और इसके साथ सहायक स्टाफ बेरोज़गार हो गए. इस अकस्मात निर्णय ने कंपनी को बड़ी मात्रा में ग्रेजुएटी के भुगतान करने से बचा लिया क्योंकि कई लोग उसके योग्य बनने की समय सीमा 4 साल और 240 दिन से कुछ ही दिन कम रह गए, जो उन्हें एकमुश्त रकम का हकदार बना देती. वहीं एक पत्रकार तो केवल एक दिन से कम रह गए.
कुछ ही समय बाद 15 जुलाई को टीएचजी पब्लिशिंग के निदेशक बोर्ड ने पार्थसारथी को "निर्विवाद रूप से" अध्यक्ष बना दिया.
मुंबई अंक के बंद होने से, समूह का देश के सबसे बड़े अंग्रेजी अखबार के बाजार में अपनी जगह बनाने व अपने को एक देशव्यापी अखबार बनाने का सपना चकनाचूर हो गया. उसके विज्ञापनों की दर बढ़ाने और अधिक फैलाव के जरिए और विज्ञापनदाता लाने, और साथ ही साथ मुंबई में अपने पारंपरिक पाठकों को आधार बनाकर और प्रगति करने की सभी योजनाएं धराशाई हो गईं.
उसने बस अपनी जेब में एक 100 करोड रुपए का छेद हासिल किया.
जब यह दक्षिणी योद्धा बुरी तरह घायल होकर अपने घर लौटा, उसको अपने मुंबई के रोमांच की गलतियों का एहसास हुआ.
द हिंदू का 'बंटा' परिवार
चेन्नई की माउंट रोड पर कस्तूरी बिल्डिंग में स्थित ग्रुप का हेडक्वार्टर, अंग्रेजों से पहले के ज़माने के किसी राजवंश जैसा लगता था जिसमें परिवार के अंदर ही अलग-अलग धड़ों में चिरस्थाई कलह चलती रहती थी. कलह, दूसरों को धौंसियाना और कीचड़ उछालना आम बात थी. एक धड़े ने अपने विरोधी पर द हिंदू को एक "बनाना रिपब्लिक" की तरह चलाने का आरोप लगाया था. उसके जवाब में उन्हें "सत्ता का भूखा" कहा गया. एक पूर्व संपादक ने बताया कि आपको प्रबंधन में हर तरह के लोग मिल सकते थे. बुद्धिजीवी, दिखावटी, धमकाने वाले, अधीर, वामपंथ की तरफ झुकाव रखने वाले या परस्पर विरोधी.
परिवार बोर्ड रूम में नियमित तौर पर झगड़ते थे और उनकी तू-तू मैं-मैं अमूमन बाहर आ जाती थी, वे अपने अंदरूनी झगड़े कई बार खुलेआम ही करते थे.
वरिष्ठ संपादक जो अखबार के मुख्यालय में कुछ महीने से ज्यादा नहीं रह पाए, कहते हैं, "वह एक अलग ही प्रकार की लड़ाई का मैदान है, जहां वरिष्ठ लोग ही अपने-अपने गुट चला रहे हैं."
एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ने इसे एक "सुषुप्त ज्वालामुखी" बताया जो "कभी भी फट सकता है". कंपनी को जो चला रहा है वह "शांति का एक आभास" है.
द हिंदू का मालिकाना हक, कस्तूरी रंगा अयंगर के पूरे परिवार में बंटा हुआ है, उन्हें ही 1905 में एक लड़खड़ाते हुए अखबार को खरीदने और उसकी कायापलट करने का श्रेय दिया जाता है. उनके वंशज ही इस पब्लिशिंग कंपनी के पूरी तरह मालिक हैं. उनके चार पोतों, जी नरसिम्हन, जी कस्तूरी, एस पार्थसारथी और एस रंगराजन के चार-चार बच्चे हुए, जिससे यह परिवार 16 लोगों का हो जाता है.
कंपनी के स्वामित्व का ढांचा भारत की दूसरी बिना लिस्ट हुई मीडिया कंपनियों जितना जटिल नहीं लगता. अखबार को टीएचजी पब्लिशिंग प्रकाशित करती है जिसमें से आधे से थोड़ा अधिक, 52.04 प्रतिशत कस्तूरी एंड संस लिमिटेड (केएसएल) नाम की होल्डिंग कंपनी के पास है. बचा हुआ 47.96 प्रतिशत विस्तृत परिवार के लगभग चार दर्जन शेयर रखने वालों में बंटा हुआ है. इसी तरह, होल्डिंग कंपनी केएसएल का स्वामित्व भी इन्हीं परिवारों में बंटा हुआ है जिसमें हर किसी के पास लगभग 22-26 प्रतिशत का हक है, यह कंपनी पूरी तरह से इस परिवार की है.
टीएचजी पब्लिशिंग सितंबर 2017 में अस्तित्व में आई, जब ग्रुप ने केएसएल के प्रकाशन के व्यापार को बांटकर एक अलग इकाई बनाने का निर्णय लिया. सारे अखबारों, मैगज़ीनों और डिजिटल समाचार प्रकाशनों को टीएचजी पब्लिशिंग का हिस्सा बना दिया गया जबकि बाकी सारे धंधे, खासतौर पर रियल एस्टेट का धंधा केएसएल के हिस्से में गया. यह कंपनी देश भर के शहरों में सबसे अच्छे इलाकों में प्रॉपर्टी रखती थी.
इस प्रक्रिया के बाद भी, केएसएल चार सहायक कंपनियों की होल्डिंग कंपनी बनी रही. टीएचजी पब्लिशिंग (जो द हिंदू बिजनेस लाइन फ्रंटलाइन और स्पोर्ट्स स्टार को प्रकाशित करती है), केएसएल मीडिया (जो तमिल दैनिक हिंदू तमिल थिसाई चलाता है), केएसएल डिजिटल वेंचर्स (जो प्रॉपर्टी वेबसाइट roofandfloor.com को होस्ट करता है) और स्पोटिंग पासटाइम इंडिया, जो रिज़ॉर्ट व्यापार को शुरू करने और चेन्नई में एक गोल्फ कोर्स खड़ा करने के लिए बनाई गई है.
ग्रुप में कईयों का मानना है कि 2017 में हुए इस बंटवारे ने परिवार में कई अतिरिक्त सत्ता के केंद्र बना दिए. जहां एक तरफ एन मुरली को अध्यक्ष और मालिनी पार्थसारथी को टीएचजी पब्लिशिंग का सह-अध्यक्ष बनाया गया, वहीं एन रवि को द हिंदू और समूह के बाकी प्रकाशनों के प्रकाशक की जगह पर नियुक्त किया गया.
2017 में हुए इस फेरबदल से ऐसा आभास हुआ कि इससे आपस में टकराते हुए इन गुटों के बीच आखिरकार सुलह हो गई है.
लेकिन अतीत अक्सर ही ग्रुप के सामने मुंह बाए खड़ा हो जाता है.
लगभग एक दशक पहले अप्रैल 2011 में संस्थापकों में से एक एन रवि के द्वारा कर्मचारियों को भेजे गया एक ईमेल आज भी द हिंदू के अंदर बातें शुरू करवा देती है. रवि ने अपने भाई राम की एक संपादक के तौर पर भूमिका पर, उस समय हटाए जा चुके दूरसंचार मंत्री ए राजा के पहले पन्ने पर छपे इंटरव्यू और उसके बाद दूरसंचार मंत्रालय से मिले हुए एक पूरे पन्ने के विज्ञापन, को लेकर सवाल उठाया था. उन्होंने राम पर राजनीतिक तरफदारी और एक विशेष वाम समर्थक और चीन समर्थक पूर्वाग्रह होने का आरोप लगाया था. उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि अखबार राजनीतिक रूप से संवेदनशील श्रीलंका के तमिल मुद्दे पर अपनी राय रखने से बचता था.
द हिंदू को हिलाने वाली एक और बड़ी घटना अक्टूबर 2013 में सिद्धार्थ वर्धराजन के जाने पर हुई. वर्धराजन दशकों में अखबार के पहले संपादक थे जो कस्तूरी परिवार से नहीं आते थे, को बाहर कर दिया गया जब संस्थापकों ने उसे बाहर से पेशेवर लोगों को लाने के निर्णय के दो साल के बाद ही, फिर से उसे एक परिवार के स्वामित्व वाले व्यापार में वापस बदलने का निर्णय लिया.
एक पूर्व कर्मचारी का कहना है, "पिछले कुछ सालों के दौरान, ऐसा लगता है कि राम ने अपने दो भाइयों रवि और मुरली के साथ समझौता कर लिया है. यह देखते हुए कि केएसएल के बोर्ड में इतने सारे परिवार के सदस्य आपस में झगड़ते हुए गुटों का प्रतिनिधित्व करते हुए मौजूद हैं, शांति केवल एक दृष्टिभ्रम है."
अंदर के कुछ लोगों का दावा है, कि कस्तूरी परिवार की नई पीढ़ी शायद इस नुकसान में रहने वाले और राजनीतिक रूप से संवेदनशील प्रकाशन व्यापार को चलाने में ज्यादा रुचि न रखे.
पार्थसारथी बनाम राम
अध्यक्ष बनाए जाने पर, पार्थसारथी ने सबको राम के द्वारा दी गई एक पुराने विचार की नई रूपरेखा याद दिलाई. उन्होंने एक वक्तव्य में कहा, "संपादकीय और व्यापार के बीच "एक दीवार" को "एक दीवार नहीं, एक लकीर" में बदलने के उनके (राम के) विचार, एक विचार जिसने दोनों तरफ की महत्वाकांक्षाओं को सफलतापूर्वक साथ में बांधा है; और उनके द्वारा कंपनी और अखबार दोनों को लगातार उच्चतम स्तर पर बनाए रखने का अनुग्रह."
इस वक्तव्य से दो प्रमुख विचारों की गंध आती थी, संपादकीय स्वतंत्रता और व्यापारिक हित, जो आपस में मिल नहीं पाते और जिस में भारत की हर मीडिया कंपनी को बनाए रखने में मुश्किल हुई है. पार्थसारथी की तरफ से देखें तो उन्होंने सरकार से दोस्ती बनाने की कोशिश की, तब भी जब राम हर उस कदम से बचते थे जो अखबार की स्वतंत्रता में कमी लाता और एक व्यवस्था विरोधी अखबार की जगह भरने की कोशिश करते थे.
कई लोगों का मानना था कि वे दोनों, अच्छे पुलिस वाले और बुरा पुलिस वाले जैसा खेल खेल रहे थे. मीडिया उद्योग में सबको पता था कि राजनैतिक व्यवस्था के विरोध से, सरकार से मिलने वाले विज्ञापनों की आमदनी पर बहुत बुरा असर पड़ता था.
17 जुलाई 2019 को पार्थसारथी प्रधानमंत्री से मिलीं. उन्होंने ट्वीट किया, "आभारी हूं कि उन्होंने (मोदी) देश को आगे ले जाने की अपनी दृष्टि की कुछ गहरी बातें साझा कीं."
अंदर के कुछ लोग ऐसा मानते हैं, "कई ऐसी कहानियां छापने के बाद जिससे व्यवस्था को दिक्कत हुई", "ताकतवर लोगों को खुश करने" के कई गंभीर संपादकीय प्रयास हुए थे.
मार्च 2020 में प्रधानमंत्री मोदी ने टीएचजी पब्लिकेशंस को स्वामी विवेकानंद के जीवन और विचारों के एक संकलन द मोंक हू टुक इंडिया टू द वर्ल्ड को निकालने के लिए मुबारकबाद दी.
अपने पाठकों को नाराज करने की कीमत पर भी जैसे-जैसे पार्थसारथी बमुश्किल कुछ पुल बनातीं, राम अपने ही विशिष्ट अंदाज में उन्हें गिराते जाते. राम के द्वारा दिए गए वक्तव्य पर एक सरसरी नजर बता देती है कि वह पार्थसारथी के प्रयासों को कमजोर करते हुए सरकार के मुखर आलोचक रहे हैं.
29 जुलाई 2020 को दिए गए एक साक्षात्कार में राम ने कहा कि राफेल सौदे पर खोजी रिपोर्टों की एक सीरीज़ छापने के बाद द हिंदू को विज्ञापनों की तरफ से एक बड़ा झटका झेलना पड़ा. (उनमें से कई कहानियां खुद उन्होंने की थीं) उन्होंने कहा कि पिछली कांग्रेस सरकार भी उनके ऊपर दयावान नहीं थी जब अखबार ने सालों पहले बोफोर्स कांड पर कई लेखों की एक सीरीज़ छापी थी.
उन्होंने उस इंटरव्यू में कहा, "अच्छे दिनों में हमारी 75 से 80 प्रतिशत कमाई विज्ञापनों से आती थी. यह महामारी में बहुत तेजी से नीचे आ रही है. मुझे याद है बोफोर्स के दौरान, उस समय कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को द हिंदू में विज्ञापन देने से मना कर दिया था और सरकारी विज्ञापन या तो बंद हो गए थे, या बड़े स्तर पर कम हो गए थे. हम कहते थे कि इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन उस समय वह कुल जमा का केवल 10 प्रतिशत था, अब वह विज्ञापन का एक बहुत बड़ा स्रोत है. कुछ अपवादों को छोड़ दें तो, राफेल के बाद सरकारी विज्ञापन हमारी तरफ नहीं आए हैं. राज्य सरकारें भी अब काफी असहिष्णु हो गई हैं. वे अपने विज्ञापनों के बदले में आपका समर्थन चाहती हैं." इसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि वह झुकने वाले नहीं हैं.
राम ने भारत के संवैधानिक संस्था के गलत इस्तेमाल पर भी चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि कुछ चुने हुए फैसलों को छोड़कर उच्चतम न्यायालय घटनाक्रम भी बहुत हताशाजनक था. इसी तरह, उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग के निर्णयों को लेकर भी डर था.
राम का सरकार के खिलाफ खुलकर चुनौती देना ही पार्थसारथी की जिंदगी मुश्किल करता है. फरवरी 2021 में राम ने वो कहां जो मीडिया के मालिक कहने से चिढ़ते हैं. उन्होंने मीडिया के एक बड़े हिस्से पर सरकार और "हिंदू राष्ट्र विचारधारा" के प्रचार विभाग की तरह काम करने का आरोप लगाया.
अगस्त 2020 में उन्होंने अस्पष्ट कारणों पर आधारित आपराधिक मानहानि के दावे की इजाजत देने वाले कानून के खिलाफ उच्चतम अदालत जाने के लिए अरुण शौरी और प्रशांत भूषण के साथ हाथ मिलाया था. इन तीनों ने दावा किया था कि मानहानि का यह कानून असंवैधानिक था और उसकी जड़े साम्राज्यवाद में थीं.
टाइम्स ऑफ इंडिया का उदय
2008 में जब टाइम्स ऑफ इंडिया की सेना भरतनाट्यम की धरती पर उतरी, तो वह अक्षरश: उनके लिए देश में आखरी मोर्चा था. यह सत्य है कि पुरानी संस्कृति और आधुनिकता को आसानी से साथ लेकर चलने वाले इस तिलिस्मी शहर में उनकी उन्नति आसान नहीं थी. बाकी बाजारों की तरह ही, यहां भी गला काट विपणन और वितरण की नीतियों ने टाइम्स ऑफ इंडिया को धीमे-धीमे पर लगातार रूप से तमिलनाडु में अपना आधार बनाने में मदद की.
2020 में, जब तक द हिंदु मुंबई से चोट खाए वापस चेन्नई पहुंचा, तब तक टाइम्स ऑफ इंडिया उसकी जगह ले चुका था. कोविड से पहले के दिनों में द हिंदू पाठकों और वितरण की घटती संख्या के साथ-साथ गिरती हुई विज्ञापनों से आमदनी, दोनों ही मुसीबत को झेल रहा था. चेन्नई में, 2019 की दिसंबर वाली तिमाही में टाइम्स ऑफ इंडिया के एक अंक को पढ़ने वालों की औसत संख्या, पहली तिमाही में 2.6 लाख से बढ़कर 2.96 लाख पहुंच गई थी. वहीं द हिंदू के एक अंक को पढ़ने वालों की औसत संख्या 2019 की पहली तिमाही में 2.6 लाख से घटकर दिसंबर तिमाही में 2.5 लाख पर आ गई थी. 2020 में महामारी और आर्थिक मंदी के बढ़ने से यह सभी आंकड़े तेजी से नीचे गिर गए.
द हिंदू के लिए इससे भी बुरा यह है कि वह अखबार जो दशकों तक अपने कर्मचारियों की नजर में सम्मान रखता था, उसने उसे लगातार कम होते देखा है. इसका साफ उदाहरण, मुंबई में स्टाफ के द्वारा निकाले जाने पर, वेतन बोर्ड के नियमों के अनुसार न्यायोचित भुगतान करने की मांग करता हुआ भेजा गया कानूनी नोटिस है.
एक कर्मचारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "ग्रुप के 2017 में बंटने के बाद हमें नया कॉन्ट्रैक्ट साइन करने के लिए कहा गया था. हमें यह पता ही नहीं चला कि उन्होंने छोड़ते समय के नियम कंपनी के फायदे के लिए बदल लिए थे."
पार्थसारथी के सामने कई प्रकार की चुनौतियां हैं क्योंकि ग्रुप इस समय अपने आप को गिरती हुई आमदनी और घटते हुए पाठकों के बीच में फंसा पाता है.
सबसे ताजा रेगुलेटरी फाइलिंग के अनुसार, अकेली टीएचजी पब्लिशिंग ने साल 2019-20 के अंदर 43.6 करोड़ रुपए का घाटा रिपोर्ट किया जो कि उससे पिछले साल के 129 करोड़ रुपए से बेहतर था. साल 2019-20 में उसकी कुल घोषित आय 859 करोड़ रुपए थी, जोकि पिछले साल की घोषित आय 1,016 करोड रुपए से कम थी. कंपनी का निवेश पर रिटर्न -26.43 प्रतिशत पर था, वहीं लगी हुई पूंजी पर रिटर्न -9.42 प्रतिशत पर था. महामारी और उसकी वजह से लगे लॉकडाउन ने विज्ञापन से आने वाली आमदनी को 2020-21 में बुरी तरह से हानि पहुंचाई है और कई अंदर के लोगों को लगता है कि ग्रुप 2020-21 में कहीं बड़े घाटे की तरफ बढ़ रहा है. यह आंकड़े अभी आम तौर पर जारी नहीं किए गए हैं.
कम विकल्पों के साथ, पार्थसारथी सधे हुए तरीके से चलाने की कोशिश कर रही हैं. 16 अप्रैल 2021 को आउटलुक के पूर्व एडिटर इन चीफ कृष्णा प्रसाद ने समूह के संपादकीय अफसर का दायित्व लिया. कंपनी ने कहा कि, प्रसाद हिंदू ग्रुप के सभी प्रकाशनों के बीच छपने वाली सामग्री का समन्वय कर, अलग-अलग छपने वाले और डिजिटल प्रकाशनों का नेतृत्व कर ऊर्जा का संचार करेंगे.
एक सूत्र ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, “सरकार के द्वारा दिए गए विज्ञापनों की बदौलत समूह ने पिछले कुछ महीनों में अच्छा प्रदर्शन किया है. गूगल के साथ 8 करोड़ रुपए सालाना की डील ने डिजिटल माध्यम से भी उनकी आय को बढ़ा दिया है.”
क्या पार्थसारथी परिस्थितियों को बदल कर अखबार को इस आर्थिक जंजाल से निकाल पाएंगी? क्या माउंट रोड का महाविष्णु एक विशेषण जो अखबार ने अपने पाखंडी संपादकीय और टिप्पणियों की वजह से अर्जित किया है वह बाकियों से ऊपर उठ पाएगा?
इसका अभी के लिए कोई आसान जवाब नहीं है.
ग्राफिक्स- गोबिंद वीबी
***
यह स्टोरी एनएल सेना सीरीज का हिस्सा है, जिसमें हमारे 75 से अधिक पाठकों ने योगदान दिया है. यह गौरव केतकर, प्रदीप दंतुलुरी, शिप्रा मेहंदरू, यश सिन्हा, सोनाली सिंह, प्रयाश महापात्र, नवीन कुमार प्रभाकर, अभिषेक सिंह, संदीप केलवाड़ी, ऐश्वर्या महेश, तुषार मैथ्यू, सतीश पगारे और एनएल सेना के अन्य सदस्यों की बदौलत संभव हो पाया है.
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