Report

कौन हैं जसपाल सिंह हेरां जिनका पेगासस मामले में आया नाम?

पेगासस जासूसी मामले में जिन पत्रकारों को टारगेट किया जा रहा था उनकी फेहरिस्त लंबी है. इस सूची में दिल्ली सहित कई अन्य प्रदेशों के पत्रकारों के नाम भी शामिल हैं. ऐसा ही एक नाम “रोज़ाना पहरेदार” अखबार के एडिटर-इन-चीफ 64 वर्षीय जसपाल सिंह हेरां का नाम भी है. जसपाल कई सालों से आरएसएस और बीजेपी के खिलाफ आवाज़ उठाते रहे हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री ने जसपाल सिंह हेरां से बात की. वह कहते हैं, "मुझे द वायर की रिपोर्ट पढ़कर पता चला. मुझे बताया गया कि मेरे फोन नंबर की जासूसी की जा रही है और मेरा फोन हैक किया गया. फिर रात को एनडीटीवी पर खबर भी चली थी. तब मुझे समझ आया कि मुझ पर निगरानी रखी जा रही थी."

जसपाल सिंह हेरां को इस बात कि भनक थी कि उनके काम पर नज़र रखी जा रही है लेकिन कोई विदेशी कंपनी ऐसा कर रही होंगी ऐसा उन्होंने कभी नहीं सोचा था. जसपाल बताते हैं, "मुझे एहसास था कि सरकार मुझ पर नज़र रख रही है. मुझे लगा था राज्य सरकार से मेरे विरोध के चलते पुलिस या छोटी-मोटी कोई एजेंसी मुझ पर निगरानी रखती है. लेकिन इतनी बड़ी एजेंसी मेरी जासूसी करेगी ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ."

बता दें कि 'पेगासस प्रोजेक्ट' के अंतर्गत द वायर, ल मोंद, द गार्जियन, वाशिंगटन पोस्ट, सुडडोईच ज़ाईटुंग और 10 अन्य मैक्सिकन, अरब और यूरोपीय समाचार संगठनों ने 18 जुलाई रविवार को एक सूची जारी की. द वायर की रिपोर्ट की मानें तो लीक डेटाबेस के अनुसार एनएसओ द्वारा करीब 300 भारतीय वेरिफाइड नम्बरों की निगरानी की गई हो सकती है. जिनमे मंत्रियों, विपक्षी दल के नेता, पत्रकारों, कानूनी समुदाय, उद्योपतियों, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, कार्यकर्ताओं आदि के नाम शामिल हैं. रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि साल 2017 से 2019 के बीच भारत में 40 से अधिक पत्रकारों की संभवतः जासूसी की जा रही थी.

क्यों रखी गई निगरानी?

जसपाल सिंह का मानना है कि साल 2017 से 2019 के बीच उनके अख़बार में कई ऐसी खबरें प्रकाशित की गईं जिसके चलते संभव है कि उनपर निगरानी की गई होगी. वह कहते हैं, "साल 2018 में मैं बरगाड़ी मोर्चे के बारे में मुखर होकर लिखता था. मैं मोर्चे पर आता-जाता रहता था. हो सकता है यही वजह रही हो कि मेरी जासूसी कराई गई."

क्या था बरगाड़ी मामला

बरगाड़ी मामला 2015 का है. 12 अक्टूबर 2015 की सुबह फरीदकोट के बरगाड़ी के एक गुरुद्वारे में गुरु ग्रन्थ साहिब के 110 पन्ने ज़मीन पर बिखरे पड़े मिले. जिसके बाद स्थानीय लोगों ने 'बंद' का एलान कर दिया. इसके बाद 13 और 16 अक्टूबर 2015 के बीच पंजाब में विभिन्न स्थानों से ऐसी खबरें सामने आने लगीं. फिरोजपुर जिले के मिश्रीवाला गांव में गुरु ग्रंथ साहिब के 35 पन्ने फटे मिले. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के एक सदस्य जब जानकारी लेने गांव गए तो ग्रामीणों ने उसकी कार में तोड़फोड़ कर दी. संगरूर ज़िले में भी गुरु ग्रन्थ साहिब के पन्ने फटे मिले. उस समय प्रकाश सिंह बादल पंजाब के मुख्यमंत्री थे. 2015 में विरोध के दौरान पुलिस फायरिंग में दो लोगों की जान भी चली गई थी. 2018 में 'बरगाड़ी मोर्चे' ने विभिन्न जेलों में बंद सिख बंदियों को रिहा करने और उन्हें पंजाब में स्थानांतरित करने की मांग के साथ धरना प्रदर्शन किया था. उस दौरान जसपाल सिंह सक्रिय होकर सरकार के खिलाफ अपने अख़बार में लिखा करते थे.

जसपाल सिंह एक और किस्सा बताते हैं जिसके कारण संभव है कि उनपर नज़र रखी गई हो. वह कहते हैं, "22 जुलाई 2018 को हमने अपने अखबार में आरएसएस को लेकर एक बड़ी स्टोरी की थी. यह स्टोरी आरएसएस के प्रचार के बारे में थी. आरएसएस के प्रचार एजेंडा की कॉपी हमारे हाथ लग गई. उसमें कई आपत्तिजनक चीज़े लिखी थीं. मेरे पास उसकी कॉपी थी जो मैंने फ्रंट पेज पर प्रकाशित की."

“रोज़ाना पहरेदार अखबार आरएसएस को लेकर कई खबरें करता रहा है जिसमें उसने 'हिन्दू-कट्टरवादी' संगठन को खुलेआम आड़े हाथों लिया. पेगासस की सूची में बहुत से बड़े पत्रकारों का नाम सामने आया है जिनकी जासूसी की जा रही थी. मेरा स्तर उनसे बहुत छोटा है. मेरी लड़ाई आरएसएस और हिन्दू राष्ट्र के उनके सपने के विरूद्ध है. 2001 सिख संघर्ष के दौरान से मुझे कई बार निशाना बनाया गया. पठानकोट में मुझ पर एक एफआईआर दर्ज है. स्टोरी प्रकाशित होने के बाद आरएसएस ने पंजाब के सभी हेडक्वार्टर में रोज़ाना पहरेदार के खिलाफ मेमोरेंडम दिया था कि उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जाए.” जसपाल सिंह ने कहा.

साल 2020 में रोज़ाना पहरेदार ने मोहन भागवत के खिलाफ भी कई स्टोरी की थीं. ये स्टोरी मोहन भागवत के हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए "नए संविधान" की बात पर की गई थीं. उस दौरान भी आरएसएस ने रोज़ाना पहरेदार के खिलाफ नोटिस जारी किया था.

कैसे हुई थी 'रोज़ाना पहरेदार' की शुरुआत

जसपाल सिंह हेरां ने लुधियाना से साल 2001 में रोज़ाना पहरेदार की शुरुआत की थी. उस समय यह साप्ताहिक पंजाबी भाषी समाचार पत्र था. साल 2006 में रोज़ाना पहरेदार रोज़ प्रकाशित होने लगा. रोज़ाना पहरेदार का हेड ऑफिस लुधियाना में स्थित है. फिलहाल समाचार पत्र रोज़ाना पहरेदार के मुख्य पाठक पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में रहते हैं. जसपाल सिंह हेरां ट्रिब्यून और इंडियन एक्सप्रेस जैसे बड़े अख़बारों के लिए काम कर चुके हैं.

उन्होंने हमसे बातचीत में रोज़ाना पहरेदार की स्थापना के पीछे की वजह बताते हुए कहा, "लुधियाना की एक यूनिवर्सिटी ने रॉयल स्टैग (एक व्हिस्की ब्रांड) का उद्धघाटन किया था. मैंने उस पर एक रिपोर्ट की थी. यह अजीत (अख़बार) में प्रकाशित हुई जो एक पंजाबी भाषा का दैनिक समाचार पत्र है. मुझे उस कहानी के लिए एक नोटिस भेजा गया. मैंने सोचा कि अगर मुझे सच बताना है, तो मेरे पास अपना खुद का अख़बार होना चाहिए."

पत्रकारों की निजी जिंदगी नहीं बची

जसपाल सिंह कहते हैं, “सरकार मीडिया की आवाज़ को कुचलना चाहती है. जैसा कि हम सुन-पढ़ रहे हैं, एनएसओ का यह सॉफ्टवेयर पेगासस फोन हैक कर लेता है. आपका निजी जीवन खत्म हो चुका है. आपके बेडरूम और बाथरूम की बातें सार्वजनिक हो रही हैं. सब पर निगरानी रखी जा रही है. हमने पंजाब जर्नलिस्ट यूनियन की तरफ से राष्ट्रपति को पत्र लिखा है. हमने डीसी को मांग पत्र भी सौंपा है. दूसरा, हम देखना चाहेंगे संसद इस मामले पर क्या निर्णय लेती है. तब तक हम इंतज़ार करेंगे. अगर सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती तो हम सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे."

फर्जी मुकदमें कराए गए दर्ज

न्यूज़लॉन्ड्री ने रोज़ाना पहरेदार के भटिंडा ज़िला संवाददाता और अख़बार की एडवाइजरी बॉडी के सदस्य अनिल वर्मा से भी बात की. वो पिछले 11 वर्षों से रोज़ाना पहरेदार से जुड़े हैं. वह कहते हैं, "जासूसी करने के पीछे दो वजहें हैं. रोज़ाना पहरेदार पंजाबी अख़बार है जो सिख मसलों और किसानी पर मुखर होकर लिखता है. दूसरा, हम बीजेपी और आरएसएस की पंजाब विरोधी गतिविधियों पर नज़र रखते हैं और उसके बारे में लिखते हैं. इसी कारण रोज़ाना पहरेदार केंद्र सरकार के निशाने पर है. चाहे बादल की सरकार हो या अमरिंदर सिंह की सरकार, दोनों ने हमारी पत्रकारिता को रोकने के लिए कई रुकावटें पैदा की हैं. इससे पहले भी बीजेपी और अकाली दल की सरकार थी. उस दौरान हम पर नाजायज मुकदमा दर्ज कराया गया. दफ्तर पर हमला किया गया. हमारे पत्रकारों पर हमला हुआ."

वह आगे कहते हैं, "आज भी हमारे पत्रकारों के येलो कार्ड (मान्यता प्राप्त पत्रकारों के लिए) नहीं बनते हैं. अमरिंदर सरकार में हमारे पत्रकारों को येलो कार्ड मिलना बंद हो गया जिसके कारण हमारे पत्रकारों को हेल्थ इंश्योरेंस जैसी सुविधा नहीं मिलती. हमें लोक संपर्क विभाग से मिलने वाली कोई सहूलियतें नहीं मिलती. हमें यह कहकर इवेंट कवर करने नहीं दिया जाता कि हम सरकार के खिलाफ लिखते हैं."

हालांकि पंजाब में रोज़ाना पहरेदार के पाठकों का मानना है कि उन्हें कई बार अख़बार की विचारधारा पक्षपाती लगती है. मोगा के रहने वाले 25 वर्षीय मोहन सिंह कहते हैं, "जसपाल सिंह हेरां अपने बेबाक बोल के लिए पंजाब में जाने जाते हैं. वो अपने संपादकीय में खुलकर बीजेपी और आरएसएस की आलोचना करते हैं लेकिन उनके अख़बार में प्रकाशित खबरों में एक पक्ष गायब रहता है."

Also Read: न्यूज़ पोटली 75: कोरोनावायरस, पेगासस, बगदाद में आत्मघाती हमला, किसान संसद और मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हालत नाजुक

Also Read: दैनिक भास्कर: ‘रेड कर रहे अधिकारियों ने कहा, हमें दिखाकर ही कुछ पब्लिश करें’