Report
बाबा रामदेव के पतंजलि विश्वविद्यालय पर जबरन ज़मीन कब्जाने का आरोप
बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की संस्था पर अवैध अतिक्रमण का आरोप लग रहा है. यह आरोप गीतांजलि रेजीडेंसी के निवासियों ने लगाया है. उनका कहना है कि पतंजलि विश्वविद्यालय की आड़ में उनके मकानों को ज़बरदस्ती हटाया जा रहा है. जिन लोगों ने अपने मकान पतंजलि को बेचने से मना कर दिए, उनके लिए कई तरह की मुश्किलें खड़ी की जा रही हैं. उनके मकानों का बिजली-पानी काट दिया गया है.
क्या है पूरा मामला?
दिल्ली-हरिद्वार नेशनल हाईवे पर बहदरबाद के पास गीतांजलि रेजीडेंसी नाम की एक कॉलोनी है. इसे देहरादून के संजय घई, सुरेंदर घई और सुभाष घई की कम्पनी आकाशगंगा डेवलपर्स ने साल 2001 में विकसित किया था. इस कॉलोनी की दीवार पतंजलि योगपीठ से बिल्कुल सटी हुई थी. एक समय में गीतांजली सोसाइटी के रहवासी इसे अपनी पहचान के तौर पर देखते थे लेकिन अब यही पतंजलि योगपीठ इनके लिए दुस्वप्न बन चुकी है. इस सोसायटी में 200 हज़ार वर्ग गज के इलाके में करीब 150 मकान, पार्क, मंदिर, क्लब हाउस, पक्की सड़कें और पेड़ इत्यादि लगाए गए थे.
साल 2016 तक 18 मकान बिक चुके थे. उसी साल दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट और आकाशगंगा डेवलपर्स के बीच सौदा हुआ जिसमें आकाशगंगा डेवलपर्स ने बची ज़मीन और सभी सुविधाएं जैसे क्लब, मंदिर, पूल इत्यादि का क्षेत्र दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट को 13 करोड़ में बेच दिया. न्यूज़लॉन्ड्री को मिले दस्तावेज़ के अनुसार बिल्डर ने बिना रेजिडेंशियल क्षेत्र को कमर्शियल क्षेत्र में परिवर्तित किये ज़मीन का सौदा किया था. इस सौदे में लिखा गया था, "आवासीय कम्पाउंड क्षेत्र में पूर्व में बेचे गए 18 मकानों के लिए रास्ता, बिजली और पानी की व्यवस्था यथावत रहेगी." लेकिन साल 2017 में पतंजलि विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य शुरू होते ही सभी मकानों की बिजली- पानी काट दी गई.
निवासियों को बिना बताए किया गया था सौदा
दिल्ली निवासी नवीन सेठी ने साल 2007 में 50 लाख में अपना मकान सुरेंदर घई के ज़रिए खरीदा था. जिसकी रजिस्ट्री साल 2009 में कराई गई. यह मकान नवीन की मां 74 वर्षीय सतीश सेठी के नाम दर्ज है. साल 2016 में नवीन जब अपना मकान देखने पहुंचे तब उन्होंने देखा कि वहां पतंजलि की टीम मकानों का निरीक्षण कर रही है. पूछने पर पता चला कि बिल्डर ज़मीन बेचकर चला गया है. नवीन व अन्य निवासियों ने बिल्डर से बात करने की कई कोशिशें कीं लेकिन बिल्डर लापता हो गया.
नवीन कहते हैं, "हमने मकान इसलिए खरीदा था कि माताजी एवं बाबूजी अपने रिटायरमेंट के बाद अपना जीवन हरिदवार में गुजार सकें. इसके लिए पिताजी ने अपने जीवन भर की रिटायरमेंट की सारी पूंजी इस कॉटेज को खरीदने में लगा दी. वहां रहकर सोसायटी के पार्क, क्लब, पूल जैसी सुविधाओं का आनंद उठा सके.
पैसा भी उसी हिसाब से दिया था. लेकिन हमें मिलने वाली सभी सुविधाएं पतंजलि को बेच दी गईं. बिल्डर ने हमारे साथ धोखाधड़ी की और रातो रात वहां के निवासियों को जानकारी दिए बिना ही पूरी सोसायटी पतंजलि को बेच दी और फ़रार हो गया. यह साफ़ तौर पर 420 का मामला है." निवासियों का आरोप है कि पतंजलि विश्वविद्यालय की एवज में उनके मकानों की स्थिति खण्डहर में परिवर्तित कर दी गई.
न्यूज़लॉन्ड्री ने बिल्डर व कॉन्ट्रैक्टर सुरेंदर घई से बात की. उन्होंने बताया, "यह मामला बहुत पुराना है. अब कम्पनी को बंद हुए 10 साल से अधिक हो गए हैं. हम सब बिल्डर अलग हो गए हैं. हमारा इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है."
बचे 18 मकानों को खरीदने के लिए की 'ज़बरदस्ती'
आरोप है कि साल 2017 में जब विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य शुरू हुआ, सभी मकानों की बिजली और पानी काट दी गई और धीरे- धीरे मकानों के सामने की सडकों की खुदाई चालू कर दी. मकानों के अंदर घुसने का रास्ता बंद हो गया. ज़बरदस्ती की गई. ऐसे में कई लोग पतंजलि को मकान बेचकर चले गए.
इसके बाद 18 में से 11 लोगों ने कम कीमतों पर मकान बेच दिए. लेकिन सात मकानों के मालिक पिछले पांच सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं. ये मकान सतीश सेठी, शोभा अग्रवाल, आमना बेग़म, राशि मालिक, डॉ. शेखावत खान, केशवनंद जुयाल और अनिल यादव के हैं. इन्हें कई बार आचार्य बालकृष्ण ने मीटिंग करने के लिए भी बुलाया लेकिन ये लोग मकान नहीं बेचना चाहते.
नवीन सेठी ने आरोप लगाया है कि पतंजलि के लोगों ने उन्हें धमकाया है. वह कहते हैं, "मैंने जब अपने मकान के सामने अवैध निर्माण की शिकायत की तो मुझे धमकाया गया. जब मैंने उनसे पूछा मेरे मकान के आगे दीवार का निर्माण क्यों किया जा रहा है तब उन्होंने कहा कि यह काम ऐसे ही होगा आपको जो करना है कर सकते हैं."
नवीन आगे कहते हैं, "जब यहां के निवासियों ने अपने ये मकान पतंजलि को बेचने से इन्कार कर दिया तो पंतजलि ने मकानों के आसपास के क्षेत्र का स्तर ऊंचा उठा दिया ओर सभी मकानों को करीब पांच फीट गड्ढे में दबा दिया गया. ये सब कार्य लॉकडाउन के दौरान किया गया. निवासी पिछले साल लॉकडाउन में अपने घरों को देखने जा नहीं सके और पतंजलि ने इस तरह से सभी घरों पर कब्जा जमा लिया. हमने डीएम, एसडीएम और सरकार से कई बार शिकायत की है. लेकिन कोई भी इस पर ध्यान नहीं देता."
वहीं एक और निवासी अनिल यादव ने आरोप लगाया, "हम कई बार बिजली विभाग में गए कि हमारी बिजली लौटा दें. लेकिन हर बार हमें खाली हाथ लौटा दिया जाता है. कह देते हैं कि पहले जाकर बाबा से एनओसी लेकर आओ तभी बिजली का कनेक्शन देंगे."
जांच में क्या पाया गया?
जुलाई 2020 में निरीक्षक सुलक्षणा नेगी ने स्थानीय निरीक्षण जांच में पाया कि पतंजलि योगपीठ द्वारा उक्त मकानों के चारों तरफ के रास्तों और भूमि को लगभग चार से पांच फ़ीट ऊपर उठाकर, मिट्टी का भराव कर, पक्का करने का कार्य गतिमान है. जिस कारण इन मकानों का भूमि-स्तर (ग्राउंड-लेवल) नीचे हो गया है. मकानों के मेन गेट, खिड़कियां व दरवाज़े दीवार से आधे ढ़क चुके हैं और मकानों में रहना मुमकिन नहीं है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने एचआरडीए में असिस्टेंट इंजीनियर डीएस रावत से बात की. उन्होंने बताया, "गीतांजलि रेजीडेंसी और पतंजलि विश्वविद्यालय के बीच मामला विचाराधीन है. जमीन के मालिकाना हक को लेकर असमंजस की स्थिति है. फिलहाल परीक्षण चल रहा है. हालांकि विश्वविद्यालय द्वारा अवैध अतिक्रमण हुआ है."
न्यूज़लॉन्ड्री ने पतंजलि की तरफ से केस लड़ रहे वकील सतेंदर सैनी से भी बात की. वह कहते हैं, "यह मामला अभी अदालत में चल रहा है. कोविड के कारण सुनवाई रुकी हुई है." इसके अलावा पतंजलि ग्रुप की ओर से कोई जानकारी नहीं मिल पाई है.
इस मामले में न्यूज़लॉन्ड्री ने पतंजलि योगपीठ के सीईओ और बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण से बात करने की कोशिश की. लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका. इसके बाद हमने उन्हें कुछ सवाल भेजे हैं. हालांकि अभी तक उनका कोई जवाब नहीं आया है. उनका जवाब आते ही इस रिपोर्ट में शामिल कर लिया जाएगा.
पतंजलि विश्वविद्यालय के नक़्शे में गीतांजलि रेजीडेंसी का ज़िक्र नहीं
विश्वविद्यालय बनाने का कार्य हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण (एचआरडीए) के तहत आता है लेकिन ये पूरा विश्वविद्यालय बिना एचआरडीए की अप्रुवल के बनाया गया. यह खुलासा एक आरटीआई से हुआ है. इस बाबत एचआरडीए ने लगभग छह करोड़ का जुर्माना पतंजलि पर लगाया. ये जुर्माना इसलिए लगाया कि उसे बिना बताए एवं बिना अप्रुवल के ये विश्वविद्यालय बनाया गया. नवीन सेठी ने पतंजलि विश्वविद्यालय का नक्शा न्यूज़लॉन्ड्री के साथ साझा किया है जिसमें पता चलता है कि पतंजलि विश्वविद्यालय के लिए जारी नक़्शे में गीतांजलि रेसीडेंसी के इन मकानों का कहीं ज़िक्र नहीं है.
"2017 में जब विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य शुरू हुआ, सभी मकानों की बिजली और पानी काट दी गई और धीरे- धीरे हमारे मकानों के सामने की सड़कों की खुदाई चालू कर दी. मकानों के अंदर घुसने का रास्ता बंद हो गया. ज़बरदस्ती की गई. ऐसे में कई लोग पतंजलि को मकान बेचकर चले गए. अब यहां सात मकान बचे हैं. सभी मकान ज़मीन में दबा दिए गए हैं." नवीन बताते हैं.
Also Read
-
Wo subah kabhi to aayegi: Forget 2026, let’s dream of a 2036
-
Bollywood after #MeToo: What changed – and what didn’t
-
Inside Mamdani’s campaign: The story of 2025’s defining election
-
TV media sinks lower as independent media offers glimmer of hope in 2025
-
How India’s Rs 34,000 crore CSR spending is distributed