Report
छत्तीसगढ़ में हैं 418 साल के सरेई बाबा
चलिए, आज मिलते हैं एक ऐसे पेड़ से, जिसकी उम्र 50 या 100 साल नहीं, बल्कि 418 साल है. यह साल का पेड़ है, जिसे स्थानीय भाषा में सरेई पेड़ भी कहा जाता है. इस पेड़ की ऊंचाई 45 मीटर है और गोलाई 450 मीटर. यह बुजुर्ग पेड़ छत्तीसगढ़ राज्य के धमतरी जिला स्थित दुगली जंगल में है.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से तक़रीबन 115 किमी दूर दुगली जंगल में कक्ष क्रमाक 255 में यह साल का पेड़ इस तरह से सैकड़ों सालों से सीना तानकर खड़ा है. पेड़ की उम्र उसकी मोटाई देखकर या नापकर तय होती है. इसके अलावा कार्बन डेटिंग से भी पेड़ की उम्र का पता चलता है. उसी प्रकार कटे हुए पेड़ का रिंग देखकर भी पेड़ की उम्र का सही पता चलता है. इस पेड़ को वनविभाग ने मदर ट्री का दर्जा दिया हुआ है. साथ ही इसे संरक्षित किया हुआ है. इस पेड़ को “सरेई बाबा” कहा जाता है.
ऐरावत मधुकर, सहायक परिक्षेत्र अधिकारी, देवगांव जो पहले दुगली परिक्षेत्र में कार्यरत थे का कहना है, “2013 में यह पेड़ जब हमारी नजर में आया तो इसे रेंज अधिकारी पीआर वर्मा ने इस विशालकाय वृक्ष को संरक्षित करने और इसे मदर ट्री का दर्जा दिया, जबकि तत्कालीन एसडीओ टीआर सोनी ने इसे “सरेई बाबा” का नाम दिया.”
उन्होंने आगे कहा, “बाद में जब हमने अंग्रेजों के समय का वर्किंग प्लान देखा तो पता चला कि तक़रीबन 200 से 250 साल पहले जब यह पेड़ 180 साल का था, तब इसे संरक्षित किया था और इसे मदर ट्री का दर्जा दिया था.”
मधुकर बताते हैं, "इस पेड़ की गोलाई 15 साल में 45 से 50 सेमी. बढ़ती है उसके बाद हर साल औसतन एक सेमी तक बढ़ता है. यहां के साल पेड़ एशिया के टॉप क्वालिटी के माने जाते हैं. यही वजह है कि अंग्रजों के समय में रेलवे की पटरी पर स्लीपर के बतौर इसका उपयोग होता था, इसलिए अंग्रेजों ने इन स्लीपरों की ढुलाई के लिए रायपुर से बोरेई तक छोटी लाइन की ट्रेन चला रहे थे. सरेई या साल पेड़ से आदिवासियों का सांस्कृतिक जुड़ाव है. यह पेड़ आदिवासियों के लिए महुआ पेड़ की ही तरह बहुत उपयोगी है.
दुगली के एक युवक सुखनंदन मरकाम ने साल पेड़ों के महत्व के बारे में जानकारी देते हुए कहा, “इसकी लकड़ी इमारती लकड़ी के रूप में उपयोग की जाती है क्योंकि यह काफी मजबूत और टिकाऊ है. इस पेड़ से निकलने वाले लासा से धूप बनाया जाता है. इसके बीज को इकट्ठा करके गांव वाले बेचते हैं. इसके तेल का उपयोग साबुन आदि चीजों में उपयोग किया जाता है.”
जंगल में कई महिलाएं साल बीज बीनते मिलीं. उनमें से एक आदिवासी महिला सुमित्रा ने कहा, “सरेई (साल) पेड़ हमारे लिए बहुत काम की चीज है. अभी हम इसके बीज 20 रुपये किलो में बेच रहे हैं, और बारिश के दिनों में इस पेड़ के नीचे जमीन के अंदर बोडा नामक मशरूम मिलता है जिसकी इस क्षेत्र में काफी मांग है. इसकी कीमत 300-400 रुपये तक होती है.”
छत्तीसगढ़ का राजकीय पेड़ साल है, जंगल विभाग ने 2018 में इस पेड़ की उम्र 415 साल बताई थी. साल पेड़ की औसतन उम्र 150 साल मानी जाती है. साल का बोटानिकल या वैज्ञानिक नाम है- शोरिया रोबोस्टा है. यह डीप्तेरोकापैसी कुल का सदस्य है.
धमतरी के नगरी क्षेत्र के जंगल साल के बड़े-बड़े और मजबूत पेड़ के लिए काफी प्रसिद्द रहे हैं.
साल के पेड़ की 9 प्रजातियां हैं
भारत के अलावा श्रीलंका और बर्मा में इस पेड़ की 9 प्रजातियां हैं. साल पेड़ हिमालय की तलहटी से लेकर 3000 फिट की उंचाई तक और असम, उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार, झारखण्ड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश आदि राज्यों के जंगलों में साल के पेड़ मिलते हैं.
(साभार- डाउन टू अर्थ)
Also Read
-
South Central Ep 2: Nayanthara vs Dhanush, Sandeep Varier, and Kasthuri’s arrest
-
Newsance 275: Maha-mess in Maharashtra, breathing in Delhi is injurious to health
-
Reporters Without Orders Ep 347: Jhansi fire tragedy, migration in Bundelkhand
-
Narayana Murthy is wrong: Indians are working too long and hard already
-
‘Sobering reminder’ for Opposition: Editorials on poll results