Ayodhya land deal
Exclusive: अयोध्या प्रशासन ने जांच में कहा बीजेपी मेयर के भांजे द्वारा ट्रस्ट को बेची गई जमीन सरकारी
अयोध्या के मेयर और भारतीय जनता पार्टी के नेता ऋषिकेश उपाध्याय के भांजे दीप नारायण ने जिस जमीन को 20 लाख रुपए में खरीद कर राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को 2.5 करोड रुपए में बेचा वो जमीन स्थानीय प्रशासन की जांच में नजूल (सरकारी) पाई गई है.
नजूल की जमीन सरकार की होती है. हर जिले में नजूल विभाग का प्रमुख जिलाधिकारी होते हैं.
शनिवार को न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था कि दीप नारायण ने इसी साल 20 फरवरी को देवेंद्र प्रसादाचार्य से गाटा संख्या 135 (890 वर्ग मीटर जमीन) महज 20 लाख रुपए में खरीद कर राम मंदिर ट्रस्ट को तीन महीने बाद 2.5 करोड़ में बेच दी. यह जमीन राम जन्मभूमि से सटी हुई है.
न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट आने के बाद न्यूज़ चैनल आज तक ने महंत देवेंद प्रसादाचार्य से बात की. जिसमें उन्होंने स्वीकार किया था कि जमीन नजूल की थी और वो लोग उसके सिर्फ कब्जादार थे. प्रसादाचार्य ने कहा, ‘‘वो नजूल की जमीन थी. हमारी निजी नहीं थी. हमारा सिर्फ कब्जा था.’’
प्रसादाचार्य आगे कहते हैं, ‘‘ट्रस्ट के लोग हमसे मिले नहीं थे. हमसे मेयर साहब (ऋषिकेश उपाध्याय) मिले थे. उन्होंने कहा कि ट्रस्ट को इसकी ज़रूरत है. हमने समझा की वे लोग ट्रस्ट के नाम से अधिकृत हैं. 30 लाख रुपए में हमने उन्हें दे दी.’’
देवेंद प्रसादाचार्य ने 30 लाख रुपए इसलिए बताए क्योंकि उन्होंने 890 वर्ग मीटर दीप नारायण को 20 लाख रुपये में और 370 वर्ग मीटर जगदीश प्रसाद नाम के शख्स को 10 लाख रुपये में बेची है. यह दोनों खरीद एक ही दिन 20 फरवरी को हुई थीं.
नजूल विभाग ने दी जिलाधिकारी को रिपोर्ट
न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट में यह भ्रष्टाचार सामने आने के बाद आयोध्या के जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने 21 जून को नजूल विभाग से गाटा संख्या 135 की जांच रिपोर्ट मांगी थी. जिलाधिकारी खुद भी राम मंदिर ट्रस्ट के पदेन सदस्य हैं.
सोमवार को पूरे दिन सीलन भरे कमरे में बैठकर नजूल के अधिकारी पुराने, जर्जर रजिस्टर खंगालते रहे. शाम चार बजे उन्होंने जिलाधिकारी अनुज कुमार और एडीएम (वित्त और राजस्व) गोरेलाल शुक्ला को अपनी रिपोर्ट भेज दी.
न्यूज़लॉन्ड्री ने वही रिपोर्ट हासिल की है जिसमें लिखा गया है- ‘‘यह जमीन नजूल सरकार की है.’’
रिपोर्ट के क्रमांक संख्या चार में नजूल के अधिकारी लिखते हैं, ‘‘तहसील की वार्षिक खतौनी वर्ष 1425 फसली में गाटा संख्या 135, 142, 129 व 201 खेवट नंबर-1 सरकार बहादुर नजूल दर्ज है तथा वर्ग 4 (स) मौरूसी काश्तकार महंत विश्वनाथ प्रसादाचार्य चेला रामकृपालचार्य, बड़ा स्थान राजकोट अयोध्या के नाम दर्ज है. उक्त खतौनी के वर्ग 4 (स) मौरूसी काश्तकार को भूमि के विक्रय का अधिकार नहीं है. खेवटदार नजूल सरकार दर्ज है जिससे स्प्ष्ट है कि उक्त भूमि नजूल सरकार की है.’’
अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक खतौनी वर्ष 1425 फसली, साल 2018 होता है.
दीप नारायण ने जिस देवेंद प्रसादाचार्य से यह जमीन खरीदी उनके गुरु महंत विश्वनाथ प्रसादाचार्य हैं. रिपोर्ट की माने तो महंत विश्वनाथ प्रसादाचार्य इसके काश्तकार तो हैं, लेकिन उन्हें इस जमीन को बेचने का अधिकार नहीं है. हालांकि इस रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि महंत विश्वनाथ के निधन के बाद इस जमीन की काश्तकारी उनके शिष्य देवेंद्र प्रसादाचार्य के पास कैसे आई.
अपनी रिपोर्ट में नजूल विभाग ने गाटा संख्या 135 का इतिहास बताया है. रिपोर्ट के मुताबिक, नजूल गाटा संख्या 135 क्षेत्रफल 0-10-19-4क तरमीमी खसरा आबादी सन 1931 में मालिक-ए-आला में महंत रघुवीर प्रसाद चेला राम मनोहर प्रसाद दर्ज है.
रिपोर्ट में आगे लिखा गया है कि नजूल के रजिस्टर नंबर 2 (सम्पति रजिस्टर) में गाटा संख्या 131 से 135 तक के नंबरान नहीं है क्योंकि ये उक्त पांचों खसरा के अनुसार मालिक-ए-आला महंत रघुवीर शरण प्रसाद चेला राम मनोहर प्रसाद का नाम दर्ज है.
इसी रिपोर्ट में एक जगह लिखा है, साल 1914 से 1933 के बीच गाटा नंबर 135 के मालिक रघुवीर शरण थे. साल 1957 से 1963 के बीच इस संपत्ति के 1380 वर्ग मीटर के मालिक गणेश प्रसाद बताये गए हैं.
गाटा संख्या 135 में कितने वर्गमीटर जमीन है इसका जिक्र नजूल विभाग द्वारा दी गई रिपोर्ट या बैनामा में नहीं दिखती है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने नजूल विभाग के अधिकारियों से इस रिपोर्ट के संदर्भ में बात की. नाम नहीं छापने की शर्त पर दो अधिकारियों ने बताया कि हमने अपनी रिपोर्ट जिलाधिकारी और एडीएम साहब को भेज दी है. वह जमीन नजूल की है. उसे बेचने का अधिकार किसी को नहीं है. अगर बिक्री हुई है तो गलत है.
‘एडीएम प्रशासन ने नजूल की संपत्ति बोलकर ही खाली कराया’
भूमि संख्या 135 के काश्तकार विश्वनाथ प्रसादाचार्य थे, लेकिन उस पर कब्जा और खेती दशरथ गद्दी के महंत बृजमोहन दास सालों से करते आ रहे थे. बृजमोहन दास के सामने आने के बाद एक और कहानी सामने आती है.
बृजमोहन दास न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘यह 10 बिस्वा जमीन नजूल की है. इस जमीन में मेरे गुरु रामआसरे दास सिग्मी काश्तकार थे. देवेंद्र प्रसादाचार्य के गुरूजी इसके काश्तकार थे, लेकिन इसकी देखभाल और इस पर खेती मैं सालों से करता आ रहा था. अप्रैल महीने में इसमें फसल लगी हुई थी तभी पांच से दस अप्रैल के बीच किसी दिन एडीएम संतोष कुमार सिंह दलबल के साथ पहुंचे. उनके साथ करीब चार दर्जन पुलिस और पीएससी के जवान थे. उन्होंने जमीन पर कब्जा करने के लिए कहा.’’
खुद को सीएम योगी के करीबी बताने वाले दास आगे कहते हैं, ‘‘मैं जब वहां पहुंचा तो मुझसे भी बेहद बदतमीजी से बात करते हुए कहा कि यह जमीन नजूल की है. इसे ट्रस्ट को दिया जा रहा है. इसकी मंदिर को ज़रूरत है. जब मंदिर का नाम आया तो मैं चुप हो गया. मेरे सामने ही एडीएम ने जमीन में खूंटा गाड़, 10 बिस्वा जमीन में से सात ट्रस्ट को कर दिया और तीन फकीरे लाल मंदिर के महंत को दे दी. अब हमें पता चल रहा है कि सात बिस्वा 20 लाख में खरीद कर 2.5 करोड़ में बेची गई. बाकी तीन बिस्वा दस लाख में बेची गई है.’’
दास के मुताबिक एडीएम अप्रैल महीने में जमीन खाली करवाने आए थे लेकिन दीप नारायण ने फरवरी महीने में ही यह जमीन अपने नाम करवा ली थी. हमने एडीएम संतोष कुमार से भी संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हुआ.
क्या आपको इस बात की जानाकरी नहीं थी कि दीप नारायण ने यह जमीन फरवरी में खरीद ली है. इस सवाल पर बृजमोहन दास कहते हैं, ‘‘नहीं. मुझे तो अब जाकर पता चला है. जिस तरह धोखे से ये लोग जमीन पर कब्जा कर रहे हैं. ये तो बाबर से भी बदतर है. इनके साथ जिला प्रशासन भी मिला है. अप्रैल में नजूल की बोलकर एडीएम ने हमसे जमीन खाली करवाई थी. उन्हें नहीं पता था कि यह जमीन बिक चुकी है.’’
बृजमोहन दास ने खुद भी अपनी कुछ ज़मीनें ट्रस्ट को बेचीं है. न्यूज़लॉन्ड्री को मिले दस्तावेज के मुताबिक 630 वर्गमीटर की एक जमीन जिसका सर्किल रेट 25 लाख 20 हज़ार रुपए था उसे दास ने ट्रस्ट को एक करोड़ 75 लाख रुपए में बेचा है. उसी दिन एक अन्य जमीन जिसका आकार 2020 वर्गमीटर है, उसे भी ट्रस्ट को बेचा गया. इस जमीन का सर्किल रेट 92 लाख 50 हज़ार रुपए है, लेकिन ट्रस्ट ने इसे पांच करोड़ 60 लाख रुपए में खरीदा.
यानी बृजमोहन दास की दोनों जमीनों का कुल मिलाकर सर्किल रेट था एक करोड़ 17 लाख रुपए. राम मंदिर ट्रस्ट ने उन दोनों ज़मीनों को कुल 7 करोड़ 35 लाख रुपए में खरीदा. इन दोनों जमीनों की बिक्री 24 मई को हुई. इन दोनों की खरीद में एक बार फिर से बतौर गवाह ट्रस्ट के सदस्य अनिल कुमार मिश्रा का नाम दर्ज है.
जिलाधिकारी ने क्या कहा...
न्यूज़लॉन्ड्री ने जिलाधिकारी अनुज कुमार झा से जानने की कोशिश की कि यह जमीन नजूल की है, अब आप क्या कार्रवाई करेंगे. झा ने कहा, ‘‘अभी हमारे पास कोई शिकायत नहीं आई है. अगर कोई शिकायत आएगी तब हम कार्रवाई करेंगे.’’
दरअसल डीएम न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए नजूल विभाग द्वारा दी रिपोर्ट के उस हिस्से का जिक्र करते हैं, जिसमें बताया गया है कि 1931 में यह जमीन मालिक ए आला दर्ज है और आगे चलकर 1957 से 67 तक इसका पट्टा मालिक गणेश प्रसाद के पास है. डीएम झा कहते हैं, ‘‘मालिक ए आला और पट्टा मालिक को जमीन बेचने का हक़ बनता है. अगर इनमें से कोई आकर बोले कि हमारी जमीन किसी ने बेच दी है तभी हम कोई कार्रवाई कर सकते हैं.’’
डीएम रिपोर्ट के आधे हिस्से का तो जिक्र करते हैं, लेकिन इन्हीं जानकारियों के बाद नजूल विभाग ने लिखा है, ‘‘1425 फसली वर्ष के रिकॉर्ड के मुताबिक महंत विश्वनाथ प्रसादाचार्य इसके काश्तकार तो हैं, लेकिन उन्हें इस जमीन को बेचने का अधिकार नहीं है. यह जमीन नजूल की है.’’ इसका जिक्र नहीं करते हैं. जबकि हमने कई बार इस सवाल का जवाब उनसे मांगा.
हमने इन तमाम विवादों पर ऋषिकेश उपाध्याय से भी संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
Also Read
-
Gujarat’s invisible walls: Muslims pushed out, then left behind
-
Let Me Explain: Banu Mushtaq at Mysuru Dasara and controversy around tradition, identity, politics
-
गुजरात: विकास से वंचित मुस्लिम मोहल्ले, बंटा हुआ भरोसा और बढ़ती खाई
-
September 15, 2025: After weeks of relief, Delhi’s AQI begins to worsen
-
Did Arnab really spare the BJP on India-Pak match after Op Sindoor?