Ground Report
अलीगढ़ शराब कांड जिसने बिहार के इन बच्चों को कर दिया अनाथ
हरे रंग की फटी ड्रेस पहने रागिनी, जिसकी उम्र ज़्यादा से ज़्यादा 10 साल होगी, अपने एक साल के भाई को गोद में लिए खड़ी है. वो बार-बार फिसलकर नीचे आता है, कमजोर रागिनी उसे खींचकर गोद में लाने की कोशिश करती है. रागिनी के दो भाई और तीन बहनें हैं. दो बड़ी बहनों की बिहार में ही शादी हो चुकी है.
अपने दोनों छोटे भाइयों को संभाल रही रागिनी के चेहरे पर उदासी छाई हुई है जबकि उसे आधा सच ही पता है. दरअसल उसे मालूम है कि इसकी मां की तो शराब पीने से मौत हो चुकी है, लेकिन पिता का अभी इलाज चल रहा है. जबकि हकीकत यह है कि उसकी मां उषा देवी और पिता भगवान मांझी की मौत हो चुकी हैं.
रागिनी बिहार के जहानाबाद जिले के किंजर गांव की रहने वाली है. नौ महीने इनके माता पिता अलीगढ़ के जवां के औरिया में बने ख़ुशी ईंट भट्टे पर काम करने आए थे. बारिश शुरू होते ही ईंट पथाई का काम बंद हो जाता है ऐसे में इन्हें अब कुछ दिनों में वापस घर लौटना था, लेकिन जहरीली शराब ने इनके सर से मां-बाप का साया छीन लिया.
अपने भाई को गोद में संभालने की कोशिश करते हुए रागिनी कहती हैं, ‘‘ये रात को मां को ढूंढता है. दूध पीने के लिए रोता है. हमारे पास तो खाने के लिए भी नहीं है. कुछ लोग बस्कुट दे गए हैं उसी को पानी में डालकर हम अपने भाई को खिलाते हैं.’’
रागिनी और उसके भाई आखिरी बार अपने मां-बाप को देख भी नहीं पाए क्योंकि प्रशासन ने ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया. रागिनी कहती हैं, ‘‘दीदी का फोन आया था. वो हमें लेने आएंगी.’’
ख़ुशी का दिन गम में बदल गया
अलीगढ़ शराब कांड के पहले भाग में आपने पढ़ा की कैसे यहां के करीब 200 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हो गई. मृतकों में बिहार के गया और जहानाबाद जिले से आए अति पिछड़े समुदाय के 11 मज़दूर भी शामिल है. 11 मृतकों में से सात पुरुष और चार महिलाएं हैं. इसमें से छह पत्नी-पत्नी हैं.
मंगलवार (एक जून) को भट्टे पर काम करने वाले मज़दूरों को मेहनताना मिला था. उनकी सप्ताहिक छुट्टी थी. इस दिन वे खूब खाते-पीते हैं. पास के नहर में मछली पकड़ते हैं.
उस रोज भी राजा नाम का एक 50 वर्षीय मज़दूर मछली पकड़ने गया. वहां पहुंचने के बाद उसे किनारे पर शराब की पेटियां दिखीं तो वह भागा-भागा भट्टे पर पहुंचा और वहां लोगों को यह जानकारी दी. इसके बाद कई मज़दूर बाल्टी लेकर नहर किनारे शराब लेने के लिए पहुंच गए.
राजा के साथ शराब लेने आने वालों में उनका भांजा 22 वर्षीय पप्पू मांझी भी था. न्यूज़लॉन्ड्री को पप्पू ने बताया, ‘‘मेरे मामा मंगलवार को मछली पकड़ने गए थे तो उनकी नजर शराब पर पड़ी. वे लौटकर घर आए तो हम लोगों को बताया कि नहर के पास शराब पड़ी हुई है. तो हम लोग बाल्टी लेकर गए और शराब लेकर आए. मेरे मामा ने कहा कि मैं अकेला हूं. मैं अगर पीकर मर गया तो कोई बात नहीं है. उन्होंने रात में शराब पी तो सुबह तक उन्हें कुछ नहीं हुआ. जिसके बाद बुधवार सुबह बाकी लोग भी नहर किनारे से शराब लेकर आए और पीने लगे. दोपहर होते-होते सबको उल्टियां होने लगीं.’’
पप्पू आगे बताते हैं, ‘‘सबसे पहले सुरेश की पत्नी शारदा देवी को उल्टी शुरू हुईं और यहीं पर उनकी मौत हो गई. सुरेश अस्पताल में जाकर मर गए. उनके बेटे ने भी शराब पी थी उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है.’’
पप्पू भी शराब पीते हैं, लेकिन उस दिन डर के कारण नहीं पी. लेकिन राजा के कहने पर इनके मां-बाप ने पी ली. पप्पू कहते हैं, ‘‘मामा ने शराब पीने के बाद बोला की ठीक है. तुम लोग भी पी लो. इसके बाद मेरे मम्मी-पापा भी शराब पी. इसके बाद दोनों को उल्टी शुरू हो गईं. जिसके बाद इन्हें अस्पताल ले जाया गया. मामा की तो मौत हो गई, लेकिन मेरे मम्मी-पापा ठीक हैं. उनसे फोन पर मेरी बात हुई थी.’’
मुख्य आरोपी ऋषि शर्मा के फार्म हाउस के पास है नहर
अलीगढ़ में जहरीली शराब से मौतों का सिलसिला 26 मई से ही शुरू हो गया था. लेकिन यहां लोगों ने एक जून को शराब पी. उसके बाद चार पांच जून तक लोग मरते रहे. भट्टे पर मिले पुलिस अधिकारी रणविजय सिंह (बदला नाम) कहते हैं, ‘‘हम लोग तो लगातार स्पीकर और अख़बारों के जरिए लोगों को देशी शराब नहीं पीने के लिए कह रहे थे. ये मज़दूर गांव के अंदर होते हैं. ये पढ़ भी नहीं पाते. ऐसे में इन तक जानकारी नहीं पहुंच पाई जिसका परिणाम यह हुआ.’’
हालांकि कई मज़दूर बताते हैं कि भट्टा मालिक चमन खां ने शराब नहीं पीने के लिए बोला था लेकिन मुफ्त में शराब मिलने पर मज़दूरों ने किसी की नहीं सुनी.
हालांकि सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि नहर के पास शराब आई कहां से? इस पर रणविजय सिंह कहते हैं, दरअसल हुआ ये कि जिले में जब लोगों की मौतें शराब पीने से होने लगीं तो प्रशासन माफिया के ठिकानों पर दबिश देने लगा. जिससे डरकर माफिया जहरीली शराब इधर-उधर फेंकने लगे. ऐसे ही करीब छह कार्टन शराब नहर के किनारे फेंका हुई थी.’’
रणविजय संभावना जताते हुए कहते हैं, ‘‘यह नहर शराब कांड के मुख्य आरोपी ऋषि मिश्रा के फार्म हाउस से महज पांच सौ मीटर की दूरी पर है. ऐसे में बहुत मुमकिन है कि शराब उसी के यहां से फेंकी गई हो.’’
शराब ऋषि शर्मा के लोगों ने ही फेंकी होगी यह बात सिर्फ पुलिस अधिकारी ही नहीं कहते बल्कि आसपास के गांव के लोग भी दावा करते हैं. हालांकि सच ऋषि मिश्रा ही बता सकते हैं. एक लाख का इनामी शराब कारोबारी बीजेपी नेता ऋषि मिश्रा को पुलिस ने पांच जून को गिरफ्तार कर लिया.
भूखे पेट अपनों का इंतज़ार
25 साल के उमेश मांझी भी शराब पीने वालों में से एक थे. हमारी उनसे मुलाकात जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में हुई. दुबले पतले दिखने वाले मांझी बताते हैं, ‘‘मैं जवां बाजार से लौट रहा था तो देखा की नहर किनारे शराब फेंकी हुई है. हम वहां से छह-सात बोतल लेकर आए. तो उसमें से सबने एक-एक पी. पीने के बाद में सबको उल्टी होने लगी. उसमें जहर मिला हुआ था. ऐसा लग रहा था जैसे पेट में तेजाब मिल गया हो.’’
यहां ज़्यादातर महिलाएं भी शराब पीती हैं, लेकिन उमेश की पत्नी शराब नहीं पीती. उमेश बुधवार को अस्पताल में भर्ती हुए. जिसके बाद से ही उनकी पत्नी रानी देवी ने खाना पीना छोड़ दिया था. जब हमने उमेश का वीडियो वहां मौजदू लोगों को दिखाया तो सब एक सुर में रानी को बुलाने लगे. दुबली पतली रानी देवी वीडियो देखकर रोने लगती हैं. आसपास बैठी महिलाएं कहती हैं, ‘‘अब तो खा ले. देख तेरा मरद टन टन बोल रहा है. वो ठीक हैं.’’
यहां बैठीं महिलाओं के पति अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहे थे. लेकिन ये एक दूसरे को संभालती नजर आती हैं. गया जिले के टेकारी गांव की रहने वाली पूनम देवी की उम्र उन्हें नहीं पता. उनके दो बच्चे हैं. अभी वो गर्भवती भी हैं. उनके पति अजय मांझी ने मंगलवार को ही शराब पी थी. उन्हें बुधवार को उल्टी शुरू हुई.
पूनम बताती हैं, ‘‘मेरे पति शराब लेने नहीं गए थे. पास वाला लेकर आया तो उन्हें भी दे दी. जब वे शराब लेकर आए तो हमने उन्हें मना किया, लेकिन वो नहीं माने. मंगलवार रात को ही शराब पी. रात में वो नशे में सो गए. बुधवार सुबह उल्टी होने लगी. मुनीम जी को पता चला की सब शराब पीकर मर रहे हैं तो वे यहां पहुंचे और सबको अस्पताल लेकर गए. मेरा पति अलीगढ़ अस्पताल में भर्ती है. वो कैसे हैं हमें पता नहीं चल पाया. हालांकि मालिक ने इतना बताया की वो ठीक है.’’
आठवीं तक पढ़ी पूनम कहती हैं, ‘‘हमारे पास तो घर के लिए भी जमीन नहीं है. मेरा जन्म भी भट्टे पर हुआ और मैं यही बड़ी हो गई. हर साल हमें ठेकेदार काम कराने के लिए लेकर आते हैं. जिसके लिए एडवांस पैसे देते हैं. खेती बाड़ी हो तो हम क्यों यहां कमाने आए. भट्टे पर रहने और काम करने के कारण ना हम पढ़ पाए और ना ही हमारे बच्चे पढ़ पाएंगे. ’’
यहीं पर हमारी मुलाकात 10 वर्षीय अंकित से हुई. जहानाबाद के किंजर गांव के रहने वाले अंकित की मां नीरू देवी की मौत शराब पीने से हो गई वहींं पिता राजकुमार का अस्पताल में इलाज चल रहा था. अंकित अपने पांच भाई बहनों के साथ एक खाट पर बैठे हुए थे. उनका एक डेढ़ साल का छोटा भाई है. जिसके बदन पर कपड़ा तक नहीं है. डेढ़ साल के भाई को अंकित की छोटी बहन रूपा ने गोद में ले रखा था. रूपा की उम्र भी आठ साल के करीब हैं. गोद से भी बच्चा बार-बार गिर जा रहा था.
रागिनी की तरह पांचों बच्चे आखिरी बार अपनी मां को देख भी नहीं पाए क्योंकि प्रशासन ने खुद ही इनका भी अंतिम संस्कार कर दिया था.
अंकित तो कुछ भी नहीं बोल पा रहा था लेकिन रूपा कहती हैं, ‘‘मेरे पापा और मम्मी ने बुधवार की दोपहर में शराब पी. मेरे पापा नहर से शराब लेने नहीं गए थे. हमारे साथ रहने वाले छोटेलाल ने 100 रुपए में दी थी. शराब पीने के थोड़ी देर बाद उन्हें उल्टी होने लगी. हमने उन्हें नमक पानी दिया लेकिन उल्टी रुक नहीं रही थीं. मम्मी बेहोश हो गईं. जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया.’’
अंकित कहते हैं, ‘‘मेरी मां मर गई. पापा अस्पताल में हैं. मुनीम बता रहे थे कि वे ठीक है.’’ मां को खो चुके इन बच्चों का पिता के अलावा कोई नहीं है. अंकित और उनकी बहन के लिए सबसे मुश्किल काम अपने डेढ़ साल के भाई को संभालना है.
रीता देवी हो, कैत्या देवी या रुपी देवी सबकी एक ही कहानी है. इनके पति अस्पताल में भर्ती हैं. लेकिन इन्हें उनकी खबर तक नहीं है. भट्टा मालिक और आसपास के ग्रामीण इनके खाने का इंतज़ाम करते नजर आते हैं. लेकिन इनकी भूख गायब है.
कैत्या देवी के दो बच्चे हैं. उनके पति साजन अस्पताल में भर्ती थे. नाराज़ कैत्या कहती हैं, ‘‘मालिक ने शराब पीने से मना किया था लेकिन राजा ने सबको शराब पीने के लिए कह दिया. खुद तो मर गया हमारे पति को भी मरने के लिए छोड़ दिया. शराब पीने के बाद रातभर उल्टी करते रहे.’’
भट्टा मालिक से जिलाधिकारी ने दिलवाया मुआवजा
एक तरफ मौजदूरों की मौत हो रही थी. कुछ लोग अस्पताल में जिंदगी मौत से जूझ रहे थे वहीं भट्टे के मुनीम संतोष चौहान उनका हिसाब करने में लगे थे. घटना के तीसरे दिन हमारी मुलाकात मुनीम से भट्टे पर हुई.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए चौहान कहते हैं, ‘‘ये मज़दूर तो जाने ही वाले थे. अब इतना बड़ा हादसा हो गया है तो ये डर गए हैं. घर जाना चाहते हैं. जिनके घर पर कोई बीमार नहीं पड़ा है वे तो अपने गांव चले भी गए. इनका भी हिसाब कर रहे हैं. अस्पताल से छुट्टी मिलते ही इन्हें भी इनके घर भेज दिया जाएगा.’’
चौहान बताते हैं, ‘‘हमें इसकी सूचना बुधवार रात में नौ बजे के करीब मिली. हम भागे-भागे अपने मज़दूरों के पास पहुंचे. हमारे यहां करीब 95 मज़दूर काम करते हैं. इसमें कुछ लोगों ने ही शराब पी थी. एक महिला की तो यहीं मौत हो गई थी. बाकियों को प्रशासन को सूचना देकर अस्पताल भेजा गया. हमारे यहां से 29 लोग अस्पताल में भर्ती हुए. जिसमें से अभी तक हमारे संज्ञान में आठ की मौत हुई है. जिसमें से तीन पति पत्नी हैं. नहर के पास ही इनका अंतिम संस्कार कराया जा रहा है.’’
4 जून तक आठ मज़दूरों की मौत हुई थी. आगे चलकर तीन और मज़दूरों की मौत हो गई. इसके अलावा जो मज़दूर अस्पताल में भर्ती थे वे ठीक होकर लौट आए. जिसके बाद भट्टा मालिक ने उन्हें घर भेज दिया है.
इस भट्टे को पांच लोग मिलकर चलाते हैं. जिसमें से एक चमन खान भी हैं. चमन से हमारी मुलाकात अलीगढ़ मेडिकल में हुई. जहां वे मज़दूरों के बेहतर इलाज के लिए इधर उधर भटक रहे थे. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए खान कहते हैं, ‘‘जैसे ही हमें मज़दूरों के बीमार होने की सूचना मिली. सबसे पहले हमने 100 नंबर पर कॉल किया और उन्हें बताया. उसके बाद एम्बुलेंस को फोन किया. एम्बुलेंस आने में देरी होने लगी तो हम प्राइवेट गाड़ी से मज़दूरों के लेकर अस्पताल पहुंचे. वहां इनके इलाज में करीब चार से पांच लाख रुपए खर्च हो गए. हमें तब पैसों की चिंता नहीं थी हमारी कोशिश थी की जो मज़दूर बच सकते हैं उनको पहले बचाया जाए. हमारे 11 मज़दूर मर गए लेकिन बाकियों को बचा लिया गया.’’
चमन खान ने मज़दूरों को बचाने की भरसक कोशिश की. इन्होंने पहले भी मजदूरों को शराब नहीं पीने के लिए चेताया था लेकिन नहर में शराब मिलने के बाद वे नहीं माने. ऐसे में जब मज़दूरों की मौत हो गई तो जिलाधिकारी ने उन्हें दो-दो लाख रुपए मुवाअजा देने के लिए कहा.
खान कहते हैं, ‘‘हमारी कोई गलती नहीं थी. मज़दूरों ने यह बयान पुलिस के सामने भी दिया लेकिन डीएम साहब ने बुलाकर कहा की इन मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख का मुवाअजा दो. उनके कहने पर हमें मुआवजा देना पड़ा. इतनी तो हमारी कमाई भी नहीं हुई है. पांच लोग मिलकर भट्टा चलाते हैं. साल भर में 10 लाख की आमदनी होती है. सबके हिस्से में दो-दो लाख रुपए आते हैं. मुआवजा तो सरकार को देना चाहिए था. मुख्य आरोपी ऋषि मुनी से दिलाना चाहिए था लेकिन हमसे दिलाया गया. ऋषि मुनी का क्या हुआ. कुछ सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा था. उसकी दीवारों को तोड़ दिया गया.’’
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए अलीगढ़ के जिलाधिकारी चन्द्र भूषण सिंह कहते हैं, ‘‘पुलिस ने अब तक करीब 20 एफआईआर दर्ज कर 60 से ज़्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है. इस मामले में जितने मुख्य आरोपी थे उन सभी को गिरफ्तार किया जा चुका है.’’
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