Ground Report

अलीगढ़: दलितों ने अपने घरों के बाहर क्यों लिखा 'यह मकान बिकाऊ है'

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के नूरपुर गांव में कुछ घरों के बाहर दीवार के कुछ हिस्सों में नीला रंग पुता हुआ है. ये तमाम घर दलित समुदाय के लोगों के हैं. जहां नीला रंग पोता गया है वहां ‘यह मकान बिकाऊ है’ लिखा हुआ है. घरों पर अब भी यह वाक्य साफ-साफ लिखा नज़र आता है.

यह विवाद 26 मई को ओमप्रकाश की बेटी की शादी के दिन शुरू हुआ. आरोप है कि उनकी बेटी की बारात को स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोगों ने रोकने की कोशिश ही नहीं की बल्कि बारातियों और स्थानीय लोगों से मारपीट भी की.

ओमप्रकाश न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘26 मई को मेरी दो बेटियों की शादी थी. शाम 3:30 और चार बजे के बीच बारात आई. हमारे घर के लिए जो रास्ता आता है उसमें एक मस्जिद पड़ती है. उस दिन बारात आई तो उसे मस्जिद के पहले ही रोक दिया गया. बारात को रोकने के बाद में जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए गाली-गलौज की गई. उनका कहना था कि आप यहां से बारात लेकर नहीं जा सकते हैं. उन्होंने डीजे और गाड़ी भी बंद करा दी’’

इस दौरान ओमप्रकाश के पैर में चोट लग गई. अब भी वे लाठी के सहारे ही चल रहे हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए वह कहते हैं, ‘‘जब उन्होंने डीजे बंद करने और बारात नहीं जाने देने की बात की तो हमने हाथ भी जोड़े. कहा कि आप बारात निकल जाने दो. उस वक़्त अजान या नमाज़ का समय भी नहीं था. लेकिन वो लोग नहीं माने. मस्जिद और उसके सामने के घर से लाठी-डंडे निकाल कर उन्होंने हम पर हमला कर दिया. ड्राइवर को बाहर खींचा और गाड़ी के शीशे तोड़ दिए. हमारे जो दूल्हे थे उन्हें भी खींचने का प्रयास किया गया. जब मुझे पता चला तो मैं वहां पहुंचा. तभी मेरे पैर पर कुछ लगा. तब से यह टूटा है.’’

वहीं अपने घर के बाहर बैठीं 52 वर्षीय रेनू कहती हैं, ‘‘इन लोगों ने (उनका इशारा गांव के मुसलमानों की ओर है) हमें परेशान कर दिया है. ये हमसे लड़ें तो हम लड़ लेंगे, लेकिन रिश्तेदारों को मारना, रिश्तेदारों के सामने हमारे लोगों को मारना, यह कब तक बर्दाश्त किया जाएगा. आये दिन हमारी बेटियों की बारात रोक देते हैं. इसलिए हम अब यहां रहना ही नहीं चाहते.’’

बता दें कि नूरपुर मुस्लिम बाहुल्य गांव है. यहां 85 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है, बाकी 15 प्रतिशत हिंदू हैं. हिंदुओं में सिर्फ दलित समुदाय के लोग यहां रहते हैं.

रविवार को अलग-अलग हिंदू संगठन के लोगों ने गांव में आने का दावा किया था. लेकिन गांव का माहौल न बिगड़े इसके लिए प्रशासन ने एहतियातन पीड़ित परिवारों में से कुछ को गांव से करीब एक किलोमीटर दूर एक पुल के नीचे बुला लिया था. वहां सैकड़ों की संख्या में पुलिस बल और सीनियर पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे. यहां से लोगों को जांच के बाद ही आगे जाने दिया जा रहा था.

वहां हिन्दू युवा वाहिनी समेत अलग-अलग कथित तौर पर हिन्दू हित की बात करने वाले संगठन के लोग पहुंचे, कुछ देर तक जय श्रीराम के नारे लगाए और लौट गए. यहां आए एक शख्स ने गांव में मंदिर निर्माण के लिए दो लाख रुपए का चंदा भी दिया. हिंदूवादी संगठनों को हंगामा करते देख वहां मौजूद अलीगढ़ पुलिस के एक सीनियर अधिकारी कहते हैं, ‘‘जब गांव में सबकुछ शांत हो गया है तो ये लोग आग लगाने आए हैं.’’

इस पुल के नीचे ओमप्रकाश भी मौजूद थे. विवाद को लेकर हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों का अलग-अलग दावा है.

रविवार को कुछ हिंदूवादी संगठन के लोग नूरपुर पहुंचे थे.

शाम के करीब सात बज रहे थे. ओमप्रकाश गांव के बॉर्डर पर दिनभर बैठने के बाद अपने घर लौटे थे. इतने सारे लोग आ रहे हैं. कुछ मदद भी कर रहे हैं. इस सवाल के जवाब में ओमप्रकाश कहते हैं, ‘‘सब अपनी राजनीति रोटी सेंकने आ रहे हैं. मुझे किसी ने आर्थिक मदद तो नहीं की. गांव में मंदिर बनाने के लिए ज़रूर किसी ने दो लाख की मदद की है. उन्होंने मंदिर बनने पर और भी मदद करने का वादा किया है. वे लोग साथ होने का भरोसा ज़रूर दे रहे हैं.’’

ओमप्रकाश जिनकी की बेटी की बारात को रोका गया.

गांव में शादियों को लेकर हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के बीच विवाद बहुत पुराना है. स्थानीय नागरिक साल 2006 में भी ऐसी घटना का जिक्र करते हैं. वे कहते हैं कि बार-बार ऐसी घटना होती है. मुस्लिम समुदाय के बड़े-बुजुर्ग पंचायत करते हैं और आगे से ऐसी घटना नहीं दोहराये जाने का वादा करते हैं लेकिन ऐसा होता नहीं है.

गांव के रहने वाले 65 वर्षीय धर्मपाल ने भी अपने घर के बाहर ‘मकान बिकाऊ है’ लिखा है. वे कहते हैं, ‘‘सबसे पहले तो मैंने ही लिखा था. उसके बाद बाकियों ने लिखना शुरू किया. दरअसल हम लोग इनसे परेशान हो चुके हैं.’’

धर्मपाल बीते महीने हुई एक घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘‘नौ मई को एक बारात आई थी. उस वक़्त इनका रमज़ान चल रहा था. तब भी विवाद हुआ. बारात रोक दी गई. डीजे बंद करा दिया गया. विवाद हुआ तो पंचायत हुई. पंचायत में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भरोसा दिलाया की आगे से ऐसा नहीं होगा. उन्होंने पंचायत में बोला था कि आगे से अगर ऐसा होगा तो वे उन लड़कों का बचाव नहीं करेंगे जिन्होंने ऐसा किया होगा, लेकिन ये आज उनके साथ ही खड़े हैं. ये लोग हमेशा धोखा देते हैं. हर बार पंचायत होती है और हम पंचायत का फैसला मान जाते हैं.’’

नूरपुर में एक तरफ मुस्लिम तो एक तरफ हिन्दू रहते हैं. मुख्य मार्ग से हिन्दुओं के घरों की तरफ जाने वाला एक रास्ता ज़रूर है, लेकिन वो बेहद संकरा है जिसके कारण बारात उस रास्ते से जाती है जिधर मुस्लिम समुदाय के लोगों का घर है. इसी सड़क पर दो साल पहले एक मस्जिद बनी है. स्थानीय दलित इसे अवैध रूप से बनी खूनी मस्जिद बताते हैं. उनके मुताबिक जब से यह बनी है तब से विवाद बढ़ता गया.

मस्जिद के सामने की वो जगह जहां पर हुई थी लड़ाई

आखिर मुस्लिम समुदाय के लोग बारात को क्यों रोकते हैं. इस सवाल के जवाब में गांव के ही रहने वाले विकलांग फतेह सिंह कहते हैं, ‘‘वे संख्या में ज़्यादा हैं इसलिए हमपर दबाव बनाए रखना चाहते हैं. उनका मकसद यहां के लोगों को दबाना और हटाना है. आप देखिए तो मुस्लिम समुदाय के नाते रिश्तेदार यहां आकर बसते गए. उनकी संख्या तो बढ़ती रही. जिसका वे फायदा उठाते हैं. वे गोली या चाकू चलाकर नहीं मारते बल्कि टॉचर करते हैं. ताकि हम लोग यहां से चले जाएं. ऐसा नहीं कह सकते हैं कि मुस्लिम समुदाय के सभी लोग ऐसा करते हैं, लेकिन जो नौजवान लड़के हैं. वे कुछ ज़्यादा ही इस तरह की हरकत करते हैं.’’

26 मई की घटना को लेकर 30 मई को एफआईआर दर्ज हुई. यह एफआईआर ओमप्रकाश ने दर्ज कराई है. इसमें 11 लोगों को आरोपी बनाया है. इनपर भारतीय दंड संहिता की धारा 120 B, 147, 323, 504, 506, 336, 341, 427 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत टप्पल थाने में मामला दर्ज किया गया है. पुलिस ने 11 आरोपियों में से पांच को हिरासत में ले लिया है.

मुसलमानों का क्या कहना है?

पुलिस एक तरह जहां बाकी आरोपियों की तलाश में गांव में दबिश दे रही है वहीं स्थानीय मुसलमानों की माने तो यह मामला इतना बड़ा नहीं था जितना मीडिया ने इसे बना दिया.

गांव में प्रवेश करते ही एक दुकान पर कुछ मुस्लिम युवक बैठे नजर आते हैं. उनमें से एक 22 वर्षीय शम्सुद्दीन भी हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए शम्सुद्दीन कहते हैं, ‘‘मीडिया के लोगों ने एकतरफा बात कर इस मामले को काफी बढ़ा दिया है. जब बारात आई तब शाम के पांच बज रहे थे. उस वक़्त नमाज़ का समय होता है. इन्हें बोला गया कि कुछ देर के लिए बंद कर लो और आगे ले जाकर बजा लेना, लेकिन वे नहीं माने फिर हल्का विवाद हुआ जिसे बढ़ा चढ़ाकर दिखाया गया.’’

शम्सुद्दीन के पास में बैठे एक मुस्लिम युवक कहते हैं, ‘‘अलीगढ़ में इन दिनों शराब पीने से लोगों की मौत हो रही है. 100 से ज़्यादा लोग मर गए, लेकिन सांसद सतीश गौतम उन मृतकों के परिजनों से मिलने के बजाय यहां आए. जब वे अलीगढ़ से चले तो बोला था कि दोनों पक्षों की बात सुनकर समझौता कराएंगे. हमें लगा कि चलो ऐसा करने आ रहे हैं तो यह ख़ुशी की बात है, लेकिन यहां आकर उन्होंने सिर्फ हिंदुओं से बात की और भड़काऊं भाषण देकर चले गए. हम लोग दूसरी तरफ उनके आने का इंतज़ार करते रहे. वे हमारे पास आए तक नहीं. ऐसे ही आप मीडिया वाले हो. बात तो हमसे भी करते हो लेकिन दिखाते उनकी बात हो.’’

यहां मौजूद तमाम युवा एक ही बात कहते नजर आये कि गांव के छोटे से विवाद को बढ़ा चढ़ाकर इसलिए दिखाया गया ताकि दूसरे मुद्दों को छुपाया जा सके.

घटना स्थल पर मौजूद होने का दावा करने वाले 30 वर्षीय आजम काफी नाराज नजर आते हैं. पुलिस जिन पांच लोगों को गिरफ्तार किया है उसमें एक आज़म के छोटे भाई अमजद भी हैं.

आज़म दलित समुदाय पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘‘बारात को लेकर पहले से विवाद चल रहा था. उन्होंने (दलित समुदाय के लोगों ने) हमारे लड़कों पर आरोप लगाया था कि ये हंगामा करते हैं. ऐसे में उस रोज लड़कों को हटा दिया गया था. सिर्फ बड़े बुजुर्ग थे. नमाज़ का समय हो रहा था तब बारात आई. वैसे बारात ढाई बजे से तैयार थी, लेकिन जानबूझकर पांच बजे से थोड़ी देर पहले लाया गया. वह समय नमाज़ का होता है. मस्जिद के सामने आकर डीजे बजाना शुरू कर दिया.’’

गांव में पिछले सात दिनों से तैनात पीएससी बल के जवान

आज़म आगे कहते हैं, ‘‘मस्जिद के सामने आकर उन्होंने जब डीजे बजाना शुरू किया तो वहां मौजूद लोगों ने कहा कि या तो पांच मिनट के लिए इसे बंद कर लो या थोड़ा आगे चले जाओ. इसपर उसमें से एक ने कहा कि नहीं ये तो यहीं पर बजेगा. बंदूक की नोक पर बजेगा. उसके बाद विवाद हुआ. गाड़ी आगे चली गई. वहां कोई मारपीट नहीं हुई. कुछ दिन बाद इन्होंने शिकायत दर्ज करा दी. शनिवार को पुलिस हमारे घर आई और मेरे भाई अमजद को उठाकर ले गई. जबकि वो उस रोज यहां था ही नहीं. यहां ज़्यादातर लोगों को ऐसे ही फंसया गया है. एक लड़का तो दोनों पैरो से विकलांग है उसका भी नाम शिकायत में दिया गया है. पुलिस उसे उठाकर ले गई है जबकि वो ठीक से चल भी नहीं सकता है.’’

ओमप्रकाश जानबूझकर नमाज़ के समय बारात लाने के दावे से इंकार करते हैं. वे कहते हैं कि बारात दोपहर के 3:30 और चार बजे के बीच आई थी.

कई न्यूज़ चैनलों ने इस घटना से जुड़ा एक वीडियो दिखाया है. जिसमें कुछ मुस्लिम युवक एक ट्रक के आसपास बहस करते नजर आते हैं. कुछेक सेकेंड का यह वीडियो उसी जगह का नजर आता है क्योंकि इसमें एक हरे रंग का गेट दिख रहा है. जो वहां अब भी है. इस वीडियो को दलित समुदाय के लोग उसी दिन का बताते हैं. जबकि आजम इसे पुराना बताते हैं. वे कहते हैं, ‘‘पुराने किसी बारात की वीडियो दिखाकर गुमराह कर रहे हैं.’’

गांव के ज़्यादातर मुसलमान उस दिन किसी भी तरह के झगड़े से इंकार करते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए बार-बार वे कहते हैं कि इतना बड़ा विवाद नहीं था. मीडिया के लोगों ने इसे बड़ा बना दिया. 65 वर्षीय बुजुर्ग शेर मोहम्मद यहां के ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल (बीडीसी) रह चुके हैं. जब वे बीडीसी थे तो उन्हें दलित समुदाय को बारात घर बनाने के लिए 30 हज़ार रुपए की मदद की. यह दावा वे खुद करते हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए शेर मोहम्मद स्थानीय हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिशाल देते हैं. वे कहते हैं, ‘‘यहां हिंदुओं की बारात भी खूब प्यार से चढ़ती थी. हमने खुद कई सारी शादी कराई हैं. हम उनमें जाते हैं वे हमारे में आते हैं. खूब प्यार मोहब्बत है. यहां कुछ लोग ऐसे हैं जो बीजेपी में नए-नए शामिल हुए हैं. वो दंगा कराना चाहते हैं ताकि उनकी पार्टी में पूछ बढ़े. बस यही बात है.’’

शेर मोहम्मद स्थानीय हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिशाल देते हैं

26 मई को क्या हुआ इस सवाल पर शेर मोहम्मद आजम की बात को ही दोहराते हैं. वे कहते हैं, ‘‘हल्की धक्का मुक्की हुई. जहां तक रही ओमप्रकाश के पैर में चोट लगने की बात तो उसकी दीवार बन रही थी जो गिर गई और चोट लग गई. धन्ना सेठ सीढ़ी पर से गिर गया तो उसके पैर में चोट आई है. अगर ईट पत्थर चलता तो सर में लगता पैर में थोड़ी न लगता. डंडा लाठी कुछ भी नहीं चला.’’

शेर मोहम्मद को उम्मीद है कि गांव में पूर्व की तरफ भाईचारा फिर से कायम होगा. हालांकि इससे पूर्व बारात रोकने के सवाल पर वे कोई साफ़ जवाब नहीं देते हैं. लेकिन एक नौजवान जिनका नाम तारीक है. वे जरूर बताते हैं, ‘‘पूर्व में या उस दिन. जब भी नमाज़ के वक़्त बारात आई तो हाथ जोड़कर हमने बस यह कहा कि मस्जिद के आगे डीजे मत बजाओ. आगे जाकर बजा लो. नौ मई को रमजान चल रहा था. उसमें हमारे यहां तरावीह होती है. हमने बोला तो लोग मान गए. कई शादियों में लोग नशा करके आते है. वे लोग ही हंगामा करते हैं. हालांकि अब सब कुछ शांत है.’’

घर पर क्यों लिखा गया 'यह मकान बिकाऊ है'

घटना के चार दिन बाद ओमप्रकाश ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. उसके तीन दिन बाद दीवारों पर लिख दिया गया कि यह मकान बिकाऊ है. आखिर ऐसा लिखने की ज़रूरत क्यों पड़ी?

इस सवाल का जवाब देते हुए ओमप्रकाश कहते हैं, ‘‘वो इसलिए लिखा है क्योंकि ये जब कभी इस तरह की घटना करते हैं तब तो पंचायत में कहते हैं कि आगे कुछ नहीं होगा, लेकिन आगे ऐसा ही होता है. इसी हरकतों से तंग आकर कि ये हमारी बहन- बेटियों की शादी नहीं होने दे रहे हैं. बारात नहीं चढ़ने दे रहे हैं. रिश्ते के लिए कहीं जाते हैं तो वहां लोग मना कर देते हैं कि हम इस गांव में शादी नहीं करेंगे क्योंकि यहां के लोग दबे हुए हैं. इसलिए मज़बूर होकर हमने यह लिखा कि हम ये गांव छोड़कर जा रहे हैं. क्योंकि अगर हमारा यहां मान सम्मान नहीं होगा तो हम किस लिए रहेंगे.’’

गांव के एक नौजवान दीवारों पर ऐसा लिखने का दूसरा कारण बताते हैं. वे कहते हैं, “प्रशासन पहले हमारी शिकायत पर ध्यान नहीं दे रहा था. जब हमने अपने घरों पर इसे बेचने की बात लिखी तो मीडिया वाले आए और खबर हुई. उसके बाद ही प्रशासन ने गंभीरता से लेना शुरू किया और आरोपियों की गिरफ्तारी शुरू हुई.”

'मकान बिकाऊ है' यह वाक्य अब ज़्यादातर घरों पर से मिटा दिया गया है

'मकान बिकाऊ है' यह वाक्य अब ज़्यादातर घरों पर से मिटा दिया गया है. लेकिन क्या मन से वो भय मिट पाया जिस वजह से लोग लिखने पर मज़बूर हुए? क्या अब भी लोग घर छोड़कर जाना चाहते हैं. इस सवाल के जवाब में ओमप्रकाश कहते हैं, ‘‘हम यहां माहौल शांत है. पुलिस प्रशासन हमारी मदद कर रहा है. हम हर तरह से उससे संतुष्ट हैं. अब हम घर छोड़कर नहीं जाने वाले और ना ही कोई समझौता करने वाले हैं. हमने जो मामला दर्ज कराया है उसमें शामिल सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर उन्हें कठोर सजा दी जाए. हम केस लड़ेंगे.’’

32 वर्षीय शिवराज सिंह साल 2014 से बीजेपी से जुड़े हुए हैं. मुस्लिम समुदाय के लोग इनपर भी राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं. इस आरोप पर न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है. लोगों ने अपनी मर्जी से अपने घर पर लिखा है. मैंने भी अपने घर पर लिखा. ऐसा इन्होंने पहली बार नहीं किया है. इससे पहले भी इस तरह की घटनाएं हुई हैं. अब हालांकि माहौल शांत है. हम कोई राजनीति नहीं कर रहे हैं. ये बारात ना रोके तो हम लड़ने तो जा नहीं रहे हैं.’’

अब गांव में शांति का माहौल है. जिसकी तस्दीक यहां सुरक्षा में तैनात पीएससी के कई जवान भी करते हैं. एक जवान जो यहां बीते तीन दिनों से तैनात हैं, न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘मीडिया में खबरों को देख लगा था कि दंगे की स्थिति बन चुकी है, लेकिन यहां हमें सब सही नजर आ रहा है. हमें तो लग ही नहीं रहा की यहां कोई विवाद भी हुआ है.’’

यहां शांति तो ज़रूर नजर आने लगी है, लेकिन लोगों के मन में एक दूसरे के प्रति अविश्वास भी साफ नजर आता है. दलित समुदाय के लोग बार-बार के असम्मान से खफा नजर आते हैं. वहीं हिंदूवादी संगठनों का भी यहां आना जाना शुरू हो गया है. ऐसे में किसी बड़ी अनहोनी से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. हालांकि पुलिस अधिकारी ऐसी किसी भी संभावना से इनकार कर स्थिति को सामान्य बताते हुए नजर आते हैं.

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