Opinion
कृषि: उत्पादन बढ़ा, किसान घटे
2019 के अंतिम सप्ताह में जब वैश्विक महामारी कोविड-19 ने दुनिया की देहरी पर दस्तक दी तो साल 2020 ने दुनिया की तस्वीर ही बदल दी. भारत में भी मार्च 2020 में इस महामारी ने अपना असर दिखाना शुरू किया और देखते ही देखते ही पूरा देश इसकी चपेट में आ गया. खासकर भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा, तब केवल कृषि ही ऐसा क्षेत्र था, जिसने देश की अर्थव्यवस्था को संभाला. लेकिन एक ओर जहां कृषि क्षेत्र को इस अभूतपूर्व प्रदर्शन के लिए याद किया जाएगा. वहीं, साल 2020 इसलिए भी याद किया जाएगा कि केंद्र सरकार ने महामारी के दौरान देश में तीन नए कृषि कानूनों को लागू किया और किसानों को अपनी जान जोखिम में डालकर सड़कों पर विरोध के लिए उतरना पड़ा.
हालांकि किसानों के लिए यह अकेली ऐसी मुसीबत नहीं है, जिसके चलते उनका अस्तित्व संकट में पड़ा है. इससे पहले भी उन्हें अपना अस्तित्व बचाने के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ रहा है. हालात यह हो गए हैं कि जिस भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता था, आज ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या वाकई भारत कृषि प्रधान देश है. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगातार गिरती हिस्सेदारी, किसानों की गिरती आमदनी, कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्याएं, युवाओं का खेती किसानी से मोह भंग होना एवं जलवायु परिवर्तन की वजह से कभी बाढ़, कभी सूखे के प्रकोप के कारण किसान हमेशा मुसीबतों में ही रहा है.
दिलचस्प यह है कि एक ओर जहां हर साल सरकार खाद्यान्न का रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन का जश्न मान रही है. वहीं, दूसरी ओर किसानों की संख्या कम हो रही है और कृषि श्रमिकों की संख्या बढ़ रही है. आंकड़े बताते हैं कि भारत के 52 प्रतिशत जिलों में किसानों से अधिक संख्या कृषि श्रमिकों की है. बिहार, केरल और पदुचेरी के सभी जिलों में किसानों से ज्यादा कृषि श्रमिकों की संख्या है. उत्तर प्रदेश में 65.8 मिलियन (6.58 करोड़) आबादी कृषि पर निर्भर है, लेकिन कृषि श्रमिकों की संख्या 51 फीसदी और किसानों की संख्या 49 फीसदी है.
सरकार का दावा है कि वह 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी कर देगी, लेकिन लगभग एक साल बचा है, अब तक सरकार यह नहीं बता रही है कि अब तक किसानों की आमदनी कितनी हुई है. जबकि किसानों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में खेती की लागत इतनी बढ़ गई है कि आमदनी दोगुनी होना तो दूर, कम हो गई है. गैर कृषि कार्यों में भी किसानों को फायदा होता नहीं दिख रहा है. यही वजह है कि जानकार मानते हैं कि आमदनी घटने के कारण किसानों का खेती से मोह भंग होता जा रहा है. ऐसे में कॉरपोरेट की नजर अब कृषि क्षेत्र पर है और कृषि कानूनों में इस तरह की व्यवस्था की गई है, जिससे इस क्षेत्र में कॉरपोरेट का वर्चस्व बढ़ता जाएगा.
(साभार- डाउन टू अर्थ)
Also Read
-
‘Justice for Zubeen Garg’: How the iconic singer’s death became a political flashpoint in Assam
-
Will Delhi’s air pollution be the same this winter?
-
The menstrual leave policy in Karnataka leaves many women behind
-
Public transport falters, petrol sales rise: Can Delhi’s EV policy fill the gap?
-
सूर्पनखा के सोलह अवतार, डंकापति का दरबार और दलित आईपीएस की आत्महत्या