Maharashtra Coronavirus
महाराष्ट्र: महामारी में महाआपदा बन गए झोलाछाप डॉक्टर
दिगंबर वावलकर अपने 150 वर्ग फुट के कमरे में गुमसुम बैठे थे. उनके पिता महादेव वावलकर की तस्वीर दीवार पर टंगी थी. उनके पिता की मौत 20 दिन पहले हुई. पेशे से गन्ने की कटाई करने वाले दिगंबर ने अपने पिता के इलाज के लिए एक मुकादम से 30 हज़ार रुपए का कर्ज लिया था. अगले साल गन्ना काटकर उन्हें यह रकम चुकानी होगी. दिगंबर को हर पल इस बात का अफ़सोस होता है कि लाख कोशिश करने के बावजूद वह अपने पिता को कोविड महामारी से नहीं बचा पाए. मगर उन्हें एक और बात पर खीज होती है. स्थानीय निजी डॉक्टर ने उनके पिता को कोविड के सारे लक्षण होने के बावजूद भी कोविड की जांच कराने की सलाह नहीं दी. बल्कि अगले दस दिनों तक झोलाछाप डॉक्टर खुद ही इलाज करता रहा.
हैरान मत होइए, क्योंकि यह आ पबीती सिर्फ दिगंबर की ही नहीं है. महाराष्ट्र के बीड जिले के ग्रामीण इलाकों में ऐसे दर्जनों परिवार हैं जो ऐसे डॉक्टरों के इलाज का शिकार हो रहे हैं जिन्हें कोविड का इलाज करने की मान्यता प्राप्त तक नहीं है.
गौरतलब है कि यहां ज्यादातर डॉक्टर बीएएमएस (बैचलर ऑफ़ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी), बीएचएमएस (बैचलर ऑफ़ होम्योपैथिक मेडिसिन एंड सर्जरी) और एफआईसीएम (फ़ेलोशिप इन इंटेसिव केयर मेडिसिन) की डिग्री रखते हैं. ये डॉक्टर कोविड के लक्षण वाले मरीजों को कोविड की जांच करने की सलाह देने के बजाय खुद ही कई-कई दिनों तक उनका इलाज करते रहते हैं. अंत में मरीज की हालत बिगड़ने पर उसे सिटी स्कैन कराने की सालाह देते हैं. महादेव वावलकर और बीड के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले कई ग्रामीण ऐसे डॉक्टरों का शिकार हो चुके हैं. बीड ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ता हालत के चलते इन लोगों को इलाज के लिए ऐसे डॉक्टरों पर निर्भर रहना पड़ता है.
बीड के कारी गांव में रहने वाले 60 साल के महादेव वावलकर को 2 मई को खांसी और बुखार की शिकायत हुयी थी. 14 मई को उनकी मृत्यु हो गयी. दिगंबर अपने पिता के बारे में बताते हुए कहते हैं, "बुखार और खांसी होने के बाद मैं अपने पिता को डॉ. एचए वेताल के पास ले गया. डॉक्टर ने मेरे पिता की खून जांच करवाई और कहा कि उनका पेशा काम हो गया है (प्लेटलेट्स को ग्रामीण यहां पेशा कहते हैं). इसके बाद उन्होंने मेरे पिता को दस दिन का इलाज करने के लिए कहा. पिताजी को हर रोज़ सुबह शाम अस्पताल बुलाकर वो सलाइन की बोतल चढ़ाते थे और कुछ दवाइयां खाने के लिए देते. दस दिन बाद जब पिताजी की सेहत ज़्यादा बिगड़ गयी तब डॉ. वेताल ने कहा कि उनका पेशा (प्लेटलेट्स) बहुत ज़्यादा कम हो गया है. सीटी स्कैन कराना होगा. उन्होंने मुझे माज़लगांव ले जाने को बोला. सीटी स्कैन में सामने आया कि उन्हें कोरोना है. मैं जल्दी-जल्दी उन्हें परली के अनन्या अस्पताल ले गया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. अस्पताल पहुंचने पर नर्स ने उनका ऑक्सीजन चेक किया, लेकिन कुछ ही देर बाद मेरे पिता की मृत्यु हो गयी.”
दिगंबर बताते हैं, "डॉ. वेताल को पिताजी के इलाज के लिए मैंने 15 हज़ार रुपये दिए थे. उसके बाद अनन्या अस्पताल में उनका दाखिला कराते वक़्त 20 हज़ार रुपये और भरे थे. यह सारा पैसा पिताजी के इलाज के लिए मैंने मुकादम (चीनी मिलों में मजदूरों का इंतज़ाम करने वाला ठेकेदार) से उधार लिया था, क्योंकि हमारे पास पैसे नहीं थे. अगले साल गन्ना काटकर यह पैसे चुकाऊंगा.”
अपने पिता के इलाज के लिए पैसे लेने के अलावा दिगंबर ने मुकादम से दस हज़ार रुपये और उधार लिए हैं क्योंकि उनके घर में दाल, आटा, नमक, तेल, साबुन आदि जैसा सारा राशन ख़त्म हो चुका था.
वह कहते हैं, "पिताजी ठीक हो जाएं इसके लिए मैंने हर संभव प्रयास किया. मैंने उधार मांग कर डॉ. वेताल को पैसे दिए थे लेकिन उन्होंने मेरे पिता का इलाज ही नहीं किया. अगर वह शुरुआत में ही पिताजी की कोविड जांच करवाने के लिए कहते तो आज मेरे पिता शायद ज़िंदा होते.”
महादेव की पत्नी अरुणा वावलकर भी अपने पति की राय से सहमति जताती हैं. झोलाछाप डॉक्टरों के कारण ग्रामीण इलाकों में कोरोना की महामारी और बेकाबू होकर सामने आई.
40 साल के परमेश्वर जाधव की पांच मई को कोविड के चलते मृत्यु हो गयी थी. उनकी मृत्यु के लगभग एक हफ्ते पहले जब उन्हें बुखार आया था तब उनके घर वाले उन्हें तेलगांव के डॉ. शेटे के पास ले गए थे. उनके भाई विट्ठल जाधव बताते हैं, "डॉ. शेटे के पास मैं अपने भाई को ले गया था. उन्होंने उसकी खून जांच की और अगले तीन दिन के लिए उसे कुछ दवाइयां और सलाइन लगाने का इलाज दिया. उन्होंने कहा था कि बुखार है इलाज जारी रखो ठीक हो जाएगा. तीन दिन तक रोज़ सुबह शाम वो उसे अस्पताल में बुलाकर सलाइन लगा रहे थे. तीन दिन तक डॉ. शेटे का इलाज चला. लेकिन जब उसे आराम नहीं मिला हम उसे डॉ. तोषनीवाल के पास ले गए.”
परमेश्वर की पत्नी सीमा जाधव कहती हैं, "जब हम उन्हें डॉ. तोषनीवाल के पास ले गए थे तो उन्होंने बोला कि वो सलाइन और कुछ गोलियां देंगे जिससे मेरे पति ठीक हो जाएंगे. अगले दो दिन तक मेरे पति उनकी दी गयी दवाइयां खा रहे थे. तीसरे दिन वह जब वो सुबह गांव के शौचालय से लौट रहे थे, तो चक्कर खाकर बेहोश हो गए. उसके बाद हम उन्हें माज़लगांव के यशवंत अस्पताल ले गए थे. वहां सीटी स्कैन में उन्हें कोरोना निकला. अस्पताल ने रेमडेसिविर इंजेक्शन लाने को कहा. हमारे घर के लोग इंजेक्शन लेने के लिए बाहर गए थे उसी दौरान उनकी मौत हो गयी."
जब हमने विट्ठल और सीमा से पूछा कि क्या डॉ. शेटे और डॉ. तोषनीवाल ने उनसे एक भी बार परमेश्वर जाधव की कोविड की जांच करवाने या कोविड केयर सेंटर ले जाने के लिए कहा, तो उनका जवाब 'ना' में था. सीमा कहती हैं, "अगर वो ऐसा कह देते तो शायद मेरे पति की जान बच जाती."
बीड की माज़लगांव तहसील के नित्रुड गांव के 36 साल के प्रकाश लोंढे भी इस तरह के डॉक्टरों की हरकतों के चलते अपनी जान गंवा बैठे. उनके भाई सुनील लोंढे ने बताया, "बुखार आने पर मेरे भाई डॉ. गणगे के क्लिनिक में अपने आपको दिखाने गए. डॉ. गणगे ने मेरे भाई की खून जांच कर कहा कि उन्हें टाइफाइड हो गया और उनके पेशा (प्लेटलेट्स) कम हो गए हैं. उसके बाद 6-7 दिन तक वो हर रोज़ सुबह शाम उसको अस्पताल बुलाकर सालइन लगाते रहे, और खाने को कुछ दवाइयां दी थी. जब मुझे मेरे भाई की तबीयत के बारे में पता चला तो हमने उसका कोविड टेस्ट करवाया. उसकी रिपोर्ट पॉज़िटिव आयी. उसके बाद हमने उसे अम्बेजोगाई अस्पताल में भर्ती करवाया लेकिन 11 दिन वहां भर्ती रहने के बाद उसकी मृत्यु हो गयी."
वह कहते हैं, "अगर डॉ. गणगे ने अपना झोलाछाप इलाज दिए बिना मेरे भाई को सबसे पहले कोविड की जांच कराने को बोला होता तो वो ज़िंदा बच जाता."
नित्रुड ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले बड़ेवाड़ी गांव के रहने वाले 65 साल के सुग्रीव बड़े अपनी पत्नी प्रयागा छोटे बेटे मोहन को कोविड की बीमारी के चलते खो चुके हैं. वह कहते हैं, "तकरीबन दो या तीन अप्रैल को मेरी पत्नी और बेटे की तबीयत ख़राब हो गई थी. वह दोनों डॉ. वेताल के पास दिखाने के लिए गए थे. डॉ. वेताल ने उन्हें आठ दिन का इलाज करने के लिए कहा था और बोला था कि उन्हें टाइफाइड हो गया है. उसने कुछ दवाइयां दी थी और हर रोज़ दिन में दो बार उन्हें अपनी क्लिनिक में बुलवाकर सालाइन लगाता था. उसने एक बार भी यह नहीं कहा कि कोविड की जांच कर लो."
सुग्रीव के बड़े बेटे हरिभाऊ बड़े कहते हैं, "एक दिन सुबह मेरी मां अचानक से बेहोश हो गयीं. मेरे भाई की हालत भी ख़राब थी. हम दोनों को माज़लगांव के अस्पताल में ले गए. सीटी स्कैन में दोनों पॉजिटिव आए. उन्हें अस्पताल में भर्ती किया लेकिन उनकी तब तक तबीयत इतनी बिगड़ चुकी थी कि दस दिन बाद उनकी मृत्यु हो गयी.”
वह कहते हैं, "डॉ. वेताल ने मेरे भाई से इलाज के लगभग 40 से 50 हजार रुपये ले लिए. अगर वो पैसा कमाने का लालच छोड़ मेरे भाई और मां की हालत देखकर उन्हें सबसे पहले कोविड टेस्ट कराने को बोलते तो वो शायद बच जाते. मेरी मां और मेरा भाई दोनों की मौत से हमारी ज़िन्दगी उथल पुथल हो गयी है.”
मोहन की पत्नी स्वाति अपने तीन साल के बच्चे को गोद में लिए हुए कहती हैं, "ऐसे डॉक्टरों की प्रशासन को जांच कर इन पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, क्योंकि चंद रुपये के लिए यह लोग लोगों की ज़िन्दगी के साथ खेल रहे हैं.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने कारी, नित्रुड, बड़ेवाड़ी में ऐसे दर्जन भर परिवारों से बात की जिनके परिवार के किसी न किसी सदस्य ने डॉ. विलास शेटे, डॉ. एचए वेताल, डॉ. विजय गणगे और डॉ. संतोष कुमार तोषनीवाल से इलाज करवाया था और बाद में उनकी मौत हो गयी.
नित्रुड ग्राम पंचायत में 22 लोगों की कोविड से मौत हो चुकी है. तकरीबन आठ हजार की आबादी वाले इस ग्राम पंचायत में कोविड के लक्षण वाले मरीजों का इस तरह से इलाज कर रहे डॉक्टरों को नोटिस जारी किया है. इस नोटिस में लिखा था कि कोविड की जांच (एंटीजन टेस्ट/ आरटीपीसीआर) किये बिना किसी भी मरीज की अपने मन से कोई इलाज ना करें और ना कोई जांच (रक्तजांच आदि) करें.
नित्रुड ग्रामपंचायत के सरपंच दत्ता डाके न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, "बुखार खांसी होने पर गांव के लोग निजी डॉक्टरों के पास जा रहे थे और इन डॉक्टरों ने गांव के लोगों पर अपने प्रयोग करने शुरू कर दिए. इन लोगों के प्रयोगों के चक्कर में लोगों की जाने चली गयीं. कोविड जैसे लक्षण दिखने के बावजूद भी इस तरह के डॉक्टर अपने मन से लोगों का कुछ भी इलाज कर रहे हैं. वो उन्हें कोविड की जांच करने के निर्देश नहीं देते हैं. हमारे गांव में जो 22 लोगों की मौत हुयी है वह सभी लोग ऐसे डॉक्टरों द्वारा बेवकूफ बनाये गए हैं. जैसे ही हमें समझ में आया हमने पंचायत की एक कमेटी बनायी और ऐसे सभी डॉक्टरों को नोटिस भेजा.
वह आगे कहते हैं, "यह जो देहातों में कोरोना फैला है वो इसी तरह के झोलाछाप डॉक्टरों की वजह से फैला है. सरकार को इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए."
हमने पाया कि डॉ. विनोद शेटे, डॉ. एचए वेताल, डॉ. विजय गणगे और डॉ. संतोष कुमार तोषनीवाल के क्लीनिक तेलगांव-माज़लगांव रोड पर थोड़ी-थोड़ी दूर पर थे.
न्यूज़लॉन्ड्री ने उनके क्लिनिक पर जाकर इनमें से कुछ लोगों से बात की. डॉ. विनोद शेटे एक बीएएमएस डिग्री वाले आयुर्वेदाचार्य हैं. जनसेवा नाम से अपना क्लिनिक चलाते हैं. वह कहते हैं, "हम उसका इन्वेस्टीगेशन (जांच-पड़ताल) करते हैं, उसको एंटीबायोटिक, एंटी वायरल, स्टेरॉइड्स और कफ सिरप देते हैं. हम उनसे तीन दिन बाद आने के लिए बोलते हैं. अगर पेशेंट तीन दिन बाद सर्दी-खांसी वापस लेकर आता है तो हम उसके ब्लड की जांच (सी-आरपी - सी रिएक्टिव प्रोटीन) करते हैं. चेस्ट (छाती) की जांच करते हैं और अगर रिजल्ट आने के बाद उसमे कुछ कम-ज़्यादा होता है तब सीटी स्कैन करने को बोलते हैं और फिर कोविड की जांच करने को बोलते है."
न्यूज़लॉन्ड्री ने उनसे पूछा कि उनके पास आये कोविड के लक्षण वाले मरीजों को पहले कोविड की जांच करने के लिए क्यों नहीं कहते, तो उन्होंने कहा, "पहली बार जब हमारे पास मरीज आता है तो हम उसको बोल नहीं सकते कि कोरोना की जांच कराओ. हम उसको बोलते हैं दो-तीन दिन दवाई खाओ. उससे अगर आराम नहीं लगता है तो फिर जांच करवाने को बोलते हैं.”
वह आगे कहते हैं, "मैं पिछले दो महीनो में लगभग चार से पांच हज़ार कोविड के लक्षण वाले मरीजों का इलाज कर चुका हूं और इनमें से लगभग 300 से 400 कोरोना पॉजिटिव मरीज भी आये होंगे, वह अच्छे भी हुए हैं.”
डॉ. विजय गणगे भी एक बीएएमएस डॉक्टर हैं. वो हमें बताते हैं, "अगर कोई कोविड के लक्षण वाला मरीज हमारे पास आता है तो हम उसे पहले वायरल बुखार का इलाज देते हैं. अगर दो से तीन दिन में हालत नहीं सुधरती है तो फिर हम मरीज का ब्लड टेस्ट करते हैं, उसे डॉक्सीसाइक्लिन की गोलियां देते हैं और सलाइन लगा देते हैं. उसके बाद भी अगर हालत नहीं ठीक होती है तो कोविड की जांच करने को बोलते हैं. पिछले दो महीने में मैंने लगभग एक हजार कोविड के लक्षण वाले मरीजों को ठीक किया है."
न्यूज़लॉन्ड्री ने माउली नाम का क्लिनिक चलने वाले डॉ. एचए वेताल से भी बात की. पहले तो उन्होंने कहा कि वह कोविड के लक्षण वाले मरीजों का इलाज नहीं करते, लेकिन थोड़ी देर बातचीत करने के बाद वह खुलते हुए बोले, "ऐसा है कि जिनके पास पैसे नहीं होते वो कोविड के इलाज के लिए 80 हज़ार रूपये कहां से लाएंगे. लेकिन हम उनको 10 हज़ार में ठीक कर देते हैं. हम सलाइन चढ़ा देते हैं, दवाई देते हैं, अगर कुछ दिनों बाद असर नहीं होता है तो सीटी स्कैन करने को बोलते हैं, और अगर पॉजिटिव नतीजा आता है तो कोविड में दी जाने वाली गोलियां देते हैं."
इन सभी डॉक्टर्स ने बातचीत के दौरान बताया कि वह कोविड के लक्षण के मरीजों का पहले खुद ही इलाज करते हैं और बाद में जब हालत ठीक नहीं होती है तो कोविड की जांच करने को बोलते हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री ने डॉ. संतोष तोषनीवाल से भी उनके क्लिनिक जाकर बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने बात करने से मना कर दिया.
बीड के ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले एक संगठन जागर प्रतिष्ठान के अध्यक्ष अशोक तांगड़े कहते हैं, "बीड के देहातों में बड़ी तादाद में बीएचएमएस, बीएएमएस डॉक्टर अपने छोटे-छोटे अस्पताल खोलकर बैठे हुए हैं. उन्होंने जिस पद्धति की शिक्षा ली है, उसी के अनुसार मरीजों को दवा देना चाहिए. मगर आम तौर पर यह देखा जाता है कि ये डॉक्टर बिना डिग्री के ही एलोपैथी की प्रॅक्टिस करते है. कोविड के समय देहात के लोग बीमार होने के बाद सबसे पहले उनके पास जाते हैं. ये डॉक्टर तीन चार दिन तक उनका इलाज करते हैं फिर कोविड की जांच करने को कहते हैं. अक्सर तब तक हालात काबू के बाहर निकल जाते हैं.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बारे में बीड के जिलाधिकारी रविंद्र जगताप से भी बात की. वह कहते हैं, “हमने एक टीम बनायी है जो ग्रामीण इलाकों में ऐसे डॉक्टरों के कामों की शिकायत मिलने पर जांच करती है. हमने पहले भी ऐसे कुछ अस्पतालों को सील करवाया है. हम इस बात की जांच कर उन डॉक्टर्स पर कठोर कार्रवाई करेंगे.”
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