Report

धूल फांक रहे 7290 वेंटिलेटर: बिहार में दो लाख की आबादी पर सिर्फ एक, कहीं एक भी नहीं

"आप प्रचार पर मत जाइए, किसी सरकारी अस्पताल में बेड उपलब्ध नहीं है, कब तक मिलेगा और कैसे मिलेगा नहीं बता सकते." अप्रैल, 2021 जब कोविड की दूसरी लहर अपने उफान पर थी तब दक्षिणी-पश्चिमी दिल्ली में नियुक्त डिस्ट्रिक्ट सर्विलांस ऑफिसर (डीएसओ) ने डाउन टू अर्थ को यह कहा.

यह सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का हाल नहीं था, यह अफरा-तफरी देश के अलग-अलग हिस्सों में अब भी जारी है. गंभीर कोविड मरीज वेंटिलेटर जैसी इमरजेंसी सुविधाओं के अभाव में लगातार दम तोड़ रहे हैं. देश में कोविड से मृत्यु का सरकारी आंकड़ा 18 मई, 2021 तक 278719 पहुंच चुका है. राज्यों में अदालतों की सख्त टिप्पणियां जारी हैं. उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17 मई, 2021 को मामले की सुनवाई में अपनी हालिया टिप्पणी में कहा, "यहां व्यवस्था रामभरोसे चल रही है."

कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान भी राज्यों की आबादी के अनुपात में सरकारी अस्पतालों के इंटेसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में वेंटिलेटर की उपलब्धता सिक्किम जैसे राज्य में शून्य है तो बिहार जैसी बड़ी आबादी (10.4 करोड़: जनगणना 2011) वाले राज्य में प्रति दो लाख की आबादी पर महज एक वेंटिलेटर ही मौजूद है.

कोविड-19 में सासों का संकट : देश में वेंटिलेटर की स्थिति

वेंटिलेटर्स संकट के बीच पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र की सरकारों ने पीएम केयर्स फंड के जरिए राज्यों को दिए गए वेंटिलेटर्स की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाए हैं.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 13 मई, 2021 को अपने ट्वीट में कहा है कि पीएम केयर फंड से मिले करीब 1900 वेंटिलेटर्स की गुणवत्ता ठीक नहीं हैं. वेंटिलेटर्स एक-दो घंटे चलकर बंद हो जाता है. इसमें प्रेशर ड्रॉप की समस्या है.

इसके अलावा पंजाब सरकार ने भी वेंटिलेटर्स की गुणवत्ता पर सवाल उठाए थे. जबकि महाराष्ट्र सरकार पीएम केयर्स फंड के तहत वेंटिलेटर्स की जांच की बात उठा रही है.

राज्यों की ओर से लगातार वेंटिलेटर्स को लेकर आ रहे मामलों के बाद 15 मई, 2021 को एक उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वेंटिलेटर के तत्काल ऑडिट के लिए कहा. इसके बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर इसे बेहद जरूरी कदम करार दिया है.

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पांच फीसदी कोविड मरीज को वेंटिलेटर की जरूरत, भारत में 0.39 फीसदी वेंटिलेटर पर

देश में 18 मई, 2021 को कोविड के कुल 32.18 लाख एक्टिव मामले रहे. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक 5 फीसदी कोविड मरीजों को वेंटिलेटर बेड की जरूरत होती है. इस हिसाब से 18 मई को करीब 2 लाख लोगों को वेंटिलेटर की जरूरत होगी.

हाल ही में केंद्र सरकार ने पहली बार वेंटिलेटर और कोविड मरीज के बीच के अनुपात का एक आंकड़ा दिया है. 25वें मंत्री समूह की बैठक में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने 08 मई, 2021 को बताया कि देश में कुल एक्टिव केसलोड में 1.34 फीसदी मामले इंटेसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में हैं और इसमें से महज 0.39 फीसदी कोविड मरीज वेंटिलेटर पर हैं.

मंत्री समूह की बैठक में डॉ. हर्षवर्धन अपने बयान में पहली बार यह भी बताते हैं कि अब तक 488,861 मरीजों को आईसीयू बेड उपलब्ध कराया गया है. इनमें 170,841 मरीजों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी. 902,291 मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट दिया गया.

8 मई को देश में कुल 37.23 लाख एक्टिव केस थे. इसमें 0.39 फीसदी का मतलब 14,521 कोविड मरीज वेंटिलेटर पर थे. यदि ऐसा है तो डब्ल्यूएचओ के उस अनुमान का क्या जिसमें कोविड के 5 फीसदी मरीज को वेंटिलेटर की जरूरत के बारे में बताया गया है.

देश में कितने वेंटिलेटर बेड?

कोविड की पहली लहर के बीच 01 मई, 2020 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने अनुमान में कहा था कि जून, 2020 तक देश को 75 हजार वेंटिलेटर की जरूरत होगी. लेकिन एक साल बाद क्या स्थिति हुई?

आंकड़ों में सरकार बहुत स्पष्ट तस्वीर पेश नहीं करती है लेकिन डाउन टू अर्थ ने वेंटिलेटर्स की वास्तविक संख्या के लिए विभिन्न रिपोर्ट्स को खंगाला.

कोविड की दूसरी घातक लहर के दौरान 23 अप्रैल, 2021 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा कि कोविड संक्रमण के शुरू होने से पहले देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं (पब्लिक हेल्थ सेक्टर) अस्पतालों में 16 हजार वेंटिलेटर बेड थे. वहीं, 1 अक्तूबर, 2020 से अप्रैल तक कुल 10,787 वेंटिलेटर इंस्टॉल्ड हो सके. केंद्र ने 23 अप्रैल के इस हलफनामे में कुल 27 हजार इंस्टॉल्ड वेंटिलेटर का हिसाब दिया.

फरवरी, 2021 में सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर्स की उपलब्धता की यही स्थिति राज्यसभा में सरकार की ओर से बताई गई थी. 05 फरवरी, 2021 को राज्यसभा में दिए गए जवाब में कहा गया था कि 21 अप्रैल, 2020 को देश के विभिन्न राज्यों में कुल 13158 वेंटिलेटर थे. जबकि 28 जनवरी, 2021 तक इनकी संख्या 23619 हो गई. यानी करीब एक वर्ष में 10,461 वेंटिलेटर्स बढ़े.

सुप्रीम कोर्ट के हलफनामे और राज्यसभा में दिए गए सरकार के जवाब से यह स्पष्ट होता है कि एक वर्ष में 10 हजार से अधिक वेंटिलेटर ही सरकारी अस्पातलों में जनवरी, 2021 तक बढ़े. लेकिन आंकड़े और जरूरत यहीं खत्म नहीं होते.

12 मार्च, 2021 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने लोकसभा में बताया कि देश में 5 मार्च तक 1850.76 करोड़ की लागत के आवंटित किए गए 38,867 वेंटिलेटर्स में कुल 35,269 वेंटिलेटर्स विभिन्न राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के साथ केंद्रीय संस्थानों में लगाए (इंस्टाल्ड) गए हैं.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से 7 अप्रैल, 2021 के बाद 14 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के लिए आवंटित 12065 वेंटिलेटर में से महज कुल 9 राज्यों और केंद्रीय संस्थानों को 6,326 बेड पहुंचाए गए (गुजरात को 1900, उत्तर प्रदेश को 1100: 50 फीसदी) लेकिन इनमें से महज 2630 ही इंस्टॉल किए गए.

इस तरह अब तक केंद्र की ओर से राज्यों, संघ शासित प्रदेशों और केंद्रीय संस्थानों के लिए मार्च-अप्रैल के बाद आवंटित किए गए कुल 50,932 वेंटिलेटर में कुल 37899 वेंटिलेटर अस्पतालों में लग सके और 7294 वेंटिलेटर अभी तक सरकारी अस्पतालों में नहीं लग पाए हैं.

आवंटन का मतलब यह नहीं है कि केंद्र ने सभी राज्यों को आवंटित बेड पहुंचा दिया है.

यदि जिन अस्पतालों में वेंटिलेटर्स लगा भी दिए गए हैं तो उन्हें चलाने वाले दक्ष लोगों की बड़ी कमी बनी हुई है. राज्यों के पास मैनपॉवर की शॉर्टेज है. उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के कई जिलों में प्रशासन का कहना है कि इसीलिए वेंटिलेटर्स अभी तक इंस्टॉल नहीं किए गए हैं. डाउन टू अर्थ के पास मौजूद दस्तावेज दक्ष श्रमशक्ति के न होने की पुष्टि करते हैं.

एक वेंटिलेटर पर कम से कम एक डॉक्टर और एक तकनीकी व्यक्ति की जरूरत होती है. कोरोना की पहली लहर से दूसरी लहर तक देश में आईसीयू बेड और वेंटिलेटर के कुल आंकड़े भले ही बढ़े हों लेकिन कुछ राज्यों में यह घटे भी हैं. हरियाणा, पंजाब, पुदुचेरी, गोवा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, असम, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और झारखंड में आईसीयू बेड की संख्या पहले कोविड लहर के बाद घट गई है.

एक साल के भीतर (2020 से 2021, जनवरी) हरियाणा और पंजाब में आईसीयू बेड क्रमशः 79 फीसदी और 70 फीसदी तक घटा है. जबकि हरियाणा में 73 फीसदी और पंजाब में 78 फीसदी वेंटिलेटर्स की संख्या भी कम हुई है.

75 हजार वेंटिलेटर बीते वर्ष के अनुमान में अब तक 50 फीसदी

कोविड की तीसरी लहर आने को है और अस्पताल अब भी वेंटिलेटर जैसी अहम जरूरत के लिए जूझ रहे हैं. ऐसा खासतौर से उन राज्यों में है जहां ग्रामीण आबादी सबसे ज्यादा है. इनमें बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश प्रमुखता से शामिल हैं.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अप्रैल, 2020 में 60,948 वेंटिलेटर्स का ऑर्डर दिया था. इनमें 58850 वेंटिलेटर मेक इन इंडिया के तहत बनने थे. अब तक सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर इंस्टाल किए जाने का आंकड़ा करीब 50 फीसदी तक ही पहुंच पाया है.

क्या है वेंटिलेटर और क्यों है जरूरी ?

कई पाइपों से घिरे हुए एक मॉनिटर युक्त मेडिकल बेड पर मरीज को अचेत लेटे देखा होगा आपने. ऐसे मरीज जो फेफड़ों के संक्रमण (एक्यूट रिस्परेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम- एआरडीए) के चलते न सांस ले सकते हैं और न ही बाहर निकाल सकते हैं, उनके लिए इनवेसिव वेंटिलेटर आखिरी रास्ता होता है.

इनवेसिव वेंटिलेटर वह है जिसमें फेफड़ों के बीचो-बीच एक नली मुंह के रास्ते पहुंचा दी जाती है. इस प्रक्रिया को मेडिकल की भाषा में इंटूबेशन कहते हैं. दो पाइप होती हैं. यह पाइपें मरीज के रक्त से कॉर्बन डाई ऑक्साइड को बाहर निकालने (एक्सहेल) और शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने (इनहेल) का काम करती है. एक मॉनीटर पर हवा का दबाव (एयर प्रेशर) और ऑक्सीजन की मात्रा का ग्राफ चलता रहता है. ऐसे गंभीर मरीज के आस-पास डॉक्टर और दक्ष व्यक्ति का होना बेहद जरूरी है. ताकि वह मरीज को वक्त वक्त पर सही दबाव वाली हवा और ऑक्सीजन की मात्रा का निर्धारण कर सके.

ऐसी स्थिति में मरीज बोलने में असमर्थ होता है. एक यह भी कारण है कि गांव-देहात में ऐसे अस्पताल और आईसीयू अभी कल्पना से परे हैं. जहां ऐसे वेंटिलेटर लगाए जा सकें. इन दिनों ज्यादातर अस्पतालों में इनवेसिव वेंटिलेटर की देख-रेख और उन्हें चलाने की परेशानी सामने आ रही है.

सोशल मीडिया पर अस्पतालों में गंभीर मरीज जो कि ऐसे वेंटिलेटर पर हैं उनकी वीडियो फुटेज लाइव करने की मांग तीमारदारों के जरिए हो रही है, ऐसा इसलिए है क्योंकि कई परिजनों का आरोप है कि अस्पतालों में वेंटिलेटर की देखभाल ठीक तरीके से नहीं की जा रही और जिसके कारण मरीज की मृत्यु हो रही है.

द लैंसेट जर्नल के मुताबिक विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का मानना है कि कोविड मरीजों के फेफड़ों में संक्रमण का इलाज यथासंभव कंटीन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (सीपीएपी) अथवा नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन के जरिए किया जाना चाहिए.

वेंटिलेटर का विकल्प

हाई फ्लो नसल कैनुला (एचएफएनसी) भी वेंटिलेटर का विकल्प हो सकते हैं. पटना एम्स के अधिकारी लगातार ज्यादा से ज्यादा एचएफएनसी की खरीद पर जोर दे रहे हैं. 17 मई, 2021 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी उत्तर प्रदेश सरकार को एचएफएनसी के लिए कहा है.

यह नॉन इनवेसिव हाई फ्लो ऑक्सीजन थैरेपी होती है जिसके जरिए फेस मास्क कवर करके फेफड़े के संक्रमित मरीजों को अत्यधिक बहाव वाला ऑक्सीजन दिया जाता है. डॉक्टर्स का कहना है कि इस डिवाइस से भी स्थिति को सुधारा जा सकता है.

Also Read: पहलवान सुशील कुमार: खेल के साथ खेल करने का अपराध

Also Read: कोरोना से उबरे लोगों में अगले छह महीनों के दौरान मृत्यु का जोखिम सबसे ज्यादा