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सेकेंड वेव में दैनिक भास्कर: ‘जो दिख रहा है वह रिपोर्ट कर रहे हैं’
शाम के तकरीबन चार से पांच बज रहे थे, दिव्य भास्कर अखबार के अहमदाबाद दफ्तर में अख़बार के स्टेट एडिटर देवेंद्र भटनागर और चार अन्य लोगों की कोर टीम एक स्टोरी को लेकर गहन चर्चा कर रही थी. कहानी थी कि गुजरात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल का वो बयान जिसमें उन्होंने अपने पास 5000 रेडेमसिविर इंजेक्शन होने का दावा किया था और उन्हें बीजेपी दफ्तर से मुफ्त बांटने की बात कही थी.
दूसरी तरफ जब कुछ पत्रकारों ने गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे पूछा कि आखिर पाटिल इतनी बड़ी संख्या में बीजेपी दफ्तर से रेमडेसिविर क्यों बाट रहे हैं. इस पर रूपानी ने कहा कि इस बारे में आपको सीधे पाटिल से ही बात करनी चाहिए.
भटनागर को इन दोनों नेताओं का बयान बहुत हैरान करने वाला लगा. उनके मन में यह सवाल था कि जहां एक तरफ लोगों को अपने परिजनों के लिए इंजेक्शन नसीब नहीं हो रहे थे, लोग उसके लिए मारे-मारे घूम रहे थे वहीं गुजरात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के पास इतने सारे इंजेक्शन कहां से आए? और मुख्यमंत्री को इसके बारे में जानकारी क्यों नहीं है?
दिव्य भास्कर अहमदाबाद की कोर टीम यह चर्चा कर रही थी कि किस तरह से इस कहानी को बेहतर ढंग से किया जाए. टीम का मत था कि इतनी बड़ी तादाद में किसी व्यक्ति के पास हज़ारों इंजेक्शन का होना गलत है और इसकी पड़ताल होनी चाहिए. लगभग आधा घंटा चर्चा करने के बाद तय हुआ कि पाटिल के फोन नंबर की हेडलाइन छापी जाए, जिससे कि लोग उनसे सीधा सवाल करें. आखिर मुख्यमंत्री ने भी यही कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया था.
अगले दिन 11 अप्रैल को जब खबर छपी तो पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई. इसके कुछ ही दिन बाद दैनिक भास्कर- भोपाल ने फ्रंट पेज पर "सरकार के मौत के आंकड़े झूठे हैं, ये जलती चिताएं सच बोल रही है" लिखते हुए भदभदा शमशान घाट में जलती हुई चिताओं की तस्वीर लगाई. यह खबर भी आग की तरह फ़ैल गयी. भास्कर की पत्रकारिता की हर जगह प्रशंसा होने लगी, इसके बाद भास्कर की पत्रकारिता की चारो तरफ तारीफ होने लगी.
देखा जाए तो कोविड की दूसरी लहर की शुरुआत से लेकर अब तक दैनिक भास्कर ने बहुत ही आक्रामक तरह की पत्रकारिता की है. चाहे मध्य प्रदेश हो, उत्तर प्रदेश हो, राजस्थान हो या गुजरात. भास्कर ने कोविड से जुड़ी खबरों और सरकारी अव्यवस्थाओं को तरजीह देते हुए छापा है.
भास्कर की इस आक्रामक पत्रकारिता के बारे में भटनागर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "ऐसा नहीं है कि भास्कर इस तरह की स्टोरीज़ पहली बार कर रहा है. हमने पहले भी सरकार और प्रशासन के गलत कामों को खुल कर रिपोर्ट किया है. हमने गुजरात हो या मध्य प्रदेश सरकार- प्रशासन की खामियों को अक्सर उजागर किया है. अभी हमारा पूरा ध्यान कोविड पर है और हम कोविड से जुडी खबरों पर प्राथमिकता से कहानियां छाप रहे हैं. इसलिए शायद लोगों को भास्कर की पत्रकारिता अलग नज़र आ रही. लेकिन भास्कर पहले से ही इस तरह की पत्रकारिता करता आया है."
वह आगे कहते हैं, "भास्कर की शुरुआत से यही सोच रही है कि सच को सच और गलत को गलत कहना है. अगर सरकार गलत काम करती है तो हम उसके गलत बातों के बारे में लिखते हैं और अगर वो अच्छा काम करती है तो हम उनकी अच्छी बातों के बारे में भी लिखते हैं. हमारे अखबार के चेयरमैन रमेश अग्रवाल साहब अक्सर कहते थे- जैसा है वैसा देख और जैसा देख वैसा लिख'. तो जो सच है वो हम लिखते हैं और वही भास्कर कर रहा है. हमने कभी यह परवाह नहीं की कि हमारी खबरों से सरकार को बुरा लग जाएगा या हमारे संबंध खराब हो जाएंगे. हमारे पाठक हमारे केंद्र में हैं, हम अखबार उनके लिए निकालते है. आज इस महामारी के दौर में जब लोग मर रहे हैं, हालात खराब हैं और सरकार किसी ना किसी तरीके से चीज़ों को दबाने की कोशिश कर रही है, तो पाठक चाहते हैं कि उन्हें सच बताया जाए. अगर इस समय मैं उनसे सच छुपाऊंगा तो मैं अपने पेशे से धोखा करूंगा. इसलिए हम सब बातों पर खुलकर रिपोर्ट कर रहे हैं. हमारा कोई एजेंडा नहीं है और न हमारी सरकार से कोई दुश्मनी या विरोधाभास है."
गुजरात भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का फ़ोन नंबर हेडलाइन बनाकर छापने के बारे में वो कहते हैं," जब हमने गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी से प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल के पास 5000 इंजेक्शन होने को लेकर सवाल किया तो उन्होंने जवाब में कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ नहीं मालूम और हम इस बारे में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष से पूछें. हमने जब पाटिल साहब से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उनको इंजेक्शन उनके मित्रो ने उपलब्ध कराये हैं, जब हमने उनके मित्रो के नाम जानने चाहे तो वह कहने लगे जिसको इंजेक्शन चाहिए वो ले जिसको नहीं चाहिए वो ना ले. इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना गुजरात की जनता जो इंजेक्शन के लिए मारी मारी भटक रही थी, खुद उनसे यह सवाल करें कि उनको यह इंजेक्शन कहां से मिले और इसको ध्यान में रखते हुए हमने उनके नंबर को हेडलाइन बनाया."
दैनिक भास्कर भोपाल में काम करने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपना नाम गोपनीय रखने की शर्त पर हमें बताया, "ऐसा नहीं है कि हम कोई स्टैंड लेकर काम कर रहे हैं. हमारे एमडी साहब का कहना है कि भास्कर को हमेशा पब्लिक ओपिनियन के साथ खड़ा होना है. हम सरकार के खिलाफ नहीं जनता के हक़ में रिपोर्टिंग कर रहे हैं. यह बात ज़रूर है कि भास्कर खुद से पहल करके सरकार के खिलाफ नहीं लिखता है लेकिन यहां मामला लोगों का है इसलिए ऐसी रिपोर्टिंग हो रही है. श्मशानों को लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने जो कहानियां की थीं उसकी शुरुआत दैनिक भास्कर ने ही की थी. भास्कर ने ही सबसे पहले श्मशान घाट में जलती हुई चिताओं का फोटो लगाया था. वो फोटो फ्रीलांस फोटोग्राफर संजीव गुप्ता ने खींचा था और भास्कर ने उसे लगाया था."
हाल ही में भास्कर ने उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे बसे 27 जिलों में कोविड से मारे गए लोगों को दफ़नाने की एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जो सरकारी अव्यवस्था की भयावह स्थिति को दिखाती है. अपनी ग्राउंड रिपोर्ट से अखबार ने गंगा घाट के किनारे लाशों की लाइन दिखायी थी. उस रिपोर्ट में अखबार ने 30 रिपोर्टर के जरिए 27 जिलों में 1140 किलोमीटर तक जाकर खुद लाशों की पड़ताल की थी. जिसके बाद से गंगा किनारे की लाशें अन्य मीडिया भी प्रमुखता से दिखाने लगा.
भास्कर उत्तर प्रदेश से जुड़े एक पत्रकार ने नाम ना लिखने की शर्त पर बताया, "उत्तर प्रदेश में भास्कर ने अपनी डिजिटल टीम नए सिरे से झोंकी है. यूपी में हमारा अखबार नहीं निकलता है इसलिए डिजिटल के ज़रिये स्थापित करने की पहल है. वहां ओम गौड़ जो हमारे नेशनल एडिटर थे उनको भेजा गया है. उनके अलावा सूरत के एडिटर विजय चौहान, डी-बी स्टार के एडिटर योगेश पांडे और पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार श्याम द्विवेदी को भी वहां भेजा गया है. यह टीम दो महीने पहले ही गयी है. यूपी में इस वक़्त जागरण और अमर उजाला कुछ ख़ास लिख नहीं रहे हैं. वहां के मौजूदा हालात पर भास्कर बहुत अच्छी तरह से रिपोर्टिंग कर रहा है. इससे हमें वहां स्थापित होने में मदद मिलेगी."
दैनिक भास्कर डिजिटल के एडिटर इंचार्ज और नेशनल एडिटर ओम गौड़ कहते हैं, "भास्कर ने हमेशा से आक्रामक रिपोर्टिंग की है. भास्कर ने पूर्व में ऐसी हज़ारों स्टोरीज़ ब्रेक की हैं, लेकिन कोरोना के वक़्त कुछ स्टोरीज़ उभर कर सामने आईं हैं, क्योंकि कोरोना एक राजनैतिक मुद्दा बन गया था. उत्तर प्रदेश में अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर दबाव था खबरें नहीं करने का, ऐसे में जब यह कोविड वाली स्टोरीज़ भास्कर ने की तो वो तुरंत उभर कर आईं."
जब न्यूज़लॉन्ड्री ने उनसे पूछा कि क्या यह सब खबरें करने के चलते उन पर सरकार से कोई दबाव आया, तो वह कहते हैं, "देखिये दबाव बनाने के तरीके अलग-अलग होते हैं. जब हमने गंगा के घाटों पर प्रशासन द्वारा लाशें दफनाने वाली स्टोरी की थी तो उसके तुरंत बाद मुझे सरकार के एक नुमाइंदे का फ़ोन आया था. उस स्टोरी को एक रिटायर्ड आईएएस अफसर एसपी सिंह ने ट्वीट किया था. उस सरकारी नुमाइंदे ने मुझे फोन करके कहा कि आपकी खबर को एसपी सिंह ने ट्वीट किया है और अगर यह आपकी खबर नहीं है तो हम उस पर मुकदमा करेंगे. मैंने उनसे पलट कर कहा कि अगर आपको मुकदमा करना है तो मुझ पर कीजिये क्योंकि यह खबर भास्कर ने चलायी है. मैंने उनसे यह भी कहा कि वह खबर को देखे, उस खबर में कुछ भी गलत नहीं है. खबर को तमाम सबूतों और आंकड़ों के साथ छापा गया था."
क्या सरकार ने भास्कर की खबरों के चलते विज्ञापनों पर रोक लगाया है. इसके जवाब में गौड़ ने कहा, "अखबारों पर दबाव डालने का सरकारों के पास एक ज़रिया होता है. वह मुकदमा कर नहीं सकते क्योंकि खबरे पूरे सबूतों के साथ हम प्रकाशित करते हैं, तो अख़बार का कुछ बिगाड़ने के लिए उनके पास बस यह एक ही तरीका है. कोई भी पार्टी सरकार में हो, वह इस तरह के हथकंडे अपनाती है और आजकल यह एक ट्रेंड बन गया है. लेकिन हम फिर भी अपना काम करते हैं. हमारा किसी के खिलाफ कोई एजेंडा नहीं है हमारा बस एक ही एजेंडा वह है खबर और हम वही कर रहे हैं. हमारे देश के अलग-अलग प्रदेशों की सरकारों में कोविड को लेकर प्रतिस्पर्धा सी हो गयी. कोरोना को यह लोग एक राजनैतिक अवसर के रूप में देख रहे थे. इनकी उन्हीं हरकतों के चलते दूसरी लहर भी आ गई और इसमें हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की पूरी पोल खुल चुकी है."
उत्तर प्रदेश भास्कर के डिजिटल टीम में काम कर रहे विजय सिंह चौहान कहते हैं, “भास्कर हमेशा से ही सच्चाई के साथ रिपोर्ट करता है. हमारी रिपोर्टिंग जनता से जुड़े मुद्दों पर केंद्रित होती है. इस समय कोविड महामारी से लोग मर रहे है, ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहा है, मौतों को छुपाया जा रहा है. हम उसे ही कवर कर रहे है.”
उत्तर प्रदेश भास्कर की डिजिटल टीम से जुड़े एक पत्रकार नाम नहीं लिखने की शर्त पर कहते हैं, "इस वक़्त हो सकता है दूसरे लोग कम काम कर रहे हैं और भास्कर ग्राउंड रिपोर्टिंग ज़ोर से कर रहा है तो उसकी कहानियां प्रमुखता से दिख रही हैं. हमने पिछले साल भी इसी तरह की रिपोर्टिंग की थी, लेकिन इस साल बहुत सी मौतें हो गयी हैं तो खबरें भी उसी तरह की हो रही हैं."
डिजिटल टीम से ही जुड़े एक अन्य पत्रकार नाम ना लिखने की शर्त पर कहते हैं, "उत्तर प्रदेश की स्थिति यह है कि अगर आप कोई अखबार उठा कर देखेंगे तो ऐसा लगेगा की सरकार ने अखबार प्रकाशित किया है. ऐसे में भास्कर द्वारा की जा रही रिपोर्टिंग अलग नज़र आ रही है."
दैनिक भास्कर भोपाल में काम करने वाले एक पत्रकार कहते हैं, "पिछली बार के मुकाबले भास्कर की रिपोर्टिंग और आक्रामक हुई है. सरकारों की व्यवस्थाएं भी पूरी तरह से असफल रहीं और इसके बारे में लिखना बहुत ज़रूरी था. दैनिक भास्कर ने ही भोपाल में ऑक्सीजन की कमी के चलते मृत्यु होने की खबर सबसे पहले प्रकाशित की थी. खबर करने के बाद प्रशासन और सरकार ने खबर का खंडन करने का दबाव भी बनाया था लेकिन भास्कर ने खंडन नहीं किया क्योंकि खबर तथ्यों के आधार पर थी. इसी तरह सरकार द्वारा कोविड सिटी वैल्यू बताने वाले लैब्स को बंद करने के ऊपर जब भास्कर ने खबर की थी तब भी सरकार की तरफ से खंडन करने का दबाव बनाया गया था लेकिन भास्कर ने ऐसा नहीं किया. हम लोग खबरों को बहुत जांच-परख कर ही प्रकाशित करते हैं."
गौरतलब है कि भास्कर के मैनेजमेंट ने अभी हाल ही में घोषणा की थी कि जिन कर्मचारियों की कोविड के चलते मृत्यु हो गयी है उनके परिवार को कंपनी एक साल तक उनकी तनख्वाह मुहैय्या करवाएगी, इसके अलावा परिवार के लोगों को सात लाख रुपये का मुआवजा भी दिया जाएगा.
कोरोना महामारी ने सरकारों को बेपर्दा कर दिया है. राज्य से लेकर केंद्र तक सभी सरकारें जनता को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मुहैया करा पाईं. अपनी नाकामी को छुपाने के लिए सरकारों ने मीडिया को प्रभावित करने का काम हमेशा की तरह जारी रखा है. लेकिन इस मुश्किल समय में दैनिक भास्कर जिसकी छवि एक ऐसे अखबार की है जो सरकार के खिलाफ खुल कर नहीं लिखता है ने सरकार से काफी कड़े सवाल किये हैं.
कोरोना की पहली लहर अप्रैल-मई 2020 के दौरान दैनिक भास्कर की रिपोर्टिंग देखने के लिए हमने दिल्ली संस्करण को देखा. पहली लहर के दौरान कोविड को लेकर अखबार में वह तेजी और आक्रामक रुख नहीं दिखा जो इस बार दिख रहा है. अखबार के संपादकीय में प्रकाशित लेख भी वैसे नहीं हैं जो इस बार दिख रहे हैं. पहले लेखों में वह धार नहीं दिखी जो अभी दिख रही है. अन्य अखबारों की तरह ही भास्कर ने भी पहली लहर को कवर किया था.
वहीं अप्रैल और मई 2021 की रिपोर्टिंग की चर्चा हर जगह है. राज्य दर राज्य सरकारों के दावों पर अपनी रिपोर्टिंग से कड़े सवाल दाग कर अखबार ने गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार में सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. ऐसी बहुत सारी रिपोर्टों और लेखों के जरिए भास्कर जनता से जुड़े मुद्दों को उठा रहा है.
भास्कर ने अपने गृह राज्य मध्य प्रदेश में भी भाजपा सरकार से बेहद कड़े सवाल किए. भोपाल में बड़े पैमाने पर हो रही मौतों को कहीं रिपोर्ट नहीं किया जा रहा था. लेकिन जब भास्कर ने श्मशान घाट की तस्वीर प्रकाशित की तो सभी ने सरकार से सवाल पूछने शुरू कर दिए. कोविड से लोगों की मौत हो रही थी और सरकार उन्हें आम मौत बता रही थी. भोपाल में छुपाए जा रहे मौत के आंकड़ों पर न्यूज़लॉन्ड्री ने खुद भी ग्राउंड से रिपोर्ट की है.
दैनिक भास्कर राजस्थान के स्टेट एडिटर मुकेश माथुर कहते हैं, "अलग अलग प्रदेशों में स्थानीय स्तर पर जो भी गलत होता है भास्कर हमेशा उसके खिलाफ लिखता है. इस वक़्त हमारी रिपोर्टिंग उभर के इसलिए दिख क्योंकि करोना वैश्विक मुद्दा है और दूसरा बाकी लोग हमारी तरह की आक्रमक रिपोर्टिंग नहीं कर रहे हैं. चाहे भाजपा शासित प्रदेश हों या कांग्रेस शासित हम हर जगह खुल के खबरें कर रहे हैं. आजकल राइट विंग मीडिया और लेफ्ट विंग का एक चलन सा हो गया लेकिन हम इससे कोई वास्ता नहीं रखते. हम सवाल उससे करते हैं जो सत्ता में होता है ना कि विपक्ष में.
राजस्थान में की गई भास्कर की एक रिपोर्ट के बारे में बताते हुए वह कहते हैं, "हमने 25 जिलों में अपने रिपोर्ट्स को श्मशान घाटों, कब्रिस्तान आदि जगहों पर भेज कर ग्राउंड से खबरें कराई थी. नतीजा यह निकला कि राजस्थान सरकार जो मौतों के आंकड़े छुपा रही थी उसकी पोल खुल गयी."
भास्कर बिहार के एक पत्रकार कहते है, “भास्कर हमेशा से ही मौके पर जो दिखता है उसे ही कवर करता है. अन्य अखबारों में चुनाव आते ही कहा जाता है कि दिनदहाड़े, ताबड़तोड़ सनसनीखेज और ऐसे शब्दों का उपयोग ना करें जिससे सरकार और प्रशासन की नाकामी दिखे. लेकिन अगर कोई घटना दिन में बाजार में सरेआम होती है तो उसे क्यों नहीं दिनदहाड़े लिखा जाए.”
वह आगे कहते है, “मेरे संस्थान ने मुझे कभी नहीं रोका. उन्होंने मेरी खबरों को कभी कभार ही काटा होगा नहीं तो मेरी रिपोर्ट्स को ऐसे ही छाप दिया गया है.” वह विज्ञापन नीति पर कहते हैं, “भास्कर का हमेशा ही किसी न किसी मंत्रालय का विज्ञापन रुका होता है. यहां अगर शिक्षा विभाग पर किसी ने स्टोरी की और वह पसंद नहीं आई तो शिक्षा विभाग अगले ही दिन विज्ञापन रोक देता है. विभाग के सचिव एक अन्य मंत्रायल भी देखते है उस मंत्रालय का भी विज्ञापन बंद हो जाता है. ऐसा ही दूसरे मंत्रालयों के साथ भी होता है.”
भास्कर की इस आक्रमक रिपोर्टिंग के पीछे का कारण कुछ लोग भास्कर को सरकारी विज्ञापनों का न मिलना भी बता रहे हैं.
मध्य प्रदेश जनसंपर्क के विज्ञापन विभाग में काम कर चुके एक पूर्व अधिकारी गोपनीयता की शर्त पर कहते हैं, "असल में भास्कर के इस आक्रामक रवैये का एक कारण यह भी है कि पिछले छह महीनों में उनको दिए जाने वाले विज्ञापनों में भारी कटौती की गयी है. दो तरह के विज्ञापन होते हैं एक जिसमें टेंडरों की जानकारी होती है और दूसरे होते हैं डिस्प्ले विज्ञापन जो सरकार के प्रचार प्रसार के बारे में होते हैं. भास्कर को दिए जाने वाले टेंडर विज्ञापनों में पिछले छह महीनों में भारी कमी आयी है और डिस्प्ले विज्ञापन भी उनको इक्का दुक्का मिल रहे थे. खैर डिस्प्ले विज्ञापन तो थोड़े बहुत उनको अब मिल रहे हैं लेकिन टेंडर विज्ञापन अभी भी नहीं मिल रहे हैं."
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बारे में मध्य प्रदेश जनसंपर्क के विज्ञापन विभाग के मौजूदा उच्च अधिकारी से जब इस बारे में बात की तो उन्होंने खुलकर बात करने से मना कर दिया. बाद में नाम ना लिखने की शर्त पर उन्होंने कहा, "भास्कर के विज्ञापन पिछले छह महीनों में कम ज़रूर किये हैं लेकिन बंद नहीं किये. कोविड के चलते वैसे डिस्प्ले विज्ञापन कम ही दिए जा रहे हैं, लेकिन हां टेंडर विज्ञापन उनके 90 प्रतिशत से कम कर दिए गए हैं. यह बहुत ऊंचे स्तर का मामला है हम लोगों के स्तर का नहीं है. सरकार के ऊपर से निर्देश हैं. पहले हर महीने लगभग 50 लाख से ज़्यादा के विज्ञापन मिलते थे, लेकिन अब कम हो गए हैं. बड़े स्तर का मामला है, हम लोग इस पर ज़्यादा कुछ नहीं बोल सकते हैं."
भोपाल के जाने माने पत्रकार शम्स-उर-रहमान अल्वी कहते है, "राज्यों में ओवरऑल ऐड पॉलिसी (सम्पूर्ण विज्ञापन नीति) और कई अन्य कारण अखबारों की कवरेज पर असर डालते हैं. कुछ अख़बार, काफी हद तक प्रो-इस्टैब्लिशमेंट (सरकार के समर्थन) रहते हैं, सरकार से टकराव पसंद नहीं करते. दैनिक भास्कर की लगातार एक्सपोज़ करने वाली स्टोरीज़ देख कर हैरानी तो होती है. क्योंकि प्रदेश के अंदर भी काफी बंदिशें होती हैं मगर ऐसा लगता है कि यह एक कॉन्शस डिसीज़न (सोच समझ के निर्णय लिया) है. इससे अखबार की इमेज (छवि) को फायदा हो रहा है."
भोपाल के रहने वाले एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार नाम ना लिखने की शर्त पर कहते हैं, "दैनिक भास्कर और सरकार के रिश्तों के बीच कुछ दरार सी आ गई. इनके विज्ञापन भी सरकार ने बंद कर दिए. अख़बार भी अब प्रदेश में ख़बरों के ज़रिये दबाव की रणनीति अख्तियार करता हुआ नज़र आ रहा है. भास्कर पहले भी बड़ा समूह था और उन्होंने कभी भी सरकार के गलत कामों के खिलाफ मुखर होकर आवाज़ नहीं उठायी. वह जिस तरह की रिपोर्टिंग अभी कोविड के दौरान कर रहे हैं वो पहले भी कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया. लेकिन अखबार की रिपोर्टिंग में यह भी नज़र आ रहा है कि यह राष्ट्रीय स्तर पर भी एक राजनैतिक लाइन पकड़ रहा है. मोदी और शाह किसी को घास नहीं डालते हैं और अख़बार को भी लग रहा है कि शायद इनका दौर जाएगा. लेकिन एक बात यह भी समझिये कि इस तरह के अख़बार बदलती सरकारों के साथ बदल जाते हैं. आपको लगेगा कि अखबार सरकार के गलत कामों के खिलाफ आवाज़ मुखर कर रहे हैं लेकिन कब यह सरकार के सुर में सुर मिलाने लगें यह पता भी नहीं चलेगा."
न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत के दौरान दैनिक भास्कर के एक सीनियर एग्जीक्यूटिव ने बताया कि भास्कर हमेशा तथ्यों के आधार पर रिपोर्टिंग करता है. अगर कोई यह कहता है, कि पिछले साल कोविड पर भास्कर आक्रामक नहीं था और अब बहुत आक्रामक हुआ है तो उसकी एक बड़ी वजह है. इस बार जो हुआ है वह पिछले 50 सालों में कभी नहीं हुआ. जब पिछले साल ऐसा हुआ ही नहीं था तो कैसे आक्रामक होकर रिपोर्ट करते.
उनके मुताबिक भास्कर का संपादकीय सिद्धांत है 'केंद्र में पाठक'. यहां जो भी रिपोर्ट होती है पाठकों को ध्यान में रख कर होती है. इस बार इतनी बड़ी तादाद में लोगों की मृत्यु हो रही थी, बड़ी तादाद में कोविड के मामले बढ़ गए थे, अस्पतालों में लोगों को जगह नहीं मिल रही थी, ऑक्सीजन की कमी के चलते लोगों की जान जा रही थी, रेमडेसिविर इंजेक्शन नहीं मिल रहे थे, एम्बुलेंस नहीं मिल रही थी, ऐसे बहुत से मुद्दे थे. इन मुद्दों को तथ्यों के आधार पर रिपोर्ट किया गया. दुर्भाग्यवश बाकियों ने इस पर रिपोर्ट नहीं किया.
वह हमें बताते हैं, "भास्कर के विज्ञापन को लेकर जो बातें चल रही हैं उसमें गौर करने की बात यह है कि वह विज्ञापन दिसंबर से बंद हैं. उन विज्ञापनों की बंदी का अखबार द्वारा की जा रही रिपोर्टिंग से कोई मतलब नहीं है. ना ही हमारी ख़बरों के चलते हम पर किसी भी सरकार के मुख्यमंत्री या केंद्र सरकार का दबाव बनाया गया, ना ही उनकी तरफ से कोई फ़ोन आया. अगर आप हमारे अखबार की कवरेज देखेंगे तो पाएंगे कि ना हम किसी व्यक्ति को निशाना बना रहे हैं और ना ही किसी पार्टी को. भास्कर गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड सब जगह रिपोर्टिंग कर रहा है. कोई भाजपा शासित प्रदेश हो या गैर भाजपा शासित प्रदेश इस बात से हमें कोई मतलब नहीं है."
जाहिर है भास्कर की मौजूदा रिपोर्टिंग रुख का कोई ब्लैक एंड व्हाइट निष्कर्ष नहीं है. इसकी तमाम वजहें हैं. लेकिन उन सबमें सबसे अहम है संपादकीय स्वतंत्रता जो ज्यादातर संपादकों को मिली हुई है, ऐसा संकेत हमारी रिपोर्टिंग के दौरान मिला.
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