Report

सद्गुरु ईशा फाउंडेशन ने अपने अवैध निर्णाण पर न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट का किया खंडन

पिछले हफ्ते न्यूजलॉन्ड्री ने तीन भागों में, जग्गी वासुदेव के भारत में सबसे प्रभावशाली आध्यात्मिक बाबाओं में से एक बनने, उनके व्यापार और "आध्यात्मिक" लेनदेन, और कोयंबटूर में ईशा योग केंद्र की स्थापना के अवैध पहलुओं पर रिपोर्ट प्रकाशित की थीं. हमारी रिपोर्टों का उत्तर देते हुए ईशा ने दावा किया, "हम स्पष्ट तौर पर यह दोहराते हैं कि योग केंद्र की सभी इमारतें वैध हैं और किसी भी कानून का अतिक्रमण नहीं करती हैं."

यह सत्य नहीं है. न्यूजलॉन्ड्री के पास दस्तावेज हैं जिनमें ईशा यह कबूल कर रही है कि उसके योग केंद्र का निर्माण, पर्यावरण नियमों का अतिक्रमण करते हुए हुआ था.

12 अप्रैल 2018 को, ईशा फाउंडेशन ने अपने अवैध रूप से निर्मित केंद्र के लिए राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण से मंजूरी लेने के लिए लिखे पत्र में, यह स्वीकार किया. "हमने अपनी योजना का निर्माण ईआईए नोटिफिकेशन 2006 का उल्लंघन करते हुए, पर्यावरण मंजूरी लिए बिना किया."

ईशा योग केंद्र 4,87,418 वर्ग मीटर के प्लॉट में बना है जिसमें चित्रा ब्लॉक, ध्यानलिंग मेडिटेशन कॉन्प्लेक्स, स्पंद हॉल, आदियोगी मेडिटेशन हॉल, मंडपम, ईशा स्कूल और इसके अलावा कावेरी, नर्मदा, नोय्यल और नेत्थ्रवती कॉटेज भी हैं. प्रांगण में कुल मिलाकर 68 इमारतें हैं. नियमों के अनुसार, कोई भी प्रार्थी जो निर्माण पूरा होने के बाद पर्यावरण मंजूरी लेना चाहता है, उसे राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को हर्जाना देना होगा और उनके ऊपर मुकदमा भी दायर होगा. ईशा नहीं चाहती थी के उनके ऊपर मुकदमा दायर हो.

ईशा ने जब यह अर्जी दाखिल की थी, उस समय राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण में कार्यरत एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, "नियम यह है, कि जो भी इस प्रकार का उल्लंघन करता है उसे मुकदमा झेलने के साथ-साथ हर्जाना भी देना पड़ता है. लेकिन ईशा तय कार्यपद्धती पर चलने को तैयार नहीं थी. उन्होंने कहा कि वह हर्जाना दे देंगे लेकिन मुकदमा नहीं चाहते. हमने उन्हें बताया कि इस मुकदमे से बचने का कोई तरीका नहीं है. एक तो उन्होंने पर्यावरण संबंधी उल्लंघन किए थे और फिर, निर्माण के बाद में मंजूरी लेने की प्रक्रिया के हिसाब से भी चलना नहीं चाहते थे."

पिछले साल 20 मार्च को, उनकी याचिका की समीक्षा कर पर्यावरण प्राधिकरण ने फाउंडेशन को यह निर्देश दिया था की वह लोक निर्माण विभाग, पर्वतीय क्षेत्र संरक्षण प्राधिकरण और राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक से मिले सभी निर्देशों के पालन की रिपोर्ट प्रस्तुत करें. उन्होंने इस बात का भी सबूत मांगा कि योग केंद्र के पानी की आपूर्ति को मंजूरी "उचित विभाग", यानी तमिलनाडु जल आपूर्ति और निकास बोर्ड से मिली है.

आवश्यक जानकारी देने के बजाय, फाउंडेशन ने अपनी याचिका वापस लेने की इच्छा प्रकट की.

न्यूजलॉन्ड्री ने ईशा फाउंडेशन से पूछा कि क्या उसने राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण से, अपने योग केंद्र के लिए निर्माण के बाद मंजूरी लेने की कार्यपद्धती का अनुसरण किया, और क्यों उसने अपनी याचिका को वापस लेने की विनती की. अगर फाउंडेशन की तरफ से कोई जवाब आता है तो उसे इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.

Also Read: धंधे की तरकीब: सद्गुरु का ईशा फाउंडेशन टैक्स देने से कैसे बचता है

Also Read: कानून की जमीन पर खोखली नजर आती ईशा फाउंडेशन के साम्राज्य की नींव

Also Read: पत्रकारों और राजनेताओं के कंधों पर पैर रख-रखकर कैसे एक शख़्स जग्गी वासुदेव से सद्गुरु बन गया