Opinion
केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट से: कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो
केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से एक सीधी बात कही है. हम पर भरोसा रखिए और हमारे काम में दखलंदाजी मत कीजिए. हमारी सबसे बड़ी अदालत को उसने यह बताने व समझाने की कोशिश की है कि कोविड की आंधी से लड़ने, उसे थामने और उसे परास्त करने की उसकी सारी योजनाएं गहरे विमर्श के बाद बनाई गई हैं. वैक्सीन लगाने-बांटने और उसकी कीमत निर्धारित करने के पीछे भी ऐसा ही गहन चिंतन किया गया है. इसलिए हमसे कुछ न बोलिए.
यह सब तब शुरू हुआ जब सर्वोच्च न्यायालय ने ऑक्सीजन के लिए तड़पते-मरते देश का हाथ थामा और केंद्र सरकार के हाथ से ऑक्सीजन का वितरण अपने हाथ में ले लिया. न्यायालय ने यह तब किया जब बार-बार कहने के बाद भी केंद्र सरकार दिल्ली व देश के दूसरे राज्यों को आवश्यक ऑक्सीजन पहुंचाने में विफल होती रही. न्यायालय ने देखा कि केंद्र की ऑक्सीजन में राजनीति के गैस की मिलावट है.
यह सब तब से शुरू हुआ है जबसे सर्वोच्च न्यायालय की सर्वोच्च कुर्सी पर रमणा साहब विराजे हैं और सर्वोच्च न्यायालय ने देखना-सुनना-बोलना शुरू कर दिया है. लेकिन इस दारुण दशा में विधायिका- न्यायपालिका-कार्यपालिका का संवैधानिक संतुलन बिगड़े, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा. न्यायपालिका देश चलाने लगे और अक्षम-असंवेदशील सरकारें-पार्टियां चुनाव लड़ने भर को रहें, तो यह किसी के हित में नहीं है. संविधान कागज पर लिखी इबारत मात्र नहीं है बल्कि देश की सभ्यता-संस्कृति का भी वाहक है. संविधान बदला जा सकता है, सुधारा जा सकता है, संशोधित किया जा सकता है लेकिन छला नहीं जा सकता है. संकट के इस दौर में भी हमें संविधान के इस स्वरूप का ध्यान रखना ही चाहिए और उसकी रोशनी में इस अंधेरे दौर को पार करने का दायित्व लेना चाहिए. यह जीवन बचाने और विश्वास न टूटने देने का दौर है.
एक अच्छा रास्ता सर्वोच्च न्यायालय ने दिखाया है. जिस तरह उसने ऑक्सीजन के लिए एक कार्यदल गठित कर, सरकार को उस जिम्मेदारी से अलग कर दिया है, उसी तरह एक कोरोना नियंत्रण केंद्रीय संचालन समिति का अविलंब गठन प्रधान न्यायाधीश व उनके दो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों की अध्यक्षता में होना चाहिए. इस राष्ट्रीय कार्यदल में सामाजिक कार्यकर्ता, ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र में काम करने का लंबा अनुभव रखने वाले डॉक्टर, अस्पतालों के चुने प्रतिनिधि, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि, कोविड तथा संक्रमण-विशेषज्ञ लिए जाने चाहिए. यही तत्पर कार्यदल कोरोना के हर मामले में अंतिम फैसला करेगा और सरकार व सरकारी मशीनरी उसका अनुपालन करेगी. इस कार्यदल में महिलाओं तथा ग्रामीण विशेषज्ञों की उपस्थिति भी सुनिश्चित करनी चाहिए. हमें इसका ध्यान होना ही चाहिए कि अब तक जितनी खबरें आ रही हैं और जितना हाहाकार मच रहा है, वह सब महानगरों तथा नगरों तक सीमित है. लेकिन कोरोना वहीं तक सीमित नहीं है. वह हमारे ग्रामीण इलाकों में पांव पसार चुका है. यह वह भारत है जहां न मीडिया है, न डॉक्टर, न अस्पताल, न दवा! यहां जिंदगी और मौत के बीच खड़ा होने वाला कोई तंत्र नहीं है. मौत के आंकड़ों में अभी तो 10% का उछाल आया है- (प्रतिदिन 4000) जब हम ग्रामीण भारत के आंकड़ें ला सकेंगे तब पूरे मामले की भयानकता सामने आएगी. इसलिए इस कार्यदल को नदियों और रेतों में फेंक दी गई लाशों के पीछे भागना होगा, कब्रिस्तानों व श्मशान से आंकड़े लाने होंगे. प्रभावी नियंत्रण-व्यवस्था का असली स्वरूप तो तभी खड़ा हो सकेगा.
ऐसा ही कार्यदल हर राज्य में गठित करना होगा जिसे केंद्रीय निर्देश से काम करना होगा. सामाजिक संगठनों और स्वंयसेवी संस्थाओं को इस अभिक्रम से जोड़ना होगा. किसी भी पैथी का कोई भी डॉक्टर थोड़े से प्रशिक्षण से कोविड के मरीज का प्रारंभिक इलाज कर सकता है. पंचायतों के सारे पदाधिकारियों, ग्रामीण नर्सों, आंगनवाड़ी सेविकाओं, आशा स्वंयसेविकाओं की ताकत इसमें जोड़नी होगी. अंतिम वर्ष की पढ़ाई पूरी कर रहे डॉक्टर, नर्सें, प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे चिकित्सक, वे सभी अवकाशप्राप्त डॉक्टर जो काम करने की स्थिति में हैं, इन सबको जोड़कर एक आपातकालीन ढांचा बनाया जा सकता है.
स्कूल-कॉलेज के युवा लंबे समय से घरों में कैद हैं. नौकरीपेशा लोग घरों से अपनी नौकरी कर रहे हैं. इन सबको 4-6 घंटे समाज में काम करना होगा. ये कोरोना बचाव की जरूरी बातों का प्रचार करेंगे, मास्क व सफाई के बारे में जागरूकता फैलाएंगे, मरीजों को चिकित्सा सुविधा तक पहुंचाएंगे, वैक्सीनेशन केंद्रों पर शांति-व्यवस्था बनाने का काम करेंगे. इनमें से अधिकांश कंप्यूटर व स्मार्टफोन चलाना जानते हैं. ये लोग उस कड़ी को जोड़ सकते हैं जो ग्रामीण भारत व मजदूरों-किसानों के पास पहुंचते-पहुंचते अधिकांशत: टूट जाती है. यह पूरा ढांचा द्रुत गति से खड़ा होना चाहिए और सरकारों को इस पर जितना जरूरी है, उतना धन खर्च करना चाहिए. सारी राष्ट्रीय संपदा नागरिकों की ही कमाई हुई है. उसे नागरिकों पर खर्च करने में कोताही का कोई कारण नहीं है.
अमेरिका व यूरोप बौद्धिक संपदा पर अपना अड़ियल रवैया ढीला कर रहे हैं, इस पर ताली बजाने वाले हम लोगों को खुद से पूछना चाहिए न कि हम अपने यहां क्या कर रहे हैं? हम अपने यहां वैक्सीन बना रही कंपनियों से इस पर अपना अधिकार छोड़ देने को क्यों नहीं कह रहे हैं? अदालत को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए और वैक्सीन बनाने की कमियां तुरंत हासिल कर, उसका उत्पादन हर संभव जगहों पर विकेंद्रित किया जाना चाहिए. कोरोना नियंत्रण केंद्रीय संचालन समिति बन जाएगी तो वह इन सारे कदमों का संयोजन करेगी. यह रुपये-दवाइयां-वेंटिलेटर-ऑक्सीजन आदि गिनने का नहीं, नागरिकों को गिनने का वक्त है. आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि भ्रष्टाचारियों को उनके सबसे निकट के बिजली के खंभे से लटका दिया जाएगा. वे वैसा कर नहीं सके लेकिन आज उससे कम करने से बात बनेगी नहीं.
एक आदेश से मनरेगा को मजबूत आर्थिक आधार दे कर व्यापक करने की जरूरत है जिसमें सड़कें, खेती आदि के काम से आगे जा कर सारे ग्रामीण जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने, बांधों की मरम्मत करने, गांवों तक बिजली पहुंचाने की व्यवस्था खड़ी करने, कोरोना केंद्रों तक लोगों को लाने ले जाने का काम शामिल करना चाहिए. मनरेगा को बैठे-ठाले का काम नहीं, पुनर्निर्माण का जन आंदोलन बनाना चाहिए.
शवों के अंतिम संस्कार को हमने कोरोना काल में कितना अमानवीय बना दिया है. स्कूल-कॉलेज के प्राध्यापकों को यह जिम्मेवारी दी जानी चाहिए ताकि हर किसी के विश्वास के अनुरूप उसे संसार से विदाई दी जा सके. इन सारे कामों में संक्रमण का खतरा है. इसलिए सावधानी से काम करना है लेकिन यह समझना भी है कि निष्क्रियता से इसका मुकाबला संभव नहीं है. यह तो घरों में घुस कर हमें मार ही रहा है. राजनीतिक दांव-पेंच से दूर इतने सारे मोर्चों पर एक साथ काम शुरू हो, सामाजिक व्यवस्थाएं अस्पतालों पर आ पड़ा असहनीय बोझ कम करें, युद्ध-स्तर पर वैक्सीन लगाई जाए तो कोरोना की विकरालता कम होने लगेगी. जानकार कह रहे हैं कि तीसरी लहर आने ही वाली है. आएगी तो हम उसका मुकाबला भी कर लेंगे क्योंकि तब हमारे पास एक मजबूत ढांचा खड़ा होगा. कोरोना हमारे भीतर कायरता नहीं, सक्रियता का बोध जगाए, तो जो असमय चले गए उन सबसे हम माफी मांगने लायक बनेंगे.
Also Read
-
Another Election Show: Hurdles to the BJP’s south plan, opposition narratives
-
‘Not a family issue for me’: NCP’s Supriya Sule on battle for Pawar legacy, Baramati fight
-
‘Top 1 percent will be affected by wealth redistribution’: Economist and prof R Ramakumar
-
Presenting NewsAble: The Newslaundry website and app are now accessible
-
Never insulted the women in Jagan’s life: TDP gen secy on Andhra calculus, BJP alliance