Newslaundry Hindi
ख़बरों की धुलाई अब नए तेवर में
हिंदी निर्विवाद रूप से, देश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है. अपने बोलने और इस्तेमाल करने वालों के भारी-भरकम आकार के चलते ही यह मीडिया क्षेत्र का भी एक बहुत बड़ा हिस्सा है. लेकिन इस आकार और प्रभाव का अर्थ हमेशा अच्छी पत्रकारिता हो, यह जरूरी नहीं है. कम से कम मौजूदा दौर की हिंदी पत्रकारिता के संदर्भ में तो यह बात कतई नहीं कही जा सकती.
डिजिटल माध्यम की अधिकतर हिंदी पत्रकारिता में रिपोर्ट्स या तो अंग्रेजी से अनुदित होती हैं या फिर इस तरह से डिजाइन होती हैं कि वह लोगों को क्लिक करने के लिए आकर्षित करें. इसे क्लिकबेट पत्रकारिता कहा जाता है. हिंदी डिजिटल मीडिया का समूचा स्पेस अनुवाद और क्लिकबेट की भेंट चढ़ चुका है. मौलिक कहानियां और जमीनी रिपोर्ट्स उसकी प्राथमिकता में ही नहीं रह गए हैं. इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि अच्छी पत्रकारिता की मांग या समझ हिंदी पाठकों में नहीं है. इस तर्क को दूसरे तरीके से भी कहा जा सकता है, मसलन हम असल में विज्ञापनदाताओं के लिए काम करते हैं, न कि पाठकों के लिए. इसलिए अगर मसालेदार और फूहड़पन से ही ऑनलाइन क्लिक मिल रहे हैं तो फिर हमें जनहित की पत्रकारिता, ग्राउंड रिपोर्ट्स या विचारों को झिंझोड़ने वाले लेखों की जरूरत ही क्या है?
जब हमने 2017 में न्यूज़लॉन्ड्री हिंदी की शुरुआत की थी, तब बात बड़ी सीधी सी थी: हिंदी की कुछ नई और मौलिक कहानियां लोगों तक पहुंचाना और साथ में हिंदी मीडिया स्पेस की हलचलों को दर्ज करना. वो कहानियां जिनसे उनका सरोकार हो. पिछले तीन सालों में, हमारी तीन लोगों की छोटी सी टीम ने अलग-अलग विषयों पर अनेकों रिपोर्ट्स की हैं, जैसे कि उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों से लेकर छत्तीसगढ़ के सुकमा से ग्राउंड रिपोर्ट और लॉकडाउन के दौरान पैदा हुई असाधारण मानवीय त्रासदी.
हमारे सब्सक्राइबर्स ने यह कहानियां न केवल पढ़ी हैं, बल्कि उन्होंने हमारी हिंदी पत्रकारिता को आर्थिक तौर पर सहयोग करके हमारे विश्वास पर मुहर लगाई है. हम अपने पाठकों को किसी भाषायी स्पर्धा में नहीं डाल रहे लेकिन हमारे पुराने समर्पित सब्सक्राइबर्स की तरह ही हिंदी के पाठक बेहद सक्रिय और निष्ठावान पाठक सिद्ध हुए हैं. आप इस बात का अंदाजा हमारे यूट्यूब चैनल पर जाकर, वहां आने वाली टिप्पणियों को पढ़कर लगा सकते हैं.
हमारे पास हिंदी के लिए कुछ बड़ी योजनाएं हैं. कुछ और नए कार्यक्रम, नए पॉडकास्ट (जिसमें एक रोज़ाना आने वाला पॉडकास्ट भी शामिल है) और कहीं ज़्यादा ग्राउंड रिपोर्ट होंगी. इसीलिए हिंदी की अपनी खुद की अलग वेबसाइट हो, यह जरूरी था.
हमारा यह प्रयास, जो 2017 में शैशवावस्था में था, अब अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रहा है. इस छोटी सी यात्रा में आप हमारी कहानियों के, हमारे पॉडकास्ट के, हमारी ग्राउंड रिपोर्ट्स के, हमारे वीडियो शो और इंटरव्यूज़ के साक्षी रहे हैं, और इन सबसे ऊपर आप हमारी बेहतर पत्रकारिता वाली नीयत के साक्षी रहे हैं. hindi.newslaundry.com हमारा नया पता है जहां आपको हमारी सारी हिंदी कहानियां मिलेंगी. हालांकि हमने थोड़े बहुत बदलाव किए हैं, लेकिन वेबसाइट का मूल डिज़ाइन और चेहरा-मोहरा पहले जैसा ही है. अंग्रेजी और हिंदी की वेबसाइट में लॉगिन और सब्सक्रिप्शन एक ही है, जिससे कि पाठकों को बिना किसी अड़चन के इसका इस्तेमाल करने की सुविधा हो. अगले कुछ दिनों के दौरान हम छोटे-छोटे कई बदलाव करेंगे. इस दौरान आपके सुझाव और सलाहों का इंतजार रहेगा. हमें बताएं कि यह नया प्रयास कैसा है और इसमें आप क्या बदलाव देखना चाहते हैं.
एक छोटी सी टीम इस मुकाम तक पहुंचने की सीढ़ी और बुनियाद रही है, जिसका जिक्र मुनासिब रहेगा. बसंत कुमार, अश्विनी कुमार सिंह, अवधेश कुमार, शार्दूल कात्यायन और हाल ही में जुड़ी शिवांगी टीम का अहम हिस्सा हैं. और अंत में अभिनंदन सेखरी के मार्गदर्शन के बिना यह सफर आगे नहीं बढ़ सकता था. सबका जिक्र यहां संभव नहीं है, लेकिन कोई भी इमारत छोटी-बड़ी बहुत सारी ईंटों की बुनियाद पर ही खड़ी होती है, उन सब लोगों का शुक्रिया.
अपने मित्रों व जानकारों को ज़रूर बताएं. हमारे साप्ताहिक हिंदी न्यूज़लेटर के लिए यहां क्लिक करें और वेबसाइट के बारे में अपने सुझाव या फीडबैक देने के लिए ट्विटर पर संपर्क करें.
Also Read
-
TV Newsance 310: Who let the dogs out on primetime news?
-
If your food is policed, housing denied, identity questioned, is it freedom?
-
The swagger’s gone: What the last two decades taught me about India’s fading growth dream
-
Inside Dharali’s disaster zone: The full story of destruction, ‘100 missing’, and official apathy
-
August 15: The day we perform freedom and pack it away