Video
पंकज त्रिपाठी: ‘‘आप कुछ नहीं होते अपनी स्मृतियों का बोझ लेकर घूमते-फिरते टापू होते हैं’’
मशहूर फिल्म अभिनेता पंकज त्रिपाठी से जब भी कोई बातचीत शुरू होती है उसमें किसी ना किसी बहाने से गांव शामिल होता है. पंकज खुद गांव की बात बेहद चाव से बताते हैं. ऐसे में हमने पंकज से जाने की कोशिश की कि गांव उनके लिए क्या है?
इस सवाल के जवाब में वे बताते हैं, ‘‘गांव मेरे लिए क्या है और क्यों जरूरी है, यह कठिन सवाल है. गांव कभी-कभी मेरे लिए रूट (जड़) लगता है, कभी-कभी रोमांटिसिजम लगता है, कभी-कभी मेरे डीएनए- आरएनए में मिला हुआ लगता है. मेरे घर के पीछे एक नदी बहती है, जो गांव में तो सूखने लगी है, लेकिन मेरे भीतर बहती रहती है. मैं गांव में 17-18 साल रहा हूं. मेरी जन्मभूमि है. दरअसल आप कुछ नहीं होते अपनी स्मृतियों का बोझ लेकर घूमते-फिरते टापू होते हैं.’’
हालांकि पंकज त्रिपाठी को यह भी लगता है कि गांव बदल गया है.
वे कहते हैं, ‘‘गांव को लेकर काफी रोमांटिसिजम भी हैं पर अब गांव वैसे रहे नहीं. हम गांव की बात करते हुए आदर्श स्थिति के बारे सोचते हैं. अब गांव बदल गया है. मैं घर जाता हूं तो दो-चार दिन में निराश हो जाता हूं. अब गांव वैसे रहे नहीं हैं. काफी कुछ बदल चुका है. गांव के लोग जरूरत से ज्यादा चालाक हो गए हैं. हालांकि यह बदलाव पूरी दुनिया में हुआ है, उसी का एक रूप गांव में भी देखने को मिलता है.’’
गांव में हुए बदलाव को लेकर पंकज त्रिपाठी आगे कहते हैं, ‘‘गांव के लोग जरूरत से ज्यादा चतुर हो गए हैं. जरूरत से ज्यादा अपने बारे में सोचते हैं. पहले मुझे याद है गांव के किसी एक घर में आयोजन हो तो लगता था उस घर का आयोजन यह पूरे गांव का आयोजन है. अब सबका सुर अलग-अलग है. पहले ऐसा नहीं था. इंटरनेट और फोन ने भी असर डाला है. गांव के नौजवान सोशल मीडिया पर जो कुछ पढ़ते हैं उन्हें लगता है कि वही सही है.’’
मीडिया को लेकर जब हमने पंकज त्रिपाठी से सवाल किया तो वे क्रिमनल जस्टिस के अपने किरदार द्वारा बोला एक डायलॉग याद करते हैं, ‘‘ब्रेकिंग न्यूज़-ब्रेकिंग न्यूज़ बोलकर ये लोग समाज को ही ब्रेक कर रहे हैं.’’
त्रिपाठी आगे कहते हैं, ‘‘मुझे याद है कि हम छोटे थे तो रेडियो पर प्रादेशिक समाचार दिन में तीन बार आता था. जब दूरदर्शन आया तो शाम को एकबार समाचार आता था. अब 24 घंटे के समाचार में क्या करोगे, वहीं न मैदा में चंपई रंग डालकर, दिन भर उसे मिलाते रहेंगे. दूसरी बात मीडिया भी एक व्यवसाय है. टीआरपी का खेल है. विज्ञापन आना है. आप समाचार बेच रहे हैं और जो विज्ञापन दे रहा है वो साबुन तेल बेच रहा है. मैं भी कुछ बेच रहा हूं. हर तरफ बाजार की स्थिति बनी हुई है. जब बाजार की स्थिति बनती हो तो नफा-नुकसान ज्यादा मायने रखता है सही और गलत के सामने.’’
जब हमने उन्हें बताया कि न्यूज़लॉन्ड्री किसी से विज्ञापन नहीं लेता. हम जनता के सहयोग से खबरें करते हैं. इसपर ख़ुशी जाहिर करते हुए पंकज त्रिपाठी कहते हैं, ‘‘ये बेहद खूबसूरत बात है. आप लोग ईमानदार मीडिया को बचाने का काम कीजिए.’’
पंकज त्रिपाठी ने अपने गांव, गांव की यादों, पटना में थियेटर के दिनों, एनएसडी में अपने सफर और इरफ़ान खान-मनोज वाजपेयी से अपने लगाव को लेकर न्यूज़लॉन्ड्री से विस्तृत बातचीत की है.
Also Read
-
CEC Gyanesh Kumar’s defence on Bihar’s ‘0’ house numbers not convincing
-
Hafta 550: Opposition’s protest against voter fraud, SC stray dogs order, and Uttarkashi floods
-
TV Newsance 310: Who let the dogs out on primetime news?
-
If your food is policed, housing denied, identity questioned, is it freedom?
-
The swagger’s gone: What the last two decades taught me about India’s fading growth dream