Assembly Elections
वालायार की बेटियों की मां न्याय ढूंढने निकली हैं, उनके निशाने पर सबसे पहले पिनराई विजयन हैं
वी भाग्यवती का चुनाव प्रचार केरल में जारी किसी भी दूसरे चुनाव प्रचार से बिल्कुल अलग है. यहां कोई रंग बिरंगे झंडे शोर शराबा या उत्साहित पार्टी कार्यकर्ता नहीं दिखाई देते.
इसके बजाय उनका प्रचार गंभीर है. भाग्यवती के पति पुत्र और उनके थोड़े से समर्थक, उनके आसपास इकट्ठा हैं. एक गाड़ी जिसमें उनका सर मुंडाए हुए फोटो लगा है, से लाउडस्पीकर पर घोषणा होती है, "आप जानते हैं कि वालायार मामले में क्या हुआ. वालायार अम्मा को वोट करें, महिलाओं की सुरक्षा के लिए वोट करें."
भाग्यवती कोई साधारण उम्मीदवार नहीं हैं और न ही उनका चुनाव प्रचार साधारण है. वह उन दो नाबालिग दलित बच्चियों की मां हैं, जिन्हें मीडिया ने 'वालायार गर्ल्स' नाम दिया था- जिनकी 2017 में पलक्कड़ जिले के वालायार कस्बे में बलात्कार के बाद मृत्यु हो गई थी. तब से अभी तक भाग्यवती ने पुलिस जांच में कई गड़बड़ियों को दर्शाया है और इस मामले में राजनीतिक हस्तक्षेप का आरोप लगाया है.
अपनी बेटियों को न्याय दिलाने की मुहिम के तहत उनका अगला कदम, कन्नूर जिले के थालास्सेरी में धर्मदाम से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 6 अप्रैल चुनाव लड़ना है, जिसकी घोषणा उन्होंने 16 मार्च को की. धर्मदाम महत्वपूर्ण सिर्फ इसलिए नहीं कि वहां से मुख्यमंत्री पीनारायी विजयन चुनाव लड़ेंगे, या फिर वह 2008- जब यह कस्बा बना था तब से यहीं से चुनाव लड़ते रहे हैं, बल्कि इसलिए है क्योंकि यह सीपीआईएम का गढ़ है जिससे इस कस्बे को लाल किला नाम मिला है.
लेकिन भाग्यवती केवल विधानसभा की सीट के लिए चुनाव नहीं लड़ रहीं. बल्कि उनकी यह प्रेरणा मुख्यमंत्री विजयन को एक संदेश देने की जरूरत और गुस्से, दुख और असहायता से आती है.
2017 में क्या हुआ
13 जनवरी 2017 को भाग्यवती और उनके पति अय्यप्पा शाजी दोनों ही घर पर नहीं थे, दोनों ही मजदूरी करते थे. उनकी दो बेटियां जिनकी उम्र 13 और 9 साल थी, मां-बाप के काम पर जाने के समय घर पर थीं.
उनकी 9 साल की बेटी को अपनी बड़ी बहन का शव, घर के पास एक झोंपड़े में लटका हुआ मिला था. उसने पुलिस को बताया कि, उसी दिन उसने दो नकाबपोश आदमियों को अपनी बहन के कमरे से बाहर जाते देखा था.
भाग्यवती न्यूज़लॉन्ड्री को बताती हैं, "मुझे वह दिन स्पष्ट रूप से याद है. मेरी छोटी बेटी ने मेरी गोद में बैठ कर यह सब पुलिस को बताया. लेकिन पता नहीं कैसे, उसका बयान कभी अदालत पहुंचा ही नहीं."
घटना के 52 दिन बाद 4 मार्च 2017 को, भाग्यवती को अपनी 9 साल की बेटी का शव भी उसी झोंपड़ी में लटका मिला.
वह बताती हैं, "मुझे वह दृश्य अभी भी याद है, घर में घुसना और अपनी दूसरी बच्ची को भी लटका हुआ देखना. उन कुछ हफ्तों में मैंने अपने दोनों बच्चों को, अपनी दोनों आंखों को खो दिया."
दोनों बच्चियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने उनके साथ बलात्कार की पुष्टि की. वह डॉक्टर जिसने परीक्षण किया था, उसने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, "हम ने पुलिस को खबर कर दी है कि एक से ज्यादा बार बलात्कार के सबूत स्पष्ट हैं. मामलों में अप्राकृतिक सेक्स के सबूत भी मिले हैं."
लेकिन पुलिस इस नतीजे पर पहुंची की बड़ी बेटी आत्महत्या से मरी थी. एक विस्तृत जांच तभी शुरू हो पाई जब छोटी बेटी भी गुज़र गई, जो अपनी बहन की मौत में एक महत्वपूर्ण गवाह थी.
इस सबके बीच भाग्यवती अपने बच्चों को दफना भी नहीं पाईं. पोस्टमार्टम के बाद मां बाप अपने बच्चों को एक बार ही देख पाए. वह दावा करती हैं कि उनके शरीर केवल 15 मिनट के लिए घर लाए गए जिसके बाद उन्हें पुलिस ले गई. वह कहती हैं कि दोनों का अंतिम संस्कार, पुलिस के द्वारा परिवार की सहमति और मौजूदगी के बिना ही कर दिया गया.
वे कहती हैं, "उन्होंने हमसे शरीर ले जाने की इजाजत तक नहीं ली. 10 दिन के बाद वह घर कुछ लेकर आए जो राख जैसा दिखाई देता था. पर मैं कैसे जानूं कि यह मेरे बच्चों की है भी या नहीं?"
गिरफ्तारियां, बरी और दोबारा मुकदमा
इस मामले में मधु उर्फ वालया मधु, मधु उर्फ कुट्टी मधु, शिबू, प्रदीप कुमार और एक नाबालिग को गिरफ्तार किया गया.
सितंबर 2017 में प्रदीप कुमार को विशेष पोस्को अदालत ने सबूतों की कमी और "प्रशासन को उसके खिलाफ मामला साबित करने में मिली असफलता" के बाद बरी कर दिया. अतिरिक्त सेशन अदालत के न्यायाधीश मुरली कृष्णा ने नोट किया कि "मृतक लड़की या आरोपी के कपड़ों, दोनों ही के नमूनों" से "वीर्य के अंश" नहीं मिले हैं. यही तर्क 3 साल बाद एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के द्वारा हाथरस मामले में भी दोहराया गया.
अक्टूबर 2019 में बाकी तीन आरोपी सबूतों के अभाव में बरी कर दिए गए. पिछले साल नवंबर में प्रदीप ने आत्महत्या कर ली.
जनवरी 2021 में भाग्यवती, उनके पति और उनके साथ कुछ लोगों के प्रदर्शनों को देखते हुए केरल उच्च न्यायालय ने आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले को खारिज कर दोबारा मुकदमा चलाने का आदेश दिया. अदालत ने पुलिस की "खराब प्राथमिक जांच और अभियोग को घटिया तरीके से चलाने" को लेकर कड़े शब्दों में आलोचना की. अदालत ने निचली अदालत को "न्याय की हत्या" के लिए भी ज़िम्मेदार माना.
आखिरकार इस साल मार्च में उच्च न्यायालय ने सीबीआई को निर्देश दिया कि वह इस मामले को अपने तहत और राज्य सरकार को "हर प्रकार की मदद" करे.
लेकिन भाग्यवती का गुस्सा अभी कम नहीं हुआ है. वे कहती हैं, "यह सरकार इन आरोपियों को बचाने के लिए इतनी मेहनत क्यों कर रही है? उनका सीपीआईएम से क्या नाता है?"
सीपीआईएम और विजयन के खिलाफ गुस्सा
भाग्यवती यह दावा करती हैं कि उनकी बेटियों की मौतों के एक आरोपी सीपीएम के कार्यकर्ता हैं, जिसका सीपीआईएम ने खंडन किया है. वह इसलिए भी गुस्सा हैं क्योंकि अक्टूबर 2019 में जब विजयन उनसे मिलने आए और उन्हें न्याय का आश्वासन दिया, तो उन्होंने इस बात पर 'ऐसे ही भरोसा' कर लिया.
वे कहती हैं, "मुझे सोजन की तरक्की होने तक सरकार पर पूर्ण विश्वास था." वे एमजे सोजन की बात कर रही हैं जो पुलिस में डीएसपी रह चुके थे और इस मामले में जांच अधिकारी थे. जून 2020 में सोजन को क्राइम ब्रांच का एसपी बनाया गया. कई मीडिया रिपोर्टों में यह कहा गया था कि, उन्होंने दोनों नाबालिग लड़कियों के शारीरिक शोषण का "मज़ा" लिया.
भाग्यवती अपने मुंडे हुए सर की तरफ इशारा करती हैं. उनका कहना है, "जब मैंने अपना सर मुंडवाया, उस दिन मैंने प्रतिज्ञा की थी जब तक पुलिस की टोपी सोजन के सर पर है, मैं बाल नहीं बढ़ाऊंगी. यह उसी (विजयन) की सरकार है जिसने मुझे 4 साल से सड़क पर रहने और प्रदर्शन करने को मजबूर किया है."
भाग्यवती ने अपनी इस बात की पुष्टि के लिए यह भी बताया कि 2017 में, जब इस मामले की सुनवाई निचली अदालत में चल रही थी, तब एक वकील जो आरोपी प्रदीप कुमार के लिए अदालत में पेश हो रहे थे उन्हें राज्य सरकार ने प्रदेश की बाल कल्याण समिति का चेयरमैन बना दिया.
उपरोक्त अधिवक्ता, एन राजेश ने बाद में मामला दूसरे वकील को दे दिया. राजेश की नियुक्ति की सब तरफ आलोचना हुई. जिसमें विजयन सरकार की मंत्री केके शैलजा भी शामिल थीं और राजेश को अक्टूबर 2019 में अपने पद से हटा दिया गया.
भाग्यवती कहती हैं कि इन सब चीजों के मेल ने ही उन्हें विजयन सरकार में विश्वास खोने को मजबूर कर दिया. एक समय की सीपीआईएम समर्थक ने आज दृढ़ रहने का निश्चय कर लिया है.
लेकिन भाग्यवती इस वर्ष की योजना में चुनाव लड़ना नहीं था.
26 जनवरी को उन्होंने सोजन की तरक्की का विरोध करते हुए 1 महीने का सत्याग्रह शुरू किया. 26 फरवरी को उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपना सर मुंडवाया, और वामपंथी सरकार के खिलाफ राज्यव्यापी प्रदर्शन की घोषणा की जिसमें केरल के 140 विधानसभा क्षेत्रों में जाना भी शामिल था.
मार्च के शुरुआती दिनों में अपनी यात्रा के प्रारंभ में वह कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ धर्मदाम पहुंचीं. यहां पर उन्होंनेे कस्बे की सभी मांओं को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने सबसे यह अपील की कि वह मुख्यमंत्री विजयन से पूछें कि उन्होंने वालायार की बेटियों को न्याय दिलाया कि नहीं.
भाग्यवती बताती हैं, "जब मांओं ने मेरी चिट्ठी पढ़ी, तो उन्हें सवाल पूछने के बजाय उन्होंने मुझसे ही कहा कि मुझे खुद चुनाव लड़कर उनसे सवाल पूछना चाहिए."
और भाग्यवती ने यही किया.
'हम दलित ही मर रहे हैं'
भाग्यवती का एकलौता जीवित बच्चा, उनका 12 साल का बेटा मां से अभियान के दौरान साथ ही चिपका रहता है. वे कहती हैं, "मुझे उसे अपनी आंखों से दूर भेजते हुए डर लगता है."
अपनी बहनों की मृत्यु के समय भाग्यवती का बेटा 8 साल का था. भाग्यवती के अनुसार उसकी हत्या के दो प्रयास हो चुके हैं. पहला प्रयास 2017 में उनकी छोटी बेटी की मृत्यु के कुछ ही दिन बाद किया गया. उस समय उनका बेटा पलक्कड़ में अपने स्कूल के हॉस्टल में घर पर मचे "बवंडर" से बचने के लिए रह रहा था. वह दावा करती हैं कि उस समय उनके बेटे पर एक आदमी ने हमला किया जो आरोपी एम मधु से मिलता जुलता दिखता था. भाग्यवती कहती हैं कि इस तथाकथित हमलावर ने एक बार और उनके बेटे पर हमला करने की कोशिश की.
वे बताती हैं, "अब हमने उसे हॉस्टल से निकाल लिया है. वह अब उसके लिए सुरक्षित नहीं रहा. मैं अपने दो बच्चों को खो चुकी हूं, और अब उसे भी नहीं खो सकती. लेकिन मुझे थोड़ी गिलानी भी महसूस होती है क्योंकि इस सब ने उसकी जीवन और पढ़ाई में बहुत खलल डाल दिया है.
इसके बावजूद वह यह लड़ाई खत्म करने के लिए मन बना चुकी हैं. वे कहती हैं, "अगर जरूरत पड़ी तो हम अपनी ज़मीन, अपना घर, अपनी सब संपत्ति बेच देंगे, लेकिन हमें न्याय चाहिए,"
भागवती कहती हैं कि वह चुनाव इसलिए भी लड़ रही हैं कि "वह दुनिया को दिखा सकें कि एक दलित महिला राजनीति में आ सकती है."
उनका कहना है, "हम दलित ही मर रहे हैं", वह यह भी बताती हैं कि उनके परिवार को अस्पृश्यता नहीं झेलनी पड़ती, लेकिन उन्हें गहरे भेदभाव को झेलना पड़ता है. "हमारे बच्चों का बलात्कार हो रहा है. हमारे ही समाज के लड़के हैं जो राजनीतिक हिंसा में मारे जाते हैं. लेकिन आमतौर पर ऊंची जातियों के आदमी ही बड़े राजनेता बनते हैं. क्यों?"
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