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गुजरात में फिर से अपने घरों को लौट रहे हैं प्रवासी मजदूर

गुजरात में भी कोरोनावायरस संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. राज्य में कोरोना एक्टिव केसों की संख्या इस समय 10 हजार से अधिक है, इनमें से 62 प्रतिशत मामले राज्य के केवल दो जिलों अहमदाबाद और सूरत से हैं. इन शहरों में बढ़ते मामलों ने एक बार फिर से प्रवासी मजदूरों की चिंता बढ़ा दी है. होली से दो दिन पहले बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने प्रदेशों को लौटे हैं.

मजदूरों के लौटने की तीन बड़ी वजह सामने आ रही हैं. एक, मजदूरों को भय है कि कोरोनावायरस संक्रमण के मामले बढ़ने के कारण एक बार फिर से लॉकडाउन लग सकता है. दूसरा कारण यह है कि मजदूरों को पहले जितनी मजदूरी नहीं मिल रही है और तीसरा कारण है कि हालात सामान्य न होने के कारण कारोबारी अपने मजदूरों को सही समय पर पैसे नहीं दे पा रहे हैं.

अभी राज्य सरकार ने कोरोनावायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों पर अंकुश लगाने के लिए अहमदाबाद और सूरत में रात्रि कर्फ़्यू लगा दिया है. माल और सिनेमा हॉल को बंद कर दिया गया है. सूरत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री में प्रशासन ने वर्किंग घंटे कम कर दिए हैं साप्ताहिक छुट्टी को आवश्यक कर दिया है. ताकि लोग एक साथ कम एकत्र हों.

लेकिन इसके साथ-साथ यह अफवाह जोर पकड़ रही है कि आने वाले दिनों में पूर्णतया लॉकडाउन लगाया जा सकता है. हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी कह चुके हैं कि सरकार द्वारा लॉकडाउन की कोई योजना नहीं है.

पिछले सप्ताह सूरत के पांडेसरा में उत्तर प्रदेश और बिहार जाने के लिए एक दर्जन से अधिक बसें लगी. बस मालिकों ने मजदूरों से मनमाना किराया वसूला. सूचना मिलने पर पांडेसरा पुलिस स्टाफ स्थल पहुंचा तो पता चला कि मजदूर न केवल त्योहार के चलते गांव लौट रहे हैं. बल्कि इन्हें लॉकडाउन का भी भय है. जिस के बाद पांडेसरा पुलिस स्टेशन के पुलिस इंस्पेक्टर एपी चौधरी ने स्टाफ को टेक्सटाइल कारखानों में जाकर मजदूरों को समझाने को कहा, ताकि मजदूरों के मन से लॉकडाउन का भय निकल जाए और अफवाह को रोका जा सके.

सूरत व्यापार मंडल के अध्यक्ष जयलाल लालवानी कहते हैं कि मजदूरों के अपने प्रदेश लौटने का कारण लॉकडाउन की अफवाह नहीं बल्कि कारोबार में मंदी है. मजदूरों को अब पहले जैसा काम नहीं मिल पा रहा है. कोरोनावायरस संक्रमण की दूसरी लहर की मार भी व्यापार पर पड़ रही है. काम न होने के कारण मजदूर अपने घरों को लौट रहे हैं.

इंसाफ फाउंडेशन के शाहिद अकबर कहते हैं कि मजदूरों की वतन वापसी का कारण सही मजदूरी न मिलना भी है. पहले जिस काम के 400 रुपए मिलते थे, अब वही काम 300 रूपए में करना पड़ रहा है. वाजिब मजदूरी न मिल पाने से मायूस मज़दूर गावों को लौटना ही उचित मान रहे हैं.

अहमदाबाद में ओमप्रकाश यादव कलर काम के ठेकेदार हैं. वह कहते हैं कि काम कम तो है, साथ ही मार्केट में पैसे भी नहीं घूम रहे पार्टियां काम पूरा होने के बाद भी समय पर पेमेंट नहीं करती हैं. जिस कारण हम लोग भी मजदूरों को समय पर भुगतान नहीं कर पा रहे हैं. परिणाम स्वरूप वह एक ठेकेदार को छोड़ दूसरे के पास जाते हैं. वहां भी इन्हें बराबर काम और भुगतान नहीं होता है तो फिर गांव ही लौट रहे हैं.

(साभार- डाउन टू अर्थ)

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