Newslaundry Hindi
सिंगुर ने ममता को खारिज कर दिया तो राज्य में उनकी वापसी संदेह के घेरे में आ जाएगी!
ममता बनर्जी की चुनावी कामयाबी का सबसे अहम सिरा सिंगुर में है जहां टाटा की नैनो कार का कारखाना लगाने के लिए जमीन अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष में राजकुमार भूल नाम के एक नौजवान और तापसी मालिक नाम की एक लड़की की शहादत हुई थी. तापसी की लाश सीपीएम राज को भारी पड़ी और बंगाल की जनता ने अपनी किस्मत के दस साल ममता के सुपुर्द कर दिए. आज पंद्रह साल बाद जब ममता का सिंहासन डोल रहा है तो सिंगुर के लोग संभल-संभल कर बात कर रहे हैं.
हाइवे से सिंगुर की ओर लगातार दो किलोमीटर तक टाटा की अधिग्रहित ज़मीन दिखती है जिस पर अब झाड़ उग आयी है. कुछ प्लॉटों पर सब्जियां लगी हैं और कुछ फसलें भी वरना ज्यादातर हिस्सा एक विशाल चारदीवारी के भीतर उजाड़ ही है. हाइवे छोड़कर भीतर घुसते ही साइकिल से आते एक किसान हेमंत कोले से भेंट हुई. हम जहां खड़े थे उसके सामने ही उनकी ज़मीन थी. वे ममता सरकार से खुश थे. इस खुशी का राज यह था कि उनकी अधिग्रहित जमीन उन्हें वापस मिल गयी है और वे उस पर खेती कर रहे हैं.
हेमंत छोटे किसान हैं, अपनी खेती से उन्हें सालाना करीब 40 हजार रुपए की आमदनी हो जाती है. यह पूछे जाने पर कि अगर सरकार फिर से कोई उद्योग या फैक्ट्री लगाने के लिए उनकी जमीन अधिग्रहण करना चाहे तो क्या वे देंगे? उन्होंने कहा कि सरकार को जमीन चाहिए तो वह जबरन न छीने, जिस तरह से बुद्धदेव सरकार ने छीन ली थी. सरकार को यदि किसानों की जमीन चाहिए तो वह किसानों से बात करे और उनकी सहमति से कोई कदम उठाये.
हेमंत सीपीएम से अब तक नाराज हैं क्योंकि उसकी सरकार ने बंदूक के जोर पर किसानों की बलि चढ़ाकर उनकी जमीनें छीन कर टाटा को दे दी थीं और लाखों की जमीन के लिए किसानों को 8 हजार रुपए की मामूली रकम पकड़ा दी थी. ममता बनर्जी सरकार द्वारा जमीन फिर से सौंपे जाने पर वह खुश हैं लेकिन बीजेपी की स्थानीय सांसद लॉकेट चटर्जी से वे निराश हैं. वे कहते हैं- उन्होंने सिंगुर या हमारे लिए कुछ नहीं किया, जो किया दीदी ने किया है हमारे लिए.
गांव में घुसते हुए सभी दलों के झंडे बराबर दिखायी देते हैं. हम गांव के भीतर उस जगह पहुंचते हैं जहां सिंगुर कृषि भूमि आंदोलन के शहीद राजकुमार भूल और शहीद तापसी मालिक की प्रतिमा लगी है. दोनों की प्रतिमाओं के दोनों और टीएमसी के झंडे लगे हुए थे हालांकि आसपास भाजपा और लाल झंडों की कमी नहीं थी. वहां से देखने पर तापसी मालिक के पिता का घर गांव में सबसे ऊंचा और अलग दिखता है. घर के ठीक सामने एक पुराना तालाब है जिसमें राजनीतिक दलों के रंग बिरंगे झंडे गड़े हुए हैं.
घर के बाहर तापसी के भाई बैठे मिले. वे गमछे में बैठे पैर के नाखून काट रहे थे. हमने उनसे बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने ‘पिता से बात करिए’ कह के टाल दिया. दो बार मिन्नत करने पर उन्होंने पिता को फोन लगाया. वे बाजार में अपनी दुकान पर थे. बात कर के बताया कि वे जल्द ही आ रहे हैं. हम टहलते हुए फिर प्रतिमा के पास चले आए और उनका इंतजार करने लगे. दूर कहीं से टीएमसी के चुनाव प्रचार वाले गीत ‘’खेला होबे’’ की आवाज आ रही थी.
तापसी के पिता मनोरंजन मालिक जाने-माने शख्स हैं. चौराहे पर सड़क निर्माण का जो बोर्ड लगा है, उसमें सड़क का रूट लिखा है जिसमें ‘’मनोरंजन मालिक के घर’ का जिक्र है. जाहिर है उनका घर सबसे अलग भी दिखता है, लेकिन वे खुद बहुत सहज इंसान हैं. हमने उन्हें बाजार की ओर से साइकिल से आते हुए देखा. दूर से हमने आवाज लगायी तो उन्होंने घर की ओर आने का इशारा करते हुए कहा- आसबेन. हमने अनुरोध किया कि वे चौराहे पर ही हमसे बात करें.
दरअसल, मनोरंजन मालिक का इंतजार एक टीवी चैनल की टीम भी उनके घर पर कर रही थी. कोई पांच मिनट पहले ही मशहूर एंकर चित्रा त्रिपाठी एक बड़ी सी गाड़ी से वहां पहुंची थीं. उनके साथ तीन मोटरसाइकिलों पर छह लड़के भी थे. इसीलिए हम तापसी के पापा से अकेले में बात करना चाहते थे.
वे अपनी बेटी की मौत को आज तक भुला नहीं पाए हैं. मनोरंजन ने कई बार कहा कि सीपीएम ने मेरी बेटी को मार दिया, हालांकि टीएमसी या बीजेपी के बारे में पूछे गये हर सवाल को वे यह कह कर टाल गये कि ‘’इसके बारे में मैं कुछ भी नहीं बोल सकता.‘’
सिंगुर बाजार में भी तकरीबन यही स्थिति रही. कोई सीधे बात करने को तैयार नहीं था. एक दुकानदार ने 100 रुपये का सौदा लेने के बाद किसी तरह भाजपा का नाम लिया. कुल मिलाकर सिंगुर में आज स्थिति यह है कि लोग या तो टीएमसी की लौटायी ज़मीन से खुश हैं या फिर आने वाले बदलाव के हिसाब से अपने जवाबों को तौल रहे हैं. मनोरंजन मालिक भी ऐसी ही कूटनीतिक चुप्पी को पकड़े हुए हैं.
सिंगुर में 10 अप्रैल को मतदान होना है. इतना तय है कि अगर सिंगुर ने ममता को खारिज कर दिया तो राज्य में उनकी वापसी संदेह के घेरे में आ जाएगी. फिलहाल शहीद के पिता की सावधान ज़बान इतना जरूर संकेत दे रही है कि सिंगुर आंदोलन का ब्याज ममता को जितना मिलना था, मिल चुका.
Also Read
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians
-
Lucknow’s double life: UP’s cleanest city rank, but filthy neighbourhoods
-
Delays, poor crowd control: How the Karur tragedy unfolded
-
‘If service valuable, why pay so low?’: 5,000 MCD workers protest for permanent jobs, equal pay, leaves
-
Tata Harrier EV review: Could it be better than itself?