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इशरत जहां एनकाउंटर: कोर्ट के फैसले पर मीडिया की सनसनीखेज कलाबाजी

पीत पत्रकारिता का आज के समय में नया स्वरूप है क्लिकबेट पत्रकारिता. यह ज्यादा से ज्यादा हिट बटोरने वाली पत्रकारिता है जो मीडिया के बुनियादी ढांचे को तोड़ने पर आमादा है. ताजा मामला अहमदाबाद में स्पेशल सीबीआई कोर्ट के फैसले को लेकर है. कोर्ट ने बहुचर्चित इशरत जहां केस में दोषी पुलिसकर्मियों की याचिका पर सुनवाई की जिसमें उन्हें बरी कर दिया. लेकिन इस खबर को मीडिया ने तोड़ मरोड़ कर पेश किया.

मामले की मीडिया रिपोर्टिंग

सीबीआई के स्पेशल जज विपुल आर रावल की कोर्ट में तरुण बरोट, जीएल सिंघल और अनाजु चौधरी ने अपने आप पर लगे आरोपों को डिस्चार्ज करने को लेकर याचिका दायर की थी. जिस पर बुधवार को फैसला आया. कोर्ट ने तीनों पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया. जिसके बाद अब इस मामले में कोई भी आरोपी नहीं रह गया है.

इस फैसले को अमर उजाला ने लिखा, “फैसला: इशरत जहां थी लश्कर-ए-तैयबा की आंतकी, सीबीआई कोर्ट ने सभी आरोपियों को किया बरी”.

वहीं एबीपी न्यूज ने लिखा, “CBI स्पेशल कोर्ट ने कहा- लश्कर की आतंकी थी इशरत जहां, तीनों पुलिस अधिकारियों को किया बरी”.

अन्य मीडिया संस्थानों ने भी खबर को इस तरह से लिखा मानों कोर्ट का यह फैसला इशरत जहां को आतंकी मानने या नहीं मानने को लेकर सुनाया गया है. लाइव लॉ के लिए इस मामले पर रिपोर्ट करने वाले पत्रकार स्पर्श उपाध्याय न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में इस पूरे मामले को समझाते है. वह कहते है, “सबसे पहले हमें समझना होगा की यह सिर्फ डिस्चार्ज यानी की बरी करने को लेकर फैसला है. इन पुलिस अधिकारियों ने अपनी याचिका में कहा था कि उसके साथ के तीन अन्य पुलिसकर्मियों को बरी किया जा चुका हैं तो उन्हें भी इस मामले में अब बरी किया जाए.”

“इस मामले में वैसे तो फैसला दो या तीन लाइन में भी आ सकता था लेकिन 38 पेज का यह फैसला अपने आप में अलग से बहस का विषय है. जिस तरह से मीडिया ने अदालत के फैसले को रिपोर्ट किया वह प्रथम दृष्टया तो गलत लगता है क्योंकि कोर्ट ने इशरत जहां के आतंकी होने या नहीं होने को लेकर कोई फैसला नहीं सुनाया है और ना ही इस पर कोई याचिका दायर की गई थी.”

कोर्ट ने दोषी पुलिसकर्मियों को बरी करते हुए यह जरूर कहा है कि “जांच एजेंसी अदालत में ऐसा कोई भी सबूत नहीं दे पाई जो यह साबित कर सके की इशरत जहां आतंकी नहीं थी.” स्पर्श ने कहा, कोर्ट के फैसले की इन लाइन्स पर खबरें लिखी जा सकती हैं. जैसा की हिंदुस्तान ने किया “ Ishrat Jahan Case: सीबीआई कोर्ट ने सभी को किया बरी, कहा- इशरत जहां के आतंकी न होने का सबूत नहीं”. अखबार ने अपनी खबर में नीचे कोर्ट के फैसले को कोट करते हुए लिखा है. जबकि अमर उजाला और एबीपी न्यूज ने ऐसा नहीं किया है. इसलिए उनकी यह खबर बेमानी लगती है.

स्पर्श ने हमें इस मामले में राज्य शासन द्वारा की जा रही चालाकी को भी समझाया. वह कहते हैं “इन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई तो वैसे भी नहीं होती क्योंकि सरकार ने तीनों आरोपियों के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था. तो वैसे भी इनके खिलाफ कोर्ट कुछ नहीं करती.” बता दे कि सीबीआई ने कोर्ट को 20 मार्च को सरकार के इस फैसले के बारे में सूचित किया था.

इस मामले में स्पर्श कहते है, “ना तो सीबीआई और ना ही सरकार ऊपरी कोर्ट में इस फैसले को चुनौती देगी, क्योंकि मौजूदा सरकार के पक्ष में एक तरह से यह फैसला है. वैसे भी सीबीआई ने डीजी वंजारा समेत तीन अन्य पुलिसकर्मियों को बरी करने के बाद उनके खिलाफ कोई अपील नहीं दायर की थी, तो उम्मीद कम हैं कि सीबीआई इनके खिलाफ भी कोई अपील दायर करेगी. अगर वह अपील दायर नहीं करेगी तो सुनवाई समाप्त हो जाएगी.”

स्पर्श कहते हैं, “वैसे भी इशरत जहां की मां ने कोर्ट के इन फैसलों को ऊपरी कोर्ट में चुनौती नहीं दी है.” वह आगे कहते है, “सत्ता में रहने वाली सरकार के लिए यह बहुत आसान है कि वह अपने खिलाफ दर्ज किसी भी फैसले को वापस ले सकती है, जिसका ताजा और अच्छा उदाहरण उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ हैं. उन्होंने भी अपने ऊपर दर्ज केसों को वापस ले लिया है.”

वरिष्ठ पत्रकार महताब आलम जो इस मामले को काफी समय से फॉलो कर रहे हैं, वह कोर्ट के फैसले को गलत तरीके से तोड़ मरोड़ कर मीडिया में लिखने पर न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहते हैं, “मुझे आज के फैसले के बारे में तो जानकारी नहीं है, लेकिन काफी बार यह होता है कि मीडिया कोर्ट के फैसले को तोड़ मरोड़ कर लिख देता है. जो की गलत है और वह नहीं होना चाहिए. ”

महताब, बाटला हाउस एनकाउंटर मामले का एक किस्सा बताते हुए कहते हैं, “कोर्ट ने किसी को सजा सुनाई थी, लेकिन कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा था कि हम यह नहीं कह सकते कि यह इंडियन मुजाहिदीन का आतंकी है. लेकिन अगले दिन के सभी अखबारों ने उस आरोपी को इंडियन मुजाहिदीन का आतंकी बता दिया था. जिसके बाद मैंने द हिंदू के एडिटर को कोर्ट के फैसले की कॉपी भेजकर बताया था कि आप के अखबार ने गलत लिखा है. जिसके बाद अखबार ने उसे सही किया.”

क्या हैं पूरा मामला

इशरत जहां का एनकाउंटर देशभर में चर्चित मामला रहा है. साल 2004 में 14 जून को अहमदाबाद के बाहरी इलाके में गुजरात पुलिस की क्राइम ब्रांच ने इशरत जहां, प्राणेश पिल्लई, अमजद अली राणा और जीशान जौहर को मुठभेड़ में मार गिराया था. गुजरात पुलिस ने कहा कि यह सभी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रच रहे थे. इस टीम को पूर्व आईपीएस अधिकारी डीजी वंजारा लीड कर रहे थे.

इसके बाद मामले में वंजारा के साथ 6 अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ सीबीआई ने फर्जी एनकाउंटर करने को लेकर साल 2013 में चार्जशीट दाखिल की थी.

इस मामले में सीबीआई कोर्ट ने साल 2018 में गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक पीपी पांडे, साल 2019 में पूर्व आईपीएस अधिकारी डीजी वंजारा और पुलिस अधिकारी एनके आमीन को बरी कर दिया था. इसके बाद पुलिस अधिकारी जेजी परमार, तरुण बरोट, जीएल सिंघल और अनाजु चौधरी पर केस चल रहा था. सितंबर 2020 में जेजी परमार की मौत हो गई.

कोर्ट का पूरा फैसला आप यहां पढ़ सकते हैं.

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