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उदासीन तृणमूल, सांप्रदायिक भाजपा: नंदीग्राम के मुसलमानों के लिए भूल की कोई गुंजाइश नहीं
पश्चिम बंगाल चुनाव का दूसरा चरण कल से शुरू हो रहा है जिसमें 3 जिलों के 30 चुनाव क्षेत्रों में मतदान होगा. इन सब में, पूर्वी मेदिनीपुर के नंदीग्राम में तृणमूल कांग्रेस की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और हाल ही में भारतीय जनता पार्टी में आए शुभेंदु अधिकारी के बीच जबरदस्त मुकाबला है.
अपने दिनभर की जनसभाओं और कई रोड शो में, ममता ने अधिकारी पर पार्टी और नंदीग्राम की जनता को धोखा देने की बात करके उन्हें निशाना बनाया है. कई बार ममता ने उन्हें "मीर जाफर" कहकर भी बुलाया है. वह अपनी महिला मतदाताओं पर विशिष्ट ध्यान रखकर उन्हें संबोधित करती हैं, "माताओं और बहनों" के समर्थन की मांग करती हैं और उन्हें बड़ी संख्या में वोट करने को कहती हैं. उनके चुनावी हमले का एक मुख्य भाग मोदी सरकार पर "सीआरपीएफ का इस्तेमाल" कर "तृणमूल वोटरों को रोकने" का आरोप लगाना है.
इस सबके बीच शुभेंदु अधिकारी का चुनाव प्रचार मुस्लिम विरोधी उपमाओं से भरा पड़ा है. वह ममता को अक्सर "बेगम", "फूपी" और "खाला" कहकर बुलाते हैं, और कहते हैं कि उनके "राज" में पश्चिम बंगाल एक "मिनी पाकिस्तान" में बदल जाएगा.
2016 में, शुभेंदु मतदाताओं से समर्थन मांग कर चुनाव जीते थे जिन्हें आज वह भारत विरोधी विदेशी के रूप में पेश कर रहे हैं. इतना ही नहीं 2016 विधानसभा चुनावों से पहले, ममता ने अधिकारी को मुर्शिदाबाद के मुस्लिम बाहुल्य जिलों में पैठ बनाने की जिम्मेदारी दी थी, उस समय अधिकारी पार्टी में उनके विश्वासपात्र थे और ममता चाहती थीं कि मुस्लिम मतदाता कांग्रेस से दूर होकर तृणमूल के समर्थक बन जाएं.
आज 2021 में अधिकारी अपने संभावित वोटरों को कह रहे हैं कि तृणमूल पर उन लोगों का राज है जो पाकिस्तान की जीत पर पटाखे जलाते हैं. 22 मार्च की अपनी रैली में उन्होंने कहा, "अगर वह सत्ता में वापस आ गए तो आप बिंदी तुलसी की माला और धोती, नहीं पहन पाएंगे."
'जय श्री राम': नारा वही, बदलता प्रभाव
नंदीग्राम में दो प्रशासनिक ब्लाक में कुल 350 पोलिंग बूथ हैं. केवल नंदीग्राम में चुनाव के मद्देनजर, सीआरपीएफ की 22 कंपनियां तैनात रहेंगी.
2011 की जनगणना के अनुसार नंदीग्राम के ब्लॉक-1 में मुस्लिम आबादी 35 प्रतिशत है और ब्लॉक-2 में 12 प्रतिशत.
दोनों ही ब्लॉकों में लोगों की स्थानीय तृणमूल कार्यकर्ताओं और छोटी-छोटी बातों पर भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों का गुस्सा महसूस किया जा सकता है. हिंदू और मुस्लिम, दोनों ही समुदायों को अमफन चक्रवात से तबाह हुए घरों और पुनर्वास के लिए निर्धारित राशि अभी तक नहीं मिली है. बाकी लोग कहते हैं कि उन्हें अभी तक मनरेगा का भत्ता नहीं मिला है.
दोनों परिस्थितियों में मूल अंतर यह है कि हिंदुओं के पास सरकार विरोधी भावनाओं को प्रकट करने के लिए, हिंदुत्ववादी चुनाव प्रचार से बिना कोई फर्क महसूस किए भाजपा के पक्ष में मतदान करने का विकल्प है. इसका सबसे अच्छा चित्रण उन जवाबों को देखकर पता चलता है, जो लोग "जय श्री राम" नारे से जुड़े सवालों पर अपना मत बताते हुए देते हैं.
नंदीग्राम के ब्लॉक 1 के सोनाचूड़ा में एक महिला कहती हैं, "राम हमारे भगवान हैं. नारे में अच्छा न लगे, ऐसा क्या है?"
तृणमूल के भी हिंदू समर्थक नारे से इतने परेशान नहीं हैं जितना लगाने वाले लोगों से. उदाहरण के लिए अगर देखें, चांदीपुर के विवेकानंद फुटबॉल मैदान में तृणमूल की रैली में एक महिला ने, नारे लगाने वाले भाजपा के पुरुषों की आस्था पर ही सवाल उठाया.
उन्होंने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, "हम मंदिर में जाने के लिए अपनी चप्पले उतारते हैं लेकिन ये आदमी चप्पल पहने हुए ही "जय श्री राम" चिल्लाते हैं. वे शराब पीकर नशा करते हैं और भगवान का नाम लेते हैं. भगवान का नाम कहीं भी, किसी भी अवस्था में लिया जा सकता है क्या?"
इसी बीच मुसलमानों के लिए यह नारा, उनकी जीवन पद्धति और अपनी आस्था को स्वतंत्रता से जी सकने पर एक खतरे का चिह्न है. नंदीग्राम के ब्लॉक 2 के कई मुस्लिम निवासियों को चिंता है कि एक बार भाजपा के सत्ता में आने के बाद, उनसे जबरदस्ती यह नारा बुलवाया जाएगा.
पश्चिम बंगाल के सिविल सर्विस बोर्ड की तैयारी कर रहे एक मुस्लिम युवक ने दिक्कत यह बताई कि भाजपा कार्यकर्ता इस नारे को सांप्रदायिक प्रधान नेता दिखाने के लिए करते हैं.
वे कहते हैं, "बचपन से हमने स्कूल में सरस्वती पूजा में भाग लिया है. कभी कोई दिक्कत नहीं हुई. लेकिन अब, कोई हमें अपने आप को साबित करने के लिए नारे लगाने को कहे? यह स्वीकार्य नहीं है, और यह केवल वोटों के लिए हो रहा है."
शुभेंदु अधिकारी के बारे में वह कहते हैं, "क्या उन्हें तृणमूल में हमारे वोट मांगते समय पाकिस्तान नहीं दिखा? अचानक उन्हें हर तरफ पाकिस्तान ही दिखाई दे रहा है."
तृणमूल समर्थकों का एक परिवार
नंदीग्राम ब्लॉक 2 के मंगलचक गांव में हम एक मुस्लिम परिवार से मिले, जिसमें सभी लोग तृणमूल पार्टी कार्यकर्ता और ममता बनर्जी के सक्रिय समर्थक थे. एसके अब्दुल अजीज़, उनके बेटे एसके रज़ब और पोते एसके रहमान, ब्लॉक में हर तरफ तृणमूल के झंडे लगाने के लिए उन्हें साथ पिरोने में लगे थे. 67 वर्षीय अजीज़, जो दमकल विभाग से रिटायर हुए हैं पोस्टरों पर गोंद लगा रहे थे जिन्हें बाद में वह पूरे इलाके में चिपका देंगे.
रजब ने हमें बताया, "हम वफादार तृणमूल समर्थक हैं. मैं एक स्कूल टीचर था और जब छोटा था तभी से राजनीति से जुड़ा रहता था. मैं अपने ब्लॉक में पिछले 15 साल से तृणमूल का कार्यकर्ता हूं."
जब हमने उनसे पूछा कि क्या उन्हें कोई पोस्टर लगाने और झंडे टांगने के लिए कोई पैसे देता है, तो उन्होंने जवाब दिया कि वह ऐसा तृणमूल के प्रति अपनी वफादारी की वजह से करते हैं. उनका जवाब था कि, "पार्टी हमें यह सब सामान मुहैया कराती है और हम पक्का करते हैं कि यह सब हर तरफ ब्लॉक में लग जाएं. इस काम को करने के हमें कोई पैसे नहीं देता."
हमसे बातचीत में तृणमूल कार्यकर्ताओं की 3 पीढ़ियों ने हमें बताया कि वह ममता बनर्जी और उनकी सरकार से बहुत खुश हैं.
जब बातचीत अधिकारी की तरफ घूमी, तो रजब ने हमसे कहा, "भाजपा में उनका प्रचार बहुत अलग है. उनका एजेंडा हिंदू मुस्लिम वोटों को विभाजित करना है. इस इलाके में हर तरह की आस्था वाले लोग पीढ़ियों से शांति और समन्वय से रह रहे हैं. यह बंगाल के लिए अच्छा नहीं है. अगर यही जारी रहा तो बंगाल के गांव जल जाएंगे."
क्या उन्होंने ज़मीन पर सांप्रदायिक गतिविधियां देखी हैं? इसके जवाब में रजब कहते हैं, "हम यह हर रोज़ देखते हैं. जब हम इलाके के हिंदुओं से बात करते हैं, तो वो कहते हैं, भाजपा एक हिंदू पार्टी है तो उन्हें एक बार मौका देते हैं. नुकसान ही क्या है?"
रहमान कहते हैं कि उन्होंने यह विभाजन गांव के कम उम्र के लोगों में भी देखा है. वे बताते हैं, "भाजपा को यहां कुछ समर्थन प्राप्त है. सारे सीपीआईएम समर्थक भाजपा में चले गए हैं क्योंकि वह तृणमूल से नफरत करते हैं. 2011 के बाद से सीपीआईएम के पास कोई नेतृत्व नहीं था और उनके समर्थक इसके लिए तृणमूल कांग्रेस को दोषी ठहराते हैं. अब उन्हें भाजपा मिल गई है और वह बदला चाहते हैं."
रैलियों में हमसे मिले कई भाजपा कार्यकर्ता सीपीआईएम से भाजपा में आज आने वाली बात की पुष्टि करते हैं. उन्होंने कहा कि "पहले बाम, अभी राम."
हमने रहमान से पूछा कि क्या उन्होंने इलाके में किसी सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं के बारे में सुना या देखा है. उन्होंने उत्तर दिया, "हाल ही में अभी एक घटना पास में हुई थी. कुछ मुसलमान इलाके में नमाज़ पढ़ रहे थे और वहीं पर कुछ आदमी आ गए. उन्होंने मुसलमानों को परेशान करने के लिए "जय श्री राम" चिल्लाना शुरू कर दिया. वह ऐसा क्यों करते हैं? हम सब अपनी अपनी आस्था का अनुसरण क्यों नहीं कर सकते?"
रजब की पत्नी सबीना बीबी ने हमें बताया कि भाजपा के मुस्लिम विरोधी बातों और परिवेश को लेकर वे आशंकित हैं. उन्होंने कहा, "हमें 'जय श्री राम' से कोई दिक्कत नहीं. वह जिस भी भगवान में विश्वास रखते हैं, उसका नारा लगायें. लेकिन अगर भाजपा जीतती है, तो हमें डर है कि वह हमसे भी वही नारा लगवाएंगे."
आगे हम अब्दुल और उसके परिवार से उनके घर पर मिले. अब्दुल उनका असली नाम नहीं है.
उन्होंने कहा, "यह हिंदू-मुस्लिम बटवारा मुझे बहुत असहज करता है. यहां के हिंदू परिवारों में भाजपा के लिए समर्थन है लेकिन मैंने कुछ हिंदुओं को दीदी का समर्थन करते भी देखा है. यहां पर हिंदू वोट पड़ेगा लेकिन मुसलमान एकमुश्त होकर दीदी को वोट करेंगे."
उनकी पत्नी सुल्ताना (नाम बदला हुआ), ने भी जबरदस्ती लगवाए जाने वाले 'जय श्री राम' के लिए पहले कुछ लोगों की तरह अपना डर बताया.
उन्होंने कहा, "अगर वह सत्ता में आए तो भाजपा हमसे 'जय श्री राम' का नारा लगवाएगी. हम ऐसा क्यों करें? हमारे पास हमारा अपना पंत है हम उसका ही अनुसरण करना चाहते हैं. वे अपने रीति रिवाज करें. हम अपने रीति रिवाज और मान्यताओं को खुद कर सकते हैं."
आतिफ (नाम बदला हुआ) एक ईंट के भट्टे में काम करते हैं और कहते हैं कि वह उलझन में हैं कि किसके पक्ष में वोट करें. भाजपा उनके लिए विकल्प नहीं है लेकिन तृणमूल का शासन भी उनके लिए केवल मुश्किलों भरा और बिना किसी हित का रहा है.
वह कहते हैं, “तृणमूल ने मुसलमानों के लिए बहुत कुछ किया है, लेकिन मौलवियों को पैसा देने के अलावा उन्होंने क्या किया है? हमारी जिंदगी में क्या बेहतर हुआ है? हर स्तर पर भ्रष्टाचार है, सब चीजें उन्हीं के आदमी, हनी कार्यकर्ता और वह लोग जो उनके करीबी हैं, हज़म कर जाते हैं. मैं भाजपा को वोट नहीं कर सकता लेकिन मैं तृणमूल से नफरत करता हूं. मुझे सोचना पड़ेगा कि किसे वोट दूं."
नंदीग्राम के ब्लॉक 2 में धीरेंद्रनाथ मेटी कहते हैं कि वह एक मिठाई की दुकान चलाते थे, जो उन्हें पिछले साल लॉकडाउन के दौरान मजबूरन बंद करनी पड़ी. अब वह एक स्टेशनरी की दुकान चलाते हैं. उनके पुत्र जो जादवपुर विश्वविद्यालय से पीएचडी हैं इस समय बेरोजगार हैं, लेकिन वह इस चुनावी मौसम में एक पोलिंग ऑफिसर की तरह काम करेंगे.
उनका कहना है कि, "हमें प्रशासन से दया नहीं चाहिए. हमें नौकरियां चाहिए और अपने हाथ में पैसा चाहिए. जवान लड़के बेरोजगार बैठे हैं. मेरी खुद की दुकान बहुत ही कम आमदनी देती है."
उनके और उनके परिवार के लिए, मोदी की "डबल इंजन की सरकार" वाली बात एक आकर्षक संभावना है, जिसको इस चुनाव में मौका देकर देखा जा सकता है.
परीक्षित सान्याल की रिपोर्टिंग और अनुवाद में सहयोग के साथ.
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