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कट मनी और तोलाबाजी: तृणमूल के खिलाफ लोगों में कितना गुस्सा है?

बंगाल के बांकुरा में 21 मार्च को प्रधानमंत्री अपने चिर-परिचित अंदाज़ में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर बरसे. "दीदी," प्रधानमंत्री ने कहा, "भ्रष्टाचारेर खेला चोलबे ना." बांग्ला में इसका अर्थ हुआ 'भ्रष्टाचार का खेल नहीं चलेगा'.

फिर भीड़ को संबोधित करते हुए उन्होंने इसे एक नारे में बदल दिया.

"आप बोलेंगे मेरे साथ? आपको बोलना है चोलबे ना, चोलबे ना!"

जनता ने भी समर्थन में आवाज़ बुलंद की.

"दीदी, भ्रष्टाचारे'र खेला..."

"चोलबे ना, चोलबे ना," भीड़ का स्वर गूंजा."

"दीदी, सिंडिकेटे'र खेला..."

"चोलबे ना, चोलबे ना"

"कट मनी खेला..."

"चोलबे ना, चोलबे ना"

भ्रष्टाचार, तोलाबाजी अथवा धन उगाही, और कट मनी जैसे मुद्दों को इस बार बंगाल चुनावों में भाजपा जोर-शोर से उठा रही है. हमने यह पता लगाने की कोशिश की कि यह समस्याएं कितनी व्यापक हैं और बंगाल के लोग भगवा दल के इस प्रचार को किस तरह देख रहे हैं.

लेकिन पहले यह जान लेते हैं कि तोलाबाजी और कट मनी क्या है और कैसे काम करते हैं. बंगाल में यह सीपीएम के ज़माने से ही एक परंपरा सी चली आ रही है. पुराने वामपंथी शासन में लोगों के पार्टी को एक 'सदस्यता शुल्क' देना पड़ता था. कोलकाता के एक बिल्डर और प्रमोटर ने नाम न लेने की शर्त पर समझाया कि यह कैसे काम करता था.

"जब भी हम कोई प्रोजेक्ट लेते थे, सीपीएम के कार्यकर्ता आकर अपना हिस्सा मांगते थे. वह इसे सदस्यता शुल्क कहते थे." उन्होंने बताया. "एक बार आपने उन्हें पैसे दे दिए तो वह आपको एक रसीद देते थे और फिर आपको कोई परेशान नहीं करता था. अगर किसी ने और पैसे मांगे भी तो वह रसीद दिखा देने पर चले जाते थे. यह बहुत केंद्रीकृत व्यवस्था थी."

लेकिन तृणमूल के सत्ता में आने के बाद सब बदल गया. जब हमने एक बिल्डर से पूछा कि अब यह कैसे होता है तो उन्होंने बताया कि अब अलग-अलग गुटों को विभिन्न वस्तुओं के पैसे देने पड़ते हैं. "अब कोई तृणमूल कार्यकर्ता आकर हमसे कहता है की हमें बालू एक विशेष विक्रेता से लेना होगा, उनके ही चुने हुए विक्रेता से बिजली का काम करना होगा. ऐसा नहीं करने पर वह हमारा काम नहीं होने देते. यह सब निरंतर चलता रहता है. इसके ऊपर आपको सरकार से तमाम तरह की अनुमतियां लेने के लिए भी घूस देनी पड़ती है."

हमने एक और व्यापारी से बात की और उन्होंने भी अपना नाम गुप्त रखा, यह कहते हुए कि चुनाव का समय है और वह दलगत राजनीती में नहीं पड़ना चाहते. हमने उनसे पूछा कि वह किसी एक को दिखा दें जो पैसे लेता हो लेकिन वह झिझकते रहे. "मैं इन सब में पड़ना नहीं चाहता. सबको पता है यहां क्या होता है लेकिन कोई आपसे बात नहीं करना चाहेगा," उन्होंने कहा.

वह सही थे. पार्क स्ट्रीट पर एक चाय की दुकान के मालिक जो उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से प्रवासी हैं, बताते हैं कि वह 40 सालों से वहां हैं. क्या किसी पार्टी ने उनसे व्यापार चलने देने के बदले पैसे मांगे, इस सवाल पर वह बोले कि स्ट्रीट वेंडर्स यूनियन सब देख लेता है.

"हम यूनियन के लोगों को पैसा देते हैं. वही पुलिस और बाकी अधिकारियों को को पैसे देते हैं," उन्होंने कहा. पूछने पर कि वह पैसे क्यों देते हैं, उन्होंने कहा, "मुझे अपना व्यापार चलाना है, मैं इसे किराए की तरह समझता हूं. यही करना सही भी है, नहीं तो मैं इस स्थान पर कभी नहीं बैठ पाउंगा जहां ज्यादा ग्राहक आते हैं."

कई और लोगों से बात करने पर यह साफ हो गया कि यह 'किराया-वसूली' कहानी का सिर्फ एक भाग है और कट मनी के कई और रूप हैं. सबसे अधिक यह सरकारी योजनाओं का लाभ लेने पर देना होता है.

दिलीप कोलकाता में ड्राइवर हैं. जब 2018 में उनकी बेटी की शादी हुई तो एक तृणमूल कार्यकर्ता ने उन्हें राज्य की कन्याश्री योजना के बारे में बताया. "उसने मुझसे कहा कि यदि मैं इस योजना के लिए आवेदन करूं तो सरकार से मुझे 25,000 रुपए मिलेंगे," दिलीप ने बताया. "लेकिन उसने यह भी कहा कि पैसे मिल जाने पर हमें उसे 5,000 रुपये देने होंगे."

बंगाल सरकार की 'रूपश्री प्रकल्प' योजना आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की उनकी लड़कियों की शादी कराने में सहायता देने के लिए 2018 में शुरू हुई थी. इसके दो उद्देश्य थे. एक तो बाल-विवाह रोकना क्योंकि यह मदद सिर्फ 18 साल से ऊपर की लड़कियों के लिए थी. और दूसरा, शादी में होने वाले खर्च के चक्कर में परिवारों को कर्ज के जाल में फंसने से रोकना.

"एक साल बाद, 2019 में मेरे खाते में पैसे आ गए. मुझे उसमें से 5,000 रुपए निकालकर उस तृणमूल कार्यकर्ता को देने पड़े," दिलीप ने बताया.

2019 में ममता ने सार्वजनिक तौर पर अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि लोगों से जबरदस्ती वसूली गई कट मनी वह उन्हें वापस करें. उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ तृणमूल कार्यकर्ता गरीब परिवारों को अपने मृतकों का अंतिम संस्कार करने के लिए सरकार द्वारा दिए जाने वाले 2,000 रुपयों में से 200 रुपये कट मनी के तौर पर ले रहे हैं. दिलीप के मामले में भी यही तरीका अपनाया गया.

मई 2020 में अम्फन चक्रवात ने बंगाल में भरी तबाही मचाई थी, जिसके बाद कट मनी को लेकर सरकार का भारी विरोध हुआ था. प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि तृणमूल ने आपदा राहत पैकेज का एक हिस्सा हड़प लिया जो चक्रवात प्रभावित लोगों के लिए था, यहां तक कि लॉकडाउन के समय बांटे जाने वाले राशन से भी उन्होंने अपना हिस्सा लिया. तृणमूल कार्यकर्ताओं के विरुद्ध लोगों से ऐसी 2,100 शिकायतें आने के बाद बंगाल सरकार ने इसकी जांच के लिए एक समिति बनाई और उसे पारदर्शिता के बड़े उदहारण के रूप में प्रस्तुत किया.

जब हमने दिलीप से पूछा कि क्या उनसे लिया गया पैसा वापस आया, तो उन्होंने हंसते हुए कहा नहीं. "वह कैसे वापस करेंगे? जिस महिला ने पैसे लिए उसने बड़ा दोमंजिला मकान बना लिया है. सालों तक उसने जिन लोगों से पैसे लिए हैं उन सबको वापस देने के लिए उसे अपना घर बेचना पड़ेगा."

इस बारे में और पता करने के लिए हम कोलकाता के चेतला गए. हमने इस इलाके का चुनाव शहरी विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर मिले बंगाल में प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत स्वीकृत परियोजनाओं की सूची से जुड़े एक दस्तावेज़ के आधार पर किया.

सूची से जुड़ा एक दस्तावेज़

हम यह पता करना चाहते थे की क्या परियोजना पूरी हो चुकी है और क्या उसके क्रियान्वन में कट मनी या जबरन वसूली की घटनाएं शामिल थीं. क्योंकि वह निर्माण कार्य और सरकारी वित्तपोषण का सबसे बढ़िया संगम था.

हम उस हाउसिंग यूनिट पर पहुंचे जहां एक बोर्ड लगा था जिसके अनुसार कोलकाता के महापौर फिरहाद हाकिम ने उसका उद्घाटन किया था. बिल्डिंग का नाम था 'बांग्ला'र बारी', यानी 'बंगाल का घर'.

कोलकाता के महापौर फिरहाद हाकिम द्वारा किया गया उद्घाटन
बांग्ला'र बारी', यानी 'बंगाल का घर' कोलकाता के चेतला क्षेत्र में आवास परिसर

हमने वहां के निवासियों से बात की और उन्होंने बताया कि वह बिल्डिंग राज्य सरकार ने बनाई है. हमने पूछा कि क्या वह प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनी है तो उन्होंने कहा नहीं.

"बॉबी दा ने सुनिश्चित किया कि हमें घर मिले. इस से पहले इस पूरे इलाके में झुग्गियां थीं, लेकिन उन्हें तोड़कर एक साल में यह काम्प्लेक्स तैयार किया गया," एक निवासी मिठू मित्रा ने बताया. उन्हें भी वहां घर मिला है.

फिरहाद को नगर के लोग प्रेम से बॉबी बुलाते हैं.

हमने मिठू से पूछा कि क्या उनसे किसी तरह की वसूली की गयी. "हमसे एक पैसा भी नहीं लिया गया," उन्होंने बताया. "जब यह घर बन रहा था तो उन्होंने सुनिश्चित किया कि हमें सभी तरह की सुविधाएं मिलें. इसके लिए भी कोई पैसा नहीं लिया गया."

'बांग्ला'र बारी' के निवासी

फिरहाद ने 'बांग्ला'र बारी' की घोषणा 2017 में राज्य के शहरी विकास मंत्री रहते हुए की थी. मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि 'बांग्ला'र बारी' में एक फ्लैट के लिए परिवारों को 50,000 रुपए देने पड़े. लेकिन हमने जिनसे बात की उन्होंने बताया कि उन्हें घर मुफ्त में मिले हैं.

कुछ मीटर दूर हम सुलेखा मैती से मिले जो एक गृहणी हैं. उन्होंने बताया कि उस इलाके में जबरन वसूली की कोई घटना नहीं हुई है. "हम दादा और दीदी के बीच में रहते हैं. यहां कोई वसूली करने की हिम्मत नहीं कर सकता. हम बहुत सुरक्षित महसूस करते हैं," उन्होंने कहा.

उन्होंने बताया कि उनकी बहन वंदना मैती का विवाह 2019 में हुआ था और फिरहाद के लोगों ने उन्हें रूपश्री योजना के 25,000 रुपए दिलवाने में मदद की. "हमें पैसे शादी के 3-4 दिन बाद ही मिल गए. उन्होंने हमें योजना के बारे में सब बताया और कागजी कार्रवाई भी की. सब कुछ बहुत सरल था," सुलेखा ने कहा.

जब हमने दिलीप के अनुभव के बारे में बताया तो एक अन्य गृहणी मिली कांजी ने कहा कि और जगहों पर ऐसा हो सकता है, लेकिन यहां नहीं. "मैंने अपने गृहनगर आम्ताला में ऐसी घटनाओं के बारे में सुना है," उन्होंने कहा. "सीपीएम के समय से ही सभी दलों के लोग पैसे लेते हैं वहां. लेकिन कोलकाता की स्थिति भिन्न है."

उनका संकेत लेकर हम कट मनी के बारे में अपनी जांच जारी रखेंगे. इस हफ्ते हम ग्रामीण बंगाल का रुख करेंगे जिससे शायद तस्वीर और साफ़ हो जाएगी. हम वहां की स्थिति जानेंगे और यह भी पता लगाएंगे कि क्या भाजपा का ममता सरकार के विरुद्ध यह प्रचार इस चुनाव में काम आएगा.

पर एक बात साफ़ है कि लोग विशेष रूप से कट मनी और आम तौर पर सरकार के बारे में बात करने से झिझक रहे हैं. जब हमने सड़कों पर लोगों से सरकार के बारे में उनकी राय पूछी तो उन्होंने अधिकृत तौर पर कुछ भी कहने से मना कर दिया.

लेकिन बिना कैमरे के ऑफ द रिकॉर्ड बात करने पर वह सरकार और तृणमूल कांग्रेस के विरुद्ध बोले. हम देखते हैं कि क्या यही हाल ग्रामीण बंगाल में भी होगा.

सुरक्षा कारणों से पहचान छुपाने के लिए कुछ नाम बदल दिए गए हैं.

बंगाल में भ्रष्टाचार और उस पर मतदाताओं की प्रतिक्रिया पर यह हमारी श्रृंखला की पहली कड़ी है.

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