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शहजादपुर महापंचायत: ‘अगले चुनाव में बीजेपी की बत्ती गुल कर देंगे’
किसान आदोलन अब अलग रूप ले चुका है. जहां पहले भीड़ सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर दिखाई देती थी वह भीड़ अब किसान नेताओं की रैलियों और महापंचायतों में दिखाई देती है. जबकि इन बॉर्डरों पर भीड़ पहले के मुकाबले काफी कम है. महीनों से देशभर में लगातार हो रही किसान रैली और महापंचायतों में लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. इन महापंचायतों को राकेश टिकैत, नरेश टिकैत तो कहीं गुरनाम सिंह चढूनी और दर्शनपाल सिंह संबोधित कर रहे हैं. इसी क्रम में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला अमरोहा के गांव शहजादपुर में भी एक महापंचायत हुई. इसे संबोधित करने भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत पहुंचे.
महापंचायत स्थल पर तीन बजे के बाद पहुंचे नरेश टिकैत का जोरदार स्वागत हुआ. उन्होंने महापंचायत को संबोधित करते हुए कहा, "गाजीपुर का भी आपको ही ध्यान रखना है. गावों से लोग उधर जाते रहें. सरकार जो हमारे साथ कर रही है वह ठीक नहीं है. हमने ही इनकी सरकार बनाई थी. हमने ही इन्हें वोट देकर यहां तक पहुंचाया है. और ये आज हमें ही आंखे दिखा रहे हैं. सरकार से 11 दौर की बैठक होने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला है. इससे भद्दा मजाक क्या हो सकता है. आंदोलन में 300 से ज्यादा किसान शहीद हो गए हैं, लेकिन प्रधानमंत्री ने एक भी शब्द नहीं बोला. सरकार हमें आतंकवादी, खालिस्तानी और टुकड़े-टुकड़े गैंग बता रही है. यह परीक्षा की घड़ी है अगर हम गाजीपुर बॉर्डर से खाली हाथ आ गए तो आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी."
महापंचायत में महिलाएं भी काफी संख्या में पहुंची थीं. महापंचायत स्थल पर पहुंचे लोगों के लिए खाने-पीने की भी व्यवस्था थी. पास गांव के युवा सुबह से ही मौके पर मौजूद थे और आने वाले वाहनों को सही जगह पर खड़ा करवाने की उनकी ही जिम्मेदारी थी. 8-10 लड़कों की इस टीम ने अपने गले में भारतीय किसान यूनियन के पहचान पत्र डाले हुए थे. इन पर नाम, पिता का नाम और पता लिखा हुआ था.
इन्हीं में से एक चुचैला खुर्द से आए राहुल बताते हैं, "यह तीनों कृषि कानून वापस होने चाहिए. हम किसानों के साथ हैं. अगर यह कानून वापस नहीं हुए तो किसान बर्बाद हो जाएंगे. यह भीड़ सब अपनी मर्जी से आई है. वैसे हमें यहां आना इसलिए भी था क्योंकि हमें जिम्मेदारी दी गई थी. हमें ट्रैफिक कंट्रोल करने की जिम्मेदारी दी गई थी."
चुचैला खुर्द से ही आए शाकिब मलिक कहते हैं, "आज नरेश टिकैत जी ने कहा है कि, जो किसान भाई हैं वह सभी गाजीपुर भी जाएं. यह बहुत व्यस्त समय है. थोड़ा टाइम निकालकर दिल्ली चलो. वरना आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी और हमें पछताना पड़ेगा. उनकी यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी. हमें सभी को वहां जाना चाहिए और किसानों के साथ एकजुट होकर सरकार से यह तीनों कृषि कानून वापस करवाने चाहिए.”
वहीं उनके एक अन्य साथी कहते हैं, "हम इससे पहले गाजीपुर भी गए थे. वहां हमारी मुलाकात राकेश टिकैत से हुई थी. हम पहले तीन बार गए हैं और चार-चार दिन रुककर आए हैं."
पिछले 73 साल में इनती घटिया सरकार नहीं देखी
महापंचायत में अपने साथियों के साथ 73 वर्षीय सिंगारा सिंह भी पहुंचे थे. वह बताते हैं कि इससे पहले वे सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर भी होकर आ चुके हैं. उनके गांव से नरेश टिकैत को सुनने काफी संख्या में लोग आए हैं.
गांव रसूलपुर खादर से आए सिंगारा सिंह कहते हैं, "हम इन काले कृषि कानूनों के खिलाफ चार ट्रॉलियों के साथ महापंचायत में हिस्सा लेने आए हैं. जो हमारी मांगे हैं हम उन्हें लेकर रहेंगे उससे पहले पीछे नहीं हटेंगे. जब तक हमारी मांगे नहीं मानी जाएंगी तब तक आंदोलन ऐसे ही चलता रहेगा. सरकार को एक ना एक दिन मानना ही होगा. हम भी देखते हैं सरकार कब तक नहीं मानती है. अगर कोई दूसरी सरकार आएगी और वो भी नहीं मानी तो हमारा आंदोलन तब भी जारी रहेगा. यही बात आज टिकैत जी ने भी कह दी है."
उन्होंने आगे कहा, "उत्तर प्रदेश में भी चुनाव आने वाला है. लेकिन इस बार हम एक भी वोट भाजपा को नहीं देंगे. पिछले चुनाव में हमने भाजपा को ही वोट किया था. वोट तो रही दूर की बात बीजेपी वाला कोई अब हमारे गांव में भी नहीं घुस सकता है. हम किसी को भी वोट दे सकते हैं लेकिन अब आगे बीजेपी को वोट नहीं देंगे."
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार बीएम सिंह 26 जनवरी के बाद इस आंदोलन से अलग हो गए थे. क्या यहां के किसानों पर इस बात का कोई फर्क पड़ा है? इस सवाल पर सिंगारा सिंह कहते हैं, "बीएम सिंह अच्छे आदमी हैं. वह भी आज तक किसानों की ही लड़ाई लड़ते हुए आ रहे हैं. वो भले ही वहां से आ गए हों लेकिन यहां के किसान आज भी उनके साथ हैं. वह किसानों के बहुत पुराने आदमी हैं."
बीएम सिंह मेनका गांधी के रिश्तेदार हैं इसलिए आंदोलन से अलग हो गए
उनके साथी शमशेर सिंह बीच में ही कहते हैं, "बीएम सिंह गाजीपुर बॉर्डर से इसलिए उठकर आ गए हैं क्योंकि वह भाजपा सांसद मेनका गांधी के रिश्तेदार हैं. उनकी बीजेपी से रिश्तेदारी है और उन पर इस बात का दवाब था इसलिए वह वहां से आ गए हैं. इस बात को सभी जानते हैं कौन नहीं जानता है कि वह मेनका गांधी के रिश्तेदार हैं."
वह भाजपा सरकार पर कहते हैं, "किसानों की हालत बहुत खराब है. डीजल पेट्रोल दवाई सभी के दाम बढ़ गए हैं. और किसान की फसल के कोई दाम नहीं बढ़े हैं. जबकि खर्चे बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं."
इस बीच सिंगारा सिंह किसानों की आमदनी के सवाल पर तेज आवाज में कहते हैं, "सुनो, खर्चे दोगुने हो गए हैं और यह सरकार सिर्फ बात बना रही है. मेरी उम्र 72-73 साल हो गई है लेकिन आज तक इतना गंदा प्रधानमंत्री मैंने अपने जीवन में नहीं देखा है. यह बात हमारी कहीं भी पहुंचा देना हमें इस बात का कोई डर नहीं है. यह अब सीनाजोरी कर रहे हैं. किसान सिर्फ अपना हक मांग रहे हैं, जो सरकार नहीं दे रही है. क्या हक मांगना भी गलत है."
बच्चों की फीस लेनी थी तो स्कूल खोल दिए अब फिर बंद कर रहे हैं
किसान आंदोलन में आए सुरेंद्र सिंह कहते हैं, "इतना खलल किसी सरकार ने नहीं डाला है जितना इसने डाला है. पूरे देश में पंचायतें हो रही हैं. तीन चार महीनें से लगातर मीटिंग हो रही हैं. किसान पहले पंजाब में बैठे थे. अब दिल्ली में बैठे हैं. लेकिन सरकार को कुछ सुनाई नहीं दे रहा है.
सुरेंद्र सिंह आगे कहते हैं, "इस सरकार को हमसे स्कूल की फीस दिलवानी थी तो स्कूल खोल दिए, और अब दोबारा से स्कूल बंद कर रहे हैं. लॉकडाउन लगा रहे हैं. मुश्किल से 10-15 दिन स्कूल की बसें चलाई हैं. अब सबका पैसा चला गया तो फिर से लॉकडाउन का नाटक कर रहे हैं. इनका कोरोना सुबह नौ बजे जाग जाता है और फिर शाम को पांच बजे सो जाता है. जितने घटिया काम इस प्रधानमंत्री ने किए हैं इतने किसी ने नहीं किए हैं. इन्होंने पहले नोटबंदी करके पूरा देश परेशान कर दिया था. आज भी सभी परेशान हैं मजदूर किसान बच्चे बड़े सब दुखी हैं."
बीजेपी की सरकार नहीं होती तो अब तक किसानों पर लठ्ठ फिर गया होता
पंचायत स्थल से थोड़ी दूरी पर ही परचून की दुकान चलाने वाले नरेंद्र शर्मा कहते हैं, "क्या इस पंचायत से सरकार गिर जाएगी या सरकार कानून वापस ले लेगी. आज तक कोई कानून वापस लिया गया है क्या? जब से संविधान चला है. अगर सरकार इनके आगे झुककर ये कानून वापिस ले लेगी तो जितने आज तक कानून बने हैं वो तो सब वापिस ही हो जाएंगे. आज यह मांग उठा रहे हैं कल को फिर दूसरे वाले उठाएंगे. यह आंदोलन कितना भी बड़ा हो जाइयो, सरकार संशोधन के लिए कह रही है तो इसमें वही होगा पर यह वापस नहीं होगा."
वह आगे कहते हैं, "अगर बीजेपी के अलावा कोई और सरकार होती तो अब तक इन्हें उठा कर भगा दिया होता. इन सब पर लट्ठ फिर जाता. ये मोदी को बुरा बता रहे हैं लेकिन सच्चाई यह है कि मोदी जैसा देश में अभी तक कोई नेता नहीं आया है और ना ही आगे आने की कोई उम्मीद है. आप भी पत्रकार हो हमसे ज्यादा नॉलेज तो आप भी रखते होंगे, बताओ ऐसी बात है या नहीं?”
वह एक उदाहरण देते हुए कहते हैं, "गांव का एक प्रधान होता है. अगर गांव का प्रधान कोई सीधा आदमी बना दिया जाए जिसकी बाहर या शासन प्रशासन में कोई जान पहचान न हो. या जहां से गांव के लिए काम होते हों तो वह प्रधान गांव का क्या विकास करेगा. जब उसे जानकारी ही नहीं होगी तो क्या करेगा वो, बताओ आप. जितनी छवि मोदी की दुनिया में बनी है इतनी किसी और प्रधानमंत्री की बनी हो तो बता दो. ये तो हम यहीं देख रहे हैं कि मोदी ने देश का नाश कर दिया."
"चुनाव आने दो 50 फीसदी जाट बीजेपी को ही वोट करेंगे. 50 फीसदी को कम से कम हैं और 80-90 हो जाएं तो कह नहीं सकते हैं. इससे पहले यहां अखिलेश यादव की सरकार थी. पांच साल सबसे पहले उसने ही जाटों की नाक में नकेल डाल दी थी यहां? उस सरकार में सबसे ज्यादा यही पिटे हैं. इस बार चौहान, पंडित और बनिए ये सभी सवर्ण जातियां बीजेपी के अलावा कहीं जाने वाली नहीं हैं. ये बसपा को वोट नहीं दे सकते, सपा को नहीं दे सकते और कांग्रेस का कुछ रहा नहीं. खाली बीजेपी बची इसलिए बीजेपी को वोट देना इनकी मजबूरी है. दूसरी बात बीजेपी इतनी बुरी भी नहीं है. आप भी फिल्ड में घूम रहे हो हम तो खैर यहां बैठे हैं. लेकिन हम आज यहां सुकून से बैठे हैं तो सिर्फ बीजेपी की बजह से." उन्होंने कहा.
बीजेपी के आने से सिर्फ एक परेशानी हुई है
परचून की दुकान पर ही बैठे राधे लाल शर्मा कहते हैं, "जाटों के वोटों से कोई सरकार गिर रही है क्या? हमें तो यही दिखाई दे रहे हैं बस और इनसे कुछ हुआ क्या. यह जाट चाह रहे हैं कि इन्हें भी कोई पद मिल जाए. दिल्ली में भी सब पंजाब के लोग बैठे हैं इधर के नहीं हैं."
"इस सरकार में सिर्फ मवेशियों वाली परेशानी हुई है. आजकल गांव में लोग आवारा पशुओं को छोड़ देते हैं और यह फिर हमारी फसल बर्बाद करते हैं. यह परेशानी पहले नहीं थी. अखिलेश की सरकार में इनका सफाया हो रहा था. लेकिन अब ऐसा नहीं है." उन्होंने कहा.
वह टिकैत भाइयों पर कहते हैं, "इन्होंने पता नहीं कितने तो पंप लगा रखे हैं दिल्ली में. हमने सुना है कि दिल्ली में इनके तीन पंप चल रहे हैं अब उनकी क्या कीमत होगी यह तो आपको ही पता होगी. यह सब जो भी पैसा मिला इन्हें सब पब्लिक के समर्थन से ही तो मिला. देखो, नरेश टिकैत को पैसे नहीं मिल रहे हैं कहीं से इस बार इसलिए यह भगे फिर रहे हैं इधर उधर."
बीच में ही नरेंद्र सिंह कहते हैं, "हमारे क्षेत्र में लोगों की यही सोच है कि सरकार इन्हें इस बार पैसे नहीं दे रही है इसलिए यह भागे फिर रहे हैं."
आपकी नजर में यह तीनों कानून ठीक हैं? इस सवाल के जवाब में नरेंद्र शर्मा कहते हैं, "सही बता दें तो हमें इस कानून के बारे में ठीक से कोई जानकारी नहीं है. हमें इसके सारे नियम नहीं पता हैं इसलिए हम कैसे कह दें कि ठीक हैं या गलत हैं. सही जानकारी तो हमें तब लगेगी जब उन्हें पूरी तरह से ठीक से पढ़ा जाए तब हमें जानकारी होगी.
इस दौरान जब हमने उनसे उनकी एक तस्वीर लेने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया.
महापंचायत के पास ही गन्ने के खेत में हमारी मुलाकात नीली खेड़ी गांव के एक अन्य व्यक्ति से हुई. उन्होंने कहा कि आज काफी भीड़ आई थी. हम भी पंचायात में गए थे लेकिन अब अपने खेत में आ गए हैं. हम भी किसानों के समर्थन में हैं. दिनभर वहीं थे अब अपना काम कर रहे हैं. गाजीपुर जाने का तो टाइम नहीं है लेकिन हम किसानों के समर्थन में ही हैं.
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