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सिंघु बॉर्डर से गाजीपुर बॉर्डर के बीच बदली किसान आंदोलन की मीडिया नीति
सौ से ज्यादा दिनों से जारी किसान आंदोलन अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है. इस बीच सरकार और किसान नेताओं के बीच चल रही बातचीत भी बंद हो गई है. इस आंदोलन को शुरुआत से अब तक देखें तो काफी कुछ बदल गया है. शुरुआत में मीडिया के एक तबके को गोदी मीडिया घोषित किया गया था. सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर से ऐसे अनेक वीडियो सामने आए थे जहां टीवी पत्रकारों को भगाया गया, उन्हें हूट किया गया. मीडिया के एक हिस्से से प्रदर्शनकारी किसानों ने बात करने से भी मना कर दिया था. किसानों का आरोप था कि यह मीडिया उनके साथ नहीं बल्कि सरकार का समर्थक है इसलिए इन्हें इस आंदोलन से दूर रखना है. मीडिया को दूर रखने की किसानों की रणनीति अमूमन 26 जनवरी तक जारी रही.
लेकिन 26 जनवरी की लाल किले वाली घटना के बाद हालात पूरी तरह से बदल गए. गोदी मीडिया ने एक बार फिर से किसानों की शंका को सही साबित करते हुए एकतरफा कार्यक्रम चलाए कि आंदोलन का तंबू उखड़ गया है. लेकिन एक घटना ने पूरे माहौल को बदल दिया. किसान नेता राकेश टिकैत भावुक हो गए. उनका यह वीडियो दुनिया भर में वायरल हो गया और इसके साथ ही खत्म होता दिख रहा किसानों का आंदोलन फिर से जी उठा.
इसके साथ ही इस पूरे आंदोलन के अंदरूनी और बाहरी समीकरण भी बदल गए. किसानों के आंदोलन की शुरुआत से ही राकेश टिकैत के नेतृत्व वाले गाजीपुर मोर्चे को सबसे कमजोर माना जा रहा था. लेकिन 27 जनवरी को उनके रोने के बाद हालात बदल गए. अब तक आंदोलन के ऊपर सिंघु-टीकरी बॉर्डर के किसानों का प्रभाव चल रहा था. इस घटना के बाद राकेश टिकैत आंदोलन के केंद्र में आ गए हैं, सिंघु बॉर्डर के नेता मानो नेपथ्य में चले गए हैं. राकेश टिकैत के केंद्र में आने के साथ ही इस आंदोलन का मीडिया से रिश्ता भी नए सिरे से परिभाषित हुआ है. जिन मीडिया समूहों को अब तक गोदी मीडिया बताकर आंदोलनकारी नेता दूर रखते आ रहे थे, उन्हीं के साथ राकेश टिकैत एक के बाद एक लगातार इंटरव्यू और बाइटें देने लगे. देखा जाए तो वह काफी मीडिया फ्रेंडली हो गए हैं. अब सवाल यह है कि क्या यह सब जानबूझकर हुआ है या फिर मजबूरी में? क्या मीडिया के प्रति किसानों की नीति बदल गई है या फिर राकेश टिकैत की इस अति मीडिया फ्रेंडली रवैये से आंदोलन के बाकी नेताओं के भीतर किसी तरह की बेचैनी और कसमकश चल रही है?
पंजाब के किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल मीडिया के प्रति बदली हुई रणनीति के सवाल पर कहते हैं, "जहां कहीं भी मीडिया को परेशान किया गया है हम वहां पहुंचकर हमने लोगों को समझाया है कि यह जो काम कर रहे हैं, ये मालिक के मुलाजिम हैं, इसलिए इनसे झगड़ा मत करो. ठीक है हर चैनल की अपनी पॉलिसी है, अब वह नहीं दिखाना चाहता है तो क्या करें. मीडिया निगेटिव दिखाता है तो उससे लोगों को एतराज तो होता है, लेकिन अब समझ भी आ गया है. किसी को पीटना या उनका विरोध करना ठीक नहीं है. आंदोलन की ऐसी कोई पॉलिसी नहीं है कि मीडिया के लोगों को परेशान किया जाए."
आंदोलनरत मोर्चों पर अभी भी गोदी मीडिया के बैनर पोस्टर लगे हैं और राकेश टिकैत उन्हीं चैनलों को इंटरव्यू दे रहे हैं. इस पर राजेवाल कहते हैं, "किसान मोर्चा की तरफ से यह बैनर पोस्टर नहीं लगाए गए हैं. यह बहुत बड़ा आंदोलन है. किसी ने लगा दिए होंगे. हमारा किसी के साथ कोई टकराव नहीं है. यह बड़ा आंदोलन है और ऐसे में बहुत सारे लोग ऐसे भी होते हैं जो आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश करते हैं. यह सब जानते हैं कि मीडिया आज क्या कर रहा है लेकिन हमें इससे कोई एतराज नहीं है वह अपना काम कर रहे हैं और हम अपना.”
जब राजेवाल न्यूज़लॉन्ड्री से बात कर रहे थे तब वह कोलकता में किसान रैली में हिस्सा ले रहे थे. इस दौरान पीछे से नारों की आवाजें आ रही थीं.
बंगाल की सभी सीटों पर हमारे दूत चिट्ठी लेकर रवाना हो गए हैं
वह आगे कहते हैं, "हम बीजेपी के खिलाफ यहां कोलकाता में हैं. यहां कई किलोमीटर लंबा जुलूस निकाला जा रहा है. हमारा बंगाल में लोगों से सिर्फ यही कहना है कि आप बीजेपी को वोट मत दो बाकी किसी को भी दो. पश्चिम बंगाल में 294 विधानसभा सीटें हैं. हम एक-एक विधानसभा में अपने दूत गाड़ी में बैठाकर भेज रहे हैं. हमने इन्हें एक चिट्ठी दी है जो यह सभी विधानसभाओं के लोगों को घर-घर जाकर देंगे."
"हमने चिट्ठी में कहा है कि यह बीजेपी की सरकार फासिस्ट सरकार है. यह कॉरपोरेट को सारा देश बेचने जा रही है. देश में कृषि को बर्बाद कर आम आदमी की रोटी अमीरों की तिजोरी में बंद करने जा रही है इसलिए हम इसका विरोध कर रहे हैं. यह चार महीनों से हमें नहीं सुन रहे हैं. यह झूठ बोलते हैं, गलत प्रचार करते हैं. लेकन जब तक यह कानून वापस नहीं होते हैं तब तक हम वहां से वापस नहीं जाएंगे." उन्होंने कहा.
वह आगे कहते हैं, "हमने तय किया है कि जहां-जहां भी वोट डाले जाने हैं. हम वहां-वहां जाएंगे. इसकी शुरुआत हमने बंगाल से कर दी है. हम सभी जगहों पर रैलियां करेंगे. इसके बाद हम असम जा रहे हैं उसके बाद 15 तारीख को हम केरल जाएंगे. हम 6-7 किसान नेता दिल्ली से पहुंचे हैं, बाकी सब यहीं के लोकल नेता हैं."
बयान देने से आंदोलन लीड नहीं होता
किसान संघर्ष कमेटी के पंजाब कन्वीनर कंवलप्रीत सिंह पन्नू कहते हैं, "हमने कभी मीडिया का बायकाट नहीं किया है. जो मीडिया हमारे खिलाफ बोलता है हमने तो कभी उसका भी बायकाट नहीं किया. हमारे कुछ नौजवान उग्र हो जाते थे वो नारा लगाते थे. हम तब भी उनको समझाते थे कि आप ऐसा काम मत करो. यहां कोई आए क्या दिखाए हमें इससे कुछ लेनादेना नहीं है."
अभी भी आंदोलन स्थल पर मीडिया के खिलाफ बैनर पोस्टर लगे हैं. इस पर वह कहते हैं, "यह एक जन आंदोलन है. इसमें बहुत लोग आ रहे हैं. वह लोग अपनी तरफ से ऐसा कर रहे हैं लेकिन हम उनको भी समझा रहे हैं कि आप ऐसा न करें. तो जो समझ जाते हैं वह बैनर उतार देते हैं और जो नहीं समझते हैं वह नहीं उतारते हैं. हमारे संयुक्त मोर्चे की ओर से कोई बैनर नहीं लगाया गया है."
पहले सिंघु और टिकरी बॉर्डर से आंदोलन चल रहा था लेकिन अब राकेश टिकैत भी आंदोलन लीड कर रहे हैं. मीडिया में हर जगह उनका चेहरा दिखता है, वही बयान देते हैं? क्या अब आंदोलन की बागडोर उनके हाथ में है? इस पर पन्नू कहते हैं, "बयान देने से आंदोलन लीड नहीं होता है. संयुक्त किसान मोर्चा ही आंदोलन को लीड कर रहा है और दिशा दे रहा है. 6 फरवरी को हमने सारे देश में रास्ता रोकने का अभियान किया तो सात हजार जगहों पर चक्का जाम हुआ. हमने 18 फरवरी को रेल रोको आंदोलन किया वह भी संयुक्त मोर्चे के आह्वान पर हुआ था. हमने 15 को निजीकरण विरोधी दिवस मनाया, 26 मार्च को भारत बंद करने का एलान किया है. यह सभी संयुक्त मोर्चे की ओर से किया जा रहा है."
राकेश टिकैत के कामकाज की शैली पर वो कहते हैं, "उनका अपना तरीका है काम करने का और हमारा अपना तरीका है. हमारे पंजाब की 32 आर्गनाइजेशन हैं जो संयुक्त किसान मोर्चे का अंग हैं. जो संयुक्त मोर्चा कहेगा यह सभी वही करेंगे. किसी को कोई अधिकार नहीं है कि वह अकेला ऐलान कर दे. किसान संगठनों में कोई टकराव की स्थिति नहीं है अगर होती तो हम इतना लंबा आंदोलन कैसे लड़ लेते."
"संयुक्त मोर्चे ने फैसला किया है कि जहां-जहां भी चुनाव हो रहे हैं हम वहां जाएंगे और बीजेपी के खिलाफ वोट डालने के लिए कहेंगे. यह किसान विरोधी सरकार है. देश के लोगों को लूटना चाहती है. हम लोगों को बता रहे हैं कि यह 25 रुपये किलो बिकने वाला आटा 100 रुपये में बेचना चाहती है. यह 80-90 रुपये वाला चावल 200-250 में बेचना चाहती है. इसका फर्क सभी पर पड़ेगा. इसलिए यह आंदोलन हमारा ही नहीं आपका भी है." उन्होंने कहा.
किसान मजूदर संघर्ष समिति के पंजाब महासचिव स्वर्ण सिंह पंडेर मीडिया के प्रति नजरिए के बारे में बताते हैं, "हमारी मीडिया से कोई नाराजगी नहीं है. हमारा सरकार के विरुद्ध एक संघर्ष है, हम उसे कर रहे हैं. मीडिया अपने हिसाब से उसे दिखा रहा है. हमारी व्यक्तिगत रूप से किसी से कोई लड़ाई नहीं है. यह जन आंदोलन है इसमें लोगों को जो ठीक लगता है वह कर लेते हैं ऐसा करके वह अपनी भावनाएं प्रकट करते हैं."
"मीडियाकर्मी और मीडिया हाउस अलग-अलग होते हैं. मीडियाकर्मी रोजगार के हिसाब से अपना काम करता है जो मीडिया हाउस उसे काम देता है. इसलिए मीडिया को भी आलोचना करने का अधिकार है और हमें भी उनकी आलोचना करने का अधिकार है. हमारा व्यक्तिगत किसी से कुछ नहीं है." उन्होंने कहा.
वह राकेश टिकैत के सवाल पर पंडेर कहते हैं, "यह सब समय की बात होती है. जैसा सरकार ने गाजीपुर में किया, वहां पर पुलिस आ गई जिसके बाद वहां काफी लोग इकट्ठा हो गए. माहौल देखकर लोग उनके हक में जुट गए. ऐसे ही जब हम पर हमला हुआ तो लोग हमारे लिए भी खड़े हो गए थे. यह सब तो चलता रहता है. हमारा किसी से कोई टकराव नहीं है. हम सिर्फ सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे है."
ट्रॉली टाइम्स अखबार के को-फाउंडर गुरदीप सिंह कहते हैं, "मीडिया पर किसी ने पाबांदी नहीं लगाई है. आंदोलन में बैठे कुछ लोगों में नाराजगी है. वहां बैठे लोगों में मीडिया के प्रति रोष है लेकिन किसान नेता कभी ऐसा नहीं बोलते हैं. बल्कि किसान नेता तो यही कहते हैं कि आप यहां आने वाले सभी लोगों की इज्जत करो. यहां जो बैनर लगे हैं वह गांव से आए लोगों ने लगाए हैं, किसी किसान नेता ने ऐसा नहीं कहा है. जब मीडिया कर्मियों के साथ गलत होता है जैसे पहले हुआ है तो हमारे नेता माफी भी मांगते हैं. वह कहते हैं कि मीडियाकर्मियों के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए."
राकेश टिकैत के आंदोलन के केंद्र में आने के सवाल पर वह कहते हैं, "वह मीडिया में जरूर आते हैं लेकिन चीजें सारी किसान मोर्चा ही तय करता है. पहले भी यहीं से तय होता था और अभी भी यहीं से तय होता है. बल्कि राकेश टिकैत तो हमेशा कहते हैं अपनी स्पीच में कि सिंघु और टिकरी पर बैठे किसान नेताओं ने काफी कुछ सिखाया है. हमें इनकी बात माननी चाहिए. वो जब भी बाहर किसी रैली में बोलते हैं तो वह ऐसा बोलते हैं. वह कहते हैं कि हमें इन्होंने लंगर करने से लेकर काफी कुछ सिखाया है."
कांग्रेस से मिले हुए हैं राकेश टिकैत और गुरनाम सिंह चढूनी
भारतीय किसान यूनियन (भानू) ने 26 जनवरी को लाल किले पर हुई घटना के बाद से आंदोलन खत्म कर दिया है. वह कृषि कानूनों के विरोध में चिल्ला बॉर्डर पर बैठे थे.
इस संगठन के अध्यक्ष ठाकुर भानू प्रताप सिंह कहते हैं, "अब आंदोलन वह लोग चला रहे हैं जिन्होंने कांग्रेस से पैसा लिया है. यह सभी लोग राजनीतिक दल से जुड़े हुए हैं. राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढूनी इसके अलावा जितने भी लोग किसान नेताओं से बात करते थे वह सभी लोग कांग्रेस से मिले हुए हैं."
वह कहते हैं, "राकेश टिकैत की संपत्तियों की जांच होनी चाहिए. पिछले 30 सालों में इन्होंने अपनी संपत्ति बहुत ज्यादा बढ़ा ली है. इन्होंने हर आंदोलन में पैसा लिया है. टिकैतजी पर संगठनों को बेचने का गुरुमंत्र है, कि कैसे संगठनों को बेचा जाता है और कैसे धन कमाया जाता है. यह इनसे अच्छा कोई नहीं जानता है."
"यह आंदोलन अब राजनीतिक दलों का रह गया है. इसमें किसान नहीं हैं. जैसे लोकदल और कांग्रेस का. लोकदल पहले कहीं नहीं थी लेकिन अब आंदोलन के बहाने वह सक्रिय हो गई है. ऐसा ही हाल कांग्रेस का है. अब तो भाजपा को हराने और कांग्रेस को जिताने के लिए यह आंदोलन चल रहा है," उन्होंने कहा.
वहीं इस पूरे मामले पर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत कहते हैं, "क्या मीडिया को यह अधिकार है कि वह किसी के बारे में कुछ भी कहे. जी न्यूज़, रिपब्लिक भारत आज क्या कर रहे हैं यह सब जानते हैं. जो सच्चाई दिखा रहे हैं हम उन्हें कुछ नहीं कह रहे हैं. लेकिन जो किसानों का भद्दा मजाक बना रहे हैं, टुकड़े टुकड़े गैंग कह रहे हैं तो यह क्या है. अगर ये हमारी अच्छी बात नहीं दिखाते हैं तो कोई बात नहीं है लेकिन हमारे बारे में बुरा भी तो न कहें. जी हिंदुस्तान चैनल वाला बहुत गलत दिखाता है. अगर उसे सही नहीं दिखाना है तो कोई बात नहीं है लेकिन वह किसानों की बेइज्जती तो न करे."
हम सरकार, मीडिया और पुलिस सबसे दुश्मनी नहीं कर सकते
राकेश टिकैत चैनलों पर इंटरव्यू देते हैं मीडिया फ्रेंडली हो गए हैं? इस सवाल पर वह कहते हैं, "हम किसी के घर नहीं जा रहे हैं कि हमें बुलाओ, या हमारा इंटरव्यू लो. दूसरी बात हम किस-किस से बिगाड़ें, सरकार से, मीडिया से या पुलिस से. किस-किस से अपनी बात खराब करें. भाजपा ने गलत जगह पर पंगा ले लिया है. इनकी हालत खराब हो जाएगी. हम चुप नहीं बैठने वाले हैं. ये अन्नदाता की तौहीन कर रहे हैं."
जब हम मीडिया का सम्मान कर रहे हैं तो मीडिया को भी तो हमारा सम्मान करना चाहिए. जी हिंदुस्तान चैनल 24 घंटे में 22 घंटे किसानों के विरोध में बोलता है. चैनल के एक एंकर का नाम लेते हुए कहते हैं, "वह हमें टक्कर देने की कोशिश कर रहा है. इस सरकार को अपना ज्यादा हितैषी समझ रहा है. इन्हें अपनी जुबान पर काबू रखना चाहिए. किसानों के सामने तो उनकी बोलने की हिम्मत नहीं है."
20 लाख किसानों पर होंगे मुकदमें
आगे यूपी में चुनाव हैं क्या आप यहां भी बीजेपी का विरोध करेंगे? इस सवाल पर वह कहते हैं, "यह तो हमारा अधिकार है. हमारा किसी के साथ मनमुटव नहीं है हम लोगों को जोड़ने का काम कर रहे हैं. अभी गन्ने और गेहूं की खेती के चलते किसान थोड़े व्यस्त हैं. गेहूं कटते ही देखना यह आंदोलन और बढ़ेगा. अभी करीब एक सवा महीने की बात और है. फिर किसान फ्री हो जाएगा. इसे कोई कम आंकने की गलती न करें. बीजेपी के नेताओं की गांवों में एंट्री बंद हो गई है. इन्हें आज किसान अपने गांवों में घुसने भी नहीं दे रहे हैं. हरियाणा में सरकार गिरती गिरती बच गई. इन्हें हम सबक सिखाकर ही मानेंगे. ये हमें बदनाम करने के तरीके ढूंढ़ रहे हैं. लेकिन इन्हें सोचना चाहिए कि इन्हें भी जनता के बीच जाना है. बॉर्डर पर बैठे किसान अगर उठ गए तो करीब 20 लाख लोगों पर मुकदमें होंगे."
मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से क्या आपसे मुसलमान किसान नाराज हैं? इस पर वह कहते हैं, "वह दंगे भी भाजपा ने ही करवाए थे. तब हमारा इन्होंने दिमाग फेर दिया था और हमें मुसलमान दुश्मन दिखने लगे थे. हमें भी लगता था कि मुसलमान बहुत बेकार है, खराब है. तब हमने बीजेपी का साथ दिया था और खुलकर साथ दिया था. हम तो सीधे-साधे किसान हैं लेकिन तब हम इनकी चाल में फंस गए. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा."
नरेश आगे कहते हैं, "अब हम बंगाल जा रहे हैं. ममता बनर्जी पर शिकंजा कसा जा रहा है. इसलिए हमारा फर्ज है कि हम वहां की जनता को बताएं कि दिल्ली में एक आंदोलन चल रहा है. और यह सरकार हमारे साथ क्या कर रही है. हमारे कितने किसान शहीद हो गए हैं लेकिन मोदी ने उनके बारे में दो शब्द नहीं कहे हैं. हमने इनकी सरकार बनाई है, हमने वोट दिए हैं लेकिन ये आज हमें ही आंखें दिखा रहे हैं. यह किसानों के मान सम्मान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. सरकार ये बिल वापस क्यों नहीं ले रही है. अगर इनकी कोई मजबूरी है तो इन्हें हमसे बतानी चाहिए. किसान बर्बाद हो रहे हैं हम क्या करें."
किसान आंदोलन के बदले स्वरूप के बारे में हमने किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी और दर्शनपाल से भी बात करने की कोशिश की. लेकिन दोनों ही व्यस्तता के चलते हमसे बात नहीं कर सके. हालांकि द क्विंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक किसान नेता दर्शनपाल ने राकेश टिकैत को मीडिया द्वारा ज्यादा तवज्जो दिए जाने पर सवाल उठाते हुए कहा, "मीडिया राकेश टिकैत को ज्यादा तवज्जो देता है. मीडिया उनके रोल से ज्यादा उनको दिखा रहा है. उनके हर स्टेटमेंट ज्यादा दिखाया जाता है.”
यही शायद बदले हुए हालात की असल तस्वीर है.
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