Newslaundry Hindi
#SSC का गड़बड़झाला, बेरोजगार युवा और डिजिटल मीडिया पर सरकारी नकेल
इस हफ्ते धृतराष्ट्र-संजय संवाद की वापसी हो रही है. साथ ही बीते हफ्ते भारत सरकार द्वारा सोशल मीडिया, ओटीटी एंटरटेनमेंट प्लेटफॉर्म्स के साथ ही डिजिटल न्यूज़ मीडिया के लिए नई रेगुलेटरी गाइडलाइन्स का ऐलान किया गया. इस गाइडलाइन के जरिए डिजिटल न्यूज़ पर नियंत्रण के सरकारी मंसूबे एक बार फिर से उजागर हो गए.
इस बार की टिप्पणी में एक-एक कर उन गड़बड़ियों का जिक्र आपके सामने आएगा ताकि आप समझ सकें कि सरकार आज़ाद न्यूज़ मीडिया क्यों नहीं चाहती और उस पर काबू करने के लिए उसकी क्या-क्या योजनाएं हैं. बतौर जिम्मेदार और जागरुक नागरिक यह जानना आप सबके लिए बहुत जरूरी है.
सरकार की पहली गड़बड़ी तो यही है कि उसने सोशल मीडिया और ओटीटी मनोरंजन प्लेटफॉर्म्स के नियंत्रण के लिए जो गाइडलाइन तैयार की है उसी के दायरे में डिजिटल न्यूज़ मीडिया को भी डाल दिया है. यह सरासर अनैतिक और अतार्किक है.
नए रूल्स और रेगुलेशन के तहत डिजिटल न्यूज़ मीडिया आईटी एक्ट के दायरे में होगा. आईटी एक्ट-2000 का निर्माण मौजूदा तकनीक और साइबर क्रांति वाले दौर में इससे पैदा हुए खतरों से निपटने के लिए हुआ था. इसका मूल मकसद है डिजिटल तकनीक और साइबर जगत से जुड़े अपराधों पर नियंत्रण करना और उसकी सजा तय करना. जबकि इस देश में मीडिया की स्वतंत्रता का निर्धारण 1954 के पहले प्रेस कमीशन के सुझावों के आधार पर तय होता है. इसके तहत बनी प्रेस काउंसिल एक्ट, 1966 अखबारों की गाइडलाइन तय करती है. फिलहाल प्रेस काउंसिल 1989 के तहत प्रिंट मीडिया की आजादी परिभाषित है.
इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के नियमन के लिए केबल ऑपरेटर एक्ट है. जिसमें स्वनियमन के लिए एनबीए है. इसके प्रावधान भी प्रेस कमीशन के प्रावधानों से ही तय होते हैं. लेकिन डिजिटल मीडिया को सरकार ने उस कानून के दायरे में डाल दिया है जो डिजिटल और साइबर क्रांति से जुड़े अपराधों को नियंत्रित करने के लिए बनी है.
सरकारें कभी भी मीडिया की आज़ादी को महत्व नहीं देती हैं, उसका गला घोंटने की कोशिश करती रहती हैं. ऐसे में न्यूज़लॉन्ड्री जैसे मीडिया संस्थान ही सरकार की इस बदनीयति को उजागर कर सकते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें और गर्व से कहें मेरे खर्च पर आज़ाद हैं ख़बरें.
इसके अलावा इस बार की टिप्पणी में लंबे समय से रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे युवाओं की बात हुई है. 25 फरवरी को #Modi_Rojgar_do नाम से हैशटैग भारत के साथ दुनिया भर में ट्रेंड करता रहा. ये वो युवा हैं जिन्होंने मोदीजी को दो-दो बार बड़ी हसरतों से वोट देकर जिताया है.
2014 में जब मोदीजी सत्ता में आए तब वादा दो करोड़ सालाना नौकरियों का था. लेकिन सत्ता में आते ही मोदजी को इन नौकरियों को देने की राह में सबसे बड़ी बाधा दिखी कि इस देश के युवा तो अकुशल थे. सो उन्होंने स्किल डेवलपमेंट का काम शुरू कर दिया. पांच साल बीत गए युवाओं को नौकरियां नहीं मिलीं.
मई 2019 में मोदीजी दोबारा से जीत गए. इस बार युवाओं का स्किल तो उन्होंने डेवलप कर दिया था लेकिन शिक्षा व्यवस्था में ही खामी दिखने लगी. लेकिन युवाओं में एक अदद नौकरी की तड़प बढ़ती जा रही है. इन्हीं कुछेक बहुचर्चित मुद्दों पर केंद्रित है इस बार की टिप्पणी.
इस हफ्ते धृतराष्ट्र-संजय संवाद की वापसी हो रही है. साथ ही बीते हफ्ते भारत सरकार द्वारा सोशल मीडिया, ओटीटी एंटरटेनमेंट प्लेटफॉर्म्स के साथ ही डिजिटल न्यूज़ मीडिया के लिए नई रेगुलेटरी गाइडलाइन्स का ऐलान किया गया. इस गाइडलाइन के जरिए डिजिटल न्यूज़ पर नियंत्रण के सरकारी मंसूबे एक बार फिर से उजागर हो गए.
इस बार की टिप्पणी में एक-एक कर उन गड़बड़ियों का जिक्र आपके सामने आएगा ताकि आप समझ सकें कि सरकार आज़ाद न्यूज़ मीडिया क्यों नहीं चाहती और उस पर काबू करने के लिए उसकी क्या-क्या योजनाएं हैं. बतौर जिम्मेदार और जागरुक नागरिक यह जानना आप सबके लिए बहुत जरूरी है.
सरकार की पहली गड़बड़ी तो यही है कि उसने सोशल मीडिया और ओटीटी मनोरंजन प्लेटफॉर्म्स के नियंत्रण के लिए जो गाइडलाइन तैयार की है उसी के दायरे में डिजिटल न्यूज़ मीडिया को भी डाल दिया है. यह सरासर अनैतिक और अतार्किक है.
नए रूल्स और रेगुलेशन के तहत डिजिटल न्यूज़ मीडिया आईटी एक्ट के दायरे में होगा. आईटी एक्ट-2000 का निर्माण मौजूदा तकनीक और साइबर क्रांति वाले दौर में इससे पैदा हुए खतरों से निपटने के लिए हुआ था. इसका मूल मकसद है डिजिटल तकनीक और साइबर जगत से जुड़े अपराधों पर नियंत्रण करना और उसकी सजा तय करना. जबकि इस देश में मीडिया की स्वतंत्रता का निर्धारण 1954 के पहले प्रेस कमीशन के सुझावों के आधार पर तय होता है. इसके तहत बनी प्रेस काउंसिल एक्ट, 1966 अखबारों की गाइडलाइन तय करती है. फिलहाल प्रेस काउंसिल 1989 के तहत प्रिंट मीडिया की आजादी परिभाषित है.
इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के नियमन के लिए केबल ऑपरेटर एक्ट है. जिसमें स्वनियमन के लिए एनबीए है. इसके प्रावधान भी प्रेस कमीशन के प्रावधानों से ही तय होते हैं. लेकिन डिजिटल मीडिया को सरकार ने उस कानून के दायरे में डाल दिया है जो डिजिटल और साइबर क्रांति से जुड़े अपराधों को नियंत्रित करने के लिए बनी है.
सरकारें कभी भी मीडिया की आज़ादी को महत्व नहीं देती हैं, उसका गला घोंटने की कोशिश करती रहती हैं. ऐसे में न्यूज़लॉन्ड्री जैसे मीडिया संस्थान ही सरकार की इस बदनीयति को उजागर कर सकते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें और गर्व से कहें मेरे खर्च पर आज़ाद हैं ख़बरें.
इसके अलावा इस बार की टिप्पणी में लंबे समय से रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे युवाओं की बात हुई है. 25 फरवरी को #Modi_Rojgar_do नाम से हैशटैग भारत के साथ दुनिया भर में ट्रेंड करता रहा. ये वो युवा हैं जिन्होंने मोदीजी को दो-दो बार बड़ी हसरतों से वोट देकर जिताया है.
2014 में जब मोदीजी सत्ता में आए तब वादा दो करोड़ सालाना नौकरियों का था. लेकिन सत्ता में आते ही मोदजी को इन नौकरियों को देने की राह में सबसे बड़ी बाधा दिखी कि इस देश के युवा तो अकुशल थे. सो उन्होंने स्किल डेवलपमेंट का काम शुरू कर दिया. पांच साल बीत गए युवाओं को नौकरियां नहीं मिलीं.
मई 2019 में मोदीजी दोबारा से जीत गए. इस बार युवाओं का स्किल तो उन्होंने डेवलप कर दिया था लेकिन शिक्षा व्यवस्था में ही खामी दिखने लगी. लेकिन युवाओं में एक अदद नौकरी की तड़प बढ़ती जा रही है. इन्हीं कुछेक बहुचर्चित मुद्दों पर केंद्रित है इस बार की टिप्पणी.
Also Read
-
‘Foreign hand, Gen Z data addiction’: 5 ways Indian media missed the Nepal story
-
Mud bridges, night vigils: How Punjab is surviving its flood crisis
-
Adieu, Sankarshan Thakur: A rare shoe-leather journalist, newsroom’s voice of sanity
-
Corruption, social media ban, and 19 deaths: How student movement turned into Nepal’s turning point
-
Hafta letters: Bigg Boss, ‘vote chori’, caste issues, E20 fuel