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दिशा रवि की गिरफ्तारी की कहानी और रामदेव की कोरोनिल

बीते हफ्ते पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को दिल्ली पुलिस ने बेंगलुरू से गिरफ़्तार कर लिया. वो इस समय राजद्रोह के आरोप में जेल में बंद हैं. 22 वर्षीय दिशा पर आरोप है कि उन्होंने किसानों के आंदोलन को जन-समर्थन दिलाने के लिए स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग द्वारा शेयर की गयी टूलकिट के निर्माण में भूमिका निभायी थी. ऐसा उन्होंने भारत के खिलाफ साजिशन किया.

तो इस बार हम टूलकिट से जुड़ी एक कहानी आपको बताने जा रहे हैं, ध्यान से सुनिए क्योंकि इसका संबंध हमारी, आपकी, सबकी ज़िंदगियों से है, क्योंकि इसका संबंध पर्यावरण से है. सरकार ने साल 2020 में पर्यावरण संबंधी नीति को बदलने की कोशिश की थी लेकिन उसे असफलता हाथ लगी थी. दिशा रवि के कामकाज को बारीकी से देखने पर आप पाएंगे कि उनकी गिरफ़्तारी के लिए किसान आंदोलन के ‘टूलकिट’ को सिर्फ बहाना बनाया गया है. असल में सरकार, दिशा रवि को इससे कहीं बड़े मामले में सबक सिखाना चाहती है.

सरकार ने कोविड महामारी की शुरुआत में लगाए गए लॉकडाउन का फायदा उठाते हुए कई तरह के कानूनी संशोधन और नए कानून लागू किए थे. इन्हीं में से एक कानून था नई पर्यावरण नीति. अधिकांश बदलाव देशी व विदेशी कारपोरेट कंपनियों को फायदा पहुंचाने की गरज से किए गए थे. लेकिन, नई पर्यावरण नीति को लागू करने की राह में एक बड़ी बाधा ये थी कि भारत पर्यावरण पर स्टॉकहोम डिक्लरेशन, 1972 का सदस्य है. इसके तहत बने कानून कहते हैं कि उद्योगों और कथित विकास परियोजनाओं को शुरू करने से पहले उसका पर्यावरणीय प्रभाव सुनिश्चित करना जरूरी है.

इसके बावजूद मोदी सरकार सरकार 11 अप्रैल 2020 को ‘पर्यावरण प्रभाव आकलन’ की प्रक्रिया में बदलाव का प्रस्ताव लेकर आयी. इसे पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2020 कहा गया. इस नये मसौदे में ऐसे बड़े उद्योगों और परियोजनाओं की एक लंबी सूची दी गयी, जिन्हें पर्यावरण संबंधी नियमों से कई तरह की छूट देने का प्रस्ताव था. साथ ही, इसमें यह प्रस्ताव भी था कि "भारत के सीमावर्ती इलाकों से लगते हुए 100 किलोमीटर हवाई दूरी के भीतर पड़ने वाले क्षेत्र" में किसी प्रकार की परियोजना शुरू करने के लिए पर्यावरण संबंधी नियम लागू नहीं होंगे. सरकार ने इस प्रस्ताव पर जनता से आपत्ति और सुझाव 60 दिन के अंदर, यानी 11 जून तक मांगा था. लेकिन इस बार सुझाव और आपत्तियों को लेकर कुछ ऐसा हुआ जिससे सरकार हतप्रभ रह गयी.

एक महीना बीतते-बीतते पर्यावरण और वन मंत्रालय को रोजाना हजारों की संख्या में ईमेल मिलने लगे. इसमें नई नीति को रद्द करने, इस पर सुझाव देने की समय-सीमा बढ़ाए जाने की मांग की जा रही थी. ये ईमेल देश के विभिन्न हिस्सों से आ रहे थे. नतीजा ये हुआ कि 11 अगस्त को समय सीमा के ख़त्म होने तक मंत्रालय के पास 17 लाख लोग सरकार की पर्यावरण संबंधी नीति के खिलाफ अपनी आपत्तियां दर्ज करवा चुके थे. यह एक ऐसा रिकॉर्ड था, जिसकी मिसाल भारत में बने बहुत कम क़ानूनों में मिलेगी.

इनमें से अधिकांश ईमेल के पीछे दिशा रवि, उनके संगठन और उनके साथियों की मेहनत और दिमाग था. उनका तकनीकी कौशल था जिन्होंने ऑनलाइन संपर्क अभियान चलाकर इस विरोध की अपील की थी. उन्होंने तब भी इसके लिए ‘टूलकिट’ तैयार किया था, जिसमें सरकार के फैसले के दुष्परिणामों को बिन्दुवार समझाया गया था.

इस कैम्पेन का असर सरकार, उसके आला-अधिकारियों पर भी पड़ा. ग्रेटा थनबर्ग जैसी विश्वप्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता भी इसका समर्थन कर रही थी इसलिए वैश्विक-स्तर पर इसकी चर्चा हो रही थी. वैश्विक-जमात के बीच सरकार की छीछालेदर हो रही थी.

नतीजा ये हुआ कि सरकार ने दिशा रवि के संगठन ‘फ्राइडे फॉर फ्यूचर’ के भारत चैप्टर समेत इस मुहिम का प्रचार कर रहे कुछ अन्य संगठनों की वेबसाइट को ब्लॉक कर दिया. उन्हें ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि अधिनियम (UAPA) के तहत नोटिस भेजा. बाद में सरकार ने इसे अपनी भूल कहा तथा दिशा रवि समेत इन सभी संगठनों को आईटी एक्ट के तहत दूसरा नोटिस भेजा. देश-विदेश के मीडिया में इसकी भी काफी आलोचना हुई. दबाव में सरकार ने यह नोटिस भी वापस ले लिया. लेकिन उनकी वेबसाइटें ब्लॉक ही रहीं.

दिशा रवि की गिरफ्तारी में भारत सरकार जिसे भारत को बदनाम करने की वैश्विक साज़िश’ कह रही है, उसकी जड़ें असल में इस घटना से जुड़ी हैं. दिशा रवि का गुनाह दरअसल यह है कि वो बड़े, क्रोनी कॉरपोरेशनों के हितों के ख़िलाफ़, पर्यावरण के पक्ष में देश की जानता को जागरुक कर रही थीं. सरकार को यह बात पसंद नहीं आई.

ये रिपोर्टिंग का हिस्सा है, मेहनत का काम है. और आपको तो पता ही है कि खबरिया चैनलों ने यह काम बहुत पहले छोड़ दिया है. पेट में जिसका चाय-समोसा होगा जुबां पर उसका कुछ न कुछ तो होगा ही. तो ऐसे हालात में आपको ख़बर कहां से मिलेगी. जवाब है कि इस व्यवस्था में आपको खबर मिलेगी ही नहीं. बाबा रामदेव पैसा देंगे, आजतक उनका इंटरव्यू दिखाएगा. सूचना का संसार इसी गोल घेरे में घूमता रहेगा. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करके आप इस बदलाव का हिस्सा बन सकते हैं. खुद को बेहतर, पुख्ता सूचनाओं से लैस करेंगे तो भारत भी एक बेहतर देश बनकर उभरेगा. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब कीजिए और गर्व से कहिए मेरे खर्च पर आज़ाद हैं खबरें.

Also Read: पतंजलि और रामदेव से अपने कारोबारी रिश्ते पर रजत शर्मा को स्पष्टीकरण देना चाहिए

बीते हफ्ते पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को दिल्ली पुलिस ने बेंगलुरू से गिरफ़्तार कर लिया. वो इस समय राजद्रोह के आरोप में जेल में बंद हैं. 22 वर्षीय दिशा पर आरोप है कि उन्होंने किसानों के आंदोलन को जन-समर्थन दिलाने के लिए स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग द्वारा शेयर की गयी टूलकिट के निर्माण में भूमिका निभायी थी. ऐसा उन्होंने भारत के खिलाफ साजिशन किया.

तो इस बार हम टूलकिट से जुड़ी एक कहानी आपको बताने जा रहे हैं, ध्यान से सुनिए क्योंकि इसका संबंध हमारी, आपकी, सबकी ज़िंदगियों से है, क्योंकि इसका संबंध पर्यावरण से है. सरकार ने साल 2020 में पर्यावरण संबंधी नीति को बदलने की कोशिश की थी लेकिन उसे असफलता हाथ लगी थी. दिशा रवि के कामकाज को बारीकी से देखने पर आप पाएंगे कि उनकी गिरफ़्तारी के लिए किसान आंदोलन के ‘टूलकिट’ को सिर्फ बहाना बनाया गया है. असल में सरकार, दिशा रवि को इससे कहीं बड़े मामले में सबक सिखाना चाहती है.

सरकार ने कोविड महामारी की शुरुआत में लगाए गए लॉकडाउन का फायदा उठाते हुए कई तरह के कानूनी संशोधन और नए कानून लागू किए थे. इन्हीं में से एक कानून था नई पर्यावरण नीति. अधिकांश बदलाव देशी व विदेशी कारपोरेट कंपनियों को फायदा पहुंचाने की गरज से किए गए थे. लेकिन, नई पर्यावरण नीति को लागू करने की राह में एक बड़ी बाधा ये थी कि भारत पर्यावरण पर स्टॉकहोम डिक्लरेशन, 1972 का सदस्य है. इसके तहत बने कानून कहते हैं कि उद्योगों और कथित विकास परियोजनाओं को शुरू करने से पहले उसका पर्यावरणीय प्रभाव सुनिश्चित करना जरूरी है.

इसके बावजूद मोदी सरकार सरकार 11 अप्रैल 2020 को ‘पर्यावरण प्रभाव आकलन’ की प्रक्रिया में बदलाव का प्रस्ताव लेकर आयी. इसे पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2020 कहा गया. इस नये मसौदे में ऐसे बड़े उद्योगों और परियोजनाओं की एक लंबी सूची दी गयी, जिन्हें पर्यावरण संबंधी नियमों से कई तरह की छूट देने का प्रस्ताव था. साथ ही, इसमें यह प्रस्ताव भी था कि "भारत के सीमावर्ती इलाकों से लगते हुए 100 किलोमीटर हवाई दूरी के भीतर पड़ने वाले क्षेत्र" में किसी प्रकार की परियोजना शुरू करने के लिए पर्यावरण संबंधी नियम लागू नहीं होंगे. सरकार ने इस प्रस्ताव पर जनता से आपत्ति और सुझाव 60 दिन के अंदर, यानी 11 जून तक मांगा था. लेकिन इस बार सुझाव और आपत्तियों को लेकर कुछ ऐसा हुआ जिससे सरकार हतप्रभ रह गयी.

एक महीना बीतते-बीतते पर्यावरण और वन मंत्रालय को रोजाना हजारों की संख्या में ईमेल मिलने लगे. इसमें नई नीति को रद्द करने, इस पर सुझाव देने की समय-सीमा बढ़ाए जाने की मांग की जा रही थी. ये ईमेल देश के विभिन्न हिस्सों से आ रहे थे. नतीजा ये हुआ कि 11 अगस्त को समय सीमा के ख़त्म होने तक मंत्रालय के पास 17 लाख लोग सरकार की पर्यावरण संबंधी नीति के खिलाफ अपनी आपत्तियां दर्ज करवा चुके थे. यह एक ऐसा रिकॉर्ड था, जिसकी मिसाल भारत में बने बहुत कम क़ानूनों में मिलेगी.

इनमें से अधिकांश ईमेल के पीछे दिशा रवि, उनके संगठन और उनके साथियों की मेहनत और दिमाग था. उनका तकनीकी कौशल था जिन्होंने ऑनलाइन संपर्क अभियान चलाकर इस विरोध की अपील की थी. उन्होंने तब भी इसके लिए ‘टूलकिट’ तैयार किया था, जिसमें सरकार के फैसले के दुष्परिणामों को बिन्दुवार समझाया गया था.

इस कैम्पेन का असर सरकार, उसके आला-अधिकारियों पर भी पड़ा. ग्रेटा थनबर्ग जैसी विश्वप्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता भी इसका समर्थन कर रही थी इसलिए वैश्विक-स्तर पर इसकी चर्चा हो रही थी. वैश्विक-जमात के बीच सरकार की छीछालेदर हो रही थी.

नतीजा ये हुआ कि सरकार ने दिशा रवि के संगठन ‘फ्राइडे फॉर फ्यूचर’ के भारत चैप्टर समेत इस मुहिम का प्रचार कर रहे कुछ अन्य संगठनों की वेबसाइट को ब्लॉक कर दिया. उन्हें ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि अधिनियम (UAPA) के तहत नोटिस भेजा. बाद में सरकार ने इसे अपनी भूल कहा तथा दिशा रवि समेत इन सभी संगठनों को आईटी एक्ट के तहत दूसरा नोटिस भेजा. देश-विदेश के मीडिया में इसकी भी काफी आलोचना हुई. दबाव में सरकार ने यह नोटिस भी वापस ले लिया. लेकिन उनकी वेबसाइटें ब्लॉक ही रहीं.

दिशा रवि की गिरफ्तारी में भारत सरकार जिसे भारत को बदनाम करने की वैश्विक साज़िश’ कह रही है, उसकी जड़ें असल में इस घटना से जुड़ी हैं. दिशा रवि का गुनाह दरअसल यह है कि वो बड़े, क्रोनी कॉरपोरेशनों के हितों के ख़िलाफ़, पर्यावरण के पक्ष में देश की जानता को जागरुक कर रही थीं. सरकार को यह बात पसंद नहीं आई.

ये रिपोर्टिंग का हिस्सा है, मेहनत का काम है. और आपको तो पता ही है कि खबरिया चैनलों ने यह काम बहुत पहले छोड़ दिया है. पेट में जिसका चाय-समोसा होगा जुबां पर उसका कुछ न कुछ तो होगा ही. तो ऐसे हालात में आपको ख़बर कहां से मिलेगी. जवाब है कि इस व्यवस्था में आपको खबर मिलेगी ही नहीं. बाबा रामदेव पैसा देंगे, आजतक उनका इंटरव्यू दिखाएगा. सूचना का संसार इसी गोल घेरे में घूमता रहेगा. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करके आप इस बदलाव का हिस्सा बन सकते हैं. खुद को बेहतर, पुख्ता सूचनाओं से लैस करेंगे तो भारत भी एक बेहतर देश बनकर उभरेगा. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब कीजिए और गर्व से कहिए मेरे खर्च पर आज़ाद हैं खबरें.

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