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नवदीप कौर और शिव कुमार की गिरफ्तारी और उगाही का सच

‘‘कोई लाठी-डंडा लेकर मज़दूरों का हक़ दिलाने जाता है? निहत्थे पुलिस वालों पर हमला करता है? उन्हें जान से मारने की कोशिश करता है? हमारे पास भी मज़दूर शिकायत लेकर आते हैं. हम मालिकों से बात करके मज़दूरों को उनका हक़ दिलाते हैं. ये लोग वसूली करने वाले हैं. ऐसा इन्होंने पहली बार नहीं किया है. दिसंबर में भी नवदीप कौर पर वसूली का मामला दर्ज हुआ था. हमने तब गिरफ्तार नहीं किया, लेकिन उस दिन हद हो गई. ये मेरा हाथ देखिए. ये माथे पर निशान देखिए.’’

यह कहना है हरियाणा के सोनीपत के कुंडली थाने के एसएचओ रवि कुमार का. रवि कुमार ने ही नवदीप कौर को 12 जनवरी को गिरफ्तार किया था. कौर पर दर्ज तीन एफआईआर में से एक के शिकायतकर्ता कुमार ही हैं.

रवि कुमार न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए अपने एक सहकर्मी को बुलाते हैं और अपने सर पर लगी चोट दिखाने के लिए कहते हैं. सर पर कटे का निशान दिखाने के बाद अपने मोबाइल में 12 जनवरी की घटना का वीडियो दिखाते हैं. एक वीडियो में कुछ लोग पुलिस के ऊपर लाठी मारते दिखते हैं वहीं दूसरे वीडियो में नवदीप भाषण देते हुए नजर आती हैं.

वीडियो दिखाने के बाद रवि कहते हैं, ‘‘इन्हें आप मज़दूरों के लिए संघर्ष करने वाला कहेंगे? ये वसूली करने वाले हैं. यहां के कंपनी मालिकों में इन्होंने खौफ बनाया हुआ है. हमारे पास वीडियो है वरना आप लोग तो पुलिस पर ही सवाल उठाते.’’

मज़दूर अधिकार संगठन की कार्यकर्ता नवदीप कौर को कुंडली इंडस्ट्रियल इलाके से 12 जनवरी की दोपहर को गिरफ्तार किया गया था. उसके कुछ दिनों बाद संगठन के प्रमुख शिव कुमार को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

12 जनवरी को नवदीप कौर और अज्ञात के खिलाफ कुंडली थाने में दो एफआईआर दर्ज हुईं. एफआईआर संख्या 25 जो एसएचओ रवि कुमार ने दर्ज कराई है, वहीं एफआईआर संख्या 26 एक कंपनी के अकाउंटेंट द्वारा दर्ज कराई गई है.

इससे पहले 28 दिसंबर को भी नवदीप पर एक एफआईआर दर्ज हुई थी जो कुंडली इंडस्ट्रियल इलाके में कंपनियों की देख-रेख करने वाली एक सुरक्षा एजेंसी के कर्मचारी द्वारा दर्ज कराई गई है.

अब नवदीप और शिव कुमार की गिरफ्तारी को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. नवदीप ने जहां पुलिस हिरासत में टॉर्चर करने और यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है वहीं शिव की गिरफ़्तारी की तारीख को लेकर ही सवाल खड़े हो रहे हैं.

एक घटना को लेकर दर्ज दो एफआईआर में कई अंतर

एफआईआर संख्या 26

ये एफआईआर कुंडली स्थित शहरन इलकमेक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के अकाउंटेंट पद पर काम करने वाले ललित खुराना ने दर्ज कराई है. इसमें आईपीसी की धारा 148 (घातक हथियार से हमला करना), 149, 323, 384 (जबरन वसूली करना), 452 और 306 के तहत मामला दर्ज हुआ है.

12 जनवरी को शाम 6 बजकर 18 मिनट पर दर्ज इस एफआईआर में शिकायकर्ता कहते हैं, ‘‘आज दिनांक 12 जनवरी को 11 बजे 40-50 आदमी जिनमें दो तीन लड़कियां भी थी. कंपनी में घुस गए और पैसे मांगने लगे. जब हमने वसूली के लिए मना किया तो उन्होंने हमला शुरू कर दिया. हमारे गार्ड ने उन्हें बाहर निकाल दिया और हमने पुलिस को फोन कर दिया. मौके पर पुलिस कर्मचारी आ गए. उन्होंने पुलिस कर्मचारी से लाठी डंडे से मारपीट की. जिसमें पुलिस कर्मचारियों को भी चोट लगी. उनमें से एक लड़की ने अपना नाम नवदीप कौर बताया और जाते हुए जान से मारने की धमकी देते हुए भाग गई. इनके खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई की जाए.’’

हमने इस कंपनी का दौरा किया. ये वहीं जगह है जहां से नवदीप को गिरफ्तार किया गया था. यहां आसपास के रेहड़ी पटरी लगाने वालों से हमने बात करने की कोशिश की लेकिन कोई भी बात करने को राजी नहीं हुआ. लेकिन कंपनी के गेट पर तैनात गार्डो में से एक जो घटनास्थल के दिन मौजूद था उससे हमारी बात हुई. गार्ड ने बताया, ‘‘किसी मज़दूर का पैसा बकाया था. उसी की मांग करते हुए कुछ लोग यहां आए थे. हमने तो उन्हें कंपनी के अंदर आने नहीं दिया. दोनों गेट बंद कर दिए थे. गेट पर ही हंगामा करते रहे. ईंटे मारी, लेकिन कोई अंदर नहीं आया. मैं तो उसमें से किसी को जानता तक नहीं था.’’

12 जनवरी को दर्ज एफआईआर संख्या 26

थोड़ी देर बाद एक शख्स को आते देख उस गार्ड ने हमें बताया कि कंपनी के मालिक आ रहे हैं आप उनसे बात कर लीजिए. 35 वर्षीय गगनदीप जो कि मालिक हैं, से उस दिन की घटना को लेकर हमने सवाल किया तो उनका जवाब एफआईआर में दर्ज आरोपों से एकदम अलग था.

एफआईआर में दावा किया गया है कि नवदीप और उनके साथी कंपनी के अंदर घुस गए थे. वसूली के पैसे की मांग कर रहे थे. लेकिन गगनदीप ने हमें बताया, ‘‘हमारी उसमें कोई भूमिका नहीं थी. पुलिस और उनके बीच जो कुछ हुआ. वे हमारी कंपनी के अंदर भी नहीं आए थे. गेट के बाहर थे. दरअसल वो इधर से जा रहे थे तो एकदम से यहां आ गए. उनके हाथ में डंडे वगैरह थे. हमारे गार्ड ने तो गेट खोला नहीं. वे गेट के बाहर थे तो कैमरों में सबकुछ रिकॉर्ड हो गया था. जो हमने पुलिस को दे दिया. उनका हमारी कंपनी से कुछ लेना देना था ही नहीं.’’

गगनदीप हमसे बताते हैं कि वो नवदीप और शिव कुमार को नहीं जानते हैं. जल्दी में होने का हवाला देते हुए गगनदीप अपनी गाड़ी में बैठ जाते हैं. गाड़ी में बैठे-बैठे वे कहते हैं, ‘‘नवदीप और दूसरे लड़कों को तो हम पहले से जानते तक नहीं थे. गिरफ्तारी के बाद पता चला कि पंजाब की कोई लड़की है जो मज़दूरों के लिए कंपनी जाती है.’’

गगनदीप और घटना के वक़्त गेट पर मौजूद गार्ड की बातों से साफ जाहिर होता है कि नवदीप और उनके साथी कंपनी के अंदर नहीं गए थे. ऐसे में एफआईआर में वसूली का आरोप की बातें कहीं भी साबित नहीं होती, खासकर कंपनी के मालिक के बयान के बाद. पुलिस अधिकारी रवि कुमार हमें घटना के दिन की कई वीडियो साझा करते हैं लेकिन उसमें एक भी वीडियो कंपनी के अंदर का नहीं है.

वो कंपनी जिसके बाहर हुई थी 12 जनवरी की घटना

कंपनी के बाहर बनी चाय की दुकान पर कई कर्मचारियों से न्यूज़लॉन्ड्री की मुलाकात हुई. सबका यही कहना था कि वे लोग कंपनी के अंदर थे. जो भी हंगामा हुआ वो कंपनी के बाहर हुआ.

एक कर्मचारी दीपक चौहान जो कि सोनीपत के ही रहने वाले हैं, कहते हैं, ‘‘हम लोग तो अंदर थे. बाहर क्या हो रहा था हमने तो देखा नहीं. लेकिन यहां मज़दूरों को कोई परेशानी नहीं है. मैं खुद आठ साल से इसी कंपनी में काम कर रहा हूं. ये लोग यूनियनबाजी कर रहे थे. यहां यूनियनबाजी नहीं चलती है.’’

एफआईआर संख्या 25

इस एफआईआर के शिकायतकर्ता कुंडली थाने के एसएचओ रवि कुमार हैं. इसमें आईपीसी की धारा 148 (घातक हथियार से हमला करना), 149, 186, 307 (हत्या की कोशिश), 332 (लोकसेवक को काम के दौरान चोट पहुंचाना), 353, 379B (छीना झपटी करना) और 384 (ज़बरदस्ती वसूली करना) लगाई गई हैं.

ये एफआईआर 12 जनवरी की शाम पांच बजकर 39 मिनट पर दर्ज हुई थी. इस एफआईआर के बाद दर्ज एफआईआर संख्या 26 में लिखा गया है कि नवदीप कौर अपने साथियों के साथ कंपनी के अंदर घुस गई थी, वहीं इसमें लिखा है कि हमें सूचना मिली कि कुछ व्यक्ति लाठी डंडा लेकर फैक्ट्री नंबर 349 में अवैध वसूली के लिए घुसने का प्रयत्न कर रहे हैं.

अपनी शिकायत में एसएचओ आगे लिखते हैं, ‘‘सूचना के बाद जब मैं मौके पर पहुंचा तो वहां पर 2-3 लड़कियां व 50-60 लड़के जिनके हाथों में लाठियां और डंडे थे. नारे लगाते हुए खड़े थे. जिनको मैंने समझाने की कोशिश की तो भीड़ की अगुवाई कर रही एक लड़की ने ललकारते हुए कहा कि ये वही एसएचओ है जिसने पहले भी हमारे खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है. आज इसको हम मुकदमा दर्ज कराने का मजा चखाते हैं. इतने में उस लड़की और उसके सभी साथियों ने मारपीट शुरू कर दी. जिसमें मुझे और मेरे कई कर्मचारियों को सर और शरीर में अन्य जगहों पर काफी चोटे लगीं. इस दौरान गनमैन का करबाईन छीनने की भी कोशिश की गई. आईओ राकेश से तफ्तीश फ़ाइल छीन ली. हालांकि इसे उसी समय हमने वापिस ले लिया. इस समय पब्लिक की भीड़ जमा हो गई उनकी मदद से इन्हें तितर बितर किया गया. महिला सिपाही रीटा की सहयता से एक लड़की जिसका नाम पूछताछ में नवदीप कौर मालूम चला को काबू किया गया. बाकी सभी लाठी डंडे समेत भागने में सफल हुए.’’

एक तरफ जहां एफआईआर संख्या 26 में शिकायकर्ता बताते हैं कि पुलिस से मारपीट के बाद नवदीप कौर भाग गई थी. वहीं इस एफआईआर में घटना स्थल पर ही नवदीप कौर को काबू में किए जाने की बात की गई है. एफआईआर 25 में पूछताछ में नवदीप कौर नाम पता चलने की बात पता चलती है जबकि एफआईआर 26 में बताया जाता है कि नवदीप ने खुद ही अपना नाम बताया था.

12 जनवरी को दर्ज एफआईआर संख्या 25

सोनीपत कोर्ट में नवदीप कौर के लिए जिरह करने वाले वकील जितेंद्र कुमार इन्हीं कमियों की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, ‘‘पुलिस ने तो गंभीर धाराएं लगाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन क़ानूनी रूप से दोनों एफआईआर में कई गड़बड़ियां हैं. मसलन, 12 जनवरी को दर्ज एफआईआर संख्या 25 पहले दर्ज हुई और 26 उसके बाद. इन दोनों एफआईआर के दर्ज होने में घंटों का अंतर है. पहले में शिकायकर्ता कहता है कि उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. दूसरे एफआईआर में कहा गया है कि वो घटना स्थल से फरार हो गई थी. क़ानूनी तौर पर ये कमियां है जिसको हम कोर्ट में उठा रहे हैं.’’

एसएचओ रवि कुमार

यही नहीं एफआईआर संख्या 26 में अपराध का समय सुबह 11 बजे बताया गया है, वहीं 25 नंबर एफआईआर में अपराध का समय 12 बजे का है. अगर एसएचओ द्वारा घटना के समय को लेकर दी गई जानकारी को ही सही माने तो दोपहर 12 बजे ही नवदीप को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन एफआईआर उसके लगभग छह घंटे बाद दर्ज की गई.

हाल ही में पत्रकार मनदीप पुनिया को जमानत देते हुए रोहिणी कोर्ट के जज सतवीर लांबा ने एफआईआर में हुई देरी को लेकर सवाल उठाया था. दरअसल मनदीप को शाम 7 बजे के करीब गिरफ्तार किया गया था और उनपर एफआईआर देर रात 2 बजे के करीब दर्ज की गई थी.

मनदीप पुनिया के मामले में कोर्ट में उनका पक्ष रखते हुए वकील सारिम नवेद ने गिरफ्तारी और एफआईआर के समय में अंतर को लेकर सवाल उठाया था. नवदीप कौर की एफआईआर और गिरफ्तारी के अंतर को लेकर नावेद कहते हैं, ‘‘एफआईआर का मतलब होता है, फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट. जब शिकायतकर्ता पुलिस अधिकारी ही है. ऐसे में एफआईआर देरी से दर्ज होने की स्थिति में सवाल यह उठता है कि क्या उसमें कुछ जोड़ने की कोशिश तो नहीं हुई.’’

28 दिसंबर को दर्ज एफआईआर

नवदीप कौर पर 28 दिसंबर को जो एफआईआर दर्ज हुई है उसमें भी वसूली का जिक्र है. इस एफआईआर के शिकायतकर्ता शमशेर सिंह हैं. जो कुंडली इलाके में सुरक्षा के लिए तैनात टोपस नाईट पेट्रोलिंग प्राइवेट लिमिटेड के कर्मचारी हैं.

शमशेर अपनी शिकायत में बताते हैं कि फैक्ट्री नंबर 367 के बाहर नवदीप कौर अपने कुछ साथियों के साथ गार्ड और कंपनी मालिक से बतमीजी कर रही थी. इनके हाथ में लाठी डंडा था. हमने जब इन्हें रोका तो इन्होने हमारे साथ भी मारपीट की. ये लोग कंपनी मालिक विकास से जबरदस्ती रुपए की मांग कर रहे थे. जब हमने इन्हें रोका तो इन्होंने हमपर हमला कर दिया. मेरे और मेरे साथियों को सर और शरीर में कई जगहों पर चोट आईं.

न्यूज़लॉन्ड्री जब 28 दिसंबर को हुई घटना वाली जगह पहुंचा तो उस कंपनी में निर्माण कार्य चल रहा था. उसके गेट पर कोई गार्ड मौजूद नहीं था. निर्माणाधीन बिल्डिंग में काम कर रहे मज़दूरों ने 28 दिसंबर को हुई घटना की कोई जानकारी नहीं दी. आसपास की कंपनियों में सुरक्षा में लगे गार्ड भी घटना नहीं होने की बात कहते हैं.

28 दिसंबर को दर्ज एफआईआर

जब हमने शमशेर से पूछा कि आप जिस जगह की घटना का जिक्र कर रहे हैं वहां तो कोई कंपनी नहीं है तो उन्होंने बताया, ‘‘यहां एक मैगी की कंपनी हुआ करती थी. जिसके मालिक से इन्होंने अवैध पैसे की मांग की थी.’’ हमने उस कंपनी के मालिक का नंबर मांगा तो उन्होंने बाद में देने की बात की लेकिन उन्होंने हमें नहीं दिया.

नवदीप और शिव कुमार के एक दोस्त 28 दिसंबर की घटना के बारे में हमें बताते हैं, ‘‘एक मज़दूर का पैसा कंपनी नहीं दे रही थी उसी को लेकर हम लोग प्रदर्शन करने पहुंचे थे. भले ही मारपीट का मामला नवदीप और बाकी लोगों पर हुआ लेकिन उस रोज कंपनियों की सुरक्षा में तैनात लोकल गुंडों ने गोली चलाई थी. शुक्र है कि वो गोली किसी को लगी नहीं. यहां कंपनियों ने मज़दूरों के आंदोलन को कमजोर करने के लिए लोकल गुंडे रखे हुए हैं.’’

28 दिसंबर को दर्ज एफआईआर में इसी कंपनी के सामने हुई घटना का जिक्र है

क्या नवदीप और शिव वसूली का काम करते थे?

अगर पुलिस की माने तो कुंडली में ये लोग वसूली के लिए बदनाम हैं. इनको लेकर कई बार शिकायत पुलिस के पास आई है. हालांकि कुंडली इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के प्रमुख अंशु दास गुप्ता ऐसी किसी भी जानकारी से इंकार करते हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए गुप्ता कहते हैं, ‘‘जब से किसान सिंघु बॉर्डर पर आंदोलन करने आए हैं तब से ही ये लोग सक्रिय हुए हैं. उससे पहले तो इनका नाम भी हमने नहीं सुना था. कुछ दो महीने से ये काफी फैक्ट्रियों में लोगों को तंग कर रहे थे. ये फैक्ट्रियों के अंदर जाते थे. वहां पर बैनर लगाकर बैठते थे. बोलते थे कि कोई आपके पैसे नहीं दे तो हमसे मिलो. कुछ मज़दूर चले जाते थे इनके पास. कोई ना कोई तो परेशानी होती ही है. उस मज़दूर की बात को लेकर ये पचास आदमी डंडे और झंडे लेकर फैक्ट्री के ऊपर धावा बोलते थे. इन्होंने एक दो मालिकों को लिखकर दिया है कि आप इस आदमी के एक महीने के पैसे दे दो नहीं तो हम क्रांतिकारी आंदोलन करेंगे.’’

गुप्ता आगे कहते हैं, ‘‘करीब 40 साल हो गए कुंडली इंडस्ट्रियल एरिया को बने हुए. यहां पर लेबर डिपार्टमेंट का ऑफिस भी है. उसमें लेबर ऑफिसर भी बैठता है. डिप्टी लेबर कमिश्नर भी बैठता है. मज़दूर के पास रास्ता है कि उसे कोई तकलीफ है तो वह उनके पास चला जाए. वहां एक समझौता अधिकारी भी होता है जो कंपनी और मज़दूर के बीच समझौता कराता है. उससे पहले वह पुलिस में मामला दर्ज करा सकता है. कई बार मज़दूरों को कोई परेशानी हो जाती है तो हमारे यहां समझौते के लिए मामला आता है. हम अधिकारी की उपस्थिति में समझौता करते हैं.’’

क्या आपकी जानकारी में है कि ये किसी कंपनी मालिक से मज़दूरों के पैसे दिलाने के अलावा अपने लिए वसूली भी करते थे. इस सवाल के जवाब में गुप्ता कहते हैं, ‘‘मुझे इसकी जानकारी नहीं है क्योंकि बीते दो महीने से मैं कुंडली गया ही नहीं. लेकिन जो मुझे पता है उसमें पैसे वैसे की तो कोई बात नहीं है. इनका क्या मकसद था ये पता नहीं.’’

सिंघु बॉर्डर पर नवदीप और शिव कुमार को छोड़ने के लिए चला हस्ताक्षर कैंपेन

शिव कुमार और नवदीप के साथ काम करने वाले नौजवानों और कुछ मज़दूरों से न्यूजलॉन्ड्री ने बात की. पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ भी मामला दर्ज कर रखा है इसलिए वे अपनी पहचान जाहिर करने से बच रहे हैं. शिव कुमार के सोनीपत के देबहु गांव के रहने एक नौजवान से हमने बात की.

राजीव (बदला नाम) शिव को बचपन से जानते हैं और आईटीआई के दिनों से आंदोलनों में उनके साथी रहे हैं. वसूली के सवाल पर वे कहते हैं, ‘‘शिव कॉलेज में कॉलेज की सुविधाओं के लिए संघर्ष करता था. पढ़ाई के बाद जब उसकी कुंडली इलाके में नौकरी लगी तो यहां के मज़दूरों की बदहाली और मालिकों द्वारा उनके शोषण को देखकर उसने मज़दूर अधिकार संगठन बनाया. नवदीप भी उसी संगठन में शामिल थी. ये लोग उन मज़दूरों के पैसे दिलाते थे जिनके मालिक नहीं देते थे.’’

राजीव आगे कहते हैं, ‘‘कोरोना काल में अचानक लॉकडाउन लगने से कई मज़दूरों के पैसे मालिक नहीं दे रहे थे. इन्होंने प्रदर्शन करके करीब पांच लाख रुपए अलग-अलग मज़दूरों के दिलवाये हैं. जहां तक रही वसूली की बात तो आपको लगता है कि करोड़ो रुपए के कंपनी मालिक पचास लोगों जिनके हाथ में झंडा होता है उनसे पैसे देंगे? और अगर कोई पैसा देगा भी तो शिकायत नहीं करेगा. ऐसा मुमकिन ही नहीं है. पुलिस कंपनी मालिकों के साथ मिलकर फर्जी आरोप लगा रही है ताकि यहां मज़दूरों का शोषण पहले की तरह जारी रहे.’’

नवदीप कौर की बड़ी बहन राजवीर कौर दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही हैं. राजवीर भगत सिंह छात्र एकता मंच से जुड़ी रही हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में सक्रिय भगत सिंह छात्र एकता मंच अलग-अलग मामलों पर प्रदर्शन करता रहा है. इनमें से कुछ आंदोलन में नवदीप भी शामिल हुई है.

राजवीर बताती है, ‘‘आर्थिक कारणों से 12 वीं करने के बाद नवदीप को पढ़ाई रोकनी पड़ी. पांच महीने पहले ही वो कुंडली इलाके की एक कंपनी में काम करने लगी. हमने सोचा था कि कुछ दिनों बाद ग्रेजुएशन में उसका एडमिशन करा देंगे. पार्ट टाइम वो वहां काम करेगी. फिर किसान आंदोलन शुरू हुआ जिसमें वो शामिल होने लगी जिसके कारण उसे काम से हटा दिया गया. उसका पैसा रोक दिया गया था. मज़दूर अधिकार संगठन के सहयोग से ही उसके पैसे मिले. इसके बाद ही वो इस संगठन में सक्रिय रूप से शामिल हो गई और जिन मज़दूरों के पैसे बकाया थे उन्हें दिलवाते थे.’’

अंशु दास गुप्ता के आरोपों पर जवाब देते हुए राजवीर कहती हैं, ‘‘ऐसा नहीं था कि ये लोग हर कंपनी में खुद ही पहुंच जाते थे. कई मामलों में इन्होंने लेवर कोर्ट का रास्ता भी अपनाया है. इन्होंने बकायदा एक डायरी बनाई थी जिसमें लिखा है कि किस कंपनी पर किस मज़दूर का कितना बकाया है और किसके-किसके इन्होंने पैसे दिलवाये हैं. अब किसी मज़दूर का सात-आठ हज़ार का बकाया हो तो वो वकील करके लेवर कोर्ट में केस लड़ सकता है. जिन मामलों में कम पैसे होते थे उन्हीं मामलों में प्रदर्शन कर और कंपनी मालिक को पत्र देकर ये मज़दूरों का पैसे दिलवाते थे.’’

तीनों एफआईआर में लगे वसूली के आरोप को राजवीर निराधार बताती हैं. वो कहती हैं, ‘‘पुलिस कोई भी आरोप लगा सकती है. नवदीप मज़दूरों को उनका बकाया दिलाने के लिए सघर्ष करती थी. लॉकडाउन में कई मज़दूरों के पैसे कंपनी ने रख लिए थे. जब इस संगठन की मदद से नवदीप का खुद का बकाया मिला तो वो बाकी मज़दूरों के लिए संघर्ष करने लगी.’’

शिव कुमार के पिता का भी नाम राजवीर ही है. जिनके पास अपना कोई खेत नहीं है. वे दूसरों के खेतों में काम कर परिवार चलाते हैं.

55 वर्षीय राजवीर से न्यूजलॉन्ड्री ने जब वसूली को लेकर सवाल किया तो वे सीधे इससे इंकार करते हैं. वे कहते हैं, ‘‘इन्हें फंसाया जा रहा है. मैं तो जानता तक नहीं था कि वो मज़दूरों के लिए आंदोलन करता है. उसकी गिरफ्तारी के बाद जब मैं यहां आया तो पता चला कि मज़दूरों का बकाया दिलाने के लिए वो आंदोलन करता था. मैं कई मज़दूरों से भी मिला जिनके पैसे वो दिलवाया था. ऐसे में वसूली का आरोप लगाना मुझे गलत लगता है. अगर वो वसूली करता तो हम दूसरों के खेतों में मज़दूरी नहीं करते.’’

न्यूजलॉन्ड्री ने कुंडली इलाके की अलग-अलग कई कंपनियों में नवदीप और शिव कुमार को लेकर जानकारी हासिल की तो किसी को भी इनको लेकर खास जानकारी नहीं थी. पचास से ज़्यादा कंपनियों में तैनात गार्ड्स को हमने इनकी तस्वीरें दिखाई लेकिन कोई भी इन्हें पहचान नहीं पाया. सिर्फ गार्ड्स ही नहीं कुंडली इलाके में रेहड़ी लगाने वालों से भी हमने इनके कामों को लेकर सवाल किए लेकिन किसी को भी इनकी जानकारी नहीं थी.

पूछताछ के ही क्रम में हमारी मुलाकात बिहार के गया जिले के रहने वाले टुनटुन ठाकुर से हुई जो यहां एक पेड़ के नीचे बीते तीन साल से सैलून चलाते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए टुनटुन कहते हैं, ‘‘12 जनवरी से चार-पांच दिन पहले झंडा लिए एक भीड़ को देखा था. सामने जो कंपनी दिख रही है इसके गेट के आगे उन्होंने कुछ देर तक नारे लगाए और फिर चले गए थे. ये दोनों (नवदीप और शिव) उसमें थे या नहीं मुझे नहीं पता. उसके कुछ दिनों बाद पुलिस से मारपीट का मामला सुना. उस रोज मंगलवार था तो मैं नहीं आया.’’

टुनटुन ठाकुर

टुनटुन ठाकुर जिस कंपनी की तरफ इशारा करके बताते हैं कि यहां कुछ लोग आए थे उसके गार्ड को जब हमने नवदीप और शिव कुमार की तस्वीर दिखाई तो उन्होंने ने भी पहचानने से इंकार कर दिया.

शिव कुमार और नवदीप कौर की गिरफ्तारी को लेकर पुलिस पर उठते सवाल

एक तरफ जहां नवदीप कौर की गिरफ्तारी के बाद पुलिस पर कई आरोप लगे वहीं शिव कुमार की गिरफ्तारी पर ही कई सवाल खड़े हो रहे हैं.

नवदीप कौर की गिरफ्तारी और उनके द्वारा लगाए गए तमाम आरोपों के सवाल पर एसएचओ रवि कुमार कहते हैं, ‘‘आरोप लगाने दीजिए. हमारे पास तमाम सवालों के कागजी जवाब हैं. हम कोर्ट में तमाम सवालों का जवाब देंगे. हमारे पास वो वीडियो है जिसमें हमारे अधिकारियों के ऊपर हमले हुए. सबका मेडिकल हुआ है. नवदीप की गिरफ्तारी भी महिला पुलिसकर्मी द्वारा ही की गई. उन्हें डॉक्टर के पास जब लेकर गए तब भी महिला कर्मचारी ही उनके साथ थी. हमने उन्हें कुंडली थाने में घंटा भर भी नहीं रखा. उसी दिन उन्हें जेल भेज दिया गया. हमारे पास मेडिकल करने वाली डॉक्टर्स का भी हस्ताक्षर है. हम हर सवाल का जवाब देंगे.’’

शिव कुमार के साथियों और उनके परिजनों की माने तो पुलिस ने उन्हें 16 जनवरी को गिरफ्तार किया लेकिन इसकी कोई जानकारी नहीं दी. करीब 15 दिन बाद शिव कुमार ने जैसे-तैसे अपने परिजनों तक अपने गिरफ्तार होने की जानकारी पहुंचाई. हालांकि उनको गिरफ्तार करने वाले एसएचओ रवि कुमार कहते हैं, ‘‘शिव को 23 जनवरी को गिरफ्तार किया गया. उनकी गिरफ्तारी के बाद उनके परिजनों को इसकी जानकारी भी दी गई. गिरफ्तारी के कागज पर उनकी मां का हस्ताक्षर भी है.’’

रवि कुमार के दावे पर शिव कुमार के पिता राजवीर कहते हैं, ‘‘23 जनवरी की रात 9 बजे कुछ पुलिस वाले मेरे घर आए थे. मैं तब घर पर नहीं था. घर पर बच्चे और मेरी पत्नी थी. मेरी पत्नी पढ़ी लिखी भी नहीं है और वो मेंटल हेल्थ से गुजर रही है. उन्होंने पूछा कि शिव कुमार कहां है? बच्चों ने बताया कि यहां नहीं है तो उन्होंने बोला कि आए तो सरेंडर करने के लिए कहना. इतना कहने के बाद उन्होंने एक कागज पर मेरी बीमार पत्नी से हस्ताक्षर करा लिए. हमने तो एक फरवरी को शिव की गिरफ्तारी का पता चला. हम लोग अभी तक उससे मिल तक नहीं पाए हैं.’’

राजवीर आगे कहते हैं, ‘‘पुलिस ने उसे क्यों गिरफ्तार किया मुझे समझ नहीं आ रहा है. 12 जनवरी को जो कुछ हुआ उसमें तो शिव शामिल ही नहीं था. उन दिनों वो बीमार चल रहा था. हमें मिलने तक नहीं दिया जा रहा है. न जाने किस हाल में होगा वो.’’

हालांकि रवि कुमार कहते हैं, ‘‘12 जनवरी की घटना के वक़्त शिव मौजूद था. घटना के बाद से ही हमारी उसपर नजर थी. 23 जनवरी को हमने उसे सिंघु बॉर्डर से गिरफ्तार किया. आरोप लगाने को लिए कोई कुछ भी लगा सकता है. गिरफ्तारी के वक़्त उसका मेडिकल कराया गया है. कोर्ट में पेश करके रिमांड लिया गया. उनके परिजनों को इसकी सूचना दी गई. हर कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया.’’

कौर को 28 दिसंबर और 12 जनवरी को दर्ज एफआईआर संख्या 26 में जमानत मिल गई हैं. वहीं एफआईआर संख्या 25 पर चंडीगढ़ हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है. शिव कुमार को अभी किसी भी मामले में जमानत नहीं मिली है.

शिव सोनीपत जेल में बंद हैं वहीं नवदीप कौर करनाल जेल में बंद हैं. गिरफ्तारी के लगभग एक महीने गुजर जाने के बाद भी दोनों के परिजनों से उनकी मुलाकात नहीं हो पाई है.

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‘‘कोई लाठी-डंडा लेकर मज़दूरों का हक़ दिलाने जाता है? निहत्थे पुलिस वालों पर हमला करता है? उन्हें जान से मारने की कोशिश करता है? हमारे पास भी मज़दूर शिकायत लेकर आते हैं. हम मालिकों से बात करके मज़दूरों को उनका हक़ दिलाते हैं. ये लोग वसूली करने वाले हैं. ऐसा इन्होंने पहली बार नहीं किया है. दिसंबर में भी नवदीप कौर पर वसूली का मामला दर्ज हुआ था. हमने तब गिरफ्तार नहीं किया, लेकिन उस दिन हद हो गई. ये मेरा हाथ देखिए. ये माथे पर निशान देखिए.’’

यह कहना है हरियाणा के सोनीपत के कुंडली थाने के एसएचओ रवि कुमार का. रवि कुमार ने ही नवदीप कौर को 12 जनवरी को गिरफ्तार किया था. कौर पर दर्ज तीन एफआईआर में से एक के शिकायतकर्ता कुमार ही हैं.

रवि कुमार न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए अपने एक सहकर्मी को बुलाते हैं और अपने सर पर लगी चोट दिखाने के लिए कहते हैं. सर पर कटे का निशान दिखाने के बाद अपने मोबाइल में 12 जनवरी की घटना का वीडियो दिखाते हैं. एक वीडियो में कुछ लोग पुलिस के ऊपर लाठी मारते दिखते हैं वहीं दूसरे वीडियो में नवदीप भाषण देते हुए नजर आती हैं.

वीडियो दिखाने के बाद रवि कहते हैं, ‘‘इन्हें आप मज़दूरों के लिए संघर्ष करने वाला कहेंगे? ये वसूली करने वाले हैं. यहां के कंपनी मालिकों में इन्होंने खौफ बनाया हुआ है. हमारे पास वीडियो है वरना आप लोग तो पुलिस पर ही सवाल उठाते.’’

मज़दूर अधिकार संगठन की कार्यकर्ता नवदीप कौर को कुंडली इंडस्ट्रियल इलाके से 12 जनवरी की दोपहर को गिरफ्तार किया गया था. उसके कुछ दिनों बाद संगठन के प्रमुख शिव कुमार को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

12 जनवरी को नवदीप कौर और अज्ञात के खिलाफ कुंडली थाने में दो एफआईआर दर्ज हुईं. एफआईआर संख्या 25 जो एसएचओ रवि कुमार ने दर्ज कराई है, वहीं एफआईआर संख्या 26 एक कंपनी के अकाउंटेंट द्वारा दर्ज कराई गई है.

इससे पहले 28 दिसंबर को भी नवदीप पर एक एफआईआर दर्ज हुई थी जो कुंडली इंडस्ट्रियल इलाके में कंपनियों की देख-रेख करने वाली एक सुरक्षा एजेंसी के कर्मचारी द्वारा दर्ज कराई गई है.

अब नवदीप और शिव कुमार की गिरफ्तारी को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. नवदीप ने जहां पुलिस हिरासत में टॉर्चर करने और यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है वहीं शिव की गिरफ़्तारी की तारीख को लेकर ही सवाल खड़े हो रहे हैं.

एक घटना को लेकर दर्ज दो एफआईआर में कई अंतर

एफआईआर संख्या 26

ये एफआईआर कुंडली स्थित शहरन इलकमेक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के अकाउंटेंट पद पर काम करने वाले ललित खुराना ने दर्ज कराई है. इसमें आईपीसी की धारा 148 (घातक हथियार से हमला करना), 149, 323, 384 (जबरन वसूली करना), 452 और 306 के तहत मामला दर्ज हुआ है.

12 जनवरी को शाम 6 बजकर 18 मिनट पर दर्ज इस एफआईआर में शिकायकर्ता कहते हैं, ‘‘आज दिनांक 12 जनवरी को 11 बजे 40-50 आदमी जिनमें दो तीन लड़कियां भी थी. कंपनी में घुस गए और पैसे मांगने लगे. जब हमने वसूली के लिए मना किया तो उन्होंने हमला शुरू कर दिया. हमारे गार्ड ने उन्हें बाहर निकाल दिया और हमने पुलिस को फोन कर दिया. मौके पर पुलिस कर्मचारी आ गए. उन्होंने पुलिस कर्मचारी से लाठी डंडे से मारपीट की. जिसमें पुलिस कर्मचारियों को भी चोट लगी. उनमें से एक लड़की ने अपना नाम नवदीप कौर बताया और जाते हुए जान से मारने की धमकी देते हुए भाग गई. इनके खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई की जाए.’’

हमने इस कंपनी का दौरा किया. ये वहीं जगह है जहां से नवदीप को गिरफ्तार किया गया था. यहां आसपास के रेहड़ी पटरी लगाने वालों से हमने बात करने की कोशिश की लेकिन कोई भी बात करने को राजी नहीं हुआ. लेकिन कंपनी के गेट पर तैनात गार्डो में से एक जो घटनास्थल के दिन मौजूद था उससे हमारी बात हुई. गार्ड ने बताया, ‘‘किसी मज़दूर का पैसा बकाया था. उसी की मांग करते हुए कुछ लोग यहां आए थे. हमने तो उन्हें कंपनी के अंदर आने नहीं दिया. दोनों गेट बंद कर दिए थे. गेट पर ही हंगामा करते रहे. ईंटे मारी, लेकिन कोई अंदर नहीं आया. मैं तो उसमें से किसी को जानता तक नहीं था.’’

12 जनवरी को दर्ज एफआईआर संख्या 26

थोड़ी देर बाद एक शख्स को आते देख उस गार्ड ने हमें बताया कि कंपनी के मालिक आ रहे हैं आप उनसे बात कर लीजिए. 35 वर्षीय गगनदीप जो कि मालिक हैं, से उस दिन की घटना को लेकर हमने सवाल किया तो उनका जवाब एफआईआर में दर्ज आरोपों से एकदम अलग था.

एफआईआर में दावा किया गया है कि नवदीप और उनके साथी कंपनी के अंदर घुस गए थे. वसूली के पैसे की मांग कर रहे थे. लेकिन गगनदीप ने हमें बताया, ‘‘हमारी उसमें कोई भूमिका नहीं थी. पुलिस और उनके बीच जो कुछ हुआ. वे हमारी कंपनी के अंदर भी नहीं आए थे. गेट के बाहर थे. दरअसल वो इधर से जा रहे थे तो एकदम से यहां आ गए. उनके हाथ में डंडे वगैरह थे. हमारे गार्ड ने तो गेट खोला नहीं. वे गेट के बाहर थे तो कैमरों में सबकुछ रिकॉर्ड हो गया था. जो हमने पुलिस को दे दिया. उनका हमारी कंपनी से कुछ लेना देना था ही नहीं.’’

गगनदीप हमसे बताते हैं कि वो नवदीप और शिव कुमार को नहीं जानते हैं. जल्दी में होने का हवाला देते हुए गगनदीप अपनी गाड़ी में बैठ जाते हैं. गाड़ी में बैठे-बैठे वे कहते हैं, ‘‘नवदीप और दूसरे लड़कों को तो हम पहले से जानते तक नहीं थे. गिरफ्तारी के बाद पता चला कि पंजाब की कोई लड़की है जो मज़दूरों के लिए कंपनी जाती है.’’

गगनदीप और घटना के वक़्त गेट पर मौजूद गार्ड की बातों से साफ जाहिर होता है कि नवदीप और उनके साथी कंपनी के अंदर नहीं गए थे. ऐसे में एफआईआर में वसूली का आरोप की बातें कहीं भी साबित नहीं होती, खासकर कंपनी के मालिक के बयान के बाद. पुलिस अधिकारी रवि कुमार हमें घटना के दिन की कई वीडियो साझा करते हैं लेकिन उसमें एक भी वीडियो कंपनी के अंदर का नहीं है.

वो कंपनी जिसके बाहर हुई थी 12 जनवरी की घटना

कंपनी के बाहर बनी चाय की दुकान पर कई कर्मचारियों से न्यूज़लॉन्ड्री की मुलाकात हुई. सबका यही कहना था कि वे लोग कंपनी के अंदर थे. जो भी हंगामा हुआ वो कंपनी के बाहर हुआ.

एक कर्मचारी दीपक चौहान जो कि सोनीपत के ही रहने वाले हैं, कहते हैं, ‘‘हम लोग तो अंदर थे. बाहर क्या हो रहा था हमने तो देखा नहीं. लेकिन यहां मज़दूरों को कोई परेशानी नहीं है. मैं खुद आठ साल से इसी कंपनी में काम कर रहा हूं. ये लोग यूनियनबाजी कर रहे थे. यहां यूनियनबाजी नहीं चलती है.’’

एफआईआर संख्या 25

इस एफआईआर के शिकायतकर्ता कुंडली थाने के एसएचओ रवि कुमार हैं. इसमें आईपीसी की धारा 148 (घातक हथियार से हमला करना), 149, 186, 307 (हत्या की कोशिश), 332 (लोकसेवक को काम के दौरान चोट पहुंचाना), 353, 379B (छीना झपटी करना) और 384 (ज़बरदस्ती वसूली करना) लगाई गई हैं.

ये एफआईआर 12 जनवरी की शाम पांच बजकर 39 मिनट पर दर्ज हुई थी. इस एफआईआर के बाद दर्ज एफआईआर संख्या 26 में लिखा गया है कि नवदीप कौर अपने साथियों के साथ कंपनी के अंदर घुस गई थी, वहीं इसमें लिखा है कि हमें सूचना मिली कि कुछ व्यक्ति लाठी डंडा लेकर फैक्ट्री नंबर 349 में अवैध वसूली के लिए घुसने का प्रयत्न कर रहे हैं.

अपनी शिकायत में एसएचओ आगे लिखते हैं, ‘‘सूचना के बाद जब मैं मौके पर पहुंचा तो वहां पर 2-3 लड़कियां व 50-60 लड़के जिनके हाथों में लाठियां और डंडे थे. नारे लगाते हुए खड़े थे. जिनको मैंने समझाने की कोशिश की तो भीड़ की अगुवाई कर रही एक लड़की ने ललकारते हुए कहा कि ये वही एसएचओ है जिसने पहले भी हमारे खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है. आज इसको हम मुकदमा दर्ज कराने का मजा चखाते हैं. इतने में उस लड़की और उसके सभी साथियों ने मारपीट शुरू कर दी. जिसमें मुझे और मेरे कई कर्मचारियों को सर और शरीर में अन्य जगहों पर काफी चोटे लगीं. इस दौरान गनमैन का करबाईन छीनने की भी कोशिश की गई. आईओ राकेश से तफ्तीश फ़ाइल छीन ली. हालांकि इसे उसी समय हमने वापिस ले लिया. इस समय पब्लिक की भीड़ जमा हो गई उनकी मदद से इन्हें तितर बितर किया गया. महिला सिपाही रीटा की सहयता से एक लड़की जिसका नाम पूछताछ में नवदीप कौर मालूम चला को काबू किया गया. बाकी सभी लाठी डंडे समेत भागने में सफल हुए.’’

एक तरफ जहां एफआईआर संख्या 26 में शिकायकर्ता बताते हैं कि पुलिस से मारपीट के बाद नवदीप कौर भाग गई थी. वहीं इस एफआईआर में घटना स्थल पर ही नवदीप कौर को काबू में किए जाने की बात की गई है. एफआईआर 25 में पूछताछ में नवदीप कौर नाम पता चलने की बात पता चलती है जबकि एफआईआर 26 में बताया जाता है कि नवदीप ने खुद ही अपना नाम बताया था.

12 जनवरी को दर्ज एफआईआर संख्या 25

सोनीपत कोर्ट में नवदीप कौर के लिए जिरह करने वाले वकील जितेंद्र कुमार इन्हीं कमियों की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, ‘‘पुलिस ने तो गंभीर धाराएं लगाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन क़ानूनी रूप से दोनों एफआईआर में कई गड़बड़ियां हैं. मसलन, 12 जनवरी को दर्ज एफआईआर संख्या 25 पहले दर्ज हुई और 26 उसके बाद. इन दोनों एफआईआर के दर्ज होने में घंटों का अंतर है. पहले में शिकायकर्ता कहता है कि उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. दूसरे एफआईआर में कहा गया है कि वो घटना स्थल से फरार हो गई थी. क़ानूनी तौर पर ये कमियां है जिसको हम कोर्ट में उठा रहे हैं.’’

एसएचओ रवि कुमार

यही नहीं एफआईआर संख्या 26 में अपराध का समय सुबह 11 बजे बताया गया है, वहीं 25 नंबर एफआईआर में अपराध का समय 12 बजे का है. अगर एसएचओ द्वारा घटना के समय को लेकर दी गई जानकारी को ही सही माने तो दोपहर 12 बजे ही नवदीप को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन एफआईआर उसके लगभग छह घंटे बाद दर्ज की गई.

हाल ही में पत्रकार मनदीप पुनिया को जमानत देते हुए रोहिणी कोर्ट के जज सतवीर लांबा ने एफआईआर में हुई देरी को लेकर सवाल उठाया था. दरअसल मनदीप को शाम 7 बजे के करीब गिरफ्तार किया गया था और उनपर एफआईआर देर रात 2 बजे के करीब दर्ज की गई थी.

मनदीप पुनिया के मामले में कोर्ट में उनका पक्ष रखते हुए वकील सारिम नवेद ने गिरफ्तारी और एफआईआर के समय में अंतर को लेकर सवाल उठाया था. नवदीप कौर की एफआईआर और गिरफ्तारी के अंतर को लेकर नावेद कहते हैं, ‘‘एफआईआर का मतलब होता है, फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट. जब शिकायतकर्ता पुलिस अधिकारी ही है. ऐसे में एफआईआर देरी से दर्ज होने की स्थिति में सवाल यह उठता है कि क्या उसमें कुछ जोड़ने की कोशिश तो नहीं हुई.’’

28 दिसंबर को दर्ज एफआईआर

नवदीप कौर पर 28 दिसंबर को जो एफआईआर दर्ज हुई है उसमें भी वसूली का जिक्र है. इस एफआईआर के शिकायतकर्ता शमशेर सिंह हैं. जो कुंडली इलाके में सुरक्षा के लिए तैनात टोपस नाईट पेट्रोलिंग प्राइवेट लिमिटेड के कर्मचारी हैं.

शमशेर अपनी शिकायत में बताते हैं कि फैक्ट्री नंबर 367 के बाहर नवदीप कौर अपने कुछ साथियों के साथ गार्ड और कंपनी मालिक से बतमीजी कर रही थी. इनके हाथ में लाठी डंडा था. हमने जब इन्हें रोका तो इन्होने हमारे साथ भी मारपीट की. ये लोग कंपनी मालिक विकास से जबरदस्ती रुपए की मांग कर रहे थे. जब हमने इन्हें रोका तो इन्होंने हमपर हमला कर दिया. मेरे और मेरे साथियों को सर और शरीर में कई जगहों पर चोट आईं.

न्यूज़लॉन्ड्री जब 28 दिसंबर को हुई घटना वाली जगह पहुंचा तो उस कंपनी में निर्माण कार्य चल रहा था. उसके गेट पर कोई गार्ड मौजूद नहीं था. निर्माणाधीन बिल्डिंग में काम कर रहे मज़दूरों ने 28 दिसंबर को हुई घटना की कोई जानकारी नहीं दी. आसपास की कंपनियों में सुरक्षा में लगे गार्ड भी घटना नहीं होने की बात कहते हैं.

28 दिसंबर को दर्ज एफआईआर

जब हमने शमशेर से पूछा कि आप जिस जगह की घटना का जिक्र कर रहे हैं वहां तो कोई कंपनी नहीं है तो उन्होंने बताया, ‘‘यहां एक मैगी की कंपनी हुआ करती थी. जिसके मालिक से इन्होंने अवैध पैसे की मांग की थी.’’ हमने उस कंपनी के मालिक का नंबर मांगा तो उन्होंने बाद में देने की बात की लेकिन उन्होंने हमें नहीं दिया.

नवदीप और शिव कुमार के एक दोस्त 28 दिसंबर की घटना के बारे में हमें बताते हैं, ‘‘एक मज़दूर का पैसा कंपनी नहीं दे रही थी उसी को लेकर हम लोग प्रदर्शन करने पहुंचे थे. भले ही मारपीट का मामला नवदीप और बाकी लोगों पर हुआ लेकिन उस रोज कंपनियों की सुरक्षा में तैनात लोकल गुंडों ने गोली चलाई थी. शुक्र है कि वो गोली किसी को लगी नहीं. यहां कंपनियों ने मज़दूरों के आंदोलन को कमजोर करने के लिए लोकल गुंडे रखे हुए हैं.’’

28 दिसंबर को दर्ज एफआईआर में इसी कंपनी के सामने हुई घटना का जिक्र है

क्या नवदीप और शिव वसूली का काम करते थे?

अगर पुलिस की माने तो कुंडली में ये लोग वसूली के लिए बदनाम हैं. इनको लेकर कई बार शिकायत पुलिस के पास आई है. हालांकि कुंडली इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के प्रमुख अंशु दास गुप्ता ऐसी किसी भी जानकारी से इंकार करते हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए गुप्ता कहते हैं, ‘‘जब से किसान सिंघु बॉर्डर पर आंदोलन करने आए हैं तब से ही ये लोग सक्रिय हुए हैं. उससे पहले तो इनका नाम भी हमने नहीं सुना था. कुछ दो महीने से ये काफी फैक्ट्रियों में लोगों को तंग कर रहे थे. ये फैक्ट्रियों के अंदर जाते थे. वहां पर बैनर लगाकर बैठते थे. बोलते थे कि कोई आपके पैसे नहीं दे तो हमसे मिलो. कुछ मज़दूर चले जाते थे इनके पास. कोई ना कोई तो परेशानी होती ही है. उस मज़दूर की बात को लेकर ये पचास आदमी डंडे और झंडे लेकर फैक्ट्री के ऊपर धावा बोलते थे. इन्होंने एक दो मालिकों को लिखकर दिया है कि आप इस आदमी के एक महीने के पैसे दे दो नहीं तो हम क्रांतिकारी आंदोलन करेंगे.’’

गुप्ता आगे कहते हैं, ‘‘करीब 40 साल हो गए कुंडली इंडस्ट्रियल एरिया को बने हुए. यहां पर लेबर डिपार्टमेंट का ऑफिस भी है. उसमें लेबर ऑफिसर भी बैठता है. डिप्टी लेबर कमिश्नर भी बैठता है. मज़दूर के पास रास्ता है कि उसे कोई तकलीफ है तो वह उनके पास चला जाए. वहां एक समझौता अधिकारी भी होता है जो कंपनी और मज़दूर के बीच समझौता कराता है. उससे पहले वह पुलिस में मामला दर्ज करा सकता है. कई बार मज़दूरों को कोई परेशानी हो जाती है तो हमारे यहां समझौते के लिए मामला आता है. हम अधिकारी की उपस्थिति में समझौता करते हैं.’’

क्या आपकी जानकारी में है कि ये किसी कंपनी मालिक से मज़दूरों के पैसे दिलाने के अलावा अपने लिए वसूली भी करते थे. इस सवाल के जवाब में गुप्ता कहते हैं, ‘‘मुझे इसकी जानकारी नहीं है क्योंकि बीते दो महीने से मैं कुंडली गया ही नहीं. लेकिन जो मुझे पता है उसमें पैसे वैसे की तो कोई बात नहीं है. इनका क्या मकसद था ये पता नहीं.’’

सिंघु बॉर्डर पर नवदीप और शिव कुमार को छोड़ने के लिए चला हस्ताक्षर कैंपेन

शिव कुमार और नवदीप के साथ काम करने वाले नौजवानों और कुछ मज़दूरों से न्यूजलॉन्ड्री ने बात की. पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ भी मामला दर्ज कर रखा है इसलिए वे अपनी पहचान जाहिर करने से बच रहे हैं. शिव कुमार के सोनीपत के देबहु गांव के रहने एक नौजवान से हमने बात की.

राजीव (बदला नाम) शिव को बचपन से जानते हैं और आईटीआई के दिनों से आंदोलनों में उनके साथी रहे हैं. वसूली के सवाल पर वे कहते हैं, ‘‘शिव कॉलेज में कॉलेज की सुविधाओं के लिए संघर्ष करता था. पढ़ाई के बाद जब उसकी कुंडली इलाके में नौकरी लगी तो यहां के मज़दूरों की बदहाली और मालिकों द्वारा उनके शोषण को देखकर उसने मज़दूर अधिकार संगठन बनाया. नवदीप भी उसी संगठन में शामिल थी. ये लोग उन मज़दूरों के पैसे दिलाते थे जिनके मालिक नहीं देते थे.’’

राजीव आगे कहते हैं, ‘‘कोरोना काल में अचानक लॉकडाउन लगने से कई मज़दूरों के पैसे मालिक नहीं दे रहे थे. इन्होंने प्रदर्शन करके करीब पांच लाख रुपए अलग-अलग मज़दूरों के दिलवाये हैं. जहां तक रही वसूली की बात तो आपको लगता है कि करोड़ो रुपए के कंपनी मालिक पचास लोगों जिनके हाथ में झंडा होता है उनसे पैसे देंगे? और अगर कोई पैसा देगा भी तो शिकायत नहीं करेगा. ऐसा मुमकिन ही नहीं है. पुलिस कंपनी मालिकों के साथ मिलकर फर्जी आरोप लगा रही है ताकि यहां मज़दूरों का शोषण पहले की तरह जारी रहे.’’

नवदीप कौर की बड़ी बहन राजवीर कौर दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही हैं. राजवीर भगत सिंह छात्र एकता मंच से जुड़ी रही हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में सक्रिय भगत सिंह छात्र एकता मंच अलग-अलग मामलों पर प्रदर्शन करता रहा है. इनमें से कुछ आंदोलन में नवदीप भी शामिल हुई है.

राजवीर बताती है, ‘‘आर्थिक कारणों से 12 वीं करने के बाद नवदीप को पढ़ाई रोकनी पड़ी. पांच महीने पहले ही वो कुंडली इलाके की एक कंपनी में काम करने लगी. हमने सोचा था कि कुछ दिनों बाद ग्रेजुएशन में उसका एडमिशन करा देंगे. पार्ट टाइम वो वहां काम करेगी. फिर किसान आंदोलन शुरू हुआ जिसमें वो शामिल होने लगी जिसके कारण उसे काम से हटा दिया गया. उसका पैसा रोक दिया गया था. मज़दूर अधिकार संगठन के सहयोग से ही उसके पैसे मिले. इसके बाद ही वो इस संगठन में सक्रिय रूप से शामिल हो गई और जिन मज़दूरों के पैसे बकाया थे उन्हें दिलवाते थे.’’

अंशु दास गुप्ता के आरोपों पर जवाब देते हुए राजवीर कहती हैं, ‘‘ऐसा नहीं था कि ये लोग हर कंपनी में खुद ही पहुंच जाते थे. कई मामलों में इन्होंने लेवर कोर्ट का रास्ता भी अपनाया है. इन्होंने बकायदा एक डायरी बनाई थी जिसमें लिखा है कि किस कंपनी पर किस मज़दूर का कितना बकाया है और किसके-किसके इन्होंने पैसे दिलवाये हैं. अब किसी मज़दूर का सात-आठ हज़ार का बकाया हो तो वो वकील करके लेवर कोर्ट में केस लड़ सकता है. जिन मामलों में कम पैसे होते थे उन्हीं मामलों में प्रदर्शन कर और कंपनी मालिक को पत्र देकर ये मज़दूरों का पैसे दिलवाते थे.’’

तीनों एफआईआर में लगे वसूली के आरोप को राजवीर निराधार बताती हैं. वो कहती हैं, ‘‘पुलिस कोई भी आरोप लगा सकती है. नवदीप मज़दूरों को उनका बकाया दिलाने के लिए सघर्ष करती थी. लॉकडाउन में कई मज़दूरों के पैसे कंपनी ने रख लिए थे. जब इस संगठन की मदद से नवदीप का खुद का बकाया मिला तो वो बाकी मज़दूरों के लिए संघर्ष करने लगी.’’

शिव कुमार के पिता का भी नाम राजवीर ही है. जिनके पास अपना कोई खेत नहीं है. वे दूसरों के खेतों में काम कर परिवार चलाते हैं.

55 वर्षीय राजवीर से न्यूजलॉन्ड्री ने जब वसूली को लेकर सवाल किया तो वे सीधे इससे इंकार करते हैं. वे कहते हैं, ‘‘इन्हें फंसाया जा रहा है. मैं तो जानता तक नहीं था कि वो मज़दूरों के लिए आंदोलन करता है. उसकी गिरफ्तारी के बाद जब मैं यहां आया तो पता चला कि मज़दूरों का बकाया दिलाने के लिए वो आंदोलन करता था. मैं कई मज़दूरों से भी मिला जिनके पैसे वो दिलवाया था. ऐसे में वसूली का आरोप लगाना मुझे गलत लगता है. अगर वो वसूली करता तो हम दूसरों के खेतों में मज़दूरी नहीं करते.’’

न्यूजलॉन्ड्री ने कुंडली इलाके की अलग-अलग कई कंपनियों में नवदीप और शिव कुमार को लेकर जानकारी हासिल की तो किसी को भी इनको लेकर खास जानकारी नहीं थी. पचास से ज़्यादा कंपनियों में तैनात गार्ड्स को हमने इनकी तस्वीरें दिखाई लेकिन कोई भी इन्हें पहचान नहीं पाया. सिर्फ गार्ड्स ही नहीं कुंडली इलाके में रेहड़ी लगाने वालों से भी हमने इनके कामों को लेकर सवाल किए लेकिन किसी को भी इनकी जानकारी नहीं थी.

पूछताछ के ही क्रम में हमारी मुलाकात बिहार के गया जिले के रहने वाले टुनटुन ठाकुर से हुई जो यहां एक पेड़ के नीचे बीते तीन साल से सैलून चलाते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए टुनटुन कहते हैं, ‘‘12 जनवरी से चार-पांच दिन पहले झंडा लिए एक भीड़ को देखा था. सामने जो कंपनी दिख रही है इसके गेट के आगे उन्होंने कुछ देर तक नारे लगाए और फिर चले गए थे. ये दोनों (नवदीप और शिव) उसमें थे या नहीं मुझे नहीं पता. उसके कुछ दिनों बाद पुलिस से मारपीट का मामला सुना. उस रोज मंगलवार था तो मैं नहीं आया.’’

टुनटुन ठाकुर

टुनटुन ठाकुर जिस कंपनी की तरफ इशारा करके बताते हैं कि यहां कुछ लोग आए थे उसके गार्ड को जब हमने नवदीप और शिव कुमार की तस्वीर दिखाई तो उन्होंने ने भी पहचानने से इंकार कर दिया.

शिव कुमार और नवदीप कौर की गिरफ्तारी को लेकर पुलिस पर उठते सवाल

एक तरफ जहां नवदीप कौर की गिरफ्तारी के बाद पुलिस पर कई आरोप लगे वहीं शिव कुमार की गिरफ्तारी पर ही कई सवाल खड़े हो रहे हैं.

नवदीप कौर की गिरफ्तारी और उनके द्वारा लगाए गए तमाम आरोपों के सवाल पर एसएचओ रवि कुमार कहते हैं, ‘‘आरोप लगाने दीजिए. हमारे पास तमाम सवालों के कागजी जवाब हैं. हम कोर्ट में तमाम सवालों का जवाब देंगे. हमारे पास वो वीडियो है जिसमें हमारे अधिकारियों के ऊपर हमले हुए. सबका मेडिकल हुआ है. नवदीप की गिरफ्तारी भी महिला पुलिसकर्मी द्वारा ही की गई. उन्हें डॉक्टर के पास जब लेकर गए तब भी महिला कर्मचारी ही उनके साथ थी. हमने उन्हें कुंडली थाने में घंटा भर भी नहीं रखा. उसी दिन उन्हें जेल भेज दिया गया. हमारे पास मेडिकल करने वाली डॉक्टर्स का भी हस्ताक्षर है. हम हर सवाल का जवाब देंगे.’’

शिव कुमार के साथियों और उनके परिजनों की माने तो पुलिस ने उन्हें 16 जनवरी को गिरफ्तार किया लेकिन इसकी कोई जानकारी नहीं दी. करीब 15 दिन बाद शिव कुमार ने जैसे-तैसे अपने परिजनों तक अपने गिरफ्तार होने की जानकारी पहुंचाई. हालांकि उनको गिरफ्तार करने वाले एसएचओ रवि कुमार कहते हैं, ‘‘शिव को 23 जनवरी को गिरफ्तार किया गया. उनकी गिरफ्तारी के बाद उनके परिजनों को इसकी जानकारी भी दी गई. गिरफ्तारी के कागज पर उनकी मां का हस्ताक्षर भी है.’’

रवि कुमार के दावे पर शिव कुमार के पिता राजवीर कहते हैं, ‘‘23 जनवरी की रात 9 बजे कुछ पुलिस वाले मेरे घर आए थे. मैं तब घर पर नहीं था. घर पर बच्चे और मेरी पत्नी थी. मेरी पत्नी पढ़ी लिखी भी नहीं है और वो मेंटल हेल्थ से गुजर रही है. उन्होंने पूछा कि शिव कुमार कहां है? बच्चों ने बताया कि यहां नहीं है तो उन्होंने बोला कि आए तो सरेंडर करने के लिए कहना. इतना कहने के बाद उन्होंने एक कागज पर मेरी बीमार पत्नी से हस्ताक्षर करा लिए. हमने तो एक फरवरी को शिव की गिरफ्तारी का पता चला. हम लोग अभी तक उससे मिल तक नहीं पाए हैं.’’

राजवीर आगे कहते हैं, ‘‘पुलिस ने उसे क्यों गिरफ्तार किया मुझे समझ नहीं आ रहा है. 12 जनवरी को जो कुछ हुआ उसमें तो शिव शामिल ही नहीं था. उन दिनों वो बीमार चल रहा था. हमें मिलने तक नहीं दिया जा रहा है. न जाने किस हाल में होगा वो.’’

हालांकि रवि कुमार कहते हैं, ‘‘12 जनवरी की घटना के वक़्त शिव मौजूद था. घटना के बाद से ही हमारी उसपर नजर थी. 23 जनवरी को हमने उसे सिंघु बॉर्डर से गिरफ्तार किया. आरोप लगाने को लिए कोई कुछ भी लगा सकता है. गिरफ्तारी के वक़्त उसका मेडिकल कराया गया है. कोर्ट में पेश करके रिमांड लिया गया. उनके परिजनों को इसकी सूचना दी गई. हर कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया.’’

कौर को 28 दिसंबर और 12 जनवरी को दर्ज एफआईआर संख्या 26 में जमानत मिल गई हैं. वहीं एफआईआर संख्या 25 पर चंडीगढ़ हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है. शिव कुमार को अभी किसी भी मामले में जमानत नहीं मिली है.

शिव सोनीपत जेल में बंद हैं वहीं नवदीप कौर करनाल जेल में बंद हैं. गिरफ्तारी के लगभग एक महीने गुजर जाने के बाद भी दोनों के परिजनों से उनकी मुलाकात नहीं हो पाई है.

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