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टिकरी बॉर्डर: किसानों के आंदोलन से परेशान होने वालों का सच

सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर बीते दिनों खुद को स्थानीय निवासी बताते हुए कुछ लोग, प्रदर्शनकारी किसानों के पास पहुंचे और प्रदर्शन खत्म कर सड़क खाली करने के लिए कहने लगे. इस दौरान उन लोगों और प्रदर्शनकारी किसानों के बीच झड़प भी हुई. यही नहीं इन लोगों ने प्रदर्शनकारी किसानों के साथ मारपीट भी की. हैरानी की बात है कि यह सब पुलिस की मौजूदगी में हुआ.

किसानों के खिलाफ प्रदर्शन करने पहुंचें लोगों का कहना था कि दो महीने से सड़क बंद कर रखी है. हमें आने जाने में परेशानी होती है. ये किसान नहीं हैं. कुछ कांग्रेसी हैं और कुछ खालिस्तानी. असली किसान इनमें से एक भी नहीं है. इन्हें यहां से हटाया जाना चाहिए. इन्होंने तिरंगे का अपमान किया है ये किसान हो ही नहीं सकते.

टिकरी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के सबसे करीब जो कॉलोनी है उसका नाम बाबा हरिदासपुर है. यह कच्ची कॉलोनी है. पुलिस द्वारा रोड बैरिकेड करने के बाद इसी कॉलोनी से होकर प्रदर्शन स्थल तक जाना होता है. इस गली में आंदोलन करने वाले किसान खरीदारी करते नजर आते हैं. बाबा हरिदासपुर में रहने और दुकान चलाने वालों की माने तो उन्हें किसानों से कोई खास परेशानी है.

किसानों से हमें कोई परेशानी नहीं

हरियाणा के रोहतक जिले के रहने वाले विजय सिंघल अब टिकरी बॉर्डर पर रहते हैं और यहीं पर मोटर पार्ट्स की दुकान चलाते हैं. हमने जब उनसे जानने की कोशिश की कि किसानों के आंदोलन से आपको क्या परेशानी है तो उन्होंने कहा, ‘‘हमें कोई परेशानी नहीं हो रही है. उनकी मांगे वाजिब हैं, उसे सरकार पूरा करे तो वे चले जाएंगे. सरकार को इनकी बातों को सुनना चाहिए. किसानों के आंदोलन से आने जाने की परेशानी तो है. जो रास्ते बंद हैं वो तो पुलिस की तरफ से हैं. किसानों ने तो खोल रखा है.’’

टिकरी बॉर्डर पर पुलिस के इंतजाम

विजय सिंघल के बगल में खड़े एक दूसरे दुकानदार कहते हैं, ‘‘ये लोग किसी से मारपीट नहीं करते हैं. आप देखिए वे आराम से आ-जा रहे हैं. खरीदारी कर रहे हैं. आखिर हम इन्हें क्यों बदनाम करें कि इनसे हमें परेशानी है. आने जाने की परेशानी तो है लेकिन हम लोग अपने काम के लिए जैसे तैसे चले जाते हैं.’’

टिकरी बॉर्डर पर हीरा मार्केट के साथ किराने की दुकान चलाने वाले लाला मान किसानों से परेशानी के सवाल पर कहते हैं, ‘‘हमें तो कोई परेशानी नहीं है. थोड़ा ग्राहक कम हो रहे हैं बाकी किसानों की तरफ से हमें कोई परेशानी नहीं है. वे आते हैं, समान लेते हैं और पैसे दे जाते हैं. हम चाहते हैं कि दंगा न हो. कोई रास्ता निकले जिससे किसान भी राजी हो जाएं और सरकार भी. सरकार को इसका समाधान करना चाहिए. झगड़ा नहीं चाहिए. आपस में मिलाप से यह काम निपटना चाहिए.’’

श्री भगवान

यहां हमारी मुलाकात हरिनकुंड गांव के रहने वाले बुजुर्ग श्री भगवान से हुई. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए श्री भगवान कहते हैं, ‘‘किसान से ज़्यादा पुलिस की वजह से परेशानी हो रही है. पुलिस ने जगह-जगह बंद कर रखा है जिससे भारी तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है. पुलिस ने हर रास्ते हमारे ब्लॉक कर दिए हैं. पुलिस वाले ज़्यादा परेशान करते हैं. किसान जिस बात को नहीं चाहते उन पर उसे जबरदस्ती क्यों थोपा जा रहा है. यह अच्छी बात नहीं है. किसान लोग कोई अभद्र व्यवहार नहीं कर रहे हैं. सरकार बीच सड़क पर दिवार बनाने के लिए नाजायज पैसा खर्च कर रही है. ये पैसा गरीबों में दिया जाए. उनकी मदद की जाए और रास्ते को खोल दिया जाए.’’

ज़्यादातर स्थानीय निवासी पुलिस पर ही परेशानी बढ़ाने का आरोप लगाते है. टिकरी बॉर्डर पर सुरक्षा के सख्त इंतज़ाम किए हैं. सड़कों पर मोटे-मोटे पत्थरों को जोड़कर उसमें सीमेंट डालकर दिवार बनाई जा रही है. सड़कों पर कील लगाई जा रही है. पहले पैदल लोग मुख्य मार्ग से होकर किसानों के प्रदर्शन तक जा सकते थे लेकिन अब उसे भी ब्लॉक कर दिया गया है. दूसरी तरफ टिकरी बॉर्डर मेट्रो स्टेशन के पास जहां पुलिस ने पहला बैरिकेड लगाया है वहां से किसी को भी अंदर नहीं जाने दिया जा रहा है. पत्रकारों को भी आईकार्ड दिखाने पर ही अंदर जाने दिया जाता है.

संदीप कुमार

यहां हमारी मुलाकात टिकरी गांव के रहने वाले संदीप कुमार से हुई. वह कहते हैं, ‘‘किसान आंदोलन से यहां किसी को व्यक्तिगत दिक्कत नहीं है. सबके अपने काम धंधे हैं, थोड़ी बहुत परेशानी तो होती है, लेकिन ये जो किसान बैठे हैं इनकी मांगे भी पूरी होनी चाहिए. हम तो सरकार से यही अनुरोध करते हैं कि जल्दी से जल्दी इनकी मांगे माने ताकि जल्दी से जल्दी सबकुछ पहले की तरह चलने लगे. यहां लोगों को थोड़ी बहुत परेशानी हो रही है, लेकिन सोचना चाहिए कि ये परेशानी क्यों है. सरकार का काम ये थोड़ी है कि रोड के अंदर गढ्ढे खोद दो और उसके अंदर कील लगा दो. किसान अनाज बो रहे हैं और ये कील बो रहे हैं. किसानों की मांग तो जायज है. ये देश के लोग हैं, बाहर के तो है नहीं.’’

बाबा हरिदास कॉलोनी में हमारी मुलाकात मोबाइल दुकान चलाने वाले अनिल कुमार से हुई. आसपास के दुकानदारों ने बताया कि अनिल कुमार उस रोज किसानों के खिलाफ हुए प्रदर्शन में गए थे हालांकि वे इससे इंकार करते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कुमार कहते हैं, ‘‘इन किसानों से कोई प्रॉब्लम है नहीं लेकिन दुकानदारी धीमी चल रही है. कच्ची कॉलोनी से पहले जितने लोग हमारे यहां आते थे वे नहीं आ पा रहे हैं. उनके आने जाने में परेशानी हो रही है. इधर पुलिस ने रोक रखा है और इधर किसान भाइयों ने रोक रखा है. काम धाम तो एकदम नहीं चल रहा है.’’

बीते दिनों कुछ लोग किसानों को हटाने की मांग करते हुए गए थे. क्या आप भी गए थे. इस सवाल पर अनिल कहते हैं, ‘‘नहीं मैं नहीं गया था, लेकिन कुछ लोग गए थे. किसान अपने हक़ के लिए लड़ रहे हैं और हम लोग अपने हक़ के लिए. हमें भी आगे देखना है. किसानों की मांग को सरकार माने और सरकार जो कह रही है कि ये किसान माने. ऐसे थोड़ी इन्हें हटाया जा सकता है.’’

स्थानीय लोगों को परेशानी नहीं तो फिर कौन लोग गए थे टिकरी?

29 जनवरी को एक भीड़ जिसमें करीब 200 लोग थे टिकरी बॉर्डर पर बने किसानों के मंच के पास पहुंच गए. वहां किसानों के खिलाफ नारे लगाए और उन्हें वहां से जाने के लिए कहा गया. उस वक़्त स्टेज के पास मौजूद रहे लुधियाना के रहने वाले किसान दिलजीत सिंह कहते हैं, ‘‘जो लोग आए थे वे बीजेपी के ही थे. उनके जाने के बाद हमें यहां के कई लोगों ने बताया. वे लोग हमारे खिलाफ नारे लगा रहे थे और यहां से चले जाने के लिए कह रहे थे. यहां के लोकल लोगों के साथ तो हमारा एक रिश्ता बन गया है. वे हमारी हर तरह की मदद करते हैं. कुछ लोग हमारे यहां आकर लंगर भी खाते हैं. यहां के कई लोगों ने आकर हमें अपना समर्थन भी दिया है. सरकार के जो लोग हैं उन्हें ही परेशानी होगी. हमारे लोग किसी भी एक शख्स को परेशान किए हों तो कोई बताये. ऐसा हुआ ही नहीं.’’

जब हमने दुकानदारों और स्थानीय निवासियों से यह जानने की कोशिश की कि जो लोग उस रोज प्रदर्शन करने के लिए आए थे वे कौन थे. इस सवाल के जवाब पर कुछ लोग खुलकर तो कुछ लोग दबी जुबान बीजेपी से जुड़े हुए लोगों का नाम लेते हैं.

टिकरी बॉर्डर पर लगाई गईं कीलें

टिकरी गांव के रहने वाले संदीप किसानों के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों को लेकर पूछे गए सवाल पर कहते हैं, ‘‘जी हमें पता चला था कि कुछ लोग किसानों के खिलाफ प्रदर्शन करने गए थे. उन्होंने खुद को टिकरी गांव का बताया था जबकि हमें पता है कि वहां का कोई भी बंदा नहीं था. ये समझो कि जो भी वहां गया था सब राजनीति से प्रेरित बंदे थे. लोकल तो वहां कोई भी नहीं था. लोकल तो किसानों को अपना सपोर्ट दे रहे हैं. जब यहां इंटरनेट बंद है सबने अपने वाईफाई को फ्री कर रखा है. राशन, पानी या सिलेंडर किसी भी चीज की ज़रूरत पड़ती है तो वे किसानों को मुहैया करा रहे हैं.’’

टिकरी बॉर्डर के पास दुकान चलाने वाले 30 वर्षीय सुरेंद्र सिंह प्रदर्शन करने पहुंचें लोगों के सवाल पर कहते हैं, ‘‘हमें तो इन किसानों से कोई परेशानी नहीं है. बेचारे ठंड में सड़क पर सो रहे हैं. जहां तक रास्ता ब्लॉक करने की बात है वो तो पुलिस कर रही है. ये लोग तो आने-जाने का रास्ता छोड़कर बैठे हैं. किसान कभी-कभार खरीदारी करने आते हैं तो पैसे देकर जाते हैं. कभी किसी से झगड़ा नहीं करते तो हम क्यों इन्हें बुरा कहें. दो-तीन दिन पहले बीजेपी के कुछ लोग आए थे, उन्होंने कुछ दुकानदारों को साथ चलने के लिए कहा, बोला कि चलो इनको उठाते हैं. जो भी बीजेपी के लोग थे वे उसके साथ गए थे.’’

बीजेपी की भूमिका

यहां मिले ज़्यादातर लोग बीजेपी के स्थानीय नेता गजेंद्र सिंह का नाम लेते हैं. सिंह मुडंका वार्ड नंबर 39 से निगम पार्षद के उम्मीदवार रह चुके हैं और वर्तमान में बीजपी के बाहरी दिल्ली के जिला महामंत्री हैं. हम सिंह से मिलने के लिए उनके कार्यालय पहुंचे जो टिकरी बॉर्डर से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर है.

बीजेपी नेता गजेंद्र सिंह

सिंह तब अपने कार्यालय में नहीं थे. वहां हमारी मुलाकात संदीप राणा से हुई. जो 29 जनवरी को किसानों के खिलाफ हुए प्रदर्शन में जाने की बात स्वीकार करते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए राणा कहते हैं, ‘‘हम लोग इनसे परेशान हो चुके हैं. यहां से आने जाने में परेशानी हो रही है. उस रोज करीब दो सौ से ढाई सौ लोग थे. सब आसपास के ही रहने वाले थे. हम लोग एक पत्र लेकर गए थे उनसे कहने कि हमें दिक्कत हो रही है. तो वे हमें मारने लगे. उस दिन मैंने कसम खा ली कि मैं उनके पास नहीं जाऊंगा. उन्होंने हमपर ईंट मारी थी.’’

राणा टिकरी बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे लोगों को किसान मानने से भी इंकार करते नज़र आते हैं. वे कहते हैं, ‘‘हमने पुलिस से भी शिकायत की, लेकिन तोड़फोड़ तो किसान ही कर रहे हैं. एक तो होते हैं किसान और दूसरे होते हैं अपने नाम के आगे किसान लगाकर फिर गंध मचाते हैं. वो किसान तो नहीं रहता है. मैं दो दिन पहले बहादुरगढ़ से आ रहा था तो दो-तीन किलोमीटर पैदल चला आया ये देखने के लिए कि वे क्या कर रहे हैं. वे डांस कर रहे थे. दारू पी रहे थे. आपस में गाली गलौज कर रहे थे. सात बजे के बाद वे खूंखार हो जाते हैं.’’

हम राणा से बातचीत कर रहे थे तभी गजेंद्र सिंह अपने कार्यालय पहुंचे. 29 जनवरी की रैली में अपनी भूमिका को लेकर पूछे गए सवाल पर न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘मेरे पास अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण से जुड़े हुए लोग आए थे. वे लिखित में एक पत्र किसानों को देना चाहते थे. उन्होंने अपने साथ चलने के लिए कहा. 26 जनवरी को जो कुछ हुआ था उससे हमें नाराजगी थी. मैं उनके साथ टिकरी मेट्रो स्टेशन तक गया. मैंने नारे लगाए कि तिरंगे का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान. मैं स्टेज के पास तक नहीं गया था. हम इतने दिनों से शांत बैठे थे लेकिन 26 जनवरी को जो हुआ वो बर्दाश्त से बाहर है.’’

गजेंद्र सिंह आंदोलन कर रहे किसानों को लेकर बताते हैं, ‘‘इन लोगों ने आसपास के लोगों को परेशान कर रखा है. आर भारत ( रिपब्लिक भारत ) पर आपने देखा बाबा हरिदास कॉलोनी की महिलाओं ने बताया है कि शाम को ये लोग शराब पीकर कॉलोनी में घुस आते हैं. अपशब्द बोलते हैं. बाबा हरिदास मेरे वार्ड में आता है तो मैं तो वहां जाऊंगा न लोगों से पूछने की कोई परेशानी तो नहीं है. रोड बंद होने से लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. टिकरी गांव में किसी को दिक्क्त होती है तो उन्हें नागलोई जाने में दो घंटा लगेगा और बहादुरगढ़ जाने में पांच मिनट. कई अस्पताल है वहां पर. सारे रास्ते इन्होंने बंद कर रखे हैं. शराब पीकर डांस करते हैं. अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं. आप उनको किसान कहोगे. हरियाणा से जो भी लोग आए हैं वे सभी कांग्रेसी हैं.’’

सिंह कहते हैं, ‘‘किसानों को मोदी जी पर भरोसा करना चाहिए और वापस लौट जाना चाहिए. वे देश को बहुत आगे ले जाना चाहते हैं. इन्हें रोकने की कोशिश विपक्ष के लोग कर रहे हैं. हमारे भोले भाले किसान उनके बहकावे में आ रहे हैं.

अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण

अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण की 29 जनवरी को टिकरी बॉर्डर पर किसानों के विरोध में पहुंचे लोगों में बड़ी भूमिका थी. इस संस्थान ने एक पत्र किसानों को दिया है जिसका विषय है किसान आंदोलन से स्थानीय निवासियों और यात्रियों को हो रही असुविधाओं हेतु अनुरोध पत्र.

इस पत्र में इस संस्थान ने लिखा, ''पीड़ा के संबंध में आंदोलन करना और सरकारों का विरोध करना नागरिकों का अधिकार है. परन्तु अन्य नागरिकों की सुविधाओं और सुगम आगमन को बाधित करना उचित नहीं. हम आंदोलनकर्ता भी कहीं न कहीं किसानों से जुड़े हुए हैं. इस आंदोलन में किसी न किसी प्रकार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आप संघर्षरत साथियों के समर्थन में हैं. परन्तु स्थानीय निवासियों को हो रही आर्थिक हानि भी कहीं ना कहीं किसान और मज़दूर वर्ग की ही है. अतः आपसे निवेदन है कि मार्ग को अवरुद्ध करने से परहेज करते हुए अपना आंदोलन करें.’’

इस पत्र में आगे 26 जनवरी को जो कुछ हुआ उसे कलंक बताते हुए इसकी जिम्मेदारी किसानों को लेने की सलाह दी गई है.

अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण का मुख्यालय लाजपत नगर में है. इस संस्थान द्वारा की गई गुजारिश को लेकर जब हमने आंदोलन कर रहे किसानों से बात की तो उनका कहना था कि हमने रास्ता बंद कहां किया है. गाड़ियां आने जाने का रास्ता तो छोड़ा ही हुआ है. सरकार मज़बूत बैरिकेड बनाकर, कील लगाकर रास्ते को रोक रही है. यह मांग सरकार से होनी चाहिए थी ना कि किसानों से.

इस संस्थान से जुड़े और किसानों को आवदेन देने वाले नित्यानंद राय न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘किसान और जवान तो सब अपने ही हैं. हम लोग सिर्फ उनसे गुजारिश करने गए थे कि आप बस रास्ता खाली कर दें. हमारी तो उनसे कोई लड़ाई नहीं हुई. हमारे साथ बीजेपी का कोई नहीं था. हम बीएस स्वतंत्र सेनानी के परिवार के लोग थे.’’

टिकरी बॉर्डर से तीन किलोमीटर दूर लाडपुर के रहने वाले 70 वर्षीय राज सिंह डबास न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘हमारी तरफ से जो लोग थे उन्हें हमने कुछ नहीं करने दिया. उस तरफ से कुछ लोग हंगामा कर रहे थे. हमने उन्हें हाथ जोड़े रखा है. हम भी किसान हैं. हमें तीनों कानून ठीक लग रहे हैं. हालांकि हम भी चाहते थे कि सरकार एमएसपी को लेकर कुछ करे लेकिन सड़कों पर हंगामा करना जायज नहीं है ना. 26 जनवरी को जो कुछ हुआ इसके लिए हमने इन्हें चेता रखा था लेकिन ये लोग नहीं माने और वही हुआ जो हमने सोचा था.’’

पुलिस द्वारा रास्ता ब्लॉक करने के सवाल पर सिंह कहते हैं, ‘’पुलिस एक बार देख चुकी है कि सुरक्षा कमजोर रखने पर क्या हुआ. जनता की सुरक्षा करना पुलिस का काम होता है. ऐसे में पुलिस जो कर रही है गलत नहीं है.’’

बीजेपी नेता गजेंद्र सिंह से मिलने को लेकर राज सिंह डबास और नित्यानंद राय दोनों इंकार करते हैं वहीं दूसरी तरफ गजेंद्र सिंह दावा करते हैं कि ये लोग उनके पास आए थे और साथ चलने के लिए कहा था. डबास उस भीड़ में किसी के भी बीजेपी से भी होने से इंकार करते हैं लेकिन खुद बीजेपी के लोग न्यूजलॉन्ड्री से स्वीकार करते हैं कि वे वहां गए थे. स्टेज के पास दुकान चलाने वाले ज़्यादातर दुकानदार भी यहीं बताते हैं कि उस रोज विरोध करने जो लोग पहुंचे थे उसमें से ज़्यादातर बीजेपी के लोग थे.

Also Read: किसान और सबसे लायक बेटे के कारनामें

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सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर बीते दिनों खुद को स्थानीय निवासी बताते हुए कुछ लोग, प्रदर्शनकारी किसानों के पास पहुंचे और प्रदर्शन खत्म कर सड़क खाली करने के लिए कहने लगे. इस दौरान उन लोगों और प्रदर्शनकारी किसानों के बीच झड़प भी हुई. यही नहीं इन लोगों ने प्रदर्शनकारी किसानों के साथ मारपीट भी की. हैरानी की बात है कि यह सब पुलिस की मौजूदगी में हुआ.

किसानों के खिलाफ प्रदर्शन करने पहुंचें लोगों का कहना था कि दो महीने से सड़क बंद कर रखी है. हमें आने जाने में परेशानी होती है. ये किसान नहीं हैं. कुछ कांग्रेसी हैं और कुछ खालिस्तानी. असली किसान इनमें से एक भी नहीं है. इन्हें यहां से हटाया जाना चाहिए. इन्होंने तिरंगे का अपमान किया है ये किसान हो ही नहीं सकते.

टिकरी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के सबसे करीब जो कॉलोनी है उसका नाम बाबा हरिदासपुर है. यह कच्ची कॉलोनी है. पुलिस द्वारा रोड बैरिकेड करने के बाद इसी कॉलोनी से होकर प्रदर्शन स्थल तक जाना होता है. इस गली में आंदोलन करने वाले किसान खरीदारी करते नजर आते हैं. बाबा हरिदासपुर में रहने और दुकान चलाने वालों की माने तो उन्हें किसानों से कोई खास परेशानी है.

किसानों से हमें कोई परेशानी नहीं

हरियाणा के रोहतक जिले के रहने वाले विजय सिंघल अब टिकरी बॉर्डर पर रहते हैं और यहीं पर मोटर पार्ट्स की दुकान चलाते हैं. हमने जब उनसे जानने की कोशिश की कि किसानों के आंदोलन से आपको क्या परेशानी है तो उन्होंने कहा, ‘‘हमें कोई परेशानी नहीं हो रही है. उनकी मांगे वाजिब हैं, उसे सरकार पूरा करे तो वे चले जाएंगे. सरकार को इनकी बातों को सुनना चाहिए. किसानों के आंदोलन से आने जाने की परेशानी तो है. जो रास्ते बंद हैं वो तो पुलिस की तरफ से हैं. किसानों ने तो खोल रखा है.’’

टिकरी बॉर्डर पर पुलिस के इंतजाम

विजय सिंघल के बगल में खड़े एक दूसरे दुकानदार कहते हैं, ‘‘ये लोग किसी से मारपीट नहीं करते हैं. आप देखिए वे आराम से आ-जा रहे हैं. खरीदारी कर रहे हैं. आखिर हम इन्हें क्यों बदनाम करें कि इनसे हमें परेशानी है. आने जाने की परेशानी तो है लेकिन हम लोग अपने काम के लिए जैसे तैसे चले जाते हैं.’’

टिकरी बॉर्डर पर हीरा मार्केट के साथ किराने की दुकान चलाने वाले लाला मान किसानों से परेशानी के सवाल पर कहते हैं, ‘‘हमें तो कोई परेशानी नहीं है. थोड़ा ग्राहक कम हो रहे हैं बाकी किसानों की तरफ से हमें कोई परेशानी नहीं है. वे आते हैं, समान लेते हैं और पैसे दे जाते हैं. हम चाहते हैं कि दंगा न हो. कोई रास्ता निकले जिससे किसान भी राजी हो जाएं और सरकार भी. सरकार को इसका समाधान करना चाहिए. झगड़ा नहीं चाहिए. आपस में मिलाप से यह काम निपटना चाहिए.’’

श्री भगवान

यहां हमारी मुलाकात हरिनकुंड गांव के रहने वाले बुजुर्ग श्री भगवान से हुई. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए श्री भगवान कहते हैं, ‘‘किसान से ज़्यादा पुलिस की वजह से परेशानी हो रही है. पुलिस ने जगह-जगह बंद कर रखा है जिससे भारी तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है. पुलिस ने हर रास्ते हमारे ब्लॉक कर दिए हैं. पुलिस वाले ज़्यादा परेशान करते हैं. किसान जिस बात को नहीं चाहते उन पर उसे जबरदस्ती क्यों थोपा जा रहा है. यह अच्छी बात नहीं है. किसान लोग कोई अभद्र व्यवहार नहीं कर रहे हैं. सरकार बीच सड़क पर दिवार बनाने के लिए नाजायज पैसा खर्च कर रही है. ये पैसा गरीबों में दिया जाए. उनकी मदद की जाए और रास्ते को खोल दिया जाए.’’

ज़्यादातर स्थानीय निवासी पुलिस पर ही परेशानी बढ़ाने का आरोप लगाते है. टिकरी बॉर्डर पर सुरक्षा के सख्त इंतज़ाम किए हैं. सड़कों पर मोटे-मोटे पत्थरों को जोड़कर उसमें सीमेंट डालकर दिवार बनाई जा रही है. सड़कों पर कील लगाई जा रही है. पहले पैदल लोग मुख्य मार्ग से होकर किसानों के प्रदर्शन तक जा सकते थे लेकिन अब उसे भी ब्लॉक कर दिया गया है. दूसरी तरफ टिकरी बॉर्डर मेट्रो स्टेशन के पास जहां पुलिस ने पहला बैरिकेड लगाया है वहां से किसी को भी अंदर नहीं जाने दिया जा रहा है. पत्रकारों को भी आईकार्ड दिखाने पर ही अंदर जाने दिया जाता है.

संदीप कुमार

यहां हमारी मुलाकात टिकरी गांव के रहने वाले संदीप कुमार से हुई. वह कहते हैं, ‘‘किसान आंदोलन से यहां किसी को व्यक्तिगत दिक्कत नहीं है. सबके अपने काम धंधे हैं, थोड़ी बहुत परेशानी तो होती है, लेकिन ये जो किसान बैठे हैं इनकी मांगे भी पूरी होनी चाहिए. हम तो सरकार से यही अनुरोध करते हैं कि जल्दी से जल्दी इनकी मांगे माने ताकि जल्दी से जल्दी सबकुछ पहले की तरह चलने लगे. यहां लोगों को थोड़ी बहुत परेशानी हो रही है, लेकिन सोचना चाहिए कि ये परेशानी क्यों है. सरकार का काम ये थोड़ी है कि रोड के अंदर गढ्ढे खोद दो और उसके अंदर कील लगा दो. किसान अनाज बो रहे हैं और ये कील बो रहे हैं. किसानों की मांग तो जायज है. ये देश के लोग हैं, बाहर के तो है नहीं.’’

बाबा हरिदास कॉलोनी में हमारी मुलाकात मोबाइल दुकान चलाने वाले अनिल कुमार से हुई. आसपास के दुकानदारों ने बताया कि अनिल कुमार उस रोज किसानों के खिलाफ हुए प्रदर्शन में गए थे हालांकि वे इससे इंकार करते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कुमार कहते हैं, ‘‘इन किसानों से कोई प्रॉब्लम है नहीं लेकिन दुकानदारी धीमी चल रही है. कच्ची कॉलोनी से पहले जितने लोग हमारे यहां आते थे वे नहीं आ पा रहे हैं. उनके आने जाने में परेशानी हो रही है. इधर पुलिस ने रोक रखा है और इधर किसान भाइयों ने रोक रखा है. काम धाम तो एकदम नहीं चल रहा है.’’

बीते दिनों कुछ लोग किसानों को हटाने की मांग करते हुए गए थे. क्या आप भी गए थे. इस सवाल पर अनिल कहते हैं, ‘‘नहीं मैं नहीं गया था, लेकिन कुछ लोग गए थे. किसान अपने हक़ के लिए लड़ रहे हैं और हम लोग अपने हक़ के लिए. हमें भी आगे देखना है. किसानों की मांग को सरकार माने और सरकार जो कह रही है कि ये किसान माने. ऐसे थोड़ी इन्हें हटाया जा सकता है.’’

स्थानीय लोगों को परेशानी नहीं तो फिर कौन लोग गए थे टिकरी?

29 जनवरी को एक भीड़ जिसमें करीब 200 लोग थे टिकरी बॉर्डर पर बने किसानों के मंच के पास पहुंच गए. वहां किसानों के खिलाफ नारे लगाए और उन्हें वहां से जाने के लिए कहा गया. उस वक़्त स्टेज के पास मौजूद रहे लुधियाना के रहने वाले किसान दिलजीत सिंह कहते हैं, ‘‘जो लोग आए थे वे बीजेपी के ही थे. उनके जाने के बाद हमें यहां के कई लोगों ने बताया. वे लोग हमारे खिलाफ नारे लगा रहे थे और यहां से चले जाने के लिए कह रहे थे. यहां के लोकल लोगों के साथ तो हमारा एक रिश्ता बन गया है. वे हमारी हर तरह की मदद करते हैं. कुछ लोग हमारे यहां आकर लंगर भी खाते हैं. यहां के कई लोगों ने आकर हमें अपना समर्थन भी दिया है. सरकार के जो लोग हैं उन्हें ही परेशानी होगी. हमारे लोग किसी भी एक शख्स को परेशान किए हों तो कोई बताये. ऐसा हुआ ही नहीं.’’

जब हमने दुकानदारों और स्थानीय निवासियों से यह जानने की कोशिश की कि जो लोग उस रोज प्रदर्शन करने के लिए आए थे वे कौन थे. इस सवाल के जवाब पर कुछ लोग खुलकर तो कुछ लोग दबी जुबान बीजेपी से जुड़े हुए लोगों का नाम लेते हैं.

टिकरी बॉर्डर पर लगाई गईं कीलें

टिकरी गांव के रहने वाले संदीप किसानों के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों को लेकर पूछे गए सवाल पर कहते हैं, ‘‘जी हमें पता चला था कि कुछ लोग किसानों के खिलाफ प्रदर्शन करने गए थे. उन्होंने खुद को टिकरी गांव का बताया था जबकि हमें पता है कि वहां का कोई भी बंदा नहीं था. ये समझो कि जो भी वहां गया था सब राजनीति से प्रेरित बंदे थे. लोकल तो वहां कोई भी नहीं था. लोकल तो किसानों को अपना सपोर्ट दे रहे हैं. जब यहां इंटरनेट बंद है सबने अपने वाईफाई को फ्री कर रखा है. राशन, पानी या सिलेंडर किसी भी चीज की ज़रूरत पड़ती है तो वे किसानों को मुहैया करा रहे हैं.’’

टिकरी बॉर्डर के पास दुकान चलाने वाले 30 वर्षीय सुरेंद्र सिंह प्रदर्शन करने पहुंचें लोगों के सवाल पर कहते हैं, ‘‘हमें तो इन किसानों से कोई परेशानी नहीं है. बेचारे ठंड में सड़क पर सो रहे हैं. जहां तक रास्ता ब्लॉक करने की बात है वो तो पुलिस कर रही है. ये लोग तो आने-जाने का रास्ता छोड़कर बैठे हैं. किसान कभी-कभार खरीदारी करने आते हैं तो पैसे देकर जाते हैं. कभी किसी से झगड़ा नहीं करते तो हम क्यों इन्हें बुरा कहें. दो-तीन दिन पहले बीजेपी के कुछ लोग आए थे, उन्होंने कुछ दुकानदारों को साथ चलने के लिए कहा, बोला कि चलो इनको उठाते हैं. जो भी बीजेपी के लोग थे वे उसके साथ गए थे.’’

बीजेपी की भूमिका

यहां मिले ज़्यादातर लोग बीजेपी के स्थानीय नेता गजेंद्र सिंह का नाम लेते हैं. सिंह मुडंका वार्ड नंबर 39 से निगम पार्षद के उम्मीदवार रह चुके हैं और वर्तमान में बीजपी के बाहरी दिल्ली के जिला महामंत्री हैं. हम सिंह से मिलने के लिए उनके कार्यालय पहुंचे जो टिकरी बॉर्डर से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर है.

बीजेपी नेता गजेंद्र सिंह

सिंह तब अपने कार्यालय में नहीं थे. वहां हमारी मुलाकात संदीप राणा से हुई. जो 29 जनवरी को किसानों के खिलाफ हुए प्रदर्शन में जाने की बात स्वीकार करते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए राणा कहते हैं, ‘‘हम लोग इनसे परेशान हो चुके हैं. यहां से आने जाने में परेशानी हो रही है. उस रोज करीब दो सौ से ढाई सौ लोग थे. सब आसपास के ही रहने वाले थे. हम लोग एक पत्र लेकर गए थे उनसे कहने कि हमें दिक्कत हो रही है. तो वे हमें मारने लगे. उस दिन मैंने कसम खा ली कि मैं उनके पास नहीं जाऊंगा. उन्होंने हमपर ईंट मारी थी.’’

राणा टिकरी बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे लोगों को किसान मानने से भी इंकार करते नज़र आते हैं. वे कहते हैं, ‘‘हमने पुलिस से भी शिकायत की, लेकिन तोड़फोड़ तो किसान ही कर रहे हैं. एक तो होते हैं किसान और दूसरे होते हैं अपने नाम के आगे किसान लगाकर फिर गंध मचाते हैं. वो किसान तो नहीं रहता है. मैं दो दिन पहले बहादुरगढ़ से आ रहा था तो दो-तीन किलोमीटर पैदल चला आया ये देखने के लिए कि वे क्या कर रहे हैं. वे डांस कर रहे थे. दारू पी रहे थे. आपस में गाली गलौज कर रहे थे. सात बजे के बाद वे खूंखार हो जाते हैं.’’

हम राणा से बातचीत कर रहे थे तभी गजेंद्र सिंह अपने कार्यालय पहुंचे. 29 जनवरी की रैली में अपनी भूमिका को लेकर पूछे गए सवाल पर न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘मेरे पास अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण से जुड़े हुए लोग आए थे. वे लिखित में एक पत्र किसानों को देना चाहते थे. उन्होंने अपने साथ चलने के लिए कहा. 26 जनवरी को जो कुछ हुआ था उससे हमें नाराजगी थी. मैं उनके साथ टिकरी मेट्रो स्टेशन तक गया. मैंने नारे लगाए कि तिरंगे का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान. मैं स्टेज के पास तक नहीं गया था. हम इतने दिनों से शांत बैठे थे लेकिन 26 जनवरी को जो हुआ वो बर्दाश्त से बाहर है.’’

गजेंद्र सिंह आंदोलन कर रहे किसानों को लेकर बताते हैं, ‘‘इन लोगों ने आसपास के लोगों को परेशान कर रखा है. आर भारत ( रिपब्लिक भारत ) पर आपने देखा बाबा हरिदास कॉलोनी की महिलाओं ने बताया है कि शाम को ये लोग शराब पीकर कॉलोनी में घुस आते हैं. अपशब्द बोलते हैं. बाबा हरिदास मेरे वार्ड में आता है तो मैं तो वहां जाऊंगा न लोगों से पूछने की कोई परेशानी तो नहीं है. रोड बंद होने से लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. टिकरी गांव में किसी को दिक्क्त होती है तो उन्हें नागलोई जाने में दो घंटा लगेगा और बहादुरगढ़ जाने में पांच मिनट. कई अस्पताल है वहां पर. सारे रास्ते इन्होंने बंद कर रखे हैं. शराब पीकर डांस करते हैं. अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं. आप उनको किसान कहोगे. हरियाणा से जो भी लोग आए हैं वे सभी कांग्रेसी हैं.’’

सिंह कहते हैं, ‘‘किसानों को मोदी जी पर भरोसा करना चाहिए और वापस लौट जाना चाहिए. वे देश को बहुत आगे ले जाना चाहते हैं. इन्हें रोकने की कोशिश विपक्ष के लोग कर रहे हैं. हमारे भोले भाले किसान उनके बहकावे में आ रहे हैं.

अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण

अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण की 29 जनवरी को टिकरी बॉर्डर पर किसानों के विरोध में पहुंचे लोगों में बड़ी भूमिका थी. इस संस्थान ने एक पत्र किसानों को दिया है जिसका विषय है किसान आंदोलन से स्थानीय निवासियों और यात्रियों को हो रही असुविधाओं हेतु अनुरोध पत्र.

इस पत्र में इस संस्थान ने लिखा, ''पीड़ा के संबंध में आंदोलन करना और सरकारों का विरोध करना नागरिकों का अधिकार है. परन्तु अन्य नागरिकों की सुविधाओं और सुगम आगमन को बाधित करना उचित नहीं. हम आंदोलनकर्ता भी कहीं न कहीं किसानों से जुड़े हुए हैं. इस आंदोलन में किसी न किसी प्रकार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आप संघर्षरत साथियों के समर्थन में हैं. परन्तु स्थानीय निवासियों को हो रही आर्थिक हानि भी कहीं ना कहीं किसान और मज़दूर वर्ग की ही है. अतः आपसे निवेदन है कि मार्ग को अवरुद्ध करने से परहेज करते हुए अपना आंदोलन करें.’’

इस पत्र में आगे 26 जनवरी को जो कुछ हुआ उसे कलंक बताते हुए इसकी जिम्मेदारी किसानों को लेने की सलाह दी गई है.

अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार कल्याण का मुख्यालय लाजपत नगर में है. इस संस्थान द्वारा की गई गुजारिश को लेकर जब हमने आंदोलन कर रहे किसानों से बात की तो उनका कहना था कि हमने रास्ता बंद कहां किया है. गाड़ियां आने जाने का रास्ता तो छोड़ा ही हुआ है. सरकार मज़बूत बैरिकेड बनाकर, कील लगाकर रास्ते को रोक रही है. यह मांग सरकार से होनी चाहिए थी ना कि किसानों से.

इस संस्थान से जुड़े और किसानों को आवदेन देने वाले नित्यानंद राय न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘किसान और जवान तो सब अपने ही हैं. हम लोग सिर्फ उनसे गुजारिश करने गए थे कि आप बस रास्ता खाली कर दें. हमारी तो उनसे कोई लड़ाई नहीं हुई. हमारे साथ बीजेपी का कोई नहीं था. हम बीएस स्वतंत्र सेनानी के परिवार के लोग थे.’’

टिकरी बॉर्डर से तीन किलोमीटर दूर लाडपुर के रहने वाले 70 वर्षीय राज सिंह डबास न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘हमारी तरफ से जो लोग थे उन्हें हमने कुछ नहीं करने दिया. उस तरफ से कुछ लोग हंगामा कर रहे थे. हमने उन्हें हाथ जोड़े रखा है. हम भी किसान हैं. हमें तीनों कानून ठीक लग रहे हैं. हालांकि हम भी चाहते थे कि सरकार एमएसपी को लेकर कुछ करे लेकिन सड़कों पर हंगामा करना जायज नहीं है ना. 26 जनवरी को जो कुछ हुआ इसके लिए हमने इन्हें चेता रखा था लेकिन ये लोग नहीं माने और वही हुआ जो हमने सोचा था.’’

पुलिस द्वारा रास्ता ब्लॉक करने के सवाल पर सिंह कहते हैं, ‘’पुलिस एक बार देख चुकी है कि सुरक्षा कमजोर रखने पर क्या हुआ. जनता की सुरक्षा करना पुलिस का काम होता है. ऐसे में पुलिस जो कर रही है गलत नहीं है.’’

बीजेपी नेता गजेंद्र सिंह से मिलने को लेकर राज सिंह डबास और नित्यानंद राय दोनों इंकार करते हैं वहीं दूसरी तरफ गजेंद्र सिंह दावा करते हैं कि ये लोग उनके पास आए थे और साथ चलने के लिए कहा था. डबास उस भीड़ में किसी के भी बीजेपी से भी होने से इंकार करते हैं लेकिन खुद बीजेपी के लोग न्यूजलॉन्ड्री से स्वीकार करते हैं कि वे वहां गए थे. स्टेज के पास दुकान चलाने वाले ज़्यादातर दुकानदार भी यहीं बताते हैं कि उस रोज विरोध करने जो लोग पहुंचे थे उसमें से ज़्यादातर बीजेपी के लोग थे.

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