Newslaundry Hindi
एनएल चर्चा 152: किसान आंदोलन को खत्म करने की कोशिशें और 6 पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह का केस
एनएल चर्चा का 152वां एपिसोड कई घटनाओं पर केंद्रित रहा. 26 जनवरी के दिन ट्रैक्टर परेड के दौरान लाल किले पर फहराए गए झंडे, पुलिस और किसानों में झड़प, गाजीपुर बार्डर पर आंदोलन को खत्म करने की कोशिश, मुज़फ़्फरनगर में राकेश टिकैत के समर्थन में हुई महापंचायत और राजदीप सरदेसाई पर गलत रिपोर्टिंग को लेकर चैनल द्वारा लगाई गई पाबंदिया इस चर्चा के केंद्र में रहीं.
इस बार चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार सबा नक़वी, न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और सह संपादक शार्दूल कात्यायन शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा, “आज से 10 साल पहले अन्ना आंदोलन शुरू हुआ था, उस समय स्वामी अग्निवेश का एक वीडियो सामने आया था जिसमें उन्होंने कहा कि यह आंदोलन अब एक पागल हाथी हो गया है. यह बातचीत उन्होंने कपिल सिब्बल से की थी जो कि उस समय केंद्र सरकार के मंत्री थे. किसान आंदोलन को उस घटना से जोड़ते हुए देखे तो पूरी तस्वीर सामने आएगी. कुछ बेकाबू, अराजक लोग जो लाल किले पर चढ़ गए और जिन लोगों ने उपद्रव मचाया, क्या सिर्फ उनकी वजह से दो महीने से चल रहे किसान आंदोलन को खारिज किया जा सकता है?
इस पर सबा कहती हैं, “आप ने अन्ना आंदोलन की बात की जो एक पावरफुल आंदोलन था. हालांकि वह आंदोलन शहरी आंदोलन था जिसमें मीडिया ने लाइव कवरेज किया. लेकिन अगर आप किसान आंदोलन को देखे तो यह संख्या के मामले में उससे कई गुना बड़ा है, लेकिन यह शहरी लोगों का आंदोलन नहीं है, इसलिए इसकी कवरेज कम है. दूसरी बात हमें इस आंदोलन में जाति, धर्म के पहलुओं को भी देखना होगा. यह पंजाब से शुरू हुआ जो हरियाणा, यूपी के पश्चिमी इलाके में अपनी पैठ जमा चुका है. इसका एक गहरा राजनीतिक संदेश भी है. राकेश टिकैत के साथ जो हुआ उसके बाद जाट नेता कह रहे हैं कि यह जाटों का अपमान हैं. इसके लिए बीजेपी जिम्मेदार है. राकेश टिकैट के आंसू वाले वीडियो ने इस आंदोलन को मजबूती दी है.”
अतुल यहां पर मेघनाथ और शार्दूल को चर्चा में शामिल करते हुए कहते हैं कि, “आंदोलन में शामिल लोग बहुत पढ़े-लिखे नहीं है, हम ऐसे लोगों से यह अपेक्षा कर रहे हैं यह लोग पूरी तरह से सेक्यूलर हो. लाल किले पर सिर्फ तिरंगा फहराएं, किसी धर्म का झंडा ना फहराएं. वहीं दूसरी तरफ सरकार है जिसने संविधान और सेकुलरिज्म की शपथ ले रखी है उसने गणतंत्र दिवस की परेड में ज्यादातर राज्यों की झांकियां मंदिर की थीम पर रखीं. देश के मुखिया कभी राम मंदिर तो कभी संसद के शिनाल्यास में धर्मिक कर्मकांड का उपयोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए करते दिखते हैं. दूसरी तरफ आम, साधारण किसानों से ये उम्मीद करते हैं कि वह पूरी तरह से सेक्यूलर रहे, ऐसा मुमकिन हैं क्या?”
इस प्रश्न का जवाब देते हुए मेघनाथ कहते हैं, “द ट्रिब्यून की रिपोर्ट कहती हैं कि दीप सिंधू ने किसानों को भड़काया था कि हमें लाल किले पर जाना है. इसमें आंदोलन कर रहे किसानों का कोई हाथ नहीं था. रही बात झंडा फहराने की तो वहां पहले से ही भारत का झंडा था और उसे किसी ने हटाया नहीं. उसके आस पास जरूर लोगों ने अपना झंडा फहराया है. उसमें मुझे कोई दिक्कत नजर नहीं आती है.” इसके बाद मेंघनाद मज़ाक करते हुए कहते हैं, “लाल किला तो वैसे भी अब डालमिया ग्रुप का है. इसे सरकार ने उनके हवाले कर दिया है. जो टिकट बेच कर उससे मिलने वाले पैसा का उपयोग लाल किले के मेंटेनेंस के लिए करते है.”
इस प्रश्न पर शार्दूल कहते हैं, “इस पूरे मामले में कई पहलू है. किसान कैसे लाल किले पहुंचे, आंदोलन का उद्देश्य. मान लीजिए अभी कांग्रेस की सरकार होती और उस समय कोई भगवा झंडा अगर लाल किले पर फहरा देता या हरा झंडा तो हमारी क्या प्रतिक्रिया होती. इसलिए कोई भी इसे जस्टिफाई नहीं कर सकता. अब आंदोलन किसान बिल पर कम राजनीतिक ज्यादा हो गया है, जैसा सबा ने भी कहा. मुझे लगता हैं कि गाजीपुर बार्डर पर राकेश टिकैत के रोने वाले वीडियो ने आंदोलन को वहां से उठने से बचा लिया.”
इस विषय के तमाम और पहलुओं पर भी पैनल ने अपनी राय विस्तार से रखी. इस बार की चर्चा आम दिनों के मुकाबले काफी लंबी रही. क्योंकि बहुत से महत्वपूर्ण विषय इस बार चर्चा में शामिल रहे. इसे पूरा सुनने के लिए हमारा पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
टाइम कोड
1:26 - हेडलाइन
6:50 - किसान ट्रैक्टर रैली
40:26 - संसद सत्र
48:26 - यूपी की कानून व्यवस्था
1:00:15 - पत्रकारो के खिलाफ भारत में बढ़ती हिंसा
1:23:27 - सलाह और सुझाव
क्या देखा पढ़ा और सुना जाए.
सबा नकवी
कॉल माय एजेंट- नेटफ्लिक्स सीरीज
मेघनाथ
किसान आंदोलन पर द ट्रिब्यून की रिपोर्ट
इंडिया टुडे के अन्य एंकरों पर कार्रवाई कब - आयुष तिवारी की रिपोर्ट
शार्दूल कात्यायन
न्यूज़लॉन्ड्री की लव जिहाद सीरीज
विवेक कौल का बजट पर लिखा गया लेख
यूपी में हुए एनकाउंटर पर नेहा दीक्षित की रिपोर्ट
अतुल चौरसिया
भालचंद्र नेमाडे की किताब - ‘हिंदूः जीने का समृद्ध कबाड़'
***
प्रोड्यूसर- जूड वेटसन
रिकॉर्डिंग - अनिल कुमार
एडिटिंग - सतीश कुमार
ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह.
एनएल चर्चा का 152वां एपिसोड कई घटनाओं पर केंद्रित रहा. 26 जनवरी के दिन ट्रैक्टर परेड के दौरान लाल किले पर फहराए गए झंडे, पुलिस और किसानों में झड़प, गाजीपुर बार्डर पर आंदोलन को खत्म करने की कोशिश, मुज़फ़्फरनगर में राकेश टिकैत के समर्थन में हुई महापंचायत और राजदीप सरदेसाई पर गलत रिपोर्टिंग को लेकर चैनल द्वारा लगाई गई पाबंदिया इस चर्चा के केंद्र में रहीं.
इस बार चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार सबा नक़वी, न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और सह संपादक शार्दूल कात्यायन शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा, “आज से 10 साल पहले अन्ना आंदोलन शुरू हुआ था, उस समय स्वामी अग्निवेश का एक वीडियो सामने आया था जिसमें उन्होंने कहा कि यह आंदोलन अब एक पागल हाथी हो गया है. यह बातचीत उन्होंने कपिल सिब्बल से की थी जो कि उस समय केंद्र सरकार के मंत्री थे. किसान आंदोलन को उस घटना से जोड़ते हुए देखे तो पूरी तस्वीर सामने आएगी. कुछ बेकाबू, अराजक लोग जो लाल किले पर चढ़ गए और जिन लोगों ने उपद्रव मचाया, क्या सिर्फ उनकी वजह से दो महीने से चल रहे किसान आंदोलन को खारिज किया जा सकता है?
इस पर सबा कहती हैं, “आप ने अन्ना आंदोलन की बात की जो एक पावरफुल आंदोलन था. हालांकि वह आंदोलन शहरी आंदोलन था जिसमें मीडिया ने लाइव कवरेज किया. लेकिन अगर आप किसान आंदोलन को देखे तो यह संख्या के मामले में उससे कई गुना बड़ा है, लेकिन यह शहरी लोगों का आंदोलन नहीं है, इसलिए इसकी कवरेज कम है. दूसरी बात हमें इस आंदोलन में जाति, धर्म के पहलुओं को भी देखना होगा. यह पंजाब से शुरू हुआ जो हरियाणा, यूपी के पश्चिमी इलाके में अपनी पैठ जमा चुका है. इसका एक गहरा राजनीतिक संदेश भी है. राकेश टिकैत के साथ जो हुआ उसके बाद जाट नेता कह रहे हैं कि यह जाटों का अपमान हैं. इसके लिए बीजेपी जिम्मेदार है. राकेश टिकैट के आंसू वाले वीडियो ने इस आंदोलन को मजबूती दी है.”
अतुल यहां पर मेघनाथ और शार्दूल को चर्चा में शामिल करते हुए कहते हैं कि, “आंदोलन में शामिल लोग बहुत पढ़े-लिखे नहीं है, हम ऐसे लोगों से यह अपेक्षा कर रहे हैं यह लोग पूरी तरह से सेक्यूलर हो. लाल किले पर सिर्फ तिरंगा फहराएं, किसी धर्म का झंडा ना फहराएं. वहीं दूसरी तरफ सरकार है जिसने संविधान और सेकुलरिज्म की शपथ ले रखी है उसने गणतंत्र दिवस की परेड में ज्यादातर राज्यों की झांकियां मंदिर की थीम पर रखीं. देश के मुखिया कभी राम मंदिर तो कभी संसद के शिनाल्यास में धर्मिक कर्मकांड का उपयोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए करते दिखते हैं. दूसरी तरफ आम, साधारण किसानों से ये उम्मीद करते हैं कि वह पूरी तरह से सेक्यूलर रहे, ऐसा मुमकिन हैं क्या?”
इस प्रश्न का जवाब देते हुए मेघनाथ कहते हैं, “द ट्रिब्यून की रिपोर्ट कहती हैं कि दीप सिंधू ने किसानों को भड़काया था कि हमें लाल किले पर जाना है. इसमें आंदोलन कर रहे किसानों का कोई हाथ नहीं था. रही बात झंडा फहराने की तो वहां पहले से ही भारत का झंडा था और उसे किसी ने हटाया नहीं. उसके आस पास जरूर लोगों ने अपना झंडा फहराया है. उसमें मुझे कोई दिक्कत नजर नहीं आती है.” इसके बाद मेंघनाद मज़ाक करते हुए कहते हैं, “लाल किला तो वैसे भी अब डालमिया ग्रुप का है. इसे सरकार ने उनके हवाले कर दिया है. जो टिकट बेच कर उससे मिलने वाले पैसा का उपयोग लाल किले के मेंटेनेंस के लिए करते है.”
इस प्रश्न पर शार्दूल कहते हैं, “इस पूरे मामले में कई पहलू है. किसान कैसे लाल किले पहुंचे, आंदोलन का उद्देश्य. मान लीजिए अभी कांग्रेस की सरकार होती और उस समय कोई भगवा झंडा अगर लाल किले पर फहरा देता या हरा झंडा तो हमारी क्या प्रतिक्रिया होती. इसलिए कोई भी इसे जस्टिफाई नहीं कर सकता. अब आंदोलन किसान बिल पर कम राजनीतिक ज्यादा हो गया है, जैसा सबा ने भी कहा. मुझे लगता हैं कि गाजीपुर बार्डर पर राकेश टिकैत के रोने वाले वीडियो ने आंदोलन को वहां से उठने से बचा लिया.”
इस विषय के तमाम और पहलुओं पर भी पैनल ने अपनी राय विस्तार से रखी. इस बार की चर्चा आम दिनों के मुकाबले काफी लंबी रही. क्योंकि बहुत से महत्वपूर्ण विषय इस बार चर्चा में शामिल रहे. इसे पूरा सुनने के लिए हमारा पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
टाइम कोड
1:26 - हेडलाइन
6:50 - किसान ट्रैक्टर रैली
40:26 - संसद सत्र
48:26 - यूपी की कानून व्यवस्था
1:00:15 - पत्रकारो के खिलाफ भारत में बढ़ती हिंसा
1:23:27 - सलाह और सुझाव
क्या देखा पढ़ा और सुना जाए.
सबा नकवी
कॉल माय एजेंट- नेटफ्लिक्स सीरीज
मेघनाथ
किसान आंदोलन पर द ट्रिब्यून की रिपोर्ट
इंडिया टुडे के अन्य एंकरों पर कार्रवाई कब - आयुष तिवारी की रिपोर्ट
शार्दूल कात्यायन
न्यूज़लॉन्ड्री की लव जिहाद सीरीज
विवेक कौल का बजट पर लिखा गया लेख
यूपी में हुए एनकाउंटर पर नेहा दीक्षित की रिपोर्ट
अतुल चौरसिया
भालचंद्र नेमाडे की किताब - ‘हिंदूः जीने का समृद्ध कबाड़'
***
प्रोड्यूसर- जूड वेटसन
रिकॉर्डिंग - अनिल कुमार
एडिटिंग - सतीश कुमार
ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह.
Also Read
-
Gujarat’s invisible walls: Muslims pushed out, then left behind
-
Let Me Explain: Banu Mushtaq at Mysuru Dasara and controversy around tradition, identity, politics
-
गुजरात: विकास से वंचित मुस्लिम मोहल्ले, बंटा हुआ भरोसा और बढ़ती खाई
-
September 15, 2025: After weeks of relief, Delhi’s AQI begins to worsen
-
Did Arnab really spare the BJP on India-Pak match after Op Sindoor?