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अर्णबकांड: क्या गोस्वामी को बालाकोट हमले के बारे में पहले से पता था? शायद नहीं

मुंबई पुलिस के द्वारा टीआरपी घोटाले के पूरक आरोपपत्र में जोड़ी गई रिपब्लिक टीवी के अर्णब गोस्वामी और बार्क के पूर्व सीईओ पार्थो दासगुप्ता के बीच हुई तथाकथित व्हाट्सएप बातों ने हम सभी को, नरेंद्र मोदी सरकार के अंदर पैदा हुए सत्ता के खेलों की एक झलक दिखाई है.

इन बातों ने कई लोगों के पुराने संदेह को भी पक्का कर दिया है, कि भारतीय टेलीविजन के समाचार जगत की राष्ट्रभक्ति की नौटंकी अवसरवादी दलालों और बिचौलियों के कंधों पर है, जिनकी इकलौती इच्छा अपनी जेबें गर्म करना और सत्ता के पीछे भागना है.

लेकिन इन खुलासों ने कुछ अधपकी अटकलों को भी जन्म दिया है. इनमें से अभी तक की सबसे प्रचलित अटकल यह है कि गोस्वामी की बातों से यह सिद्ध होता है कि उन्हें फरवरी 2019 में हुए बालाकोट के हवाई हमले की पहले से जानकारी थी, और इसके 6 महीने बाद धारा 370 के हटाए जाने की जानकारी भी संभवत: उन्हें पहले से थी. दूसरे शब्दों में, उन्हें गोपनीय सेना की कार्यवाही और उच्च स्तरीय राजनीतिक निर्णयों की खबर थी, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े बड़े प्रश्न उठते हैं.

यह दावा केवल राजनीतिक दलों और अर्णब के पूर्व चैनल टाइम्स नाउ ने ही नहीं किया, बल्कि स्वतंत्र मीडिया संस्थानों के कई पत्रकारों ने भी किया है.

यह अटकलें ट्विटर पर शुरू हुईं पर जल्द ही समाचार वेबसाइटों पर आकर्षित करने वाली हेड लाइन बनकर दिखने लगी. स्क्रोल ने लिखा, "बालाकोट हमले से 3 दिन पहले, अर्णब गोस्वामी ने व्हाट्सएप चैट पर कहा कि 'कुछ बड़ा होगा." द वायर इसे एक कदम और आगे ले गया और उन्होंने यह रिपोर्ट किया, ऐसा लगा कि अर्णब को "सरकार में उनके उच्च स्तर पर संबंधों के चलते बालाकोट हवाई हमले और धारा 370 को हटाए जाने की पहले से जानकारी थी."

द क्विंट ने यह तर्क दिया कि रिपब्लिक टीवी के संपादक की बातों से प्रतीत होता है कि, "न केवल गोस्वामी की बातों से ऐसा लगता है कि उन्हें पुलवामा हमले के जवाब में सरकार कुछ बड़ा करने वाली है, इसके बारे में पहले से पता था. बल्कि यह भी कि उन्हें धारा 370 को निरस्त किए जाने की भी कुछ जानकारी पहले से थी."

ऑल्ट न्यूज़ के मोहम्मद जुबेर और क्विंट के आदित्य मेनन ने भी ट्विटर पर इसी प्रकार की आशंका व्यक्त की.

इस असाधारण दावे में चार दिक्कतें हैं. पहली कि यह अस्पष्ट और बिना तथ्य पर आधारित नहीं है, दूसरी कि यह संदर्भ से परे है, तीसरी की एक एंकर क्यों एक सेना की गुप्त बात को एक रेटिंग संस्था के अधिकारी को बताएगा और चौथी कि यह इन्हीं बातों से जाहिर हुए गोस्वामी और दासगुप्ता के बीच के समीकरणों को नजरअंदाज करती है.

अर्णब को दोषी ठहराने वाला यह तथाकथित संदेश 23 फरवरी 2019 को रात के 10:31 पर गया था. बालाकोट हवाई हमले से तीन दिन पहले गोस्वामी ने दास गुप्ता को बताया, "इससे अलग, कुछ बड़ा होगा."

स्पष्टीकरण मांगे जाने पर उन्होंने कहा कि यह "साधारण प्रहार से बड़ा होगा" और साथ में यह भी जोड़ा कि, "और इसके साथ एक ही समय पर कश्मीर पर कुछ बड़ा. पाकिस्तान को लेकर सरकार को विश्वास है कि प्रहार कुछ ऐसा करेंगे कि जनता खुश हो जाएगी. इन्हीं शब्दों में कहा था."

इन संदेशों को भेजने से एक दिन पहले अर्णब गोस्वामी ने तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह का रिपब्लिक भारत पर एक साक्षात्कार किया था. राजनाथ सिंह में उसमें एंकर को सीधे प्रसारण में बताया था कि पुलवामा हमले के जवाब में सरकार ने सेना के विकल्प को खारिज नहीं किया है. उन्होंने गोस्वामी के इस सुझाव पर कि पाकिस्तान के अंदर एक सेना की जवाबी कार्यवाही हो सकती है, उन्होंने इस बात से इनकार तक नहीं किया था.

जब राजनाथ सिंह ने कहा कि यह आतंकवाद के खिलाफ "निर्णायक युद्ध" लड़ने का समय है, तो गोस्वामी ने पूछा, "क्या सर्जिकल स्ट्राइक निर्णायक हमला नहीं थी? एक निर्णायक युद्ध?

राजनाथ सिंह ने उत्तर दिया, "हम सर्जिकल स्ट्राइक को पूरी तरह से निर्णायक लड़ाई नहीं मानते. मैंने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक युद्ध लड़ा जाना चाहिए."

गोस्वामी ने फिर जोर देते हुए कहा कि एक निर्णायक युद्ध पाकिस्तान के खिलाफ लड़ा जाना चाहिए और "यह युद्ध पाकिस्तान के अंदर लड़ा जाना चाहिए."

इसके उत्तर में राजनाथ सिंह ने कहा, "इसकी संभावना है कि पाकिस्तान को भी आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिए मजबूर किया जाए. हम इससे इंकार नहीं कर सकते. अगर ऐसा नहीं होता है तो इसके परिणाम होंगे."

एक राष्ट्रीय दैनिक में रक्षा क्षेत्र को कवर करने वाले एक पत्रकार ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि पत्रकार दीर्घा में यह बात आम थी की सरकार के द्वारा विचारणीय विकल्पों में से एक हवाई हमला भी था.

पुलवामा हमले के एक दिन बाद प्रधानमंत्री मोदी के वादे कि उसके जिम्मेदार लोगों को "अपने कृत्यों की बड़ी कीमत चुकानी होगी", को ध्यान में रखते हुए वह पत्रकार बोले, "हम सभी ने लिखा कि कुछ होने वाला है. सरकार ने भी इस तरफ इशारा किया था."

भारत सरकार सेना के विकल्प का इस्तेमाल कर सकती है जिसमें हवाई हमला भी शामिल है, यह एक असाधारण मत नहीं था. उदाहरण के लिए 16 फरवरी को टाइम्स ऑफ इंडिया ने रिपोर्ट की थी कि "सावधानीपूर्वक रचित हवाई हमला" रक्षा तंत्र में एक पसंदीदा विकल्प था.

गोस्वामी जैसे पत्रकार जो सत्ता के गलियारों में पैठ रखते हैं, उनके लिए यह आम बात है कि उन्हें बिना किसी संवेदनशील बातों को बताए हुए भी सेना की एक कार्यवाही के बारे में मोटे तौर पर जानकारी दी गई.

हालांकि रक्षा क्षेत्र के पत्रकार ने यह इंगित किया कि अणर्ब के द्वारा दासगुप्ता को भेजे गए संदेश का समय काफी महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा, "यह बात की उसने इस घटना के तीन दिन पहले यह जानकारी दी, काफी चिंताजनक है."

लेकिन हवाई हमले के बाद भी संदेश भेजे गए हैं. 27 फरवरी को दासगुप्ता गोस्वामी से पूछते हैं, "क्या कल वाला हवाई हमला वही "कुछ बड़ा" था जिसके बारे में तुमने बात की थी? या कुछ और ज्यादा था?"

गोस्वामी ने जवाब दिया: "और भी होगा."

इसका क्या मतलब था यह तो वही जानते हैं. परंतु अगर उनके पास सेना की गुप्त जानकारी थी भी, यह "और भी कुछ होने" की बात सच्ची नहीं साबित हुई. इसके एक हफ्ते बाद पीटीआई ने रिपोर्ट की थी कि 4 मार्च को एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा की गई टिप्पणियों से यह इशारा मिलता है कि हवाई हमला "पड़ोस देश से निकलने वाले आतंकवाद के खिलाफ भारत की अंतिम कार्यवाही नहीं होगी."

असल में देखा जाए तो गोस्वामी की "साधारण हमले से कुछ ज्यादा" वाली बात, उन्हें बालाकोट हमले के बारे में कुछ पता था इसको लेकर बहुत अस्पष्ट लगती है. यह एक तार्किक निष्कर्ष ज़रूर है लेकिन इसे तथ्यों की आवश्यकता है जो मौजूद नहीं हैं.

राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों को कवर करने वाले एक दूसरे पत्रकार इससे सहमत नहीं हैं. वे कहते हैं कि वह "70 प्रतिशत तक विश्वस्त" हैं कि गोस्वामी को सेना के संवेदनशील विषयों की जानकारी थी. हालांकि उन्होंने इस संभावना से इनकार नहीं किया कि कथित एंकर ताकतवर राजनेताओं से संपर्क होने की डींगे मार रहे हों.

वह इंगित करते हैं कि, "बालाकोट हमले से पहले सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी, जिसे एक विवादित क्षेत्र पाक अधिकृत कश्मीर में अंजाम दिया गया था. बालाकोट हमला पाकिस्तानी सीमा के अंदर था. और अर्णब का यह कहना कि यह हमला साधारण से कुछ ज्यादा होगा, यह इस बात का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह एक काफी बड़ी बात है जो किसी के द्वारा बताई ही जा सकती है. भले ही उसके पास सटीक जानकारी न हो, लेकिन साफ तौर पर उसे नियंत्रण रेखा, पाक अधिकृत कश्मीर के पार जाने के नीतिगत निर्णय के बारे में पता था. असली बात यह है."

एनडीटीवी के पूर्व रक्षा संपादक और BharatShakti.in के संस्थापक नितिन गोखले इससे अलग मत रखते हैं. वे पूछते हैं, "क्या उसने यह कहा कि हमला बालाकोट में होगा, या वह इस समय पर किया जाएगा, या इतने हवाई जहाज नियंत्रण रेखा को पार करेंगे? अगर आप मुझे यह दिखा सकें, तब मैं कहूंगा कि हां उसके पास सेना की गुप्त जानकारी थी."

गोखले ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि यह असंभव था कि मोदी सरकार ने सेना की गुप्त जानकारी गोस्वामी तक पहुंचाई हो.

वे तर्क रखते हैं कि, "इस तरह की योजना केवल उन लोगों को पता होती है जो उसको बनाने में और उसके क्रियान्वयन में भाग लेते हैं. यह प्रधानमंत्री कार्यालय या रक्षा मंत्री तक नहीं भेजे जाते. इसको 5 से 10 लोगों, इससे ज्यादा नहीं, के द्वारा बिल्कुल गुप्त रखा जाता है."

गोखले कहते हैं कि अर्णब और पार्थो की बातों को मीडिया कवरेज ने "चीटी का पहाड़ बना दिया है." वे कहते हैं, "कोई भी जिसे इन विषयों की थोड़ी भी जानकारी हो, बिना किसी के बताए यह अनुमान लगा सकता है. अगर आप ने नियंत्रण रेखा के पार, उरी जैसा जमीनी रेड की है, तो जब उरी से ज्यादा जाने गई हो तो आप उससे बड़ा क्या कर सकते हैं? कोई भी अनुभवी पत्रकार या विश्लेषक निष्कर्ष निकाल सकता था."

गोस्वामी से दासगुप्ता की बातों में मसाला, उनकी प्रधानमंत्री कार्यालय में किसी रहस्यमई "एएस" के साथ हुई बैठक के हवाले से लगाया जा रहा है. लेकिन उन्हें दासगुप्ता से उनके संबंधों के आइने में देखना चाहिए. हालांकि उन्होंने दासगुप्ता को हमले के बारे में बताया, पर वह नियमित तौर पर दासगुप्ता के सामने रिपब्लिक ने एक कार्यक्रम को कितने बढ़िया तरीके से कवर किया इसकी डींगें मार रहे थे- हमेशा किसी तुच्छ प्रतिद्वंदी से बेहतर. यहां तक कि गोस्वामी ने एक खबर को सबसे पहले चलाने की विस्तृत जानकारी दी और यह भी बताया कि आज तक को उसे उठाने में कितने मिनट लगे.

यह साफ हो जाता है कि गोस्वामी उस समय के बार्क के प्रमुख के सामने अपने चैनल को बढ़ा चढ़ा रहे थे, वह व्यक्ति जिसके हाथ में उनके चैनल की रेटिंग की चाबी थी, उसके आगे अपनी जान पहचान को दिखा रहे थे. इससे हमारे सामने यह संभावना भी आती है कि उनके अधिकतर दावे या तो बढ़ा चढ़ाकर बताए हुए या पूरी तौर पर असत्य थे.

गोस्वामी ने सबसे बड़ी डींग अगस्त 2019 में हांकी. उन्होंने दासगुप्ता को बताया कि जिस दिन भारत सरकार ने कश्मीर में धारा 370 हटा दी थी, उस दिन न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने और प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों से मिले, बल्कि उन्हें डोभाल ने अलग से फोन भी किया.

वे दासगुप्ता को बताते हैं, "हर कोई राष्ट्रीय सुरक्षा में, प्रधानमंत्री कार्यालय में हर कोई भारत और रिपब्लिक ही देख रहा है."

इसके दो दिन बाद 7 अगस्त को वह दावा करते हैं की रिपब्लिक पाकिस्तान की तरफ से "बड़ी लड़ाई", एक बड़ी "साइबर लड़ाई" झेल रहा है.

इन संदेशों पर दासगुप्ता के जवाब कुछ खास नहीं थे: या तो "हां हूं", "हां कोई आश्चर्य नहीं" या कुछ इमोजी थीं.

17 जनवरी को, गोस्वामी के पास संवेदनशील जानकारी थी या वह केवल डींगे मार रहे थे, इस पर अपनी बात रखते हुए ऑल्ट न्यूज़ के संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने तर्क दिया कि उनके पास "दोनों ही बातें मानने के कारण नहीं हैं, पर क्या इससे यह साफ हो जाता है कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी गई या उनके पास जो लोग इस मामले में शामिल नहीं हैं उन्हें जो जानकारी होनी चाहिए, उससे ज्यादा जानकारी थी?"

यह संभव है कि प्रतीक सेना के इस प्रश्न को गलत तरीके से पूछ रहे हैं. इसके बजाय हमें यह सोचना चाहिए कि: गोस्वामी ने रेटिंग संस्था के अधिकारी को यह बताया कि "कुछ बड़ा" होने वाला है, "आम कार्यवाही से कुछ बड़ा." क्या इसका यह मतलब अपने आप निकलता है कि उन्हें सेना की कुछ गुप्त जानकारी दी गई थी?

इन दोनों संभावनाओं के बीच भी कोई समानता नहीं है. गोस्वामी के पास बालाकोट हवाई हमले की गुप्त जानकारी होना एक बहुत बड़ा दावा है, जिसके एक साधारण निष्कर्ष से कई बड़े मायने हैं. साधारण निष्कर्ष की वह जो उनको ही नहीं कई लोगों को पता था, उसे बढ़ा चढ़ा कर बता रहे थे. क्योंकि हमारे पास पहली संभावना को साबित करने का कोई पुख्ता सबूत नहीं है, इसीलिए दूसरी संभावना ही उनकी बातों को सही तौर पर चित्रित करती है.

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इन बातों ने कई लोगों के पुराने संदेह को भी पक्का कर दिया है, कि भारतीय टेलीविजन के समाचार जगत की राष्ट्रभक्ति की नौटंकी अवसरवादी दलालों और बिचौलियों के कंधों पर है, जिनकी इकलौती इच्छा अपनी जेबें गर्म करना और सत्ता के पीछे भागना है.

लेकिन इन खुलासों ने कुछ अधपकी अटकलों को भी जन्म दिया है. इनमें से अभी तक की सबसे प्रचलित अटकल यह है कि गोस्वामी की बातों से यह सिद्ध होता है कि उन्हें फरवरी 2019 में हुए बालाकोट के हवाई हमले की पहले से जानकारी थी, और इसके 6 महीने बाद धारा 370 के हटाए जाने की जानकारी भी संभवत: उन्हें पहले से थी. दूसरे शब्दों में, उन्हें गोपनीय सेना की कार्यवाही और उच्च स्तरीय राजनीतिक निर्णयों की खबर थी, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े बड़े प्रश्न उठते हैं.

यह दावा केवल राजनीतिक दलों और अर्णब के पूर्व चैनल टाइम्स नाउ ने ही नहीं किया, बल्कि स्वतंत्र मीडिया संस्थानों के कई पत्रकारों ने भी किया है.

यह अटकलें ट्विटर पर शुरू हुईं पर जल्द ही समाचार वेबसाइटों पर आकर्षित करने वाली हेड लाइन बनकर दिखने लगी. स्क्रोल ने लिखा, "बालाकोट हमले से 3 दिन पहले, अर्णब गोस्वामी ने व्हाट्सएप चैट पर कहा कि 'कुछ बड़ा होगा." द वायर इसे एक कदम और आगे ले गया और उन्होंने यह रिपोर्ट किया, ऐसा लगा कि अर्णब को "सरकार में उनके उच्च स्तर पर संबंधों के चलते बालाकोट हवाई हमले और धारा 370 को हटाए जाने की पहले से जानकारी थी."

द क्विंट ने यह तर्क दिया कि रिपब्लिक टीवी के संपादक की बातों से प्रतीत होता है कि, "न केवल गोस्वामी की बातों से ऐसा लगता है कि उन्हें पुलवामा हमले के जवाब में सरकार कुछ बड़ा करने वाली है, इसके बारे में पहले से पता था. बल्कि यह भी कि उन्हें धारा 370 को निरस्त किए जाने की भी कुछ जानकारी पहले से थी."

ऑल्ट न्यूज़ के मोहम्मद जुबेर और क्विंट के आदित्य मेनन ने भी ट्विटर पर इसी प्रकार की आशंका व्यक्त की.

इस असाधारण दावे में चार दिक्कतें हैं. पहली कि यह अस्पष्ट और बिना तथ्य पर आधारित नहीं है, दूसरी कि यह संदर्भ से परे है, तीसरी की एक एंकर क्यों एक सेना की गुप्त बात को एक रेटिंग संस्था के अधिकारी को बताएगा और चौथी कि यह इन्हीं बातों से जाहिर हुए गोस्वामी और दासगुप्ता के बीच के समीकरणों को नजरअंदाज करती है.

अर्णब को दोषी ठहराने वाला यह तथाकथित संदेश 23 फरवरी 2019 को रात के 10:31 पर गया था. बालाकोट हवाई हमले से तीन दिन पहले गोस्वामी ने दास गुप्ता को बताया, "इससे अलग, कुछ बड़ा होगा."

स्पष्टीकरण मांगे जाने पर उन्होंने कहा कि यह "साधारण प्रहार से बड़ा होगा" और साथ में यह भी जोड़ा कि, "और इसके साथ एक ही समय पर कश्मीर पर कुछ बड़ा. पाकिस्तान को लेकर सरकार को विश्वास है कि प्रहार कुछ ऐसा करेंगे कि जनता खुश हो जाएगी. इन्हीं शब्दों में कहा था."

इन संदेशों को भेजने से एक दिन पहले अर्णब गोस्वामी ने तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह का रिपब्लिक भारत पर एक साक्षात्कार किया था. राजनाथ सिंह में उसमें एंकर को सीधे प्रसारण में बताया था कि पुलवामा हमले के जवाब में सरकार ने सेना के विकल्प को खारिज नहीं किया है. उन्होंने गोस्वामी के इस सुझाव पर कि पाकिस्तान के अंदर एक सेना की जवाबी कार्यवाही हो सकती है, उन्होंने इस बात से इनकार तक नहीं किया था.

जब राजनाथ सिंह ने कहा कि यह आतंकवाद के खिलाफ "निर्णायक युद्ध" लड़ने का समय है, तो गोस्वामी ने पूछा, "क्या सर्जिकल स्ट्राइक निर्णायक हमला नहीं थी? एक निर्णायक युद्ध?

राजनाथ सिंह ने उत्तर दिया, "हम सर्जिकल स्ट्राइक को पूरी तरह से निर्णायक लड़ाई नहीं मानते. मैंने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक युद्ध लड़ा जाना चाहिए."

गोस्वामी ने फिर जोर देते हुए कहा कि एक निर्णायक युद्ध पाकिस्तान के खिलाफ लड़ा जाना चाहिए और "यह युद्ध पाकिस्तान के अंदर लड़ा जाना चाहिए."

इसके उत्तर में राजनाथ सिंह ने कहा, "इसकी संभावना है कि पाकिस्तान को भी आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिए मजबूर किया जाए. हम इससे इंकार नहीं कर सकते. अगर ऐसा नहीं होता है तो इसके परिणाम होंगे."

एक राष्ट्रीय दैनिक में रक्षा क्षेत्र को कवर करने वाले एक पत्रकार ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि पत्रकार दीर्घा में यह बात आम थी की सरकार के द्वारा विचारणीय विकल्पों में से एक हवाई हमला भी था.

पुलवामा हमले के एक दिन बाद प्रधानमंत्री मोदी के वादे कि उसके जिम्मेदार लोगों को "अपने कृत्यों की बड़ी कीमत चुकानी होगी", को ध्यान में रखते हुए वह पत्रकार बोले, "हम सभी ने लिखा कि कुछ होने वाला है. सरकार ने भी इस तरफ इशारा किया था."

भारत सरकार सेना के विकल्प का इस्तेमाल कर सकती है जिसमें हवाई हमला भी शामिल है, यह एक असाधारण मत नहीं था. उदाहरण के लिए 16 फरवरी को टाइम्स ऑफ इंडिया ने रिपोर्ट की थी कि "सावधानीपूर्वक रचित हवाई हमला" रक्षा तंत्र में एक पसंदीदा विकल्प था.

गोस्वामी जैसे पत्रकार जो सत्ता के गलियारों में पैठ रखते हैं, उनके लिए यह आम बात है कि उन्हें बिना किसी संवेदनशील बातों को बताए हुए भी सेना की एक कार्यवाही के बारे में मोटे तौर पर जानकारी दी गई.

हालांकि रक्षा क्षेत्र के पत्रकार ने यह इंगित किया कि अणर्ब के द्वारा दासगुप्ता को भेजे गए संदेश का समय काफी महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा, "यह बात की उसने इस घटना के तीन दिन पहले यह जानकारी दी, काफी चिंताजनक है."

लेकिन हवाई हमले के बाद भी संदेश भेजे गए हैं. 27 फरवरी को दासगुप्ता गोस्वामी से पूछते हैं, "क्या कल वाला हवाई हमला वही "कुछ बड़ा" था जिसके बारे में तुमने बात की थी? या कुछ और ज्यादा था?"

गोस्वामी ने जवाब दिया: "और भी होगा."

इसका क्या मतलब था यह तो वही जानते हैं. परंतु अगर उनके पास सेना की गुप्त जानकारी थी भी, यह "और भी कुछ होने" की बात सच्ची नहीं साबित हुई. इसके एक हफ्ते बाद पीटीआई ने रिपोर्ट की थी कि 4 मार्च को एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा की गई टिप्पणियों से यह इशारा मिलता है कि हवाई हमला "पड़ोस देश से निकलने वाले आतंकवाद के खिलाफ भारत की अंतिम कार्यवाही नहीं होगी."

असल में देखा जाए तो गोस्वामी की "साधारण हमले से कुछ ज्यादा" वाली बात, उन्हें बालाकोट हमले के बारे में कुछ पता था इसको लेकर बहुत अस्पष्ट लगती है. यह एक तार्किक निष्कर्ष ज़रूर है लेकिन इसे तथ्यों की आवश्यकता है जो मौजूद नहीं हैं.

राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों को कवर करने वाले एक दूसरे पत्रकार इससे सहमत नहीं हैं. वे कहते हैं कि वह "70 प्रतिशत तक विश्वस्त" हैं कि गोस्वामी को सेना के संवेदनशील विषयों की जानकारी थी. हालांकि उन्होंने इस संभावना से इनकार नहीं किया कि कथित एंकर ताकतवर राजनेताओं से संपर्क होने की डींगे मार रहे हों.

वह इंगित करते हैं कि, "बालाकोट हमले से पहले सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी, जिसे एक विवादित क्षेत्र पाक अधिकृत कश्मीर में अंजाम दिया गया था. बालाकोट हमला पाकिस्तानी सीमा के अंदर था. और अर्णब का यह कहना कि यह हमला साधारण से कुछ ज्यादा होगा, यह इस बात का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह एक काफी बड़ी बात है जो किसी के द्वारा बताई ही जा सकती है. भले ही उसके पास सटीक जानकारी न हो, लेकिन साफ तौर पर उसे नियंत्रण रेखा, पाक अधिकृत कश्मीर के पार जाने के नीतिगत निर्णय के बारे में पता था. असली बात यह है."

एनडीटीवी के पूर्व रक्षा संपादक और BharatShakti.in के संस्थापक नितिन गोखले इससे अलग मत रखते हैं. वे पूछते हैं, "क्या उसने यह कहा कि हमला बालाकोट में होगा, या वह इस समय पर किया जाएगा, या इतने हवाई जहाज नियंत्रण रेखा को पार करेंगे? अगर आप मुझे यह दिखा सकें, तब मैं कहूंगा कि हां उसके पास सेना की गुप्त जानकारी थी."

गोखले ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि यह असंभव था कि मोदी सरकार ने सेना की गुप्त जानकारी गोस्वामी तक पहुंचाई हो.

वे तर्क रखते हैं कि, "इस तरह की योजना केवल उन लोगों को पता होती है जो उसको बनाने में और उसके क्रियान्वयन में भाग लेते हैं. यह प्रधानमंत्री कार्यालय या रक्षा मंत्री तक नहीं भेजे जाते. इसको 5 से 10 लोगों, इससे ज्यादा नहीं, के द्वारा बिल्कुल गुप्त रखा जाता है."

गोखले कहते हैं कि अर्णब और पार्थो की बातों को मीडिया कवरेज ने "चीटी का पहाड़ बना दिया है." वे कहते हैं, "कोई भी जिसे इन विषयों की थोड़ी भी जानकारी हो, बिना किसी के बताए यह अनुमान लगा सकता है. अगर आप ने नियंत्रण रेखा के पार, उरी जैसा जमीनी रेड की है, तो जब उरी से ज्यादा जाने गई हो तो आप उससे बड़ा क्या कर सकते हैं? कोई भी अनुभवी पत्रकार या विश्लेषक निष्कर्ष निकाल सकता था."

गोस्वामी से दासगुप्ता की बातों में मसाला, उनकी प्रधानमंत्री कार्यालय में किसी रहस्यमई "एएस" के साथ हुई बैठक के हवाले से लगाया जा रहा है. लेकिन उन्हें दासगुप्ता से उनके संबंधों के आइने में देखना चाहिए. हालांकि उन्होंने दासगुप्ता को हमले के बारे में बताया, पर वह नियमित तौर पर दासगुप्ता के सामने रिपब्लिक ने एक कार्यक्रम को कितने बढ़िया तरीके से कवर किया इसकी डींगें मार रहे थे- हमेशा किसी तुच्छ प्रतिद्वंदी से बेहतर. यहां तक कि गोस्वामी ने एक खबर को सबसे पहले चलाने की विस्तृत जानकारी दी और यह भी बताया कि आज तक को उसे उठाने में कितने मिनट लगे.

यह साफ हो जाता है कि गोस्वामी उस समय के बार्क के प्रमुख के सामने अपने चैनल को बढ़ा चढ़ा रहे थे, वह व्यक्ति जिसके हाथ में उनके चैनल की रेटिंग की चाबी थी, उसके आगे अपनी जान पहचान को दिखा रहे थे. इससे हमारे सामने यह संभावना भी आती है कि उनके अधिकतर दावे या तो बढ़ा चढ़ाकर बताए हुए या पूरी तौर पर असत्य थे.

गोस्वामी ने सबसे बड़ी डींग अगस्त 2019 में हांकी. उन्होंने दासगुप्ता को बताया कि जिस दिन भारत सरकार ने कश्मीर में धारा 370 हटा दी थी, उस दिन न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने और प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों से मिले, बल्कि उन्हें डोभाल ने अलग से फोन भी किया.

वे दासगुप्ता को बताते हैं, "हर कोई राष्ट्रीय सुरक्षा में, प्रधानमंत्री कार्यालय में हर कोई भारत और रिपब्लिक ही देख रहा है."

इसके दो दिन बाद 7 अगस्त को वह दावा करते हैं की रिपब्लिक पाकिस्तान की तरफ से "बड़ी लड़ाई", एक बड़ी "साइबर लड़ाई" झेल रहा है.

इन संदेशों पर दासगुप्ता के जवाब कुछ खास नहीं थे: या तो "हां हूं", "हां कोई आश्चर्य नहीं" या कुछ इमोजी थीं.

17 जनवरी को, गोस्वामी के पास संवेदनशील जानकारी थी या वह केवल डींगे मार रहे थे, इस पर अपनी बात रखते हुए ऑल्ट न्यूज़ के संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने तर्क दिया कि उनके पास "दोनों ही बातें मानने के कारण नहीं हैं, पर क्या इससे यह साफ हो जाता है कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी गई या उनके पास जो लोग इस मामले में शामिल नहीं हैं उन्हें जो जानकारी होनी चाहिए, उससे ज्यादा जानकारी थी?"

यह संभव है कि प्रतीक सेना के इस प्रश्न को गलत तरीके से पूछ रहे हैं. इसके बजाय हमें यह सोचना चाहिए कि: गोस्वामी ने रेटिंग संस्था के अधिकारी को यह बताया कि "कुछ बड़ा" होने वाला है, "आम कार्यवाही से कुछ बड़ा." क्या इसका यह मतलब अपने आप निकलता है कि उन्हें सेना की कुछ गुप्त जानकारी दी गई थी?

इन दोनों संभावनाओं के बीच भी कोई समानता नहीं है. गोस्वामी के पास बालाकोट हवाई हमले की गुप्त जानकारी होना एक बहुत बड़ा दावा है, जिसके एक साधारण निष्कर्ष से कई बड़े मायने हैं. साधारण निष्कर्ष की वह जो उनको ही नहीं कई लोगों को पता था, उसे बढ़ा चढ़ा कर बता रहे थे. क्योंकि हमारे पास पहली संभावना को साबित करने का कोई पुख्ता सबूत नहीं है, इसीलिए दूसरी संभावना ही उनकी बातों को सही तौर पर चित्रित करती है.

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