Newslaundry Hindi
अडानी पर खबर लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार को गिरफ्तारी वारंट
मंगलवार, 19 जनवरी को गुजरात के कच्छ जिले में मुंद्रा की एक अदालत ने अडानी समूह द्वारा दायर मानहानि के मुकदमे में वरिष्ठ पत्रकार परंजय गुहा ठाकुरता के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है. हैरानी की बात है कि वारंट उस मामले में आया है जिसमें अडानी समूह ने पत्रिका के संपादक सहित अन्य सभी लोगों के खिलाफ अपनी शिकायत वापस ले ली थी. वहीं पत्रिका भी उन लेखों को अपनी वेबसाइट से हटा चुकी है.
न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रदीप सोनी की अदालत ने नई दिल्ली के निजामुद्दीन थाना पुलिस इंस्पेक्टर को निर्देश जारी करते हुए लिखा, “आईपीसी की धारा 500 के तहत आरोपी के खिलाफ आरोप तय किया जाता है. आपको उक्त आरोपी को गिरफ्तार कर मेरे समक्ष पेश करने का निर्देश दिया जाता है.”
दरअसल परंजय गुहा ठाकुरता की गिरफ्तारी का यह आदेश साल 2017 में इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (ईपीडब्ल्यू) पत्रिका में छपे एक लेख के मामले को लेकर आया है. साल 2017 में प्रांजय गुहा ईपीडब्ल्यू के संपादक थे और उन्होंने अडानी समूह को मोदी सरकार की ओर से ‘500 करोड़ रुपये का उपहार’ मिलने की खबर प्रकाशित की थी.
यह लेख सामने आने के बाद अडानी समूह की ओर से अपने वकीलों के जरिए ईपीडब्ल्यू पत्रिका और लेख के चार लेखकों (गुहा सहित), पत्रिका के मालिक और इसे चलाने वाले समीक्षा ट्रस्ट को एक चिट्ठी भेजी थी. जिसमें लेख को डिलीट करने और बिना किसी शर्त के वापस लेने के लिए तुरंत कदम उठाने की मांग की गई थी. तब समूह ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था.
हालांकि इसके बाद दिल्ली में हुई समीक्षा ट्रस्ट बोर्ड की बैठक ने संपादकीय विभाग को दोनों लेखों को हटाने का आदेश दे दिया था. जिसके बाद परंजय गुहा ने ईपीडब्ल्यू के संपादक पद से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि ये लेख द वायर पर अभी भी मौजूद है.
परंजय गुहा ठाकुरता को देश के प्रतिष्ठित बिजनेस पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार के रूप में जाना जाता है. जो दो दशक से ज्यादा से पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना योगदान दे रहे हैं. फिलहाल वे न्यूजक्लिक वेबसाइट के साथ जुड़े हुए हैं. गुहा के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी होने पर देश में एक बार फिर प्रेस की आजादी को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं. वैसे भी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की हालत जर्जर है और हम 142वें स्थान पर हैं. सोशल मीडिया पर भी इसके खिलाफ बहस छिड़ी हुई है. हमने अरेस्ट वारंट जारी किए जाने पर प्रतिक्रिया के लिए परंजय गुहा ठाकुरता से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनका फोन बंद था.
इस पर हमने परंजय गुहा के वकील आनंद याग्निक से इस केस को समझने के लिए बात की. याग्निक ने बताया, “2017 में ये केस किया और 2019 में परंजय गुहा को छोड़कर बाकि सभी से केस वापस ले लिया गया. इसके बाद कोरोना वायरस आ गया जिसके बाद सब कोर्ट, चाहे सिविल हो या डिस्ट्रिक्ट बंद हो गए. लेकिन तब भी समन आते रहे. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब कोर्ट बंद थे तो समन जारी कैसे किया गया. मैं माननीय कोर्ट की इनटिग्रीटी और कमिटमेंट के बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर रहा हूं, मैं पूरी तरह कोर्ट में विश्वास करता हूं. लेकिन ये जांच का विषय है.”
याग्निक आगे बताते हैं, “उसके बाद जब गुजरात हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस के ऑर्डर के बाद कोर्ट खुले और दूसरी तारीख लगी तो हमने कोर्ट से रिक्वेस्ट की कि सर इस केस में मिस्टर गुहा को पर्सनल अपीयरेंस के आधार पर एक एक्जेनशन दें, अगली बार वो यहां उपस्थित हो जाएंगे. लेकिन कोर्ट ने हमारी रिक्वेस्ट नकारते हुए कहा कि ये केस 2017 का है. फिर भी ऐसे केस में तो बेलेबल वारंट ही जारी किया जा सकता है नॉन बेलेबल वारंट जारी नहीं किया जा सकता. इस कारण अब इस निर्णय को हम कोर्ट में चैलेंज करेंगे.”
परंजय गुहा के खिलाफ यह केस 2017 का है. जो ईपीडब्ल्यू में छपी थी. बाद में आर्टिकल हटा लिए और माफी भी मांग ली गई. जिसके बाद अडानी ग्रुप ने परंजय गुहा को छोड़कर बाकि सबके ऊपर से केस वापस ले लिया था. परंजय गुहा ने न्यूजक्लिक पर जस्टिस मिश्रा का अडानी को 8000 करोड़ रुपये का अंतिम "तोहफ़ा" नाम से एक आर्टिकल लिखा था जिसपर भी केस चल रहा है. हालांकि इस केस में न्यूज़क्लिक भी पार्टी हैं जिसके खिलाफ कोर्ट ने गैग आर्डर जारी करते हुए अडानी ग्रुप के खिलाफ रिपोर्ट से रोक लगाई हैं.
हमने निजामुद्दीन थाने के एसएचओ मुकेश वालिया से भी परंजय गुहा के गिरफ्तारी वारंट के बारे में जानने के लिए संपर्क किया लेकिन उन्होंने हमारा फोन रिसीव नहीं किया.
मंगलवार, 19 जनवरी को गुजरात के कच्छ जिले में मुंद्रा की एक अदालत ने अडानी समूह द्वारा दायर मानहानि के मुकदमे में वरिष्ठ पत्रकार परंजय गुहा ठाकुरता के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है. हैरानी की बात है कि वारंट उस मामले में आया है जिसमें अडानी समूह ने पत्रिका के संपादक सहित अन्य सभी लोगों के खिलाफ अपनी शिकायत वापस ले ली थी. वहीं पत्रिका भी उन लेखों को अपनी वेबसाइट से हटा चुकी है.
न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रदीप सोनी की अदालत ने नई दिल्ली के निजामुद्दीन थाना पुलिस इंस्पेक्टर को निर्देश जारी करते हुए लिखा, “आईपीसी की धारा 500 के तहत आरोपी के खिलाफ आरोप तय किया जाता है. आपको उक्त आरोपी को गिरफ्तार कर मेरे समक्ष पेश करने का निर्देश दिया जाता है.”
दरअसल परंजय गुहा ठाकुरता की गिरफ्तारी का यह आदेश साल 2017 में इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (ईपीडब्ल्यू) पत्रिका में छपे एक लेख के मामले को लेकर आया है. साल 2017 में प्रांजय गुहा ईपीडब्ल्यू के संपादक थे और उन्होंने अडानी समूह को मोदी सरकार की ओर से ‘500 करोड़ रुपये का उपहार’ मिलने की खबर प्रकाशित की थी.
यह लेख सामने आने के बाद अडानी समूह की ओर से अपने वकीलों के जरिए ईपीडब्ल्यू पत्रिका और लेख के चार लेखकों (गुहा सहित), पत्रिका के मालिक और इसे चलाने वाले समीक्षा ट्रस्ट को एक चिट्ठी भेजी थी. जिसमें लेख को डिलीट करने और बिना किसी शर्त के वापस लेने के लिए तुरंत कदम उठाने की मांग की गई थी. तब समूह ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था.
हालांकि इसके बाद दिल्ली में हुई समीक्षा ट्रस्ट बोर्ड की बैठक ने संपादकीय विभाग को दोनों लेखों को हटाने का आदेश दे दिया था. जिसके बाद परंजय गुहा ने ईपीडब्ल्यू के संपादक पद से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि ये लेख द वायर पर अभी भी मौजूद है.
परंजय गुहा ठाकुरता को देश के प्रतिष्ठित बिजनेस पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार के रूप में जाना जाता है. जो दो दशक से ज्यादा से पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना योगदान दे रहे हैं. फिलहाल वे न्यूजक्लिक वेबसाइट के साथ जुड़े हुए हैं. गुहा के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी होने पर देश में एक बार फिर प्रेस की आजादी को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं. वैसे भी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की हालत जर्जर है और हम 142वें स्थान पर हैं. सोशल मीडिया पर भी इसके खिलाफ बहस छिड़ी हुई है. हमने अरेस्ट वारंट जारी किए जाने पर प्रतिक्रिया के लिए परंजय गुहा ठाकुरता से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनका फोन बंद था.
इस पर हमने परंजय गुहा के वकील आनंद याग्निक से इस केस को समझने के लिए बात की. याग्निक ने बताया, “2017 में ये केस किया और 2019 में परंजय गुहा को छोड़कर बाकि सभी से केस वापस ले लिया गया. इसके बाद कोरोना वायरस आ गया जिसके बाद सब कोर्ट, चाहे सिविल हो या डिस्ट्रिक्ट बंद हो गए. लेकिन तब भी समन आते रहे. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब कोर्ट बंद थे तो समन जारी कैसे किया गया. मैं माननीय कोर्ट की इनटिग्रीटी और कमिटमेंट के बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर रहा हूं, मैं पूरी तरह कोर्ट में विश्वास करता हूं. लेकिन ये जांच का विषय है.”
याग्निक आगे बताते हैं, “उसके बाद जब गुजरात हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस के ऑर्डर के बाद कोर्ट खुले और दूसरी तारीख लगी तो हमने कोर्ट से रिक्वेस्ट की कि सर इस केस में मिस्टर गुहा को पर्सनल अपीयरेंस के आधार पर एक एक्जेनशन दें, अगली बार वो यहां उपस्थित हो जाएंगे. लेकिन कोर्ट ने हमारी रिक्वेस्ट नकारते हुए कहा कि ये केस 2017 का है. फिर भी ऐसे केस में तो बेलेबल वारंट ही जारी किया जा सकता है नॉन बेलेबल वारंट जारी नहीं किया जा सकता. इस कारण अब इस निर्णय को हम कोर्ट में चैलेंज करेंगे.”
परंजय गुहा के खिलाफ यह केस 2017 का है. जो ईपीडब्ल्यू में छपी थी. बाद में आर्टिकल हटा लिए और माफी भी मांग ली गई. जिसके बाद अडानी ग्रुप ने परंजय गुहा को छोड़कर बाकि सबके ऊपर से केस वापस ले लिया था. परंजय गुहा ने न्यूजक्लिक पर जस्टिस मिश्रा का अडानी को 8000 करोड़ रुपये का अंतिम "तोहफ़ा" नाम से एक आर्टिकल लिखा था जिसपर भी केस चल रहा है. हालांकि इस केस में न्यूज़क्लिक भी पार्टी हैं जिसके खिलाफ कोर्ट ने गैग आर्डर जारी करते हुए अडानी ग्रुप के खिलाफ रिपोर्ट से रोक लगाई हैं.
हमने निजामुद्दीन थाने के एसएचओ मुकेश वालिया से भी परंजय गुहा के गिरफ्तारी वारंट के बारे में जानने के लिए संपर्क किया लेकिन उन्होंने हमारा फोन रिसीव नहीं किया.
Also Read
-
The 2019 rule change that accelerated Indian aviation’s growth journey, helped fuel IndiGo’s supremacy
-
TV Newsance 325 | Indigo delays, primetime 'dissent' and Vande Mataram marathon
-
You can rebook an Indigo flight. You can’t rebook your lungs
-
‘Overcrowded, underfed’: Manipur planned to shut relief camps in Dec, but many still ‘trapped’
-
Since Modi can’t stop talking about Nehru, here’s Nehru talking back