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अर्णबकांड: बार्क के पूर्व चेयरमैन पत्रकारों को निशाना बनाने के लिए ट्रोल सेना की मदद लेना चाहते थे

मुंबई पुलिस के द्वारा सार्वजनिक किया गया जानकारियों का पिटारा, जो टेलीविजन रेटिंग मापने वाली संस्था बार्क के पूर्व सीईओ पार्थो दासगुप्ता और कई प्रभावशाली व्यक्तियों के बीच हुई बातों को उजागर करता है, कई छुपे हुए राज सामने ला रहा है.

हालांकि प्राथमिक तौर पर सभी का ध्यान दासगुप्ता की रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी से हुई बातों पर है, जानकारियों के पुलिंदे में कुछ ऐसे सूत्र भी हैं जो दिखाते हैं कि वह ऑनलाइन होने वाली ट्रोलिंग को बार्क के आलोचकों, खास तौर पर पत्रकारों के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे थे.

"क्या आप किसी को उसे ट्रोल करने के लिए कह सकते हैं"

इसका पहला उदाहरण दिसंबर 2018 में उनकी अर्णब गोस्वामी से हुई चैट में मिलता है.

दासगुप्ता गोस्वामी से पूछते हैं क्या वह किसी को "इसके" लिए ट्रोल करा सकते हैं. यहां पर "इसके" का उपयोग संभवतः एक ट्वीट के लिए किया गया है. वह गोस्वामी को यह प्रश्न पुछवाने के लिए कहते हैं, "फिर उन्हीं का साथी चैनल क्यों उसी तंत्र से निकली हुई उन्हीं रेटिंगों पर विश्वास कर रहा है?"

अर्नब उसके जवाब में कहते हैं: "इस पर काम कर रहा हूं."

जिसके जवाब में दासगुप्ता पूछते हैं, "क्या तुम किसी मिन्हाज मर्चेंट जैसे व्यक्ति को उस एड्ट्रोल करने के लिए कह सकते हो? पूछो कि हिंदी रेटिंगों के लिए फिर उसी तंत्र के साथ आप क्यों हैं?"

वह इस काम के लिए आदित्य राज का नाम भी सुझाते हैं, जिसके जवाब में अर्नब बस "कर रहा हूं" लिखते हैं.

यह स्पष्ट रूप से एक अंतर्विरोध की स्थिति है: बार्क के सीईओ का काम टेलीविजन चैनलों की रेटिंग नापने वाली संस्था को चलाना है, उसके बजाए वह एक चैनल के प्रमुख को दूसरे चैनल के लोगों को ट्रोल कराने के लिए कह रहे हैं.

उनकी अर्णब से यह गुजारिश, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के एग्जिट पोल आने के बाद लेकिन वोटों की गिनती शुरू होने से पहले, की गई थी.

"विकास को बोलो उसे ट्रोल करने के लिए"

इसका दूसरा उदाहरण दासगुप्ता की रोमिल रामगढ़िया से हुई चैट में मिलता है, रामगढ़िया मई 2019 में बार्क के सीओओ थे. इसमें इंडिया टुडे के संपादक राहुल कंवल के दो ट्वीट को फर्स्ट अनुरोध के साथ साझा किया गया था, "विकास को बोलो उसे ट्रोल करने के लिए."

वे दोनों ट्वीट यह हैं-

हमने मुंबई पुलिस के द्वारा सार्वजनिक की गई जानकारी में रामगढ़िया के फोन से बरामद हुई और कई चैट को खंगाला. विकास के एैदम और रामगढ़िया के बीच हुई बातों में कई बार हम इसी ट्वीट को साझा किया जाता देखते हैं और ट्वीट के साझा करते ही तुरंत कॉल करने के लिए कहते हैं.

इसके बाद की बातचीत फोन पर हुई लगती है. परंतु सवाल यह है कि विकास के एैदम कौन हैं?

एक 'विकास' जिनके निरंतर संपर्क में पार्थो दासगुप्ता और रोमन रामगढ़िया थे, विकास खानचंदानी हैं. खानचंदानी रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के सीईओ हैं जिन्हें इन दोनों के साथ टीआरपी घोटाले में गिरफ्तार किया जा चुका है.

बार्क के अधिकारियों द्वारा पत्रकारों को ट्रोल कराए जाने का एक और उदाहरण मई 2017 में रामगढ़िया और विकास के बीच हुई बातचीत में मिलता है. रामगढ़िया विकास को बताते हैं कि "चेन्नई में रिपब्लिक की ऊंची रेटिंग अपवाद स्वरूप" बताने वाली एक खबर आने वाली है. वे सलाह देते हैं कि, "एक बार वह आ जाए तो टाइम्स नाउ के कोलकाता आंकड़ों के बारे में बात करने के लिए आप अपनी ट्रोल सेना को तैयार रखें."

जारी की गई जानकारी में दासगुप्ता और खानचंदानी उर्फ विकास एैदम के बीच व्हाट्सएप पर हुई बातचीत भी शामिल है, जिनमें वह निरंतर संपर्क में दिखते हैं.

विकास, पार्थो दासगुप्ता को लगातार रिपब्लिक टीवी के द्वारा चलाई गई खबरों के अलावा अपने नेटवर्क की रेटिंग बढ़ाने की योजनाओं की विस्तृत जानकारी भी भेजते हैं.

स्पष्ट है कि खानचंदानी उस समय के बार्क सीईओ को रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क की रेटिंग बढ़ाने के तरीकों से पूरी तरह अवगत रख रहे थे. यहां पर वह रिपब्लिक के चैनलों को सर्वोच्च रेटिंग रखने वाले चैनलों जैसे आज तक के साथ, "पड़ोस अच्छा" रखने को कह रहे हैं. इसका मतलब यह है कि कोई भी व्यक्ति जो अपने टीवी पर चैनल बदल रहा है, वह आज तक के तुरंत बाद रिपब्लिक टीवी या रिपब्लिक भारत पर पहुंचेगा. जिससे उनका देखा जाने का समय बढ़ेगा और उनकी रेटिंग भी ऊपर जाएंगी. खानचंदानी की योजनाएं करीब चार करोड़ घरों को निशाने पर रखती हैं.

यहां खेले जा रहे इस खेल को समझने के लिए इस वीडियो को देखें.

रामगढ़िया और खानचंदानी के बीच के रिश्ते को गहरी मित्रता कहना, उनके रिश्ते को कम आंकना होगा.

"एक सत्यापित ट्रोल सेना चाहिए"

बार्क से इस्तीफा देने के बाद एक स्वतंत्र सलाहकार की तरह काम करते हुए भी दासगुप्ता रामगढ़िया के संपर्क में रहे और 3 जून 2020 को उन्होंने एक विशेष अनुरोध किया. दासगुप्ता कहते हैं, "अगर आपको याद हो, हमने एक सत्यापित खातों वाली ट्रोल सेना का प्रस्ताव रखा था. क्या आपके पास है? हमें एक ग्राहक के लिए चाहिए."

रामगढ़िया जवाब देते हैं, "मेरे फोन में था वो. मैं देखकर बताता हूं."

इसके बाद रामगढ़िया "साहेब एजेंसी 09" नाम का एक नंबर साझा करते हैं और कहते हैं, "अपने इन्हें आज़माकर देखिए."

बाद में पता चलता है कि यह एक "सोशल मीडिया एजेंसी" है जो बार्क के लिए भी काम करती है. रामगढ़िया कहते हैं, "यह इस काम को भी करते हैं", अर्थात सत्यापित खातों की ट्रोल सेना की सेवाएं, "अभी यह हमारी सोशल मीडिया एजेंसी हैं."

यहां तक तो ठीक है पर, एजेंसी 09 क्या है और साहेब कौन हैं?

इसमें जाने से पहले हमने यह जांचा कि रामगढ़िया के दिए हुए नंबर को क्या दासगुप्ता ने अपने फोन में संरक्षित किया. मुंबई पुलिस की कृपा से जानकारियों के इस परिंदे में हमें दासगुप्ता की संपर्क सूची भी मिली. उसके अंदर हमें यह एक सूचना दी कि जो स्पष्ट करती है कि उन्होंने नंबर क्यों अपने फोन में रखा.

जब हमने उस फोन नंबर को गूगल पर खोजा, तो हमें साहिब सिंह नाम के इस व्यक्ति का परिचय पत्र मिला.

वहां पर हमें इस एजेंसी की वेबसाइट www.agency09.in मिली जहां उनके सभी ग्राहकों की एक सूची मौजूद थी.

हमने दास गुप्ता के द्वारा संरक्षित किए गए नंबर पर साहेब सिंह से बात की. उन्होंने कहा, "वह इस प्रकार का कोई काम नहीं करते हैं और पूर्ण तरह एक रचनात्मक एजेंसी हैं." परंतु उन्होंने यह जरूर बताया कि बार्क के द्वारा रखे जाने से 6 महीने पहले, जो उनके अनुसार दिसंबर 2019 था, रेटिंग संस्था ने उनसे अपने आलोचकों से निपटने के तरीकों के बारे में पूछताछ की थी.

साहेब सिंह कहते हैं, "यह 'ट्रोल सेना' शब्द भी उन्हीं की तरफ से आया और हमने समझाया कि यह काम कैसे करती हैं. हमारी एजेंसी ऐसे काम नहीं करती और हमने उन्हें स्पष्ट तौर पर कहा कि यही बेहतर है कि वह अपनी पहुंच को नैसर्गिक रूप से बढ़ने दें. मैं मानता हूं कि उन्होंने हमें इसीलिए रखा."

यह पूछने पर कि क्या दासगुप्ता या किसी और व्यक्ति ने उनसे इस चैट के बाद संपर्क किया, सिंह जवाब देते हैं, "मुझे किसी ने ट्विटर सेना के बारे में पूछते हुए कॉल नहीं किया और मैंने कभी व्यक्तिगत तौर पर पार्थो या रोमिंग से बात नहीं की है."

हमने चैट में हुई इस बातचीत से जुड़े हुए प्रश्न, जैसे कि एजेंसी 09 कर रखा जाना और टोल सेना बनाने की योजनाएं, बार्क को भी भेजें. वहां से हमें यह जवाब मिला, "क्योंकि इस समय इस मामले की कई कानूनी संस्थाओं के द्वारा जांच चल रही है, हम आपकी पूछताछ का जवाब देने में अक्षम हैं."

हम जैसे-जैसे मुंबई पुलिस के द्वारा दिये गए दासगुप्ता व अन्य लोगों की जानकारी के पुलिंदे को खंगाल रहे हैं, हमें समाचार जगत को पूरी तरह मुट्ठी में रखने में प्रयासरत कुछ ताकतवर लोगों के समूह की अनैतिक योजना दिखाई पड़ रही है. बार्क के अधिकारियों द्वारा अपनी ट्रोलिंग की जरूरतों के बारे में खानचंदानी की सलाह चाहना, रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क और उनके सोशल मीडिया काम पर भी सवाल उठाती हैं जो केवल अपने चैनल को बढ़ाना तक ही सीमित नहीं अपितु प्रतिद्वंदी चैनलों और एंकरों को ट्रोल कराने में भी लगी थी.

राजनीतिक दलों द्वारा अपने प्रतिद्वंदियों के खिलाफ मोटर के टोल इस्तेमाल करना और बात है, लेकिन एक तथाकथित तटस्थ संस्था बार्क के सीईओ के द्वारा यह किया जाना, एक बिल्कुल अलग ही तस्वीर प्रस्तुत करता है. बार्क को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उनके अधिकारियों ने उनकी रेटिंग तंत्र की आलोचना करने वालों को ट्रोल कराने के कितने प्रयास किए.

Also Read: अर्णब के व्हाट्सएप चैट पर बोलना था प्रधानमंत्री को, बोल रहे हैं राहुल गांधी, क्यों?

Also Read: अर्णबकांड? बार्क सीईओ के साथ मिलकर टीआरपी हेरफेर का अनैतिक खेल रचते गोस्वामी

मुंबई पुलिस के द्वारा सार्वजनिक किया गया जानकारियों का पिटारा, जो टेलीविजन रेटिंग मापने वाली संस्था बार्क के पूर्व सीईओ पार्थो दासगुप्ता और कई प्रभावशाली व्यक्तियों के बीच हुई बातों को उजागर करता है, कई छुपे हुए राज सामने ला रहा है.

हालांकि प्राथमिक तौर पर सभी का ध्यान दासगुप्ता की रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी से हुई बातों पर है, जानकारियों के पुलिंदे में कुछ ऐसे सूत्र भी हैं जो दिखाते हैं कि वह ऑनलाइन होने वाली ट्रोलिंग को बार्क के आलोचकों, खास तौर पर पत्रकारों के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे थे.

"क्या आप किसी को उसे ट्रोल करने के लिए कह सकते हैं"

इसका पहला उदाहरण दिसंबर 2018 में उनकी अर्णब गोस्वामी से हुई चैट में मिलता है.

दासगुप्ता गोस्वामी से पूछते हैं क्या वह किसी को "इसके" लिए ट्रोल करा सकते हैं. यहां पर "इसके" का उपयोग संभवतः एक ट्वीट के लिए किया गया है. वह गोस्वामी को यह प्रश्न पुछवाने के लिए कहते हैं, "फिर उन्हीं का साथी चैनल क्यों उसी तंत्र से निकली हुई उन्हीं रेटिंगों पर विश्वास कर रहा है?"

अर्नब उसके जवाब में कहते हैं: "इस पर काम कर रहा हूं."

जिसके जवाब में दासगुप्ता पूछते हैं, "क्या तुम किसी मिन्हाज मर्चेंट जैसे व्यक्ति को उस एड्ट्रोल करने के लिए कह सकते हो? पूछो कि हिंदी रेटिंगों के लिए फिर उसी तंत्र के साथ आप क्यों हैं?"

वह इस काम के लिए आदित्य राज का नाम भी सुझाते हैं, जिसके जवाब में अर्नब बस "कर रहा हूं" लिखते हैं.

यह स्पष्ट रूप से एक अंतर्विरोध की स्थिति है: बार्क के सीईओ का काम टेलीविजन चैनलों की रेटिंग नापने वाली संस्था को चलाना है, उसके बजाए वह एक चैनल के प्रमुख को दूसरे चैनल के लोगों को ट्रोल कराने के लिए कह रहे हैं.

उनकी अर्णब से यह गुजारिश, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के एग्जिट पोल आने के बाद लेकिन वोटों की गिनती शुरू होने से पहले, की गई थी.

"विकास को बोलो उसे ट्रोल करने के लिए"

इसका दूसरा उदाहरण दासगुप्ता की रोमिल रामगढ़िया से हुई चैट में मिलता है, रामगढ़िया मई 2019 में बार्क के सीओओ थे. इसमें इंडिया टुडे के संपादक राहुल कंवल के दो ट्वीट को फर्स्ट अनुरोध के साथ साझा किया गया था, "विकास को बोलो उसे ट्रोल करने के लिए."

वे दोनों ट्वीट यह हैं-

हमने मुंबई पुलिस के द्वारा सार्वजनिक की गई जानकारी में रामगढ़िया के फोन से बरामद हुई और कई चैट को खंगाला. विकास के एैदम और रामगढ़िया के बीच हुई बातों में कई बार हम इसी ट्वीट को साझा किया जाता देखते हैं और ट्वीट के साझा करते ही तुरंत कॉल करने के लिए कहते हैं.

इसके बाद की बातचीत फोन पर हुई लगती है. परंतु सवाल यह है कि विकास के एैदम कौन हैं?

एक 'विकास' जिनके निरंतर संपर्क में पार्थो दासगुप्ता और रोमन रामगढ़िया थे, विकास खानचंदानी हैं. खानचंदानी रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के सीईओ हैं जिन्हें इन दोनों के साथ टीआरपी घोटाले में गिरफ्तार किया जा चुका है.

बार्क के अधिकारियों द्वारा पत्रकारों को ट्रोल कराए जाने का एक और उदाहरण मई 2017 में रामगढ़िया और विकास के बीच हुई बातचीत में मिलता है. रामगढ़िया विकास को बताते हैं कि "चेन्नई में रिपब्लिक की ऊंची रेटिंग अपवाद स्वरूप" बताने वाली एक खबर आने वाली है. वे सलाह देते हैं कि, "एक बार वह आ जाए तो टाइम्स नाउ के कोलकाता आंकड़ों के बारे में बात करने के लिए आप अपनी ट्रोल सेना को तैयार रखें."

जारी की गई जानकारी में दासगुप्ता और खानचंदानी उर्फ विकास एैदम के बीच व्हाट्सएप पर हुई बातचीत भी शामिल है, जिनमें वह निरंतर संपर्क में दिखते हैं.

विकास, पार्थो दासगुप्ता को लगातार रिपब्लिक टीवी के द्वारा चलाई गई खबरों के अलावा अपने नेटवर्क की रेटिंग बढ़ाने की योजनाओं की विस्तृत जानकारी भी भेजते हैं.

स्पष्ट है कि खानचंदानी उस समय के बार्क सीईओ को रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क की रेटिंग बढ़ाने के तरीकों से पूरी तरह अवगत रख रहे थे. यहां पर वह रिपब्लिक के चैनलों को सर्वोच्च रेटिंग रखने वाले चैनलों जैसे आज तक के साथ, "पड़ोस अच्छा" रखने को कह रहे हैं. इसका मतलब यह है कि कोई भी व्यक्ति जो अपने टीवी पर चैनल बदल रहा है, वह आज तक के तुरंत बाद रिपब्लिक टीवी या रिपब्लिक भारत पर पहुंचेगा. जिससे उनका देखा जाने का समय बढ़ेगा और उनकी रेटिंग भी ऊपर जाएंगी. खानचंदानी की योजनाएं करीब चार करोड़ घरों को निशाने पर रखती हैं.

यहां खेले जा रहे इस खेल को समझने के लिए इस वीडियो को देखें.

रामगढ़िया और खानचंदानी के बीच के रिश्ते को गहरी मित्रता कहना, उनके रिश्ते को कम आंकना होगा.

"एक सत्यापित ट्रोल सेना चाहिए"

बार्क से इस्तीफा देने के बाद एक स्वतंत्र सलाहकार की तरह काम करते हुए भी दासगुप्ता रामगढ़िया के संपर्क में रहे और 3 जून 2020 को उन्होंने एक विशेष अनुरोध किया. दासगुप्ता कहते हैं, "अगर आपको याद हो, हमने एक सत्यापित खातों वाली ट्रोल सेना का प्रस्ताव रखा था. क्या आपके पास है? हमें एक ग्राहक के लिए चाहिए."

रामगढ़िया जवाब देते हैं, "मेरे फोन में था वो. मैं देखकर बताता हूं."

इसके बाद रामगढ़िया "साहेब एजेंसी 09" नाम का एक नंबर साझा करते हैं और कहते हैं, "अपने इन्हें आज़माकर देखिए."

बाद में पता चलता है कि यह एक "सोशल मीडिया एजेंसी" है जो बार्क के लिए भी काम करती है. रामगढ़िया कहते हैं, "यह इस काम को भी करते हैं", अर्थात सत्यापित खातों की ट्रोल सेना की सेवाएं, "अभी यह हमारी सोशल मीडिया एजेंसी हैं."

यहां तक तो ठीक है पर, एजेंसी 09 क्या है और साहेब कौन हैं?

इसमें जाने से पहले हमने यह जांचा कि रामगढ़िया के दिए हुए नंबर को क्या दासगुप्ता ने अपने फोन में संरक्षित किया. मुंबई पुलिस की कृपा से जानकारियों के इस परिंदे में हमें दासगुप्ता की संपर्क सूची भी मिली. उसके अंदर हमें यह एक सूचना दी कि जो स्पष्ट करती है कि उन्होंने नंबर क्यों अपने फोन में रखा.

जब हमने उस फोन नंबर को गूगल पर खोजा, तो हमें साहिब सिंह नाम के इस व्यक्ति का परिचय पत्र मिला.

वहां पर हमें इस एजेंसी की वेबसाइट www.agency09.in मिली जहां उनके सभी ग्राहकों की एक सूची मौजूद थी.

हमने दास गुप्ता के द्वारा संरक्षित किए गए नंबर पर साहेब सिंह से बात की. उन्होंने कहा, "वह इस प्रकार का कोई काम नहीं करते हैं और पूर्ण तरह एक रचनात्मक एजेंसी हैं." परंतु उन्होंने यह जरूर बताया कि बार्क के द्वारा रखे जाने से 6 महीने पहले, जो उनके अनुसार दिसंबर 2019 था, रेटिंग संस्था ने उनसे अपने आलोचकों से निपटने के तरीकों के बारे में पूछताछ की थी.

साहेब सिंह कहते हैं, "यह 'ट्रोल सेना' शब्द भी उन्हीं की तरफ से आया और हमने समझाया कि यह काम कैसे करती हैं. हमारी एजेंसी ऐसे काम नहीं करती और हमने उन्हें स्पष्ट तौर पर कहा कि यही बेहतर है कि वह अपनी पहुंच को नैसर्गिक रूप से बढ़ने दें. मैं मानता हूं कि उन्होंने हमें इसीलिए रखा."

यह पूछने पर कि क्या दासगुप्ता या किसी और व्यक्ति ने उनसे इस चैट के बाद संपर्क किया, सिंह जवाब देते हैं, "मुझे किसी ने ट्विटर सेना के बारे में पूछते हुए कॉल नहीं किया और मैंने कभी व्यक्तिगत तौर पर पार्थो या रोमिंग से बात नहीं की है."

हमने चैट में हुई इस बातचीत से जुड़े हुए प्रश्न, जैसे कि एजेंसी 09 कर रखा जाना और टोल सेना बनाने की योजनाएं, बार्क को भी भेजें. वहां से हमें यह जवाब मिला, "क्योंकि इस समय इस मामले की कई कानूनी संस्थाओं के द्वारा जांच चल रही है, हम आपकी पूछताछ का जवाब देने में अक्षम हैं."

हम जैसे-जैसे मुंबई पुलिस के द्वारा दिये गए दासगुप्ता व अन्य लोगों की जानकारी के पुलिंदे को खंगाल रहे हैं, हमें समाचार जगत को पूरी तरह मुट्ठी में रखने में प्रयासरत कुछ ताकतवर लोगों के समूह की अनैतिक योजना दिखाई पड़ रही है. बार्क के अधिकारियों द्वारा अपनी ट्रोलिंग की जरूरतों के बारे में खानचंदानी की सलाह चाहना, रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क और उनके सोशल मीडिया काम पर भी सवाल उठाती हैं जो केवल अपने चैनल को बढ़ाना तक ही सीमित नहीं अपितु प्रतिद्वंदी चैनलों और एंकरों को ट्रोल कराने में भी लगी थी.

राजनीतिक दलों द्वारा अपने प्रतिद्वंदियों के खिलाफ मोटर के टोल इस्तेमाल करना और बात है, लेकिन एक तथाकथित तटस्थ संस्था बार्क के सीईओ के द्वारा यह किया जाना, एक बिल्कुल अलग ही तस्वीर प्रस्तुत करता है. बार्क को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उनके अधिकारियों ने उनकी रेटिंग तंत्र की आलोचना करने वालों को ट्रोल कराने के कितने प्रयास किए.

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