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सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी का विरोध क्यों कर रहे हैं किसान नेता?

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों पर अपना फैसला सुनाया है. फैसले में कोर्ट ने अस्थाई रूप से तीनों क़ानूनों पर रोक लगाते हुए चार सदस्यों की एक कमेटी का गठन किया है. इस कमेटी की ज़िम्मेदारी है कि इस मामले का हल निकाले.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई इस कमेटी में भारतीय किसान यूनियन (मान) के प्रमुख भूपिंदर मान सिंह, महाराष्ट्र शेतकरी संगठन के प्रमुख अनिल धनवत, इंटरनेशनल पॉलिसी के प्रमुख डॉ. प्रमोद कुमार जोशी और एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट अशोक गुलाटी शामिल हैं.

चार सदस्यों वाली कमेटी को प्रदर्शनकारी किसानों और उनके नेताओं से बातचीत करके मसले को सुलझाने की कोशिश करना है. हालांकि कमेटी को कोई फैसला देने का अधिकार नहीं है. कमेटी अपना सुझाव सुप्रीम कोर्ट को सौपेंगी.

कमेटी बनाने के सुझावों को किसान संगठनों ने सोमवार को ही मना कर दिया था. किसानों का कहना है कि वे कानून वापसी पर ही वह बातचीत करेंगे. ऐसे में कमेटी के गठन की बात कहते हुए मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा, ‘‘हम कमेटी का गठन कर रहे हैं ताकि हमारे सामने एक साफ तस्वीर आ सके. हम यह दलील नहीं सुनना चाहते हैं कि किसान कमेटी के सामने नहीं जाएंगे. हम समस्या का समाधान चाहते हैं. अगर आप अनिश्चित समय के लिए विरोध-प्रदर्शन करना चाहते हैं तो कर सकते हैं.’’

कमेटी के गठन के साथ ही इसमें शामिल सदस्यों को लेकर विवाद शुरू हो गया. राज्यसभा टीवी चैनल के पूर्व सीईओ गुरदीप सप्पल ने चारों सदस्यों से जुड़ी खबरें साझा करते हुए ट्वीट किया और लिखा- ‘‘समिति के सभी चार सदस्य पहले से ही कृषि कानूनों के लागू कराने को लेकर प्रतिबद्ध हैं.’’

अशोक गुलाटी

बीते साल मई में अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा था, "नरेंद्र मोदी सरकार देश की एग्री-मार्केटिंग व्यवस्था में सुधार करने के लिए तारीफ की हक़दार है." उन्होंने आगे जोड़ा कि "यह सुधार 'एग्री-मार्केटिंग क्षेत्र में बड़े बदलाव के परिचायक हो सकते है, यह कृषि के लिए वैसा ही होगा जैसा 1991 के आर्थिक सुधार थे.’’

साल 2015 में पद्म श्री से सम्मानित अशोक गुलाटी कई बड़े पदों पर रहे हैं. वर्तमान में वे भारतीय आर्थिक अनुसंधान परिषद के अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों पर कृषि के लिए इन्फोसिस के अध्यक्ष हैं.

साल 2020 के सितंबर महीने में इंडियन एक्सप्रेस अख़बार में "ऑन फार्म बिल्स, गवर्नमेंट मस्ट गेट इट्स एक्ट टूगेदर, बट ओप्पोसिशन इज मिस गाइड'’ शीर्षक से लिखे अपने लेख में गुलाटी तर्क देते हुए इन कृषि कानूनों के औचित्य पर लिखते हैं, ‘‘ किसानों को अपना प्रोडक्ट बेचने और खरीदारों को खरीदने और स्टोर करने के लिए कई रास्ते खुलेंगे और आज़ादी मिलेगी. इससे एग्री-मार्केटिंग में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी.’’

अपने इस लेख में गुलाटी चेतवानी देते हुए लिखते हैं, ''कभी-कभी अच्छे आइडिया, कानून खराब तरीके से लागू करने के कारण विफल होते हैं.'' अपने इस बयान के लिए वे साल 2018 में टमाटर, प्याज और आलू की कीमतों को स्थिर करने के लिए दिगंवत पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा शुरू की गई एक योजना का जिक्र करते हैं.

26 नवंबर से देशभर के किसान दिल्ली के बॉर्डर पर इन कानूनों के विरोध में पहुंचे हैं. इसके चार दिन बाद 30 नवंबर को इंडिया टुडे न्यूज़ चैनल के एंकर राजदीप सरदेसाई ने गुलाटी से पूछा कि आपको क्या लग रहा है. क्यों किसान इन तीनों कानूनों से खफा हैं? इस सवाल के जवाब में गुलाटी किसानों को बड़े पैमाने पर गुमराह होने की बात करते हुए कहते हैं, ''किसानों को लग रहा है कि कॉर्पोरेट कृषि पर कब्जा कर लेगा, न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो जाएगा और मंडी सिस्टम बर्बाद हो जाएगा.

यही नहीं गुलाटी ने दिसंबर महीने में द वायर न्यूज़ वेबसाइड से बात करते हुए कहा था, ‘‘केंद्र सरकार को 6 महीने के लिए कृषि कानूनों को निलंबित करना चाहिए. किसानों को मुआवजा देना चाहिए लेकिन कानूनों को निरस्त नहीं करना चाहिए.’’

इसी बीच किसान नेता राकेश टिकैत ने एक ट्वीट करते हुए दावा किया है- “अशोक गुलाटी की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने ही इन कानून को लाये जाने की सिफारिश की थी. माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित कमेटी के सभी सदस्य खुली बाजार व्यवस्था या कानून के समर्थक रहे हैं. देश का किसान इस फैसले से निराश है.’’

प्रमोद कुमार जोशी

कृषि नीति विशेषज्ञ और दक्षिण एशिया अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक प्रमोद कुमार जोशी ने 2014 में मिंट अख़बार को बताया- आर्थिक सर्वेक्षण में मंडी प्रणाली को खत्म करने और आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम में संशोधन करने की सिफारिश की गई है. "ऐसा करने से किसानों को बेहतर रिटर्न पाने और कृषि विविधीकरण को बढ़ावा देने में मदद करेगा. कम से कम उन राज्यों में जहां निजी बाजार पहले से ही विकसित हैं.’’

आज जो तीन नए कानून आए हैं उसमें एक ‘आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम’ है. वहीं मंडी सिस्टम खत्म होने का खतरा भी किसानों को लग रहा है. यानी छह साल पहले ही उस कानून की बात कुमार कर रहे थे. जो सरकार 2020 में लेकर आई है.

इस साल सितंबर महीने में इजरायली एग्री-बिजनेस कंसल्टिंग फर्म एग्रीविज़न द्वारा आयोजित एक पैनल चर्चा में जोशी ने कृषि कानूनों की तारीफ करते हुए कहा था, ''खेती को लाभदायक बनाने के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाने में यह मददगार होगा.'' वहीं एमएसपी के खत्म होने को लेकर किसानों के अंदर के डर को आधारहीन बताया था.

दिसंबर महीने में फाइनेंशियल एक्सप्रेस में दो लेखकों का एक लेख छपा. उसमें एक लेखक जोशी भी थे. इस लेख में जोशी ने किसानों पर सरकार के साथ अपनी शिकायतों का समाधान नहीं करने का आरोप लगाया. वो लिखते हैं, ‘‘यह अफ़सोसजनक है कि सरकार द्वारा किसानों की वास्तविक मांगों पर सकारात्मक प्रतिक्रया के बावजूद यह आंदोलन खत्म नहीं हो रहा है.’’

जोशी ने प्रदर्शनकारियों पर केंद्र के साथ हर वार्ता से पहले गोलपोस्ट बदलने का भी आरोप लगाया. किसान संगठनों के उस दावे को भी जोशी ख़ारिज करते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि इस कानून को बनाते हुए किसी भी किसान या किसान संगठनों से बात नहीं की गई. अपने लेख में जोशी इस दावे को ख़ारिज करते हुए लिखते हैं, ‘‘यह एक अनुचित दावा है. पिछले दो दशकों से इसको लेकर चर्चा और बहस हुई है.’’

जोशी के दावे से इतर एक आरटीआई में जब भारत सरकार से पूछा गया कि इस कानून को लागू करने से पहले किस किसान या किसान संगठन से बात की गई थी तो इसका कोई जवाब नहीं आया. इतना ही नहीं सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार को खरी-खोटी सुनाते हुए कहा- ''हमें यह कहते हुए खेद है कि आप भारत संघ के रूप में समस्या का समाधान नहीं कर पा रहे हैं. कोर्ट ने ऐसा पाया कि आपने पर्याप्त परामर्श के बिना एक कानून बनाया है जिस कारण यह प्रदर्शन शुरू हुआ और अब आपको इसका हल भी करना होगा.''

दिसंबर में ही जोशी ने गांव कनेक्शन से बातचीत करते हुए एमएसपी को लेकर कानून बनाने पर कहा था, “कानूनन एमएसपी को अनिवार्य करना मुश्किल है. ऐसा दुनिया में कहीं भी मौजूद नहीं है, एमएसपी पर एक कानून का मतलब एमएसपी का अधिकार होगा. जिन लोगों को अपने फसल पर एमएसपी नहीं मिलती है, वे फिर अदालत का रुख कर सकते हैं, और एमएसपी नहीं देने वालों को दंडित किया जाएगा.’’

अनिल घनवत

अनिल धनवत शेतकरी संगठन के प्रमुख हैं. यह संगठन महाराष्ट्र का है जिसकी स्थापना किसान नेता शरद जोशी ने की थी.

शेतकरी संगठन का इन तीनों कानूनों को वापस लाने के खिलाफ है लेकिन किसानों की मांग के मुताबिक उसमें बदलाव करने की वकालत करता है.

शेतकरी संगठन ने अक्टूबर महीने में कृषि बिलों के समर्थन में प्रदर्शन भी किया था.

दिसंबर के महीने में मीडिया से बात करते हुए घनवत ने कहा था, ‘‘सरकार इन तीनों कानूनों को लागू न करके पहले किसानों से इसपर बात कर ले उसके बाद भले लागू करे. हालांकि, इन कानूनों को वापस लेने की आवश्यकता नहीं है.’’

दिसंबर महीने में ही घनवत ने मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की. मुलाकात करके निकलने के बाद इन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, ''पिछले 40 वर्षों में पहली बार किसानों को खुले बाजार से लाभ उठाने का मौका मिला.''

इन्होंने आगे कहा, ''अगर सिर्फ दो राज्यों के किसानों के दबाव में केंद्र सरकार इस अधिनियम को निरस्त करने का फैसला लेती है, तो ऐसे में यह सुधार शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाएंगे.”

भूपिंदर सिंह मान

बुजुर्ग किसान नेता भूपिंदर सिंह मान भारतीय किसान यूनियन (मान) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. वे राज्यसभा के सांसद भी रह चुके हैं. दिसंबर 2020 में मान ने तोमर से मुलाकात की. तब उन्होंने हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार और तमिलनाडु के किसानों के समूह का नेतृत्व किया था. इस प्रतिनिधि मंडल ने कृषि मंत्री को ज्ञापन सौंपकर मांग की थी कि तीन नए कानूनों को कुछ संशोधनों के साथ लागू किया जाए.’'

मान ने हिन्दू अख़बार को कृषि कानूनों को लेकर बताया था, ‘‘ये रिफ़ॉर्म कृषि को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए बेहद ज़रूरी है. लेकिन किसानों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा उपाय और जो भी इसमें कमी है उसे भी ठीक करने की ज़रूरत है.’’

मान ने सितंबर महीने में पीएम मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि इस बात की गारंटी दी जानी चाहिए कि किसानों को एमएसपी मिलेगी और कम दाम में खरीद करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होगी.

न्यूज़ 18 में छपी रिपोर्ट के मुताबिक मान ने अपने पत्र में लिखा था, ''इसके अलावा 9वें शेड्यूल में संशोधन होना चाहिए और कृषि जमीनों को इसके दायरे से बाहर करना चाहिए, ताकि किसान न्याय के लिए अदालतों के दरवाजे खटखटा सकें. जबकि कानून की मौजूदा स्थिति वह हालात पैदा करती है जिनमें किसानों को अभी तक आजादी नहीं मिली "आजाद देश के गुलाम किसान".

मान कृषि में निजी व्यवसाइयों को शामिल कराने के पुराने प्रस्तावक हैं. 2008 में मान और शेतकारी संगठन के शरद जोशी ने मनमोहन सिंह सरकार द्वारा पंजाब और हरियाणा से गेहूं की खरीद पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय के खिलाफ एक प्रदर्शन किया था.

'आंदोलन के कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं'

किसान संगठनों ने किसी भी कमेटी में शामिल होने की बात से पहले ही इंकार कर दिया था. हालांकि मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम मामले को सुलझाना चाहते हैं ऐसे में किसानों की यह बात हमें मंजूर नहीं कि वे कमेटी को नामंजूर करें.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किसान नेता दर्शनपाल ने बताया, ''संयुक्त किसान मोर्चा तीनों किसान विरोधी कानूनों के कार्यान्वयन पर स्टे लगाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करता है. यह आदेश हमारी इस मान्यता को पुष्ट करता है कि यह तीनों कानून असंवैधानिक है. लेकिन यह स्थगन आदेश अस्थाई है जिसे कभी भी पलटा जा सकता है. हमारा आंदोलन इन तीन कानूनों के स्थगन नहीं इन्हें रद्द करने के लिए चलाया जा रहा है. इसलिए केवल इस स्टे के आधार पर हम अपने कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं कर सकते.''

दर्शनपाल आगे कहते हैं, ''मोर्चा किसी भी कमेटी के प्रस्ताव को खारिज कर चुका है. हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं लेकिन हमने इस मामले में मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना नहीं की है और ऐसी किसी कमेटी से हमारा कोई संबंध नहीं है. चाहे यह कमेटी कोर्ट को तकनीकी राय देने के लिए बनी है या फिर किसानों और सरकार में मध्यस्थता के लिए, किसानों का इस कमेटी से कोई लेना देना नहीं है. आज कोर्ट ने जो चार सदस्य कमेटी घोषित की है उसके सभी सदस्य इन तीनों कानूनों के पैरोकार रहे हैं और पिछले कई महीनों से खुलकर इन कानूनों के पक्ष में माहौल बनाने की असफल कोशिश करते रहे हैं. यह अफसोस की बात है कि देश के सुप्रीम कोर्ट में अपनी मदद के लिए बनाई इस कमेटी में एक भी निष्पक्ष व्यक्ति को नहीं रखा है.''

आंदोलन में किसी तरह का बदलाव नहीं होने की बात कहते हुए दर्शनपाल ने बताया, ''मोर्चा द्वारा घोषित आंदोलन के कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं होगा. हमारे सभी पूर्व घोषित कार्यक्रम यानी 13 जनवरी लोहड़ी पर तीनों कानूनों को जलाने का कार्यक्रम, 18 जनवरी को महिला किसान दिवस मनाने, 20 जनवरी को श्री गुरु गोविंद सिंह की याद में शपथ लेने और 23 जनवरी को आज़ाद हिंद किसान दिवस पर देश भर में राजभवन का घेराव करने का कार्यक्रम जारी रहेगा. गणतंत्र दिवस 26 जनवरी के दिन देशभर के किसान दिल्ली पहुंचकर शांतिपूर्ण तरीके से "किसान गणतंत्र परेड" आयोजित करे गणतंत्र का गौरव बढ़ाएंगे.''

किसान संगठनों ने इस कमेटी में शामिल होने से इंकार कर दिया है ऐसे में देखने वाली बात होगी कि इस कमेटी का भविष्य क्या होता है.

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मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों पर अपना फैसला सुनाया है. फैसले में कोर्ट ने अस्थाई रूप से तीनों क़ानूनों पर रोक लगाते हुए चार सदस्यों की एक कमेटी का गठन किया है. इस कमेटी की ज़िम्मेदारी है कि इस मामले का हल निकाले.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई इस कमेटी में भारतीय किसान यूनियन (मान) के प्रमुख भूपिंदर मान सिंह, महाराष्ट्र शेतकरी संगठन के प्रमुख अनिल धनवत, इंटरनेशनल पॉलिसी के प्रमुख डॉ. प्रमोद कुमार जोशी और एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट अशोक गुलाटी शामिल हैं.

चार सदस्यों वाली कमेटी को प्रदर्शनकारी किसानों और उनके नेताओं से बातचीत करके मसले को सुलझाने की कोशिश करना है. हालांकि कमेटी को कोई फैसला देने का अधिकार नहीं है. कमेटी अपना सुझाव सुप्रीम कोर्ट को सौपेंगी.

कमेटी बनाने के सुझावों को किसान संगठनों ने सोमवार को ही मना कर दिया था. किसानों का कहना है कि वे कानून वापसी पर ही वह बातचीत करेंगे. ऐसे में कमेटी के गठन की बात कहते हुए मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा, ‘‘हम कमेटी का गठन कर रहे हैं ताकि हमारे सामने एक साफ तस्वीर आ सके. हम यह दलील नहीं सुनना चाहते हैं कि किसान कमेटी के सामने नहीं जाएंगे. हम समस्या का समाधान चाहते हैं. अगर आप अनिश्चित समय के लिए विरोध-प्रदर्शन करना चाहते हैं तो कर सकते हैं.’’

कमेटी के गठन के साथ ही इसमें शामिल सदस्यों को लेकर विवाद शुरू हो गया. राज्यसभा टीवी चैनल के पूर्व सीईओ गुरदीप सप्पल ने चारों सदस्यों से जुड़ी खबरें साझा करते हुए ट्वीट किया और लिखा- ‘‘समिति के सभी चार सदस्य पहले से ही कृषि कानूनों के लागू कराने को लेकर प्रतिबद्ध हैं.’’

अशोक गुलाटी

बीते साल मई में अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा था, "नरेंद्र मोदी सरकार देश की एग्री-मार्केटिंग व्यवस्था में सुधार करने के लिए तारीफ की हक़दार है." उन्होंने आगे जोड़ा कि "यह सुधार 'एग्री-मार्केटिंग क्षेत्र में बड़े बदलाव के परिचायक हो सकते है, यह कृषि के लिए वैसा ही होगा जैसा 1991 के आर्थिक सुधार थे.’’

साल 2015 में पद्म श्री से सम्मानित अशोक गुलाटी कई बड़े पदों पर रहे हैं. वर्तमान में वे भारतीय आर्थिक अनुसंधान परिषद के अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों पर कृषि के लिए इन्फोसिस के अध्यक्ष हैं.

साल 2020 के सितंबर महीने में इंडियन एक्सप्रेस अख़बार में "ऑन फार्म बिल्स, गवर्नमेंट मस्ट गेट इट्स एक्ट टूगेदर, बट ओप्पोसिशन इज मिस गाइड'’ शीर्षक से लिखे अपने लेख में गुलाटी तर्क देते हुए इन कृषि कानूनों के औचित्य पर लिखते हैं, ‘‘ किसानों को अपना प्रोडक्ट बेचने और खरीदारों को खरीदने और स्टोर करने के लिए कई रास्ते खुलेंगे और आज़ादी मिलेगी. इससे एग्री-मार्केटिंग में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी.’’

अपने इस लेख में गुलाटी चेतवानी देते हुए लिखते हैं, ''कभी-कभी अच्छे आइडिया, कानून खराब तरीके से लागू करने के कारण विफल होते हैं.'' अपने इस बयान के लिए वे साल 2018 में टमाटर, प्याज और आलू की कीमतों को स्थिर करने के लिए दिगंवत पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा शुरू की गई एक योजना का जिक्र करते हैं.

26 नवंबर से देशभर के किसान दिल्ली के बॉर्डर पर इन कानूनों के विरोध में पहुंचे हैं. इसके चार दिन बाद 30 नवंबर को इंडिया टुडे न्यूज़ चैनल के एंकर राजदीप सरदेसाई ने गुलाटी से पूछा कि आपको क्या लग रहा है. क्यों किसान इन तीनों कानूनों से खफा हैं? इस सवाल के जवाब में गुलाटी किसानों को बड़े पैमाने पर गुमराह होने की बात करते हुए कहते हैं, ''किसानों को लग रहा है कि कॉर्पोरेट कृषि पर कब्जा कर लेगा, न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो जाएगा और मंडी सिस्टम बर्बाद हो जाएगा.

यही नहीं गुलाटी ने दिसंबर महीने में द वायर न्यूज़ वेबसाइड से बात करते हुए कहा था, ‘‘केंद्र सरकार को 6 महीने के लिए कृषि कानूनों को निलंबित करना चाहिए. किसानों को मुआवजा देना चाहिए लेकिन कानूनों को निरस्त नहीं करना चाहिए.’’

इसी बीच किसान नेता राकेश टिकैत ने एक ट्वीट करते हुए दावा किया है- “अशोक गुलाटी की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने ही इन कानून को लाये जाने की सिफारिश की थी. माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित कमेटी के सभी सदस्य खुली बाजार व्यवस्था या कानून के समर्थक रहे हैं. देश का किसान इस फैसले से निराश है.’’

प्रमोद कुमार जोशी

कृषि नीति विशेषज्ञ और दक्षिण एशिया अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक प्रमोद कुमार जोशी ने 2014 में मिंट अख़बार को बताया- आर्थिक सर्वेक्षण में मंडी प्रणाली को खत्म करने और आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम में संशोधन करने की सिफारिश की गई है. "ऐसा करने से किसानों को बेहतर रिटर्न पाने और कृषि विविधीकरण को बढ़ावा देने में मदद करेगा. कम से कम उन राज्यों में जहां निजी बाजार पहले से ही विकसित हैं.’’

आज जो तीन नए कानून आए हैं उसमें एक ‘आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम’ है. वहीं मंडी सिस्टम खत्म होने का खतरा भी किसानों को लग रहा है. यानी छह साल पहले ही उस कानून की बात कुमार कर रहे थे. जो सरकार 2020 में लेकर आई है.

इस साल सितंबर महीने में इजरायली एग्री-बिजनेस कंसल्टिंग फर्म एग्रीविज़न द्वारा आयोजित एक पैनल चर्चा में जोशी ने कृषि कानूनों की तारीफ करते हुए कहा था, ''खेती को लाभदायक बनाने के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाने में यह मददगार होगा.'' वहीं एमएसपी के खत्म होने को लेकर किसानों के अंदर के डर को आधारहीन बताया था.

दिसंबर महीने में फाइनेंशियल एक्सप्रेस में दो लेखकों का एक लेख छपा. उसमें एक लेखक जोशी भी थे. इस लेख में जोशी ने किसानों पर सरकार के साथ अपनी शिकायतों का समाधान नहीं करने का आरोप लगाया. वो लिखते हैं, ‘‘यह अफ़सोसजनक है कि सरकार द्वारा किसानों की वास्तविक मांगों पर सकारात्मक प्रतिक्रया के बावजूद यह आंदोलन खत्म नहीं हो रहा है.’’

जोशी ने प्रदर्शनकारियों पर केंद्र के साथ हर वार्ता से पहले गोलपोस्ट बदलने का भी आरोप लगाया. किसान संगठनों के उस दावे को भी जोशी ख़ारिज करते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि इस कानून को बनाते हुए किसी भी किसान या किसान संगठनों से बात नहीं की गई. अपने लेख में जोशी इस दावे को ख़ारिज करते हुए लिखते हैं, ‘‘यह एक अनुचित दावा है. पिछले दो दशकों से इसको लेकर चर्चा और बहस हुई है.’’

जोशी के दावे से इतर एक आरटीआई में जब भारत सरकार से पूछा गया कि इस कानून को लागू करने से पहले किस किसान या किसान संगठन से बात की गई थी तो इसका कोई जवाब नहीं आया. इतना ही नहीं सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार को खरी-खोटी सुनाते हुए कहा- ''हमें यह कहते हुए खेद है कि आप भारत संघ के रूप में समस्या का समाधान नहीं कर पा रहे हैं. कोर्ट ने ऐसा पाया कि आपने पर्याप्त परामर्श के बिना एक कानून बनाया है जिस कारण यह प्रदर्शन शुरू हुआ और अब आपको इसका हल भी करना होगा.''

दिसंबर में ही जोशी ने गांव कनेक्शन से बातचीत करते हुए एमएसपी को लेकर कानून बनाने पर कहा था, “कानूनन एमएसपी को अनिवार्य करना मुश्किल है. ऐसा दुनिया में कहीं भी मौजूद नहीं है, एमएसपी पर एक कानून का मतलब एमएसपी का अधिकार होगा. जिन लोगों को अपने फसल पर एमएसपी नहीं मिलती है, वे फिर अदालत का रुख कर सकते हैं, और एमएसपी नहीं देने वालों को दंडित किया जाएगा.’’

अनिल घनवत

अनिल धनवत शेतकरी संगठन के प्रमुख हैं. यह संगठन महाराष्ट्र का है जिसकी स्थापना किसान नेता शरद जोशी ने की थी.

शेतकरी संगठन का इन तीनों कानूनों को वापस लाने के खिलाफ है लेकिन किसानों की मांग के मुताबिक उसमें बदलाव करने की वकालत करता है.

शेतकरी संगठन ने अक्टूबर महीने में कृषि बिलों के समर्थन में प्रदर्शन भी किया था.

दिसंबर के महीने में मीडिया से बात करते हुए घनवत ने कहा था, ‘‘सरकार इन तीनों कानूनों को लागू न करके पहले किसानों से इसपर बात कर ले उसके बाद भले लागू करे. हालांकि, इन कानूनों को वापस लेने की आवश्यकता नहीं है.’’

दिसंबर महीने में ही घनवत ने मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की. मुलाकात करके निकलने के बाद इन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, ''पिछले 40 वर्षों में पहली बार किसानों को खुले बाजार से लाभ उठाने का मौका मिला.''

इन्होंने आगे कहा, ''अगर सिर्फ दो राज्यों के किसानों के दबाव में केंद्र सरकार इस अधिनियम को निरस्त करने का फैसला लेती है, तो ऐसे में यह सुधार शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाएंगे.”

भूपिंदर सिंह मान

बुजुर्ग किसान नेता भूपिंदर सिंह मान भारतीय किसान यूनियन (मान) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. वे राज्यसभा के सांसद भी रह चुके हैं. दिसंबर 2020 में मान ने तोमर से मुलाकात की. तब उन्होंने हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार और तमिलनाडु के किसानों के समूह का नेतृत्व किया था. इस प्रतिनिधि मंडल ने कृषि मंत्री को ज्ञापन सौंपकर मांग की थी कि तीन नए कानूनों को कुछ संशोधनों के साथ लागू किया जाए.’'

मान ने हिन्दू अख़बार को कृषि कानूनों को लेकर बताया था, ‘‘ये रिफ़ॉर्म कृषि को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए बेहद ज़रूरी है. लेकिन किसानों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा उपाय और जो भी इसमें कमी है उसे भी ठीक करने की ज़रूरत है.’’

मान ने सितंबर महीने में पीएम मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि इस बात की गारंटी दी जानी चाहिए कि किसानों को एमएसपी मिलेगी और कम दाम में खरीद करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होगी.

न्यूज़ 18 में छपी रिपोर्ट के मुताबिक मान ने अपने पत्र में लिखा था, ''इसके अलावा 9वें शेड्यूल में संशोधन होना चाहिए और कृषि जमीनों को इसके दायरे से बाहर करना चाहिए, ताकि किसान न्याय के लिए अदालतों के दरवाजे खटखटा सकें. जबकि कानून की मौजूदा स्थिति वह हालात पैदा करती है जिनमें किसानों को अभी तक आजादी नहीं मिली "आजाद देश के गुलाम किसान".

मान कृषि में निजी व्यवसाइयों को शामिल कराने के पुराने प्रस्तावक हैं. 2008 में मान और शेतकारी संगठन के शरद जोशी ने मनमोहन सिंह सरकार द्वारा पंजाब और हरियाणा से गेहूं की खरीद पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय के खिलाफ एक प्रदर्शन किया था.

'आंदोलन के कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं'

किसान संगठनों ने किसी भी कमेटी में शामिल होने की बात से पहले ही इंकार कर दिया था. हालांकि मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम मामले को सुलझाना चाहते हैं ऐसे में किसानों की यह बात हमें मंजूर नहीं कि वे कमेटी को नामंजूर करें.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किसान नेता दर्शनपाल ने बताया, ''संयुक्त किसान मोर्चा तीनों किसान विरोधी कानूनों के कार्यान्वयन पर स्टे लगाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करता है. यह आदेश हमारी इस मान्यता को पुष्ट करता है कि यह तीनों कानून असंवैधानिक है. लेकिन यह स्थगन आदेश अस्थाई है जिसे कभी भी पलटा जा सकता है. हमारा आंदोलन इन तीन कानूनों के स्थगन नहीं इन्हें रद्द करने के लिए चलाया जा रहा है. इसलिए केवल इस स्टे के आधार पर हम अपने कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं कर सकते.''

दर्शनपाल आगे कहते हैं, ''मोर्चा किसी भी कमेटी के प्रस्ताव को खारिज कर चुका है. हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं लेकिन हमने इस मामले में मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना नहीं की है और ऐसी किसी कमेटी से हमारा कोई संबंध नहीं है. चाहे यह कमेटी कोर्ट को तकनीकी राय देने के लिए बनी है या फिर किसानों और सरकार में मध्यस्थता के लिए, किसानों का इस कमेटी से कोई लेना देना नहीं है. आज कोर्ट ने जो चार सदस्य कमेटी घोषित की है उसके सभी सदस्य इन तीनों कानूनों के पैरोकार रहे हैं और पिछले कई महीनों से खुलकर इन कानूनों के पक्ष में माहौल बनाने की असफल कोशिश करते रहे हैं. यह अफसोस की बात है कि देश के सुप्रीम कोर्ट में अपनी मदद के लिए बनाई इस कमेटी में एक भी निष्पक्ष व्यक्ति को नहीं रखा है.''

आंदोलन में किसी तरह का बदलाव नहीं होने की बात कहते हुए दर्शनपाल ने बताया, ''मोर्चा द्वारा घोषित आंदोलन के कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं होगा. हमारे सभी पूर्व घोषित कार्यक्रम यानी 13 जनवरी लोहड़ी पर तीनों कानूनों को जलाने का कार्यक्रम, 18 जनवरी को महिला किसान दिवस मनाने, 20 जनवरी को श्री गुरु गोविंद सिंह की याद में शपथ लेने और 23 जनवरी को आज़ाद हिंद किसान दिवस पर देश भर में राजभवन का घेराव करने का कार्यक्रम जारी रहेगा. गणतंत्र दिवस 26 जनवरी के दिन देशभर के किसान दिल्ली पहुंचकर शांतिपूर्ण तरीके से "किसान गणतंत्र परेड" आयोजित करे गणतंत्र का गौरव बढ़ाएंगे.''

किसान संगठनों ने इस कमेटी में शामिल होने से इंकार कर दिया है ऐसे में देखने वाली बात होगी कि इस कमेटी का भविष्य क्या होता है.

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