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किसान ट्रैक्टर मार्च: "यह तो ट्रेलर है पिक्चर तो 26 जनवरी पर चलेगी"

केंद्र सरकार के नए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले एक महीने से ज्यादा समय से प्रदर्शन कर रहे किसानों ने बृहस्पतिवार को ट्रैक्टर रैली निकाली. किसानों ने इस रैली को 26 जनवरी से पहले का एक ट्रायल बताया और चेतावनी दी कि अगर सरकार ने इन बिलों को वापस नहीं लिया तो गणतंत्र दिवस पर यानी 26 जनवरी के दिन लाल किले पर ट्रैक्टर परेड निकालेंगे. आज उसका रिहर्सल किया गया है. किसानों ने सुबह 11 बजे दिल्ली की सीमाओं और पेरिफेरल एक्सप्रेसवे पर ट्रैक्टर मार्च निकालना शुरू किया, जो शाम तक जारी रहा. किसानों ने हजारों ट्रैक्टरों के साथ सिंघु बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर से कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे की तरफ मार्च किया. जिस कारण हाईवे पर शाम तक किसानों का कब्जा रहा. इसे देखते हुए कई जगहों पर रूट डायवर्ट भी किया गया.

किसानों की इस ट्रैक्टर परेड को लेकर सुरक्षा के भी कड़े बंदोबस्त किए गए थे. चप्पे-चप्पे पर दिल्ली पुलिस और हरियाणा पुलिस के कर्मियों की भारी तैनाती की गई थी. यह मार्च पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा और किसी अप्रिय घटना की सूचना नहीं मिली.

इस दौरान न्यूजलॉन्ड्री की टीम भी ग्राउंड पर मौदूज रही. जब हम सिंघु बॉर्डर से आगे बढ़ते हुए कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे के मुख्य पॉइंट पर पहुंचे तो किसान ट्रैक्टरों और अन्य वाहनों में भरकर टिकरी और कुंडली बॉर्डर की तरफ मार्च के लिए निकल रहे थे. इस दौरान इनका उत्साह देखते ही बन रहा था. किसान सरकार से बिलों को वापस लेने की मांग से साथ ‘गोदी मीडिया मुर्दाबाद’ के नारे लगा रहे थे.

हम भी एक ट्रैक्टर पर बैठकर लगभग 10 किलोमीटर तक इस मार्च में शामिल हुए. यहां हमसे हुई बातचीत में किसानों ने इस परेड को पूरी तरह सफल बताते हुए उम्मीद से ज्यादा समर्थन मिलने का दावा किया.

हरियाणा सोनीपत के गौहाना तहसील से आए 45 साल के राजू प्रधान सिंघु बॉर्डर पर अपने गांव के नरेश कुमार, ओमसिंह, रोहित व अन्य लोगों के साथ मौजूद थे.

ट्रैक्टर परेड के बारे में राजू प्रधान कहते हैं, “ये सरकार के लिए एक चेतावनी है कि या तो मान जाए वरना पूरी फिल्म 26 जनवरी को दिखाएंगे. अगर इसके बाद भी सरकार नहीं मानती तो हमें भी कोई काम नहीं है. गेंहू बोकर आ चुके हैं और बारिश भी पड़ गई है. ये तो आर-पार लड़ाई है. अगर खाली वापस गए तो घर वाले मारेंगे, इससे तो बेहतर है कि यहीं मर जाएं, कम से कम शहीदों में तो गिनती हो जाएगी.”

राजू प्रधान ने दावा किया कि परेड में 20 से 30 हजार ट्रैक्टर तो सिर्फ हरियाणा के शामिल हुए हैं. और पंजाब के किसानों को हरियाणा का पूरा सपोर्ट है. इस बात की तस्दीक पंजाब के किसान भी कर रहे हैं कि हरियाणा के अलावा गैर किसानों ने भी हमें उम्मीद से ज्यादा सपोर्ट किया है.

अमृतसर के 40 साल के सरदार साहब सिंह ट्रैक्टर परेड में शामिल होकर वापस सिंघु बॉर्डर लौट रहे थे. हम उनके साथ उनके सोनालीका ट्रैक्टर पर बैठ गए और उनसे बात की.

सरदार साहब सिंह ने कहा, “अगर हरियाणा वाले सपोर्ट न करते तो आंदोलन मुश्किल हो जाता. यह कहते हैं, कि आप हमारे पीछे चलो, हम देख लेंगे. हमसे ज्यादा तो उन्हीं का सपोर्ट है. इसके अलावा गैर किसान भी सपोर्ट में हैं. अब तो इतने दृढ़ इरादे हैं कि एक भी आदमी यहां से जाएगा नहीं. वैसे भी हमने गांवों में लोगों की कमेटी बना दी हैं जो हमारे वहां न रहने पर देखभाल और काम की जिम्मेदारी लेंगी.”

ट्रैक्टर परेड के बारे मे पूछने पर सरदार सिंह ने कहा, “पूरी तरह परेड सफल रही है. 20-25 किलोमाटर तक सड़क ब्ल़ॉक हो गई थी. सरकार को बता और दिखा दिया है कि उसे बिल वापस लेना ही पड़ेगा.”

परेड में युवा, बुजुर्ग और छात्र भी शामिल हुए. ऐसे ही 7वीं में पढ़ने वाले एक छात्र से हमने बात की.

अमृतसर का 13 साल के गुरुसेवक सिंह अपने गांव को दो अन्य युवकों कुलदीप सिंह और हरवंत सिंह के साथ ट्रैक्टर परेड में शामिल हुए. एक महीने से ज्यादा समय से किसान आंदोलन में डेरा डाले गुरुसेवक ने बताया, “वे सिंघु से टिकरी बॉर्डर तक मार्च में शामिल थे. आज तो ट्रेलर दिया है. बाकि 26 जनवरी को तिरंगे के साथ किसान पार्लियामेंट के पास जाकर परेड करेंगे. पंजाब में सभी परिवारों से एक आदमी को परेड में भेजने की अपील की जा रही है. गणतंत्र दिवस पर हम सरकार को ये बताना चाहते हैं कि जो आजादी हमें मिली है वह अभी अधूरी है.”

गुरुसेवक ने ट्रैक्टर परेड पर कहा, “शांतिपूर्ण तरीके से हमने मार्च किया है. हमारी इन बातों का असर भी हो रहा है. देखो अब यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने गणतंत्र दिवस पर आने से मना कर दिया है. भले ही वजह कोरोना बताया हो लेकिन ये सब इसी आंदोलन का असर है. यही हमारी सबसे बड़ी जीत है.”

पढ़ाई की उम्र में आंदोलन के सवाल पर गुरुसेवक ने कहा, “पढ़ाई भी कर रहे हैं. ऑनलाइन क्लास चल रही हैं तो यहीं से कर लेते हैं.”

ट्रैक्टर परेड में शामिल हुए लोग अपने-अपने तरीके से समर्थन कर रहे थे. कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे के मुख्य पॉइंट पर ऐसे ही कुछ युवाओं से हमारी मुलाकात हुई. ये लोग ट्रैक्टरों को मैनेज करने का काम कर रहे थे. पटियाला के अरविंदर विर्क पेशे से किसान हैं, साथ ही जॉन डियर ट्रैक्टर कम्पनी के साथ कारोबार से भी जुड़े हैं. अरविंदर ने हमें बताया, "उनका 10-15 लोगों का ग्रुप है जो इस आंदोलन में जरूरत की चीजों पर ध्यान रखता है. जिस चीज की भी जरूरत होती है. उसे पूरा करने की कोशिश करता है. चाहे साफ-सफाई हो, खाना-पीना या कुछ और."

ट्रैक्टर परेड के बारे में अरविंदर कहते हैं, “आज ये हमारा ट्रायल है. बाकि इसके तहत हम सरकार को बताना चाहते हैं कि हम 26 जनवरी को क्या करने वाले हैं. क्योंकि किसी भी सरकार की ताकत नहीं है कि जनता को दबा दे. सरकार झुकेगी, उसे बिल वापस लेना होगा.”

साइकोलॉजी की पढ़ाई कर चुकीं रवनीत कौर भी इसी ग्रुप की सदस्य हैं, वे एक सिंगर भी हैं. जो यहां किसानों और ट्रैक्टर परेड को समर्थन देने आई हैं. वह कहती हैं, “हम किसानों को यह दिखाने के लिए कि हम उनके साथ हैं, एकजुट हैं, यहां आए हैं. आज की ये परेड 26 जनवरी की रिहर्सल है. हम यूथ हैं, तो हम इस आंदोलन के बारे में लोगों को अच्छे से जागरूक कर सकते हैं. जितनी भी बड़ी लड़ाई होती है, वो लम्बी ही चलती है. किसान उसके लिए तैयार हैं. किसान सड़क पर हैं तो हम घर में कैसे रह सकते है.”

पंजाब यूनिवर्सिटी से लॉ फाइनल ईयर की पढ़ाई कर रहे दीपेंदर विर्क भी ट्रैक्टर परेड में वॉलंटियर की भूमिका में थे. दीपेंदर पास ही खेतों की ओर हाथ उठाकर कहते हैं, “ये हमारी मां है. इसके बिना हमें चैन नहीं आता. हम चाहें लाख रूपए दिन में कमाएं लेकिन जो खुशी हमें फसल बेचकर आए पैसों से मिलती है, वो वैसे कभी नहीं मिलती. हमारे यहां बाप खेती करेगा और बेटे को पढ़ाएगा.”

शाम को जब हम सिंघु बॉर्डर से वापस लौट रहे थे तब तक भी किसानों का मार्च से वापस आने का सिलसिला नहीं रुका था.

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केंद्र सरकार के नए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले एक महीने से ज्यादा समय से प्रदर्शन कर रहे किसानों ने बृहस्पतिवार को ट्रैक्टर रैली निकाली. किसानों ने इस रैली को 26 जनवरी से पहले का एक ट्रायल बताया और चेतावनी दी कि अगर सरकार ने इन बिलों को वापस नहीं लिया तो गणतंत्र दिवस पर यानी 26 जनवरी के दिन लाल किले पर ट्रैक्टर परेड निकालेंगे. आज उसका रिहर्सल किया गया है. किसानों ने सुबह 11 बजे दिल्ली की सीमाओं और पेरिफेरल एक्सप्रेसवे पर ट्रैक्टर मार्च निकालना शुरू किया, जो शाम तक जारी रहा. किसानों ने हजारों ट्रैक्टरों के साथ सिंघु बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर से कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे की तरफ मार्च किया. जिस कारण हाईवे पर शाम तक किसानों का कब्जा रहा. इसे देखते हुए कई जगहों पर रूट डायवर्ट भी किया गया.

किसानों की इस ट्रैक्टर परेड को लेकर सुरक्षा के भी कड़े बंदोबस्त किए गए थे. चप्पे-चप्पे पर दिल्ली पुलिस और हरियाणा पुलिस के कर्मियों की भारी तैनाती की गई थी. यह मार्च पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा और किसी अप्रिय घटना की सूचना नहीं मिली.

इस दौरान न्यूजलॉन्ड्री की टीम भी ग्राउंड पर मौदूज रही. जब हम सिंघु बॉर्डर से आगे बढ़ते हुए कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे के मुख्य पॉइंट पर पहुंचे तो किसान ट्रैक्टरों और अन्य वाहनों में भरकर टिकरी और कुंडली बॉर्डर की तरफ मार्च के लिए निकल रहे थे. इस दौरान इनका उत्साह देखते ही बन रहा था. किसान सरकार से बिलों को वापस लेने की मांग से साथ ‘गोदी मीडिया मुर्दाबाद’ के नारे लगा रहे थे.

हम भी एक ट्रैक्टर पर बैठकर लगभग 10 किलोमीटर तक इस मार्च में शामिल हुए. यहां हमसे हुई बातचीत में किसानों ने इस परेड को पूरी तरह सफल बताते हुए उम्मीद से ज्यादा समर्थन मिलने का दावा किया.

हरियाणा सोनीपत के गौहाना तहसील से आए 45 साल के राजू प्रधान सिंघु बॉर्डर पर अपने गांव के नरेश कुमार, ओमसिंह, रोहित व अन्य लोगों के साथ मौजूद थे.

ट्रैक्टर परेड के बारे में राजू प्रधान कहते हैं, “ये सरकार के लिए एक चेतावनी है कि या तो मान जाए वरना पूरी फिल्म 26 जनवरी को दिखाएंगे. अगर इसके बाद भी सरकार नहीं मानती तो हमें भी कोई काम नहीं है. गेंहू बोकर आ चुके हैं और बारिश भी पड़ गई है. ये तो आर-पार लड़ाई है. अगर खाली वापस गए तो घर वाले मारेंगे, इससे तो बेहतर है कि यहीं मर जाएं, कम से कम शहीदों में तो गिनती हो जाएगी.”

राजू प्रधान ने दावा किया कि परेड में 20 से 30 हजार ट्रैक्टर तो सिर्फ हरियाणा के शामिल हुए हैं. और पंजाब के किसानों को हरियाणा का पूरा सपोर्ट है. इस बात की तस्दीक पंजाब के किसान भी कर रहे हैं कि हरियाणा के अलावा गैर किसानों ने भी हमें उम्मीद से ज्यादा सपोर्ट किया है.

अमृतसर के 40 साल के सरदार साहब सिंह ट्रैक्टर परेड में शामिल होकर वापस सिंघु बॉर्डर लौट रहे थे. हम उनके साथ उनके सोनालीका ट्रैक्टर पर बैठ गए और उनसे बात की.

सरदार साहब सिंह ने कहा, “अगर हरियाणा वाले सपोर्ट न करते तो आंदोलन मुश्किल हो जाता. यह कहते हैं, कि आप हमारे पीछे चलो, हम देख लेंगे. हमसे ज्यादा तो उन्हीं का सपोर्ट है. इसके अलावा गैर किसान भी सपोर्ट में हैं. अब तो इतने दृढ़ इरादे हैं कि एक भी आदमी यहां से जाएगा नहीं. वैसे भी हमने गांवों में लोगों की कमेटी बना दी हैं जो हमारे वहां न रहने पर देखभाल और काम की जिम्मेदारी लेंगी.”

ट्रैक्टर परेड के बारे मे पूछने पर सरदार सिंह ने कहा, “पूरी तरह परेड सफल रही है. 20-25 किलोमाटर तक सड़क ब्ल़ॉक हो गई थी. सरकार को बता और दिखा दिया है कि उसे बिल वापस लेना ही पड़ेगा.”

परेड में युवा, बुजुर्ग और छात्र भी शामिल हुए. ऐसे ही 7वीं में पढ़ने वाले एक छात्र से हमने बात की.

अमृतसर का 13 साल के गुरुसेवक सिंह अपने गांव को दो अन्य युवकों कुलदीप सिंह और हरवंत सिंह के साथ ट्रैक्टर परेड में शामिल हुए. एक महीने से ज्यादा समय से किसान आंदोलन में डेरा डाले गुरुसेवक ने बताया, “वे सिंघु से टिकरी बॉर्डर तक मार्च में शामिल थे. आज तो ट्रेलर दिया है. बाकि 26 जनवरी को तिरंगे के साथ किसान पार्लियामेंट के पास जाकर परेड करेंगे. पंजाब में सभी परिवारों से एक आदमी को परेड में भेजने की अपील की जा रही है. गणतंत्र दिवस पर हम सरकार को ये बताना चाहते हैं कि जो आजादी हमें मिली है वह अभी अधूरी है.”

गुरुसेवक ने ट्रैक्टर परेड पर कहा, “शांतिपूर्ण तरीके से हमने मार्च किया है. हमारी इन बातों का असर भी हो रहा है. देखो अब यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने गणतंत्र दिवस पर आने से मना कर दिया है. भले ही वजह कोरोना बताया हो लेकिन ये सब इसी आंदोलन का असर है. यही हमारी सबसे बड़ी जीत है.”

पढ़ाई की उम्र में आंदोलन के सवाल पर गुरुसेवक ने कहा, “पढ़ाई भी कर रहे हैं. ऑनलाइन क्लास चल रही हैं तो यहीं से कर लेते हैं.”

ट्रैक्टर परेड में शामिल हुए लोग अपने-अपने तरीके से समर्थन कर रहे थे. कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे के मुख्य पॉइंट पर ऐसे ही कुछ युवाओं से हमारी मुलाकात हुई. ये लोग ट्रैक्टरों को मैनेज करने का काम कर रहे थे. पटियाला के अरविंदर विर्क पेशे से किसान हैं, साथ ही जॉन डियर ट्रैक्टर कम्पनी के साथ कारोबार से भी जुड़े हैं. अरविंदर ने हमें बताया, "उनका 10-15 लोगों का ग्रुप है जो इस आंदोलन में जरूरत की चीजों पर ध्यान रखता है. जिस चीज की भी जरूरत होती है. उसे पूरा करने की कोशिश करता है. चाहे साफ-सफाई हो, खाना-पीना या कुछ और."

ट्रैक्टर परेड के बारे में अरविंदर कहते हैं, “आज ये हमारा ट्रायल है. बाकि इसके तहत हम सरकार को बताना चाहते हैं कि हम 26 जनवरी को क्या करने वाले हैं. क्योंकि किसी भी सरकार की ताकत नहीं है कि जनता को दबा दे. सरकार झुकेगी, उसे बिल वापस लेना होगा.”

साइकोलॉजी की पढ़ाई कर चुकीं रवनीत कौर भी इसी ग्रुप की सदस्य हैं, वे एक सिंगर भी हैं. जो यहां किसानों और ट्रैक्टर परेड को समर्थन देने आई हैं. वह कहती हैं, “हम किसानों को यह दिखाने के लिए कि हम उनके साथ हैं, एकजुट हैं, यहां आए हैं. आज की ये परेड 26 जनवरी की रिहर्सल है. हम यूथ हैं, तो हम इस आंदोलन के बारे में लोगों को अच्छे से जागरूक कर सकते हैं. जितनी भी बड़ी लड़ाई होती है, वो लम्बी ही चलती है. किसान उसके लिए तैयार हैं. किसान सड़क पर हैं तो हम घर में कैसे रह सकते है.”

पंजाब यूनिवर्सिटी से लॉ फाइनल ईयर की पढ़ाई कर रहे दीपेंदर विर्क भी ट्रैक्टर परेड में वॉलंटियर की भूमिका में थे. दीपेंदर पास ही खेतों की ओर हाथ उठाकर कहते हैं, “ये हमारी मां है. इसके बिना हमें चैन नहीं आता. हम चाहें लाख रूपए दिन में कमाएं लेकिन जो खुशी हमें फसल बेचकर आए पैसों से मिलती है, वो वैसे कभी नहीं मिलती. हमारे यहां बाप खेती करेगा और बेटे को पढ़ाएगा.”

शाम को जब हम सिंघु बॉर्डर से वापस लौट रहे थे तब तक भी किसानों का मार्च से वापस आने का सिलसिला नहीं रुका था.

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