Newslaundry Hindi
सिंघु बॉर्डर पर नया साल: 'जिन घरों में मौत हो जाए वहां मातम मनाया जाता है खुशी नहीं’
दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर बैठे प्रदर्शनकारी किसानों के लिए अभी नया साल नहीं आया है. एक तरफ जहां तमाम लोग 2021 के स्वागत की तैयारियों में जुटे हुए थे वहीं सिंघु बॉर्डर पर रात दस बजे ज़्यादातर किसान अपनी ट्रॉली में, ट्रॉली के नीचे या पंडालों में सोते नजर आए. यहां पर अलग-अलग राज्यों से आए कुछ नौजवान किसान, किसानों की मांगों को समर्थन देने वाले दिल्ली के आम नागरिक, सामाजिक कार्यकर्ता और छात्र टहलते नजर आते हैं. वहीं कुछ नौजवान मंच के सामने घेरा बनाकर नुक्कड़ नाटक करते दिखते है. इस नाटक का मुख्य किरदार 'अंबानी' होता है. नौजवान अपने नाटक के जरिए यह बताने की कोशिश करते हैं कि कैसे अंबानी लोगों को अपना गुलाम बना रहे हैं.
दिसंबर के आखिरी दिन की इस सर्द रात में सुरक्षा में तैनात किसान नौजवान लोगों को प्रदर्शन स्थल से जाने की बात कहते नजर आते हैं. उन्हें डर है कि असामाजिक तत्व अपनी हरकतों से आंदोलन को बदनाम कर सकते हैं. इनका कहना है कि ये पिछले एक महीने में ऐसा करने की कोशिश करने वाले कई लोगों को पकड़कर पुलिस को सौंप चुके है.
रात के 12:00 बजते ही सिंघु बॉर्डर के मुख्य मंच के सामने सैकड़ों की संख्या में नौजवान पहुंच गए. किसान एकता जिंदाबाद के नारे के साथ वे एक दूसरे को नए साल की शुभकामनाएं देते नजर आए. इसी बीच कुछ नौजवान पटाखों के साथ वहां पहुंचे और उन्हें जलाने लगे. आसमान में जाकर रंगबिरंगी किरणे फैलाने वाले पटाखे जब जलने लगे तो वहां कुछ बुजुर्ग किसान पहुंचकर जश्न नहीं मनाने की बात करते नजर आए. इस मनाही के बाद किसान एकता जिंदाबाद, काले कानून वापस लो और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ खूब नारे लगे.
नारे लगाकर अब धीरे-धीरे लोग यहां से हटने लगे हैं. लोगों के हटते ही कुछ नौजवान झाड़ू लेकर सफाई शुरू करते नजर आते हैं इसी में से एक मोहाली के रहने वाले हरदेव सिंह बब्बर न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘हमारे लिए आज कोई जश्न का दिन नहीं है. हमारे लिए हर बीतता दिन जख्म का दिन है. जब तक सरकार इन काले क़ानूनों को वापस नहीं ले लेती हम में से कोई जश्न नहीं मनाएगा. जहां तक रही पटाखे जलाने की बात तो कुछ नौजवानों ने ऐसा किया हालांकि हमने उन्हें रोक दिया. जिस रोज कानून वापस होगा हम जश्न मनाते हुए पंजाब वापस जाएंगे.’’
पिछले साल आज के दिन आप कहां थे और नए साल का स्वागत कैसे कर रहे थे. इस सवाल के जवाब में हरदेव सिंह बब्बर बताते हैं, ‘‘पिछले साल अपने दोस्तों और परिवार के लोगों के साथ पंचकूला के नाडा साहिब गुरुद्वारे माथा टेकने गया था. इस बार हम यहां आए हुए है. यहां हम अपने कल को सुरक्षित करने आए हैं.’’
‘जिनके घर मौत हुई हो वहां मातम मनाया जाता है ख़ुशी नहीं’
पटियाला के रहने वाले जगवीर सिंह 26 नवंबर से ही दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में मौजूद हैं. वे कहते हैं, ‘‘हमने पहले पंजाब में दो महीने तक आंदोलन किया और फिर दिल्ली पहुंचे. हम यहां से तब तक नहीं जाने वाले हैं जब तक सरकार इन तीनों काले कानूनों को वापस नहीं ले लेती.’’
केंद्र सरकार पर नाराजगी जाहिर करते हुए जगवीर कहते हैं, ‘‘मुझे तो शर्म आती है कि एक तरफ वह हमसे बातचीत कर रहे हैं और दूसरी तरफ गोदी मीडिया के जरिए हमें बदनाम करने के लिए कभी खालिस्तानी आ गए, नक्सली आ गए, टुकड़े टुकड़े गैंग आ गए और शाहिनबाग वाले आ गए कहते हैं. मैं तो आप के जरिए अपने नेताओं से यह मांग करता हूं की आप सरकार के सामने शर्त रखें कि हम आपके साथ मीटिंग तब करेंगे जब आपकी गोदी मीडिया ऐसा कहना बंद कर दे.’’
नया साल मनाने के सवाल पर जगवीर कहते हैं, ‘‘हम नया साल नहीं मनाएंगे क्योंकि नया साल तो तब होता जब अगर मोदी सरकार यह काले कानून वापस ले लेती. यह नया साल मोदी अडानी और अंबानी के लिए आया है. हमारे तो 40-50 बुजुर्ग, महिलाएं और जवान बेटे शहीद हो गए हैं. जिस घर में कोई मौत हो जाए वहां ख़ुशी नहीं मातम मनाया जाता है.’’
जब हमने जगवीर से पूछा कि बीते साल आज के दिन आप कहां थे तो उन्होंने बताया, ‘‘मैं अपने दोस्तों के साथ नया साल मनाने शिमला गया था. लेकिन इस बार हमारे घर पर अटैक हो गया है. यह अटैक मोदी सरकार, अडानी और अंबानी ने किया है. खुशी तो तब मनाई जाती है जब सारा काम सेट हो, लेकिन हम लोग अभी परेशान हैं.’’
जगवीर सिंह के पास के ही गांव के रहने वाले उनके दोस्त तरणवीर सिंह न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए बताते हैं, ‘‘मैं और जगवीर साथ ही शिमला गए थे. हम हर साल नया साल मनाने के लिए अलग-अलग जगहों पर जाते हैं. इस बार मैं नया साल नहीं मना रहा हूं. हमारे 41 से ज्यादा लोग शहीद हो चुके हैं. हम तो उन्हें शहीद ही कहेंगे. ऐसे में हमें अच्छा नहीं लगता कि हम खुशी जाहिर करें. हमारे लिए तो मातम है ना. हमारे लिए नया साल तब होगा जब मोदी सरकार इन तीनों कानूनों को वापस ले लेगी.’’
एक मिनट का मौन
रात के अब एक बजने वाले हैं. माइक के जरिए प्रदर्शन के दौरान जिन लोगों का निधन हुआ है उनके याद में एक मिनट मौन रखने की घोषणा की जाती है. सैकड़ों मोमबत्ती को जलाया जाता है और उसके इर्द-गिर्द लोग खड़े होकर एक मिनट का मौन रखते हैं.
यहां हमारी मुलाकात फिरोजपुर से आए दलजीत सिंह से होती है. पंजाब सरकार के शिक्षा विभाग के कर्मचारी दलजीत अपने सैकड़ों साथियों के साथ 31 दिसंबर की शाम ही मोटरसाइकिल से दिल्ली पहुंचे हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए दलजीत कहते हैं, ‘‘हम गाड़ियों से भी आ सकते थे, लेकिन हमारे बड़े बुजुर्ग और साथी यहां ठंड में बैठे हुए हैं तो इनके दर्द को महसूस करने के लिए हमने बाइक से आने का फैसला किया. हम कुछ लोग चले थे लेकिन रास्ते में लोग जुड़ते गए और जब यहां पहुंचे तो हमारे साथ कम से कम सौ मोटरसाइकिल हैं.’’
साल 2020 का जश्न मनाने स्वर्ण मंदिर जाने वाले दलजीत नए साल के जश्न के सवाल पर कहते हैं, ‘‘हमारे लिए तो दुख की घड़ी है. हमारे जो लोग शहीद हुए हैं उनके सपने जब तक पूरे नहीं हो जाते तब तक हम नए साल का जश्न कैसे मना सकते हैं. आज हम उनको याद कर रहे हैं. हम नया साल तब ही मनाएंगे जब तीनों काले कानून रद्द होंगे. हम ख़ुशी-ख़ुशी वापस घर जाएंगे तभी हमारे लिए नया साल होगा.’’
यहीं मिले 38 वर्षीय सतवीर सिंह ट्रॉली के नीचे सो रहे एक बुजुर्ग की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, ‘‘मोदी सरकार के लोगों के पास दिल है या नहीं? ठंड देख रहे हो. हम लोग नौजवान हैं फिर भी खड़े नहीं हो पा रहे हैं. यहां बुजुर्ग महीनों से बैठे हुए हैं लेकिन ये सरकार सुनने को तैयार नहीं है. आजकल टीवी पर देखता हूं कि मोदी जी किसानों के मसीहा बने नजर आते हैं. अगर सच में वे किसानों का भला करना चाहते हैं तो तत्काल इन तीनों कानूनों को वापस लें. हमारे 40 से ज़्यादा जवान शहीद हुए हैं. सरकार सोच रही है कि जैसे-जैसे आंदोलन लम्बा चलेगा हम टूट जाएंगे लेकिन हम टूटने वाले नहीं है. हम यहां कानून वापस कराने या मरने आए हैं. हमारे लिए आज कोई नया साल नहीं है. मैं तो आज किसी को भी शुभकामनाएं नहीं दी हैं और ना ही दूंगा. जिस रोज हम जीतेंगे, काले कानून वापस होंगे उस रोज जमकर जश्न मनाएंगे. और मैं आपसे कह रहा हूं हम जीतेंगे.’’
रात दो बजे के करीब जब हम यहां से निकलने लगे तो लोग अपने-अपने ट्रॉली और टेंट में वापस जाने लगे थे. नगर कीर्तन के लिए गाड़ी को सजाया जा चुका था. प्रदर्शनकारी नगर कीर्तन की गाड़ी के आने जाने के रास्ते को साफ करने में लगे हुए थे. दिल्ली पुलिस की बैरिकेट के पास लकड़ी जलाकर बैठे बुजुर्ग ने हमें वहां से लौटता देख नए साल की शुभकामनाएं देते हुए पूछा, मोदी कानून कब वापस ले रहा है? हमारे पास इसका कोई जवाब नहीं था क्योंकि सरकार कानून वापस लेने की स्थिति में नजर नहीं आ रही है और किसान भी कानून वापस कराए बगैर वापस लौटने के मूड में नहीं हैं. ऐसे में बुजुर्ग को बिना कोई जवाब दिए नए साल की शुभकामनाएं देकर हम लौट गए.
सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नव वर्ष पर देश को शुभकामनाएं दी हैं. क्या ये शुभकामनाएं इन किसानों तक पहुंच रही होंगी? अगर उन तक पहुंचेगी भी तो क्या वे इसका जवाब देंगे? शायद नहीं, क्योंकि किसानों का कहना है कि उनके लिए एक जनवरी नया साल का दिन नहीं है. जिस रोज कानून वापस होगा वहीं उनका नए साल का पहला दिन होगा.
Also Read: चित्रकथा: किसान आंदोलन के विविध रंग
Also Read: किसान आंदोलन से देश को क्या सबक लेना चाहिए
दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर बैठे प्रदर्शनकारी किसानों के लिए अभी नया साल नहीं आया है. एक तरफ जहां तमाम लोग 2021 के स्वागत की तैयारियों में जुटे हुए थे वहीं सिंघु बॉर्डर पर रात दस बजे ज़्यादातर किसान अपनी ट्रॉली में, ट्रॉली के नीचे या पंडालों में सोते नजर आए. यहां पर अलग-अलग राज्यों से आए कुछ नौजवान किसान, किसानों की मांगों को समर्थन देने वाले दिल्ली के आम नागरिक, सामाजिक कार्यकर्ता और छात्र टहलते नजर आते हैं. वहीं कुछ नौजवान मंच के सामने घेरा बनाकर नुक्कड़ नाटक करते दिखते है. इस नाटक का मुख्य किरदार 'अंबानी' होता है. नौजवान अपने नाटक के जरिए यह बताने की कोशिश करते हैं कि कैसे अंबानी लोगों को अपना गुलाम बना रहे हैं.
दिसंबर के आखिरी दिन की इस सर्द रात में सुरक्षा में तैनात किसान नौजवान लोगों को प्रदर्शन स्थल से जाने की बात कहते नजर आते हैं. उन्हें डर है कि असामाजिक तत्व अपनी हरकतों से आंदोलन को बदनाम कर सकते हैं. इनका कहना है कि ये पिछले एक महीने में ऐसा करने की कोशिश करने वाले कई लोगों को पकड़कर पुलिस को सौंप चुके है.
रात के 12:00 बजते ही सिंघु बॉर्डर के मुख्य मंच के सामने सैकड़ों की संख्या में नौजवान पहुंच गए. किसान एकता जिंदाबाद के नारे के साथ वे एक दूसरे को नए साल की शुभकामनाएं देते नजर आए. इसी बीच कुछ नौजवान पटाखों के साथ वहां पहुंचे और उन्हें जलाने लगे. आसमान में जाकर रंगबिरंगी किरणे फैलाने वाले पटाखे जब जलने लगे तो वहां कुछ बुजुर्ग किसान पहुंचकर जश्न नहीं मनाने की बात करते नजर आए. इस मनाही के बाद किसान एकता जिंदाबाद, काले कानून वापस लो और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ खूब नारे लगे.
नारे लगाकर अब धीरे-धीरे लोग यहां से हटने लगे हैं. लोगों के हटते ही कुछ नौजवान झाड़ू लेकर सफाई शुरू करते नजर आते हैं इसी में से एक मोहाली के रहने वाले हरदेव सिंह बब्बर न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘हमारे लिए आज कोई जश्न का दिन नहीं है. हमारे लिए हर बीतता दिन जख्म का दिन है. जब तक सरकार इन काले क़ानूनों को वापस नहीं ले लेती हम में से कोई जश्न नहीं मनाएगा. जहां तक रही पटाखे जलाने की बात तो कुछ नौजवानों ने ऐसा किया हालांकि हमने उन्हें रोक दिया. जिस रोज कानून वापस होगा हम जश्न मनाते हुए पंजाब वापस जाएंगे.’’
पिछले साल आज के दिन आप कहां थे और नए साल का स्वागत कैसे कर रहे थे. इस सवाल के जवाब में हरदेव सिंह बब्बर बताते हैं, ‘‘पिछले साल अपने दोस्तों और परिवार के लोगों के साथ पंचकूला के नाडा साहिब गुरुद्वारे माथा टेकने गया था. इस बार हम यहां आए हुए है. यहां हम अपने कल को सुरक्षित करने आए हैं.’’
‘जिनके घर मौत हुई हो वहां मातम मनाया जाता है ख़ुशी नहीं’
पटियाला के रहने वाले जगवीर सिंह 26 नवंबर से ही दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में मौजूद हैं. वे कहते हैं, ‘‘हमने पहले पंजाब में दो महीने तक आंदोलन किया और फिर दिल्ली पहुंचे. हम यहां से तब तक नहीं जाने वाले हैं जब तक सरकार इन तीनों काले कानूनों को वापस नहीं ले लेती.’’
केंद्र सरकार पर नाराजगी जाहिर करते हुए जगवीर कहते हैं, ‘‘मुझे तो शर्म आती है कि एक तरफ वह हमसे बातचीत कर रहे हैं और दूसरी तरफ गोदी मीडिया के जरिए हमें बदनाम करने के लिए कभी खालिस्तानी आ गए, नक्सली आ गए, टुकड़े टुकड़े गैंग आ गए और शाहिनबाग वाले आ गए कहते हैं. मैं तो आप के जरिए अपने नेताओं से यह मांग करता हूं की आप सरकार के सामने शर्त रखें कि हम आपके साथ मीटिंग तब करेंगे जब आपकी गोदी मीडिया ऐसा कहना बंद कर दे.’’
नया साल मनाने के सवाल पर जगवीर कहते हैं, ‘‘हम नया साल नहीं मनाएंगे क्योंकि नया साल तो तब होता जब अगर मोदी सरकार यह काले कानून वापस ले लेती. यह नया साल मोदी अडानी और अंबानी के लिए आया है. हमारे तो 40-50 बुजुर्ग, महिलाएं और जवान बेटे शहीद हो गए हैं. जिस घर में कोई मौत हो जाए वहां ख़ुशी नहीं मातम मनाया जाता है.’’
जब हमने जगवीर से पूछा कि बीते साल आज के दिन आप कहां थे तो उन्होंने बताया, ‘‘मैं अपने दोस्तों के साथ नया साल मनाने शिमला गया था. लेकिन इस बार हमारे घर पर अटैक हो गया है. यह अटैक मोदी सरकार, अडानी और अंबानी ने किया है. खुशी तो तब मनाई जाती है जब सारा काम सेट हो, लेकिन हम लोग अभी परेशान हैं.’’
जगवीर सिंह के पास के ही गांव के रहने वाले उनके दोस्त तरणवीर सिंह न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए बताते हैं, ‘‘मैं और जगवीर साथ ही शिमला गए थे. हम हर साल नया साल मनाने के लिए अलग-अलग जगहों पर जाते हैं. इस बार मैं नया साल नहीं मना रहा हूं. हमारे 41 से ज्यादा लोग शहीद हो चुके हैं. हम तो उन्हें शहीद ही कहेंगे. ऐसे में हमें अच्छा नहीं लगता कि हम खुशी जाहिर करें. हमारे लिए तो मातम है ना. हमारे लिए नया साल तब होगा जब मोदी सरकार इन तीनों कानूनों को वापस ले लेगी.’’
एक मिनट का मौन
रात के अब एक बजने वाले हैं. माइक के जरिए प्रदर्शन के दौरान जिन लोगों का निधन हुआ है उनके याद में एक मिनट मौन रखने की घोषणा की जाती है. सैकड़ों मोमबत्ती को जलाया जाता है और उसके इर्द-गिर्द लोग खड़े होकर एक मिनट का मौन रखते हैं.
यहां हमारी मुलाकात फिरोजपुर से आए दलजीत सिंह से होती है. पंजाब सरकार के शिक्षा विभाग के कर्मचारी दलजीत अपने सैकड़ों साथियों के साथ 31 दिसंबर की शाम ही मोटरसाइकिल से दिल्ली पहुंचे हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए दलजीत कहते हैं, ‘‘हम गाड़ियों से भी आ सकते थे, लेकिन हमारे बड़े बुजुर्ग और साथी यहां ठंड में बैठे हुए हैं तो इनके दर्द को महसूस करने के लिए हमने बाइक से आने का फैसला किया. हम कुछ लोग चले थे लेकिन रास्ते में लोग जुड़ते गए और जब यहां पहुंचे तो हमारे साथ कम से कम सौ मोटरसाइकिल हैं.’’
साल 2020 का जश्न मनाने स्वर्ण मंदिर जाने वाले दलजीत नए साल के जश्न के सवाल पर कहते हैं, ‘‘हमारे लिए तो दुख की घड़ी है. हमारे जो लोग शहीद हुए हैं उनके सपने जब तक पूरे नहीं हो जाते तब तक हम नए साल का जश्न कैसे मना सकते हैं. आज हम उनको याद कर रहे हैं. हम नया साल तब ही मनाएंगे जब तीनों काले कानून रद्द होंगे. हम ख़ुशी-ख़ुशी वापस घर जाएंगे तभी हमारे लिए नया साल होगा.’’
यहीं मिले 38 वर्षीय सतवीर सिंह ट्रॉली के नीचे सो रहे एक बुजुर्ग की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, ‘‘मोदी सरकार के लोगों के पास दिल है या नहीं? ठंड देख रहे हो. हम लोग नौजवान हैं फिर भी खड़े नहीं हो पा रहे हैं. यहां बुजुर्ग महीनों से बैठे हुए हैं लेकिन ये सरकार सुनने को तैयार नहीं है. आजकल टीवी पर देखता हूं कि मोदी जी किसानों के मसीहा बने नजर आते हैं. अगर सच में वे किसानों का भला करना चाहते हैं तो तत्काल इन तीनों कानूनों को वापस लें. हमारे 40 से ज़्यादा जवान शहीद हुए हैं. सरकार सोच रही है कि जैसे-जैसे आंदोलन लम्बा चलेगा हम टूट जाएंगे लेकिन हम टूटने वाले नहीं है. हम यहां कानून वापस कराने या मरने आए हैं. हमारे लिए आज कोई नया साल नहीं है. मैं तो आज किसी को भी शुभकामनाएं नहीं दी हैं और ना ही दूंगा. जिस रोज हम जीतेंगे, काले कानून वापस होंगे उस रोज जमकर जश्न मनाएंगे. और मैं आपसे कह रहा हूं हम जीतेंगे.’’
रात दो बजे के करीब जब हम यहां से निकलने लगे तो लोग अपने-अपने ट्रॉली और टेंट में वापस जाने लगे थे. नगर कीर्तन के लिए गाड़ी को सजाया जा चुका था. प्रदर्शनकारी नगर कीर्तन की गाड़ी के आने जाने के रास्ते को साफ करने में लगे हुए थे. दिल्ली पुलिस की बैरिकेट के पास लकड़ी जलाकर बैठे बुजुर्ग ने हमें वहां से लौटता देख नए साल की शुभकामनाएं देते हुए पूछा, मोदी कानून कब वापस ले रहा है? हमारे पास इसका कोई जवाब नहीं था क्योंकि सरकार कानून वापस लेने की स्थिति में नजर नहीं आ रही है और किसान भी कानून वापस कराए बगैर वापस लौटने के मूड में नहीं हैं. ऐसे में बुजुर्ग को बिना कोई जवाब दिए नए साल की शुभकामनाएं देकर हम लौट गए.
सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नव वर्ष पर देश को शुभकामनाएं दी हैं. क्या ये शुभकामनाएं इन किसानों तक पहुंच रही होंगी? अगर उन तक पहुंचेगी भी तो क्या वे इसका जवाब देंगे? शायद नहीं, क्योंकि किसानों का कहना है कि उनके लिए एक जनवरी नया साल का दिन नहीं है. जिस रोज कानून वापस होगा वहीं उनका नए साल का पहला दिन होगा.
Also Read: चित्रकथा: किसान आंदोलन के विविध रंग
Also Read: किसान आंदोलन से देश को क्या सबक लेना चाहिए
Also Read
-
India’s real war with Pak is about an idea. It can’t let trolls drive the narrative
-
How Faisal Malik became Panchayat’s Prahlad Cha
-
Explained: Did Maharashtra’s voter additions trigger ECI checks?
-
‘Oruvanukku Oruthi’: Why this discourse around Rithanya's suicide must be called out
-
Hafta letters: ‘Normalised’ issues, tourism in EU, ideas for letters