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मुरादाबाद "लव जिहाद": मुस्कान के बच्चे की जान कैसे गई?
हमें खासतौर पर ध्यान दिला कर कि हम उन्हें मुस्लिम कहें, न की पिंकी, मुस्कान कहती हैं, "अपने बच्चे को टॉयलेट में बहा देने से पहले मैंने उसे कुछ मिनट तक अपने हाथों में लिए रखा."
वे बताती हैं, "मैंने इस्लाम में धर्म परिवर्तन अपनी मर्जी से किया और मुस्कान नाम अपनाया. मुझे उम्मीद है कि लोग, जिसमें मीडिया भी शामिल है, इसकी इज्जत कर सकें."
5 दिसंबर को मुस्कान और मोहम्मद राशिद उत्तर प्रदेश में लाए गए नए जबरन धर्मांतरण प्रतिषेध कानून, जिसे आमतौर पर 'लव जिहाद कानून' कहा जाता है, में गिरफ्तार होने वाले पहले दंपत्ति थे. राशिद को जेल भेज दिया गया. मुस्कान ने चार दिन नारी निकेतन में बिताए जिसे राज्य के अधिकारी "आश्रय" बताते हैं और मुस्कान उसे "एक जेल" कहती हैं. उन्होंने 15 दिसंबर को अपने ससुराल वालों के यहां घर लौटने से पहले दो और दिन मुरादाबाद के अस्पताल में बिताए.
जब इस दंपत्ति को गिरफ्तार किया गया था तब वह तीन महीने की गर्भवती थीं, लेकिन अब वह एक सैनिटरी पैड पहने हुए बिस्तर पर लेटी हैं और इंतजार कर रही हैं कि उनके शरीर में मौजूद उनके बच्चे के अवशेष भी बहकर निकल जाएं.
18 दिसंबर को जब हम मुस्कान से उनके घर पर मिले तो उन्होंने कहा, "राशिद को अभी पता नहीं है. जब उसे पता चला कि वह बाप बनने वाला है तो धरती का सबसे खुश आदमी था. जब मैं उसे बताऊंगी कि क्या हुआ तो वह टूट जाएगा."
19 दिसंबर को स्थानीय अदालत ने राशिद और उसके भाई को दो हफ्ते जेल में बिताने के बाद छोड़ दिया जब पुलिस उनके खिलाफ जबरन धर्मांतरण का कोई सबूत पेश नहीं कर सकी.
कंबल ओढ़कर लेटी हुई मुस्कान धीरे से कहती हैं, "उन्होंने मेरे बच्चे को मार दिया".
मुस्कान किसकी बात कर रही हैं और वह क्यों यह मानती हैं कि उनके बच्चे को मारा गया?
प्रेम एक अपराध
आज मुस्कान और राशिद का प्रेम उनका व्यक्तिगत नहीं है. उनका प्रेम जो कभी व्यक्तिगत और साझी अंतरंगता में समाहित था, आज क्रूरतापूर्वक तमाशे में बदल दिया गया है. वह मुस्लिम अल्पसंख्यकों को डराने के एक राजनैतिक जरिए में बदल दिया गया है.
मुस्कान राशिद से एक वर्ष बड़ी हैं. वे एक साल पहले उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मिले जहां वह एक फाइनेंस कंपनी में काम करती थीं और राशिद एक सलून में काम करते थे. वह मुस्कुराते हुए कहती हैं, "शादी का प्रस्ताव मैंने रखा था. वह बहुत शर्मीले थे." दोनों ने 24 जुलाई को देहरादून में छुपकर शादी कर ली, पिंकी ने धर्मांतरण कर इस्लाम को अपना लिया और मुस्कान नाम रख लिया.
परंतु उनके छुपाने से यह बात छुपी नहीं. उन्हें धमकी भरे फोन आने लगे. 28 जुलाई को मुस्कान ने देहरादून के एसएसपी को पत्र लिखकर शिकायत की कि उन्हें फोन पर जान से मारने और जबरदस्ती अलग कराने की धमकियां मिल रही थीं. उन्होंने जान को खतरा होने के डर से पुलिस से उपयुक्त कार्यवाही करने की मांग की. उनकी चिट्ठी पर लगी स्टाम्प बताती है कि पुलिस को यह चिट्ठी 5 अगस्त को मिली.
इसके करीब एक महीने बाद वे दोनों मुरादाबाद में राशिद के घर आ गए क्योंकि महामारी के चलते दोनों के ही दफ्तर बंद हो गए थे. वहां पर उन्होंने अपने परिवारों को शादी के बारे में बता दिया, जिसपर शुरू में थोड़ा प्रतिरोध दिखाने के बाद दोनों की रजामंदी को देखते हुए वे मान गए.
अक्टूबर में, जब मुस्कान का पीरियड अपने समय से लगभग दो हफ्ते तक नहीं हुआ तो उन्होंने अपने गर्भवती होने की जांच की और उन्हें पता चला कि वह गर्भवती हैं. पति पत्नी बहुत खुश थे और राशिद का परिवार बच्चे के स्वागत की तैयारियां उत्साह से करने लगा.
5 दिसंबर को दंपत्ति राशिद के कई रिश्तेदारों के साथ मुरादाबाद के कांठ की जिला अदालत में अपनी शादी का पंजीकरण कराने गए. मुस्कान बताती हैं कि, "वह हमारे लिए बहुत खास पल था. हम बहुत खुश थे."
लौटते हुए उनको बजरंग दल के सदस्यों के एक समूह ने रोक लिया.
उन्होंने मुस्कान का नाम पूछा और उसके मुंह से स्वभाववश "पिंकी" निकल गया.
एक हिंदू महिला ने बुर्का क्यों पहना हुआ है? समूह के नेता और मुरादाबाद में कट्टर हिंदुत्ववादी संगठन के अध्यक्ष, मोनू बिश्नोई ने ये जानने की मांग की.
यहां से इस दंपति का विकट समय शुरू हो गया. मुस्कान बताती हैं कि उन्होंने उस हिंदुत्ववादी समूह से खूब मिन्नते की कि उन्होंने राशिद से शादी अपनी मर्जी से की है, लेकिन उन लोगों ने मुस्कान की बात नहीं सुनी. वह मुस्कान और राशिद को घसीट कर पुलिस स्टेशन ले गए जहां पर नए कानून के अनुसार उनकी शादी पर एक आपराधिक कृत्य होने का शक किया गया.
मुस्कान की सास नसीम जहां, याद करते हुए कहती हैं, "पुलिस स्टेशन पर भी बजरंग दल के आदमी ही बात कर रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे पुलिस केवल उनके निर्देशों के अनुसार ही चल रही थी."
उसी दिन मुस्कान की मां ने भी कथित तौर पर बजरंग दल के दबाव में एक एफआईआर दर्ज कराई. यह एफआईआर नए अध्यादेश की धाराओं के अंतर्गत लिखी गई जो कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे का धर्मांतरण अथवा धर्मांतरण का प्रयास, झूठी पहचान, बलपूर्वक, किसी प्रभाव में, फुसलाकर, लालच देकर, फरेब के द्वारा या शादी से नहीं कर सकता है. कोई भी व्यक्ति ऐसा करता पाया गया तो उसके ऊपर 15000 रुपए का जुर्माना और 1 से 5 साल की सज़ा भी हो सकती है.
मुस्कान ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उन्हें एफआईआर की प्रति भी नहीं दी गई.
इस एफआईआर के आधार पर, राशिद और उनके भाई सलीम को गिरफ्तार कर लिया गया जबकि मुस्कान को 8 घंटे थाने में बिठाने के बाद नारी निकेतन भेज दिया गया.
सुरक्षा गृह में हुआ असमय प्रसव
मुस्कान ने पुलिस और बजरंग दल के लोगों दोनों को बता दिया था कि वह गर्भवती हैं. हिरासत में असमय प्रसव की वजह से बच्चा खो देने के बाद, उन्हें शक है के उनकी स्वीकृति और जानकारी के बिना उनका गर्भपात कर दिया गया है.
पर मुस्कान ऐसा क्यों सोचती हैं?
6 दिसंबर रात के 2: 25 बजे, मुस्कान को एक महिला और एक पुरुष पुलिसकर्मी नारी निकेतन पर दस्तखत कर छोड़ गए. उनका फोन उनसे ले लिया गया और उन्हें बताया गया कि वह केस उलझने तक वहीं रहेंगी. मुस्कान कहती हैं, "वह कोई सुरक्षा गृह नहीं था, जेल जैसा था. वहां हमसे काम कराया जाता था और वहां पर एक महिला हम पर हर समय चिल्लाती रहती थी. वह सब एक यातना की तरह लगा."
जिले के प्रोविजनल अफसर राजेश गुप्ता, ज़ोर देकर कहते हैं, "नारी निकेतन बेसहारा महिलाओं के लिए एक सुरक्षा गृह है." वह नियमित उसका निरीक्षण करते हैं और उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि अंदर 8 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. वे कहते हैं कि, "मैंने सभी कैमरों को देखा है उसे प्रताड़ित नहीं किया गया."
नारी निकेतन कांठ की एक गली में जर्जर हो चुकी इमारत है. इमारत की बाहरी दीवार काफी ऊंची है, लगता है कि जैसे कोई अंदर ना देख पाए इसलिए. दीवार के ऊपर नीले रंग का जाल भी लगा है. जब हमने उसके ऊंचे लोहे के दरवाजे को खटखटाया, तो एक पुलिस वाले ने दरवाजा खोला. हमने अपना परिचय दिया और वहां पर देखरेख की प्रमुख बिनोद बालश्रीवास्तव ने कहा, "तुम दोनों लड़कियां हो इसलिए मैं तुम्हें अंदर आने देती हूं."
मुस्कान 13 दिसंबर तक नारी निकेतन में रहीं. पर पुलिस उन्हें जांच के लिए स्थानीय जिला महिला अस्पताल, दस्तख़त करके 7 और 10 दिसंबर को ले गई.
11 दिसंबर को मुस्कान को अपने पेट में दर्द महसूस हुआ. वह अभी भी नहीं जानती कि उसका कारण क्या था. वे बताती हैं, "उन्होंने मुझे नारी निकेतन में कोई दवाई या इंजेक्शन नहीं दिया था. हमें वहां खाने में दाल, रोटी और कभी कभी चावल दिए जाते थे. पर वहां दो दिन रहने के बाद मुझे काफी दर्द होने लगा था. उससे पहले मेरे घर में कोई दिक्कत नहीं थी."
पुलिस सुबह 11:25 पर फिर आई और मुस्कान को अस्पताल ले गई. सुरक्षा गृह को चलाने वाली बिनोद बालश्रीवास्तव कहती हैं, "वहां पर उन्होंने एक एक्स-रे लिया और वह जल्दी ही वापस आ गई थीं."
अस्पताल से लौटने के बाद मुस्कान का दर्द बढ़ता ही रहा. इसीलिए पुलिस फिर उन्हें शाम के 5:30 बजे अस्पताल ले गई जहां पर उन्हें एक दिन के लिए भर्ती कर लिया गया.
मुस्कान 13 दिसंबर की सुबह नारी निकेतन वापस आ गईं, लेकिन दोपहर को दर्द फिर से बढ़ जाने के कारण उन्हें 2:30 बजे फिर अस्पताल ले जाया गया. बिनोद बताती हैं, "उसके बाद वह हमारे पास वापस नहीं आईं. वो एक बहुत चुपचाप रहने वाली लड़की थी और कोविड की वजह से मैंने उसका बिस्तर कमरे के कोने में लगवा दिया था. वह केवल लेटी रहती थी और हर समय आराम करती थी. जब उसका दर्द बढ़ा, उसके अलावा वह कभी रोई भी नहीं. उससे पहले वह ठीक थी."
अस्पताल में इलाज
मुस्कान बताती हैं कि 11 दिसंबर को जब उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया उनका रक्तचाप भी नापा गया और वह ठीक था. फिर उन्हें एक इंजेक्शन दिया गया जो उन्हें नहीं मालूम किसलिए था.
उससे अगले दिन एक अल्ट्रासाउंड किया गया. उन्हें नहीं मालूम उसमें क्या दिखाई दिया क्योंकि अस्पताल में अल्ट्रासाउंड को उनके या उनके घर वालों को नहीं दिखाया. 13 और 14 दिसंबर को उन्हें हर दिन दो इंजेक्शन और कुछ गोलियां दी गईं. 14 दिसंबर की शाम को, अपना आख़िरी इंजेक्शन लगवाने के बाद, उन्हें "बहुत तेज कंपकंपी और पसीना" आने लगा और वह याद कर कहती हैं की, "मुझे अचानक बहुत तेजी से खून आने लगा."
यह वो समय था जब उन्होंने अपना बच्चा खो दिया. कंबल के अंदर से अपना हाथ निकालकर उसका आकार बताते हुए, वे कहती हैं, "जब मैं टॉयलेट गई और खून को देखा, मुझे एक मांस का बड़ा लोथड़ा दिखाई दिया. मैं जानती थी कि वह मेरा बच्चा है. अपने बच्चे को टॉयलेट में बहा देने से पहले मैंने उसे कुछ मिनट तक अपने हाथों में लिए रखा."
मीडिया में मुस्कान के असमय प्रसव की खबरें आने के बाद, उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के चेयरमैन डॉ विशेष गुप्ता ने इस बात पर ज़ोर दिया कि मुस्कान का बच्चा "सुरक्षित" था. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री से भी दोहराया, "14 दिसंबर तक, वह ठीक थी और कोई जबरन गर्भपात नहीं हुआ. मैंने मुरादाबाद के जिला प्रोविजनल ऑफिसर को महिला की चिकित्सीय जांच कराए जाने के लिए कहा था. उसकी अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट साफ बताती है कि वह तीन महीने से गर्भवती थी."
हालांकि मुस्कान को अस्पताल में अपना काफी खून जाना याद है, पर विशेष गुप्ता अपनी बात पर कायम रहते हैं, "अगर उसका असमय प्रसव हुआ तो वह 14 दिसंबर के बाद ही हुआ."
मुस्कान अपने ससुराल वालों से दोबारा 15 दिसंबर को मिली. उसके अगले दिन उनकी सास उन्हें पड़ोस के बिजनौर में, एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड के लिए ले गईं.
अल्ट्रासाउंड में यह साफ हो गया कि मुस्कान ने अपने बच्चे को खो दिया है. दिल्ली के एक वरिष्ठ डॉक्टर, उस रिपोर्ट की पुष्टि करके न्यूजलॉन्ड्री को बताते हैं, "यह अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट गर्भ का कोई लक्षण नहीं दिखाती. यह ज़रूर दिखाती है कि गर्भाशय की किनारियों पर कोई संक्रमण या सूजन के लक्षण हैं और उसकी वजह से खून आ रहा है."
इस रिपोर्ट पर दस्तखत नहीं हैं, और मुस्कान और उनकी सास को भी जांच करने वाले डॉक्टर का नाम याद नहीं है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 312, 313 और 315 यह कहते हैं कि अगर किसी गर्भवती महिला को, "फुसलाकर असमय प्रसव के लिए मजबूर किया जाए" या "बिना मर्जी के जबरदस्ती से गर्भ गिराया जाए" या "कोई भी काम बुरी नियत से बच्चे के जीवित पैदा न होने के लिए किया जाए", तो दोषियों को सजा मिलनी चाहिए.
मुस्कान ने बार-बार यह आरोप लगाया है कि उसका "जबरन गर्भपात" किया गया लेकिन उत्तर प्रदेश में प्रशासन ने इसकी जांच करना आवश्यक नहीं समझा है.
दावों का विरोधाभास
मुरादाबाद अस्पताल, जहां मुस्कान को भर्ती कराया गया था, की कार्यकारी चीफ मेडिकल सुपरीटेंडेंट निर्मला पाठक न्यूजलॉन्ड्री को बताती हैं कि, “14 दिसंबर का अल्ट्रासाउंड उसका "7 हफ्ते और 5 दिन" का गर्भ दिखाता है.”
बाल सुरक्षा आयोग के विशेष गुप्ता की बात से अलग, पाठक यह भी कहती हैं, "हम बच्चे की धड़कन नहीं ढूंढ पा रहे थे. इसलिए बच्चा गर्भ में था लेकिन मैं यह पक्के तौर पर नहीं कह सकती कि बच्चा 14 दिसंबर को जिंदा था या नहीं."
पाठक के अनुसार उन्होंने मुस्कान को मेरठ मेडिकल कॉलेज को रेफर कर दिया था क्योंकि उसे बच्चे की हालत जानने के लिए ट्रांसवजाइनल सोनोग्राफी जांच की आवश्यकता थी. उन्होंने यह भी इंगित किया कि मुस्कान की परेशानी "ज्यादा खतरे का मामला" थी, क्योंकि वह उस समय अपने गर्भ के शुरुआती दिनों में थीं.
मुस्कान को उनकी जाचों की प्रतियां क्यों नहीं दी गईं? पाठक इस प्रश्न के उत्तर में कहती हैं, "क्योंकि यह मेडिकोलीगल मामला था इसलिए हमने सारी प्रतियां नारी निकेतन की महिला प्रमुख को दे दी थीं. और यह प्रतियां जिला न्यायाधीश के पास भी जाएंगी."
जब हमने मेडिको लीगल सर्टिफिकेट देखने या उसकी एक प्रति की मांग की, तो निर्मला पाठक ने उसे देने से इनकार कर दिया. उन्हें यह भी माना कि उनके अस्पताल ने असल में मेडिकल लीगल जांच नहीं की थी. उसके लिए उनका तर्क यह था कि मुस्कान को वहां "पुलिस के द्वारा केवल इलाज के लिए" लाया गया था.
हमने बिनोद बालश्रीवास्तव और जिला प्रोविजनल अफसर से भी इस बाबत पूछताछ की और दोनों यह दावा किया कि उन्होंने मुस्कान की सारी चिकित्सकीय रिपोर्ट पुलिस को दे दी हैं.
इस बीच निर्मला पाठक की बातों की पुष्टि डॉ. रणवीर सिंह ने की, जिन्होंने मुस्कान को अस्पताल के आपातकालीन वार्ड में देखा था. निर्मला पाठक की सारी बातों की पुष्टि करने के साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा कि मुस्कान को इंजेक्शन डॉ. पाठक ने खुद ही लगाए थे जिससे कि मुस्कान की "योनि रक्त स्त्राव" को रोका जा सके.
पहली बार कानून में है, कार्यान्वयन में नहीं
राशिद अब जमानत पर बाहर आ चुके हैं. मुस्कान बहुत कमजोर है और चुपचाप अपने बच्चे को खोने का शोक मना रही हैं.
राशि के घर से करीब चार किलोमीटर दूर बजरंग दल के मोनू बिश्नोई अपनी केसरिया रंग से रंगी खाने-पीने की दुकान पर झाड़ पोंछ कर रहे हैं. दुकान के कोने के मंदिर में छोटी सी प्रार्थना के बाद वह हमसे बात करने के लिए बैठते हैं. वह मोनू ही थे जिन्होंने अपनी शादी को पंजीकृत करा कर लौट रहे मुस्कान और राशिद का रास्ता रोका था और फिर उन्हें पुलिस स्टेशन ले गए थे.
बजरंग दल को मुस्कान और राशिद के बारे में कैसे पता चला?
वे कहते हैं, "हमारे सदस्यों ने हमें जानकारी दी. क्योंकि उस समय मैं एक शादी में था मैंने और सदस्यों से इसकी सत्यता पता करने के लिए कहा. जैसे ही बात पक्की हुई हम उस जगह पर पहुंच गए."
हमने उनसे पूछा कि, "यह सदस्य कौन हैं?" इसके जवाब में मोनू ने बजरंग दल की सूचना प्रणाली को समझाते हुए एक भाषण दिया.
मोनू दावा करते हैं कि केवल मुरादाबाद में ही 200 से 300 आदमी बजरंग दल के लिए काम करते हैं, हालांकि सभी खुलकर इस कट्टरवादी दल का समर्थन नहीं करते. वे कहते हैं, "हमारे लोग हर गली, हर चौराहे, हर नुक्कड़ पर हैं. हमारे अपने खुफिया लोग हैं जो कभी अपनी पहचान नहीं खोलेंगे. वह कभी किसी के सामने नहीं आएंगे, मीडिया के भी नहीं. 15-20 महिलाएं भी हैं जो हमारे लिए काम करती हैं."
दल नियमित तौर पर बैठकें करता है जहां पर "मामलों पर चर्चा होती है और निर्णय लिए जाते हैं", इसके साथ सदस्यों को काम भी दिए जाते हैं. मोनू समझाते हैं, "उदाहरण के लिए एक गौ रक्षा विभाग है और एक आध्यात्मिक संवाद विभाग. आध्यात्मिक संवाद विभाग जनता में संदेश देने का काम करता है. हम अपने संगठन के बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं, हनुमान जी के भजन और श्री राम की प्रार्थना गाते हैं और हम पूजन के लिए मिलन आयोजित करते हैं."
काफी कार्यकर्ता नियमित तौर पर लड़ाई का शारीरिक अभ्यास करते हैं. विश्नोई ने इन अभ्यास वर्गों का समय और जगह बताने से इनकार करते हुए कहा, "क्योंकि हम सब एक जगह नहीं मिल सकते, यह अभ्यास वर्ग अलग-अलग केंद्रों पर होते हैं." संगठन के सदस्यों को डंडे और बिना हथियार के युद्ध करने का अभ्यास कराया जाता है.
इतना सब अभ्यास किसलिए? विश्नोई मुस्कुरा कर जवाब देते हैं, "देखिए इसे शारीरिक व्यायाम की तरह देखिए. यह शरीर के लिए तो अच्छा है ही पर कोई नहीं जानता कि कब लड़ना पड़ जाए, तैयार रहना बेहतर है."
हालांकि मुस्कान और राशिद "लव जिहाद कानून" में गिरफ्तार हुए पहले दंपत्ति थे, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब मोनू विश्नोई या उनके दल ने अंतर धार्मिक शादी में हस्तक्षेप किया.
वे डींग मारते हुए कहते हैं, "हम यह काम काफी लंबे समय से कर रहे हैं. बस इतना है कि अब इसका कानून पहली बार बन गया है."
वे लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसका जवाब देते हुए विश्नोई दावा करते हैं कि मुसलमान आदमी हिंदू लड़कियों को "बहका-फुसला" रहे हैं और बजरंग दल ऐसी महिलाओं को "बचाकर" हिंदू समाज की "सेवा" कर रहा है. वह दोहराहते हैं, "जो हम कर रहे हैं वह एक धार्मिक और सामाजिक सेवा है. इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं. पिंकी पर दबाव बनाकर शादी की गई थी."
वह विस्तार से बताते हैं कि जब बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को यह पता चलता है कि कोई हिंदू महिला किसी मुस्लिम आदमी के "संपर्क में है", वह लड़की के घर वालों को इत्तला कर देते हैं और "बात हाथ से निकल जाने" से पहले उसे "समझाते" हैं.
उन्होंने हमें नहीं बताया कि अब तक कितने प्रेम संबंध और शादियों में उनके दल ने हस्तक्षेप किया है.
मुस्कान और उसके ससुराल वालों को संदेह है कि उनके मामले में एक स्थानीय वकील ने बजरंग दल को शादी के बारे में जानकारी दी. राशिद के परिवार ने उस वकील से शादी रजिस्टर करने में मदद करने के लिए संपर्क किया था. हमने उस वकील से पूछा कि क्या वह मुस्कान और राशिद के बारे में जानते हैं पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
मुस्कान और उसके ससुराल के लोगों का यह भी आरोप है कि 5 दिसंबर को बजरंग दल के लोगों ने उन्हें पकड़ने के बाद राशिद और उसके भाई के साथ मारपीट की.
मोनू बिश्नोई इस आरोप को नकारते हैं और इस घटना की खबर को गलत तरीके से बताने के लिए "एनडीटीवी जैसे हिंदू विरोधी चैनलों" को दोषी ठहराते हैं. उनकी राय है कि, "मैं आपको बता रहा हूं कि यह एनडीटीवी चैनल बिका हुआ है. यह केवल एक हिंदू विरोधी चैनल है जो केवल हिंदुओं के खिलाफ ही बात करता है. हम केवल रिपब्लिक भारत देखते हैं."
हमारी बातचीत के दौरान मोनू के पास बजरंग दल के कुछ और स्थानीय कार्यकर्ता भी आ गए. उनकी शिकायत थी कि "लव जिहाद" को कवर करने वाले पत्रकार मुस्लिम हैं और "हिंदू पत्रकारों" के बीच कोई एकता नहीं है. मोनू सवाल उठाते हैं, "चाहे आज तक हो या कोई और इन चैनलों में सभी मुसलमान पत्रकारों ने इस मामले को तोड़ मरोड़ कर दिखाया है. आप लोगों को अपना काम करते हुए अपने धर्म के बारे में सोचना चाहिए."
क्या उनके दल को उत्तर प्रदेश पुलिस का समर्थन है?
इसका उत्तर देते हुए मोनू बिश्नोई कहते हैं, "पुलिस हमारा समर्थन क्यों करेगी? जब हमने गौ तस्करी में लिप्त ट्रक रोके थे तो हम पर तीन केस फाइल कर दिए गए. हमें पुलिस ने ऐसे समर्थन दिया है."
क्या उन्हें पता था कि मुस्कान गर्भवती है जब वह उसे घसीट कर पुलिस स्टेशन ले गए? मोनू कहते हैं कि उसकी सास में उन्हें बताया था, और अपनी बात में यह भी जोड़ते हैं कि, "इसका किसी चीज से क्या लेना देना है? एक अपराध हो रहा था और हमने उसे बचाया और शायद उसके बच्चे को भी."
"अब मैं उसे नहीं खो सकती"
मोनू बिश्नोई ने हमें बताया कि "लव जिहाद के मुद्दे" के अलावा बजरंग दल को उनके इलाके में मुसलमानों से कोई परेशानी नहीं है. दावा करते हैं कि, "हमें उनसे कोई परेशानी नहीं है."
अब जब मुस्कान ने स्पष्ट कर दिया है कि वह राशिद के साथ ही रहना चाहती है, इस पर मोनू को क्या कहना है? वह जवाब देते हैं, "हमारा काम कानून को हाथ में लेने का नहीं है. हम ने पुलिस को खबर की और हमारा काम हो गया. अब अगर वही जलालत की जिंदगी जीना चाहती है तो हम क्या कर सकते हैं?"
वह अपनी बात में यह भी जोड़ते हैं कि अगर मुस्कान वापस हिंदू बनना चाहे तो बजरंग दल सुनिश्चित करेगा कि उसकी शादी किसी हिंदू आदमी से जल्दी से जल्दी हो जाए.
बात खत्म हो जाने पर हम उठे और हमने उन्हें 'शुक्रिया' कहा, एक आम भाषा में उपयोग होने वाला उर्दू शब्द. मोनू को अच्छा नहीं लगा और वह बोले, "आपको धन्यवाद कहना चाहिए, वह सही शब्द है. शुक्रिया एक उर्दू का शब्द है. हम हिंदुओं को उसका उपयोग नहीं करना चाहिए."
इस सब के बीच नारी निकेतन में एक युवती जो एक मुसलमान आदमी से प्रेम करती है, छुपी हुई है. मुस्कान के के बारे में बात करते हुए बिनोद बाल श्रीवास्तव ने हमें बताया कि वहां रहने वाली 35-40 महिलाओं में से एक और लड़की "मुस्कान की तरह" है. उन्होंने बताया कि, "अभी बालिग नहीं है और एक मुसलमान से प्रेम करती है. उसके माता-पिता उसके संबंध को स्वीकार नहीं कर रहे हैं तो वह भाग कर यहां आ गई है. यह पहली बार नहीं हो रहा. आमतौर पर ऐसे मामले में जब बच्ची 18 साल की हो जाती है तो हम उन्हें जिसके साथ वो जाना चाहें, चाहे मां-बाप हों या मुस्लिम लड़का, उसके साथ जाने देते हैं."
लेकिन अब "लव जिहाद कानून" आने के बाद, बाल श्रीवास्तव कहती हैं कि नहीं पता कि अब उस लड़की के साथ क्या होगा. हमारी बात उससे कराने के लिए उन्होंने मना कर दिया.
जब हमने मुस्कान से पूछा कि वह इस नए कानून के बारे में क्या सोचती हैं, हमारी तरफ टकटकी लगाए देखती रहीं. वे बोलीं, "कानून हो या ना हो पर मैं उसी से प्यार करती हूं. मुझे केवल अपना राशिद वापस चाहिए. मैं अपने बच्चे को पहले ही खो चुकी हूं, अब मैं उसे नहीं खो सकती."
आज जब राशिद और उसके भाई को जेल से रिहा कर दिया गया, हमने उनके चचेरे भाई मोहम्मद अमीन से फोन पर बात की. उन्होंने बताया कि, "राशिद शारीरिक रूप से ठीक है लेकिन कमजोर लग रहा है."
क्या हाल है बच्चे के बारे में जानता है? अमीन ने बताया कि, "हां वह जानता है पर उसने इस बात पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं की है."
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हमें खासतौर पर ध्यान दिला कर कि हम उन्हें मुस्लिम कहें, न की पिंकी, मुस्कान कहती हैं, "अपने बच्चे को टॉयलेट में बहा देने से पहले मैंने उसे कुछ मिनट तक अपने हाथों में लिए रखा."
वे बताती हैं, "मैंने इस्लाम में धर्म परिवर्तन अपनी मर्जी से किया और मुस्कान नाम अपनाया. मुझे उम्मीद है कि लोग, जिसमें मीडिया भी शामिल है, इसकी इज्जत कर सकें."
5 दिसंबर को मुस्कान और मोहम्मद राशिद उत्तर प्रदेश में लाए गए नए जबरन धर्मांतरण प्रतिषेध कानून, जिसे आमतौर पर 'लव जिहाद कानून' कहा जाता है, में गिरफ्तार होने वाले पहले दंपत्ति थे. राशिद को जेल भेज दिया गया. मुस्कान ने चार दिन नारी निकेतन में बिताए जिसे राज्य के अधिकारी "आश्रय" बताते हैं और मुस्कान उसे "एक जेल" कहती हैं. उन्होंने 15 दिसंबर को अपने ससुराल वालों के यहां घर लौटने से पहले दो और दिन मुरादाबाद के अस्पताल में बिताए.
जब इस दंपत्ति को गिरफ्तार किया गया था तब वह तीन महीने की गर्भवती थीं, लेकिन अब वह एक सैनिटरी पैड पहने हुए बिस्तर पर लेटी हैं और इंतजार कर रही हैं कि उनके शरीर में मौजूद उनके बच्चे के अवशेष भी बहकर निकल जाएं.
18 दिसंबर को जब हम मुस्कान से उनके घर पर मिले तो उन्होंने कहा, "राशिद को अभी पता नहीं है. जब उसे पता चला कि वह बाप बनने वाला है तो धरती का सबसे खुश आदमी था. जब मैं उसे बताऊंगी कि क्या हुआ तो वह टूट जाएगा."
19 दिसंबर को स्थानीय अदालत ने राशिद और उसके भाई को दो हफ्ते जेल में बिताने के बाद छोड़ दिया जब पुलिस उनके खिलाफ जबरन धर्मांतरण का कोई सबूत पेश नहीं कर सकी.
कंबल ओढ़कर लेटी हुई मुस्कान धीरे से कहती हैं, "उन्होंने मेरे बच्चे को मार दिया".
मुस्कान किसकी बात कर रही हैं और वह क्यों यह मानती हैं कि उनके बच्चे को मारा गया?
प्रेम एक अपराध
आज मुस्कान और राशिद का प्रेम उनका व्यक्तिगत नहीं है. उनका प्रेम जो कभी व्यक्तिगत और साझी अंतरंगता में समाहित था, आज क्रूरतापूर्वक तमाशे में बदल दिया गया है. वह मुस्लिम अल्पसंख्यकों को डराने के एक राजनैतिक जरिए में बदल दिया गया है.
मुस्कान राशिद से एक वर्ष बड़ी हैं. वे एक साल पहले उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मिले जहां वह एक फाइनेंस कंपनी में काम करती थीं और राशिद एक सलून में काम करते थे. वह मुस्कुराते हुए कहती हैं, "शादी का प्रस्ताव मैंने रखा था. वह बहुत शर्मीले थे." दोनों ने 24 जुलाई को देहरादून में छुपकर शादी कर ली, पिंकी ने धर्मांतरण कर इस्लाम को अपना लिया और मुस्कान नाम रख लिया.
परंतु उनके छुपाने से यह बात छुपी नहीं. उन्हें धमकी भरे फोन आने लगे. 28 जुलाई को मुस्कान ने देहरादून के एसएसपी को पत्र लिखकर शिकायत की कि उन्हें फोन पर जान से मारने और जबरदस्ती अलग कराने की धमकियां मिल रही थीं. उन्होंने जान को खतरा होने के डर से पुलिस से उपयुक्त कार्यवाही करने की मांग की. उनकी चिट्ठी पर लगी स्टाम्प बताती है कि पुलिस को यह चिट्ठी 5 अगस्त को मिली.
इसके करीब एक महीने बाद वे दोनों मुरादाबाद में राशिद के घर आ गए क्योंकि महामारी के चलते दोनों के ही दफ्तर बंद हो गए थे. वहां पर उन्होंने अपने परिवारों को शादी के बारे में बता दिया, जिसपर शुरू में थोड़ा प्रतिरोध दिखाने के बाद दोनों की रजामंदी को देखते हुए वे मान गए.
अक्टूबर में, जब मुस्कान का पीरियड अपने समय से लगभग दो हफ्ते तक नहीं हुआ तो उन्होंने अपने गर्भवती होने की जांच की और उन्हें पता चला कि वह गर्भवती हैं. पति पत्नी बहुत खुश थे और राशिद का परिवार बच्चे के स्वागत की तैयारियां उत्साह से करने लगा.
5 दिसंबर को दंपत्ति राशिद के कई रिश्तेदारों के साथ मुरादाबाद के कांठ की जिला अदालत में अपनी शादी का पंजीकरण कराने गए. मुस्कान बताती हैं कि, "वह हमारे लिए बहुत खास पल था. हम बहुत खुश थे."
लौटते हुए उनको बजरंग दल के सदस्यों के एक समूह ने रोक लिया.
उन्होंने मुस्कान का नाम पूछा और उसके मुंह से स्वभाववश "पिंकी" निकल गया.
एक हिंदू महिला ने बुर्का क्यों पहना हुआ है? समूह के नेता और मुरादाबाद में कट्टर हिंदुत्ववादी संगठन के अध्यक्ष, मोनू बिश्नोई ने ये जानने की मांग की.
यहां से इस दंपति का विकट समय शुरू हो गया. मुस्कान बताती हैं कि उन्होंने उस हिंदुत्ववादी समूह से खूब मिन्नते की कि उन्होंने राशिद से शादी अपनी मर्जी से की है, लेकिन उन लोगों ने मुस्कान की बात नहीं सुनी. वह मुस्कान और राशिद को घसीट कर पुलिस स्टेशन ले गए जहां पर नए कानून के अनुसार उनकी शादी पर एक आपराधिक कृत्य होने का शक किया गया.
मुस्कान की सास नसीम जहां, याद करते हुए कहती हैं, "पुलिस स्टेशन पर भी बजरंग दल के आदमी ही बात कर रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे पुलिस केवल उनके निर्देशों के अनुसार ही चल रही थी."
उसी दिन मुस्कान की मां ने भी कथित तौर पर बजरंग दल के दबाव में एक एफआईआर दर्ज कराई. यह एफआईआर नए अध्यादेश की धाराओं के अंतर्गत लिखी गई जो कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे का धर्मांतरण अथवा धर्मांतरण का प्रयास, झूठी पहचान, बलपूर्वक, किसी प्रभाव में, फुसलाकर, लालच देकर, फरेब के द्वारा या शादी से नहीं कर सकता है. कोई भी व्यक्ति ऐसा करता पाया गया तो उसके ऊपर 15000 रुपए का जुर्माना और 1 से 5 साल की सज़ा भी हो सकती है.
मुस्कान ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उन्हें एफआईआर की प्रति भी नहीं दी गई.
इस एफआईआर के आधार पर, राशिद और उनके भाई सलीम को गिरफ्तार कर लिया गया जबकि मुस्कान को 8 घंटे थाने में बिठाने के बाद नारी निकेतन भेज दिया गया.
सुरक्षा गृह में हुआ असमय प्रसव
मुस्कान ने पुलिस और बजरंग दल के लोगों दोनों को बता दिया था कि वह गर्भवती हैं. हिरासत में असमय प्रसव की वजह से बच्चा खो देने के बाद, उन्हें शक है के उनकी स्वीकृति और जानकारी के बिना उनका गर्भपात कर दिया गया है.
पर मुस्कान ऐसा क्यों सोचती हैं?
6 दिसंबर रात के 2: 25 बजे, मुस्कान को एक महिला और एक पुरुष पुलिसकर्मी नारी निकेतन पर दस्तखत कर छोड़ गए. उनका फोन उनसे ले लिया गया और उन्हें बताया गया कि वह केस उलझने तक वहीं रहेंगी. मुस्कान कहती हैं, "वह कोई सुरक्षा गृह नहीं था, जेल जैसा था. वहां हमसे काम कराया जाता था और वहां पर एक महिला हम पर हर समय चिल्लाती रहती थी. वह सब एक यातना की तरह लगा."
जिले के प्रोविजनल अफसर राजेश गुप्ता, ज़ोर देकर कहते हैं, "नारी निकेतन बेसहारा महिलाओं के लिए एक सुरक्षा गृह है." वह नियमित उसका निरीक्षण करते हैं और उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि अंदर 8 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. वे कहते हैं कि, "मैंने सभी कैमरों को देखा है उसे प्रताड़ित नहीं किया गया."
नारी निकेतन कांठ की एक गली में जर्जर हो चुकी इमारत है. इमारत की बाहरी दीवार काफी ऊंची है, लगता है कि जैसे कोई अंदर ना देख पाए इसलिए. दीवार के ऊपर नीले रंग का जाल भी लगा है. जब हमने उसके ऊंचे लोहे के दरवाजे को खटखटाया, तो एक पुलिस वाले ने दरवाजा खोला. हमने अपना परिचय दिया और वहां पर देखरेख की प्रमुख बिनोद बालश्रीवास्तव ने कहा, "तुम दोनों लड़कियां हो इसलिए मैं तुम्हें अंदर आने देती हूं."
मुस्कान 13 दिसंबर तक नारी निकेतन में रहीं. पर पुलिस उन्हें जांच के लिए स्थानीय जिला महिला अस्पताल, दस्तख़त करके 7 और 10 दिसंबर को ले गई.
11 दिसंबर को मुस्कान को अपने पेट में दर्द महसूस हुआ. वह अभी भी नहीं जानती कि उसका कारण क्या था. वे बताती हैं, "उन्होंने मुझे नारी निकेतन में कोई दवाई या इंजेक्शन नहीं दिया था. हमें वहां खाने में दाल, रोटी और कभी कभी चावल दिए जाते थे. पर वहां दो दिन रहने के बाद मुझे काफी दर्द होने लगा था. उससे पहले मेरे घर में कोई दिक्कत नहीं थी."
पुलिस सुबह 11:25 पर फिर आई और मुस्कान को अस्पताल ले गई. सुरक्षा गृह को चलाने वाली बिनोद बालश्रीवास्तव कहती हैं, "वहां पर उन्होंने एक एक्स-रे लिया और वह जल्दी ही वापस आ गई थीं."
अस्पताल से लौटने के बाद मुस्कान का दर्द बढ़ता ही रहा. इसीलिए पुलिस फिर उन्हें शाम के 5:30 बजे अस्पताल ले गई जहां पर उन्हें एक दिन के लिए भर्ती कर लिया गया.
मुस्कान 13 दिसंबर की सुबह नारी निकेतन वापस आ गईं, लेकिन दोपहर को दर्द फिर से बढ़ जाने के कारण उन्हें 2:30 बजे फिर अस्पताल ले जाया गया. बिनोद बताती हैं, "उसके बाद वह हमारे पास वापस नहीं आईं. वो एक बहुत चुपचाप रहने वाली लड़की थी और कोविड की वजह से मैंने उसका बिस्तर कमरे के कोने में लगवा दिया था. वह केवल लेटी रहती थी और हर समय आराम करती थी. जब उसका दर्द बढ़ा, उसके अलावा वह कभी रोई भी नहीं. उससे पहले वह ठीक थी."
अस्पताल में इलाज
मुस्कान बताती हैं कि 11 दिसंबर को जब उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया उनका रक्तचाप भी नापा गया और वह ठीक था. फिर उन्हें एक इंजेक्शन दिया गया जो उन्हें नहीं मालूम किसलिए था.
उससे अगले दिन एक अल्ट्रासाउंड किया गया. उन्हें नहीं मालूम उसमें क्या दिखाई दिया क्योंकि अस्पताल में अल्ट्रासाउंड को उनके या उनके घर वालों को नहीं दिखाया. 13 और 14 दिसंबर को उन्हें हर दिन दो इंजेक्शन और कुछ गोलियां दी गईं. 14 दिसंबर की शाम को, अपना आख़िरी इंजेक्शन लगवाने के बाद, उन्हें "बहुत तेज कंपकंपी और पसीना" आने लगा और वह याद कर कहती हैं की, "मुझे अचानक बहुत तेजी से खून आने लगा."
यह वो समय था जब उन्होंने अपना बच्चा खो दिया. कंबल के अंदर से अपना हाथ निकालकर उसका आकार बताते हुए, वे कहती हैं, "जब मैं टॉयलेट गई और खून को देखा, मुझे एक मांस का बड़ा लोथड़ा दिखाई दिया. मैं जानती थी कि वह मेरा बच्चा है. अपने बच्चे को टॉयलेट में बहा देने से पहले मैंने उसे कुछ मिनट तक अपने हाथों में लिए रखा."
मीडिया में मुस्कान के असमय प्रसव की खबरें आने के बाद, उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के चेयरमैन डॉ विशेष गुप्ता ने इस बात पर ज़ोर दिया कि मुस्कान का बच्चा "सुरक्षित" था. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री से भी दोहराया, "14 दिसंबर तक, वह ठीक थी और कोई जबरन गर्भपात नहीं हुआ. मैंने मुरादाबाद के जिला प्रोविजनल ऑफिसर को महिला की चिकित्सीय जांच कराए जाने के लिए कहा था. उसकी अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट साफ बताती है कि वह तीन महीने से गर्भवती थी."
हालांकि मुस्कान को अस्पताल में अपना काफी खून जाना याद है, पर विशेष गुप्ता अपनी बात पर कायम रहते हैं, "अगर उसका असमय प्रसव हुआ तो वह 14 दिसंबर के बाद ही हुआ."
मुस्कान अपने ससुराल वालों से दोबारा 15 दिसंबर को मिली. उसके अगले दिन उनकी सास उन्हें पड़ोस के बिजनौर में, एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड के लिए ले गईं.
अल्ट्रासाउंड में यह साफ हो गया कि मुस्कान ने अपने बच्चे को खो दिया है. दिल्ली के एक वरिष्ठ डॉक्टर, उस रिपोर्ट की पुष्टि करके न्यूजलॉन्ड्री को बताते हैं, "यह अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट गर्भ का कोई लक्षण नहीं दिखाती. यह ज़रूर दिखाती है कि गर्भाशय की किनारियों पर कोई संक्रमण या सूजन के लक्षण हैं और उसकी वजह से खून आ रहा है."
इस रिपोर्ट पर दस्तखत नहीं हैं, और मुस्कान और उनकी सास को भी जांच करने वाले डॉक्टर का नाम याद नहीं है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 312, 313 और 315 यह कहते हैं कि अगर किसी गर्भवती महिला को, "फुसलाकर असमय प्रसव के लिए मजबूर किया जाए" या "बिना मर्जी के जबरदस्ती से गर्भ गिराया जाए" या "कोई भी काम बुरी नियत से बच्चे के जीवित पैदा न होने के लिए किया जाए", तो दोषियों को सजा मिलनी चाहिए.
मुस्कान ने बार-बार यह आरोप लगाया है कि उसका "जबरन गर्भपात" किया गया लेकिन उत्तर प्रदेश में प्रशासन ने इसकी जांच करना आवश्यक नहीं समझा है.
दावों का विरोधाभास
मुरादाबाद अस्पताल, जहां मुस्कान को भर्ती कराया गया था, की कार्यकारी चीफ मेडिकल सुपरीटेंडेंट निर्मला पाठक न्यूजलॉन्ड्री को बताती हैं कि, “14 दिसंबर का अल्ट्रासाउंड उसका "7 हफ्ते और 5 दिन" का गर्भ दिखाता है.”
बाल सुरक्षा आयोग के विशेष गुप्ता की बात से अलग, पाठक यह भी कहती हैं, "हम बच्चे की धड़कन नहीं ढूंढ पा रहे थे. इसलिए बच्चा गर्भ में था लेकिन मैं यह पक्के तौर पर नहीं कह सकती कि बच्चा 14 दिसंबर को जिंदा था या नहीं."
पाठक के अनुसार उन्होंने मुस्कान को मेरठ मेडिकल कॉलेज को रेफर कर दिया था क्योंकि उसे बच्चे की हालत जानने के लिए ट्रांसवजाइनल सोनोग्राफी जांच की आवश्यकता थी. उन्होंने यह भी इंगित किया कि मुस्कान की परेशानी "ज्यादा खतरे का मामला" थी, क्योंकि वह उस समय अपने गर्भ के शुरुआती दिनों में थीं.
मुस्कान को उनकी जाचों की प्रतियां क्यों नहीं दी गईं? पाठक इस प्रश्न के उत्तर में कहती हैं, "क्योंकि यह मेडिकोलीगल मामला था इसलिए हमने सारी प्रतियां नारी निकेतन की महिला प्रमुख को दे दी थीं. और यह प्रतियां जिला न्यायाधीश के पास भी जाएंगी."
जब हमने मेडिको लीगल सर्टिफिकेट देखने या उसकी एक प्रति की मांग की, तो निर्मला पाठक ने उसे देने से इनकार कर दिया. उन्हें यह भी माना कि उनके अस्पताल ने असल में मेडिकल लीगल जांच नहीं की थी. उसके लिए उनका तर्क यह था कि मुस्कान को वहां "पुलिस के द्वारा केवल इलाज के लिए" लाया गया था.
हमने बिनोद बालश्रीवास्तव और जिला प्रोविजनल अफसर से भी इस बाबत पूछताछ की और दोनों यह दावा किया कि उन्होंने मुस्कान की सारी चिकित्सकीय रिपोर्ट पुलिस को दे दी हैं.
इस बीच निर्मला पाठक की बातों की पुष्टि डॉ. रणवीर सिंह ने की, जिन्होंने मुस्कान को अस्पताल के आपातकालीन वार्ड में देखा था. निर्मला पाठक की सारी बातों की पुष्टि करने के साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा कि मुस्कान को इंजेक्शन डॉ. पाठक ने खुद ही लगाए थे जिससे कि मुस्कान की "योनि रक्त स्त्राव" को रोका जा सके.
पहली बार कानून में है, कार्यान्वयन में नहीं
राशिद अब जमानत पर बाहर आ चुके हैं. मुस्कान बहुत कमजोर है और चुपचाप अपने बच्चे को खोने का शोक मना रही हैं.
राशि के घर से करीब चार किलोमीटर दूर बजरंग दल के मोनू बिश्नोई अपनी केसरिया रंग से रंगी खाने-पीने की दुकान पर झाड़ पोंछ कर रहे हैं. दुकान के कोने के मंदिर में छोटी सी प्रार्थना के बाद वह हमसे बात करने के लिए बैठते हैं. वह मोनू ही थे जिन्होंने अपनी शादी को पंजीकृत करा कर लौट रहे मुस्कान और राशिद का रास्ता रोका था और फिर उन्हें पुलिस स्टेशन ले गए थे.
बजरंग दल को मुस्कान और राशिद के बारे में कैसे पता चला?
वे कहते हैं, "हमारे सदस्यों ने हमें जानकारी दी. क्योंकि उस समय मैं एक शादी में था मैंने और सदस्यों से इसकी सत्यता पता करने के लिए कहा. जैसे ही बात पक्की हुई हम उस जगह पर पहुंच गए."
हमने उनसे पूछा कि, "यह सदस्य कौन हैं?" इसके जवाब में मोनू ने बजरंग दल की सूचना प्रणाली को समझाते हुए एक भाषण दिया.
मोनू दावा करते हैं कि केवल मुरादाबाद में ही 200 से 300 आदमी बजरंग दल के लिए काम करते हैं, हालांकि सभी खुलकर इस कट्टरवादी दल का समर्थन नहीं करते. वे कहते हैं, "हमारे लोग हर गली, हर चौराहे, हर नुक्कड़ पर हैं. हमारे अपने खुफिया लोग हैं जो कभी अपनी पहचान नहीं खोलेंगे. वह कभी किसी के सामने नहीं आएंगे, मीडिया के भी नहीं. 15-20 महिलाएं भी हैं जो हमारे लिए काम करती हैं."
दल नियमित तौर पर बैठकें करता है जहां पर "मामलों पर चर्चा होती है और निर्णय लिए जाते हैं", इसके साथ सदस्यों को काम भी दिए जाते हैं. मोनू समझाते हैं, "उदाहरण के लिए एक गौ रक्षा विभाग है और एक आध्यात्मिक संवाद विभाग. आध्यात्मिक संवाद विभाग जनता में संदेश देने का काम करता है. हम अपने संगठन के बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं, हनुमान जी के भजन और श्री राम की प्रार्थना गाते हैं और हम पूजन के लिए मिलन आयोजित करते हैं."
काफी कार्यकर्ता नियमित तौर पर लड़ाई का शारीरिक अभ्यास करते हैं. विश्नोई ने इन अभ्यास वर्गों का समय और जगह बताने से इनकार करते हुए कहा, "क्योंकि हम सब एक जगह नहीं मिल सकते, यह अभ्यास वर्ग अलग-अलग केंद्रों पर होते हैं." संगठन के सदस्यों को डंडे और बिना हथियार के युद्ध करने का अभ्यास कराया जाता है.
इतना सब अभ्यास किसलिए? विश्नोई मुस्कुरा कर जवाब देते हैं, "देखिए इसे शारीरिक व्यायाम की तरह देखिए. यह शरीर के लिए तो अच्छा है ही पर कोई नहीं जानता कि कब लड़ना पड़ जाए, तैयार रहना बेहतर है."
हालांकि मुस्कान और राशिद "लव जिहाद कानून" में गिरफ्तार हुए पहले दंपत्ति थे, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब मोनू विश्नोई या उनके दल ने अंतर धार्मिक शादी में हस्तक्षेप किया.
वे डींग मारते हुए कहते हैं, "हम यह काम काफी लंबे समय से कर रहे हैं. बस इतना है कि अब इसका कानून पहली बार बन गया है."
वे लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसका जवाब देते हुए विश्नोई दावा करते हैं कि मुसलमान आदमी हिंदू लड़कियों को "बहका-फुसला" रहे हैं और बजरंग दल ऐसी महिलाओं को "बचाकर" हिंदू समाज की "सेवा" कर रहा है. वह दोहराहते हैं, "जो हम कर रहे हैं वह एक धार्मिक और सामाजिक सेवा है. इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं. पिंकी पर दबाव बनाकर शादी की गई थी."
वह विस्तार से बताते हैं कि जब बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को यह पता चलता है कि कोई हिंदू महिला किसी मुस्लिम आदमी के "संपर्क में है", वह लड़की के घर वालों को इत्तला कर देते हैं और "बात हाथ से निकल जाने" से पहले उसे "समझाते" हैं.
उन्होंने हमें नहीं बताया कि अब तक कितने प्रेम संबंध और शादियों में उनके दल ने हस्तक्षेप किया है.
मुस्कान और उसके ससुराल वालों को संदेह है कि उनके मामले में एक स्थानीय वकील ने बजरंग दल को शादी के बारे में जानकारी दी. राशिद के परिवार ने उस वकील से शादी रजिस्टर करने में मदद करने के लिए संपर्क किया था. हमने उस वकील से पूछा कि क्या वह मुस्कान और राशिद के बारे में जानते हैं पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
मुस्कान और उसके ससुराल के लोगों का यह भी आरोप है कि 5 दिसंबर को बजरंग दल के लोगों ने उन्हें पकड़ने के बाद राशिद और उसके भाई के साथ मारपीट की.
मोनू बिश्नोई इस आरोप को नकारते हैं और इस घटना की खबर को गलत तरीके से बताने के लिए "एनडीटीवी जैसे हिंदू विरोधी चैनलों" को दोषी ठहराते हैं. उनकी राय है कि, "मैं आपको बता रहा हूं कि यह एनडीटीवी चैनल बिका हुआ है. यह केवल एक हिंदू विरोधी चैनल है जो केवल हिंदुओं के खिलाफ ही बात करता है. हम केवल रिपब्लिक भारत देखते हैं."
हमारी बातचीत के दौरान मोनू के पास बजरंग दल के कुछ और स्थानीय कार्यकर्ता भी आ गए. उनकी शिकायत थी कि "लव जिहाद" को कवर करने वाले पत्रकार मुस्लिम हैं और "हिंदू पत्रकारों" के बीच कोई एकता नहीं है. मोनू सवाल उठाते हैं, "चाहे आज तक हो या कोई और इन चैनलों में सभी मुसलमान पत्रकारों ने इस मामले को तोड़ मरोड़ कर दिखाया है. आप लोगों को अपना काम करते हुए अपने धर्म के बारे में सोचना चाहिए."
क्या उनके दल को उत्तर प्रदेश पुलिस का समर्थन है?
इसका उत्तर देते हुए मोनू बिश्नोई कहते हैं, "पुलिस हमारा समर्थन क्यों करेगी? जब हमने गौ तस्करी में लिप्त ट्रक रोके थे तो हम पर तीन केस फाइल कर दिए गए. हमें पुलिस ने ऐसे समर्थन दिया है."
क्या उन्हें पता था कि मुस्कान गर्भवती है जब वह उसे घसीट कर पुलिस स्टेशन ले गए? मोनू कहते हैं कि उसकी सास में उन्हें बताया था, और अपनी बात में यह भी जोड़ते हैं कि, "इसका किसी चीज से क्या लेना देना है? एक अपराध हो रहा था और हमने उसे बचाया और शायद उसके बच्चे को भी."
"अब मैं उसे नहीं खो सकती"
मोनू बिश्नोई ने हमें बताया कि "लव जिहाद के मुद्दे" के अलावा बजरंग दल को उनके इलाके में मुसलमानों से कोई परेशानी नहीं है. दावा करते हैं कि, "हमें उनसे कोई परेशानी नहीं है."
अब जब मुस्कान ने स्पष्ट कर दिया है कि वह राशिद के साथ ही रहना चाहती है, इस पर मोनू को क्या कहना है? वह जवाब देते हैं, "हमारा काम कानून को हाथ में लेने का नहीं है. हम ने पुलिस को खबर की और हमारा काम हो गया. अब अगर वही जलालत की जिंदगी जीना चाहती है तो हम क्या कर सकते हैं?"
वह अपनी बात में यह भी जोड़ते हैं कि अगर मुस्कान वापस हिंदू बनना चाहे तो बजरंग दल सुनिश्चित करेगा कि उसकी शादी किसी हिंदू आदमी से जल्दी से जल्दी हो जाए.
बात खत्म हो जाने पर हम उठे और हमने उन्हें 'शुक्रिया' कहा, एक आम भाषा में उपयोग होने वाला उर्दू शब्द. मोनू को अच्छा नहीं लगा और वह बोले, "आपको धन्यवाद कहना चाहिए, वह सही शब्द है. शुक्रिया एक उर्दू का शब्द है. हम हिंदुओं को उसका उपयोग नहीं करना चाहिए."
इस सब के बीच नारी निकेतन में एक युवती जो एक मुसलमान आदमी से प्रेम करती है, छुपी हुई है. मुस्कान के के बारे में बात करते हुए बिनोद बाल श्रीवास्तव ने हमें बताया कि वहां रहने वाली 35-40 महिलाओं में से एक और लड़की "मुस्कान की तरह" है. उन्होंने बताया कि, "अभी बालिग नहीं है और एक मुसलमान से प्रेम करती है. उसके माता-पिता उसके संबंध को स्वीकार नहीं कर रहे हैं तो वह भाग कर यहां आ गई है. यह पहली बार नहीं हो रहा. आमतौर पर ऐसे मामले में जब बच्ची 18 साल की हो जाती है तो हम उन्हें जिसके साथ वो जाना चाहें, चाहे मां-बाप हों या मुस्लिम लड़का, उसके साथ जाने देते हैं."
लेकिन अब "लव जिहाद कानून" आने के बाद, बाल श्रीवास्तव कहती हैं कि नहीं पता कि अब उस लड़की के साथ क्या होगा. हमारी बात उससे कराने के लिए उन्होंने मना कर दिया.
जब हमने मुस्कान से पूछा कि वह इस नए कानून के बारे में क्या सोचती हैं, हमारी तरफ टकटकी लगाए देखती रहीं. वे बोलीं, "कानून हो या ना हो पर मैं उसी से प्यार करती हूं. मुझे केवल अपना राशिद वापस चाहिए. मैं अपने बच्चे को पहले ही खो चुकी हूं, अब मैं उसे नहीं खो सकती."
आज जब राशिद और उसके भाई को जेल से रिहा कर दिया गया, हमने उनके चचेरे भाई मोहम्मद अमीन से फोन पर बात की. उन्होंने बताया कि, "राशिद शारीरिक रूप से ठीक है लेकिन कमजोर लग रहा है."
क्या हाल है बच्चे के बारे में जानता है? अमीन ने बताया कि, "हां वह जानता है पर उसने इस बात पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं की है."
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