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जो शख्स सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहा है उसे बीजेपी ने अपने विज्ञापन में बताया खुशहाल किसान

भारतीय जनता पार्टी की पंजाब यूनिट ने सोमवार को एक विज्ञापन जारी किया. विज्ञापन में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीफ फसलों की हो रही खरीदारी का जिक्र करते हुए इस साल हुई खरीदारी के आंकड़ें दिए गए हैं.

विज्ञापन की पंच लाइन 'खुशहाल किसान, समृद्ध राष्ट्र' है. इसमें एक सिख किसान की तस्वीर भी लगी हुई है. किसान के कंधे पर कुदाल है और वह खिलखिला कर हंस रहा है.

बीजेपी द्वारा साझा किया गया विज्ञापन

जिस तस्वीर के जरिए यह बताने की कोशिश हो रही है कि एमएसपी पर हो रही खरीदारी से किसान खुश हैं वो पंजाब के फिल्म अभिनेता और निर्देशक हरप्रीत सिंह की है. जो खुद बीते 15 दिनों से सिंघु बॉर्डर पहुंचकर किसानों को अपना समर्थन दे रहे हैं. वो खुद भी किसान हैं.

बीजेपी द्वारा बिना इजाजत अपनी तस्वीर उठाने को हरप्रीत घिनौनी हरकत बताते हैं. वो कहते हैं, 'हम इसके लिए उन्हें लीगल नोटिस भेजने की भी तैयारी कर रहे हैं. बिना इजाजत मेरी तस्वीर का इस्तेमाल उन्होंने किया है. मुझे खुशहाल किसान बता रहे हैं जबकि मैं प्रदर्शन में शामिल हूं."

दो सप्ताह से किसानों के साथ प्रदर्शन में शामिल हरप्रीत सिंह सिंघु बॉर्डर पर

पंजाब-हरियाणा समेत देश के अलग-अलग हिस्सों से आए किसान दिल्ली के टिकरी, सिंघु और गाजीपुर बॉर्डर पर बीते 26 दिनों से नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. केंद्र सरकार बातचीत के जरिए किसानों की नाराजगी दूर करने की कोशिश कर रही है लेकिन किसान नेताओं से अब तक कई दफा हो चुकी वार्ता बेनतीजा रही है.

किसानों का आंदोलन खत्म हो इसके लिए भारतीय जनता पार्टी अपने स्तर पर भी काम कर रही है. एक तरफ जहां बीजेपी के नेता इस आंदोलन के पीछे विपक्षी दलों की भूमिका बता रहे हैं. आंदोलन को हाईजैक होने की बात कह रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ अपने क्षेत्र में जाकर इस कानून के फायदे भी बता रहे हैं. इसके लिए विज्ञापन दिया जा रहा है. कथित गलतफहमियां दूर की जा रही है.

प्रदर्शन कर रहे किसानों को अंदेशा है कि आगे चलकर एमएसपी पर खरीदारी ख़त्म हो जाएगी. इसलिए इसको लेकर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं. हालांकि सरकार एमसपी ख़त्म होने की बात से इनकार कर रही है. इसे भ्रम बता रही है.

बेशर्मी की हद है ये हरकत

पंजाब के होशियारपुर जिले के रहने वाले 37 वर्षीय हरप्रीत सिंह पंजाबी फिल्मों के अभिनेता और निर्देशक हैं. बगैर इजाजत विज्ञापन में तस्वीर इस्तेमाल होने से वो खफा हैं.

न्यूजलाउंड्री से बात करते हुए कहते हैं, "6-7 साल पहले मैं इस तस्वीर को अपने सोशल मीडिया पर साझा किया था. उन्होंने (बीजेपी के लोगों ने) बिना मेरी इजाजत के उपयोग किया है. मुझे खुशहाल किसान के रूप में दिखाया जा रहा है जबकि मैं अपने पूरे परिवार के साथ सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहा हूं. इसके लिए मुझसे कोई अनुमति भी नहीं ली गई थी."

इस तस्वीर को हरप्रीत ने साल 2015 के नवम्बर महीने में साझा किया था

हरप्रीत सिंह नाराज़गी जाहिर करते हुए आगे कहते हैं, "यह बेशर्मी की हद है. मैं सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहा हूं और वे मेरे फोटो का उपयोग खुशहाल किसान के रूप में कर रहे हैं. मुझे तो इसके बारे में तब पता चला जब कल रात मेरे एक दोस्त ने वो विज्ञापन मुझे भेजा. मैं उन्हें इसको लेकर कानूनी नोटिस भेजूंगा."

इसको लेकर जब हमने पंजाब बीजेपी के सोशल मीडिया इंचार्ज राकेश गोयल से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने पांच मिनट बाद बात करने लिए कहा लेकिन फिर उनसे बात नहीं हो पाई. हालांकि तब तक इस विज्ञापन को बीजेपी पंजाब के फेसबुक से हटा दिया गया.

जो आपके लिए अन्न उगाते हैं उन्हें खालिस्तानी कहना गुनाह

जब से केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानून पास किए हैं तभी से इसको लेकर विरोध प्रदर्शन जारी हैं. इसका सबसे ज़्यादा असर पंजाब में देखने को मिला. दो महीने तक लगातार प्रदर्शन के बाद जब सरकार नहीं सुनी तो किसान आने ट्रैक्टर के साथ 26 नवम्बर को दिल्ली पहुंचने के लिए निकल गए. किसानों को रोकने की तमाम कोशिश हरियाणा और केंद्र सरकार करती रही. अर्धसैनिक बल के जवानों को लगाया गया. सड़कें काट दी गईं लेकिन किसान दिल्ली के बॉर्डर पर पहुंचने में सफल हुए. उसके बाद से वे हाईवे पर ही जमे हुए हैं.

किसानों के आंदोलन को लेकर तरह-तरह की बातें मीडिया के एक बड़े हिस्से, केंद्र सरकार के मंत्रियों और बीजेपी के नेताओं द्वारा कही जा रही हैं. कुछ लोगों ने प्रदर्शन कर रहे किसानों को विपक्षी दलों का बताया तो कुछ ने इन्हें खालिस्तानी और नक्सली कहना शुरू कर दिया.

इसको लेकर जब हमने हरप्रीत से सवाल किया तो वे कहते हैं, "यह देखकर दुख तो होता ही है. आंदोलन कर रहे लोग किसान हैं. वे अपना हक मांगने के लिए यहां प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन सरकार हम पर लाठियां बरसा रही है, आंसू गैस के गोले दाग रही है. नेशनल मीडिया तो बहुत गलत है. किसानों को आतंकवादी बोल रहे हैं, जो उनके लिए अन्न उगाते हैं, खेतों में कड़ी मेहनत करते हैं उन्हें आतंकवादी कहा जा रहा है."

किसानों के हित में होता तो वे विरोध क्यों करते?

कड़ाके की ठंड के बीच प्रदर्शन कर रहे किसानों की मौत की भी खबरें अब आने लगी हैं. अब तक इस आंदोलन से जुड़े लगभग 29 लोगों की मौत हो चुकी हैं. किसान इन मौतों से दुखी तो ज़रूर है पर कानून वापस कराए बगैर वापस जाने की तैयारी में नहीं हैं. वहीं सरकार भी कानून में बदलाव को तैयार है लेकिन वापस लेने को तैयार नहीं है.

इस रस्साकशी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि बिलों को किसानों के हित मे बताते हुए विपक्ष को राजनीति नहीं करने की अपील की है. पीएम ने कहा- 'आप भले क्रेडिट ले लीजिए लेकिन किसानों को भ्रमित करना बंद कीजिए.'

पीएम जब इसे किसानों के हित में बता रहे तो आपको क्यों लगता है कि यह कानून गलत है इस सवाल के जवाब में हरप्रीत कहते हैं, "दिक्कत यह है कि यह कानून जिनके लिए बनाया गया उनसे पूछा ही नहीं. लॉकडाउन में बिना किसी से बात किए कानून पास कर दिया. सरकार बोल रही है कि यह किसानों के हित के लिए है वहीं किसान बोल रहे हैं कि यह उनके हित के लिए नहीं है, तो आखिर सच कौन और झूठ कौन बोल रहा है. अभी के लिए तो कह सकते हैं कि किसानों के हित में हैं लेकिन आने वाले समय में इसका असर उनपर गलत होगा."

आंदोलन में शामिल किसान

न्यूज़ 18 के सर्वे में शामिल लोग दूसरे ग्रह से आए हैं

सरकार और बीजेपी चाहती है कि किसान कानून को समझे और प्रदर्शन वापस ले लें. दूसरी तरफ अडानी ग्रुप ने भी किसानों के लिए विज्ञापन दिया है. न्यूज18 ने एक सर्वे करके बाताया कि 73.5 प्रतिशत लोगों ने कृषि सुधार और आधुनिकीकरण का समर्थन किया है. इस सर्वे में 2412 लोग शामिल हुए हैं.

इस सर्वे को लेकर जब हमने हरप्रीत से सवाल किया तो वे कहते हैं, "अब पता नहीं जी यह कौन से किसान हैं जो बिल का समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि यहां बैठे हजारों किसान बिल का विरोध ही कर रहे है. वो लोग शायद दूसरे ग्रह से आए हुए हैं."

किसान अपने आंदोलन को दिन-ब-दिन और मज़बूत कर रहे हैं. वे बीजेपी नेताओं का घेराव कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने अगली बैठक के लिए किसान नेताओं को पत्र लिखा है. अगली बैठक कब होगी इसपर निर्णय नहीं लिया गया.

Also Read: ‘ट्राली टाइम्स’: एक पत्रकार, एक सामाजिक कार्यकर्ता और कुछ जोशीले युवाओं का शाहकार

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भारतीय जनता पार्टी की पंजाब यूनिट ने सोमवार को एक विज्ञापन जारी किया. विज्ञापन में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीफ फसलों की हो रही खरीदारी का जिक्र करते हुए इस साल हुई खरीदारी के आंकड़ें दिए गए हैं.

विज्ञापन की पंच लाइन 'खुशहाल किसान, समृद्ध राष्ट्र' है. इसमें एक सिख किसान की तस्वीर भी लगी हुई है. किसान के कंधे पर कुदाल है और वह खिलखिला कर हंस रहा है.

बीजेपी द्वारा साझा किया गया विज्ञापन

जिस तस्वीर के जरिए यह बताने की कोशिश हो रही है कि एमएसपी पर हो रही खरीदारी से किसान खुश हैं वो पंजाब के फिल्म अभिनेता और निर्देशक हरप्रीत सिंह की है. जो खुद बीते 15 दिनों से सिंघु बॉर्डर पहुंचकर किसानों को अपना समर्थन दे रहे हैं. वो खुद भी किसान हैं.

बीजेपी द्वारा बिना इजाजत अपनी तस्वीर उठाने को हरप्रीत घिनौनी हरकत बताते हैं. वो कहते हैं, 'हम इसके लिए उन्हें लीगल नोटिस भेजने की भी तैयारी कर रहे हैं. बिना इजाजत मेरी तस्वीर का इस्तेमाल उन्होंने किया है. मुझे खुशहाल किसान बता रहे हैं जबकि मैं प्रदर्शन में शामिल हूं."

दो सप्ताह से किसानों के साथ प्रदर्शन में शामिल हरप्रीत सिंह सिंघु बॉर्डर पर

पंजाब-हरियाणा समेत देश के अलग-अलग हिस्सों से आए किसान दिल्ली के टिकरी, सिंघु और गाजीपुर बॉर्डर पर बीते 26 दिनों से नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. केंद्र सरकार बातचीत के जरिए किसानों की नाराजगी दूर करने की कोशिश कर रही है लेकिन किसान नेताओं से अब तक कई दफा हो चुकी वार्ता बेनतीजा रही है.

किसानों का आंदोलन खत्म हो इसके लिए भारतीय जनता पार्टी अपने स्तर पर भी काम कर रही है. एक तरफ जहां बीजेपी के नेता इस आंदोलन के पीछे विपक्षी दलों की भूमिका बता रहे हैं. आंदोलन को हाईजैक होने की बात कह रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ अपने क्षेत्र में जाकर इस कानून के फायदे भी बता रहे हैं. इसके लिए विज्ञापन दिया जा रहा है. कथित गलतफहमियां दूर की जा रही है.

प्रदर्शन कर रहे किसानों को अंदेशा है कि आगे चलकर एमएसपी पर खरीदारी ख़त्म हो जाएगी. इसलिए इसको लेकर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं. हालांकि सरकार एमसपी ख़त्म होने की बात से इनकार कर रही है. इसे भ्रम बता रही है.

बेशर्मी की हद है ये हरकत

पंजाब के होशियारपुर जिले के रहने वाले 37 वर्षीय हरप्रीत सिंह पंजाबी फिल्मों के अभिनेता और निर्देशक हैं. बगैर इजाजत विज्ञापन में तस्वीर इस्तेमाल होने से वो खफा हैं.

न्यूजलाउंड्री से बात करते हुए कहते हैं, "6-7 साल पहले मैं इस तस्वीर को अपने सोशल मीडिया पर साझा किया था. उन्होंने (बीजेपी के लोगों ने) बिना मेरी इजाजत के उपयोग किया है. मुझे खुशहाल किसान के रूप में दिखाया जा रहा है जबकि मैं अपने पूरे परिवार के साथ सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहा हूं. इसके लिए मुझसे कोई अनुमति भी नहीं ली गई थी."

इस तस्वीर को हरप्रीत ने साल 2015 के नवम्बर महीने में साझा किया था

हरप्रीत सिंह नाराज़गी जाहिर करते हुए आगे कहते हैं, "यह बेशर्मी की हद है. मैं सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहा हूं और वे मेरे फोटो का उपयोग खुशहाल किसान के रूप में कर रहे हैं. मुझे तो इसके बारे में तब पता चला जब कल रात मेरे एक दोस्त ने वो विज्ञापन मुझे भेजा. मैं उन्हें इसको लेकर कानूनी नोटिस भेजूंगा."

इसको लेकर जब हमने पंजाब बीजेपी के सोशल मीडिया इंचार्ज राकेश गोयल से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने पांच मिनट बाद बात करने लिए कहा लेकिन फिर उनसे बात नहीं हो पाई. हालांकि तब तक इस विज्ञापन को बीजेपी पंजाब के फेसबुक से हटा दिया गया.

जो आपके लिए अन्न उगाते हैं उन्हें खालिस्तानी कहना गुनाह

जब से केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानून पास किए हैं तभी से इसको लेकर विरोध प्रदर्शन जारी हैं. इसका सबसे ज़्यादा असर पंजाब में देखने को मिला. दो महीने तक लगातार प्रदर्शन के बाद जब सरकार नहीं सुनी तो किसान आने ट्रैक्टर के साथ 26 नवम्बर को दिल्ली पहुंचने के लिए निकल गए. किसानों को रोकने की तमाम कोशिश हरियाणा और केंद्र सरकार करती रही. अर्धसैनिक बल के जवानों को लगाया गया. सड़कें काट दी गईं लेकिन किसान दिल्ली के बॉर्डर पर पहुंचने में सफल हुए. उसके बाद से वे हाईवे पर ही जमे हुए हैं.

किसानों के आंदोलन को लेकर तरह-तरह की बातें मीडिया के एक बड़े हिस्से, केंद्र सरकार के मंत्रियों और बीजेपी के नेताओं द्वारा कही जा रही हैं. कुछ लोगों ने प्रदर्शन कर रहे किसानों को विपक्षी दलों का बताया तो कुछ ने इन्हें खालिस्तानी और नक्सली कहना शुरू कर दिया.

इसको लेकर जब हमने हरप्रीत से सवाल किया तो वे कहते हैं, "यह देखकर दुख तो होता ही है. आंदोलन कर रहे लोग किसान हैं. वे अपना हक मांगने के लिए यहां प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन सरकार हम पर लाठियां बरसा रही है, आंसू गैस के गोले दाग रही है. नेशनल मीडिया तो बहुत गलत है. किसानों को आतंकवादी बोल रहे हैं, जो उनके लिए अन्न उगाते हैं, खेतों में कड़ी मेहनत करते हैं उन्हें आतंकवादी कहा जा रहा है."

किसानों के हित में होता तो वे विरोध क्यों करते?

कड़ाके की ठंड के बीच प्रदर्शन कर रहे किसानों की मौत की भी खबरें अब आने लगी हैं. अब तक इस आंदोलन से जुड़े लगभग 29 लोगों की मौत हो चुकी हैं. किसान इन मौतों से दुखी तो ज़रूर है पर कानून वापस कराए बगैर वापस जाने की तैयारी में नहीं हैं. वहीं सरकार भी कानून में बदलाव को तैयार है लेकिन वापस लेने को तैयार नहीं है.

इस रस्साकशी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि बिलों को किसानों के हित मे बताते हुए विपक्ष को राजनीति नहीं करने की अपील की है. पीएम ने कहा- 'आप भले क्रेडिट ले लीजिए लेकिन किसानों को भ्रमित करना बंद कीजिए.'

पीएम जब इसे किसानों के हित में बता रहे तो आपको क्यों लगता है कि यह कानून गलत है इस सवाल के जवाब में हरप्रीत कहते हैं, "दिक्कत यह है कि यह कानून जिनके लिए बनाया गया उनसे पूछा ही नहीं. लॉकडाउन में बिना किसी से बात किए कानून पास कर दिया. सरकार बोल रही है कि यह किसानों के हित के लिए है वहीं किसान बोल रहे हैं कि यह उनके हित के लिए नहीं है, तो आखिर सच कौन और झूठ कौन बोल रहा है. अभी के लिए तो कह सकते हैं कि किसानों के हित में हैं लेकिन आने वाले समय में इसका असर उनपर गलत होगा."

आंदोलन में शामिल किसान

न्यूज़ 18 के सर्वे में शामिल लोग दूसरे ग्रह से आए हैं

सरकार और बीजेपी चाहती है कि किसान कानून को समझे और प्रदर्शन वापस ले लें. दूसरी तरफ अडानी ग्रुप ने भी किसानों के लिए विज्ञापन दिया है. न्यूज18 ने एक सर्वे करके बाताया कि 73.5 प्रतिशत लोगों ने कृषि सुधार और आधुनिकीकरण का समर्थन किया है. इस सर्वे में 2412 लोग शामिल हुए हैं.

इस सर्वे को लेकर जब हमने हरप्रीत से सवाल किया तो वे कहते हैं, "अब पता नहीं जी यह कौन से किसान हैं जो बिल का समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि यहां बैठे हजारों किसान बिल का विरोध ही कर रहे है. वो लोग शायद दूसरे ग्रह से आए हुए हैं."

किसान अपने आंदोलन को दिन-ब-दिन और मज़बूत कर रहे हैं. वे बीजेपी नेताओं का घेराव कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने अगली बैठक के लिए किसान नेताओं को पत्र लिखा है. अगली बैठक कब होगी इसपर निर्णय नहीं लिया गया.

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