Newslaundry Hindi
कांग्रेस की गणेश परिक्रमा: सोनिया गांधी ही हैं विकल्प
अगस्त में हुई कांग्रेस वर्किग कमेटी की बैठक के बाद यह पहली मीटिंग थी. लगभग पांच घंटे कांग्रेस के काम करने के तरीक़े और सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बीच बंटे हुए नेताओं पर भी चर्चा हुई. पांच घंटे के मंथन का नतीजा क्या निकला इस पर चर्चा बाद में करेंगे लेकिन इतना ज़रूर हुआ कि जब अगस्त में कांग्रेस वर्किग कमेटी की बैठक हुई थी तो इस गुट को बाग़ी कहा गया था जिससे कांग्रेस आलाकमान और G-23 के नेताओं के बीच खींचतान बढ़ गयी थी. अब इस बैठक के बाद कहा जा सकता है कि बाग़ी नेताओं का टैग हट गया है और खींचतान भी ज़रूर कम हुई है. जिसे अंग्रेज़ी में Icebreak भी कहा जाता है.
G- 23 के नेताओं की मांग रही है कि कांग्रेस अध्यक्ष से लेकर ज़िला और ब्लॉक अध्यक्ष तक पार्टी में चुनाव हो और सिर्फ़ चुनिंदा लोग ही सारे फ़ैसले ना करें बल्कि पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठकर चर्चा हो और तभी अंतिम नतीजे पर पहुंचा जाए. दरअसल जी- 23 के नेताओं का यह सीधा हमला राहुल गांधी के नज़दीकी लोग संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल, मीडिया और कर्नाटक के महासचिव रणदीप सुरजेवाला और और राज्यसभा सांसद और गुजरात के प्रभारी राजीव सातव की ओर है. कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं को राहुल गांधी की नज़दीकी इस कटोरी से काफ़ी दिक़्क़त है और ख़ासतौर पर इनके काम करने के तरीक़े से. कल शनिवार की बैठक के बाद यह तो तय हो गया है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होने जा रहा है. ऐसे में कांग्रेस के सामने तीन परिस्थिति बनती है.
1- सोनिया गांधी ही कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बनी रहेगी
जिस तरीक़े से राहुल गांधी और सोनिया गांधी की कांग्रेस यानी युवा और सीनियर नेताओं के बीच समन्वय कम होता जा रहा है और पार्टी को टूटने से बचाना है तो सोनिया गांधी के अलावा कांग्रेस के पास विकल्प नहीं बचता. सोनिया गांधी ही कांग्रेस के पास ऐसी नेता हैं जो सबको एकजुट रख सकती हैं. दरअसल लोकसभा चुनाव के बाद जब राहुल गांधी ने हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफ़ा दिया था और अब लगभग 18 महीने बाद भी कांग्रेस उसी नाज़ुक मोड़ पर खड़ी है जहां 18 महीने पहले खड़ी थी. हालांकि उस वक़्त भी गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की बात हुई थी लेकिन सब जानते थे कि किसी एक व्यक्ति पर सहमती नही बन सकती. इसलिए सोनिया गांधी ने अगस्त 2019 में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप मे दूसरे कार्यकाल की शुरुआत की. अब क्योंकि वरिष्ठ नेताओं का एक समूह जो कि ताकतवर नेता हैं वो अध्यक्ष पद को लेकर चुनाव की मांग कर रहे हैं तो ऐसे में सोनिया गांधी ही एक मात्र विकल्प हैं जिस पर पार्टी के किसी भी वर्ग को आपत्ति नहीं हो सकती. ऐसे समय मे जब कांग्रेस आलाकमान और कांग्रेस पार्टी दोनों ही कमजोर हैं और उन्हें अपने घर में ही चुनौती मिल रही है तो सोनिया गांधी के अलावा बेहतर विकल्प कांग्रेस के पास फ़िलहाल नहीं दिखता.
2- राहुल गांधी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अगर ख़राब स्वास्थ्य के चलते अध्यक्ष पद छोड़ना चाहती हैं तो दूसरा विकल्प कांग्रेस और परिवार के पास है कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ें. G-23 के नेता भी इस बात के समर्थन में हैं कि अगर गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़ेगा तो उन्हें कोई चुनौती देने वाला नहीं हैं. राहुल गांधी के सामने बड़ी चुनौती है कि G- 23 के नेताओं की नाराज़गी उनकी टीम और उसके काम करने के तरीक़े को लेकर है. ऐसे में राहुल गांधी को सबको साधने की ज़रूरत है. बाग़ी नेताओं में से कुछ को अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में जगह देनी पड़ेगी , कुछ को कांग्रेस वर्किग कमेटी में और बाकि नेताओ को संसद में पद देकर सबको साथ लेकर चलना होगा. तब ही राहुल गांधी को सब अध्यक्ष के रूप में स्वीकार कर सकते हैं. अगर ऐसा राहुल गांधी कर पाते हैं तब उनके घर का झगड़ा ख़त्म होगा और वह एक मज़बूत विपक्ष की भूमिका निभा पाएंगे.
3- अगर गांधी परिवार अध्यक्ष पद की रेस से बाहर हो जाता तो ऐसी स्थिति में क्या होगा?
तीसरी और आख़िरी परिस्थिति में अगर गांधी परिवार अध्यक्ष पद की रेस से बाहर हो जाता है. जैसे की राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव की हार के बाद इस्तीफ़ा देते हुए कहा था. लोकसभा चुनाव की हार के बाद कांग्रेस वर्किग कमेटी की बैठक बुलायी गई थी. तब राहुल गांधी ने कहा था, गांधी परिवार का
कोई सदस्य कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनेगा आप CWC) अगला अध्यक्ष चुन लीजिए. हालांकि राहुल गांधी ने यह नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा था. राहुल गांधी को लगता था कि अगर मैं ज़िम्मेदारी लेकर इस्तीफ़ा दूंगा तो बाकि सब नेता भी ज़िम्मेदारी लेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ऐसी स्थिति में गांधी परिवार से बाहर का व्यक्ति जो कि आलाकमान का उम्मीदवार हो सकता है. उसमे सबसे प्रबल दावेदार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं. अशोक गहलोत गांधी परिवार के बहुत नज़दीकी और वफ़ादार माने जाते हैं. यहीं से शुरू होती है कांग्रेस की मुश्किलें. यह बात सही है कि राहुल गांधी के सामने कोई नेता नामांकन नहीं करेगा या कर भी लेगा तो जीत नही पाएगा.
अगर अशोक गहलोत अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे तो लाज़मी है कि उन्हें कड़ी टक्कर मिल सकती है. अब सवाल उठता है कौन ऐसा नेता है जो अशोक गहलोत को टक्कर दे सकता है. अशोक गहलोत के सामने वाली लॉबी में अम्बिका सोनी, कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, भूपेन्द्र हुड्डा, सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा, वायलार रवि जैसे बड़े नाम अशोक गहलोत को चुनौती दे सकते हैं. लेकिन ऐसी स्थिति में G- 23 समूह में फूट पड़ने की भी पूरी सम्भावना है. अब कांग्रेस एक ऐसे नाज़ुक मोड़ पर खड़ी है जहां एक तरफ़ कुआं है और दूसरी तरफ़ खाईं. आज की परिस्थिति में ज़्यादा संभावना है कि सोनिया गांधी ही फ़िलहाल अध्यक्ष पद पर बने रहें ताकि पार्टी के सामने खड़ी तमाम मुश्किलों पर कुछ समय के लिए ही सही पर विराम लग सके.
अगस्त में हुई कांग्रेस वर्किग कमेटी की बैठक के बाद यह पहली मीटिंग थी. लगभग पांच घंटे कांग्रेस के काम करने के तरीक़े और सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बीच बंटे हुए नेताओं पर भी चर्चा हुई. पांच घंटे के मंथन का नतीजा क्या निकला इस पर चर्चा बाद में करेंगे लेकिन इतना ज़रूर हुआ कि जब अगस्त में कांग्रेस वर्किग कमेटी की बैठक हुई थी तो इस गुट को बाग़ी कहा गया था जिससे कांग्रेस आलाकमान और G-23 के नेताओं के बीच खींचतान बढ़ गयी थी. अब इस बैठक के बाद कहा जा सकता है कि बाग़ी नेताओं का टैग हट गया है और खींचतान भी ज़रूर कम हुई है. जिसे अंग्रेज़ी में Icebreak भी कहा जाता है.
G- 23 के नेताओं की मांग रही है कि कांग्रेस अध्यक्ष से लेकर ज़िला और ब्लॉक अध्यक्ष तक पार्टी में चुनाव हो और सिर्फ़ चुनिंदा लोग ही सारे फ़ैसले ना करें बल्कि पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठकर चर्चा हो और तभी अंतिम नतीजे पर पहुंचा जाए. दरअसल जी- 23 के नेताओं का यह सीधा हमला राहुल गांधी के नज़दीकी लोग संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल, मीडिया और कर्नाटक के महासचिव रणदीप सुरजेवाला और और राज्यसभा सांसद और गुजरात के प्रभारी राजीव सातव की ओर है. कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं को राहुल गांधी की नज़दीकी इस कटोरी से काफ़ी दिक़्क़त है और ख़ासतौर पर इनके काम करने के तरीक़े से. कल शनिवार की बैठक के बाद यह तो तय हो गया है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होने जा रहा है. ऐसे में कांग्रेस के सामने तीन परिस्थिति बनती है.
1- सोनिया गांधी ही कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बनी रहेगी
जिस तरीक़े से राहुल गांधी और सोनिया गांधी की कांग्रेस यानी युवा और सीनियर नेताओं के बीच समन्वय कम होता जा रहा है और पार्टी को टूटने से बचाना है तो सोनिया गांधी के अलावा कांग्रेस के पास विकल्प नहीं बचता. सोनिया गांधी ही कांग्रेस के पास ऐसी नेता हैं जो सबको एकजुट रख सकती हैं. दरअसल लोकसभा चुनाव के बाद जब राहुल गांधी ने हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफ़ा दिया था और अब लगभग 18 महीने बाद भी कांग्रेस उसी नाज़ुक मोड़ पर खड़ी है जहां 18 महीने पहले खड़ी थी. हालांकि उस वक़्त भी गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की बात हुई थी लेकिन सब जानते थे कि किसी एक व्यक्ति पर सहमती नही बन सकती. इसलिए सोनिया गांधी ने अगस्त 2019 में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप मे दूसरे कार्यकाल की शुरुआत की. अब क्योंकि वरिष्ठ नेताओं का एक समूह जो कि ताकतवर नेता हैं वो अध्यक्ष पद को लेकर चुनाव की मांग कर रहे हैं तो ऐसे में सोनिया गांधी ही एक मात्र विकल्प हैं जिस पर पार्टी के किसी भी वर्ग को आपत्ति नहीं हो सकती. ऐसे समय मे जब कांग्रेस आलाकमान और कांग्रेस पार्टी दोनों ही कमजोर हैं और उन्हें अपने घर में ही चुनौती मिल रही है तो सोनिया गांधी के अलावा बेहतर विकल्प कांग्रेस के पास फ़िलहाल नहीं दिखता.
2- राहुल गांधी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अगर ख़राब स्वास्थ्य के चलते अध्यक्ष पद छोड़ना चाहती हैं तो दूसरा विकल्प कांग्रेस और परिवार के पास है कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ें. G-23 के नेता भी इस बात के समर्थन में हैं कि अगर गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़ेगा तो उन्हें कोई चुनौती देने वाला नहीं हैं. राहुल गांधी के सामने बड़ी चुनौती है कि G- 23 के नेताओं की नाराज़गी उनकी टीम और उसके काम करने के तरीक़े को लेकर है. ऐसे में राहुल गांधी को सबको साधने की ज़रूरत है. बाग़ी नेताओं में से कुछ को अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में जगह देनी पड़ेगी , कुछ को कांग्रेस वर्किग कमेटी में और बाकि नेताओ को संसद में पद देकर सबको साथ लेकर चलना होगा. तब ही राहुल गांधी को सब अध्यक्ष के रूप में स्वीकार कर सकते हैं. अगर ऐसा राहुल गांधी कर पाते हैं तब उनके घर का झगड़ा ख़त्म होगा और वह एक मज़बूत विपक्ष की भूमिका निभा पाएंगे.
3- अगर गांधी परिवार अध्यक्ष पद की रेस से बाहर हो जाता तो ऐसी स्थिति में क्या होगा?
तीसरी और आख़िरी परिस्थिति में अगर गांधी परिवार अध्यक्ष पद की रेस से बाहर हो जाता है. जैसे की राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव की हार के बाद इस्तीफ़ा देते हुए कहा था. लोकसभा चुनाव की हार के बाद कांग्रेस वर्किग कमेटी की बैठक बुलायी गई थी. तब राहुल गांधी ने कहा था, गांधी परिवार का
कोई सदस्य कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनेगा आप CWC) अगला अध्यक्ष चुन लीजिए. हालांकि राहुल गांधी ने यह नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा था. राहुल गांधी को लगता था कि अगर मैं ज़िम्मेदारी लेकर इस्तीफ़ा दूंगा तो बाकि सब नेता भी ज़िम्मेदारी लेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ऐसी स्थिति में गांधी परिवार से बाहर का व्यक्ति जो कि आलाकमान का उम्मीदवार हो सकता है. उसमे सबसे प्रबल दावेदार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं. अशोक गहलोत गांधी परिवार के बहुत नज़दीकी और वफ़ादार माने जाते हैं. यहीं से शुरू होती है कांग्रेस की मुश्किलें. यह बात सही है कि राहुल गांधी के सामने कोई नेता नामांकन नहीं करेगा या कर भी लेगा तो जीत नही पाएगा.
अगर अशोक गहलोत अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे तो लाज़मी है कि उन्हें कड़ी टक्कर मिल सकती है. अब सवाल उठता है कौन ऐसा नेता है जो अशोक गहलोत को टक्कर दे सकता है. अशोक गहलोत के सामने वाली लॉबी में अम्बिका सोनी, कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, भूपेन्द्र हुड्डा, सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा, वायलार रवि जैसे बड़े नाम अशोक गहलोत को चुनौती दे सकते हैं. लेकिन ऐसी स्थिति में G- 23 समूह में फूट पड़ने की भी पूरी सम्भावना है. अब कांग्रेस एक ऐसे नाज़ुक मोड़ पर खड़ी है जहां एक तरफ़ कुआं है और दूसरी तरफ़ खाईं. आज की परिस्थिति में ज़्यादा संभावना है कि सोनिया गांधी ही फ़िलहाल अध्यक्ष पद पर बने रहें ताकि पार्टी के सामने खड़ी तमाम मुश्किलों पर कुछ समय के लिए ही सही पर विराम लग सके.
Also Read
-
Corruption, social media ban, and 19 deaths: How student movement turned into Nepal’s turning point
-
India’s health systems need to prepare better for rising climate risks
-
Muslim women in Parliament: Ranee Narah’s journey from sportswoman to politician
-
Adieu, Sankarshan Thakur: A rare shoe-leather journalist, newsroom’s voice of sanity
-
Mud bridges, night vigils: How Punjab is surviving its flood crisis