Newslaundry Hindi
क्या भारत में नियम-कानून ही बन गए हैं शहद कारोबार में मिलावट की वजह!
भारत में शहद के गुणवत्ता मानक 60 साल तक स्थिर ही रहे हैं. एफएसएसएआई ने दिसंबर 2014 में शहद के मानकों में एंटीबायोटिक की सीमा निर्धारित की, तब जाकर इसमें बदलाव हुआ. यह कदम 2010 में दिल्ली स्थित गैर लाभकारी संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट के बाद उठाया गया. यह रिपोर्ट शहद में एंटीबायोटिक की मौजूदगी पर थी. इसमें सीएसई ने शहद के लोकप्रिय ब्रांड का अपनी प्रयोगशाला में परीक्षण किया था. सीएसई ने तब यह भी बताया था कि घरेलू उपभोग के लिए बेचे जा रहे डिब्बाबंद शहद में एंटीबायोटिक की सीमा का कोई मानक निर्धारित नहीं है, जबकि निर्यात किए जाने वाले शहद में यह सीमा तय थी.
2010 में एफएसएसएआई ने एडवाइजरी जारी कर स्पष्ट किया कि शहद में कीटनाशक (पेस्टीसाइड) और एंटीबायोटिक की अनुमति नहीं है. 2014 में शहद के मानक संशोधित किए गए और एंटीबायोटिक की स्वीकार्य सीमा तय की गई. यह तय कर दिया गया कि शहद को गुणवत्ता मानक पूरा करने के लिए कितना एंटीबायोटिक आवश्यक है. अब मधुमक्खी पालकों या शहद उत्पादकों को यह सुनिश्चित करना था कि वे बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल नहीं करेंगे. अथवा वे इसका इस्तेमाल करते भी हैं तो सावधानीपूर्वक प्रबंधन करना होगा. यह सीमा इसलिए निर्धारित की गई क्योंकि भारत और दुनियाभर में चिंता जाहिर की जा रही है कि हमारे शरीर को संक्रमित करने वाले बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक रजिस्टेंस (प्रतिरोधक क्षमता) बढ़ रहा है.
ऐसा लगता है कि शहद की गुणवत्ता में सुधार के लिए दिसंबर 2014 के मानकों से शहद प्रोसेसिंग उद्योग को झटका लगा. उद्योग को अब निर्धारित सीमा के आसपास रहकर काम जारी करने के रास्ते खोजने थे. उनके लिए इससे आसान रास्ता क्या हो सकता था कि शहद में थोड़ा शुगर सिरप मिलाकर इसे “हल्का” कर दिया जाए. यह आसान भी था और प्रभावी भी.
हम पुख्ता तौर पर नहीं कह सकते थे कि ऐसा हो रहा है लेकिन हम यह जानते हैं कि 2017 में एफएसएसएआई ने एक ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी किया था. इनमें शहद के मानकों में मामूली परिवर्तन को लेकर आम जनता से रायशुमारी की गई थी. इस ड्राफ्ट नोटिफिकेशन में खाद्य नियामक ने पहली बार शहद में गन्ना, चावल या चुकंदर जैसी फसलों से बनी शुगर का पता लगाने के लिए जांच को शामिल किया था. शहद में “विदेशी” शुगर की मिलावट का पता लगाने के लिए ये परीक्षण शामिल किए गए थे. भारत में ड्राफ्ट इसलिए भी जारी किया गया था ताकि दुनियाभर में फैल चुके मिलावट के कारोबार पर शिकंजा कसा जा सके.
बेंचमार्क से लुकाछिपी
Also Read: क्यों अक्षम्य अपराध है शहद में मिलावट ?
भारत में शहद के गुणवत्ता मानक 60 साल तक स्थिर ही रहे हैं. एफएसएसएआई ने दिसंबर 2014 में शहद के मानकों में एंटीबायोटिक की सीमा निर्धारित की, तब जाकर इसमें बदलाव हुआ. यह कदम 2010 में दिल्ली स्थित गैर लाभकारी संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट के बाद उठाया गया. यह रिपोर्ट शहद में एंटीबायोटिक की मौजूदगी पर थी. इसमें सीएसई ने शहद के लोकप्रिय ब्रांड का अपनी प्रयोगशाला में परीक्षण किया था. सीएसई ने तब यह भी बताया था कि घरेलू उपभोग के लिए बेचे जा रहे डिब्बाबंद शहद में एंटीबायोटिक की सीमा का कोई मानक निर्धारित नहीं है, जबकि निर्यात किए जाने वाले शहद में यह सीमा तय थी.
2010 में एफएसएसएआई ने एडवाइजरी जारी कर स्पष्ट किया कि शहद में कीटनाशक (पेस्टीसाइड) और एंटीबायोटिक की अनुमति नहीं है. 2014 में शहद के मानक संशोधित किए गए और एंटीबायोटिक की स्वीकार्य सीमा तय की गई. यह तय कर दिया गया कि शहद को गुणवत्ता मानक पूरा करने के लिए कितना एंटीबायोटिक आवश्यक है. अब मधुमक्खी पालकों या शहद उत्पादकों को यह सुनिश्चित करना था कि वे बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल नहीं करेंगे. अथवा वे इसका इस्तेमाल करते भी हैं तो सावधानीपूर्वक प्रबंधन करना होगा. यह सीमा इसलिए निर्धारित की गई क्योंकि भारत और दुनियाभर में चिंता जाहिर की जा रही है कि हमारे शरीर को संक्रमित करने वाले बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक रजिस्टेंस (प्रतिरोधक क्षमता) बढ़ रहा है.
ऐसा लगता है कि शहद की गुणवत्ता में सुधार के लिए दिसंबर 2014 के मानकों से शहद प्रोसेसिंग उद्योग को झटका लगा. उद्योग को अब निर्धारित सीमा के आसपास रहकर काम जारी करने के रास्ते खोजने थे. उनके लिए इससे आसान रास्ता क्या हो सकता था कि शहद में थोड़ा शुगर सिरप मिलाकर इसे “हल्का” कर दिया जाए. यह आसान भी था और प्रभावी भी.
हम पुख्ता तौर पर नहीं कह सकते थे कि ऐसा हो रहा है लेकिन हम यह जानते हैं कि 2017 में एफएसएसएआई ने एक ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी किया था. इनमें शहद के मानकों में मामूली परिवर्तन को लेकर आम जनता से रायशुमारी की गई थी. इस ड्राफ्ट नोटिफिकेशन में खाद्य नियामक ने पहली बार शहद में गन्ना, चावल या चुकंदर जैसी फसलों से बनी शुगर का पता लगाने के लिए जांच को शामिल किया था. शहद में “विदेशी” शुगर की मिलावट का पता लगाने के लिए ये परीक्षण शामिल किए गए थे. भारत में ड्राफ्ट इसलिए भी जारी किया गया था ताकि दुनियाभर में फैल चुके मिलावट के कारोबार पर शिकंजा कसा जा सके.
बेंचमार्क से लुकाछिपी
Also Read: क्यों अक्षम्य अपराध है शहद में मिलावट ?
Also Read
-
4 ml of poison, four times a day: Inside the Coldrif tragedy that claimed 17 children
-
Delhi shut its thermal plants, but chokes from neighbouring ones
-
Hafta x South Central feat. Josy Joseph: A crossover episode on the future of media
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians
-
Cuttack on edge after violent clashes