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किसानों से इतर एक और आंदोलन जिस पर नहीं है प्रशासन और नेशनल मीडिया की नजर

जहां देश में इस वक़्त सरकार, मीडिया और जनता के बीच दिल्ली और उसकी सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन की धूम है वहीं देश के एक दूसरे कोने में एक आंदोलन ऐसा भी चल रहा है जिस पर ना प्रशासन ध्यान दे रहा है और ना ही राष्ट्रीय मीडिया ने उसे तवज्जो दी है. वैसे भी देश के इस कोने में रहने वाले यहां के बाशिंदो की शोषण की पूछ परख सरकार, मीडिया और जनता द्वारा कम ही की जाती है. हम बात कर रहे हैं छतीसगढ़ के अभूझमाड़ इलाके के अंतर्गत आने वाले धौड़ाई गांव की, जहां हज़ारों की तादाद में आदिवासी जंगल की ठण्ड में आंदोलन कर रहे है. यह आंदोलन पुलिस द्वारा छह ग्रामीणों की गिरफ्तारी के विरोध में है. पुलिस ने इन छह लोगों को नक्सली बताकर गिरफ्तार किया है वही ग्रामीणों के मुताबिक इन लोगों का नक्सलियों से कुछ लेना- देना नहीं है.

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में निर्दोष आदिवासियों की हत्याओं और उन्हें झूठे इल्ज़ामात के तहत जेल में कैद किये जाने के बहुत से मामले हो चुके हैं. ऐसे बहुत से उदहारण हैं जहां कई साल नक्सली होने के इलज़ाम में जेल में बिताने के बाद अदालत ने आदिवासियों को बाइज़्ज़त बरी कर दिया है. आज भी छत्तीसगढ़ की जेलों में हज़ारों आदिवासी माकूल कानूनी कार्यवाही और सुनवाई के बिना कैद हैं.

धौड़ाई में हो रहे आंदोलन की शुरुआत का कारण जानने के 12 नवम्बर 2020 के वाकये को समझना होगा जब पुलिस ने बस्तर जिले के कड़ियामेटा गांव से चार ग्रामीणों को गिरफ्तार कर ले गयी थी जिनमें से एक नाबिलग था. पुलिस गांव में तकरीबन सुबह पांच बजे दबिश देकर चार आदिवासियों बदरू कोर्राम, 31 धनीराम कोर्राम 22, फुलधर कोर्राम 24 और शंकर कश्यप 16 को ज़बरदस्ती उठा कर ले गयी थी. गिरफ्तारी के लगभग एक हफ्ते तक गिरफ्तार हुए चार लोगों के परिजनों और अन्य गांव वाले उनकी खोज में दर दर भटक रहे थे लेकिन पुलिस उन्हें यह बताने के लिए तैयार नहीं थी कि उन्हें कहां रखा गया है. चारों लोगों के परिवार वाले इस दहशत में थे कि कही उन्हें मार तो नहीं दिया गया.

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बारे में जानने के लिए कड़ियामेटा से गिरफ्तार हुए चार लोगों के परिवार वालों से जब बातचीत की तो सभी का यही कहना था कि चार लोगों को पुलिस ने बेवजह बंधक बना लिया है.

16 साल के शंकर कश्यप के 40 वर्षीय चाचा सम्पत कश्यप कहते हैं, "12 नवम्बर को पुलिस वालों ने सुबह-सुबह पूरे गांव को घेर लिया था और चारों लोगों के घर में दबिश दी. बहुत बार पूछने पर भी पुलिस वालों ने यह नहीं बताया कि वह उन्हें क्यों लेकर जा रहे हैं. वह उनको कड़ियामेटा के पुलिस कैंप में ले गए थे, हम लोग भी पुलिस के पीछे कैंप के सामने पहुंच गए. फिर पुलिस चारों को एक गाड़ी में बिठा कर जब ले जा रही थी तो गांव की एक महिला मंगरी बाई ने जब गाड़ी का रास्ता रोका तो पुलिसवालों ने उसको इतना जम कर मारा की वो बेहोश हो गयी थी, उसके सिर में डंडा मार दिया था. एक महिला जिसकी गोद में छोटा बच्चा था उसे भी धक्का मार दिया था. बदरू कोर्राम के पिताजी को कैंप के अंदर पकड़ कर ले गए थे लेकिन बाद में छोड़ दिया था."

कशयप कहते हैं, " सारा गांव जानता है कि इन चारों में से कोई भी आदमी नक्सली नहीं था लेकिन फिर भी नक्सली घोषित कर उनको गिरफ्तार कर लिया. यह सब लोग खेती-किसानी करते हैं और सारा गांव यह बात जानता है. हम सब लोग अपना घर, खेत सब छोड़कर यहां आंदोलन करने आये हैं. हम तब तक नहीं जायंगे जब तक गिरफ्तार हुए लोगों को पुलिस रिहा नहीं करती."

धनीराम कोर्राम की 40 वर्षीय मां सिंगल कोर्राम कहती हैं, "मेरा बेटा एक पैर से अपाहिज है. वो जैसे-तैसे किसानी करके घर चला रहा था. वो नक्सली नहीं है फिर भी पुलिस उसे उठा कर ले गयी. मेरे पति का देहांत पहले ही हो चुका है, घर-भार सब मेरा बेटा संभालता था. मेरा एक ही बेटा है मुझे दिन रात चिंता रहती है कि अब उसका क्या होगा. मैं बहुत परेशान हूं, 12 नवंबर से मैंने उसको नहीं देखा है, पता नहीं किस हाल में होगा. सरकार को भी हमारी कोई फिक्र नहीं है."

फुलधर कोर्राम के रिश्तेदार दलसा कोर्राम बताते हैं, "फुलधर की मां भी विधवा हैं. फुलधर के ऊपर ही घर की सारी ज़िम्मेदारी है. हम लोग इतने दिन से आंदोलन कर रहे हैं उसके बावजूद भी पुलिस और प्रशासन हमारी सुन नहीं रहा है. पता नहीं इन लोगों को कब पुलिस जेल से रिहा करेगी.

बदरू कोर्राम की 26 वर्षीय पत्नी गागरी कहती हैं, "हम लोग बहुत परेशानी में हैं. मेरा एक पांच साल का बेटा है. पता नहीं मैं कैसे अकेले घर सम्भाल पाऊंगी. मेरे पति ने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा है. पुलिस बेगुनाह आदिवासियों को नक्सली बना कर गिरफ्तार करती रहती है. आखिर कब तक हम लोगों के साथ ऐसा होता रहेगा.

गौरतलब है कि जब पुलिस थानों और कैम्पों के पांच दिन तक चक्कर काटने के बावजूद भी कड़ियामेटा के चार लोगों के बारे में ग्रामीणों को कोई जानकारी हाथ नहीं लगी तब जाकर 17 (नवम्बर) को लगभग तीन हज़ार आदिवासियों ने कड़ियामेटा में गिरफ्तारियों के विरोध में जुलूस निकाला था और कड़ियामेटा पुलिस कैंप का घेराव किया था.

इस आंदोलन में शुरुआत से भाग ले रहे बज्जर कवासी कहते हैं, "17 नवंबर को जब कड़ियामेटा पुलिस कैंप का घेराव करने पर वहां मौजूद पुलिस ने बताया कि कड़ियामेटा के चार लोगों को नारायणपुर जिले में आने वाले छोटा डोंगर थाने की पुलिस ले गयी है. कड़ियामेटा कैंप में हमने एक लिखित ज्ञापन भी दिया था कि बेवजह निर्दोष आदिवासियों का नक्सलवाद का सफाया करने की आड़ में शोषण ना करें, उन्हें प्रताड़ित ना करे. यह भी लिखा था पुलिस कैंप आदिवासियों की रक्षा के लिए है और उन्हें आदिवासियों की रक्षा करनी चाहिए ना कि शोषण की. इसके बाद 19 नवम्बर को तकरीबन 1200 आदिवासी छोटा डोंगर थाने गए. वहां हमें बस इतना बताया गया कि चार लोगों को जेल में रखा हुआ है, जेल का नाम भी नहीं बताया. यह भी नहीं बता रहे थे कि क्या केस है. उसके बाद आंदोलन को स्थगित कर दिया गया था और सब ग्रामीण वापस अपने-अपने गांव लौट आये थे. लेकिन फिर 22 नवंबर को कड़ियामेटा पुलिस कैंप के लोग कोंडागांव में आने वाले बेचा गांव से फिर से दो किसानों को उठा कर ले गयी थी. सब हैरत में थे कि विरोध प्रदर्शन और ज्ञापन देने के बावजूद भी पुलिस अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आयी. सब सोच रहे थे ऐसे तो पुलिस जब मन करेगा तब नक्सली होने का इलज़ाम लगाकर गांवों के लोगों को उठाकर जेल में डाल देगी. इसके बाद उसी दिन से बड़े स्तर पर आंदोलन शुरू हो गया था, आसपास के क्षेत्र के आदिवासी भी आंदोलन में शामिल होने के लिए आ गए थे."

कवासी कहते हैं, "नक्सली और पुलिस की लड़ाई में निर्दोष आदिवासी मारे जा रहे हैं. उन्हें झूठे मामलों में जेलों में कैद करके रखा हुआ है और यह आंदोलन इसी शोषण के विरोध में है. सभी आदिवासी इस आंदोलन के ज़रिये ऐसी घटनाओं पर रोकथाम लगवाना चाहते हैं.

गौरतलब है कि पहले छह दिन तक बस्तर जिले के कड़ियामेटा में विरोध प्रदर्शन किया गया. उसके बाद आदिवासी पैदल चल कर नारायणपुर जिले छोटा डोंगर पहुंचे और वहां एक दिन रुकने के बाद धौड़ाई तक पैदल यात्रा निकाली गयी. आदिवासी तीन दिसंबर से धौड़ाई में सड़क किनारे डेरा डाले हुए हैं और विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इस आंदोलन में बस्तर, बीजापुर, कोंडागांव और नारायणपुर जिलों के इलाकों में रहने वाले लगभग दस हज़ार से भी ज़्यादा आदिवासी शामिल हुए हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री ने बेचा गांव से गिरफ्तार किये गए मानाजी कोर्राम और शिवशंकर यादव के परिवार के लोगो से बातचीत की.

24 वर्षीय शिवशंकर यादव की 21 वर्षीय पत्नी लक्ष्मी कहती हैं, "22 नवम्बर की सुबह पांच बजे तक़रीब 30-40 पुलिस (डीआरजी और छतीसगढ़ पुलिस) वालों ने हमारे घर को घेर लिया था. हम लोग सो रहे थे और पुलिस नींद से उठाकर उनको अपने साथ ले गयी थी. मैंने बहुत रोका लेकिन वह उन्हें लेकर चले गए. उन्हें कड़ियामेटा कैंप में ले गए थे. मैं भी के कैंप पीछे-पीछे गयी थी लेकिन मिल नहीं पायी. फिर मैं छोटा डोंगर गयी और शाम को बड़ी मुश्किल से उनके साथ पुलिस ने मुलाक़ात करवाई थी. उन्होंने बताया कि पहले उनके साथ कैंप में मार-पिटाई की गयी, फिर कड़नार में चाय पिलाने के बाद फिर मारा और फिर छोटा डोंगर पुलिस थाने ले गए थे. मेरे पति कह रहे थे कि जब उन्होंने पुलिस से कहा कि वो क्यों बेगुनाह किसानों को नक्सली बताकर जेल भेज रहे हो तो पुलिस ने फिर उनके साथ मार-पीट की ज़बरदस्ती बयान लिखवाया कि वो नक्सलियों के साथ काम करते हैं."

लक्ष्मी कहती हैं, "मेरे पति के मा-बाप नहीं हैं, उनकी एक सात साल की बहन है और एक 12 साल का भाई है. वही पूरे घर की देख रेख करते हैं. अब जाने क्या होगा. पता नहीं अब क्या करूंगी मैं."

25 वर्षीय मानाजी की पत्नी संथी कहती हैं, "मेरे पति गोद में बिठा कर बच्चे को खिला रहे थे सुबह-सुबह और तभी पुलिस उनको उठाकर ज़बरदस्ती अपने साथ ले गयी. वो नक्सली नहीं है, खेती किसानी करते हैं."

गौरतलब है कि यादव और कोर्राम को पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया और उन पर बम विस्फोट करने के आरोप लगाए हैं. सभी बेचा के सरपंच बलराम कोर्राम कहते हैं, "पुलिस ने बेवजह छह निर्दोष आदिवसियों को गिरफ्तार किया है और इसीलिए यह आंदोलन हो रहा है. छह लोगों को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस उनके परिवार के लोगों से लगातार झूठ बोल रही थी और उन्हें कहां रखा गया है यह तक नहीं बता रही थी. 15 दिन तक लगातार आंदोलन करने के बाद 5 दिसंबर को पुलिस ने गिरफ्तार किए छह लोगों के परिवार वालों को उनसे मिलने दिया. बेचा से गिरफ्तार हुए दो किसानों के बारे में जब मैंने छोटा डोंगर पुलिस से पूछा तो वह धमकाने लगे की बेचा के सभी जवान लोगों को उठाकर जेल में डाल देंगे और गांव में सिर्फ बुजूर्ग लोग रह जाएंगे. यह आंदोलन इसलिए हो रहा है क्योंकि निर्दोष आदिवासियों को पुलिस जेल में ना डाल सके. हम सब बहुत परेशान हो चुके हैं पुलिस की इन ज्यादितियों से, आदिवासी लोग बहुत डरे हुए हैं. पुलिस हमारी सुरक्षा के लिए है या हमारा शोषण करने के लिए. यह आंदोलन अब तब तक चलेगा जब तक पुलिस उन छह लोगों को रिहा नहीं करती."

बलराम कहते हैं, "कड़ियामेटा पुलिस कैंप जनवरी में ही बनाया गया था और तब भी गांव वालों ने पुलिस कैंप वालों से गुजारिश की थी कि वो झूठे आरोप लगा कर किसी भी आदिवासी को परेशान न करें. पुलिस ने भरोसा दिलाया था कि जल, जंगल, ज़मीन आदिवासियों का है और वह निर्दोष लोगों को नक्सली बता कर परेशान नहीं करेगी. लेकिन पुलिस घर-घर जाकर निर्दोष लोगों को उठा कर जेल में डाल रही है. आदिवासी सीधे-साधे हैं पुलिस मार पीट करके उनसे झूठे बयान दिलवा लेती है और उन्हें नक्सली मामलों में फसा देती है. हर वक़्त हमारे मन में यह डर रहता है कि पुलिस उठा कर ले जायेगी और जेल में डाल देगी. दुख की बात यह है कि सरकार और प्रशासन को भी हमारी फिक्र नहीं है. हमने कड़ियामेटा में छह दिन धरना दिया लेकिन प्रशासन से कोई भी हमारी सुध लेने नहीं आया, इस वजह से हम पैदल चल कर छोटा डोंगर आये लेकिन वहां पर भी कोई भी हमारी समस्या को समझने नहीं आया. कलेक्टर, पुलिस, नेता किसी को भी निर्दोष आदिवासियों की चिंता नहीं है."

आंदोलन में आये लोगों ने बताया कि हर परिवार से 50 रूपये का चंदा इक्कठा किया गया है जिससे खाने पीने का इंतज़ाम किया जाता है. छोटे बच्चे, जवान और बुजूर्ग सभी आंदोलन में शामिल होने आये हैं और नारायण से ओरछा (अभूझमाड़ का एक इलाका) जाने वाली सड़क के किनारे धौड़ाई में बैठे हैं. रात को ठण्ड से बचने के लिए इन लोगों के पास आग का सहारा होता है.

कोसालनार (नारायणपुर) से आंदोलन में भाग लेने आये 25 साल के दुआरु कोर्राम कहते हैं, "आदिवासियों के साथ बहुत शोषण हो रहा है. हमारे गांव की तरफ तो इतनी दिक्कत नहीं है लेकिन इस वाकिये के बारे में सुनकर मैं खुद यहां आंदोलन में भाग लेने आया हूं. बहुत से पढ़े लिखे आदिवासी युवा यहां आये हैं और इसलिए आये है कि इस शोषण के खिलाफ विरोध जाता सकें वरना हमारी पढ़ाई- लिखाई का कोई मतलब नहीं है. लेकिन प्रशासन, सरकार को हमारी इतनी चिंता नहीं है. इतने दिनों से आंदोलन चल रहा है लेकिन कोई भी अधिकारी या सरकार की तरफ कोई नेता नहीं आया. समाज के कुछ नेता हैं और कुछ स्थानीय पत्रकारों से बोल कर चले जाते हैं कि सब ठीक -ठाक है, लेकिन लोग यहां बहुत परेशान हैं और इसलिए जंगल की कड़कड़ाती ठण्ड में भी अपनी गोद के बच्चों के साथ आंदोलन कर रहे है. हमारी बात आगे तक नहीं जा पाती है. यह लोग तो कुछ देर के लिए आते हैं लेकिन हम लोग दिन-रात यहां पर आंदोलन कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि पत्रकार हमारी बात ऊपर तक पहुंचाए, पत्रकारों के पास बहुत ताकत होती है. जिस तरह वह पंजाब के किसानों का आंदोलन दिखाते क्या उस तरह हमारी बात ऊपर तक नहीं पहुंचा सकते, हम भी तो इस देश के नागरिक हैं."

न्यूज़लॉन्ड्री ने जब इस मामले में छोटे डोंगर पुलिस थाने के प्रभारी मनोज सिंह से बात की तो वह कहते हैं, "जिन चार लोगों को हमने पहले गिरफ्तार किया था उन्हें हमने रंगे हाथों कड़ियामेटा और कडणार के बीच आईईडी (इम्प्रूवाइज़ एक्सप्लोसिव डिवाइस) लगाते हुए पकड़ा था और फिर पूछताछ में उन्होंने बाकी अन्य दो लोगों का नाम बताया जिन्हें हमने बाद में गिरफ्तार किया.

गौरतलब है कि जहां सिंह कह रहे हैं कि उन्होंने चार लोगों को रंगे हाथों बम लागते हुए पकड़ा, वहीं गिरफ्तार हुए लोगों के परिजनों और कड़ियामेटा के गांव वालों का कहना है कि पुलिस 12 नवम्बर की सुबह उन्हें घर से गिरफ्तार करके ले गयी थी.

वहीं अब आदिवासियों ने कहा है कि हमने सरकार को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया है अगर इन छह लोगों को रिहा नहीं किया गया तो यह आंदोलन और तेजी से बढ़ेगा.

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस मामले में छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू से भी बात करने की कोशिश की लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. उनका जवाब मिलते ही इस कहानी में जोड़ दिया जाएगा.

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जहां देश में इस वक़्त सरकार, मीडिया और जनता के बीच दिल्ली और उसकी सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन की धूम है वहीं देश के एक दूसरे कोने में एक आंदोलन ऐसा भी चल रहा है जिस पर ना प्रशासन ध्यान दे रहा है और ना ही राष्ट्रीय मीडिया ने उसे तवज्जो दी है. वैसे भी देश के इस कोने में रहने वाले यहां के बाशिंदो की शोषण की पूछ परख सरकार, मीडिया और जनता द्वारा कम ही की जाती है. हम बात कर रहे हैं छतीसगढ़ के अभूझमाड़ इलाके के अंतर्गत आने वाले धौड़ाई गांव की, जहां हज़ारों की तादाद में आदिवासी जंगल की ठण्ड में आंदोलन कर रहे है. यह आंदोलन पुलिस द्वारा छह ग्रामीणों की गिरफ्तारी के विरोध में है. पुलिस ने इन छह लोगों को नक्सली बताकर गिरफ्तार किया है वही ग्रामीणों के मुताबिक इन लोगों का नक्सलियों से कुछ लेना- देना नहीं है.

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में निर्दोष आदिवासियों की हत्याओं और उन्हें झूठे इल्ज़ामात के तहत जेल में कैद किये जाने के बहुत से मामले हो चुके हैं. ऐसे बहुत से उदहारण हैं जहां कई साल नक्सली होने के इलज़ाम में जेल में बिताने के बाद अदालत ने आदिवासियों को बाइज़्ज़त बरी कर दिया है. आज भी छत्तीसगढ़ की जेलों में हज़ारों आदिवासी माकूल कानूनी कार्यवाही और सुनवाई के बिना कैद हैं.

धौड़ाई में हो रहे आंदोलन की शुरुआत का कारण जानने के 12 नवम्बर 2020 के वाकये को समझना होगा जब पुलिस ने बस्तर जिले के कड़ियामेटा गांव से चार ग्रामीणों को गिरफ्तार कर ले गयी थी जिनमें से एक नाबिलग था. पुलिस गांव में तकरीबन सुबह पांच बजे दबिश देकर चार आदिवासियों बदरू कोर्राम, 31 धनीराम कोर्राम 22, फुलधर कोर्राम 24 और शंकर कश्यप 16 को ज़बरदस्ती उठा कर ले गयी थी. गिरफ्तारी के लगभग एक हफ्ते तक गिरफ्तार हुए चार लोगों के परिजनों और अन्य गांव वाले उनकी खोज में दर दर भटक रहे थे लेकिन पुलिस उन्हें यह बताने के लिए तैयार नहीं थी कि उन्हें कहां रखा गया है. चारों लोगों के परिवार वाले इस दहशत में थे कि कही उन्हें मार तो नहीं दिया गया.

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बारे में जानने के लिए कड़ियामेटा से गिरफ्तार हुए चार लोगों के परिवार वालों से जब बातचीत की तो सभी का यही कहना था कि चार लोगों को पुलिस ने बेवजह बंधक बना लिया है.

16 साल के शंकर कश्यप के 40 वर्षीय चाचा सम्पत कश्यप कहते हैं, "12 नवम्बर को पुलिस वालों ने सुबह-सुबह पूरे गांव को घेर लिया था और चारों लोगों के घर में दबिश दी. बहुत बार पूछने पर भी पुलिस वालों ने यह नहीं बताया कि वह उन्हें क्यों लेकर जा रहे हैं. वह उनको कड़ियामेटा के पुलिस कैंप में ले गए थे, हम लोग भी पुलिस के पीछे कैंप के सामने पहुंच गए. फिर पुलिस चारों को एक गाड़ी में बिठा कर जब ले जा रही थी तो गांव की एक महिला मंगरी बाई ने जब गाड़ी का रास्ता रोका तो पुलिसवालों ने उसको इतना जम कर मारा की वो बेहोश हो गयी थी, उसके सिर में डंडा मार दिया था. एक महिला जिसकी गोद में छोटा बच्चा था उसे भी धक्का मार दिया था. बदरू कोर्राम के पिताजी को कैंप के अंदर पकड़ कर ले गए थे लेकिन बाद में छोड़ दिया था."

कशयप कहते हैं, " सारा गांव जानता है कि इन चारों में से कोई भी आदमी नक्सली नहीं था लेकिन फिर भी नक्सली घोषित कर उनको गिरफ्तार कर लिया. यह सब लोग खेती-किसानी करते हैं और सारा गांव यह बात जानता है. हम सब लोग अपना घर, खेत सब छोड़कर यहां आंदोलन करने आये हैं. हम तब तक नहीं जायंगे जब तक गिरफ्तार हुए लोगों को पुलिस रिहा नहीं करती."

धनीराम कोर्राम की 40 वर्षीय मां सिंगल कोर्राम कहती हैं, "मेरा बेटा एक पैर से अपाहिज है. वो जैसे-तैसे किसानी करके घर चला रहा था. वो नक्सली नहीं है फिर भी पुलिस उसे उठा कर ले गयी. मेरे पति का देहांत पहले ही हो चुका है, घर-भार सब मेरा बेटा संभालता था. मेरा एक ही बेटा है मुझे दिन रात चिंता रहती है कि अब उसका क्या होगा. मैं बहुत परेशान हूं, 12 नवंबर से मैंने उसको नहीं देखा है, पता नहीं किस हाल में होगा. सरकार को भी हमारी कोई फिक्र नहीं है."

फुलधर कोर्राम के रिश्तेदार दलसा कोर्राम बताते हैं, "फुलधर की मां भी विधवा हैं. फुलधर के ऊपर ही घर की सारी ज़िम्मेदारी है. हम लोग इतने दिन से आंदोलन कर रहे हैं उसके बावजूद भी पुलिस और प्रशासन हमारी सुन नहीं रहा है. पता नहीं इन लोगों को कब पुलिस जेल से रिहा करेगी.

बदरू कोर्राम की 26 वर्षीय पत्नी गागरी कहती हैं, "हम लोग बहुत परेशानी में हैं. मेरा एक पांच साल का बेटा है. पता नहीं मैं कैसे अकेले घर सम्भाल पाऊंगी. मेरे पति ने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा है. पुलिस बेगुनाह आदिवासियों को नक्सली बना कर गिरफ्तार करती रहती है. आखिर कब तक हम लोगों के साथ ऐसा होता रहेगा.

गौरतलब है कि जब पुलिस थानों और कैम्पों के पांच दिन तक चक्कर काटने के बावजूद भी कड़ियामेटा के चार लोगों के बारे में ग्रामीणों को कोई जानकारी हाथ नहीं लगी तब जाकर 17 (नवम्बर) को लगभग तीन हज़ार आदिवासियों ने कड़ियामेटा में गिरफ्तारियों के विरोध में जुलूस निकाला था और कड़ियामेटा पुलिस कैंप का घेराव किया था.

इस आंदोलन में शुरुआत से भाग ले रहे बज्जर कवासी कहते हैं, "17 नवंबर को जब कड़ियामेटा पुलिस कैंप का घेराव करने पर वहां मौजूद पुलिस ने बताया कि कड़ियामेटा के चार लोगों को नारायणपुर जिले में आने वाले छोटा डोंगर थाने की पुलिस ले गयी है. कड़ियामेटा कैंप में हमने एक लिखित ज्ञापन भी दिया था कि बेवजह निर्दोष आदिवासियों का नक्सलवाद का सफाया करने की आड़ में शोषण ना करें, उन्हें प्रताड़ित ना करे. यह भी लिखा था पुलिस कैंप आदिवासियों की रक्षा के लिए है और उन्हें आदिवासियों की रक्षा करनी चाहिए ना कि शोषण की. इसके बाद 19 नवम्बर को तकरीबन 1200 आदिवासी छोटा डोंगर थाने गए. वहां हमें बस इतना बताया गया कि चार लोगों को जेल में रखा हुआ है, जेल का नाम भी नहीं बताया. यह भी नहीं बता रहे थे कि क्या केस है. उसके बाद आंदोलन को स्थगित कर दिया गया था और सब ग्रामीण वापस अपने-अपने गांव लौट आये थे. लेकिन फिर 22 नवंबर को कड़ियामेटा पुलिस कैंप के लोग कोंडागांव में आने वाले बेचा गांव से फिर से दो किसानों को उठा कर ले गयी थी. सब हैरत में थे कि विरोध प्रदर्शन और ज्ञापन देने के बावजूद भी पुलिस अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आयी. सब सोच रहे थे ऐसे तो पुलिस जब मन करेगा तब नक्सली होने का इलज़ाम लगाकर गांवों के लोगों को उठाकर जेल में डाल देगी. इसके बाद उसी दिन से बड़े स्तर पर आंदोलन शुरू हो गया था, आसपास के क्षेत्र के आदिवासी भी आंदोलन में शामिल होने के लिए आ गए थे."

कवासी कहते हैं, "नक्सली और पुलिस की लड़ाई में निर्दोष आदिवासी मारे जा रहे हैं. उन्हें झूठे मामलों में जेलों में कैद करके रखा हुआ है और यह आंदोलन इसी शोषण के विरोध में है. सभी आदिवासी इस आंदोलन के ज़रिये ऐसी घटनाओं पर रोकथाम लगवाना चाहते हैं.

गौरतलब है कि पहले छह दिन तक बस्तर जिले के कड़ियामेटा में विरोध प्रदर्शन किया गया. उसके बाद आदिवासी पैदल चल कर नारायणपुर जिले छोटा डोंगर पहुंचे और वहां एक दिन रुकने के बाद धौड़ाई तक पैदल यात्रा निकाली गयी. आदिवासी तीन दिसंबर से धौड़ाई में सड़क किनारे डेरा डाले हुए हैं और विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इस आंदोलन में बस्तर, बीजापुर, कोंडागांव और नारायणपुर जिलों के इलाकों में रहने वाले लगभग दस हज़ार से भी ज़्यादा आदिवासी शामिल हुए हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री ने बेचा गांव से गिरफ्तार किये गए मानाजी कोर्राम और शिवशंकर यादव के परिवार के लोगो से बातचीत की.

24 वर्षीय शिवशंकर यादव की 21 वर्षीय पत्नी लक्ष्मी कहती हैं, "22 नवम्बर की सुबह पांच बजे तक़रीब 30-40 पुलिस (डीआरजी और छतीसगढ़ पुलिस) वालों ने हमारे घर को घेर लिया था. हम लोग सो रहे थे और पुलिस नींद से उठाकर उनको अपने साथ ले गयी थी. मैंने बहुत रोका लेकिन वह उन्हें लेकर चले गए. उन्हें कड़ियामेटा कैंप में ले गए थे. मैं भी के कैंप पीछे-पीछे गयी थी लेकिन मिल नहीं पायी. फिर मैं छोटा डोंगर गयी और शाम को बड़ी मुश्किल से उनके साथ पुलिस ने मुलाक़ात करवाई थी. उन्होंने बताया कि पहले उनके साथ कैंप में मार-पिटाई की गयी, फिर कड़नार में चाय पिलाने के बाद फिर मारा और फिर छोटा डोंगर पुलिस थाने ले गए थे. मेरे पति कह रहे थे कि जब उन्होंने पुलिस से कहा कि वो क्यों बेगुनाह किसानों को नक्सली बताकर जेल भेज रहे हो तो पुलिस ने फिर उनके साथ मार-पीट की ज़बरदस्ती बयान लिखवाया कि वो नक्सलियों के साथ काम करते हैं."

लक्ष्मी कहती हैं, "मेरे पति के मा-बाप नहीं हैं, उनकी एक सात साल की बहन है और एक 12 साल का भाई है. वही पूरे घर की देख रेख करते हैं. अब जाने क्या होगा. पता नहीं अब क्या करूंगी मैं."

25 वर्षीय मानाजी की पत्नी संथी कहती हैं, "मेरे पति गोद में बिठा कर बच्चे को खिला रहे थे सुबह-सुबह और तभी पुलिस उनको उठाकर ज़बरदस्ती अपने साथ ले गयी. वो नक्सली नहीं है, खेती किसानी करते हैं."

गौरतलब है कि यादव और कोर्राम को पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया और उन पर बम विस्फोट करने के आरोप लगाए हैं. सभी बेचा के सरपंच बलराम कोर्राम कहते हैं, "पुलिस ने बेवजह छह निर्दोष आदिवसियों को गिरफ्तार किया है और इसीलिए यह आंदोलन हो रहा है. छह लोगों को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस उनके परिवार के लोगों से लगातार झूठ बोल रही थी और उन्हें कहां रखा गया है यह तक नहीं बता रही थी. 15 दिन तक लगातार आंदोलन करने के बाद 5 दिसंबर को पुलिस ने गिरफ्तार किए छह लोगों के परिवार वालों को उनसे मिलने दिया. बेचा से गिरफ्तार हुए दो किसानों के बारे में जब मैंने छोटा डोंगर पुलिस से पूछा तो वह धमकाने लगे की बेचा के सभी जवान लोगों को उठाकर जेल में डाल देंगे और गांव में सिर्फ बुजूर्ग लोग रह जाएंगे. यह आंदोलन इसलिए हो रहा है क्योंकि निर्दोष आदिवासियों को पुलिस जेल में ना डाल सके. हम सब बहुत परेशान हो चुके हैं पुलिस की इन ज्यादितियों से, आदिवासी लोग बहुत डरे हुए हैं. पुलिस हमारी सुरक्षा के लिए है या हमारा शोषण करने के लिए. यह आंदोलन अब तब तक चलेगा जब तक पुलिस उन छह लोगों को रिहा नहीं करती."

बलराम कहते हैं, "कड़ियामेटा पुलिस कैंप जनवरी में ही बनाया गया था और तब भी गांव वालों ने पुलिस कैंप वालों से गुजारिश की थी कि वो झूठे आरोप लगा कर किसी भी आदिवासी को परेशान न करें. पुलिस ने भरोसा दिलाया था कि जल, जंगल, ज़मीन आदिवासियों का है और वह निर्दोष लोगों को नक्सली बता कर परेशान नहीं करेगी. लेकिन पुलिस घर-घर जाकर निर्दोष लोगों को उठा कर जेल में डाल रही है. आदिवासी सीधे-साधे हैं पुलिस मार पीट करके उनसे झूठे बयान दिलवा लेती है और उन्हें नक्सली मामलों में फसा देती है. हर वक़्त हमारे मन में यह डर रहता है कि पुलिस उठा कर ले जायेगी और जेल में डाल देगी. दुख की बात यह है कि सरकार और प्रशासन को भी हमारी फिक्र नहीं है. हमने कड़ियामेटा में छह दिन धरना दिया लेकिन प्रशासन से कोई भी हमारी सुध लेने नहीं आया, इस वजह से हम पैदल चल कर छोटा डोंगर आये लेकिन वहां पर भी कोई भी हमारी समस्या को समझने नहीं आया. कलेक्टर, पुलिस, नेता किसी को भी निर्दोष आदिवासियों की चिंता नहीं है."

आंदोलन में आये लोगों ने बताया कि हर परिवार से 50 रूपये का चंदा इक्कठा किया गया है जिससे खाने पीने का इंतज़ाम किया जाता है. छोटे बच्चे, जवान और बुजूर्ग सभी आंदोलन में शामिल होने आये हैं और नारायण से ओरछा (अभूझमाड़ का एक इलाका) जाने वाली सड़क के किनारे धौड़ाई में बैठे हैं. रात को ठण्ड से बचने के लिए इन लोगों के पास आग का सहारा होता है.

कोसालनार (नारायणपुर) से आंदोलन में भाग लेने आये 25 साल के दुआरु कोर्राम कहते हैं, "आदिवासियों के साथ बहुत शोषण हो रहा है. हमारे गांव की तरफ तो इतनी दिक्कत नहीं है लेकिन इस वाकिये के बारे में सुनकर मैं खुद यहां आंदोलन में भाग लेने आया हूं. बहुत से पढ़े लिखे आदिवासी युवा यहां आये हैं और इसलिए आये है कि इस शोषण के खिलाफ विरोध जाता सकें वरना हमारी पढ़ाई- लिखाई का कोई मतलब नहीं है. लेकिन प्रशासन, सरकार को हमारी इतनी चिंता नहीं है. इतने दिनों से आंदोलन चल रहा है लेकिन कोई भी अधिकारी या सरकार की तरफ कोई नेता नहीं आया. समाज के कुछ नेता हैं और कुछ स्थानीय पत्रकारों से बोल कर चले जाते हैं कि सब ठीक -ठाक है, लेकिन लोग यहां बहुत परेशान हैं और इसलिए जंगल की कड़कड़ाती ठण्ड में भी अपनी गोद के बच्चों के साथ आंदोलन कर रहे है. हमारी बात आगे तक नहीं जा पाती है. यह लोग तो कुछ देर के लिए आते हैं लेकिन हम लोग दिन-रात यहां पर आंदोलन कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि पत्रकार हमारी बात ऊपर तक पहुंचाए, पत्रकारों के पास बहुत ताकत होती है. जिस तरह वह पंजाब के किसानों का आंदोलन दिखाते क्या उस तरह हमारी बात ऊपर तक नहीं पहुंचा सकते, हम भी तो इस देश के नागरिक हैं."

न्यूज़लॉन्ड्री ने जब इस मामले में छोटे डोंगर पुलिस थाने के प्रभारी मनोज सिंह से बात की तो वह कहते हैं, "जिन चार लोगों को हमने पहले गिरफ्तार किया था उन्हें हमने रंगे हाथों कड़ियामेटा और कडणार के बीच आईईडी (इम्प्रूवाइज़ एक्सप्लोसिव डिवाइस) लगाते हुए पकड़ा था और फिर पूछताछ में उन्होंने बाकी अन्य दो लोगों का नाम बताया जिन्हें हमने बाद में गिरफ्तार किया.

गौरतलब है कि जहां सिंह कह रहे हैं कि उन्होंने चार लोगों को रंगे हाथों बम लागते हुए पकड़ा, वहीं गिरफ्तार हुए लोगों के परिजनों और कड़ियामेटा के गांव वालों का कहना है कि पुलिस 12 नवम्बर की सुबह उन्हें घर से गिरफ्तार करके ले गयी थी.

वहीं अब आदिवासियों ने कहा है कि हमने सरकार को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया है अगर इन छह लोगों को रिहा नहीं किया गया तो यह आंदोलन और तेजी से बढ़ेगा.

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस मामले में छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू से भी बात करने की कोशिश की लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. उनका जवाब मिलते ही इस कहानी में जोड़ दिया जाएगा.

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