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बिहार का दाल का कटोरा, जिसके अपने कटोरे से दाल गायब है

‘‘आपके पास पीएमओ का मोबाइल नंबर है? वहां बात हो सकती है? आप मोदीजी से कहिए की यहां के किसानों से ‘मन की बात’ में बात करें. तब सारा दुखड़ा हम उन्हें सुनाएंगे. अगर हिंदुस्तान में किसान को आत्महत्या करनी चाहिए तो इस क्षेत्र के किसानों को करनी चाहिए.’’ यह कहना था पटना जिले के मोकामा विधानसभा क्षेत्र के ओटा गांव के किसान 60 वर्षीय शशिभूषण सिंह का.

हम इस इलाके में चुनावी यात्रा के तहत पहुंचे थे. हमने जैसे ही सवाल किया, मुंह में पान दबाये अपने बरामदे में बैठे शशिभूषण ने जवाब देने के बजाय उल्टा हमसे ही सवाल कर दिया, ‘‘राज्य सरकार हो या केंद्र की सरकार सबने हमें ठगने का काम किया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि ऐसा इंतज़ाम करेंगे की टाल के किसान साल में एक फसल की जगह तीन फसल उगाएंगे, लेकिन आज तो एक फसल भी उगाना मुश्किल हो रहा है.’’

सिंह आगे कहते हैं, ‘‘सरकार आजकल आत्मनिर्भर का राग अलाप रही है, लेकिन यहां के टाल पर ध्यान नहीं दे रही है. सरकार अगर ध्यान देती तो हमारे टाल में हुए दाल के उत्पादन से ही भारत दाल के मामले में आत्मनिर्भर बन जाता. यहां बुजुर्ग बताएंगे आपको कि कभी ऐसा नहीं हुआ कि टाल में खेती नहीं हुई हो लेकिन बीते तीन साल से हम लोग खेती नहीं कर पा रहे है. अभी जिस तरह से टाल में पानी भरा हुआ है ऐसा लग रहा कि इस साल भी खेती नहीं होगी. ऐसी स्थिति में आत्महत्या के अलावा हमारे पास क्या रास्ता है.’'

शशिभूषण सिंह

मोकामा का इलाका सूरजभान सिंह और अनंत सिंह जैसे बाहुबलियों के लिए चर्चा में रहा है. लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि मोकामा का टाल वाला इलाका दाल का कटोरा के नाम से भी जाना जाता है. विडंबना यह है कि आज यहां के किसानों के सामने खुद दाल खरीद कर खाने की नौबत आन पड़ी है. इसके पीछे कारण है टाल क्षेत्र में पानी की निकासी का बंद हो जाना.

नालंदा से मोकामा की तरफ जाते वक़्त जगह-जगह कृषिक्षेत्र लिखा नज़र आता है, लेकिन जहां तक नज़र जाती है वहां तक पानी ही पानी दिखता है. पहली नज़र में यह कोई नदी या बड़ा ताल लगता है. लेकिन यहां के किसान बताते हैं कि पानी से भरे इलाके असल में उनके खेत हैं.

लखीसराय, पटना, शेखपुरा और नालंदा में गंगा के किनारे खेतों को किसान टाल कहते हैं. करीब एक लाख छह हज़ार हेक्टेयर में फैले इस इलाकों में किसान एक ही फसल ले पाते हैं. आमतौर पर यह दलहन की फसल होती है. परंपरागत रूप से लोग यहां दाल उगाते रहे हैं. टाल का इलाका हर साल गांगा में बाढ़ के पानी में डूब जाता है लेकिन धीरे-धीरे जब पानी उतरता है तब किसान इसमें अपने फसलों की बुआई शुरू कर देते हैं. बाढ़ के चलते आई उपजाऊ मिट्टी इसे बेहद उर्वर बना देती है. बिना खाद, पानी के ही किसान खूब पैदवार करते थे. आमतौर पर 15 अक्टूबर तक इस इलाके में बुआई शुरू हो जाती थी. लेकिन बीते तीन सालों से हालात एकदम बदल गए हैं. पानी समय पर निकल ही नहीं रहा. इसके कारण दलहन की खेती नहीं हो रही है. इस साल भी अक्टूबर बीतने को है लेकिन खेतों में कमर तक पानी भरा हुआ है. किसानों का कहना है कि बीते तीन सालों की तरह इस बार भी खेती नहीं ही होगी.

सालभर में कमाते थे पांच से दस लाख

ओटा गांव के रहने वाले रंजीत कुमार बुआई नहीं होने के कारण परेशान हैं. पचास बीघे में खेती करने वाले रंजीत को हर साल सात से आठ लाख का नुकसान हो रहा है. उन्हें डर है कि यही स्थिति रही तो अगले एक दो साल में बच्चों की शादी नहीं हो पाएगी क्योंकि यहां के ज़्यादातर लोग दलहन की खेती पर ही निर्भर है. वे कहते हैं, ‘‘अगर खेती नहीं होगी तो बच्चों को पढ़ाई और शादी के लिए हम लोग पैसे कहां से लाएंगे.’’

न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत के दौरान रंजीत बताते हैं, ‘‘जो हमारा नदी पर खेत था उसे सरकारी ठेकेदारों ने नाला बना दिया. अब तक बुआई हो जानी चाहिए थी लेकिन फतुआ से लेकर लखीसराय तक सारा टाल जलमग्न है. हर किसान की हालत खराब है. जो किसान दस लाख का गल्ला बेचता था वो आज एक लाख का भी नहीं बेच पा रहा है. यहां दलहन की बुआई का सबसे बेहतर समय 15 अक्टूबर से 30 अक्टूबर तक होता है. इस दौरान अगर बुआई हो गई तो बढ़िया उपज मिलती थी. इसके बाद बुआई करने पर पैदवार कम होती जाती है और कई बार तो कुछ भी नहीं होता. मैं खुद बीते दो साल से टाल से घास काटकर अपने पशुओं को खिला रहा हूं. नाममात्र की दलहन का उत्पादन हो रहा है.’’

भूमिहार बाहुल्य मोकामा के ज़्यादातर किसानों की समृद्धि के पीछे दलहन की इस पारंपरिक खेती का बड़ा योगदान रहा है. लेकिन लगातार तीन साल से समय पर बुआई नहीं होने के कारण पैदवार में गिरावट आई है. अब यहां के कुछ किसान आत्महत्या जैसी बातों का भी जिक्र करने लगे हैं.

यहां हमें मिले 41 वर्षीय किसान साकेत कुमार. साकेत भी पचास बीघे में चना, मसूर और खेसारी समेत तमाम तरह के दालों की खेती करते रहे हैं. उन्होंने हमें बताया, ‘‘हर साल 800-900 मन (320 कुंतल) तक की पैदवार होती थी. जिसे हम लोग 9 से 10 लाख में बेचते थे. अगर बचत की बात करें तो करीब पांच लाख की बचत हर साल हो जाती थी, लेकिन बीते तीन साल से ठीक समय पर बुआई ही नहीं हो रही है, इसलिए उत्पादन भी नहीं हो रहा.’’

रंजीत और साकेत की तरह ही शिशुपाल कुमार सिंह भी आने वाले समय में बदहाली देखते हैं. वे कहते हैं कि सरकारी अनदेखी के कारण हमारे बच्चे भी पढ़ नहीं पांएगे और इधर-उधर जाकर मज़दूरी करेंगे.

40 बीघे में खेती करने वाले शिशुपाल न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘हम लोग खेती नहीं कर पा रहे हैं इसके लिए मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री जिम्मेदार हैं. हर अख़बार में पढ़ते हैं कि टाल योजना के लिए पांच करोड़ तो दस करोड़ रुपया आया, लेकिन उसका होता क्या है? यहां कुछ ठेकेदार हैं जो अनंत सिंह और सांसद ललन सिंह के लिए काम करते हैं. उन्हें ठेका मिल जाता है और काम करने की बजाय सारा पैसा डकार जाते हैं. यहां के किसान मर रहे हैं लेकिन किसी को भी चिंता नहीं है. आपलोग पत्रकार हैं, कभी आपने देखा कि हमारी बदहाली पर कोई ख़बर आई हो. हमारा बाल बच्चा भूखे मर रहा है लेकिन कोई नेता पूछने तक नहीं आया. आजकल ऑनलाइन पढ़ाई हो रही लेकिन मैं अपने बच्चे को एक फोन खरीदकर नहीं दे पाया.’’

किसान कहते हैं कि जिस इलाके ने नीतीश कुमार को पहचान दी. जहां से वे एक बार नहीं बल्कि कई बार सांसद रहे वे आज उसी इलाके से बदला ले रहे हैं. मोकामा के रहने वाले किसान मंटू सिंह इस राज को हमारे सामने खोलते हुए कहते हैं, ‘‘एकबार यहां नीतीश कुमार के साथ दुर्व्यहार हुआ था, उसके बाद उन्होंने नाराज़ होकर कहा था कि वे यहां के लोगों से चिनिया बदाम (एक तरह की मिठाई) बेचवायेंगे. आज हमारी जो स्थिति हो गई हो आने वाले समय में हम चिनिया बेदाम बेचते नज़र आएंगे तो कोई हैरानी नहीं होगी.’’

क्यों नहीं निकल पा रहा टाल का पानी

पिछले तीन साल से समय पर पानी नहीं निकल पा रहा है. इस बार भी बुआई का समय निकलता जा रहा है, लेकिन टाल में पांच से सात फिट पानी भरा हुआ है. बाढ़ आने के दो-तीन महीने बाद गंगा का पानी नीचे चला गया लेकिन टाल का पानी वापस गंगा में नहीं गया. यहां जमा पानी बिलकुल स्थिर है जिसे देखकर किसान कहते हैं कि इसबार पानी नवंबर तक निकल जाए तो भी बड़ी बात होगी.

आखिर जो पानी पहले वापस गंगा में चला जाता था वह अब क्यों नहीं जा रहा. यह जानने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि टाल में पानी आता कहां से हैं और जाता कहां है. इसका जवाब हमें स्थानीय युवक सुंदरम कुमार देते हैं. वे बताते हैं, ‘‘बाढ़ के समय अलग-अलग नदियों का पानी टाल में जमा होता है. तीन-चार महीने पानी टाल में जमा रहता हैं और जब गंगा का पानी कम होता है तो हरोहर नदी के जरिए गंगा नदी में चला जाता है. पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़ते गाद के कारण गंगा की ऊंचाई बढ़ गई जिसके वजह से टाल का पानी अब गंगा में रफ्तार के साथ नहीं जा पा रहा है.’’

टाल में अब जमा है पानी

पानी नहीं निकलने का एकमात्र कारण गंगा की ऊंचाई बढ़ना ही नहीं है. किसान रंजीत इसके दूसरे कारणों का जिक्र करते हैं. वे बताते हैं, ‘‘सरकार ने टाल से लगते हुए इलाकों में रोड का निर्माण कर दिया. जहां से पानी की निकासी होती थी वहां उसे पुल बनाना था, लेकिन वहां छोटा सा पाइप लगा दिया. हरेक एक-दो किलोमीटर पर वहां पुल होना चाहिए था पर पांच से छह किलोमीटर पर पुल बना जिसकी वजह से पानी आ तो जाता है, लेकिन जाने का कोई साधन नहीं बचा. हम लोग बचपन में देखते थे कि पानी अलग-अलग रास्तों से निकलता था लेकिन इस सरकार ने वहां पुल बनाया जहां से पानी निकल ही नहीं सकता है.’’

शशिभूषण सरकारी अधिकारियों पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहते हैं, ‘‘नीतीश कुमार ने टाल के बेहतरी के लिए खूब पैसा दिया, लेकिन धरातल पर कुछ बदलाव दिख ही नहीं रहा है. उनके अधिकारी पटना में बैठकर प्रोजेक्ट बनाते हैं. यहां के खेतों की भौगोलिक स्थिति उन्हें मालूम ही नहीं और ना ही वे किसानों से राय लेते है. कुछ पूछो तो कहते हैं कि हमने देख सुनकर किया है. जब देख सुनकर किए तो पानी निकल क्यों नहीं रहा है?’’

योजनाएं तो बनी लेकिन हमें लाभ नहीं मिला

टाल क्षेत्र में जल जमाव की समस्या कोई नई नहीं है. इसके लिए सरकार ने कई बार योजना बनाई. हिंदुस्तान में साल 2009 में छपी एक खबर के मुताबिक नीतीश कुमार ने बाक़ायदा इसको लेकर एक विशेष योजना बनाने की बात की थी. बिहार विधान परिषद में इस योजना की घोषणा उन्होंने की थी. तब नीतीश कुमार ने कहा था कि टाल क्षेत्र से समय से पानी निकल जाए यही सबकी चिंता का विषय है. लेकिन हैरानी की बात है कि आज ग्यारह साल बाद भी इसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया.

यहां के किसान बताते हैं कि लम्बे समय से हम टाल योजना के बारे में सुन रहे हैं. अख़बारों में पढ़ते हैं कि टाल योजना के तहत पैसे आए हैं, लेकिन उन पैसों का ठीक तरह से उपयोग नहीं किया गया जिसका नतीजा आज वो भुगत रहे हैं.

किसान बताते हैं कि नीतीश कुमार ने कहा था कि टाल योजना के तहत इलाके की स्थिति बेहतर कर देंगे जिसके कारण एक फसल की बुआई करने वाले किसान कम से कम तीन फसल का उत्पादन कर सके लेकिन आज हम एक फसल की बुआई भी नहीं कर पा रहे हैं. एक तरफ मोदी जी कह रहे हैं कि 2022 तक किसानों की आमदनी बढ़ाएंगे, लेकिन हमारी आमदनी ही रुक गई है. हमारी क्या डबल होगी?

किसान केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी पर भी धोखा देने का आरोप लगा रहे हैं. दरअसल कई योजनाओं का उद्घाटन करने साल 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोकामा पहुंचे थे. यहां उनके साथ पहुंचे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बिहार में चल रही योजनाओं का जिक्र करते हुए कहा था, ‘‘मुझे मालूम है कि मोकामा के टाल क्षेत्र में बाढ़ की समस्या बहुत गंभीर है. आते समय मुझे बहुत लोगों ने इस बारे में कहा है. मैं आपको विश्वास देना चाहता हूं कि आठ दिन पहले ही गंगा में अलग- अलग एजेंसी काम कर रही है. कहीं राज्य सरकार है तो कहीं मेरा विभाग है. हमने गंगा बाढ़ के लिए एक मास्टर प्लान बनाने का निर्णय किया है. इसमें सबसे पहली प्राथमिकता टाल क्षेत्र को मिलेगी और हम आपका रक्षण करेंगे.’’

नाराज़ ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन

किसान कहते हैं कि रक्षा क्या हो रही वो दिख ही रहा है. हम लोग भूखे मरने की स्थिति में पहुंच गए हैं. आखिर जिस टाल योजना पर सरकार करोड़ो रुपए खर्च की उसका असर क्यों नहीं हुआ इस सवाल के जवाब में सुंदरम बताते हैं, ‘‘दो दिन पहले ही नीतीश कुमार यहां प्रचार करने के लिए आए थे. अपनी सभा में उन्होंने बताया कि टाल योजना लगभग पूरी हो गई है. लेकिन स्थिति आपके सामने है. करोड़ो रुपए सरकार की तरफ से आए ज़रूर है लेकिन खर्च कहां किया गया यह किसी को नहीं पता.’’

लेकिन चुनावी मुद्दा नहीं..

जिस मुसीबत के कारण हज़ारों परिवार परेशान हैं, उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ रही है, लेकिन यह विधानसभा चुनाव में कोई खास मुद्दा नहीं है. नीतीश कुमार ने अपनी चुनावी रैली में जिक्र जरूर किया. लम्बे समय से बाहुबली यहां से चुनाव जीतते रहते हैं. कई गंभीर आरोपों से घिरे अनंत सिंह साल 2005 से लगातार यहां से विधायक हैं. साल 2005 और 10 का चुनाव उन्होंने नीतीश कुमार की पार्टी से लड़ा. छोटे सरकार के नाम से इलाके में मशहूर अनंत सिंह को राजनीति में लाने का श्रेय भी नीतीश कुमार को ही जाता है.

हालांकि 2015 में अनंत सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और तब वो जेल में थे, लेकिन उन्हें जीत मिली. इस बार भी अनंत सिंह जेल में हैं और राजद के उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं. उनके कार्यकर्ता यह दावा करते हैं कि इस बार तो एक लाख से ज़्यादा मतों से वे चुनाव जीत रहे हैं. लेकिन अनंत सिंह कबी बी इस तरह के मुद्दों पर बात करते नहीं दिखे.

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