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दक्षिण और वाम खेमे में बंटा एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के इतिहास में पहली बार चुनाव के जरिए इसके पदाधिकारियों का फैसला हुआ. हाल ही में संपन्न हुए गिल्ड के चुनाव में द सिटिजन की संस्थापक संपादक सीमा मुस्तफ़ा को अध्यक्ष चुना गया है. इस चुनाव में गिल्ड के 195 सदस्यों में से कुल 140 सदस्यों ने ऑनलाइन वोटिंग में हिस्सा लिया. सीमा मुस्तफा को 87 वोट मिले. वहीं उनके खिलाफ खड़े पत्रकार एमडी नलपत को सिर्फ 51 वोट मिले. इस पर वरिष्ठ पत्रकार और गिल्ड के सदस्य ओम थानवी ने ट्वीट कर लिखा- "संपादकों की सर्वोच्च संस्था एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के पहले मतदान में गोदी मीडिया ने कब्जा जमाने की कोशिश की, पर मात खा गए. सीमा मुस्तफ़ा अध्यक्ष हुईं और संजय कपूर महासचिव. एमडी नलपत और एएनआई वाली स्मिता प्रकाश हार गए. जिन्हें आर जगन्नाथन और आलोक मेहता ने प्रस्ताव समर्थन दिया था."

ओम थानवी के ट्वीट से एक अलग बहस की शुरुआत हो गई है. क्या गिल्ड में सरकार समर्थक, जिसे ओम थानवी गोदी मीडिया करार दे रहे हैं, और उससे अलग राय रखने वालों का दो गुट बन चुका है. बहस यह भी है कि इस चुनाव में सरकार समर्थक गुट ने गिल्ड पर कब्जे की कोशिश की. यह सवाल हमने स्वराज्य पत्रिका के संपादक और गिल्ड के सदस्य आर जगन्नाथन से पूछा कि क्या सरकार के इशारे पर गिल्ड को दक्षिणपंथी और गैर दक्षिणपंथी हिस्सों में बांटने की कोशिश की गई, तो उन्होंने कहा, “मैं इस दक्षिण-वाम बंटवारे के बारे में कुछ नहीं जानता. मैं तो एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया में तब शामिल हुआ था जब मेरे वैचारिक झुकाव के बारे में सबको पता था.”

बता दें कि पहली बार हुए पदाधिकारियों का चुनाव इसलिए भी दिलचस्प था कि ऐसे कई पत्रकार जो संस्थान से पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं, उन्होंने चुनाव की घोषणा होने के बाद अतिसक्रियता दिखाई. सिर्फ सक्रियता ही नहीं दिखाई बल्कि उन्होंने चुनाव में वोट भी डाला और साथ ही उम्मीदवारों के प्रस्तावक भी बने. इन सदस्यों को लेकर अब गिल्ड के कई सदस्य दबी जुबान में सवाल खड़ा करने लगे हैं.

गिल्ड के कई सदस्यों से बातचीत में जो निष्कर्ष निकला उसमें दो तरह की स्थितियां सामने आईं पहले वो लोग जिन्होंने इस्तीफा दे दिया था, इसके बावजूद चुनाव में हिस्सा लिया, उम्मीदवारों के प्रस्तावक बने. ऐसे लोगों में स्वराज्य पत्रिका के संपादक आर जगन्नाथन और टाइम्स नाउ की नाविका कुमार शामिल हैं. दूसरे वो लोग जो सालों-साल से गिल्ड के सदस्य रहते हुए भी कभी गिल्ड की किसी गतिविधि में शामिल नहीं हुए, कभी उसकी बैठकों में हिस्सा नहीं लिया, कभी किसी सुधार या सुझाव की पहल नहीं की. ऐसे लोगों में एएनआई की स्मिता प्रकाश का नाम बताया जा रहा है जिन्होंने सचिव पद का चुनाव लड़ा.

गिल्ड के जिन सदस्यों से हमने बात की वो अपना नाम उजागर नहीं करना चाहते थे. उनका कहना था कि गिल्ड ने बाहर कोई भी जानकारी साझा करने पर प्रतिबंध लगा रखा है, इसलिए वो सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहेंगे. गिल्ड में पदाधिकारी रहे एक वरिष्ठ पत्रकार ने हमें बताया, "चुनाव के तहत साजिश की गई. नाविका कुमार और आर जगन्नाथन ने गिल्ड से इस्तीफा दे दिया था इसके बावजूद वह चुनाव में सक्रिय हो गए. उनका तर्क था कि उनका इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ है."

इस आरोप के जवाब में आर जगन्नाथन ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "मैंने अगस्त, 2019 में गिल्ड से इस्तीफा दिया था लेकिन वह न तो स्वीकार हुआ और न ही उसे खारिज किया गया. आज से दो महीने पहले जब चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई तब मुझे लगा कि इस बार सदस्यों के पास वास्तव में बदलाव का एक मौका है न कि सिर्फ सहमति से चयन करने का, तब मैंने उसमें दिलचस्पी ली. इसके बाद मैंने कुछ गिल्ड मेंबर्स के नाम भी प्रपोज किए और वोट भी किया."

गिल्ड के सदस्य इस स्थिति को लेकर बताते हैं, "गिल्ड ने भलमनसाहत में उन्हें (आर जगन्नाथन) वोट डालने की इजाजत दे दी. अगर उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं हुआ था तो क्या इन्होंने अपना इस्तीफा वापस लिया था? इससे भी महत्वपूर्ण बात है कि जिन विसंगितयों या गड़बड़ियों के आधार पर इन लोगों ने अपना इस्तीफा दिया था क्या अब वो गड़बड़ियां खत्म हो गई हैं? क्या अब इन लोगों को गिल्ड से कोई शिकायत नहीं रही? इन सब सवालों का उत्तर जगन्नाथन और नाविका कुमार को देना चाहिए."

इसके जवाब मे जगन्नाथन कहते हैं, "वोटिंग से पहले कुछ लोग मेरे इस्तीफे के बारे में कानाफूसी कर रहे थे. इसलिए वोटिंग से एक दिन पहले मैंने चुनाव समिति से पूछा कि क्या मैं वोट देने के योग्य हूं. उन्होंने मुझे बताया कि हां मैं अभी भी गिल्ड का सदस्य हूं. अगर उन्होंने मना किया होता तो मैं वोट नहीं डालता."

गिल्ड से अपनी शिकायतों और इस्तीफे के सवाल पर जगन्नाथन कहते हैं, “गिल्ड से अपने मतभेदों पर मैं सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करना चाहता. मेरा सिर्फ एक ही मुद्दा है कि गिल्ड को बिना किसी भय या पक्षपात के पत्रकारों के हित में काम करना चाहिए, सरकार या फिर सरकार से बाहर पत्रकारों को निशाना बनाने वालों पर एक समान तरीके से प्रतिक्रिया देनी चाहिए न कि चुनिंदा तरीके से.”

ऐसा करने के पीछे पत्रकारों की मंशा क्या थी? इस सवाल के जवाब में गिल्ड के सदस्य पत्रकार कहते हैं, "दरअसल यह गोदी मीडिया का काम है. आलोक मेहता और आर जगन्नाथन मोदी समर्थक हैं. सरकार के इशारे पर ही इन लोगों ने प्रेसिडेंट के लिए माधव नलपत और सेक्रेटरी के लिए एएनआई की स्मिता प्रकाश का नाम प्रस्तावित किया. आलोक मेहता ने इन नामों का समर्थन भी किया."

गौरतलब है कि नाविका कुमार और आर जगन्नाथन ने ये कहकर कि, उनका इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ है, मतदान में हिस्सा लिया. इससे लोगों में संशय पैदा हुआ कि जिस गिल्ड से तमाम शिकायतों के बाद ये लोग इस्तीफा दे चुके थे, उसके चुनाव की घोषणा होते ही अचानक से ये लोग सक्रिय कैसे हो गए. एक सदस्य का कहना है कि ये लोग मिलकर अपने खास लोगों को जितवाना चाहते थे, लेकिन चुनाव में इनकी बुरी तरह से हार हो गई.  

एक सदस्य ने बताया, "नाविका कुमार, आर जगन्नाथन और स्मिता प्रकाश कभी मीटिंग में नहीं आते हैं और हर मंच पर इसकी बुराई करते हैं. यह बात सबको पता है कि ये लोग सरकार के समर्थक हैं. जब तक चुनाव नहीं होते थे तब तक इनकी गिल्ड में कोई दिलचस्पी नहीं थी. जैसे ही इन्हें लगा कि चुनाव के जरिए ये गिल्ड पर काबिज हो सकते हैं तो ये लोग अतिसक्रिय हो गए. इसी वजह से लोग सवाल कर रहे हैं और अर्थ लगा रहे हैं कि यह लोग गिल्ड पर कब्जा करने की कोशिश में थे. इसके पीछे सरकार की भी भूमिका हो सकती है."

 इस बारे में न्यूज़लॉन्ड्री ने टाइम्स नाउ की नविका कुमार से बात की. उन्होंने इस पर कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया. हमने स्मिता प्रकाश को भी व्हाट्सएप और मेल पर इससे संबंधित कुछ सवाल भेजे. स्मिता प्रकाश ने अपने जवाब में "नो कमेंट" लिख दिया.

बता दें कि पहली बार गिल्ड के चुनाव में वोटिंग हुई है जबकि इससे पहले आम सहमति से इसका चुनाव होता था. इस बार यह चुनाव वर्चुअल माध्यम से जूम के जरिए हुआ. इस चुनाव में महासचिव पद के लिए लड़ रही न्यूज़ एजेंसी एएनआई की स्मिता प्रकाश को हार्ड न्यूज़ मैगजीन के एडिटर संजय कपूर ने हराया. स्मिता प्रकाश को 140 में से सिर्फ 50 वोट मिले. वहीं कोषाध्यक्ष के लिए कारवां पत्रिका के अनंतनाथ को निर्विरोध चुना गया.

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